12. पादप में जनन

अपने वंश अथवा प्रजाति को बनाए रखने के  लिए पादप और जंतुओं के लिए जनन आवश्यक है। कक्षा 6 के अध्याय 9 में आपने पढ़ा था कि सभी जीव अपने समान जीवों का जनन करते हैं। माता-पिता से संतति का जन्म जनन कहलाता है। लेकिन, पादप कैसे जनन करते हैं? पादपों में जनन विभिन्न विधियों द्वारा होता है, जिनके बारे में हम इस अध्याय में पढ़ेंगे।

12.1 जनन की विधियाँ

कक्षा 6 में आपने पुष्पीय पादप के विभिन्न भागों के बारे में पढ़ा था। पादप के विभिन्न भागों के नाम बताइए और प्रत्येक के प्रकार्यों के बारे में लिखिए। अधिकांश पादपों में मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं। ये पादप के कायिक अंग कहलाते हैं। वृद्धि की निश्चित अवधि के बाद, अधिकांश पादपों में पुष्प निकलते हैं। आपने बसंत ऋतु में आम के वृक्षों को पुष्पित होते देखा होगा। यही पुष्प बाद में आम के उन रसीले फलों को निर्मित करते हैं, जिनका आनंद हम गर्मियों में उठाते हैं। हम फलों को खाते हैं और सामान्यतः बीजों को फेंक देते हैं। बीज अंकुरित होकर नया पादप बनाते हैं। यदि एेसा है, तो पादप में पुष्पों की क्या भूमिका है? पुष्प पादप में जनन का कार्य करते हैं। वास्तव में, पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। किसी पुष्प में केवल नर जनन अंग अथवा मादा जनन अंग या फिर दोनों ही जनन अंग हो सकते हैं।

पादप अनेक विधियों द्वारा अपनी संतति उत्पन्न करते हैं। इनमें जनन दो प्रकार से होता हैः
(i) अलैंगिक जनन और (ii) लैंगिक जनन। अलैंगिक जनन में पादप बिना बीजों के ही नए पादप को उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि लैंगिक जनन में नए पादप बीजों से प्राप्त होते हैं।

अलैंगिक जनन

अलैंगिक जनन में नए पादप बीजों अथवा बीजाणुओं के उपयोग के बिना ही उगाए जाते हैं।

पहेली यह समझती थी कि नए पादप सदैव बीजों से ही उगते हैं, लेकिन उसने कभी गन्ना, आलू और गुलाब के बीज नहीं देखे थे। वह जानना चाहती है कि ये पादप जनन कैसे करते हैं।


कायिक प्रवर्धन

यह एक प्रकार का अलैंगिक जनन है, जिसमें पादप के मूल, तने, पत्ती, अथवा कली (मुकुल) जैसे किसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है। चूँकि जनन पादप के कायिक भागों से होता है, अतः इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

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क्रियाकलाप 12.1

गुलाब अथवा चंपा के पौधे की एक शाखा को उसकी पर्वसंधि से काटिए। पर्वसंधि तने या शाखा का वह भाग है, जहाँ से पत्ती निकलती है (चित्र 12.1)। शाखा के इस टुकड़े को कर्तन या कलम कहते हैं। अब कलम को मिट्टी में दबा दीजिए। कलम को प्रतिदिन पानी दीजिए और इसकी वृद्धि को देखिए। नोट कीजिए कि जड़ (मूल) के निकलने और नई पत्तियों के निकलने में कितने दिन लगे? इसी क्रियाकलाप को जल से भरे पात्र में मनीप्लांट का पौधा उगाकर दोहराइए और अपने प्रेक्षणों को नोट कीजिए।

आपने पुष्पकलिकाओं से पुष्पों को खिलते देखा होगा। पुष्पकलिकाओं के अतिरिक्त, पत्तियों के कक्ष (पत्ती के पर्वसंधि से जुड़ाव का बिंदु) में भी कलिकाएँ (मुकुल) होती है। ये कलिकाएँ प्ररोहों (अंकुरों) के रूप में विकसित होती हैं और कायिक कलिकाएँ कहलाती हैं (चित्र 12.2)। कली में एक छोटा तना होता है, जिसके चारों ओर अपरिपक्व पत्तियाँ एक दूसरे के ऊपर अध्यारोपित रहती हैं। कायिक कलिकाएँ भी नए पादप को जन्म दे सकती हैं।

