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कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ

क्षा VII में आपने पवन, तूफान तथा चक्रवात के बारे में पढ़ा था। आपने यह जानकारी प्राप्त की थी कि चक्रवात मानव जीवन तथासम्पत्ति को अत्यधिक क्षति पहुँचा सकते हैं। आपने यह भी जाना था कि कुछ सीमाओं तक हम इन विनाशकारी परिघटनाओं से अपना बचाव कर सकते हैं। इस अध्याय में हम दो अन्य विनाशकारी परिघटनाओं, तड़ित तथा भूकम्प, पर चर्चा करेंगे। हम इन परिघटनाओं द्वारा किए जाने वाले विनाशों को कम करने के उपायों पर भी चर्चा करेंगे।

15.1 तड़ित

विद्युत के तार ढीले हो जाने पर आपने विद्युत खम्बों पर चिंगारियाँ देखी होंगी। यह परिघटना उस समय बहुत अधिक हो जाती है जब पवन के चलने पर तार हिलते-डुलते हैं। आपने सॉकेट में प्लग के ढीले होने पर भी चिंगारियाँ निकलते देखी होंगी। तड़ित भी एक विशाल स्तर की विद्युत चिंगारी ही है।

प्राचीन काल में लोग इन चिंगारियों का कारण नहीं समझते थे। अतः वे तड़ित से डरते थे और सोचते थे कि उन पर भगवान के क्रोध के कारण यह हुआ है। अब वास्तव में हम यह जानते हैं कि बादलों में आवेश के एकत्रित होने से तड़ित पैदा होती है। हमें तड़ित से डरना नहीं चाहिए, परन्तु इन घातक चिंगारियों से अपने बचाव के लिए सावधानियाँ बरतनी चाहिए।

चिंगारियाँ जिनके विषय में यूनानी जानते थे

600 ई.पू. से भी पहले प्राचीन यूनानी यह जानते थे कि जब एेम्बर (एक प्रकार की राल) को से रगड़ते हैं तो यह बालों जैसी हलकी वस्तुओं को आकर्षित कर लेता है। आपने यह देखा होगा कि जब आप ऊनी अथवा पॉलिएस्टर के वस्त्रों को उतारते हैं तो आपके बाल खड़े हो जाते हैं। यदि आप अँधेरे में इन वस्त्रों को उतारते हैं तो आप चट-चट ध्वनि के साथ चिंगारी तक देख सकते हैं। सन 1752 में अमेरिकी वैज्ञानिक बेन्जामिन फ्रेंकलिन ने यह दर्शाया कि तड़ित तथा आपके वस्त्रों में उत्पन्न चिंगारी वास्तव में एक ही परिघटना है। परन्तु इस तथ्य के साकार होने में 2000 वर्ष लगे।

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मुझे आश्चर्य है कि उन्हें इस समानता को ज्ञात करने में इतने वर्ष क्यों लगे।



अब हम विद्युत आवेशों के कुछ गुणों का अध्ययन करेंगे। हम यह भी देखेंगे कि ये आकाश में तड़ित से किस प्रकार संबंधित हैं।

विद्युत आवेशों की प्रकृति को समझने के लिए आइए कुछ क्रियाकलाप करें। परन्तु पहले उस खेल को याद कीजिए जिसे आपने कभी खेला होगा। जब आप प्लास्टिक के पैमाने को अपने सूखे बालों से रगड़ते हैं तो पैमाना कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों को आकर्षित कर सकता है।


15.2 रगड़ द्वारा आवेशन

क्रियाकलाप 15.1

बॉलपेन की खाली रिε.फल लीजिए। इसे तेज़ी से किसी पॉलिथीन के टुकड़े से रगड़कर इसे कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों के समीप लाइए। इतनी सावधानी रखिए कि रिε.फल का रगड़ा गया सिरा आपके हाथों अथवा किसी धातु की वस्तु से न छुए। अपने क्रियाकलाप को छोटी-छोटी सूखी पत्तियों, भूसे तथा सरसों के दानों के साथ दोहराइए। अपने प्रेक्षणों को नोट कीजिए।

जब प्लॉस्टिक की रिε.फल को पॉलिथीन के साथ रगड़ते हैं तो यह कुछ विद्युत आवेश अर्जित कर लेता है। इसी प्रकार जब प्लास्टिक की कंघी को सूखे बालों से रगड़ते हैं तब यह भी कुछ विद्युत आवेश अर्जित कर लेती है। इन वस्तुओं को आवेशित वस्तुएँ कहते हैं। रिफिल तथा प्लास्टिक की कंघी को आवेशित करने की प्रक्रिया में पॉलिथीन तथा बाल भी आवेशित हो जाते हैं।

