16. जलः एक बहुमूल्य संसाधन

" जल है तो कल है "

‘‘यदि जल उपलब्ध है तो आपका भविष्य सुरक्षित है’’

आप शायद जानते हों कि प्रतिवर्ष 22 मार्च का दिन विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक विद्यालय में ‘जल दिवस’ मनाया गया और आपके आयु वर्ग के बच्चों से पोस्टर आमंत्रित किए गए। उस दिन प्रस्तुत किए गए कुछ पोस्टरों को चित्र 16.1 में दिखाया गया है।


चित्र 16.1 बच्चों द्वारा बनाए गए कुछ पोस्टर

इन पोस्टरों से आपको क्या संदेश मिलता है? अपने प्रेक्षणों को अपनी नोटबुक में लिखिए और उनकी चर्चा अपनी कक्षा में कीजिए।

क्या आपने कभी घर अथवा विद्यालय में जल की कमी महसूस की है? आपके माता-पिता और शिक्षक प्रायः आपको जल बर्बाद न करने की सलाह देते होंगे। हर व्यक्ति का जल संरक्षण के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए ही हम प्रतिवर्ष जल दिवस मनाते हैं।

पेयजल, धुलाई, खाना पकाने और उचित सफ़ाई बनाए रखने के लिए, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुझाई गई जल की न्यूनतम मात्रा, 50 लिटर प्रति व्यक्ति है। यह मात्रा प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग ढाई बाल्टी जल के बराबर है। क्या आपके परिवार को कम से कम इतना जल मिल रहा है? यदि हाँ, तो आपको अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए। क्योंकि, हमारे देश में लाखों लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिलता है। आपके मित्रों और उनके परिवारों की जल की उपलब्धता की स्थिति कैसी है? अपने अनुभवों की उनके साथ चर्चा कीजिए।


चित्र 16.2 जल एकत्र करने के लिए लंबी कतार

कुछ स्थानों पर जल की अत्यधिक कमी है। नलों में पानी का न आना, जल भरने के लिए लंबी कतारें (चित्र 16.2), लड़ाई-झगड़े, जल की माँग के लिए धरने और प्रदर्शन आदि, जैसे दृश्य, विशेषकर ग्रीष्म काल में सामान्य रूप से दिखाई देते हैं। चित्र 16.3 में दिखाई गई कुछ समाचारपत्रों की कतरनें इस स्थिति की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करती हैं। क्या यह सत्य नहीं है कि हम जल की अत्यधिक कमी का सामना कर रहे हैं?

चित्र 16.3 समाचार पत्रों की कतरनें

क्रियाकलाप 16.1

समाचारपत्रों और पत्रिकाओं से जल की कमी से संबंधित समाचार, लेख और चित्र की कतरनें एकत्रित कीजिए। उन्हें अपनी स्क्रैप पुस्तिका में चिपकाइए और उनके बारे में अपने मित्रों से चर्चा कीजिए। जनता द्वारा झेली जाने वाली कुछ समस्याओं को सूचीबद्ध कीजिए और कक्षा में उन पर चर्चा कीजिए।

जल की कमी पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बन गई है। एेसा अनुमान है कि अब से कुछ ही वर्षों में विश्व के एक-तिहाई से अधिक जनसंख्या को जल की कमी का सामना करना पड़ेगा।


 वर्ष 2003 को अंतर्राष्ट्रीय अलवण जल वर्ष मनाया गया था। जिससे लोगों को इस प्राकृतिक संसाधन की निरंतर घट रही उपलब्धता के बारे में जागरूक किया जा सके।

जल की कमी के विषय में चर्चा करने से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि हमारी पृथ्वी पर उपयोग के लिए कितना जल उपलब्ध है।

16.1 कितना जल उपलब्ध है

अंतरिक्ष से लिए गए पृथ्वी के चित्र को देखिए
(चित्र 16.4)। यह नीला क्यों दिखाई देता है? निश्चय ही आप अनुमान लगा सकते हैं।

