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जंतुओं में जनन
आपने पाचन, परिसंचरण एवं श्वसन प्रक्रम के बारे में पिछली कक्षा में पढ़ा था। क्या आपको इनके विषय में याद है? ये प्रक्रम प्रत्येक जीव की उत्तरजीविता के लिए आवश्यक हैं। आप पौधों में जनन के प्रक्रम के विषय में भी पढ़ चुके हैं। जनन जाति (स्पीशीज) की निरंतरता बनाने के लिए आवश्यक है। कल्पना कीजिए कि यदि जीव प्रजनन नहीं करते तो क्या होता? आप इस बात को मानेंगे कि जीवों में जनन का विशेष महत्त्व है क्योंकि यह एक जैसे जीवों में पीढ़ी दर पीढ़ी निरंतरता बनाए रखना सुनिश्चित करता है।
आप पिछली कक्षा में पौधों में जनन के विषय में पढ़ ही चुके हैं। इस अध्याय में हम जानेंगे कि जंतु किस प्रकार जनन करते हैं।
9.1 जनन की विधियाँ
क्या आपने विभिन्न जंतुओं के बच्चों को देखा है? कुछ जंतुओं के बच्चों के नाम सारणी 9.1 में भरने का प्रयास कीजिए जैसा कि क्रम संख्या 1 एवं 5 में उदाहरण देकर दर्शाया गया है।
आपने विभिन्न जंतुओं के बच्चों का जन्म होते हुए भी देखा होगा। क्या आप बता सकते हैं कि चूज़े और इल्ली (केटरपिलर) किस प्रकार जन्म लेते हैं? बिलौटे और पिल्ले का जन्म किस प्रकार होता है? क्या आप सोचते हैं कि जन्म से पूर्व ये जीव वैसे ही दिखाई देते थे जैसे कि वह अब दिखाई देते हैं? आइए पता लगाते हैं?
पौधों की ही तरह जंतुओं में भी जनन की दो विधियाँ होती हैं। यह हैंः (i) लैंगिक जनन और (ii) अलैंगिक जनन।
सारणी 9.1
9.2 लैंगिक जनन
नर जनन अंग
नर जनन अंगों में एक जोड़ा वृषण, दो शुक्राणु नलिका तथा एक शिश्न (लिंग) होते हैं (चित्र 9.1)। वृषण नर युग्मक उत्पन्न करते हैं जिन्हें शुक्राणु कहते हैं। वृषण लाखों शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। चित्र 9.2 को देखिए जिसमें शुक्राणु का चित्र दिखाया गया है। शुक्राणु यद्यपि बहुत सूक्ष्म होते हैं, पर प्रत्येक में एक सिर, एक मध्य भाग एवं एक पूँछ होती है। क्या शुक्राणु एकल कोशिका जैसे प्रतीत होते हैं? वास्तव में हर शुक्राणु में कोशिका के सामान्य संघटक पाए जाते हैं।
चित्र 9.1 : मानव में नर जननांग।
शुक्राणु में पूँछ किस काम आती है?
मादा जनन अंग
मादा जननांगों में एक जोड़ी अंडाशय, अंडवाहिनी (डिंब वाहिनी) तथा गर्भाशय होता है (चित्र 9.3)। अंडाशय मादा युग्मक उत्पन्न करते हैं जिसे अंडाणु (डिंब) कहते हैं (चित्र 9.4)। मानव (स्त्रियों) में प्रति मास दोनों अंडाशयों में से किसी एक अंडाशय से एक विकसित अंडाणु अथवा डिंब का निर्मोचन अंडवाहिनी में होता है। गर्भाशय वह भाग है जहाँ शिशु का विकास होता है। शुक्राणु की तरह अंडाणु भी एकल कोशिका है।
चित्र 9.3 : मानव में मादा जननांग।
बूझो को पता है कि विभिन्न जंतुओं में अंडे का साइज़ अलग-अलग होता है। अंडाणु अति सूक्ष्म हो सकते हैं जैसे कि मनुष्य में अथवा बहुत बड़े भी होते हैं जैसे कि मुर्गी के अंडे। शुतुर्मुर्ग का अंडा सबसे विशाल होता है।
निषेचन
निषेचन के प्रक्रम में स्त्री (माँ) के अंडाणु और नर (पिता) के शुक्राणु का संयोजन होता है। अतः नयी संतति में कुछ लक्षण अपनी माता से तथा कुछ लक्षण अपने पिता से वंशानुगत होते हैं। अपने भाई अथवा बहन को देखिए। यह पहचानने का प्रयास कीजिए कि उनमें कौन से लक्षण माता से और कौन से लक्षण पिताजी से प्राप्त हुए हैं।
वह निषेचन जो मादा के शरीर के अंदर होता है आंतरिक निषेचन कहलाता है। मनुष्य, गाय, कुत्ते, तथा मुर्गी इत्यादि अनेक जंतुओं में आंतरिक निषेचन होता है।
क्या आपने परखनली शिशु के विषय में सुना है?
