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प्रकाश
संसार को हम मुख्य रूप से अपनी ज्ञानेन्द्रियों से जानते हैं। ज्ञानेन्द्रियों में से दृष्टि एक सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय है। इसकी सहायता से हम पर्वतों, नदियों, पेरिफिलड़-पौधों, कुर्सियों, मनुष्यों तथा अपने चारों ओर की अन्य अनेक वस्तुओं को देखते हैं। हम आकाश में बादल, इन्द्रधनुष तथा उरिफिलड़ते पक्षियों को भी देखते हैं। रात्रि में हम चन्द्रमा तथा तारों को देखते हैं। दृष्टि द्वारा ही आप इस पृष्ठ पर छपे शब्दों तथा वाक्यों को देख पाते हैं। क्या आप जानते हें कि ये सब देखना कैसे सम्भव हो पाता है?
16.1 वस्तुओं को दृश्य कौन बनाता है?
क्या कभी आपने सोचा है कि हम विभिन्न वस्तुओं को कैसे देख पाते हैं? आप कह सकते हैं कि हम वस्तुओं को नेत्रों से देखते हैं। लेकिन, क्या आप अंधेरे में किसी वस्तु को देख पाते हैं? इसका अर्थ है कि केवल नेत्रों द्वारा हम किसी वस्तु को नहीं देख सकते। किसी वस्तु को हम तब ही देख पाते हैं जब उस वस्तु से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करे। यह प्रकाश वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित अथवा उनसे परावर्तित हुआ हो सकता है।
आपने कक्षा VII में सीखा है कि कोई पॉलिश किया हुआ या चमकदार पृष्ठ दर्पण की भांति कार्य कर सकता है। दर्पण अपने ऊपर परिफिलड़ने वाले प्रकाश की दिशा को परिवर्तित कर देता है। क्या आप बता सकते हैं कि किसी पृष्ठ पर परिफिलड़ने वाला प्रकाश किस दिशा में परावर्तित होगा? आइए ज्ञात करें।
16.2 परावर्तन के नियम
क्रियाकलाप 16.1
किसी मेज या ड्राइंग बोर्ड पर सफेद कागरिफिलज़ की एक शीट लगाइए। एक कंघा लीजिए और इसके बीच के एक दाँते को छोरिफिलड़कर सभी खुले स्थानों को बंद कर दीजिए। इस कार्य के लिए आप काले कागरिफिलज़ की एक पट्टी प्रयोग कर सकते हैं। कंघे को कागरिफिलज़ की शीट के लम्बवत पकरिफिलड़िए। एक टॉर्च की सहायता से कंघे के खुले स्थान पर एक ओर से प्रकाश डालिए (चित्र 16.1)। टॉर्च तथा कंघे के थोरिफिलड़े से समायोजन के पश्चात आप कंघे के दूसरी ओर कागरिफिलज़ की शीट के अनुदिश प्रकाश की एक किरण देखेंगे। कंघे तथा टॉर्च को इस स्थिति में स्थिर रखिए। प्रकाश-किरण के गमन पथ के सामने समतल दर्पण की एक पट्टी रखिए (चित्र 16.1)। आप क्या देखते हैं?