चित्र 16.4 अंतरिक्ष से पृथ्वी नीली आभा लिए दिखाई देती है


आप जानते हैं कि पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग जल से ढका है। पृथ्वी पर उपस्थित लगभग समस्त जल समुद्रों और महासागरों, नदियों, तालों, ध्रुवीय बर्फ़, भौमजल और वायुमंडल में पाया जाता है, परंतु इसमें से अधिकांश जल इसी रूप में मानव उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। उपयोग के लिए उपयुक्त जल अलवण जल है, जिसे बोल-चाल की भाषा में ताज़ा जल कहते हैं। ऊपर बताए कुछ स्रोतों से उपलब्ध अलवण (ताज़ा) जल की सापेक्ष मात्रा का आकलन करने के लिए क्रियाकलाप 16.2 कीजिए।

क्रियाकलाप 16.2

सारणी में दिए गए विभिन्न चरणों का अनुसरण करते हुए पृथ्वी में उपलब्ध अलवण जल का आकलन कीजिए।

Cap1


बूझो यह जानकर चकरा गया है कि हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध जल की मात्रा इतनी कम है।


पहेली ने गणना करके बताया कि अलवण जल की मात्रा पृथ्वी पर उपलब्ध जल की कुल मात्रा का लगभग 0.006% है।          


हम में से अधिकांश लोग जल को एक असीमित संसाधन मानते हैं। क्रियाकलाप 16.2 से क्या आपको मानव उपयोग के लिए उपलब्ध जल की वास्तविक मात्रा का आभास हुआ है? क्या इस जानकारी से आपको चिंता हो रही है? इस विषय में अपनी कक्षा में चर्चा करिए।

16.2 जल की अवस्थाएँ

क्या आपको डर है कि सतत् उपयोग से किसी दिन उपयोग के लिए उपलब्ध समस्त जल समाप्त हो जाएगा? आप जानते हैं कि विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा पृथ्वी पर जल की निरंतर उपलब्धता करोड़ों वर्षों से बनी हुई है। यह सभी प्रक्रम सम्मिलित रूप से जल चक्र का निर्माण करते हैं। आपने कक्षा 6 में जल चक्र के विषय में पढ़ा था। अपने शब्दों में लिखिए कि आप जल चक्र के बारे में क्या जानते हैं।

आप जानते हैं कि जल चक्र द्वारा परिचक्रण के दौरान जल इसकी तीनों अवस्थाओं अर्थात् ठोस, द्रव और गैस में से किसी एक अवस्था में पृथ्वी पर कहीं भी पाया जा सकता है। ठोस अवस्था में जल बर्फ़ और हिम के रूप में पृथ्वी के ध्रुवों पर (बर्फ़ छत्रक), बर्फ़ से ढके पर्वतों और हिमनदों (ग्लेशियर) में पाया जाता है। द्रव अवस्था में जल महासागरों, झीलों, नदियों के अतिरिक्त भू-तल के नीचे (भौमजल) भी पाया जाता है। गैसीय अवस्था में जल हमारे आस-पास की वायु में जलवाष्प के रूप में उपस्थित रहता है। जल का उसकी तीनों अवस्थाओं के बीच सतत् चक्रण द्वारा पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर बनी रहती है, जबकि समस्त मानव जनसंख्या तथा अन्य सभी जीव जल का उपयोग करते हैं। क्या इस जानकारी से आपको कोई राहत मिलती है?

