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Hamara Prayavaran

स्थलमंडल अनेक प्लेटों में विभाजित है, जिन्हें स्थलमंडलीय प्लेट कहते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ये प्लेट हमेशा धीमी गति से चारों तरफ घूमती रहती हैं-प्रत्येक वर्ष केवल कुछ मिलीमीटर के लगभग। पृथ्वी के अंदर पिघले हुए मैग्मा में होने वाली गति के कारण एेसा होता है। पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मैग्मा एक वृत्तीय रूप में घूमता रहता है, जैसा कि क्रियाकलाप में दिखाया गया है।


क्या आप जानते हैं ?

एक रंगीन कागज़ की छोटी-सी गोली लीजिए और इसे जल के आधे भरे बीकर में रख दीजिए। बीकर को तिपाई पर रखकर गर्म करें। जल गर्म होने पर आप देखेंगे कि गर्म जल की परतों के साथ कागज़ की गोली भी ऊपर उठती है और ठंडे पानी की परतों के साथ यह गोली नीचे बैठती है। पृथ्वी के अंदर स्थित पिघला हुआ मैग्मा भी इसी प्रकार गति करता है।


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शब्दावली

स्थलमंडलीय प्लेट:

भू-पर्पटी में अनेक बड़ी एवं कुछ छोटी कठोर, असमान-आकार की प्लेटें होती हैं, जिन पर महाद्वीप एवं हासागर की सतहें टिकी हैं।


प्लेट की इस गति के कारण पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन होता है। पृथ्वी की गति को उन लों के आधार पर विभाजित किया गया है जिनके कारण ये गतियाँ उत्पन्न होती हैं। जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं उन्हें अंतर्जनित बल (एंडोजेनिक फोर्स) कहते हैं एवं जो बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं उन्हें बहिर्जनिक बल (एक्सोजेनिक फोर्स) कहते हैं (चित्र 3.1)। अंतर्जनित बल कभी आकस्मिक गति उत्पन्न करते हैं, तो कभी धीमी गति। भूकंप एवं ज्वालामुखी जैसी आकस्मिक गति के कारण पृथ्वी की सतह पर अत्यधिक हानि होती है।

ज्वालामुखी भू-पर्पटी पर खुला एक एेसा छिद्र होता है, जिससे पिघले हुए पदार्थ अचानक निकलते हैं (चित्र 3.2)।

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चित्र 3.1: स्थलरूपों का विकास

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इसी प्रकार, स्थलमंडलीय प्लेटों के गति करने पर पृथ्वी की सतह पर कंपन होता है। यह कंपन पृथ्वी के चारों ओर गति कर सकता है। इस कंपन को भूकंप कहते हैं (चित्र 3.3)। भू-पर्पटी के नीचे वह स्थान जहाँ कंपन आरंभ होता है, उद्गम केंद्र कहलाता है। उद्गम केंद्र के भूसतह पर उसके निकटतम स्थान को अधिकेंद्र कहते हैं। अधिकेंद्र से कंपन बाहर की ओर तरंगों के रूप में गमन करती हैं। अधिकेंद्र के निकटतम भाग में सर्वाधिक हानि होती है एवं अधिकेंद्र से दूरी बढ़ने के साथ भूकंप की तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जाती है।

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चित्र 3.2: एक ज्वालामुखी


यद्यपि, भूकंप की भविष्यवाणी संभव नहीं, लेकिन यदि हम पहले से तैयार हों, तो इसके प्रभाव को निश्चित रूप से कम किया जा सकता है।

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क्रियाकलाप 

एक बर्तन लें। उसे जल से भरकर ढक्कन से बंद कर दें तथा जल गर्म करने के लिए रख दें। अब कुछ मटर, चम्मच और मोती ढक्कन के ऊपर रख दें। आप क्या देखते हैं? जैसे ही जल में उबाल आता है, ढक्कन भी हिलने लगता है। जो वस्तुएँ आपने ढक्कन के ऊपर रखी हैं उनमें कंपन होने लगता है। दाने नीचे जाते है और चम्मच के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी भाँति जब भूकंप आते हैं, तो पृथ्वी में कंपन उत्पन्न होने लगता है।


क्या आप जानते हैं ?