आइए अब आपकी जानी पहचानी कुछ अन्य वस्तुओं को आवेशित करने का प्रयास करें।

क्रियाकलाप 15.2


सारणी 15.1 में दी गई वस्तुएँ तथा पदार्थ एकत्र कीजिए। इनमें से प्रत्येक वस्तु को सारणी में दिए अनुसार पदार्थ के साथ रगड़कर आवेशित कीजिए। अपने अनुभवों को नोट कीजिए। आप इस सारणी में और अधिक वस्तुएँ जोड़ सकते हैं।
सारणी 15.1
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15.3 आवेशों के प्रकार तथा इनकी अन्योन्य क्रिया

हम अगले क्रियाकलाप के लिए कुछ वस्तुएँ सारणी 15.1 में से चुनते हैं।

क्रियाकलाप 15.3

a) दो गुब्बारे फुलाइए। इन्हें इस प्रकार लटकाइए कि ये एक दूसरे को स्पर्श न करें (चित्र 15.1)। दोनों गुब्बारों को किसी ऊनी कपड़े से रगड़िए और छोड़ दीजिए। आप क्या देखते हैं।

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चित्र 15.1 :  समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

आइए अब हम इस क्रियाकलाप को पेन के बेकार रिफिलों के साथ दोहराएँ। एक रिफिल को पॉलिथीन से रगड़िए। काँच के गिलास को स्टैण्ड की भँति उपयोग करते हुए इसे गिलास में रखिए (चित्र 15.2)। दूसरी रिफिल को पॉलिथीन से रगड़िए तथा इसे आवेशित रिε.फल के निकट लाइए। सावधान रहिए, रिफिल का आवेशित सिरा अपने हाथों से न छुएँ। क्या गिलास में रखे रिफिल पर कोई प्रभाव पड़ता है? क्या ये दोनों रिफिल एक दूसरे को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित करते हैं?

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चित्र 15.2 : समान अवेशों के बीच अन्योन्य क्रिया।

इस क्रियाकलाप में हम एेसी आवेशित वस्तुओं को एक दूसरे के निकट लाए थे जो उसी पदार्थ से बनी थीं। यदि भिन्न पदार्थों से बनी दो आवेशित वस्तुओं को एक दूसरे के निकट लाएँ तो क्या होगा? आइए पता लगाएँ।

b) एक रिε.फल को पहले की भाँति रगड़कर धीरे से गिलास में रखिए। (चित्र 15.3)। इस रिफिल के निकट एक फूला हुआ आवेशित गुब्बारा लाइए और प्रेक्षण कीजिए।

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चित्र 15.3 : विपरीत आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

आइए प्रेक्षणों का सारांश करें–

  •  एक आवेशित गुब्बारे ने दूसरे आवेशित गुब्बारे को प्रतिकर्षित किया।
  •  एक आवेशित रिफिल ने दूसरी आवेशित रिफिल को प्रतिकर्षित किया।
  •  परन्तु एक आवेशित गुब्बारे ने आवेशित रिε.फल को आकर्षित किया।

क्या यह इंगित करता है कि गुब्बारे पर आवेश रिε.फल के आवेश से भिन्न प्रकार का है? क्या फिर हम यह कह सकते हैं कि आवेश दो प्रकार के होते हैं। क्या हम यह भी कह सकते हैं कि सजातीय (एक ही प्रकार के) आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं जबकि विजातीय (भिन्न प्रकार के) आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं?

मान्यता के अनुसार रेशम से रगड़ने पर काँच की छड़ द्वारा अर्जित आवेश को धनावेश कहते हैं। अन्य प्रकार के आवेश को ऋणावेश कहते हैं।

यह देखा गया है कि जब आवेशित काँच की छड़ को पॉलिथीन से रगड़े गए आवेशित प्लास्टिक स्ट्रॉ के निकट लाते हैं तो दोनों के बीच आकर्षण होता है।

आपके विचार से प्लास्टिक स्ट्रॉ पर किस प्रकार का आवेश होना चाहिए? आपका यह अनुमान कि प्लास्टिक स्ट्रॉ पर ऋणावेश होना चाहिए, सही है।

रगड़ने पर उत्पन्न विद्युत आवेश स्थैतिक होते हैं। वे स्वयं गति नहीं करते। जब आवेश गति करते हैं तो विद्युत धारा बनती है। आप कक्षा VI से ही विद्युत धारा के विषय में अध्ययन कर रहे हैं। परिपथ में प्रवाहित होने वाली वह विद्युत धारा जिससे बल्ब चमकता है अथवा तार गरम हो जाता है, और कुछ नहीं वरन आवेशों का प्रवाह ही है।