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क्रियाकलाप 12.2

एक ताजा आलू लीजिए। आवर्धक लेंस की सहायता से इस पर पड़े क्षत चिह्नों को देखिए। आपको इनमें कलिका या कलिकाएँ दिखाई दे सकती हैं। क्षत चिह्न को आँख भी कहते हैं। आलू के कुछ टुकड़े काटिए, जिनमें से प्रत्येक में एक आँख अवश्य हो और उन्हें मिट्टी में दबा दीजिए। उस स्थान पर कुछ दिनों तक पानी डालते रहिए, जहाँ आपने आलू के टुकड़ों को मिट्टी में दबाया था। कुछ दिन बाद आलू के टुकड़ाें को खोदकर निकाल लीजिए। आप क्या देखते हैं?

इसी प्रकार आप अदरक अथवा हल्दी भी उगा सकते हैं (चित्र 12.3)।

चित्र 12.3 अदरक का एक टुकड़ा, जिसमें से नए पादप अंकुरित हो रहे हैं

ब्रायोफिलम (पत्थरचट्टा) में पत्ती के किनारे के गर्त में कलिकाएँ होती हैं (चित्र 12.4)। यदि इस पादप की पत्ती आर्द्र मृदा पर गिर जाए, तो प्रत्येक कलिका (मुकुल) नए पादप को जन्म दे सकती है।

कुछ पादपों की जड़ें (मूल) भी नए पादपों को जन्म दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, शकरकंद और डालिया (डहेलिया)।

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कैक्टस जैसे पादप के वे भाग, जो मुख्य पादप से अलग (विलग्न) हो जाते हैं, नए पादप को जन्म देते हैं। प्रत्येक विलग्न भाग नए पादप के रूप में वृद्धि कर सकता है।

बूझो जानना चाहता है कि क्या कायिक प्रवर्धन का कोई लाभ है?

कायिक प्रवर्धन द्वारा पादप कम समय में उगाए जा सकते हैं। बीजों से उगाए जाने वाले पादप की अपेक्षा कायिक प्रवर्धन द्वारा उत्पन्न पादपों में पुष्प और फल कम अवधि में ही आ जाते हैं। नए पादप जनक पादप की यथार्थ प्रतिलिपि होते हैं, क्योंकि वे एक ही जनक द्वारा उत्पन्न होते हैं। इस अध्याय में आगे आप पढ़ेंगे कि इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले पादप में माता-पिता (जनक) दोनों के गुण होते हैं। लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप पादप बीज उत्पन्न करते हैं।

मुकुलन

आपने पहले यीस्ट के बारे में पढ़ा है, जिसे केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। इनके लिए यदि पर्याप्त पोषण उपलब्ध हो, तो यीस्ट कुछ ही घंटों में वृद्धि करके गुणन (अर्थात् जनन) करने लगते हैं। याद रखिए कि यीस्ट एक एकल कोशिका (एककोशिक) जीव है। आइए, हम देखते हैं कि ये जनन कैसे करते हैं।

क्रियाकलाप 12.3

(शिक्षक/शिक्षिका द्वारा प्रदर्शित किए जाने के लिए)

बेकरी से यीस्ट केक अथवा केमिस्ट की दुकान से यीस्ट पाउडर खरीद लें। चुटकीभर यीस्ट लेकर इसे किसी एेसे पात्र में रखें, जिसमें कुछ जल हो। इसमें एक चम्मच शक्कर डालकर उसे जल में घोल लें। अब उस पात्र को किसी कमरे के गर्म भाग में रखें। एक घंटे के पश्चात्, इस द्रव की एक बूँद काँच की स्लाइड (पट्टी) पर रखकर सूक्ष्मदर्शी में देखें। आपको क्या दिखाई देता है? आप नई यीस्ट कोशिकाओं को देख सकते हैं (चित्र 12.5)।

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यीस्ट कोशिका से बाहर निकलने वाला छोटे बल्ब जैसा प्रवर्ध मुकुल या कली कहलाता है। मुकुल क्रमशः वृद्धि करता है और जनक कोशिका से विलग होकर नई यीस्ट कोशिका बनाता है। नई यीस्ट कोशिका विकसित होकर परिपक्व हो जाती है और फिर नई यीस्ट कोशिकाएँ बनाती है। कभी-कभी नवीन मुकुल से नए मुकुल विकसित हो जाते हैं जिससे एक मुकुल
शृंखला बन जाती है। यदि यह प्रक्रम चलता रहे, तो कुछ ही समय में बहुत अधिक संख्या में यीस्ट कोशिकाएँ बन जाती हैं?

