VasantBhag1-006

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पार नज़र के

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वह एक सुरंगनुमा रास्ता था। आम आदमी के लिए इस रास्ते से होते हुए जाने की मनाही थी...लेकिन छोटू ने एक दिन अपने पापा का सिक्योरिटी-पास लिया और जा पहँचा सुरंग में...फिर क्या हुआ?

"छोटू! कितनी बार कहा है तुमसे कि उस तरफ़ मत जाया करो!"

"फिर पापा क्यों जाते हैं उस तरफ़ रोज़-रोज़?"

"पापा को काम पर जाना
होता है।"

रोज़ाना यही वार्तालाप हुआ करता था छोटू की माँ और छोटू के बीच। उस तरफ़ एक सुरंगनुमा रास्ता था और छोटू के पापा इसी सुरंग से होते हुए काम पर जाया करते थे। आम आदमी के लिए इस रास्ते से जाने की मनाही थी। चंद चुिनंदा लोग ही इस सुरंगनुमा रास्ते का इस्तेमाल कर सकते थे और छोटू के पापा इन्हीं चुिनंदा लोगों में से एक थे।

आज छुट्टी थी और छोटू के पापा घर ही पर आराम फ़रमा रहे थे। नज़र बचाकर, चोरी-छिपे छोटू ने पापा का सिक्योरिटी-पास हथिया ही लिया और चल दिया सुरंग की तरफ़

वैसे तो उनकी पूरी कालोनी ही ज़मीन के नीचे बसी थी। यह जो सुरंगनुमा रास्ता था-अंदर दीये जल रहे थे और प्रवेश करने से पहले एक बंद दरवाज़े का सामना करना पड़ता था। दरवाज़े में एक खाँचा बना हुआ था। छोटू ने खाँचे में कार्ड डाला, तुरंत दरवाज़ा खुल गया। छोटू ने सुरंग में प्रवेश किया। अंदर वाले खाँचे में सिक्योरिटी-पास आ पहुँचा था। उसे उठा लिया, कार्ड उठाते ही दरवाज़ा बंद हुआ। छोटू ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। सुरंगनुमा वह रास्ता ऊपर की तरफ़ जाता था....यानी ज़मीन के ऊपर का सफ़र कर आने का मौका मिल गया था।

मगर कहाँ? मौका हाथ लगते ही फिसल गया! सुरंग में जगह-जगह लगाए निरीक्षक यंत्रों की जानकारी छोटू को नहीं थी। मगर छोटू के प्रवेश करते ही पहले निरीक्षक यंत्र में संदेहास्पद स्थिति दर्शाने वाली हरकत हुई, इतने छोटे कद का व्यक्ति सुरंग में कैसे आया? दूसरे निरीक्षक यंत्र ने तुरंत छोटू की तसवीर खींच ली। किसी एक नियंत्रण केंद्र में इस तसवीर की जाँच की गई और खतरे की सूचना दी गई।

इन सारी गतिविधियों से अनजान छोटू आगे बढ़ रहा था। तभी जाने कहाँ से सिपाही दौड़े चले आए। छोटू को पकड़कर वापस घर छोड़ आए। घर पर माँ छोटू का इंतज़ार कर रही थी। बस, अब छोटू की खैरियत न थी। छोटू के पापा न होते तो छोटू का बचना मुश्किल था।

"छोड़ो भी! मैं इसे समझा दूँगा सब। फिर वह ऐसी गलती कभी नहीं करेगा।" पापा ने छोटू को बचा लिया। बोले, "छोटू, मैं जहाँ काम करता हूँ न, वह क्षेत्र ज़मीन से ऊपर है। आम आदमी वहाँ नहीं जा सकता, क्योंकि वहाँ के माहौल में जी ही नहीं सकता।"