बूझो और पहेली के अध्यापक ने एक बार कक्षा में बताया था कि कुछ स्त्रियों की अंडवाहिनी अवरुद्ध होती है। एेसी स्त्रियाँ शिशु उत्पन्न करने में असमर्थ होती हैं क्योंकि निषेचन के लिए शुक्राणु, मार्ग अवरुद्ध होने के कारण, अंडाणु तक नहीं पहुँच पाते। एेसी स्थिति में डॉक्टर (चिकित्सक) ताज़ा अंडाणु एवं शुक्राणु एकत्र करके उचित माध्यम में कुछ घंटों के लिए एक साथ रखते हैं जिससे IVF अथवा इनविट्रो निषेचन (शरीर से बाहर कृत्रिम निषेचन) हो सके। अगर निषेचन हो जाता है तो युग्मनज
को लगभग एक सप्ताह तक विकसित किया जाता
है जिसके पश्चात् उसे माता के गर्भाशय में
स्थापित किया जाता है। माता के गर्भाशय में
पूर्ण विकास होता है, तथा शिशु का जन्म सामान्य शिशु की तरह ही होता है। इस तकनीक द्वारा जन्मे शिशु को परखनली शिशु कहते हैं। यह एक मिथ्या नाम है क्योंकि शिशु का विकास परखनली में नहीं होता।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अनेक जंतुओं में निषेचन की क्रिया मादा जंतु के शरीर के बाहर होती है। इन जंतुओं में निषेचन जल में होता है। आइए, पता लगाएँ कि यह किस प्रकार संपन्न होता है।
क्रियाकलाप 9.1
वसंत अथवा वर्षा ऋतु के समय किसी तलाब अथवा मंदगति से बहते झरने का भ्रमण कीजिए। जल पर तैरते हुए मेंढक के अंडों को ढूँढ़िए। अंडों के रंग तथा साइज़ को नोट कीजिए।
वसंत अथवा वर्षा ऋतु में मेंढक तथा टोड पोखर, तलाब और मंद गति से बहते झरने की ओर जाते हैं। जब नर तथा मादा एक साथ पानी में आते हैं तो मादा सैकड़ों अंडे देती है। मुर्गी के अंडे की तरह मेंढक के अंडे कवच से ढके नहीं होते तथा यह अपेक्षाकृत बहुत कोमल होते हैं। जेली की एक परत अंडों को एक साथ रखती है तथा इनकी सुरक्षा भी करती है। (चित्र 9.7)।
चित्र 9.7 : मेंढक के अंडे।
मादा जैसे ही अंडे देती है, नर उस पर शुक्राणु छोड़ देता है। प्रत्येक शुक्राणु अपनी लंबी पूँछ की सहायता से जल में इधर-उधर तैरते रहते हैं। शुक्राणु अंडकोशिका के संपर्क में आते हैं जिसके फलस्वरूप निषेचन होता है। इस प्रकार का निषेचन जिसमें नर एवं मादा युग्मक का संलयन मादा के शरीर के बाहर होता है, बाह्य निषेचन कहलाता है। यह मछली, स्टारफिश जैसे जलीय प्राणियों में होता है।
मछली और मेंढक एक साथ सैकड़ों अंडे क्यों देते हैं जबकि मुर्गी एक समय में केवल एक अंडा ही देती है।
यद्यपि यह जंतु सैकड़ों अंडे देते हैं तथा लाखों शुक्राणु निर्मोचित करते हैं, सारे अंडों का निषेचन नहीं होता और वह नया जीव नहीं बन पाते। इसका कारण यह है कि अंडे एवं शुक्राणु निरंतर जल की गति, वायु एवं वर्षा से प्रभावित (अनावरित) होते रहते हैं। तलाब में दूसरे एेसे जन्तु भी होते हैं जो इन अंडों का भोजन करते हैं। अतः अंडकोशिकाओं एवं शुक्राणुओं का बड़ी संख्या में उत्पन्न होना आवश्यक है ताकि उनमें से कुछ में निषेचन सुनिश्चित किया जा सके।
एक एकल कोशिका किस प्रकार एक बड़ा जीव बन सकता है?