चित्र 16.1 : परावर्तन दर्शाने की व्यवस्था
प्रकाश किरण का अस्तित्व एक आदर्शीकरण है। वास्तव में, हमें प्रकाश का एक संकीर्ण किरण-पुंज प्राप्त होता है जो अनेक किरणों से मिल कर बना होता है। सरलता के लिए हम प्रकाश के संकीर्ण किरण-पुंज के लिए किरण शब्द का उपयोग करते हैं।
अपने मित्रों की सहायता से कागरिफिलज़ पर समतल दर्पण की स्थिति तथा आपतित एवं परावर्तित किरणों को दर्शाने वाली रेखाएँ खींचिए। दर्पण तथा कंघे को हटाइए। दर्पण कोनिरूपित करने वाली रेखा के जिस बिन्दु पर आपतित किरण दर्पण से टकराती है, उस पर दर्पण से 90° का कोण बनाते हुए एक रेखा खींचिए। यह रेखा परावर्तक पृष्ठ के उस बिन्दु पर अभिलम्ब कहलाती है (चित्र 16.2)। आपतित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को आपतन कोण (∠i) कहते हैं। परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को परावर्तन कोण (∠r) कहते हैं (चित्र 16.3)। आपतन कोण तथा परावर्तन कोण को मापिए। इस क्रियाकलाप को आपतन कोण परिवर्तित करके कई बार दोहराइए। प्रेक्षणों को सारणी 16.1 में लिखिए।
परावर्तन कोण।
सारणी 16.1 : आपतन कोण तथा परावर्तन कोण
क्या आप आपतन कोण तथा परावर्तन कोण के बीच कोई संबंध देखते हैं? क्या ये दोनों लगभग बराबर हैं? यदि यह क्रियाकलाप सावधानीपूर्वक किया जाए तो यह देखा जाता है कि आपतन कोण सदैव परावर्तन कोण के बराबर होता है। यह परावर्तन के नियमों में एक है। आइए परावर्तन से संबंधित एक और क्रियाकलाप करें।
यदि मैं दर्पण पर प्रकाश अभिलम्ब के अनुदिश डालूँ तो क्या होगा?
क्रियाकलाप 16.2
क्रियाकलाप 16.1 को दोबारा कीजिए। इस बार किसी सख्त कागरिफिलज़ की शीट अथवा चार्ट पेपर का उपयोग कीजिए। शीट मेज के किनारे से थोरिफिलड़ी बाहर निकली हुई होनी चाहिए (चित्र 16.4)। शीट के बाहर निकले भाग को बीच में से काटिए। परावर्तित किरण को देखिए। सुनिश्चित कीजिए कि परावर्तित किरण कागरिफिलज़ के बाहर निकले भाग पर भी दिखाई दे। कागरिफिलज़ के बाहर निकले उस भाग को मोरिफिलड़िए जहाँ पर परावर्तित किरण दिखाई दे रही है। क्या आप अब भी परावर्तित किरण देख पाते हैं? कागरिफिलज़ को पुनः प्रारंभिक अवस्था में लाइए। क्या आप फिर से परावर्तित किरण को देख पाते हैं? इससे आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
जब मेज पर कागरिफिलज़ की पूरी शीट फैलाते हैं तो यह एक तल को निरूपित करती है। आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण ये सभी इसी तल में होते हैं। जब आप कागरिफिलज़ को मोरिफिलड़ देते हैं, तो आप एक नया तल बना देते हैं जो उस तल से भिन्न होता है जिसमें आपतित किरण तथा अभिलम्ब स्थित हैं। तब आप परावर्तित किरण नहीं देख पाते। यह क्या निदर्शित करता है? यह दर्शाता है कि आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण-ये सभी एक तल में होते हैं। यह परावर्तन का एक अन्य नियम है।
पहेली तथा बूझो ने उपरोक्त क्रियाकलाप टॉर्च के स्थान पर सूर्य को प्रकाश-स्रोत के रूप में उपयोग करके कक्ष के बाहर किए। आप भी प्रकाश स्रोत के रूप में सूर्य का उपयोग कर सकते हैं।
इन क्रियाकलापों को किरण वर्णरेखा उपकरण का उपयोग करके भी किया जा सकता है (यह उपकरण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारानिर्मित किट में उपलब्ध है)।
बूझो को याद आया कि उसने कक्षा VII में समतल दर्पण द्वारा बने किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब के कुछ लक्षणों का अध्ययन किया था। पहेली ने उससे उन लक्षणों का स्मरण करने के लिए पूछा -
(i) क्या प्रतिबिंब सीधा था अथवा उलटा?
(ii) क्या प्रतिबिंब का साइरिफिलज़ वस्तु के साइरिफिलज़ के बराबर था?
(iii) क्या प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर दिखाई दिया था जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी थी?
(iv) क्या प्रतिबंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता था?
आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप से समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब बनने के बारे में कुछ और अधिक समझें।
क्रियाकलाप 16.3
समतल दर्पण PQ के सामने एक प्रकाश स्रोत O रखा गया है। दर्पण पर दो किरणें OA तथा OC आपतित हो रही हैं। (चित्र 16.5)। क्या आप परावर्तित किरणों की दिशा ज्ञात कर सकते हैं? समतल दर्पण PQ के पृष्ठ के बिन्दुओं A तथा C पर अभिलंब खींचिए। फिर बिंदुओं A तथा C पर परावर्तित किरणें खींचिए। आप इन किरणों को कैसे खींचेगे? परावर्तित किरणों को क्रमशः AB तथा CD से निरूपित कीजिए। इन्हें आगे की ओर बरिफिलढ़ाइए। क्या ये मिलती हैं? अब इन्हें पीछे की ओर बरिफिलढ़ाइए। क्या अब ये मिलती हैं? यदि ये मिलती हैं तो इस बिन्दु पर I अंकित कीजिए। क्या परावर्तित किरणें E पर स्थित (चित्र 16.5) पर स्थित किसी दर्शक के नेत्र को बिन्दु I से आती प्रतीत होंगी? क्योंकि परावर्तित किरणें वास्तव में I पर नहीं मिलती, बल्कि मिलती हुई प्रतीत होती हैं, इसलिए हम कहते हैं कि बिन्दु O का आभासी प्रतिबिंब I पर बनता है। आप कक्षा VII में परिफिलढ़ चुके हैं कि इस प्रकार के प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता।
चित्र 16.5 : समतल दर्पण में प्रतिबिंब का बनना।
आप स्मरण कर सकते हैं कि दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब में वस्तु का बायाँ भाग दाईं ओर तथा दायाँ भाग बाईं ओर दिखाई परिफिलड़ता है। इस परिघटना को पार्श्व-परिवर्तन कहते हैं।
16.3 नियमित तथा विसरित परावर्तन
क्रियाकलाप 16.4
कल्पना कीजिए कि चित्र 16.6 में दर्शाए अनुसार किसी अनियमित पृष्ठ पर समान्तर किरणें आपतित होती हैं। याद रखिए, पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर परावर्तन के नियम मान्य हैं। विभिन्न बिंदुओं पर परावर्तित किरणों की रचना करने के लिए इन नियमों का उपयोग कीजिए। क्या ये परावर्तित किरणें एक दूसरे के समान्तर हैं? आप पाएँगे कि ये किरणें भिन्न-भिन्न दिशाओं में परावर्तित होती हैं (चित्र 16.7)।
चित्र 16.6 : अनियमित पृष्ठ पर आपतित समान्तर किरणें।
चित्र 16.7 : अनियमित पृष्ठ से परावर्तित किरणें।
जब सभी समान्तर किरणें किसी खुरदुरे या अनियमित पृष्ठ से परावर्तित होने के पश्चात् समान्तर नहीं होतीं, तो एेसे परावर्तन को विसरित परावर्तन कहते हैं। याद रखिए कि विसरित परावर्तन में भी परावर्तन के नियमों का सफलतापूर्वक पालन होता है। प्रकाश का विसरण गत्ते जैसे विषय परावर्ती पृष्ठ पर अनियमितताओं के कारण होता है।
इसके विपरीत दर्पण जैसे चिकने पृष्ठ से होने वाले परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते हैं। (चित्र 16.8) में नियमित परावर्तन द्वारा प्रतिबिंब बनते हैं।
चित्र 16.8 ः नियमित परावर्तन।आइए ज्ञात करें।
क्या हम सभी वस्तुओं को परावर्तित प्रकाश के कारण ही देखते हैं?
आपके चारों ओर की लगभग सभी वस्तुएँ आपको परावर्तित प्रकाश के कारण दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए चन्द्रमा, सूर्य से प्राप्त प्रकाश को परावर्तित करता है। इस प्रकार हम चन्द्रमा को देखते हैं। जो पिण्ड दूसरी वस्तुओं के प्रकाश में चमकते हैं उन्हें प्रदीप्त पिण्ड कहते हैं। क्या आप कुछ एेसे अन्य पिण्डों के नाम बता सकते हैं?