15.4 आवेश का स्थानान्तरण

क्रियाकलाप 15.4

मुरब्बे की एक खाली बोतल लीजिए। बोतल के मुँह के साइज़ से कुछ बड़ा गत्ते का टुकड़ा लीजिए। इसमें एक छिद्र बनाइए जिसमें धातु की पेपर-क्लिप घुसाई जा सके। चित्र 15.4 में दर्शाए अनुसार पेपर-क्लिप को खोलिए। एेलुमिनियम की पन्नी की लगभग 4 cm × 1 cm साइज़ की दो पट्टी काटिए। चित्र में दर्शाए अनुसार इन्हें पेपर-क्लिप पर लटकाइए। गत्ते के ढक्कन में पेपर-क्लिप को इस प्रकार घुसाइए कि यह गत्ते के लम्बवत रहे (चित्र 15.4)। रिε.फल को आवेशित कीजिए तथा इसे पेपर-क्लिप के सिरे से स्पर्श कराइए। प्रेक्षण कीजिए, क्या होता है? क्या पन्नी की पट्टियों पर कोई प्रभाव पड़ता है? क्या ये एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं अथवा आकर्षित करती हैं? अब पेपर-क्लिप के सिरे से अन्य आवेशित वस्तुओं को स्पर्श कराइए। क्या हर बार पन्नी की पट्टियाँ समान रूप से व्यवहार करती हैं? क्या इस उपकरण का उपयोग यह पहचान करने के लिए कर सकते हैं कि कोई वस्तु आवेशित है अथवा नहीं? क्या आप यह स्पष्ट कर सकते हैं कि पन्नी की पट्टियाँ एक-दूसरे को क्यों प्रतिकर्षित करती हैं?

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चित्र 15.4 :  सरल विद्युतदर्शी।



एेलुमिनियम की पन्नी की पट्टियाँ पेपर-क्लिप से होते हुए आवेशित रिफिल से आवेश प्राप्त करती हैं (याद रहे कि धातुएँ विद्युत की अच्छी चालक होती है)। समान आवेश वाली पट्टियाँ एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं और वे फैल जाती हैं। इस प्रकार की युक्ति का उपयोग यह परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है कि कोई वस्तु आवेशित है अथवा नहीं। इस युक्ति को विद्युतदर्शी कहते हैं।

इस प्रकार हमें यह ज्ञात हुआ कि विद्युत आवेश को किसी आवेशित वस्तु से अन्य वस्तु में धात्विक चालक द्वारा भेजा जा सकता है।

पेपर-क्लिप के सिरे को धीरे से हाथ से स्पर्श कीजिए। एेसा करते ही आप पन्नी की पट्टियों में एक परिवर्तन देखेंगे। वे अपनी मूल स्थिति में वापस आ जाती हैं। पन्नी की पट्टियों को आवेशित करने तथा पेपर-क्लिप को स्पर्श करने की क्रिया को दोहराइए। हर बार आप यह देखेंगे कि जैसे ही आप हाथ से पेपर-क्लिप को स्पर्श करते हैं पन्नी की पट्टियाँ सिमट जाती हैं। इसका कारण यह है कि स्पर्श करने पर पन्नी की पट्टियों का आवेश हमारे शरीर से होकर पृथ्वी में चला जाता है। तब हम कहते हैं कि पन्नी की पट्टियाँ अनावेशित हैं। किसी आवेशित वस्तु से आवेश को पृथ्वी में भेजने की प्रक्रिया को भूसम्पर्कण कहते हैं।


15.5 तड़ित की कहानी

अब रगड़ द्वारा उत्पन्न आवेशों के आधार पर तड़ित की व्याख्या करना संभव है।

कक्षा VII में आपने यह सीखा था कि गरज वाले तू.फानों के बनते समय वायु की धाराएँ ऊपर की ओर जाती हैं जबकि जल की बूँदें नीचे की ओर जाती हैं। इन प्रबल गतियों के कारण आवेशों का पृथकन होता है। एक प्रक्रिया द्वारा, जिसे हम अभी पूर्णतः नहीं समझा सके है, बादलों के ऊपरी किनारे के निकट धनावेश एकत्र हो जाते हैं तथा ऋणावेश बादलों के निचले किनारे पर संचित हो जाते हैं। धरती के निकट भी धनावेश का संचय होता है। जब संचित आवेशों का परिमाण अत्यधिक हो जाता है तो वायु जो विद्युत की हीन चालक है, आवेशों के प्रवाह को नहीं रोक पाती। ऋणात्मक तथा धनात्मक आवेश मिलते हैं और प्रकाश की चमकीली धारियाँ तथा ध्वनि उत्पन्न होती है। इसे हम तड़ित के रूप में देखते हैं (चित्र 15.5)। इस प्रक्रिया को विद्युत विसर्जन कहते हैं।