चित्र 12.6 स्पाइरोगाइरा (एक शैवाल) में खंडन

खंडन

आपने तालाबों अथवा ठहरे हुए पानी के अन्य जलाशयों में हरे रंग के अवपंकी गुच्छे (फिसलनदार) तैरते हुए देखे होंगे। ये शैवाल हैं। जब जल और पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं, तो शैवाल वृद्धि करते हैं और तेज़ी से खंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाल दो या अधिक खंडों में विखंडित हो जाते हैं। ये खंड अथवा टुकड़े नए जीवों में वृद्धि कर जाते हैं (चित्र 12.6)। यह प्रक्रम निरंतर चलता रहता है और कुछ ही समय में शैवाल एक बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं।

बीजाणु निर्माण

अध्याय 1 में आपने पढ़ा कि डबलरोटी में, वायु में उपस्थित बीजाणुओं से कवक उग जाते हैं। क्रियाकलाप 1.2 को दोहराइए। डबलरोटी पर रुई के जाल में बीजाणुओं को देखिए। जब बीजाणु निर्मुक्त होते हैं, तो ये वायु में तैरते रहते हैं। चूँकि ये बहुत हल्के होते हैं, इसलिए ये लंबी दूरी तक जा सकते हैं (चित्र 12.7)।

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बीजाणु अलैंगिक जनन ही करते हैं। प्रत्येक बीजाणु उच्च ताप और निम्न आर्द्रता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलने के लिए एक कठोर सुरक्षात्मक आवरण से ढका रहता है, इसलिए ये लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं और नए जीव में विकसित हो जाते हैं। मॉस और फर्न जैसे पादप में भी जनन बीजाणुओं द्वारा होता है (चित्र 12.8)।

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12.2 लैंगिक जनन

पुष्प की संरचना के बारे में आप पहले पढ़ चुके हैं। आप जानते हैं कि पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। पुंकेसर नर जनन अंग और स्त्रीकेसर मादा जनन अंग हैं (चित्र 12.9)।

क्रियाकलाप 12.4

सरसों, गुड़हल या पिटूनिया का कोई पुष्प लीजिए और इसके जनन अंगों को पृथक कीजिए। पुंकेसर और स्त्रीकेसर के विभिन्न भागों का अध्ययन कीजिए।

एेसे पुष्प, जिनमें या तो केवल पुंकेसर अथवा केवल स्त्रीकेसर उपस्थित होते हैं, एकलिंगी पुष्प कहलाते हैं। जिन पुष्पों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों ही होते हैं, वे द्विलिंगी पुष्प कहलाते हैं। मक्का, पपीता और ककड़ी या खीरे के पौधे में एकलिंगी पुष्प होते हैं, जबकि सरसों, गुलाब और पिटूनिया के पौधाें में द्विलिंगी पुष्प होते हैं। नर और मादा एकलिंगी पुष्प दोनों एक ही पादप पर उपस्थित हो सकते हैं अथवा भिन्न पादपों पर पाए जा सकते हैं।

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क्या आप पुंकेसर में परागकोश और तंतु को पहचान सकते हैं [चित्र 12.9 (a)]? परागकोश में परागकण होते हैं, जो नर युग्मकों को बनाते हैं। स्त्रीकेसर में वर्तिकाग्र, वर्तिका और अंडाशय होते हैं। अंडाशय में एक या अधिक बीजांड होते हैं। मादा युग्मक अथवा अंड का निर्माण बीजांड में होता है [चित्र 12.9 (b)]। लैंगिक जनन में नर और मादा युग्मकों के युग्मन से युग्मनज़ बनता है।

बूझो जानना चाहता है कि परागकण में उपस्थित नर युग्मक किस प्रकार बीजांड में उपस्थित मादा युग्मक तक पहुँचता है?