भ्रूण का परिवर्धन
निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज बनता है जो विकसित होकर भ्रूण में परिवर्धित होता है [(चित्र 9.8(a)]। युग्मनज लगातार विभाजित होकर कोशिकाओं के गोले में बदल जाता है [(चित्र 9.8(b)]। तत्पश्चात् कोशिकाएँ समूहीकृत होने लगती हैं तथा विभिन्न ऊतकों और अंगों में परिवर्धित हो जाती हैं। इस विकसित होती हुई संरचना को भ्रूण कहते हैं। भ्रूण गर्भाशय की दीवार में रोपित होकर विकसित होता रहता है [(चित्र 9.8(c)]।
(b)
चित्र 9.8 : (a) युग्मनज का बनना तथा युग्मनज से भ्रूण का विकास, (b) कोशिकाओं का पिंड (आवर्धित), (c) भ्रूण का गर्भाशय में रोपण (आवर्धित)।
गर्भाशय में भ्रूण का निरन्तर विकास होता रहता है। धीरे-धीरे विभिन्न शारीरिक अंग जैसे कि हाथ, पैर, सिर, आँखें, कान इत्यादि विकसित हो जाते हैं। भ्रूण की वह अवस्था जिसमें सभी शारीरिक भागों की पहचान हो सके गर्भ कहलाता है। जब गर्भ का विकास पूरा हो जाता है तो माँ नवजात शिशु को जन्म देती है।
रोपित भ्रूण
अंडोत्सर्ग
अंडाशय
विकसित होता भ्रूण
युग्मनज
कठोर कवच के पूर्ण रूप से बन जाने के बाद मुर्गी अंडे का निर्मोचन करती है। मुर्गी के अंडे को चूज़ा बनने में लगभग 3 सप्ताह का समय लगता है। आपने मुर्गी को ऊष्मायन के लिए अंडों पर बैठे देखा होगा। क्या आप जानते हैं कि अंडे के अंदर चूज़े का विकास इस अवधि में ही होता है? चूज़े के पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद कवच के प्रस्फुटन के बाद चूज़ा बाहर आता है।
बाह्य निषेचन वाले जंतुओं में भ्रूण का विकास मादा के शरीर के बाहर ही होता है। भ्रूण अंडावरण के अंदर विकसित होता रहता है। भ्रूण का विकास पूर्ण होने पर अंडजोत्पत्ति होती है। आपने तलाब अथवा झरने में मेंढक के अनेक टैडपोल तैरते हुए देखे होंगे।
जरायुज एवं अंडप्रजक जंतु
हमने जाना कि कुछ जंतु विकसित शिशु को जन्म देते हैं, जबकि कुछ जंतु अंडे देते हैं जो बाद में शिशु में विकसित होते हैं। वह जंतु जो सीधे ही शिशु को जन्म देते हैं जरायुज जंतु कहलाते हैं। वे जंतु जो अंडे देते हैं अंडप्रजक जंतु कहलाते हैं। निम्न क्रियाकलाप की सहायता से आप इस बात को और अच्छी प्रकार से समझ सकेंगे तथा जरायुज एवं अंडप्रजक में विभेद भी कर सकेंगे।
क्रियाकलाप 9.2
मेंढक, छिपकली, तितली अथवा शलभ, मुर्गी तथा कौए अथवा किसी अन्य पक्षी के अंडे का अवलोकन करने का प्रयास कीजिए। क्या आप इन सभी प्राणियों के अंडों का अवलोकन कर पाए हैं? जिन अंडों को आपने एकत्र किया है उनके चित्र बनाइए।
कुछ जंतुओं के अंडों का अवलोकन करना सरल है क्योंकि उनकी माँ शरीर के बाहर अंडे देती हैं। परन्तु आप गाय, कुत्ता अथवा बिल्ली के अंडे एकत्र नहीं कर सकते। यह इसलिए क्योंकि वह अंडे नहीं देते। इनमें माँ पूर्ण विकसित शिशु को ही जन्म देती हैं। यह जरायुज जंतुओं के उदाहरण हैं।
अब क्या आप जरायुज एवं अंडप्रजक जंतुओं के कुछ अन्य उदाहरण दे सकते हैं?