क्या आपको जल चक्र में सम्मिलित प्रक्रम याद हैं? क्रियाकलाप 16.3 आपको इसमें सहायता कर सकता है।

क्रियाकलाप 16.3

चित्र 16.5 में जल चक्र में सम्मिलित प्रक्रमों को संख्याओं द्वारा चिह्नित किया गया है। इन संख्याओं की सहायता से अस्त-व्यस्त क्रम में लिखे गए प्रक्रमों के लिए सही शब्द लिखिए।

cap2

अधिकांश शहरों और नगरों की अपनी जल आपूर्ति व्यवस्था होती है, जो नागरिक निकायों द्वारा संचालित होती है। जल को आस-पास की किसी झील, नदी, तालाब अथवा कुँओं से लाया जाता है। जल की आपूर्ति पाइपों के विशेष क्रम में बिछाए जाल द्वारा की जाती है। सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आपूर्ति इस प्रकार नहीं होती। वहाँ लोग अपने उपयोग के लिए जल, सीधे उसके स्रोत से ही प्राप्त करते हैं। प्रायः लोगों यहाँ तक कि बच्चों को जल लाने के लिए उसके स्रोत तक पैदल जाना पड़ता है। कभी-कभी जल स्रोत कई किलोमीटर की दूरी पर होता है (चित्र 16.6)। बच्चों के लिए जल ढोने का यह कार्य अत्यधिक कष्टकारी है। एेसे बच्चे प्रायः नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा पाते हैं क्योंकि उन्हें स्रोत से जल लाने में ही बहुत समय लग जाता है।

चित्र 16.6 जल लेकर आती महिलाएँ

हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग अपने उपयोग के लिए जल, कुँओं, नलकूपों अथवा हैंडपंपों से प्राप्त करता है। इन स्रोतों को जल कहाँ से मिलता है?

महिलाओं को अनेक घरेलू कार्य करने पड़ते हैं। यदि उन्हें जल भी भरकर लाना पड़े, तो उनके काम का बोझ और बढ़ जाता है।

16.3 जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत ः भौमजल

यदि हम किसी जलाशय के निकट भूमि में गड्ढा खोदें, तो हमें वहाँ की मृदा आर्द्र (नम) मिल सकती है। मृदा में आर्द्रता भूमिगत जल की उपस्थिति को इंगित करती है। यदि हम और अधिक गहराई तक खोदते चले जाएँ, तो हम उस स्तर तक पहुँच सकते हैं जहाँ मृदा के कणों के बीच के सारे के सारे रिक्त स्थान (अवकाश) और चट्टानों के बीच के स्थान जल से भरे होते हैं (चित्र 16.7)। इस परत की ऊपरी सीमा भौमजल स्तर कहलाती है। भौमजल स्तर विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है और यह किसी दिए गए स्थान पर परिवर्तित भी हो सकता है। भौमजलस्तर एक मीटर से भी कम गहराई पर अथवा भूमि में अनेक मीटर की गहराई में हो सकता है। भौमजल स्तर के नीचे पाया जाने वाला जल भौमजल कहलाता है। इस भौमजल का स्रोत क्या है?

वर्षाजल और अन्य स्रोतों, जैसे नदियों और तालाबों का जल मृदा से रिसकर भूमि के नीचे गहराई में रिक्त स्थानों और दरारों को भर देता है। भूमि में जल का रिसाव अंतःस्यंदन कहलाता है। अतः इस प्रक्रम द्वारा उपयोग किए जा चुके भौमजल की पुनः परिपूर्ति हो जाती है। कुछ स्थानों पर भौमजल स्तर के नीचे स्थिर कठोर शैलों (चट्टानों) की परतों के बीच भौमजल संचित हो जाता है। इस प्रकार संचित भौमजल के भंडारों को जलभर कहते हैं। जलभरों के जल को सामान्यतः नलकूपों अथवा हैंडपंपों की सहायता से बाहर निकाला जाता है।


cap3

चित्र 16.7 भौमजल और भौमजल स्तर

क्या आप किसी एेसे स्थान पर गए हैं जहाँ निर्माण कार्य हो रहा हो? श्रमिकों को निर्माण के लिए जल कहाँ से मिलता है? आपने शायद देखा होगा कि एेसे स्थानों पर भौमजल स्तर पर पहुँचने के लिए संछिद्रण (बोरिंग) की जाती है। वहाँ कार्य करने वाले लोगों से मालूम कीजिए कि उन्हें जल पाने के लिए कितनी गहरी खुदाई करनी पड़ी।

