रक्त और हमारा शरीर 6

दिव्या अनिल की छोटी बहन है। यों तो वह शुरू से ही कमज़ोर है, लेकिन इधर कुछ दिनों से उसे हर समय थकान महसूस होती रहती है। मन किसी काम में नहीं लगता, भूख भी पहले से कम हो गई है। अस्पताल में उसे डॉक्टर ने देखा तो कहा, "लगता है, दिव्या के शरीर में रक्त की कमी हो गई है। जाँच कराकर देखते हैं।" यह कहकर उन्होंने दिव्या को रक्त की जाँच के लिए पास के एक कमरे में भेज दिया। वहाँ अनिल को अपनी ही जान-पहचान की डॉक्टर दीदी दिखाई दीं।

डॉक्टर दीदी ने कहा, "कहो अनिल, कैसे आना हुआ?"

अनिल ने बताया कि डॉक्टर ने दिव्या को खून की जाँच के लिए आपके पास भेजा है।

इतना सुनते ही डॉक्टर दीदी ने दिव्या की उँगली से रक्त की कुछ बूँदें एक छोटी सी शीशी में डाल दीं और स्लाइड पर लगा दीं। फिर अनिल से बोलीं, "अनिल, तुम कल अस्पताल से रिपोर्ट ले जाना।"

अगले दिन अस्पताल पहुँचकर अनिल ने डॉक्टर दीदी के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। भीतर से आवाज़ आई, "आ जाओ।" अनिल ने कमरे में प्रवेश किया तो पाया, डॉक्टर दीदी सूक्ष्मदर्शी द्वारा एक स्लाइड की जाँच कर रही थीं। दीदी के इशारे से वह पास रखी एक कुरसी पर बैठ गया। स्लाइड की जाँच पूरी होने पर डॉक्टर दीदी ने साबुन से हाथ धोए और तौलिए से पोंछती हुई बोलीं, "अनिल, दिव्या को एनीमिया है। चिंता की बात नहीं, कुछ दिन दवा लेगी तो ठीक हो जाएगी।"


अनिल के मन में जिज्ञासा हुई, वह बोला, "दीदी, एक सवाल पूछूँ?"

"हाँ, हाँ, क्यों नहीं", डॉक्टर दीदी ने कहा।

"एनीमिया से आपका क्या मतलब है दीदी?" उसने पूछा।

"यह जानने के लिए तुम्हें रक्त के बारे में जानना होगा," डॉक्टर दीदी ने कहा। फिर बोलीं, "अनिल, देखने में रक्त लाल द्रव के समान दिखता है, किंतु इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखें तो यह भानुमती के पिटारे से कम नहीं। मोटेतौर पर इसके दो भाग होते हैं। एक भाग वह जो तरल है, जिसे हम प्लाज़्मा कहते हैं। दूसरा, वह जिसमें छोटे-बड़े कई तरह के कण होते हैं...कुछ लाल, कुछ सफ़ेद और कुछ ऐसे जिनका कोई रंग नहीं, जिन्हें बिबाणु (प्लेटलैट कण) कहते हैं। ये कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं।" इतना कहकर डॉक्टर दीदी ने सूक्ष्मदर्शी के नीचे एक स्लाइड लगाई, उसे फोकस किया और बोलीं, "देखो अनिल, सूक्ष्मदर्शी द्वारा जो कण तुम्हें दिखाई दे रहे हैं, ये हैं लाल रक्त-कण।"


स्लाइड देख, मानो आश्चर्य से उछल पड़ा था अनिल! रक्त की एक बूँद में इतने सारे कण! इसकी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह बोला, "इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है, मानो बहुत सी छोटी-छोटी बालूशाही रख दी गई हों।"


"हाँ", दीदी बोलीं, "लाल कण बनावट में बालूशाही की तरह ही होते हैं। गोल और दोनों तरफ़ अवतल, यानी बीच में दबे हुए। रक्त की एक बूँद में इनकी संख्या लाखों में होती है। यदि हम एक मिलीमीटर रक्त लें तो उसमें हमें चालीस से पचपन लाख कण मिलेंगे। इनके कारण ही हमें रक्त लाल रंग का नज़र आता है। ये कण शरीर के लिए दिन-रात काम करते हैं। साँस लेने पर साफ़ हवा से जो ऑक्सीजन तुम प्राप्त करते हो उसे शरीर के हर हिस्से में पहुँचाने का काम इन कणों का ही है। इनका जीवनकाल लगभग चार महीने होता है। चार महीने के होते-होते ये नष्ट हो जाते हैं, लेकिन एक साथ नहीं, धीरे-धीरे। कुछ आज, कुछ कल, कुछ उससे अगले दिन...।"