बूझो जानना चाहता है कि पुष्प सामान्यतः इतने रंग-बिरंगे और सुगंधयुक्त क्यों होते हैं? क्या एेसा कीटों को आकर्षित करने के लिए होता है?




परागण

सामान्यतः परागकणों में दृढ़ सुरक्षात्मक आवरण होता है, जो उन्हें सूखने से बचाता है। क्योंकि परागकण हल्के होते हैं, अतः वह वायु अथवा जल द्वारा बहाकर ले जाए जा सकते हैं। पुष्पों पर बैठने वाले कीटों के शरीर पर परागकण चिपक जाते हैं। जब कीट उसी प्रकार के किसी अन्य पुष्प पर बैठते हैं, तो पुष्प के वर्तिकाग्र पर कुछ परागकण गिर जाते हैं। परागकणों का परागकोश से पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण परागण कहलाता है। यदि परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे स्व-परागण कहते हैं [चित्र 12.10 (a)]। जब पुष्प के परागकण उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं [चित्र 12.10 (a) और (b)]।

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निषेचन


नर तथा मादा युग्मकों के युग्मन (संयोग) द्वारा बनी कोशिका युग्मनज़ कहलाती है। युग्मनज बनाने के लिए नर और मादा युग्मकों के युग्मन का प्रक्रम निषेचन कहलाता है (चित्र 12.11)। युग्मनज़ भ्रूण में विकसित होता है।

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12.3 फल और बीज का विकास

निषेचन के पश्चात् अंडाशय, फल में विकसित हो जाता है, जबकि पुष्प के अन्य भाग मुरझाकर गिर जाते हैं। परिपक्व हो जाने पर अंडाशय फल के रूप में विकसित हो जाता है। बीजांड से बीज विकसित होते हैं। बीज में एक भ्रूण होता है, जो सुरक्षात्मक बीजावरण के अंदर रहता है।

कुछ फल गूदेदार और रसीले होते हैं, जैसे–आम, सेब और संतरा। कुछ फल कठोर होते हैं, जैसे–बादाम और अखरोट आदि [चित्र 12.12 (a) और (b)]।

(a)



(b)

चित्र 12.12 (a) सेब का एक भाग (b) बादाम

12.4 बीज प्रकीर्णन


प्रकृति में एक ही प्रकार के पादप विभिन्न स्थानों पर उगे हुए पाए जाते हैं। एेसा बीजों के विभिन्न स्थानों पर प्रकीर्णन के कारण होता है। कभी-कभी किसी वन अथवा खेत या फिर उद्यान में चहलकदमी करते समय आपको अपने वस्त्रों पर फलों के बीज चिपके दिखाई दिए होंगे। क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि ये बीज आपके वस्त्रों पर कैसे चिपक जाते हैं?

कल्पना कीजिए कि किसी पादप के सभी बीज एक ही स्थान पर गिरकर वहीं उग आए। आपके विचार में इस परिस्थिति में क्या होगा? पादप के नवोद्भिदों (नए उगे पौधे) के बीच धूप, जल, खनिजों और स्थान के लिए गंभीर स्पर्धा होगी। संभवतः उनमें से कोई भी स्वस्थ पादप के रूप में विकसित नहीं होगा। पादपों को बीजों के प्रकीर्णन से लाभ होता है। इससे एक ही प्रकार के पादप के नवोद्भिदों में सूर्य के प्रकाश, जल और खनिजों के लिए परस्पर स्पर्धा की संभावना कम हो जाती है। प्रकीर्णन पादप को व्यापक क्षेत्र में वितरित होने में सहायक होता है, ताकि वे नए आवासों में अपनी पकड़ बनाने में समर्थ हो सकें।