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चित्र 15.5  : आवेश के संचयन से तड़ित का होना।


विद्युत विसर्जन की प्रक्रिया दो अथवा अधिक बादलों के बीच, अथवा बादलों तथा पृथ्वी के बीच हो सकती है। अब हमें प्राचीन काल के लोगों की भांति तड़ित से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। अब हम मूल परिघटना को समझते हैं। वैज्ञानिक हमारा ज्ञान बढ़ाने के लिए कठोर परिश्रम कर रहे हैं। तथापि, तड़ित के गिरने पर जीवन तथा सम्पत्ति की हानि होती है, अतः हमें अपने बचाव के लिए उपाय करने आवश्यक हैं।

15.6 तड़ित से सुरक्षा

तड़ित एवं झंझा (गरज वाले तू.फान) के समय कोई भी खुला स्थान सुरक्षित नहीं होता।

  • गरज सुनना किसी सुरक्षित स्थान पर तुरन्त पहुँचने की चेतावनी है।
  • अन्तिम गर्जन सुनने के बाद सुरक्षित स्थान से बाहर आने से पहले कुछ देर प्रतीक्षा कीजिए।

सुरक्षित स्थान का पता लगाना

कोई मकान अथवा भवन सुरक्षित स्थान है।

दि आप किसी कार अथवा बस द्वारा यात्रा कर रहे हैं तो वाहन की खिड़कियाँ व दरवाज़े बंद होने पर आप उसके भीतर सुरक्षित हैं।

तड़ित झंझा के समय क्या करें, क्या न करें

बाहर खुले में-

खुले वाहन, जैसे मोटर साइकिल, ट्रैक्टर, निर्माणकार्य हेतु मशीनें, खुली कार सुरक्षित नहीं हैं। खुले मैदान, ऊँचे वृक्ष, पार्कों में शरण स्थल, ऊँचे स्थान तड़ित से हमारी सुरक्षा नहीं करते। तड़ित झंझा के समय छाता लेकर चलने का विचार किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है।

यदि आप वन में हैं तो छोटे वृक्ष के नीचे शरण लीजिए।

यदि आप किसी एेसे खुले क्षेत्र में हैं, जहाँ कोई शरण स्थल नहीं है तो सभी वृक्षों से काफी दूरी पर खड़े रहें। जमीन पर न लेटें, बल्कि जमीन पर सिमटकर नीचे बैठें। अपने हाथों को घुटनों पर तथा सिर को हाथों के बीच रखें (चित्र 15.6)। इस स्थिति में आप आघात के लिए लघुतम लक्ष्य बन जाएँगे।

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चित्र 15.6 : तड़ित के समय सुरक्षित स्थिति।

घर के भीतर-

तड़ित टेली.फोन के तारों, विद्युत तारों तथा धातु के पाइपों पर आघात कर सकती है (क्या आपको याद है तड़ित एक विद्युत विसर्जन है?)। तड़ित झंझा के समय हमें इन्हें छूना नहीं चाहिए। एेसे समय में मोबाइल फोन अथवा बिना डोरी वाले फोन का उपयोग सुरक्षित है। परन्तु यह बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं है कि आप किसी एेसे व्यक्ति को टेली.फोन करें जो तारयुक्त फोन से आपकी बात सुन रहा है।

बहते जल के सम्पर्क से बचने के लिए तड़ित झंझा के समय स्नान से बचना चाहिए।

कम्प्यूटर, टी.वी, आदि जैसे विद्युत उपकरणों के प्लगों को साकेट से निकाल देना चाहिए। विद्युत बल्बों/ट्यूबलाइटों को जलाए रखा जा सकता है। इनसे कोई हानि नहीं होती।

तड़ित चालक

तड़ित चालक एक एेसी युक्ति है जिसका उपयोग भवनों को तड़ित के प्रभाव से बचाने के लिए किया जाता है। किसी भवन के निर्माण के समय उसकी दीवारों में, उस भवन की ऊँचाई से अधिक लम्बाई की धातु की छड़ स्थापित कर दी जाती है। इस छड़ का एक सिरा वायु में खुला रखा जाता है तथा दूसरे सिरे को जमीन में काफी गहराई तक दबा देते हैं (चित्र 15.7)। धातु की छड़ विद्युत आवेश के जमीन तक पहुँचने के लिए एक सरल पथ प्रदान करती है। भवन निर्माण में उपयोग होने वाले धातु के स्तम्भ, विद्युत तार तथा जल-पाइप भी कुछ सीमा तक हमारा बचाव करते हैं। परन्तु तड़ित झंझा के समय इन्हें स्पर्श न करें।