क्या हम भूमि के नीचे से निरंतर जल निकाल सकते हैं? एेसा करने से भौमजलस्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

16.4 भौमजल स्तर का अवक्षय

भूमि के नीचे से निकाले गए भौमजल की पुनःपूर्ति प्रायः वर्षाजल के अवस्रवण (रिसाव) द्वारा हो जाती है। भौमजल स्तर तब तक प्रभावित नहीं होता, जब तक कि हम केवल उतना ही जल निकालते हैं जितने की प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा पुनःपूर्ति हो जाती है। तथापि, जल की पर्याप्त रूप से पुनःपूर्ति न होने पर भौमजलस्तर नीचे गिर सकता है। एेसा अनेक कारणों से हो सकता है। जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगिक और कृषि गतिविधियाँ आदि भौमजल स्तर को प्रभावित करने वाले कुछ सामान्य कारक हैं। अल्प वर्षा एक अन्य कारक है, जो भौमजल स्तर को नीचा कर सकता है। भौमजलस्तर को प्रभावित करने वाले अन्य कारक हैं वनअपरोपण (वनोन्मूलन) और जल के अवस्रवण के लिए प्रभावित क्षेत्र में कमी।

जनसंख्या प्रसार

जनसंख्या बढ़ने से भवनों, दुकानों, कार्यालयों और सड़कों के निर्माण की माँग भी बढ़ जाती है। इससे कृषि हेतु भूमि, उद्यानों और खेल के मैदानों जैसे खुले क्षेत्रों में कमी आ जाती है। इसके कारण भूमि में वर्षाजल के अवस्रवण की दर कम हो जाती है। यदि खुले क्षेत्रों में इसी तरह कमी होती रही तो इसका क्या परिणाम होगा? याद रखिए कि पक्के फ़र्श से जल आसानी से अवस्रवित नहीं होता, जबकि घास के बगीचे, मैदानों आदि से जल तुरंत अवस्रवित हो जाता है।

यही नहीं, निर्माण कार्य के लिए भी बड़ी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रायः भौमजल का उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार, एक ओर हम अधिक भौमजल का उपयोग कर रहे हैं, और दूसरी ओर विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्यों के परिणामस्वरूप हम भूमि में जल के अवस्रवण के अवसर कम कर रहे हैं। इसके कारण भौमजल स्तर का निरंतर अवक्षय हो रहा है। वास्तव में, अनेक शहरों के कुछ भागों में भौमजल स्तर चिंताजनक रूप से अत्यधिक निम्न स्तरों तक पहुँच गया है।

बढ़ते हुए उद्योग

जल का उपयोग सभी उद्योगों द्वारा किया जाता है। हमारे उपयोग में आने वाली लगभग हर वस्तु के उत्पादन में कहीं न कहीं जल की आवश्यकता होती है। उद्योगों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। अधिकांश उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाने वाला जल भूमि से निकाला जाता है।

क्रियाकलाप 16.4

एेसे कुछ उद्योगों के नाम बताइए, जिनसे आप परिचित हैं। हमारे दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले और इनसे प्राप्त होने वाले उत्पादों की एक सूची बनाइए। अपने शिक्षक/शिक्षिका और माता-पिता से इस बारे में बातचीत करिए कि किस प्रकार बढ़ते हुए उद्योग धंधे भौमजल स्तर के नीचे गिरने के लिए उत्तरदायी हैं।

कृषि कार्य

भारत में अधिकांश किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर करते हैं। नहरों, जैसे सिंचाई तंत्र केवल कुछ ही क्षेत्रों में उपलब्ध हैं। इन तंत्रों में भी अनियमित वर्षा के कारण जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है। अतः, किसानों को सिंचाई के लिए भौमजल का उपयोग करना पड़ता है। जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण कृषि के लिए भौमजल का उपयोग दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप भौमजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है।