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प्रकृति में पादप के फलों और बीजों का प्रकीर्णन पवन, जल और जंतुओं द्वारा होता है। सेहिजन (ड्रमस्टिक) तथा द्विफल (मैपिल) जैसे पादप के पंखयुक्त बीज [चित्र 12.13 (a) और (b)], घासों के हल्के बीज अथवा आक (मदार) के रोमयुक्त बीज और सूरजमुखी के रोमयुक्त फल पवन के साथ उड़कर सुदूर स्थानों
तक चले जाते हैं [चित्र 12.14
(a) और (b)]।  कुछ बीज जल द्वारा प्रकीर्णित होते हैं। एेसे बीजों
अथवा फल के आवरण स्पंजी अथवा तंतुमय होते हैं, ताकि वे जल में प्लवन (तैरते) करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकें। उदाहरण के लिए, नारियल। कुछ बीज जंतुओं द्वारा प्रकीर्णित होते हैं,

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विशेषरूप से कंटकी (काँटेदार) बीज, जिनमें हुक जैसी संरचनाएँ होती हैं, जिससे बीज जंतुओं के शरीर से चिपक जाते हैं और दूरस्थ स्थानों तक ले  जाए जाते हैं। इनके उदाहरण यूरेना एवं जैन्थियम  हैं (चित्र 12.15)।

चित्र 12.15 जैन्थियम

कुछ पौधों के फल झटके के साथ फट जाते हैं, जिससे उनके अंदर स्थित बीज प्रकीर्णित हो जाते हैं। बीज जनक पादप से दूर जाकर गिरते हैं। एरंड और बाल्सम के पादप में एेसा ही होता है।

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आपने क्या सीखा

 सभी जीव अपनी किस्म को बनाए रखने के लिए जनन या गुणन करते हैं।

 पादप में जनन दो प्रकार से होता है- अलैंगिक और लैंगिक।

 अलैंगिक जनन की कुछ विधियाँ खंडन, मुकुलन, बीजाणु निर्माण और कायिक प्रवर्धन हैं।

 लैंगिक जनन में नर और मादा युग्मकों का युग्मन होता है।

 कायिक प्रवर्धन में पत्तियाँ, तना और मूल जैसे कायिक भागों से नए पादप उगाए
जाते हैं।

 पुष्प, पादप का जनन अंग है।

 एकलिंगी पुष्प में या तो नर अथवा मादा जनन अंग होते हैं।

 द्विलिंगी पुष्प में नर और मादा जनन अंग दोनों ही होते हैं।

 नर युग्मक परागकणों के अन्दर और मादा युग्मक बीजांड में पाए जाते हैं।

 किसी पुष्प के परागकोश से उसी पुष्प अथवा किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणों के स्थानांतरण का प्रक्रम परागण कहलाता है।

 परागण दो प्रकार का होता है, स्व-परागण और पर-परागण। स्वपरागण में, परागकण परागकोश से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं। पर-परागण में परागकण एक पुष्प के परागकोश से उसी प्रकार के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित
होते हैं।

 परागण पवन, जल और कीटों के द्वारा हो सकता है।

 नर और मादा युग्मकों का युग्मन निषेचन कहलाता है।

 निषेचित अंड युग्मनज़ कहलाता है। युग्मनज़ का विकास भ्रूण में होता है।

 फल एक परिपक्व अंडाशय है, जबकि बीजांड बीज में विकसित होता है। बीज में विकासशील भ्रूण होता है।

 बीजों का प्रकीर्णन पवन, जल अथवा जंतुओं के द्वारा होता है।

 बीज प्रकीर्णन    (i) एक ही स्थान पर पादप की अधिक संख्या की वृद्धि को रोकने, (ii) सूर्य के प्रकाश, जल और खनिजों के लिए स्पर्धा को कम करने और (iii) नए आवासों के अधिग्रहण में सहायक होता है।

अभ्यास

1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

(क) जनक पादप के कायिक भागों से नए पादप के उत्पादन का प्रक्रम --------------- कहलाता है।

(ख) एेसे पुष्पों को, जिनमेें केवल नर अथवा मादा जनन अंग होता है --------------- पुष्प कहते हैं।

(ग) परागकणों का उसी अथवा उसी प्रकार के अन्य पुष्प के परागकोश से वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण का प्रक्रम --------------- कहलाता है।

(घ) नर और मादा युग्मकों का युग्मन --------------- कहलाता है।

(च) बीज प्रकीर्णन ---------------, --------------- और --------------- के द्वारा होता है।

2. अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।

3. पादपों में लैंगिक जनन के प्रक्रम को समझाइए।

4. अलैंगिक और लैंगिक जनन के बीच प्रमुख अंतर बताइए।

5. किसी पुष्प का चित्र खींचकर उसमें जनन अंगों को नामांकित कीजिए।

6. स्व-परागण और पर-परागण के बीच अंतर बताइए।

7. पुष्पों में निषेचन का प्रक्रम किस प्रकार संपन्न होता है?