"तब तो कुछ ही महीनों में ये खत्म हो जाते होंगे", अनिल ने कहा। यह सुनकर डॉक्टर दीदी मुसकरा उठीं, बोलीं, "नहीं, ऐसा नहीं होता। शरीर में हर समय नए कण बनते रहते हैं, जो नष्ट कणों का स्थान ले लेते हैं। हड्डियों के बीच के भाग मज्जा में ऐसे बहुत से कारखाने होते हैं जो रक्त कणों के निर्माण-कार्य में लगे रहते हैं। इनके लिए इन कारखानों को प्रोटीन, लौहतत्त्व और विटामिन रूपी कच्चे माल की ज़रूरत होती है। यह पौष्टिक आहार लेते हो? हरी सब्ज़ी, फल, दूध, अंडा और गोश्त में ये तत्त्व उपयुक्त मात्रा में होते हैं। 

यदि कोई व्यक्ति उचित आहार ग्रहण नहीं करता तो इन कारखानों को आवश्यकतानुसार कच्चा माल नहीं मिल पाता। नतीजा यह होता है कि रक्त-कण बन नहीं पाते, रक्त में इनकी कमी हो जाती है। लाल कणों की इसी कमी को एनीमिया कहते हैं।"


"तो क्या संतुलित आहार लेने मात्र से हम एनीमिया से बचे रह सकते हैं?" अनिल ने सवाल किया।

दीदी बोलीं, "हाँ, यह कहना काफ़ी हद तक सही होगा। यों तो एनीमिया बहुत से कारणों से हो सकता है, किंतु हमारे देश में इसका सबसे बड़ा कारण पौष्टिक आहार की कमी है। इसके अलावा इस रोग का एक और बड़ा कारण है पेट में कीड़ों का हो जाना। ये कीड़े प्रायः दूषित जल और खाद्य पदार्थों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। अतः इनसे बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम पूरी सफ़ाई से बनाए गए खाद्य पदार्थ ही ग्रहण करें। भोजन करने से पूर्व अच्छी तरह से हाथ धो लें और साफ़ पानी ही पिएँ। और हाँ, अनिल एक किस्म के कीड़े भी हैं, जिनके अंडे ज़मीन की ऊपरी सतह में पाए जाते हैं। इन अंडों से उत्पन्न हुए लार्वे त्वचा के रास्ते शरीर में प्रवेश कर आँतों में अपना घर बना लेते हैं। इनसे बचने का सहज उपाय है कि शौच के लिए हम शौचालय का ही प्रयोग करें और इधर-उधर नंगे पैर न घूमें।"

"दीदी, यह तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात बताई आपने", अनिल बोला। वह पलभर सेाच में डूबा रहा। फिर बोला, "आपने बताया था कि रक्त में सफ़ेद कण और बिबाणु (प्लेटलैट कण) भी होते हैं, शरीर में उनका क्या काम है?"


दीदी बोलीं, "सफ़ेद कण वास्तव में हमारे शरीर के वीर सिपाही हैं। जब रोगाणु शरीर पर धावा बोलने की कोशिश करते हैं तो सफ़ेद कण उनसे डटकर मुकाबला करते हैं और जहाँ तक संभव हो पाता है रोगाणुओं को भीतर घर नहीं करने देते। बस, संक्षेप में यों मान लो कि वे बहुत से रोगों से हमारी रक्षा
करते हैं।"

"और बिबाणुओं का काम है चोट लगने पर रक्त जमाव क्रिया में मदद करना। रक्त के तरल भाग प्लाज़्मा में एक विशेष किस्म की प्रोटीन होती है जो रक्तवाहिका की कटी-फटी दीवार में मकड़ी के जाले के समान एक जाला बुन देती है। बिबाणु इस जाले से चिपक जाते हैं और इस तरह दीवार में आई दरार भर जाती है, जिससे रक्त बाहर निकलना बंद हो जाता है।"

अनिल बोला, "दीदी, लेकिन घाव गहरा हो तब तो खून बहता ही चला
जाता है।"

"हाँ, ऐसे समय में उस व्यक्ति को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। ज़रूरत समझने पर ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कुछ टाँके भी लगाने पड़ सकते हैं, किंतु डॉक्टर के पास पहुँचने तक के समय में चोट के स्थान पर कसकर एक साफ़ कपड़ा बाँध देना चाहिए। दबाव पड़ने से रक्त का बहना कम हो जाता है, जो उस व्यक्ति के लिए काफ़ी लाभप्रद सिद्ध हो सकता हैै। किंतु अगर बहुत अधिक रक्त बह जाए तो उसे रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी पड़ सकती है", दीदी ने समझाते हुए कहा।

अनिल ने कहा, "क्या ऐसे समय में किसी भी व्यक्ति का खून काम आ सकता है?"

