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जो देखकर भी नहीं देखते

कभी-कभी मैं अपने मित्रों की परीक्षा लेती हूँ, यह परखने के लिए कि वह क्या देखते हैं। हाल ही में मेरी एक प्रिय मित्र जंगल की सैर करने के बाद वापस लौटीं। मैंने उनसे पूछा, "आपने क्या-क्या देखा?"

"कुछ खास तो नहीं," उनका जवाब था। मुझे बहुत अचरज नहीं हुआ क्योंकि मैं अब इस तरह के उत्तरों की आदी हो चुकी हूँ। मेरा विश्वास है कि जिन लोगों की आँखें होती हैं, वे बहुत कम देखते हैं।

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क्या यह संभव है कि भला कोई जंगल में घंटाभर घूमे और फिर भी कोई विशेष चीज़
न देखे? मुझे-जिसे कुछ भी दिखाई नहीं देता-सैकड़ों रोचक चीज़ें मिलती हैं, जिन्हें मैं छूकर पहचान लेती हूँ। मैं भोज-पत्र के पेड़ की चिकनी छाल और चीड़ की खुरदरी छाल को स्पर्श से पहचान लेती हूँ। वसंत के दौरान मैं टहनियों में नयी कलियाँ खोजती हूँ। मुझे फूलों की पंखुड़ियों की मखमली सतह छूने और उनकी घुमावदार बनावट महसूस करने में अपार आनंद मिलता है। इस दौरान मुझे प्रकृति के जादू का कुछ अहसास होता है। कभी, जब मैं खुशनसीब होती हूँ, तो टहनी पर हाथ रखते ही किसी चिड़िया के मधुर स्वर कानों में गूँजने लगते हैं। अपनी अँगुलियों के बीच झरने के पानी को बहते हुए महसूस कर मैं आनंदित हो उठती हूँ। मुझे चीड़ की फैली पत्तियाँ या घास का मैदान किसी भी महँगे कालीन से अधिक प्रिय है। बदलते हुए मौसम का समाँ मेरे जीवन में एक नया रंग और खुशियाँ भर जाता है।

कभी-कभी मेरा दिल इन सब चीज़ों को देखने के लिए मचल उठता है। अगर मुझे इन चीज़ों को सिर्फ़ छूने भर से इतनी खुशी मिलती है, तो उनकी सुंदरता देखकर तो मेरा मन मुग्ध ही हो जाएगा। परंतु, जिन लोगों की आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं। इस दुनिया के अलग-अलग सुंदर रंग उनकी संवेदना को नहीं छूते। मनुष्य अपनी क्षमताओं की कभी कदर नहीं करता। वह हमेशा उस चीज़ की आस लगाए रहता है जो उसके पास नहीं है।

यह कितने दुख की बात है कि दृष्टि के आशीर्वाद को लोग एक साधारण-सी चीज़ समझते हैं, जबकि इस नियामत से जि़दगी को खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया जा सकता है।

 हेलेन केलर

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लेखिका के बारे में

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हेलेन केलर (1880-1968, अमेरिका) एक ऐसा नाम है जो घोर अंधकार के बीच भी रोशनी देता रहा। कल्पना करो कि जो न सुन सकता हो, न देख सकता हो फिर भी वह लिखना-पढ़ना और बोलना सीख ले, भरपूर आशा-आकांक्षा के साथ जीवन जीने लगे और उसके योगदान दुनिया के लिए यादगार बन जाएँ! ऐसी थीं हेलेन केलर। जब वे डेढ़ वर्ष की थीं, बचपन की एक गंभीर बीमारी की वजह से उनकी देखने और सुनने की शक्ति जाती रही, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कॉलेज के दिनों में ही प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘स्टोरी ऑ लाइ’ में वे लिखती हैं-"मुझे ये तो याद नहीं कि ऐसा कैसे हुआ, लेकिन ऐसा लगता था कि रात कभी खत्म क्यों नहीं होती और सुबह क्यों नहीं आती।" दुनिया की सभी भाषाओं में इस किताब के अनुवाद हुए हैं। इसके अलावा भी उनकी दस पुस्तकें और सैकड़ों लेख प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने दुनियाभर में घूम-घूमकर अपने जैसे लोगों के अधिकारों और विश्वशांति के लिए काम किया। हेलेन केलर भारत भी आई थीं।

प्रश्न-अभ्यास

निबंध से

  1. ‘जिन लोगों के पास आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं’- हेलेन केलर को ऐसा क्यों लगता था?
  2. ‘प्रकृति का जादू’ किसे कहा गया है?
  3. ‘कुछ खास तो नहीं’- हेलेन की मित्र ने यह जवाब किस मौके पर दिया और यह सुनकर हेलेन को आश्चर्य क्यों नहीं हुआ?
  4. हेलेन केलर प्रकृति की किन चीज़ों को छूकर और सुनकर पहचान लेती थीं? पाठ के आधार पर इसका उत्तर लिखो।
  5. ‘जबकि इस नियामत से जि़दगी को खुशियों के इन्द्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया जा सकता है।’- तुम्हारी नज़र में इसका क्या अर्थ हो सकता है?