शिशु से वयस्क
नवजात जन्मे प्राणि अथवा अंडे के प्रस्फुटन से निकले प्राणि, तब तक वृद्धि करते रहते हैं जब तक कि वे वयस्क नहीं हो जाते। कुछ जंतुओं में नवजात जंतु वयस्क से बिलकुल अलग दिखाई पड़ सकते हैं। रेशम कीट के जीवन चक्र का स्मरण कीजिए (अंडा → लारवा अथवा इल्ली → प्यूपा → वयस्क)जिसके विषय में आप कक्षा VII में पढ़ चुके हैं। मेंढक इस प्रकार के जंतुओं का अन्य उदाहरण है (चित्र 9.10)।
मेंढक में अंडे से प्रारम्भ करके वयस्क बनने की विभिन्न अवस्थाओं (चरणों) का प्रेक्षण कीजिए। हम तीन स्पष्ट अवस्थाओं अथवा चरणों को देख पाते हैं, अंडा → टैडपोल (लारवा) → वयस्क। क्या टैडपोल वयस्क मेंढक से भिन्न दिखाई नहीं देते? क्या आप सोच सकते हैं कि किसी दिन यह टैडपोल वयस्क मेंढक बन जाएँगे? उसी प्रकार रेशम कीट की इल्ली या प्यूपा वयस्क रेशम कीट से बहुत अलग दिखाई पड़ता है। वयस्क में पाए जाने वाले लक्षण नवजात में नहीं पाए जाते। फिर, टैडपोल अथवा इल्ली का बाद में क्या होता है?
आपने एक सुंदर शलभ को कोकून से बाहर निकलते देखा होगा। टैडपोल रूपांतरित होकर वयस्क में बदल जाता है जो छलाँग लगा सकता है और तैर सकता है। कुछ विशेष परिवर्तनों के साथ टैडपोल का वयस्क में रूपांतरण कायांतरण कहलाता है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हम शरीर में किस प्रकार के परिवर्तन देखते हैं? क्या आप सोचते हैं कि हमारा भी कायांतरण होता है? मनुष्य में जन्म के समय से ही नवजात शिशु में वयस्क समान शारीरिक अंग मौजूद होते हैं।
चित्र 9.10 : मेंढक का जीवन चक्र।
9.3 अलैंगिक जनन
अब तक हमने जनन प्रक्रम का अध्ययन उन जंतुओं में पढ़ा है जिनसे हम परिचित हैं। परन्तु अत्यंत छोटे जंतु जैसे कि हाइड्रा एवं सूक्ष्मदर्शीय जंतु जैसे कि अमीबा में जनन किस प्रकार होता है? क्या आप उनके प्रजनन करने के ढंग के विषय में जानते हैं? आइए इसका पता लगाएँ।
क्रियाकलाप 9.3
हाइड्रा की स्थायी स्लाइड लीजिए। आवर्धक लेंस अथवा सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस स्लाइड का अध्ययन कीजिए। जनक के शरीर से क्या कुछ उभरी संरचनाएँ दिखाई देती हैं। इन उभरी हुई संरचनाओं की संख्या ज्ञात कीजिए। इनका साइज़ भी ज्ञात कीजिए। हाइड्रा का चित्र वैसा ही बनाइए जैसा आपको दिखाई देता है। इसकी तुलना चित्र 9.11 से कीजिए।
चित्र 9.11 : हाइड्रा में मुकुलन।
प्रत्येक हाइड्रा में एक या अधिक उभार दिखाई दे सकते हैं। यह उभार विकसित होते नए जीव हैं जिन्हें मुकुल कहते हैं। स्मरण कीजिए कि यीस्ट में भी मुकुल दिखाई देते हैं। हाइड्रा में भी एक एकल जनक से निकलने वाले उद्धर्ध से नए जीव का विकास होता है। इस प्रकार के जनन को जिसमें केवल एक ही जनक नए जीव को जन्म देता है अलैंगिक जनन कहते हैं। हाइड्रा में मुकुल से नया जीव विकसित होता है इसलिए इस प्रकार के जनन को मुकुलन कहते हैं।