दीदी बोलीं, "अनिल, हर किसी का रक्त एक-सा नहीं होता। कुछ विशेष गुणों के आधार पर रक्त को चार मुख्य वर्गों में बाँट दिया गया है। ज़रूरतमंद व्यक्ति के रक्त-समूह की जाँच करने के बाद उसे उसी रक्त-समूह का रक्त चढ़ाया जाता है।"

"लेकिन ज़रूरत के समय यदि उस रक्त-समूह का कोई व्यक्ति मिले ही नहीं तब?" अनिल ने पूछा।

"ऐसी आपातस्थिति के लिए ही ब्लड-बैंक बनाए गए हैं। प्रायः हर बड़े अस्पताल में इस तरह के बैंक होते हैं, जहाँ, सभी प्रकार के रक्त-समूहों का रक्त तैयार रखा जाता है। किंतु इन ब्लड-बैंकों में रक्त का भंडार सुरक्षित रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि हम समय-समय पर रक्तदान करते रहें", 

दीदी ने कहा।

"क्या मैं भी रक्तदान कर सकता हूँ?" अनिल ने पूछा।

"नहीं, अभी तुम छोटे हो। अट्ठारह वर्ष से अधिक उम्र के स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकते हैं। एक समय में उनसे लगभग 300 मिलीलिटर रक्त ही लिया जाता है। प्रायः यह समझा जाता है कि रक्तदान करने से कमज़ोरी हो जाएगी, किंतु यह विचार बिलकुल निराधार है। हमारा शरीर इतना रक्त तो कुछ ही दिनों में बना लेता है। वैसे भी शरीर में लगभग पाँच लीटर खून होता है। इसमें से यदि कुछ रक्त किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति के लिए जीवन-दान बन जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी!" दीदी समझाते हुए बोलीं।

"फिर तो बड़ा होने पर मैं नियमित रूप से रक्तदान किया करूँगा", अनिल ने कहा।

"शाबाश, अनिल!" डॉक्टर दीदी ने अनिल की पीठ ठोकते हुए कहा।

यतीश अग्रवाल

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से

  1. रक्त के बहाव को रोकने के लिए क्या करना चाहिए?
  2. खून को ‘भानुमती का पिटारा’ क्यों कहा जाता है?
  3. एनीमिया से बचने के लिए हमें क्या-क्या खाना चाहिए?
  4. पेट में कीड़े क्यों हो जाते हैं? इनसे कैसे बचा जा सकता है?
  5. रक्त के सफ़ेद कणों को ‘वीर सिपाही’ क्यों कहा गया है?
  6. ब्लड-बैंक में रक्तदान से क्या लाभ है?
  7. साँस लेने पर शुद्ध वायु से जो ऑक्सीजन प्राप्त होती है, उसे शरीर के हर हिस्से में कौन पहुँचाता है-

    सफ़ेद कण लाल कण

    साँस नली फेफड़े

    पाठ से आगे


  1. रक्त में हीमोग्लोबिन के लिए किस खनिज की आवश्यकता पड़ती है-

    जस्ता शीशा

    लोहा प्लैटिनम

  2. बिबाणु (प्लेटलैट कण) की कमी किस बीमारी में पाई जाती है-

    टाइफ़ाइड मलेरिया

    डेंगू फ़ाइलेरिया

    भाषा की बात

  1. (क) चार महीने के होते-होते ये नष्ट हो जाते हैं-
    • इस वाक्य को ध्यान से पढ़िए। इस वाक्य में ‘होते-होते’ के प्रयोग से यह बताया गया है कि चार महीने से पूर्व ही ये नष्ट हो जाते हैं। इस तरह के पाँच वाक्य बनाइए जिनमें इन शब्दों का प्रयोग हो-

    बनते-बनते, पहुँचते-पहुँचते, लेते-लेते, करते-करते

    (ख) इन प्रयोगों को पढ़िए-

    सड़क के किनारे-किनारे पेड़ लगे हैं।

    आज दूर-दूर तक वर्षा होगी।

    इन वाक्यों में ‘होते-होते’ की तरह ‘किनारे-किनारे’ और ‘दूर-दूर’ शब्द दोहराए गए हैं। पर हर वाक्य में अर्थ भिन्न है। किनारे-किनारे का अर्थ है–किनारे से लगा हुआ और दूर-दूर का–बहुत दूर तक।

    आप भी निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए और उनके अर्थ लिखिए-

    ठीक-ठीक, घड़ी-घड़ी, कहीं-कहीं, घर-घर, क्या-क्या

    2. इस पाठ में दिए गए मुहावरों और कहावतों को पढ़िए और वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

    भानुमती का पिटारा, दस्तक देना, धावा बोलना, घर करना, पीठ ठोकना

    कुछ करने को

  1. अपने परिवार के अट्ठारह वर्ष से पचास वर्ष तक की आयुवाले सभी स्वस्थ सदस्यों को रक्तदान के लिए प्रेरित कीजिए और समय आने पर स्वयं भी रक्तदान करने का संकल्प लीजिए।
  2. शरीर-रचना का चित्र देखकर उसमें रक्त-संचार क्रिया को ठीक-ठीक समझिए।
  3. नीचे दिए गए प्रश्नों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए-

    (क) ब्लू बेबी क्या है?

    (ख) रक्त के जमाव की क्रिया में बिबाणु (प्लेटलैट) का कार्य क्या है?

    (ग) रक्तदान के लिए कम-से-कम कितनी उम्र होनी चाहिए?

    (घ) कितने समय बाद दोबारा रक्तदान किया जा सकता है?

    (घ) क्या स्त्री का रक्त पुरुष को चढ़ाया जा सकता है?

  4. शरीर के किसी अंग में अचानक रक्त-संचार रुक जाने से क्या-क्या परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं?