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पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण
हमने देखा था कि कक्षा VII में बूझो एवं पहेली ने प्रोफेसर अहमद एवं टीबू के साथ वन भरमण किया था। वह अपने सहपाठियों के साथ अपने अनुभव बाँटने के लिए बहुत उत्सुक थे। कक्षा के दूसरे सहपाठी भी अपने-अपने अनुभव बाँटने के लिए अत्यंत उत्सुक थे, क्योंकि उनमें से कुछ भरतपुर अभ्यारण्य भ्रमण करने गए थे। कुछ ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, लोकचाऊ वन्यजन्तु अभ्यारण्य तथा ग्रेट निकोबार बायोस्फियर रिजर्व (वृहद निकोबार जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र), बाघ संरक्षित क्षेत्र इत्यादि के बारे में सुना था।
राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजंतु अभ्यारण्यों एवं जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्रों को बनाने का क्या उद्देश्य है?
7.1 वनोन्मूलन एवं इसके कारण
हमारी पृथ्वी पर नाना प्रकार के पौधे एवं जंतु पाए जाते हैं। ये मानवजाति के अस्तित्व एवं भली प्रकार से रहने के लिए आवश्यक होते हैं। आज इन जीवों के अस्तित्व के लिए वनोन्मूलन एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है। हम जानते हैं कि वनोन्मूलन का अर्थ है वनों को समाप्त करने पर प्राप्त भूमि का अन्य कार्यों में उपयोग करना। वन में वृक्षों की कटाई निम्न उद्देश्यों से की जाती है :
- कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना
- घरों एवं कारखानों का निर्माण
- फर्नीचर बनाने अथवा लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग।
दावानल एवं भीषण सूखा भी वनोन्मूलन के कुछ प्राकृतिक कारक हैं।
क्रियाकलाप 7.1
अपनी सूची में वनोन्मूलन के अन्य कारणों को लिखिए तथा इन्हें प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित में वर्गीकृत कीजिए।
7.2 वनोन्मूलन के परिणाम
पहेली एवं बूझो ने वनोन्मूलन के परिणाम याद करने का प्रयास किया। उन्हें स्मरण है कि वनोन्मूलन से पृथ्वी पर ताप एवं प्रदूषण के स्तर में वृद्धि होती है। इससे वायुमण्डल में कार्बन डाइअॉक्साइड का स्तर बढ़ता है। भौम जल स्तर का भी निम्नीकरण हो जाता है। उन्हें पता है कि वनोन्मूलन से प्राकृतिक संतुलन भी प्रभावित होता है। प्रो. अहमद ने उन्हें बताया था कि यदि वृक्षों की इसी प्रकार अनवरत कटाई चलती रही तो वर्षा एवं भूमि की उर्वरता में कमी आ जाएगी। इसके अतिरिक्त बाढ़ तथा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
वनोन्मूलन से एक ओर जहाँ वर्षा में कमी आती है तो दूसरी ओर बाढ़ आना कैसे संभव हो सकता है?
याद कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों को भोजन बनाने के लिए कार्बन डाइअॉक्साइड की आवश्यकता होती है। कम वृक्षों का अर्थ है कार्बन डाइअॉक्साइड के उपयोग में कमी आना जिससे वायुमण्डल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि कार्बन डाइअॉक्साइड पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित ऊष्मीय विकिरणों का प्रग्रहण कर लेती है। अतः इसकी मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप विश्व ऊष्णन होता है। पृथ्वी के ताप में वृद्धि के जलचक्र का संतुलन बिगड़ता है और वर्षा दर में कमी आती है जिसके कारण सूखा पड़ता है।
मृदा के गुणों में परिवर्तन आने का मुख्य कारण वनोन्मूलन है। किसी क्षेत्र की मृदा के भौतिक गुणों पर वृक्षारोपण और वनस्पति का प्रभाव पड़ता है। कक्षा VII का स्मरण कीजिए कि वृक्ष किस प्रकार मृदाअपरदन को रोकते हैं। भूमि पर वृक्षों की कमी होने से मृदाअपरदन अधिक होता है। मृदा की ऊपरी परत हटाने से नीचे की कठोर चट्टानें दिखाई देने लगती हैं। इससे मृदा में ह्यूमस की कमी होती है तथा इसकी उर्वरता भी अपेक्षाकृत कम होती है। धीरे-धीरे उर्वर-भूमि मरुस्थल में परिवर्तित हो जाती है। इसे मरुस्थलीकरण कहते हैं।
वनोन्मूलन से मृदा की जलधारण क्षमता तथा भूमि की ऊपरी सतह से जल के नीचे की ओर अंतःस्रवण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आती है। मृदा के अन्य गुण, जैसे– पोषक तत्व, गठन इत्यादि भी वनोन्मूलन के कारण प्रभावित होते हैं।
हमने कक्षा VII में पढ़ा था कि वनों से हमें अनेक उत्पाद प्राप्त होते हैं। इन उत्पादों की सूची बनाइए। यदि हम वृक्षों की निरंतर कटाई करते रहें तो क्या हमें इन उत्पादाें की कमी का सामना करना पड़ेगा?