भूकंपीय तरंगे तीन प्रकार की होती हैं–

पी तरंगें अथवा अनुदैर्ध्य तरंगें

एस तरंगें अथवा अनुप्रस्थ तरंगें

एल तरंगें अथवा पृष्ठीय तरंगें

इन तरंगों के गुणधर्म विश्वकोश से ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।

 

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चित्र 3.3: एक भूकंप की उत्पत्ति


स्थानीय लोग कुछ सामान्य तरीकों से भूकंप की संभावना का अनुमान लगाते हैं, जैसे–जानवरों के व्यवहार का अध्ययन, तालाब में मछलियों की उत्तेजना, साँपों का धरातल पर आना।

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चित्र 3.4: गुजरात में भूकंप द्वारा विनाश


क्या आप जानते हैं ?

भूकंप का मापन एक यंत्र से किया जाता है, जिसे भूकंपलेखी कहते हैं। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर मापी जाती है। जिस भूकंप की तीव्रता 2.0 अथवा उससे कम होती है, उसका प्रभाव नहीं के बराबर होता है। जिस भूकंप की तीव्रता 5.0 होती है, वह वस्तुओं के गिरने से क्षति पहुँचा सकता है। जिस भूकंप की तीव्रता 6.0 अथवा उससे अधिक होती है, वह बहुत शक्तिशाली और जिसकी तीव्रता 7.0 अथवा अधिक होती है, वह सर्वाधिक शक्तिशाली समझा जाता है।

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भूकंपलेखी


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क्रियाकलाप 

1. भूकंप के पश्चात समाचारपत्रों के मुख्य समाचारों के रूप में दिया गया ‘भूकंप-एक वस्तुस्थिति अध्ययन’ पढ़ें। इस घटना को क्रमानुसार श्रेणीबद्ध करें।

2. कल्पना करें कि यदि स्कूल समय के बीच में अचानक भूकंप आ जाए, तो आप अपनी सुरक्षा के लिए क्या करेंगे?


भूकंप से बचाव की तैयारी

भूकंप के दौरान कहाँ आश्रय लें

सुरिक्षत स्थान-रसोई के काउंटर या मेज के नीचे, दीवार के अंदरूनी कोने में।

इनसे दूर रहें-आग वाले स्थान, चिमनी के आसपास तथा टूट सकने वाली खिड़कियों, दर्पण एवं तसवीर फ्रेम से।

पहले से तैयार रहें-अपने दोस्तों एवं पारिवारिक सदस्यों के बीच जागरूकता फैलाएँ एवं आपदा का सामना विश्वास से करें।


1724.pngमुख्य स्थलाकृतियाँ

अपक्षय एवं अपरदन नामक दो प्रक्रमों द्वारा दृश्यभूमि लगातार विघटित होती रहती है। पृथ्वी की सतह पर शैलों के टूटने से अपक्षय की क्रिया होती है। भू-दृश्य पर जल, पवन एवं हिम जैसे विभिन्न घटकों के द्वारा होने वाले क्षय को अपरदन कहते हैं। वायु, जल आदि अपरदित पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, और फलस्वरूप एक स्थान पर निक्षेपित करते हैं। अपरदन एवं निक्षेपण के ये प्रक्रम पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करते हैं।

क्या आप जानते हैं ?

विश्व में हज़ारों छोटे-छोटे जलप्रपात हैं। सबसे ऊँचा जलप्रपात दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला का एंजेल जलप्रपात है। अन्य जलप्रपात उत्तरी अमेरिका में कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की सीमा पर स्थित नियाग्रा जलप्रपात है और अफ़्रीका  में जांबिया एवं जिंबाबवे की सीमा पर स्थित विक्टोरिया जलप्रपात हैं।

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नियाग्रा जलप्रपात



नदी के कार्य

नदी के जल से दृश्य भूमि का अपरदन होता है। जब नदी किसी खड़े ढाल वाले स्थान से अत्यधिक कठोर शैल या खड़े ढाल वाली घाटी में गिरती है, तो यह जलप्रपात बनाती है (चित्र 3.5)।