"तो फिर आप कैसे जाते हैं वहाँ?" छोटू का सवाल लाजि़मी था।

"मैं वहाँ एक खास किस्म का स्पेस-सूट पहनकर जाता हूँ। इस स्पेस-सूट से मुझे ऑक्सीजन मिलता है, जिससे मैं साँस ले सकता हूँ। इसी स्पेस-सूट की वजह से बाहर की ठंड से मैं अपने आपको बचा सकता हूँ। खास किस्म के जूतों की वजह से ज़मीन के ऊपर मेरा चलना मुमकिन होता है। ज़मीन के ऊपर चलने-फिरने के लिए हमें एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है।"

छोटू सुन रहा था। पापा आगे बताने लगे, "एक समय था, जब अपने मंगल ग्रह पर सभी लोग ज़मीन के ऊपर ही रहते थे। बगैर किसी तरह के यंत्रों की मदद के, बगैर किसी खास किस्म की पोशाक के, हमारे पुरखे ज़मीन के ऊपर रहा करते थे लेकिन धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन आने लगा। कई तरह के जीव धरती पर रहा करते थे, एक के बाद एक सब मरने लगे। इस परिवर्तन की जड़ में था-सूरज में हुआ परिवर्तन। सूरज से हमें रोशनी मिलती है, ऊष्णता मिलती है। इन्हीं तत्त्वों से जीवों का पोषण होता है। सूरज में परिवर्तन होते ही यहाँ का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया। प्रकृति के बदले हुए रूप का सामना करने में यहाँ के पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, अन्य जीव अक्षम साबित हुए। केवल हमारे पूर्वजों ने इस स्थिति का सामना किया।

"अपने तकनीकी ज्ञान के आधार पर हमने ज़मीन के नीचे अपना घर बना लिया। ज़मीन के ऊपर लगे विभिन्न यंत्रों के सहारे हम सूर्य-शक्ति, सूरज की रोशनी और गर्मी का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। उन्हीं यंत्रों के सहारे हम यहाँ ज़मीन के नीचे जी रहे हैं। यंत्र सुचारु रूप से चलते रहें, इसके लिए बड़ी सतर्कता बरतनी पड़ती है। मुझ जैसे कुछ चुिनंदा लोग इन्हीं यंत्रों का ध्यान रखते हैं।"

"बड़ा हो जाऊँगा तो मैं भी यही काम करूँगा।" छोटू ने अपनी मंशा ज़ाहिर की।

"बिलकुल! मगर उसके लिए खूब पढ़ना होगा। माँ और पापा की बात सुननी होगी!" माँ ने कहा।

दूसरे दिन छोटू के पापा काम पर चले गए। देखा तो क़ट्रोल रूम का वातावरण बदला-बदला-सा था। शिफ़् खत्म कर घर जा रहे स्टाफ़ के प्रमुख ने टी.वी. स्क्रीन की तरफ़ इशारा किया। स्क्रीन पर एक िबंदु झलक रहा था। वह बताने लगा, "यह कोई आसमान का तारा नहीं है, क्योंकि क़प्यूटर से पता चल रहा है कि यह अपनी जगह अडिग नहीं रहा है। पिछले कुछ घंटों के दौरान इसने अपनी जगह बदली है। क़प्यूटर के अनुसार यह हमारी धरती की तरफ़ बढ़ता चला आ रहा है।"

"अंतरिक्ष यान तो नहीं है?" छोटू के पापा ने अपना संदेह प्रकट किया।

"संदेह हमें भी है। आप अब इस पर बराबर ध्यान रखिएगा।"

छोटू के पापा सोच में डूब गए।

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क्या सचमुच अंतरिक्ष यान होगा? कहाँ से आ रहा होगा? सौर मंडल में हमारी धरती के अलावा और कौन से ग्रह पर जीवों का अस्तित्व होगा? कैसे हो सकता है? और अगर होगा भी तो क्या इतनी प्रगति कर चुका होगा कि अंतरिक्ष यान छोड़ सके?... वैसे तो हमारे पूर्वजों ने भी अंतरिक्ष यानों, उपग्रहों का प्रयोग किया था। मगर अब हमारे लिए यह असंभव है। उसके लिए आवश्यक मात्रा में ऊर्जा तो हो! काश! इस नए मेहमान को नज़दीक से देखा जा सकता! हाँ अगर वह इसी तरफ़ आ रहा होगा, तब तो यह संभव हो सकेगा। देखें।

...अब अंतरिक्ष यान से एक यांत्रिक हाथ बाहर निकला। हर पल उसकी लंबाई बढ़ती ही जा रही थी...