15.7 भूकम्प

आपने अभी तड़ित झंझा तथा तड़ित के विषय में अध्ययन किया। कक्षा VII में आपने चक्रवातों के बारे में अध्ययन किया था। ये प्राकृतिक परिघटनाएँ मानव जीवन तथा सम्पत्ति का बड़े पैमाने पर विनाश कर सकती हैं। सौभाग्यवश, कुछ हद तक हम इन परिघटनाओं की भविष्यवाणी कर सकते हैं। मौसम विभाग कुछ क्षेत्रों में बन रहे तड़ित झंझा के बारे में चेतावनी दे सकता है

यदि तड़ित झंझा होती है तो इसके साथ सदैव तड़ित तथा चक्रवात की संभावना रहती है। अतः इन परिघटनाओं से होने वाली क्षति से बचाव के उपायों के लिए हमारे पास समय होता है।

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चित्र 15.7 : तड़ित चालक।

तथापि, एक एेसी परिघटना भी है जिसके बारे में भविष्यवाणी करने की क्षमता हम अभी तक भी विकसित नहीं कर पाए हैं। यह है भूकम्प। यह विशाल स्तर पर जनजीवन तथा सम्पत्ति को क्षति पहुँचा सकता है।

8 अक्टूबर 2005 को भारत में उत्तरी कश्मीर (चित्र 15.8) के उरी तथा तंगधार शहरों में एक बड़ा भूकम्प आया था। इससे पहले गुजरात के भुज जिले में 26 जनवरी 2001 को बड़ा भूकम्प आया था।

क्रियाकलाप 15.5


अपने माता-पिता से इन भूकम्पों द्वारा हुई जनजीवन तथा सम्पत्ति की अपार क्षति के बारे में पूछिए। उस समय के समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं से इन भूकम्पों द्वारा हुई क्षति को दर्शाने वाले कुछ चित्र एकट्ठा कीजिए। इन भूकम्पों द्वारा लोगों को हुई क्षति से संबंधित संक्षिप्त रिपोर्ट बनाइए।

ूकम्प क्या होता है? जब यह आता है तो क्या होता है? इसके प्रभाव को कम से कम करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? ये कुछ एेसे प्रश्न हैं जिनके बारे में हम नीचे चर्चा करेंगे।

भूकम्प क्या होता है?

भूकम्प जो बहुत कम समय तक रहता है, पृथ्वी का कम्पन अथवा कोई झटका होता है। यह पृथ्वी की भूपर्पटी के भीतर गहराई में गड़बड़ के कारण उत्पन्न होता है। भूकम्प हर समय सब जगह आते रहते हैं। प्रायः इनको नोटिस नहीं किया जाता है। विशाल भूकम्प बहुत कम होते हैं। ये भवनों, पुलों, बाँधों तथा लोगों को असीम क्षति पहुँचा सकते हैं। इनसे जीवन तथा सम्पत्ति की विशाल हानि हो सकती है। भूकम्पों से बाढ़, भूस्खलन तथा सुनामी आ सकते हैं। 26 दिसम्बर 2004 को हिन्द महासागर में एक विशाल सुनामी आया था। महासागर के चारों ओर के तटवर्ती क्षेत्रों में अपार हानि हुई थी।

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चित्र 15.8 : कश्मीर में भूकम्प।

क्रियाकलाप 15.6

संसार का एक रेखा मानचित्र लीजिए। भारत में पूर्वी तटीय तथा अंडमान और निकोबार महाद्वीपों की स्थिति ज्ञात कीजिए। हिन्द महासागर के चारों ओर के उन अन्य देशों को मानचित्र में अंकित कीजिए जिन्हें सुनामी से क्षति पहुँची थी। अपने माता-पिता अथवा परिवार के अन्य बड़े-बूढ़ों अथवा पास पड़ोस से भारत में सुनामी के कारण हुए नुकसान की जानकारी एकत्र कीजिए।

भूकम्प का क्या कारण है?



प्राचीन काल में लोग भूकम्प आने का सही कारण नहीं जानते थे। अतः उनकी धारणा मनगढ़ंत कथाओं, जैसी बूझो की दादी ने सुनाई थी, द्वारा व्यक्त की जाती थी। संसार के अन्य भागों में भी इसी प्रकार की कथाएँ प्रचलित थीं।

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पृथ्वी के अन्दर भू-कंपन के क्या कारण हो सकते हैं?