क्रियाकलाप 7.2
वनोन्मूलन से वन्यप्राणी-जीवन भी प्रभावित होता है। कैसे? इन कारणों की सूची बना कर अपनी कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए।
7.3 वन एवं वन्यप्राणियों का संरक्षण
वनोन्मूलन के प्रभाव जानने के पश्चात् पहेली एवं बूझो चिंतित थे। वे प्रो. अहमद के पास गए तथा उन्होंने पूछा कि वन एवं वन्यप्राणियों को किस प्रकार बचाया जा सकता है?
प्रो. अहमद ने पहेली, बूझो एवं उनके सहपाठियों के लिए जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र के भ्रमण का आयोजन किया। इसके लिए उन्होंने पचमढ़ी जैवमण्डलीय संरक्षित नामक क्षेत्र को चुना। वे जानते हैं कि इस क्षेत्र के पौधे एवं जंतु ऊपरी हिमालय की शृंखलाओं एवं निचले पश्चिमी घाट के समान हैं। प्रो. अहमद का विश्वास है कि इस क्षेत्र की जैव-विविधता अनूठी है। उन्होंने वन कर्मचारी श्री माधवजी से जैवमण्डलीय संरक्षित क्षेत्र में बच्चों का मार्गनिर्देशन करने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि जैविक महत्त्व के क्षेत्रों का संरक्षण हमारी राष्ट्रीय परम्परा का एक भाग है।
जैवमण्डल पृथ्वी का वह भाग है जिसमें सजीव पाए जाते हैं अथवा जो जीवनयापन के योग्य है। जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न जीवों की प्रजातियाँ, उनके पारस्परिक संबंध एवं पर्यावरण से उनका संबंध।
माधवजी ने बच्चों को समझाया कि हमारे व्यक्तिगत प्रयासों एवं समाज के प्रयासों के अतिरिक्त सरकारी एजेंसियाँ भी वनों एवं वन्यजंतुओं की सुरक्षा हेतु कार्यरत हैं। सरकार उनकी सुरक्षा और संरक्षण हेतु नियम, विधियाँ और नीतियाँ बनाती है। वन्यजंतु अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र इत्यादि पौधों और जंतुओं के लिए संरक्षित एवं सुरक्षित क्षेत्र हैं।
वनस्पतिजात और प्राणिजात और उनके आवासों के संरक्षण हेतु संरक्षित क्षेत्र चिह्नित किए गए जिन्हें वन्यजीव अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र कहते हैं। वृक्षारोपण, कृषि, चारागाह, वृक्षों की कटाई, शिकार, खाल प्राप्त करने हेतु शिकार (पोचिंग) इन क्षेत्रों में निषिद्ध हैं :
वन्यजीव अभ्यारण्य : वह क्षेत्र जहाँ जंतु एवं उनके आवास किसी भी प्रकार के विक्षोभ से सुरक्षित रहते हैं।
राष्ट्रीय उद्यान : वन्य जंतुओं के लिए आरक्षित क्षेत्र जहाँ वह स्वतंत्र (निर्बाध) रूप से आवास एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।
जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र : वन्य जीवन, पौधों और जंतु संसाधनों और उस क्षेत्र के आदिवासियों के पारंपरिक ढंग से जीवनयापन हेतु विशाल संरक्षित क्षेत्र।
क्रियाकलाप 7.3
अपने जिले, प्रदेश एवं देश के राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजन्तु अभ्यारण्यों एवं जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्रों की संख्या ज्ञात कीजिए। सारणी 7.1 को भरिए। इन क्षेत्रों को अपने प्रदेश एवं भारत के रेखाचित्र में भी दर्शाइए।
7.4 जैवमण्डल आरक्षण
प्रो. अहमद एवं माधवजी के साथ बच्चों ने जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में प्रवेश किया। माधवजी ने समझाया कि जैव विविधता के संरक्षण के उद्देश्य से जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं। [जैसाकि आप जानते ही हैं, जैव विविधता का अर्थ है किसी क्षेत्र विशेष में पाए जाने वाले सभी पौधों, जंतुओं और सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियाँ। किसी क्षेत्र का जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र उस क्षेत्र की जैव विविधता एवं संस्कृति को बनाए रखने में सहायक होता है।] किसी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत अन्य संरक्षित क्षेत्र भी हो सकते हैं। पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में सतपुड़ा नामक एक राष्ट्रीय उद्यान तथा बोरी एवं पचमढ़ी (चित्र 7.1) नामक दो वन्यजंतु अभ्यारण्य आते हैं।