­­16.5 जल का वितरण

अनेक कारणों से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले जल के वितरण में बहुत असमानता है।

कुछ स्थानों पर अच्छी वर्षा होती है और वह जल से समृद्ध हैं। इसके विपरीत रेगिस्तान हैं जहाँ बहुत कम वर्षा होती है।

भारत बहुत विशाल देश है, जिसके सभी क्षेत्रों में एकसमान रूप से वर्षा नहीं होती। कुछ स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि कुछ अन्य स्थानों पर बहुत कम वर्षा होती है। अत्यधिक वर्षा से प्रायः बाढ़ आ जाती हैं, जबकि वर्षा की कमी से सूखा पड़ता है। अतः, हमारे देश में एक ही समय में पर कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और कुछ में सूखा हो सकता है।

क्रियाकलाप 16.5

हमारे देश में औसत वार्षिक वर्षा का वितरण, चित्र 16.8 में दिखाया गया है।

मानचित्र में उस स्थान को ढूँढ़िए, जहाँ आप 
रहते हैं।

 क्या आपके क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा होती है?

 क्या आपके क्षेत्र में वर्षभर पर्याप्त जल उपलब्ध रहता है?

यह भी संभव है कि हम किसी एेसे क्षेत्र में रह रहे हों, जहाँ वर्षा तो पर्याप्त होती है, फिर भी जल की कमी रहती है। क्या हम कह सकते हैं कि यह जल संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण होता है।


चित्र 16.8 भारत का वर्षा मानचित्र

आभार


1. भारत सरकार का प्रतिलिप्याधिकार, 2007।


2. भारत के महासर्वेक्षक की अनुज्ञानुसार भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मानचित्र पर आधारित।


3. समुद्र में भारत का जलप्रदेश, उपयुक्त आधार-रेखा से मापे गये बारह समुद्री मील की दूरी तक है।


4. भारत की बाह्य सीमायें तथा समुद्र तटीय रेखायें भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा सत्यापित अभिलेख/प्रधान प्रति से मेल खाती है।



16.6 जल प्रबंधन

आपने कक्षा 6 में पढ़ा था कि अनेक स्थानों पर जल की नियमित आपूर्ति सुनियोजित पाइप तंत्र के द्वारा की जाती है। जब नागरिक प्राधिकरण पाइपों द्वारा जल की आपूर्ति करते हैं, तो यह संभव है कि जल गंतव्य तक न पहुँच पाए। आपने संभवतः जल आपूर्ति पाइपों में रिसाव को देखा होगा, जिससे बड़ी मात्रा में जल पाइपों से रिसकर बह जाता है। यह नागरिक अधिकारियों का उत्तरदायित्व है कि बहुमूल्य जल को इस प्रकार व्यर्थ होने से रोका जाए।

कुुप्रबंधन अथवा बर्बादी व्यक्तिगत स्तरों पर भी हो सकती है। हम सभी जानबूझकर अथवा अनजाने में दाँतों में मंजन करने, दाढ़ी बनाने, नहाने और कई अन्य क्रियाकलापों के दौरान जल की बर्बादी करते हैं। त्रुटिपूर्ण टोंटियों से जल रिसाव उसकी बर्बादी का एक अन्य स्रोत है। उपयोग के दौरान जल की बर्बादी से एेसा प्रतीत होता है, जैसे भविष्य में हमें जल की आवश्यकता नहीं होगी।

हमने देखा है कि वर्षा के रूप में जो जल हमें प्राप्त होता है उसमें से अधिकांश एेसे ही बह जाता है। यह बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी है। वर्षा जल का उपयोग भौमजल स्तर की पुनःपूर्ति करने के लिए किया जा सकता है। इसे जल संग्रहण अथवा वर्षाजल संग्रहण कहते हैं, जिसके बारे में आपने कक्षा 6 में पढ़ा था।