अब हम यह जानते हैं कि पृथ्वी के भीतर की सबसे ऊपरी सतह में गहराई की गड़बड़ के कारण भूस्पन्द आते हैं। पृथ्वी की इस परत को भूपर्पटी कहते हैं (चित्र 15.9)।

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चित्र 15.9 : पृथ्वी की संरचना।

पृथ्वी की यह परत एक खण्ड में नहीं है। यह टुकड़ों में विभाजित है। प्रत्येक टुकड़े को प्लेट कहते हैं (चित्र 15.10) ये प्लेट निरन्तर गति करती रहती हैं। जब ये एक-दूसरे से रगड़ खाती हैं अथवा टक्कर के कारण एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे चली जाती है (चित्र 15.11), तो इसके कारण भूपर्पटी में विक्षोभ उत्पन्न होता है। यही विक्षोभ पृथ्वी की सतह पर भूकम्प के रूप में दिखाई देता है।

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चित्र 15.10 : पृथ्वी की प्लेट।

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चित्र 15.11 : पृथ्वी की प्लेटों की गतियाँ।


यद्यपि हम भूकम्प आने के कारण निश्चित रूप से जानते हैं, तथापि अभी तक यह संभव नहीं हो सका है कि आने वाले भूकम्प के समय तथा स्थान की भविष्यवाणी कर सकें।

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मैने कहीं पढ़ा था कि भूमिगत विस्फोटों से भी भूस्पन्द उत्पन्न हो सकते हैं।


पृथ्वी पर भूस्पन्द ज्वालामुखी के फटने अथवा किसी उल्का पिण्ड के पृथ्वी से टकराने अथवा किसी भूमिगत नाभिकीय विस्फोट के कारण भी उत्पन्न हो सकते हैं। परन्तु अधिकांश भूकम्प पृथ्वी की प्लेटों की गतियों के कारण आते हैं।

भूकम्प प्लेटों की गतियों के कारण उत्पन्न होते हैं अतः जहाँ प्लेटों की सीमाएँ दुर्बल क्षेत्र होती हैं वहाँ भूकम्प आने की संभावना अधिक होती है। इन दुर्बल क्षेत्रों को भूकम्पी क्षेत्र अथवा भ्रंश क्षेत्र भी कहते हैं। भारत के अति भूकम्प आशंकित क्षेत्र कश्मीर, पश्चिमी तथा केन्द्रीय हिमालय, समस्त उत्तर-पूर्व, कच्छ का रन, राजस्थान तथा सिंध-गंगा के मैदान हैं। दक्षिण भारत के कुछ भाग भी खतरे के क्षेत्र में आते हैं (चित्र 15.12)।

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चित्र 15.12 : भारतीय उपमहाद्वीप में पृथ्वी की प्लेटों की गतियाँ।

किसी भूकम्प की शक्ति के परिमाण को रिक्टर पैमाने पर व्यक्त किया जाता है। अधिक विनाशकारी भूकम्पों का रिक्टर पैमाने पर परिमाण 7 से अधिक होता है। भुज तथा कश्मीर में आए दोनों भूकम्पों का परिमाण 7.5 से अधिक था।


भूस्पन्द पृथ्वी की सतह पर तरंगें उत्पन्न करते हैं। इन तरंगों को भूकम्पी तरंगें कहते हैं। इन तरंगों को भूकम्प लेखी नामक उपकरण द्वारा रिकार्ड किया जाता है (चित्र 15.13)। यह उपकरण मात्र एक कम्पायमान छड़ अथवा लोलक होता है जो भूस्पन्द आने पर दोलन (कम्पन) करने लगता है। इसके कम्पायमान तंत्र के साथ एक पेन जुड़ा रहता है। यह पेन इसके नीचे गति करने वाले कागज़ की पट्टी पर भूकम्पी तरंगों को रिकार्ड करता रहता है। इन तरंगों का अध्ययन करके वैज्ञानिक भूकम्प का सम्पूर्ण मानचित्र बना सकते हैं जैसा कि चित्र 15.14 में दिखाया गया है। वे भूकम्प की क्षति पहुँचा सकने की क्षमता का अनुमान भी लगा सकते हैं।

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चित्र 15.13 : भूकम्पलेखी उपकरण।   चित्र 15.14: भूकम्प का चित्र