सारणी 7.1 : संरक्षण हेतु सुरक्षित क्षेत्र
चित्र 7.1 : पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र।
क्रियाकलाप 7.4
आपके अपने क्षेत्र में जैव विविधता को विक्षोभित करने वाले कारकों की सूची बनाइए। इनमें से कुछ क्रियाकलाप अनजाने में ही जैव विविधता में विक्षोभ उत्पन्न कर सकते हैं। मनुष्य की इन गतिविधियों की सूची बनाइए। इन्हें कैसे रोका जा सकता है? अपनी कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए तथा इसकी संक्षिप्त रिपोर्ट अपनी कॉपी में नोट कीजिए।
7.5 पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु
बच्चों ने भ्रमण करते समय जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र की हरियाली संपदा की प्रशंसा की। वे लंबे-लंबे सागौन (टीक) के वृक्षों एवं वन्य प्राणियों को देखकर प्रसन्न थे। पहेली ने अचानक एक खरगोश देखा और उसे पकड़ने का प्रयास किया। वह उसके पीछे दौड़ने लगी। प्रो. अहमद ने उसे रोका। उन्होंने समझाया कि जंतु अपने आवास में प्रसन्न रहते हैं। हमें उनको परेशान नहीं करना चाहिए। माधवजी ने समझाया कि कुछ जंतु एवं पौधे एक क्षेत्र विशेष में पाए जाते हैं। किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पेड़-पौधे उस क्षेत्र के ‘वनस्पतिजात’ एवं जीव-जंतु ‘प्राणिजात’ कहलाते हैं।
साल, सागौन, आम, जामुन, सिल्वर फर्न, अर्जुन इत्यादि वनस्पतिजात हैं तथा चिंकारा, नील गाय, बार्किंग हिरण, चीतल, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भेड़िया इत्यादि पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र के प्राणिजात हैं
(चित्र 7.2)।
चित्र 7.2 : (a) जंगली कुत्ता (b) चीतल (c) भेड़िया (d) तेंदुआ (e) सिल्वर फर्न (f) जामुन
क्रियाकलाप 7.5
अपने स्थानीय क्षेत्र के वनस्पतिजात और प्राणिजात की पहचान कर उनकी सूची बनाइए।
7.6 विशेष क्षेत्री प्रजाति
बच्चे शीघ्र ही शांतिपूर्वक गहरे वन में प्रविष्ट हो गए। बच्चे एक विशालकाय गिलहरी को देखकर अचंभित रह गए। इस गिलहरी की एक लम्बी फरदार पूँछ है। वे इसके विषय में जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं। माधवजी ने बताया कि इसे विशाल गिलहरी कहते हैं और यह यहाँ की विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ है।
पौधों एवं जन्तुओं की वह स्पीशीज़ जो किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट रूप से पाई जाती है उसे विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ कहते हैं। ये किसी अन्य क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती। किसी विशेष प्रकार का पौधा या जन्तु किसी विशेष क्षेत्र, राज्य अथवा देश की विशेष क्षेत्री हो सकते हैं।
माधवजी ने पचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में स्थित साल और जंगली आम [चित्र 7.3(a)] के पेड़ को दिखाकर विशेष क्षेत्री वनस्पति जगत का उदाहरण दिया। विसन, भारतीय विशाल गिलहरी [चित्र 7.3(b)] तथा उड़नेवाली गिलहरी इस क्षेत्र के विशेष क्षेत्री प्राणी हैं। प्रो. अहमद ने बताया कि इनके आवास के नष्ट होने, बढ़ती हुई जनसंख्या एवं नयी स्पीशीज़ के प्रवेश से विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ के प्राकृतिक आवास पर प्रभाव पड़ सकता है तथा इनके अस्तित्व को भी खतरा हो सकता है।
चित्र 7.3(a) : जंगली आम।
मैंने सुना है कि कुछ विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ विलुप्त हो सकती हैं। क्या यह सच है?