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चित्र 3.5: एक जलप्रपात

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चित्र 3.6: बाढ़कृत मैदान में नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ


जब नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है, तो वह मोड़दार मार्ग पर बहने लगती है। नदी के इन्हीं बड़े मोड़ों को विसर्प कहते हैं। इसके बाद विसर्पों के किनारों पर लगातार अपरदन एवं निक्षेपण शुरू हो जाता है। विसर्प लूप के सिरे निकट आते जाते हैं। समय के साथ विसर्प लूप नदी से कट जाते हैं और एक अलग झील बनाते हैं, जिसे चापझील भी कहते हैं। कभी-कभी नदी अपने तटों से बाहर बहने लगती है। फलस्वरूप निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। बाढ़ के कारण नदी के तटों के निकटवर्ती क्षेत्रों में महीन मिट्टी एवं अन्य पदार्थों का निक्षेपण करती है। एेसी मिट्टी एवं पदार्थों को अवसाद कहते हैं। इससे समतल उपजाऊ बाढ़कृत मैदान का निर्माण होता है। नदी के उत्थित तटों को तटबंध कहते हैं। समुद्र तक पहुँचते-पहुँचते नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है तथा नदी अनेक धाराओं में विभाजित हो जाती है, जिनकवितरिका कहा जाता है। यहाँ नदी इतनी धीमी हो जाती है कि यह अपने साथ लाए मलबे का निक्षेपण करने लगती है। प्रत्येक वितरिका अपने मुहाने का निर्माण करती है। सभी मुहानों के अवसादों के संग्रह से डेल्टा का निर्माण होता है (चित्र 3.7)।


विश्व की कुछ नदियों के नाम ढूँढ़ें, जो डेल्टा का निर्माण करती हैं।

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चित्र 3.7: डेल्टा

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चित्र 3.8: समुद्री तरंगों द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ

समुद्री तरंग के अपरदन एवं निक्षेपण तटीय स्थलाकृतियाँ बनाते हैं। समुद्री तरंगें लगातार शैलों से टकराती रहती हैं, जिससे दरार विकसित होती है। समय के साथ ये बड़ी और चौड़ी होती जाती हैं। इनको समुद्री गुफा कहते हैं। इन गुफाओं के बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है, जिससे तटीय मेहराब बनते हैं। लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देता है और केवल दीवारें बचती हैं। दीवार जैसी इन आकृतियों को स्टैक कहते हैं। समुद्री जल के ऊपर लगभग ऊर्ध्वाधर उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को समुद्र भृगु कहते हैं। समुद्री तरंगें किनारों पर अवसाद जमा कर समुद्री पुलिन का निर्माण करती हैं।

हिमनद के कार्य

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चित्र 3.9: हिमनद

हिमनद अथवा हिमानी बर्फ़ की नदियाँ होती हैं। हिमनद अपने नीचे की कठोर चट्टानों से गोलाश्मी मिट्टी और पत्थरों को अपरदित कर देती है और गोलाश्मी मिट्टी एवं पत्थरों से भूदृश्य का अपरदन करती है। हिमनद गहरे गर्तों का निर्माण करते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में बर्फ पिघलने से उन गर्तों में जल भर जाता है और वे सुंदर झील बन जाते हैं। हिमनद के द्वारा लाए गए पदार्थ, जैसे–छोटे-बड़े शैल, रेत एवं तलछट मिट्टी निक्षेपित होते हैं। ये निक्षेप हिमनद हिमोढ़ का निर्माण करते हैं।

पवन के कार्य

क्या आपने कभी रेगिस्तान देखा है? बालू टिब्बे के कुछ चित्र एकत्र करने का प्रयास कीजिए।

रेगिस्तान में पवन, अपरदन एवं निक्षेपण का प्रमुख कारक है। रेगिस्तान में आप छत्रक के आकार के शैल देख सकते है, जिन्हें सामान्यतः छत्रक शैल कहते हैं। पवन शैल के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भा को आसानी से काटती है। इसलिए एेसी शैल के आधार संकीर्ण एवं शीर्ष विस्तृत होते हैं। पवन चलने पर, यह अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है। जब पवन का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है। इनको बालू टिब्बा कहते हैं (चित्र 3.10)। जब बालू कण महीन एवं हल्के होते हैं, तो वायु उनको उठाकर अत्यधिक दूर ले जा सकती है। जब येे बालू कण विस्तृत क्षेत्र में निक्षेपित हो जाते है, तो इसे लोएस कहते हैं। चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं।

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चित्र 3.10: बालू टिब्बे

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1. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए–

(क) प्लेटें क्यों घूमती हैं?