यह मालूम कीजिए कि क्या आपके आस-पास की किसी इमारत में जल संग्रहण तंत्रों को लगाया गया है।

हमारे देश में अनेक स्थानों पर जल भंडारण और जल का पुनःपूर्ति करने के लिए बावड़ी बनाने की प्रथाओं का सदियों से चलन रहा है। बावड़ी जल संचित करने का पारंपरिक तरीका था। समय के साथ बावड़ियों का रखरखाव बंद कर दिया गया, जिनसे इन जलाशयों में धीरे-धीरे गाद जमा होती गई। तथापि, जल की अत्यधिक कमी के कारण इन क्षेत्रों के लोगों को इस प्रकार की तकनीकों पर पुनः विचार करना पड़ा। बावड़ियों को पुनः बनाया जा रहा है। जिन स्थानों में बावड़ियों का पुनःउत्थान किया गया है वहाँ कम वर्षा के बावजूद जल की आवश्यकताओं का प्रबंधन भली भाँति हो रहा है।

किसान भी अपने खेत में जल का उपयोग मितव्ययता से कर सकते हैं। संभवतः आपने बूँद (ड्रिप) सिंचाई व्यवस्था के बारे में सुना होगा (चित्र 16.9)। ड्रिप सिंचाई व्यवस्था कम व्यास के पाइपों द्वारा पौधों को पानी देने की तकनीक है, जो सीधे उनकी जड़ों तक जल पहुँचाती है।

एक केस अध्ययन

गुजरात के कच्छ क्षेत्र के भुजपुर नामक स्थान में वर्षा बहुत अनिश्चित रूप से होती है। वहाँ का ताज़े जल का एकमात्र स्रोत भूमिगत जल ही है, क्योंकि इस क्षेत्र में नदियों में वर्षभर पर्याप्त जल नहीं होता है। पिछले वर्षों में, जल की माँग बढ़ गई है। भौमजल का उपयोग पुनःपूर्ति होने वाले जल से कहीं अधिक है। इसके परिणामस्वरूप भौमजल स्तर चिंताजनक रूप से नीचे गिरता चला गया है।

वर्ष 1989 में, गाँववासियों ने एक गैर-सरकारी संगठन के साथ मिलकर, वर्षाजल संग्रहण का निश्चय किया। रूक्मावती नदी और उसकी अनेक सहायक नदियों पर 18 चैकडैम (बंध) बनाए गए। इस तरह एकत्रित किए गए जल से मृदा में अंतःस्रवण की दर को बढ़ा दिया, जिससे जलभरों की पुनःपूर्ति हो गई।

इस क्षेत्र के किसानों के अनुसार अब कुँओं में पानी वर्षभर उपलब्ध रहता है और जो जल बहकर समुद्र में चला जाता था और व्यर्थ हो जाता था, अब सिंचाई के लिए उपलब्ध हो गया है।

चित्र 16.9 खेत में बूँद (ड्रिप) सिंचाई व्यवस्था

16.7 आपकी भूमिका

क्या आप कभी अपने घर, विद्यालय अथवा किसी अन्य स्थान पर नल से पानी बहता देखकर उसे बंद करते हैं? रिसते हुए नलों से बहुत-सा जल व्यर्थ बह जाता है।

जल की बर्बादी को कम करने के लिए आप अनेक कदम उठा सकते हैं। आइए, आपकी सहायता के लिए हम कुछ उदाहरणों पर विचार करते हैं। आप इनमें कई और तरीके जोड़ सकते हैं।

जल बचत आदतें

1.­ मंजन/ब्रुश करते समय नल को लगातार खुला न रखें।

2.­ फ़र्श की धुलाई करने की बजाए उस पर पौंछा लगाएँ।

3.­ -------------------------------------------

16.8 पादपों पर जल की कमी का प्रभाव

आपने देखा होगा कि गमले के पादपों (पौधों) को यदि कुछ दिनों तक पानी न दिया जाए तो वह मुरझा जाते हैं और अंततः सूख जाते हैं। आपने अध्याय 1 में पढ़ा था कि पादपों को अपना भोजन तैयार करने के लिए मृदा में से पोषक तत्त्व प्राप्त करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए कि यदि पादपों के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा, तो उसका क्या परिणाम होगा।