आप अमीबा की संरचना के विषय में पढ़ चुके हैं। आपको स्मरण होगा कि अमीबा एककोशिक होता है। [चित्र 9.12(a)]। इसमें केन्द्रक के दो भागों में विभाजन से जनन क्रिया प्रारम्भ होती है [चित्र 9.12(b)]। इसके बाद कोशिका भी दो भागों (कोशिकाओं) में बँट जाती है जिसके प्रत्येक भाग में केन्द्रक होता है [चित्र 9.12(c)]। परिणामस्वरूप एक जनक से दो अमीबा बनते हैं [चित्र 9.12(d)]। इस प्रकार के अलैंगिक जनन को जिसमें जीव विभाजित होकर दो संतति उत्पन्न करता है द्विखंडन कहलाता है।
मुकुलन एवं द्विखंडन के अतिरिक्त कुछ अन्य विधियाँ भी हैं जिनके द्वारा एकल जीव संतति जीवों
का जनन करता है। इनके विषय में आप अगली कक्षाओं में पढ़ेंगे।
चित्र 9.12 : अमीबा में द्विखंडन।
डॉली की कहानी, क्लोन
किसी समरूप कोशिका या किसी अन्य जीवित भाग अथवा संपूर्ण जीव को कृत्रिम रूप से उत्पन्न करने की प्रक्रिया क्लोनिंग कहलाती है। किसी जंतु की सफलतापूर्वक क्लोनिंग सर्वप्रथम इयान विलमट और उनके सहयोगियों ने एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड के रोजलिन इंस्टीट्यूट में की। उन्होंने एक भेड़ को क्लोन किया जिसका नाम डॉली रखा गया [(चित्र 9.13(c)]। डॉली का जन्म 5 जुलाई 1996 को हुआ था। यह क्लोन किया जाने वाला पहला स्तनधारी था।
चित्र 9.13
डॉली की क्लोनिंग करते समय, फिन डॉरसेट नामक मादा भेड़ की स्तन ग्रंथि से एक कोशिका एकत्र की गई
[चित्र 9.13(a)]। उसी समय स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव से एक अंडकोशिका भी एकत्र की गई [चित्र 9.13(b)]। अंडकोशिका से केन्द्रक को हटा दिया गया। तत्पश्चात् फिन डॉरसेट भेड़ की स्तन-ग्रंथि से ली गई कोशिका के केन्द्रक को स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव की केन्द्रक विहीन अंडकोशिका में स्थापित किया गया। इस प्रकार उत्पन्न अंडकोशिका को स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव में रोपित किया गया। अंड कोशिका का विकास एवं परिवर्धन सामान्य रूप से हुआ तथा अंततः ‘डॉली’ का जन्म हुआ। यद्यपि स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव ने डॉली को जन्म दिया था, परन्तु डॉली फिन डॉरसेट भेड़ के समरूप थी जिससे केन्द्रक लिया गया था। क्योंकि स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव के केन्द्रक को अंडकोशिका से हटा दिया गया था, अतः डॉली में स्कॉटिश ब्लैकफेस ईव का कोई भी लक्षण परिलक्षित नहीं हुआ। डॉली एक फिन डॉरसेट भेड़ की स्वस्थ क्लोन थी जिसने प्राकृतिक लैंगिक जनन द्वारा अनेक संततियों को जन्म दिया। दुर्भाग्य से फेफड़ों के रोग के कारण 14 फरवरी 2003 को डॉली की मृत्यु हो गई।