8. बीजों के प्रकीर्णन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।

9. कॉलम A में दिए गए शब्दों का कॉलम B में दिए गए जीवों से मिलान कीजिए–

कॉलम A कॉलम B

(क) कली/मुकुल (i) मैपिल

(ख) आँख (ii) स्पाइरोगाइरा

(ग) खंडन  (iii) यीस्ट

(घ) पंख (iv) डबलरोटी की फफूँद

(च) बीजाणु (v) आलू

(vi) गुलाब

10. सही विकल्प पर () निशान लगाइए-

(क) पादप का जनन भाग होता है, उसका

(i) पत्ती/पर्ण

(ii) तना

(iii) मूल

(iv) पुष्प

(ख) नर और मादा युग्मक के युग्मन का प्रक्रम कहलाता है

(i) निषेचन

(ii) परागण

(iii) जनन

(iv) बीज निर्माण

(ग) परिपक्व होने पर अंडाशय विकसित हो जाता है

(i) बीज में

(ii) पुंकेसर में

(iii) स्त्रीकेसर में

(iv) फल में

(घ) बीजाणु उत्पन्न करने वाला एक पादप जीव है

(i) गुलाब

(ii) डबलरोटी का फफूँद

(iii) आलू

(iv) अदरक

(च) ब्रायोफिलम अपने जिस भाग द्वारा जनन करता है, वह है

(i) तना

(ii) पत्ती

(iii) मूल

(iv) पुष्प

विस्तारित अधिगम- क्रियाकलाप और परियोजना कार्य

1. विभिन्न प्रकार के कैक्टसों के टुकड़ों की सहायता से अपना निजी कैक्टस संग्रह बनाइए। आप विभिन्न किस्मों के कैक्टसों को किसी चपटे पात्र में साथ-साथ अथवा पृथक पात्रों में उगा सकते हैं।

2. बाज़ार से जितने प्रकार के स्थानीय फल उपलब्ध हों, उन्हें एकत्रित कीजिए। यदि विविध किस्म के फल उपलब्ध न हों, तो आप टमाटर, खीरा, ककड़ी आदि ले लीजिए। ये भी फल हैं, लेकिन हम इनका उपयोग सब्जी के रूप में करते हैं। विभिन्न फलों के चित्र बनाइए। प्रत्येक किस्म के एक फल को काटकर उसके अंदर के बीजों को देखिए। फलों और उनके बीजों के विशेष लक्षण (गुण) जानने का प्रयास कीजिए। जानकारी पुस्तकालय से भी प्राप्त की जा सकती है। यदि संभव हो तो निम्न वेबसाइट से इस बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।

www.saps.plantsci.cam.ac.uk/fscfruit/dispersal.pdf.

3. दस किस्म के फलदार पादपों या वृक्षों के नाम लिखिए। याद रखिए कि अनेक फलों का उपयोग सब्जियों के रूप में किया जाता है। अपने अध्यापक, माता-पिता और यदि सुविधा हो, तो किसी फल उत्पादक, किसान अथवा कृषि विशेषज्ञ से यह जानकारी प्राप्त कीजिए कि आपकी सूची में सम्मिलित पादप के बीज का प्रकीर्णन किस प्रकार होता है। प्राप्त जानकारी को सारणी में व्यवस्थित कीजिए।

Cap17

4. मान लीजिए किसी संवर्धन (कल्चर) डिश में कोई एेसा जीव है, जो प्रत्येक घंटे के बाद अलैंगिक जनन के प्रक्रम द्वारा अपनी संख्या दोगुनी कर लेता है। यदि प्रारंभ में संवर्धन डिश में उस जीव का केवल एक सदस्य हो, तो 10 घंटे बाद डिश में उस प्रकार के जीवों के सदस्यों की संख्या कितनी होगी? किसी एक जनक से उत्पन्न होने वाली जीवों की एेसी कॉलोनी या समूहन ‘क्लोन’ कहलाती है।