चित्र 7.3(b) : विशाल गिलहरी।
स्पशीज़ सजीवों की समष्टि का वह समूह है जो एक दूसरे से अंतर्जनन करने में सक्षम होते हैं। इसका अर्थ है कि एक जाति के सदस्य केवल अपनी जाति के सदस्यों के साथ, अन्य जाति के सदस्यों को छोड़कर, जननक्षम संतान उत्पन्न कर सकते हैं। एक जाति के सदस्यों में सामान्य लक्षण पाये जाते हैं।
जिस क्षेत्र में आप रहते हैं वहाँ के विशेष क्षेत्री पौधों और जंतुओं का पता लगाइए।
7.7 वन्यप्राणी अभ्यारण्य
प्रो. अहमद ने बताया कि आरक्षित वनों की तरह ही कुछ एेसे क्षेत्र हैं जहाँ वन्यप्राणी (जंतु) सुरक्षित एवं संरक्षित रहते हैं। इन्हें वन्यप्राणी अभ्यारण्य कहते हैं। माधवजी पुनः बताते हैं कि अभ्यारण्य वह स्थान हैं जहाँ प्राणियों अथवा जंतुओं को मारना या शिकार करना अथवा पकड़ना पूर्णतः निषिद्ध एवं दंडनीय अपराध है।
कुछ महत्वपूर्ण संकटापन्न वन्य जंतु जैसे कि – काले हिरण, श्वेत आँखों वाले हिरण, हाथी, सुनहरी बिल्ली, गुलाबी सिर वाली बतख, घड़ियाल, कच्छ-मगरमच्छ, अजगर, गेंडा इत्यादि हमारे वन्यप्राणी अभ्यारण्यों में सुरक्षित एवं संरक्षित हैं। भारतीय अभ्यारण्यों में अनूठे दृश्यभूमि, बड़े समतल वन, पहाड़ी वन तथा बड़ी नदियों के डेल्टा की झाड़ी भूमि अथवा बुशलैंड हैं।
यह अफ़सोस की बात है कि संरक्षित वन भी जीवों के लिए सुरक्षित नहीं रहे क्योंकि इनके आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग उनका (वनों का) अतिक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देते हैं।
बच्चों को प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) भ्रमण की यादें ताज़ा करने को कहा जाता है। उन्हें स्मरण है कि प्राणी उद्यान भी वह क्षेत्र हैं जहाँ हम प्राणियों (जंतुओं) का संरक्षण करते हैं।
चिड़ियाघर और वन्यप्राणी अभ्यारण्य में क्या अंतर है?
क्रियाकलाप 7.7
निकट के चिड़ियाघर (प्राणी उद्यान) का भ्रमण कीजिए। वहाँ के प्राणियों को किन परिस्थितियों (वातावरण) में रखा गया है। इसका प्रेक्षण कीजिए। क्या वे जन्तुओं के जीवन के लिए उपयुक्त हैं? क्या जन्तु प्राकृतिक आवास की अपेक्षा कृत्रिम आवास में रह सकते हैं? आपके विचार में जंतु चिड़ियाघर में अधिक आराम से हैं अथवा प्राकृतिक आवास में?
