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सवैया
पुर तें निकसी रघुबीर-बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, "चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहौं कित ह्नै?"।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
"जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्नै ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहाैं भूभुरि-डाढ़े।।"
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं क़टक काढ़े।
जानकीं नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।।
तुलसीदास
प्रश्न-अभ्यास
सवैया से
- नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता की क्या दशा हुई?
- ‘अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा’-किसने किससे पूछा और क्यों?
- राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?
- दोनों सवैयों के प्रसंगों में अंतर स्पष्ट करो।
- पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो।
अनुमान और कल्पना
- गरमी के दिनों में कच्ची सड़क की तपती धूल में नंगे पाँव चलने पर पाँव जलते हैं। ऐसी स्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धो लेने पर बड़ी राहत मिलती है। ठीक वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाए और भूख लगने पर भोजन। तुम्हें भी किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और वह कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी। तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक तुम्हारे मन की दशा कैसी थी?
भाषा की बात
- लखि - देखकर धरि - रखकर
- ऊपर लिखे शब्दों और उनके ओर को ध्यान से देखो। हिदी में जिस उद्देश्य के लिए हम क्रिया में ‘कर’ जोड़ते हैं, उसी के लिए अवधी में क्रिया में (इ) को जोड़ा जाता है, जैसे-अवधी में बैठ + ि = बैठि और हिदी में बैठ + कर = बैठकर। तुम्हारी भाषा या बोली में क्या होता है? अपनी भाषा के ऐसे छह शब्द लिखो। उन्हें ध्यान से देखो और कक्षा में बताओ।
- "मिट्टी का गहरा अंधकार, डूबा है उसमें एक बीज।"
पोंछि - पोंछकर जानि - जानकर
उसमें एक बीज डूबा है।
- जब हम किसी बात को कविता में कहते हैं तो वाक्य के शब्दों के क्रम में बदलाव आता है, जैसे-"छाँह घरीक ह्नै ठाढ़े" को गद्य में ऐसे लिखा जा सकता है "छाया में एक घड़ी खड़ा होकर"। उदाहरण के आधार पर नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को गद्य के शब्दक्रम में लिखो।
- पुर तें निकसी रघुबीर-बधू,
- पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
- बैठि बिलंब लाैं कंटक काढ़े।
- पर्नकुटी करिहौं कित ह्नै?