डॉली के बाद स्तनधारियों के क्लोन बनाने के अनेक प्रयास किए गए। परन्तु, बहुत तो जन्म से पहले ही मर गए तथा कुछ की जन्म के बाद ही मृत्यु हो गई। क्लोन वाले जंतुओं में अक्सर जन्म के समय अनेक विकृतियाँ होती हैं।
1. सजीवों के लिए जनन क्यों महत्वपूर्ण है? समझाइए।
2. मनुष्य में निषेचन प्रक्रम को समझाइए।
3. सर्वोचित उत्तर चुनिए–
(क) आंतरिक निषेचन होता है ः
(i) मादा के शरीर में
(ii) मादा के शरीर से बाहर
(iii) नर के शरीर में
(iv) नर के शरीर से बाहर
(ख) एक टैडपोल जिस प्रक्रम द्वारा वयस्क में विकसित होता है, वह है ः
(i) निषेचन
(ii) कायांतरण
(iii) रोपण
(iv) मुकुलन
(ग) एक युग्मनज में पाए जाने वाले केन्द्रकों की संख्या होती है ः
(i) कोई नहीं
(ii) एक
(iii) दो
(iv) चार
4. निम्न कथन सत्य (T) है अथवा असत्य (F)। संकेतिक कीजिए–
(क) अंडप्रजक जंतु विकसित शिशु को जन्म देते हैं। ( )
(ख) प्रत्येक शुक्राणु एक एकल कोशिका है। ( )
(ग) मेंढक में बाह्य निषेचन होता है। ( )
(घ) वह कोशिका जो मनुष्य में नए जीवन का प्रारंभ है, युग्मक कहलाती है। ( )
(ङ) निषेचन के पश्चात् दिया गया अंडा एक एकल कोशिका है। ( )
(च) अमीबा मुकुलन द्वारा जनन करता है। ( )
(छ) अलैंगिक जनन में भी निषेचन आवश्यक है। ( )
(ज) द्विखंडन अलैंगिक जनन की एक विधि है। ( )
(झ) निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज बनता है। ( )
(ञ) भ्रूण एक एकल कोशिका का बना होता है। ( )
5. युग्मनज और गर्भ में दो भिन्नताएँ दीजिए।
6. अलैंगिक जनन की परिभाषा लिखिए। जंतुओं में अलैंगिक जनन की दो विधियों का वर्णन कीजिए।
7. मादा के किस जनन अंग में भ्रूण का रोपण होता है?
8. कायांतरण किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
9. आंतरिक निषेचन एवं बाह्य निषेचन में भेद कीजिए।
10. नीचे दिए गए संकेतों की सहायता से क्रॉस शब्द पहेली को पूरा कीजिए।
बाईं से दाईं ओर
1. यहाँ अंडाणु उत्पादित होते हैं
3. वृषण में उत्पादित होते हैं
4. हाइड्रा का अलैंगिग जनन है
ऊपर से नीचे की ओर
1. यह मादा युग्मक है
2. नर और मादा युग्मक का मिलना
4. एक अंडप्रजक जंतु
विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप एवं परियोजनाएँ
1. एक कुक्कुट फार्म का भ्रमण कीजिए। फार्म के प्रबंधक के साथ चर्चा करके निम्न के उत्तर जानने का प्रयास कीजिए–
(क) कुक्कुट फार्म में ‘लेयर्स एवं ब्रॉयलर्स’ क्या हैं?
(ख) क्या मुर्गी अनिषेचित अंडे देती है?