7.8 राष्ट्रीय उद्यान
सड़क के किनारे एक और बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ‘सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान’। बच्चे अब वहाँ जाने के लिए उत्सुक थे। माधवजी ने उन्हें बताया कि यह विशाल आरक्षित क्षेत्र है तथा पर्यावरण के संपूर्ण संघटकों का संरक्षण करने में पर्याप्त है। इन्हें राष्ट्रीय उद्यान कहते हैं। यह वनस्पतिजात, प्राणीजात, दृश्यभूमि तथा एेतिहासिक वस्तुओं का संरक्षण करते हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत का प्रथम आरक्षित वन है। सर्वोत्तम किस्म की टीक (सागौन) इस वन में
मिलती है।
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की चट्टानों में आवास (शरण) भी स्थित है। यह इन वनों में मनुष्य की गतिविधियों के प्रागैतिहासिक प्रमाण हैं जिससे हमें आदिमानव के जीवनयापन के बारे में पता चलता है।
चट्टानों के इन मानव आवासों में कुछ पेंटिंग कलाकृतियाँ भी मिलती हैं। पचमढ़ी जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र में 55 चट्टान आवास की पहचान की जा चुकी है।
जंतु एवं मनुष्य को इन कलाकृतियों में लड़ते हुए, शिकार, नृत्य एवं वाद्ययंत्रों को बजाते हुए दर्शाया गया है। आज भी अनेक आदिवासी जंगल में रहते हैं।
जैसे बच्चे आगे बढ़े, उन्हें एक बोर्ड दिखाई दिया जिस पर लिखा था ‘सतपुड़ा बाघ आरक्षित क्षेत्र।’ माधवजी बताते हैं कि हमारी सरकार ने बाघों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगरअथवा ‘बाघ परियोजना’ लागू की। इस परियोजना का उद्देश्य अपने देश में बाघों की उत्तरजीविता एवं संवर्धन करना था।
क्या इस वन में बाघ अभी भी पाए जाते हैं? मुझे उम्मीद है कि मैं बाघ देख सकता हूँ।
बाघ (चित्र 7.4) उन स्पीशीज़ में से एक हैं जो धीरे-धीरे हमारे वनों से विलुप्त होते जा रहे हैं। परन्तु सतपुड़ा आरक्षित क्षेत्र में बाघों की संख्या में वृृद्धि हो रही है अतः यह संरक्षण का अनूठा उदाहरण है। किसी समय शेर, हाथी, जंगली भैंसे (चित्र 7.5) तथा बारहसिंघा (चित्र 7.6) भी सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते थे। वे जंतु जिनकी संख्या एक निर्धारित स्तर से कम होती जा रही है और वे विलुप्त हो सकते हैं ‘संकटापन्न जंतु’ कहलाते हैं। बूझो को डायनासोर के विषय में याद दिलाया गया जो लाखों वर्ष पूर्व विलुप्त हो चुके थे। कुछ जीवों के प्राकृतिक आवास में व्यवधान होने से उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। प्रो.फेसर अहमद ने बताया कि पौधों और जंतुआें के संरक्षण के उद्देश्य से सभी राष्ट्रीय उद्यानों में कड़े नियम लागू किए जाते हैं। मानवीय गतिविधियाँ जैसे चराना, अवैध शिकार, जानवरों को पकड़ना या मारना, जलावन पौधे की लकडी या औषधीय पौधे एकत्र करना स्वीकार्य नही है।
क्या केवल बड़े जंतुओं को ही विलुप्त होने का खतरा है?