निबंध से आगे

  1. आज तुमने अपने घर से आते हुए बारीकी से क्या-क्या देखा-सुना? मित्रों के साथ सामूहिक चर्चा करो।
  2. कान से न सुन पाने पर आस-पास की दुनिया कैसी लगती होगी? इस पर टिप्पणी लिखो और कक्षा में पढ़कर सुनाओ।
  3. तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका मिले जिसे दिखाई न देता हो तो तुम उससे सुनकर, सूँघकर, चखकर, छूकर अनुभव की जानेवाली चीज़ों के संसार के विषय में क्या-क्या प्रश्न कर सकते हो? लिखो।
  4. हम अपनी पाँचों इंद्रियों में से आँखों का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा करते हैं। ऐसी चीज़ों के अहसासों की तालिका बनाओ जो तुम बाकी चार इंद्रियों से महसूस करते हो-

सुनकर   चखकर   सूँघकर   छूकर

भाषा की बात

  1. पाठ में स्पर्श से संबंधित कई शब्द आए हैं। नीचे ऐसे कुछ और शब्द दिए गए हैं। बताओ कि किन चीज़ों का स्पर्श ऐसा होता है-
  2. चिकना ............................ चिपचिपा ............................

    मुलायम ............................ खुरदरा ............................

    सख्त ............................ भुरभुरा ............................


  3. अगर मुझे इन चीज़ों को छूने भर से इतनी खुशी मिलती है, तो उनकी सुंदरता देखकर तो मेरा मन मुग्ध ही हो जाएगा।
    • ऊपर रेखांकित संज्ञाएँ क्रमशः किसी भाव और किसी की विशेषता के बारे में बता रही हैं। ऐसी संज्ञाएँ भाववाचक कहलाती हैं। गुण और भाव के अलावा भाववाचक संज्ञाओं का संबंध किसी की दशा और किसी कार्य से भी होता है। भाववाचक संज्ञा की पहचान यह है कि इससे जुड़े शब्दों को हम सिर्फ़ महसूस कर सकते हैं, देख या छू नहीं सकते। आगे लिखी भाववाचक संज्ञाओं को पढ़ो और समझो। इनमें से कुछ शब्द संज्ञा और कुछ क्रिया से बने हैं। उन्हें भी पहचानकर लिखो-

    मिठास    भूख     शांति       भोलापन

    बुढ़ापा      घबराहट     बहाव     फुुर्ती

    ताज़गी     क्रोध    मज़दूरी     अहसास

     

  4. मैं अब इस तरह के उत्तरों की आदी हो चुकी हूँ।

उस बगीचे में आम, अमलतास, सेमल आदि तरह-तरह के पेड़ थे।

ऊपर दिए गए दोनों वाक्यों में रेखांकित शब्द देखने में मिलते-जुलते हैं, पर उनके अर्थ भिन्न हैं। नीचे ऐसे कुछ और शब्द दिए गए हैं। वाक्य बनाकर उनका अर्थ स्पष्ट करो-

अवधि -   अवधी ओर -    और

में -     मैं दिन -    दीन

मेल -   मैल सिल -   शील

अनुमान और कल्पना

  1. इस तसवीर में तुम्हारी पहली नज़र कहाँ जाती है?
  2. गली में क्या-क्या चीज़ें हैं?
  3. इस गली में हमें कौन-कौन-सी आवाज़ें सुनाई देती होंगी?
  4. सुबह के वक्त    दोपहर के वक्त

    शाम के वक्त     रात के वक्त

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  5. अलग-अलग समय में ये गली कैसे बदलती होगी?
  6. ये तारें गली को कहाँ-कहाँ से जोड़ती होंगी?
  7. साइकिलवाला कहाँ से आकर कहाँ जा रहा होगा?

सुनना और देखना

  1. एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा निर्मित श्रव्य कार्यक्रम ‘हेलेन केलर’।
  2. सई परांजपे द्वारा निर्देशित फ़ीचर फ़िल्म ‘स्पर्श’।

केवल पढ़ने के लिए

छूना और देखना

तुम जानते ही हो कि हम आसपास की दुनिया को अपनी इंद्रियों की मदद से महसूस करते हैं। आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, नाक से सँूघते हैं, जीभ से स्वाेद लेते हैं और त्वचा से छूकर किसी चीज़ का अनुभव करते हैं। आओ हम प्रयोगशाला में अपनी नज़र और स्पर्श के माध्यम से कुछ प्रयोग करें और चित्र बनाकर देखें कि हम लोग अपनी आँखों से कितना बारीक अवलोकन कर पाते हैं और कितना छूकर।

इस गतिविधि के लिए आठ-दस किस्म के पेड़-पौधों की पत्तियों की ज़रूरत होगी और तीन चार साथियों की भी। जितने दोस्त इस प्रयोग में शामिल होना चाहें, उतने कागज़ के लिफ़े पास रखने होंगे जिनसे आर-पार दिखे।

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हर लिफ़े में एक पत्ती डाल दो। हर दोस्त को एक-एक लिफ़ा दे दो। हाँ, यह ध्यान रखना कि तुम्हारे दोस्त यह न देख पाएँ कि उनके लिफ़े में किस तरह की पत्ती डाली जा रही है।

अब तुम अपने दोस्तों से यह कहो कि वे अपने-अपने हाथ डालकर पत्ती को छुएँ। अंदाज़ा लगाएँ कि उनके पास किस पौधे की पत्ती है। पत्ती के आकार को टटोलें और उसका चित्र बनाने का प्रयास करें। इस पूरी प्रक्रिया में पत्ती को आँखों से नहीं देखना है।

जब बिना देखे चित्र बनाने का कार्य पूरा हो जाए तो लिफ़े से पत्ती निकाल कर सामने रखें और उसे देखकर चित्र बनाएँ।

- कौन सा चित्र ज़्यादा बारीकी से बना है? बिना देखे बनाया हुआ या देखकर बनाया हुआ?

- क्या और कोई तरीका भी है जिससे पत्ती को बिना देखे पहचानने में सहयोग मिल सकता है?