छोटू के पापा ने अवलोकन जारी रखा।

कालोनी की प्रबंध समिति की सभा बुलाई गई थी। अध्यक्ष भाषण दे रहे थे, "हाल ही में मिली जानकारी से पता चलता है कि दो अंतरिक्ष यान हमारे मंगल ग्रह की तरफ़ बढ़ते चले आ रहे हैं। इनमें से एक अंतरिक्ष यान हमारे गिर्द चक्कर काट रहा है। क़प्यूटर के अनुसार ये अंतरिक्ष यान नज़दीक के ही किसी ग्रह से छोड़े गए हैं। ऐसी हालत में हमें क्या करना चाहिए-इसकी कोई सुनिश्चित योजना बनानी ज़रूरी है। नंबर एक आपका क्या खयाल है?"

कालोनी की सुरक्षा की पूरी जि़म्मेदारी नंबर एक पर थी। उन्होंने कुछ कागज़ समेटते हुए बोलना आरंभ किया, "इन दोनों अंतरिक्ष यानों को जलाकर खाक कर देने की क्षमता हम रखते हैं, मगर इससे हमें कोई जानकारी हासिल नहीं हो सकेगी। अंतरिक्ष यान बेकार कर ज़मीन पर उतरने पर मजबूर कर देने वाले यंत्र हमारे पास नहीं हैं। हालाँकि, अगर ये अंतरिक्ष यान खुद-ब-खुद ज़मीन पर उतरते हैं, तो उन्हें बेकार कर देने की क्षमता हममें अवश्य है। मेरी जानकारी के अनुसार इन अंतरिक्ष यानों में सिर्फ़ यंत्र हैं। किसी तरह के जीव इनमें सवार नहीं हैं।"

"नंबर एक की बात सही लगती है।" नंबर दो एक वैज्ञानिक थे। वे बोले, "हालाँकि यंत्रों को बेकार कर देने में भी खतरा है। इनके बेकार होते ही दूसरे ग्रह के लोग हमारे बारे में जान जाएँगे। इसलिए मेरी राय में हमें सिर्फ़ अवलोकन करते रहना चाहिए।"

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"जहाँ तक हो सके हमें अपने अस्तित्व को छिपाए ही रखना चाहिए, क्योंकि हो सकता है जिन लोगों ने अंतरिक्ष यान भेजे हैं, वे कल को इनसे भी बड़े सक्षम अंतरिक्ष यान भेजें। हमें यहाँ का प्रबंध कुछ इस तरह रखना चाहिए जिससे इन यंत्रों को यह गलतफ़हमी हो कि इस ज़मीन पर कोई भी चीज़ इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है कि जिससे वे लाभ उठा सकें। अध्यक्ष महोदय से मैं यह दरख्वास्त करता हूँ कि इस तरह का प्रबंध हमारे यहाँ किया जाए।" नंबर तीन सामाजिक व्यवस्था का काम देखते थे।

उनकी बात के जवाब में अध्यक्ष कुछ बोलने जा ही रहे थे कि फ़ोन की घंटी बजी। अध्यक्ष ने चोंगा उठाया, एक मिनट बाद सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "भाइयो, अंतरिक्ष यान क्रमाँक एक हमारी ज़मीन पर उतर चुका है।"

वह दिन छोटू के लिए बड़ा ही महत्त्वपूर्ण दिन था। पापा उसे क़ट्रोल रूम ले गए थे। यहाँ से अंतरिक्ष यान क्रमाँक एक साफ़ नज़र आ रहा था।