माधवजी पहेली को बताते हैं कि बड़े जंतुओं की अपेक्षा छोटे प्राणियों के विलुप्त होने की संभावना कहीं अधिक है। अक्सर हम साँप, मेंढक, छिपकली, चमगादड़ तथा उल्लू इत्यादि को निर्दयता से मार डालते हैं और पारितंत्र में उनके महत्त्व के विषय में सोचते भी नहीं हैं। उनको मारकर हम स्वयं को हानि पहुँचा रहे हैं। यद्यपि वे आकार में छोटे हैं परन्तु पारितंत्र में उनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वे आहार जाल एवं आहार शृंखला के भाग हैं जिसके बारे में आप कक्षा VII में पढ़ चुके हैं।
किसी क्षेत्र के सभी पौधे, प्राणी एवं सूक्ष्मजीव अजैव घटकों जैसे जलवायु, भूमि (मिट्टी), नदी, डेल्टा इत्यादि संयुक्त रूप से किसी पारितंत्र का निर्माण करते हैं।
मुझे आश्चर्य होगा यदि संकटापन्न स्पीशीज़ का कोई रिकार्ड भी हो।
7.9 रेड डाटा पुस्तक
प्रो. अहमद बच्चों को ‘रेड डाटा पुस्तक’ के विषय में समझाते हैं। वह उनको बताते हैं कि रेड डाटा पुस्तक वह पुस्तक है जिसमें सभी संकटापन्न स्पीशीज़ का रिकार्ड रखा जाता है। पौधों, जंतुओं और अन्य स्पीशीज़ के लिए अलग-अलग रेड डाटा पुस्तकें हैं। (रेड डाटा पुस्तक के विषय में अधिक जानकारी आप कम्प्यूटर पर www.wil.gov.in/envis/primates/page102htm/new/nwdc/plants.htm. से प्राप्त कर सकते हैं।)
7.10 प्रवास
माधवजी के निर्देशन में भ्रमण-पार्टी गहरे वन में प्रवेश करती है। वह तवा संरक्षित क्षेत्र में कुछ समय आराम करते हैं। पहेली ने नदी के समीप कुछ पक्षी देखे। माधवजी बताते हैं कि यह प्रवासी पक्षी हैं। ये पक्षी संसार के अन्य भागों से उड़कर यहाँ आए हैं।
क्या होगा जब हमारे पास लकड़ी ही नहीं बचेगी? क्या लकड़ी का कोई विकल्प उपलब्ध है? मैं जानती हूँ कि कागज़ एक महत्वपूर्ण उत्पाद है जो हमें वनों से प्राप्त होता है। मुझेआश्चर्य है यदि कागज़ का कोई और विकल्प उपलब्ध हो!
7.11 कागज़ का पुनः चक्रण
प्रो. अहमद बच्चों का ध्यान वनोन्मूलन के एक और कारण की ओर आकर्षित करते हैं। वह उन्हें बताते हैं कि 1 टन कागज़ प्राप्त करने के लिए पूर्णरूपेण विकसित 17 वृक्षों को काटा जाता है। अतः हमें कागज़ की बचत करनी चाहिए। प्रो. अहमद यह भी बताते हैं कि उपयोग के लिए कागज़ का 5 से 7 बार तक पुनः चक्रण किया जा सकता है। यदि कोई छात्र दिन में मात्र एक कागज़ की बचत करता है तो हम एक वर्ष में अनेक वृक्ष बचा सकते हैं। हमें कागज़ की बचत करनी चाहिए, इसका पुनः उपयोग एवं पुनः चक्रण करना चाहिए। इसके द्वारा हम न केवल वृक्षों को बचाएँगे वरन् कागज़ उत्पादन के उपयोग में आने वाले जल एवं ऊर्जा की बचत भी कर सकते हैं। इसी के साथ-साथ कागज़ उत्पादन के उपयोग में आने वाले हानिकारक रसायनों में भी कमी आएगी।
क्या वनोन्मूलन का कोई स्थायी हल है?
7.12 पुनर्वनरोपण
प्रो. अहमद ने उन्हें बताया कि भारत वन (संरक्षण) अधिनियम है। इस अधिनियम का उद्देश्य प्राकृतिक वनों का परिरक्षण और संरक्षण करना है साथ ही साथ एेसे उपाय भी करना जिससे वन में और उसके समीप रहने वाले लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
कुछ समय विश्राम करने के पश्चात् माधवजी ने बच्चों को वापस चलने को कहा क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात् वन में रुकना ठीक नहीं है। वापस आने के बाद प्रो. अहमद एवं बच्चों ने इस उल्लासपूर्ण अनुभव के लिए माधवजी का आभार व्यक्त किया।