पृथ्वी पर से हरियाली लुप्त हो जाएगी। इसका अर्थ जीवन का अंत हो सकता है, क्योंकि पादपों के न रहने का परिणाम यह होगा कि पृथ्वी पर न ही पर्याप्त भोजन, न ही अॉक्सीजन उपलब्ध होगी, न ही पर्याप्त वर्षा होगी और इनसे संबद्ध अनेकों अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो जाएँगी।

एक सफल प्रयास

राजस्थान एक गर्म और शुष्क क्षेत्र है। जल की प्राकृतिक कमी की चुनौती को एक सफल प्रयास द्वारा हल कर दिया गया। सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के एक दल ने अलवर जिले में एक शुष्क क्षेत्र को हरित स्थान में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने पाँच सूख चुकी नदियों अखेरी, रूपारेल, सरसा, भगिनी और जहाजवाली को जल संग्रहण द्वारा पुनर्जीवित कर दिया।

cap4

आपने क्या सीखा

 जल सभी सजीव जीवों के लिए अनिवार्य है। इसके बिना जीवन संभव नहीं है।

 जल तीन अवस्थाओं में पाया जाता है- ठोस, द्रव और वाष्प।

 यद्यपि, जल चक्र के द्वारा जल की आपूर्ति बनी रहती है फिर भी विश्व के अनेक भागों में उपयोग योग्य जल की कमी है।

 विश्व के विभिन्न भागों में जल का वितरण असमान है। एेसा बहुत कुछ मानव क्रियाकलापों के कारण भी है।


 उद्योगों की तेज़ी से वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, सिंचाई की बढ़ती आवश्यकताएँ और कुप्रबंधन जल की कमी के कुछ कारण हैं।

 हमें पाइपों द्वारा जल आपूर्ति के समय, भवनों और अन्य स्थानों में रिसते नलों के कारण होने वाले जल की बर्बादी के प्रति जागरुक होना चाहिए। जल के अनावश्यक उपयोग और अत्यधिक मात्रा में भौमजल का उपयोग करने से बचना चाहिए। भूमि में जल के पुनःपूर्ति को बढ़ाया जाना चाहिए।

 समय की माँग है कि हर व्यक्ति जल का उपयोग मितव्ययता से करे।

 यदि पौधों को कुछ दिनों तक पानी न दिया जाए तो वह मुरझा जाते हैं और अंततः सूख जाते हैं।

अभ्यास

1. निम्नलिखित वक्तव्य ‘सत्य’ हैं अथवा ‘असत्य’–

(क) भौमजल विश्वभर की नदियों और झीलों में पाए जाने वाले जल से कहीं अधिक है।

(ख) जल की कमी की समस्या का सामना केवल ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी करते हैं।

(ग) नदियों का जल खेतों में सिंचाई का एकमात्र स्रोत है।

(घ) वर्षा जल का चरम स्रोत है।

2. समझाइए कि भौमजल की पुनःपूर्ति किस प्रकार होती है?

3. किसी गली में पचास घर हैं, जिनके लिए दस नलकूप (ट्यूबवैल) लगाए गए हैं। भौमजल स्तर पर इसका दीर्घावधि प्रभाव क्या होगा?

4. मान लीजिए आपको किसी बगीचे का रखरखाव करने की जिम्मेदारी दी जाती है। आप जल का सदुपयोग करने के लिए क्या कदम उठाएँगे?