"कैसा अजीब लग रहा है यहाँ! इसके अंदर क्या होगा पापा?" छोटू ने पूछा।

"अभी नहीं बताया जा सकता। दूर से ही उसका निरीक्षण जारी है। उस पर बराबर हमारा ध्यान है और उसके हर अंग पर हमारा नियंत्रण है। वक्त आने पर ही हम अगला कदम उठाएँगे," छोटू के पापा ने बताया। उन्होंने छोटू को एक कॉन्सोल दिखाया, जिस पर कई बटन थे।

अब अंतरिक्ष यान से एक यांत्रिक हाथ बाहर निकला। हर पल उसकी लंबाई बढ़ती ही जा रही थी। वह शायद ज़मीन तक पहँुचकर मिट्टी उकेर लेना चाहता था। सब लोग स्क्रीन पर दिखाई दे रही अंतरिक्ष यान की इस हरकत को ध्यान से देख रहे थे-सिवा एक के, उसका ध्यान कहीं और ही था।

छोटू का सारा ध्यान था कॉन्सोल पैनेल पर। कॉन्सोल का एक बटन दबाने की अपनी इच्छा को वह रोक नहीं पाया। वह लाल-लाल बटन उसे बरबस अपनी तरफ खींच रहा था।

...और सहसा खतरे की घंटी बजी। सबकी निगाहें कॉन्सोल की तरफ़ मुड़ीं। पापा ने छोटू को अपनी तरफ़ खींचते हुए एक झापड़ रसीद कर दिया और लाल बटन को पूर्व स्थिति में ला रखा।

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मगर उस तरफ़ अब अंतरिक्ष यान के उस यांत्रिक हाथ की हरकत सहसा रुक गई थी। यंत्र बेकार हो गया था।

उधर पृथ्वी पर नेशनल एअरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) द्वारा प्रस्तुत वक्तव्य ने सबका ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित कर लिया-

"मंगल की धरती पर उतरा हुआ अंतरिक्ष यान वाइकिंग अपना निर्धारित कार्य कर रहा है। हालाँकि किसी अज्ञात कारणवश अंतरिक्ष यान का यांत्रिक हाथ बेकार हो गया है। नासा के तकनीशियन इस बारे में जाँच कर रहे हैं तथा इस यांत्रिक हाथ को दुरुस्त करने के प्रयास भी जारी हैं..."

इसके कुछ ही दिनों बाद पृथ्वी के सभी प्रमुख अखबारों ने छापा-

"नासा के तकनीशियनों को रिमोट क़ट्रोल के सहारे वाइकिंग को दुरुस्त करने में सफलता मिली है। यांत्रिक हाथ ने अब मंगल की मिट्टी के विभिन्न नमूने इकट्ठे करने का काम आरंभ कर दिया है..."

पृथ्वी के वैज्ञानिक मंगल की इस मिट्टी का अध्ययन करने के लिए बड़े उत्सुक थे। उन्हें उम्मीद थी कि इस मिट्टी के अध्ययन से इस बात का पता लगाया जा सकेगा कि क्या मंगल ग्रह पर भी पृथ्वी की ही तरह जीव सृष्टि का अस्तित्व है। यह प्रश्न आज भी एक रहस्य है।

जयंत विष्णु नार्लीकर

 (मराठी से अनुवाद-रेखा देशपांडे)

प्रश्न-अभ्यास

कहानी से

  1. छोटू का परिवार कहाँ रहता था?
  2. छोटू को सुरंग में जाने की इजाज़त क्यों नहीं थी? पाठ के आधार पर लिखो।
  3. कंट्रोल रूम में जाकर छोटू ने क्या देखा और वहाँ उसने क्या हरकत की?
  4. इस कहानी के अनुसार मंगल ग्रह पर कभी आम जन-जीवन था। वह सब नष्ट कैसे हो गया? इसे लिखो।
  5. कहानी में अंतरिक्ष यान को किसने भेजा था और क्यों?
  6. नंबर एक, नंबर दो और नंबर तीन अजनबी से निबटने के कौन से तरीके सुझाते हैं और क्यों?