प्रमुख शब्द
जैव विविधता
जैवमण्डल आरक्षण/संरक्षण
वनोन्मूलन
मरुस्थलीकरण
पारितंत्र
संकटापन्न स्पीशीज़
विशेष क्षेत्री स्पीशीज़
विलुप्त
प्राणिजात
वनस्पतिजात
प्रवासी पक्षी
राष्ट्रीय उद्यान
रेड डाटा पुस्तक
पुनर्वनरोपण
अभ्यारण्य
आपने क्या सीखा
वन्यप्राणी अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान एवं जैवमण्डल आरक्षित
क्षेत्र एेसे नाम हैं जो वन एवं वन्यप्राणियों का संरक्षण एवं परिरक्षण हेतु बने हैं।
जैव विविधता का अर्थ है किसी विशिष्ट क्षेत्र में पाए जाने वाले सजीवों की विभिन्न किस्में।
किसी क्षेत्र के सभी पौधे, एवं जन्तु उस क्षेत्र के वनस्पतिजात और प्राणिजात से जाने जाते हैं।
विशेष क्षेत्री स्पीशीज़ किसी क्षेत्र विशेष में ही पाई जाती हैं।
संकटापन्न स्पीशीज़ वह स्पीशीज़ हैं जो विलुप्त होने के कगार
पर हैं।
रेड डाटा पुस्तक में संकटापन्न स्पीशीज़ का रिकार्ड रहता है।
प्रवास वह परिघटना है जिसमें किसी स्पीशीज़ का अपने आवास से किसी अन्य आवास में हर वर्ष की विशेष अवधि में, विशेषकर प्रजनन हेतु चलन होता है।
हमें वृक्ष, ऊर्जा और पानी की बचत करने के लिए, कागज़ की बचत, उसका पुनः उपयोग और पुनः चक्रण करना चाहिए।
पुनर्वनरोपण, नष्ट किए गए वनों को पुनर्स्थापित करने के लिए रोपण करना है।
अभ्यास
1. रिक्त स्थानों की उचित शब्दों द्वारा पूर्ति कीजिए–
(क) वह क्षेत्र जिसमें जंतु अपने प्राकृतिक आवास में संरक्षित होते हैं,
कहलाता है।
(ख) किसी क्षेत्र विशेष में पाई जाने वाली स्पीशीज़ कहलाती हैं।
(ग) प्रवासी पक्षी सुदूर क्षेत्रों से परिवर्तन के कारण पलायन करते हैं।
2. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए–
(क) वन्यप्राणी उद्यान एवं जैवमण्डलीय आरक्षित क्षेत्र
(ख) चिड़ियाघर एवं अभ्यारण्य
(ग) संकटापन्न एवं विलुप्त स्पीशीज़
(घ) वनस्पतिजात एवं प्राणिजात
3. वनोन्मूलन का निम्न पर क्या प्रभाव पड़ता है, चर्चा कीजिए–
(क) वन्यप्राणी
(ख) पर्यावरण
(ग) गाँव (ग्रामीण क्षेत्र)
(घ) शहर (शहरी क्षेत्र)
(ङ) पृथ्वी
(च) अगली पीढ़ी
4. क्या होगा यदि–
(क) हम वृक्षों की कटाई करते रहे?
(ख) किसी जंतु का आवास बाधित हो?
(ग) मिट्टी की ऊपरी परत अनावरित हो जाए?
5. संक्षेप में उत्तर दीजिए–
(क) हमें जैव विविधता का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
(ख) संरक्षित वन भी वन्य जंतुओं के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं, क्यों?
(ग) कुछ आदिवासी वन (जंगल) पर निर्भर करते हैं। कैसे?
(घ) वनोन्मूलन के कारक और उनके प्रभाव क्या हैं?
(ङ) रेड डाटा पुस्तक क्या है?
(च) प्रवास से आप क्या समझते हैं?
6. फैक्ट्रियों एवं आवास की माँग की आपूर्ति हेतु वनों की अनवरत कटाई हो रही है। क्या इन परियोजनाओं के लिए वृक्षों की कटाई न्यायसंगत है? इस पर चर्चा कीजिए तथा एक संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार कीजिए।
7. अपने स्थानीय क्षेत्र में हरियाली बनाए रखने में आप किस प्रकार योगदान दे सकते हैं? अपने द्वारा की जाने वाली क्रियाओं की सूची तैयार कीजिए।
8. वनोन्मूलन से वर्षा दर किस प्रकार कम हुई है? समझाइए।
9. अपने राज्य के राष्ट्रीय उद्यानों के विषय में सूचना एकत्र कीजिए। भारत के रेखा मानचित्र में उनकी स्थिति दर्शाइए?