विज्ञान में अन्य बहुत से पैमानों की भांति (डेसीबेल एक अन्य उदाहरण है।) रिक्टर पैमाना रेखिक नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इस पैमाने पर 6 परिमाण के भूकम्प की क्षतिनाशी ऊर्जा 4 परिमाण के भूकम्प की विनाशी ऊर्जा से डेढ़ गुनी अधिक नहीं है। वास्तव में परिमाण में 2 की वृद्धि का अर्थ 1000 गुनी अधिक विनाशी ऊर्जा है। इसीलिए, 6 परिमाण के किसी भूकम्प की विनाशी ऊर्जा 4 परिमाण के भूकम्प की तुलना में 1000 गुनी अधिक होती है।

C. भूकम्प से बचाव

उपरोक्त चर्चा से हमने यह सीखा कि भूकम्पों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। हमने यह भी देखा कि भूकम्प अत्यधिक विनाशकारी हो सकते हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम हर समय अपने बचाव के लिए आवश्यक सावधानियाँ बरतें। भूकम्पी क्षेत्रों, जहाँ पर भूकम्प आने की अधिक आशंका होती है, में रहने वाले लोगों को इनका सामना करने के लिए विशेष रूप से तैयार रहना होता है। सर्वप्रथम इन क्षेत्रों के भवनों का डिजाइन एेसा हो कि वे बड़े भूकम्पों के झटकों को सह सकें। आधुनिक भवन प्रौद्योगिकी इसे संभव बना सकती है।

उचित यह है कि भवनों के ढाँचे सरल हों ताकि वे ‘‘भूकम्प निरापद’’ हों।

  •  किसी योग्य आर्किटैक्ट एवं संरचना इंजीनियर से परामर्श कीजिए।
  •  अत्यधिक भूकम्पी क्षेत्रों में भवन निर्माण में भारी पदार्थों की अपेक्षा मिट्टी अथवा इमारती लकड़ी का उपयोग अधिक अच्छा होता है। यदि ढाँचा गिरे तो अत्यधिक क्षति नहीं होती।
  •  अल्मारियों इत्यादि को दीवारों के साथ जड़ना अधिक अच्छा होता है जिससे कि वे आसानी से न गिरें।
  •  दीवार घड़ी, फोटो फ्रेम, जल तापक (गाइज़र) आदि को दीवार में लटकाते समय सावधानी रखिए, ताकि भूकम्प आने पर ये लोगों के ऊपर न गिरें।
  •  चूँकि कुछ भवनों में भूकम्प के कारण आग लग सकती है, अतः यह आवश्यक है कि सभी भवनों, विशेषकर ऊँची इमारतों में अग्निशमन के सभी उपकरण कार्यकारी स्थिति में होने चाहिए।

केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, रुड़की ने भूकम्प प्रतिरोधी मकान बनाने के लिए कुछ जानकारी विकसित की है।

भूकम्प के झटके लगने की स्थिति में अपने बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय कीजिए-

1. यदि आप घर में हैं, तो-

  •  किसी मेज़ के नीचे आश्रय लें तथा झटकों के रुकने तक वहीं रहें
  •  एेसी ऊँची तथा भारी वस्तुओं से दूर रहें जो आप पर गिर सकती हैं।
  •  यदि आप बिस्तर पर हैं तो उठें नहीं, अपने सिर का तकिए से बचाव करें।

2. यदि आप घर से बाहर हैं, तो-

  •  भवनों, वृक्षों तथा ऊपर जाती विद्युत लाइनों से दूर किसी खुले स्थान को खोजें एवं धरती पर लेट जाएँ।
  • यदि आप किसी कार अथवा बस में हैं तो बाहर न निकलें। ड्राइवर से कहें कि वह धीरे-धीरे किसी खुले स्थान पर पहुँचे। भूस्पन्दन के समाप्त होने से पहले बाहर न निकलें।

कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ

विद्युत धारा के किसी भी कारण से लीक होने से उत्पन्न विद्युत आघात से हमें बचाने के लिए भवनों में भूसम्पर्कण की व्यवस्था की जाती है।


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अभ्यास

प्रश्न 1 तथा 2 में सही विकल्प का चयन कीजिए–

1. निम्नलिखित में से किसे घर्षण द्वारा आसानी से आवेशित नहीं किया जा सकता?