(ग) आप निषेचित एवं अनिषेचित अंडे किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं?
(घ) दुकानों पर मिलने वाले अंडे निषेचित हैं अथवा अनिषेचित।
(ङ) क्या आप निषेचित अंडे खा सकते हैं?
(च) क्या निषेचित अंडे एवं अनिषेचित अंडे की पोषकता में कोई अंतर है?
2. जीवित हाइड्रा का स्वयं अध्ययन कीजिए एवं निम्न क्रियाकलाप द्वारा पता लगाइए कि वह किस प्रकार जनन करता है।
ग्रीष्म ऋतु में तलाब अथवा पोखर से जलीय खरपतवार के साथ कुछ जल एकत्र कीजिए। इसे एक काँच के बर्तन (जार) में रखिए। एक या दो दिनों में आपको जार की आंतरिक दीवार पर कुछ हाइड्रा चिपके दिखाई दे सकते हैं।
हाइड्रा जेली की तरह पारदर्शक होता है जिसके कुछ स्पर्शक होते हैं। यह अपने शरीर के आधार से जार पर चिपक जाता है। यदि जार को हिलाया जाए तो हाइड्रा फौरन ही संकुचित होकर छोटा हो जाता है तथा साथ ही साथ अपने स्पर्शक भी अंदर खींच लेता है।
अब कुछ हाइड्रा जार से बाहर निकाल कर एक वॉच ग्लास में रखिए। आवर्धक लेंस या दूरबीन अथवा डिसेक्टिंग सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इनके शरीर में होने वाले परिवर्तन का प्रेक्षण कीजिए। अपने प्रेक्षण नोट कीजिए।
3. जो अंडे हम बाजार से खरीदते हैं वे सामान्यतः अनिषेचित होते हैं। यदि आप एक चूज़े के भ्रूण का विकास देखना चाहते हैं तो कुक्कुट फार्म या स्फुटनशाला के निषेचित अंडे लें जो 36 घंटे या उससे अधिक ऊष्मायन किए गए हों। आपको योक में श्वेत-बिन्दु जैसी संरचना दिखाई देगी। यह विकसित भ्रूण है। यदि हृदय और रक्तवाहिनियाँविकसित हों तो रक्तबिंदु दिखाई देगा।
4. किसी चिकित्सक (डॉक्टर) से चर्चा कर जानने का प्रयास कीजिए कि जुड़वाँ कैसे पैदा होते हैं। अपने आस-पास अथवा मित्रों में कोई जुड़वाँ ढूँढ़िए। पता लगाइए कि वह अभिन्न यमज (सर्वसम जुड़वाँ) हैं अथवा असर्वसम यमज। यह भी पता लगाइए कि अभिन्न यमज सदैव एक ही लिंग के क्यों होते हैं?
जुंतुओं के जनन के संबंध में अधिक सूचना के लिए आप निम्नलिखित वेबसाइट की सहायता ले सकते हैंः
- www.saburchill.com
- www.teenshealth.org/teen/sexual-health
- healthhowstuffworks.com/human-reproduction.htm
क्या आप जानते हैं?
मधुमक्खियों के छत्ते में रुचिकर संगठन देखा गया है जो कई हज़ार मक्षिकाओं की कालोनी है। केवल एक ही मधुमक्खी अंडे देती है। यह मक्षिका ‘रानी मक्षिका’ कहलाती है। अन्य सभी मादा मक्षिका कर्मी मक्षिका होती हैं। उनका मुख्य कार्य छत्ता बनाना, नन्हों की देखभाल करना तथा रानी मक्षिका को पर्याप्त भोजन देकर स्वस्थ रखना हैजिससे वह अंडे दे सके। एक रनी मक्षिका हज़ारों अंडे देती है। निषेचित अंडे से मादा बनती हैं जबकि अनिषेचित अंडे से नर बनते हैं, जो ड्रोन (पुंमक्षिका) कहलाते हैं। इन कर्मी मक्षिकाओं का काम होता है कि वह अंडों के ऊष्मयन हेतु छत्ते का ताप 35°C बनाए रखें।