10. हमें कागज़ की बचत क्यों करना चाहिए? उन कार्यों की सूची बनाइए जिनके द्वारा आप कागज़ की बचत कर सकते हैं।
11. दी गई शब्द पहेली को पूरा कीजिए–
ऊपर से नीचे की ओर
(1) विलुप्त स्पीशीज़ की सूचना वाली पुस्तक
(2) पौधों, जंतुओं एवं सूक्ष्मजीवों की किस्में एवं विभिन्नताएँ
बाईं से दाईं ओर
(2) पृथ्वी का वह भाग जिसमें सजीव पाए जाते हैं
(3) विलुप्त हुई स्पीशीज़
(4) एक विशिष्ट आवास में पाई जाने वाली स्पीशीज़
विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप एवं परियोजनाएँ
1. इस सत्र में अपने पड़ोस में कम से कम 5 विभिन्न पौधे लगाइए तथा उनके बड़े होने तक उनका रखरखाव भी कीजिए।
2. प्रतिज्ञा कीजिए कि इस वर्ष आप अपने मित्रों एवं संबंधियों को उनकी उपलब्धियों अथवा जन्म दिन जैसे अवसर पर न्यूनतम 5 पौधे उपहार में देंगे तथा उन्हें प्रोत्साहित करेंगे कि वह भी उपहार में 5 पौधे अपने मित्रों को देंगे। वर्ष के अंत में इस शृंखला में उपहार दिए गए पौधों की संख्या ज्ञात कीजिए।
3. क्या आदिवासियों को वन के प्रमुख क्षेत्र में रहने से वंचित करना न्यायसंगत है? अपनी कक्षा में इस विषय पर चर्चा कीजिए तथा इसके पक्ष एवं विपक्ष के तर्क को अपनी कॉपी में लिखिए।
4. निकट के किसी पार्क की जैव विविधता का अध्ययन कीजिए। इसकी वनस्पतिजात एवं प्राणिजात का फोटोग्राफ एवं आरेखित चित्रों सहित एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कीजिए।
5. इस अध्याय से आपको जो नयी सूचना प्राप्त हुई है उसकी सूची बनाइए। आपको कौन-सी सूचना सबसे अच्छी लगी और क्यों?
6. कागज़ के विभिन्न उपयोगों की सूची बनाइए। मुद्रा के नोट का ध्यानपूर्वक प्रेक्षण कीजिए। क्या आपको नोट के कागज़ एवं अपनी कॉपी के कागज़ में कोई अंतर नज़र आता है? पता लगाइए कि मुद्रा के नोट के लिए उपयोग किया जाने वाला कागज़ कहाँ बनता है?
7. कर्नाटक सरकार ने ‘प्रोजेक्ट हाथी’ नामक परियोजना राज्य में एशियन हाथी की सुरक्षा हेतु प्रारम्भ की है। इसके विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए तथा अन्य संकटापन्न स्पीशीज़ के संरक्षण हेतु चलाई गई अन्य परियोजनाओं की जानकारी प्राप्त कीजिए।
क्या आप जानते हैं?
1. विश्व में जंगली बाघों की आधी से अधिक संख्या भारत में पाई जाती है, इसी प्रकार 65% एशियन हाथी, 85% एक सींग वाले गेंडे एवं 100% एशियन शेर भारत में ही पाए जाते हैं।
2. विश्व के 12 बड़े जैव विविधता वाले देशों में भारत का छठा स्थान है। विश्व के 34 जैव विविधता तप्तस्थलों में से दो भारत में स्थित हैं। यह हैं पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट। यह क्षेत्र जैव विविधता के बहुत धनी हैं।
3. आज वन्यप्राणियों को सबसे अधिक खतरा अतिक्रमण से उनके आवास नष्ट होने का है।
4. भारत में विश्व की संकटापन्न स्पीशीज़ की संख्या 172 है जो विश्व की संकटापन्न स्पीशीज़ का
2.9% है। पूर्वी हिमालय के तप्तस्थल में पशु और पौधों की स्पीशीज़ को शामिल करते हुए लगभग 163 वैश्विक सकंटापन्न स्पीशीज़ हैं। भारत में एशिया की कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे कि बंगाल लोमड़ी, संगमरमरी बिल्ली, एशियाटिक शेर, भारतीय हाथी, एशियन जंगली गधा, भारतीय गेंडा, गौर, जंगली एशियाटिक जल भैंसा इत्यादि पाई जाती हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप इनसे संपर्क कर सकते हैं–
- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार
पर्यावरण, वन एवं वन्यप्राणी विभाग
पर्यावरण भवन, सी.जी.ओ. काम्प्लेक्स, ब्लाक-बी, लोधी रोड, नयी दिल्ली - 110003
वेब साइट : http:/envfor.nic.in