(क) प्लास्टिक का पैमाना (ख) तांबे की छड़

(ग) फूला हुआ गुब्बारा (घ) ऊनी वस्त्र

2. जब काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं तो छड़-

(क) तथा कपड़ा दोनों धनावेश अर्जित कर लेते हैं।

(ख) धनावेशित हो जाती है तथा कपड़ा ऋणावेशित हो जाता है।

(ग) तथा कपड़ा दोनों ऋणावेश अर्जित कर लेते हैं।

(घ) ऋणावेशित हो जाती है तथा कपड़ा धनावेशित हो जाता है।

3. निम्नलिखित कथनों के सामने सही के सामने T तथा गलत के सामने F लिखिए–

(क) सजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। (T/F)

(ख) आवेशित काँच की छड़ आवेशित प्लास्टिक स्ट्रा को आकर्षित करती है (T/F)

(ग) तड़ित चालक किसी भवन की तड़ित से सुरक्षा नहीं कर सकता। (T/F)

(घ) भूकम्प की भविष्यवाणी की जा सकती है। (T/F)

4. सर्दियों में स्वेटर उतारते समय चट-चट की ध्वनि सुनाई देती है। व्याख्या कीजिए।

5. जब हम किसी आवेशित वस्तु को हाथ से छूते हैं तो वह अपना आवेश खो देती हैं, व्याख्या कीजिए।

6. उस पैमाने का नाम लिखिए जिस पर भूकम्पों की विनाशी ऊर्जा मापी जाती है। इस पैमाने पर किसी भूकम्प की माप 3 है। क्या इसे भूकम्पलेखी (सीसमोग्राफ़ी)से रिकॉर्ड किया जा सकेगा? क्या इससे अधिक हानि होगी।

7. तड़ित से अपनी सुरक्षा के तीन उपाय सुझाइए।

8. आवेशित गुब्बारा दूसरे आवेशित गुब्बारे को प्रतिकर्षित करता है, जबकि अनावेशित गुब्बारा आवेशित गुब्बारे द्वारा आकर्षित किया जाता है। व्याख्या कीजिए।

9. चित्र की सहायता से किसी एेसे उपकरण का वर्णन कीजिए जिसका उपयोग किसी आवेशित वस्तु की पहचान में होता है।

10. भारत के उन तीन राज्यों (प्रदेशों) की सूची बनाइए जहाँ भूकम्पों के झटके अधिक संभावित हैं।

11. मान लीजिए आप घर से बाहर हैं तथा भूकम्प के झटके लगते हैं। आप अपने बचाव के लिए क्या सावधानियाँ बरतेंगे?

12. मौसम विभाग यह भविष्यवाणी करता है कि किसी निश्चित दिन तड़ित झंझा की संभावना है और मान लीजिए उस दिन आपको बाहर जाना है। क्या आप छतरी लेकर जाएँगे? व्याख्या कीजिए।


 


विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप एवं परियोजनाएँ

1. जल टोंटी खोलिए। इसे पतली धार के लिए समायोजित कीजिए। किसी रिफिल को आवेशित कीजिए। इसे जल की धार के निकट लाइए। प्रेक्षण कीजिए कि क्या होता है। इस क्रियाकलाप की संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।

2. अपना आवेश संसूचक बनाइए। लगभग 10 cm × cm की कागज़ की पट्टी लीजिए। इसे चित्र 15.15 में दर्शाए अनुसार आकृति दीजिए। इसे किसी सुई की नोक पर संतुलित कीजिए। कोई आवेशित वस्तु इसके निकट लाइए। प्रेक्षण कीजिए कि क्या होता है। इसकी कार्यप्रणाली की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।

15_15

चित्र 15.15

3. इस क्रियाकलाप को रात्रि के समय किया जाना चाहिए। एेसे कमरे में जाइए जहाँ प्रतिदीप्त नलिका का प्रकाश हो रहा हो। गुब्बारे को आवेशित कीजिए। प्रतिदीप्त नलिका का स्विच अॉफ कर दीजिए ताकि पूर्ण अंधेरा हो जाए। आवेशित गुब्बारे को प्रतिदीप्त नलिका के निकट लाइए। आपको धुँधली सी चमक (दीप्ति) दिखाई देगी। गुब्बारे को नलिका की लम्बाई के अनुदिश ले जाते हुए चमक में परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए।

सावधानीः मुख्य आपूर्ति से नलिका को संयोजित करने वाले तारों तथा नलिका के धात्विक भागों को स्पर्श न करें।

4. पता लगाइए कि क्या आपके क्षेत्र में एेसी कोई संस्था है जो प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्तियों को राहत पहुँचाती है। पता कीजिए कि वह भूकम्प पीड़ित लोगों की किस प्रकार से सहायता करती है। भूकम्प पीड़ित व्यक्तियों की समस्याओं पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट बनाइए।

इस विषयों पर अधिक जानकारी के लिए निम्न वेबसाइट देखिए–

  •  science.howstuffworks.com/lightning.htm
  •  science.howstuffworks.com/earthquake.htm