(ख) बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बल क्या हैं?

(ग) अपरदन क्या है?

(घ) बाढ़कृत मैदान का निर्माण कैसे होता है?

(च) बालू टिब्बा क्या है?

(छ) समुद्री पुलिन का निर्माण कैसे होता है?

(ज) चापझील क्या है?

2. सही () उत्तर चिह्नित कीजिए–

(क) इनमें से कौन-सी समुद्री तरंग की विशेषता नहीं है?

(i) शैल (ii) किनारा (iii) समुद्री गुफा

(ख) हिमनद की निक्षेपण विशेषता है

(i) बाढ़कृत मैदान (ii) पुलिन (iii) हिमोढ़

(ग) पृथ्वी की आकस्मिक गतियों के कारण कौन-सी घटना होती है?

(i) ज्वालामुखी (ii) वलन (iii) बाढ़कृत मैदान

(घ) छत्रक शैलें पाई जाती है

(i) रेगिस्तान में (ii) नदी घाटी में (iii) हिमनद में

(च) चापझील यहाँ पाई जाती हैं

(i) हिमनद (ii) नदी घाटी (iii) रेगिस्तान

3. निम्नलिखित स्तंभों को मिलाकर सही जोड़े बनाइए–

(क) हिमनद (i) समुद्री तट

(ख) विसर्प (ii) छत्रक शैल

(ग) पुलिन (iii) बर्फ़ की नदी

(घ) बालू टिब्बा (iv) नदियाँ

(च) जलप्रपात (v) पृथ्वी का कंपन

(छ) भूकंप (vi) समुद्र भृगु

(vii) कठोर संस्तर शै

(viii) रेगिस्तान

4. कारण बताइए–

(क) कुछ शैल छत्रक के आकार में होते हैं।

(ख) बाढ़कृत मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं।

(ग) समुद्री गुफा स्टैक के रूप में परिवर्तित हो जाती है।

(घ) भूकंप के दौरान इमारतें गिरती हैं।

5. क्रियाकलाप–

नीचे दिए गए चित्रों को देखें। यह नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ हैं। इन्हें पहचानिए एवं बताइए कि ये नदी के अपरदन अथवा निक्षेपण अथवा दोनों का परिणाम हैं।

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6. आओ खेलें

(i) नीचे दी गयी वर्ग पहेली को हल करें।

नोट: वर्ग पहेली के उत्तर अँग्रेज़ी के शब्दों में है।

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बाएँ से दाएँ

2. नदी के लूप जैसा मोड़

4. जल का ठोस रूप

7. हिम का चलना

9. जल का ऊँचाई से गिरना

11. समुद्री तरंग द्वारा दुर्बल शैल में बनाई गयी प्राकृतिक गुफा

12. नदी के तटबंध

13. समुद्री जल का विशाल भंडार

14. शुष्क प्रदेश जहाँ बालू के टिब्बे पाए जाते हैं

15. बालू की छोटी पहाड़ी जो पवन के कार्य से बनती है

16. बाढ़ के समय नदी निक्षेपण द्वारा निर्मित समतल मैदान

ऊपर से नीचे

1. जल की सतह पर पवन द्वारा जल का उठना एवं गिरना

3. चैनल में जल का बहाव

5. समुद्री तट पर तीव्र ऊर्ध्वाधर शैल

6. हिमनद द्वारा लाए गए पदार्थ

8. नदी विसर्प द्वारा निर्मित चापाकार झील

10. पवन द्वारा निक्षेपित महीन बालू

13. समुद्र तट के निकट एकल दीवार जैसी शैल आकृति

14. नदी के मुहाने पर अवसाद निक्षेपण से निर्मित आकृति