5. भौमजल स्तर के नीचे गिरने के लिए उत्तरदायी कारकों को समझाइए।

6. रिक्त स्थानों की उचित शब्द भरकर पूर्ति कीजिए-

(क) भौमजल प्राप्त करने के लिए --------------- तथा --------------- का उपयोग होता है।

(ख) जल की तीन अवस्थाएँ ------------ , ------------ और ------------ हैं।

(ग) भूमि की जल धारण करने वाली परत --------------- कहलाती है।

(घ) भूमि में जल के अवस्रवण के प्रक्रम को --------------- कहते हैं।

7. निम्नलिखित में से कौन सा कारक जल की कमी के लिए उत्तरदायी नहीं है?

(क) औद्योगीकरण में वृद्धि

(ख) बढ़ती जनसंख्या

(ग) अत्यधिक वर्षा

(घ) जल संसाधनों का कुप्रबंधन

8. सही विकल्प का चयन कीजिए-

(क) विश्व की सभी झीलों और नदियों में जल की कुल मात्रा नियत (स्थिर) रहती है।

(ख) भूमिगत जल की कुल मात्रा नियत रहती है।

(ग) विश्व के समुद्रों और महासागरों में जल की कुल मात्रा नियत है।

(घ) विश्व में जल की कुल मात्रा नियत है।

9. भौमजल और भौमजल स्तर को दिखाते हुए एक चित्र बनाइए। उसे चिह्नित कीजिए।

विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप और परियोजना कार्य

1. नाटक में भूमिका

आप अपने विद्यालय में जल खोजी गुप्तचर हैं। आपके दल में छह सदस्य हैं। विद्यालय परिसर का सर्वेक्षण करके निम्नलिखित जानकारी एकत्र कीजिए-

नलों की कुल संख्या

 टपक रहे नलों की संख्या

 रिसने के कारण व्यर्थ हो रहे जल की मात्रा

 रिसाव के कारण

 अपनाए गए सुधार के उपाय

2. भौमजल का दोहन

यह जानने का प्रयास कीजिए कि आपके क्षेत्र में कितने हैंडपंप हैं। इनमें से कुछ के मालिकों अथवा उपयोग करने वालों से बातचीत कर यह मालूम कीजिए कि जल कितनी गहराई पर मिला था? यदि गहराइयों में कोई अंतर हो तो उसके संभावित कारणों के बारे में विचार कीजिए। अपनी जानकारी के आधार पर रिपोर्ट लिखिए और उस पर अपनी कक्षा में चर्चा कीजिए। यदि संभव हो, तो किसी एेसे स्थान पर जाइए, जहाँ हैंडपंप लगाने के लिए बोरिंग (संछिद्रण) की जा रही हो। पूरे प्रक्रम को सावधानीपूर्वक नोट कीजिए और उस स्थान पर भौमजल स्तर की गहराई का पता लगाइए।

3. वर्षाजल को संचित करना - पारंपरिक विधियाँ

कक्षा में 4 से 5 छात्रों के समूह बना लीजिए और जल संग्रहण की विभिन्न पारंपरिक विधियों पर एक रिपोर्ट तैयार करिए।

यदि संभव हो तो, निम्नलिखित वेबसाइट से जानकारी प्राप्त कीजिए।

www.rainwaterharvesting.org

4. जल का संरक्षण

घरों में और विद्यालय में जल संरक्षण के लिए एक अभियान चलाइए। अन्य लोगों को जल संसाधनों के महत्त्व के बारे में बताने के लिए पोस्टर बनाइए।

5. किसी ‘प्रतीक’ अथवा ‘लोगो’ का सृजन

जल की कमी को दर्शाने वाला कोई ‘लोगो’ अथवा ‘प्रतीक’ बनाने के लिए एक प्रतिस्पर्धा का आयोजन कीजिए।


" हमारा जल - हमारा जीवन "


क्या आप जानते हैं?

कोठापल्ली गाँव के समीप जल संभर प्रबंधन परियोजना द्वारा जल प्रबंधन के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। परियोजना के नाटकीय परिणाम आए हैं। भौमजल स्तर बढ़ गया है, हरित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप इस उपबंजर क्षेत्र में उत्पादकता और आय में आशातीत वृद्धि हुई है।