कहानी से आगे

  1. (क) दिलीप एम. साल्वी   (ख) जयंत विष्णु नार्लीकर  (ग) आइज़क ऐसीमोव  (घ) आर्थर क्लार्क

  • ऊपर दिए गए लेखकों की अंतरिक्ष संबंधी कहानियाँ इकट्ठी करके पढ़ो और एक-दूसरे को सुनाओ। इन कहानियों में कल्पना क्या है और सच क्या है, इसे समझने की कोशिश करो। कुछ ऐसी कहानियाँ छाँटकर निकालो, जो आगे चलकर सच साबित हुई हैं।

  1. इस पाठ में अंतरिक्ष यान अजनबी बनकर आता है। ‘अजनबी’ शब्द पर सोचो। इंसान भी कई बार अजनबी माना जाता है और कोई जगह या शहर भी। क्या तुम्हारी मुलाकात ऐसे किसी अजनबी से हुई है? नए स्कूल का पहला अनुभव कैसा था? क्या उसे भी अजनबी कहोगे? अगर हाँ तो ‘अजनबीपन’ दूर कैसे हुआ? इस पर सोचकर कुछ लिखो।

अनुमान और कल्पना

  1. 1. यह कहानी ज़मीन के अंदर की जि़ंदगी का पता देती है। ज़मीन के ऊपर मंगल ग्रह पर सब कुछ कैसा होगा, इसकी कल्पना करो और लिखो।
  2. 2. मान लो कि तुम छोटू हो और यह कहानी किसी को सुना रहे हो तो कैसे सुनाओगे। सोचो और ‘मैं’ शैली में यह कहानी सुनाओ।

भाषा की बात

  1. ‘वार्तालाप’ शब्द वार्ता+आलाप के योग से बना है। यहाँ वार्ता के अंत का ‘आ’ और ‘आलाप’ के आरंभ का ‘आ’ मिलने से जो परिवर्तन हुआ है, उसे संधि कहते हैं। नीचे लिखे कुछ शब्दों में किन शब्दों की संधि है-
  2. शिष्टाचार    श्रद्धांजलि    दिनांक

    उत्तरांचल    सूर्यास्त    अल्पाहार

  3. कार्ड उठाते ही दरवाज़ा बंद हुआ।
  4. यह बात हम इस तरीके से भी कह सकते हैं-

    जैसे ही कार्ड उठाया, दरवाज़ा बंद हो गया।

    • ध्यान दो कि दोनों वाक्यों में क्या अंतर है। ऐसे वाक्यों के तीन जोड़े तुम स्वयं सोचकर लिखो।
  5. छोटू ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई
  6. छोटू ने चारों तरफ़ देखा

    उपर्युक्त वाक्यों में समानता होते हुए भी अंतर है। मुहावरे वाक्यों को विशिष्ट अर्थ देते हैं। ऐसा ही मुहावरा पहली पंक्ति में दिखाई देता है। नीचे दिए गए वाक्यांशों में ‘नज़र’ के साथ अलग-अलग क्रियाओं का प्रयोग हुआ है, जिनसे मुहावरें बने हैं। इनके प्रयोग से वाक्य बनाआे-

    नज़र पड़ना नज़र रखना

    नज़र आना नज़रें नीची होना

  7. नीचे एक ही शब्द के दो रूप दिए गए हैं। एक संज्ञा है और दूसरा विशेषण है। वाक्य बनाकर समझो और बताओ कि इनमें से कौन से शब्द संज्ञा हैं और कौन से विशेषण-

आकर्षक-आकर्षण     प्रभाव-प्रभावशाली

प्रेरणा-प्रेरक         प्रतिभाशाली-प्रतिभा