कुछ अन्य पिण्ड हैं जो स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, जैसे– सूर्य, मोमबत्ती की ज्वाला तथा विद्युत लैम्प। इनका प्रकाश हमारे नेत्रों पर परिफिलड़ता है। इस प्रकार हम इन पिण्डों को देखते हैं। जो पिण्ड स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं वे दीप्त पिण्ड कहलाते हैं।
मेरे मन में एक प्रश्न है। यदि परावर्तित किरणें किसी अन्य दर्पण पर आपतित हों, तो क्या वे फिर परावर्तित हो सकती हैं?
16.4 परावर्तित प्रकाश को पुनः परावर्तित किया जा सकता है
स्मरण कीजिए जब पिछली बार आप किसी केश प्रसाधक के यहाँ गए थे। उसने आपको एक दर्पण के सामने बैठाया था। बाल कट चुकने के पश्चात उसने आपके पीछे की ओरएक दर्पण रखा था। इस दूसरे दर्पण की सहायता से आप सामने वाले दर्पण में यह देख सकते थे कि आपके बाल कैसे कटे हैं (चित्र 16.9)। क्या आप बता सकते हैं कि अपने सिर के पीछे के बालों को आप कैसे देख पाए थे?
16.5 बहु प्रतिबिंब
आप जानते हैं कि समतल दर्पण किसी वस्तु का केवल एक ही प्रतिबिंब बनाता है। यदि दो समतल दर्पणों को संयोजनों में उपयोग करें तो क्या होगा? आइए देखें।
चित्र 16.9 : केश प्रसाधक की दुकान पर दर्पण।
क्रियाकलाप 16.5
दो समतल दर्पण लीजिए। उन्हें एक दूसरे से समकोण बनाते हुए इस प्रकार रखिए कि इनके किनारे आपस में मिले रहें (चित्र 16.10)। इन्हें जोरिफिलड़ने के लिए आप किसी टेप का उपयोग कर सकते हैं। दर्पणों के बीच एक सिक्का रखिए। आपको इस सिक्के के कितने प्रतिबिंब दिखाई देते हैं (चित्र 16.10)?
चित्र 16.10 : समकोण पर रखे गए समतल दर्पणों में प्रतिबिंब।
अब टेप का उपयोग करके दर्पणों को विभिन्न कोणों, जैसे 45°, 60°, 120°, 180° आदि पर जोरिफिलड़िए। दर्पणों के बीच में कोई वस्तु (जैसे मोमबत्ती) रखिए। प्रत्येक प्रकरण में वस्तु के बनने वाले प्रतिबिंबों की संख्या नोट कीजिए। अन्त में दोनों दर्पणों को एक दूसरे के समान्तर खरिफिलड़े कीजिए। देखिए अब मोमबत्ती के कितने प्रतिबिंब बनते हैं (चित्र 16.11)।
चित्र 16.11 : एक दूसरे के समान्तर रखे समतल दर्पणों में बने प्रतिबिंब।
क्या अब आप यह स्पष्ट कर सकते हैं कि केश प्रसाधक की दुकान पर आप अपने सिर के पीछे के भाग को कैसे देख पाते हैं?
एक दूसरे से किसी कोण पर रखे दर्पणों द्वारा अनेक प्रतिεंबबों के बनने की धारणा का उपयोग बहुमूर्तिदर्शी (कैलाइडोस्कोप) में भांति-भांति के आकर्षक पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है। आप स्वयं भी एक कैलाइडोस्कोप बना सकते हैं।
बहुमूर्तिदर्शी
क्रियाकलाप 16.6
कैलाइडोस्कोप बनाने के लिए दर्पण की लगभग 15 cm लम्बी, 4 cm चौरिफिलड़ी तीन आयताकार पट्टियाँ लीजिए। इन्हें चित्र 16.12(a) में दर्शाए अनुसार एक प्रिरिफिलज़्म की आकृति में जोरिफिलड़िए। इन्हें गत्ते या मोटे चार्ट पेपर की बनी एक बेलनाकार ट्यूब में दृरिफिलढ़ता से लगाइए। सुनिश्चित कीजिए कि ट्यूब दर्पण की पट्टियों से थोरिफिलड़ी लम्बी हो। ट्यूब के एक सिरे को गत्ते की एक एेसी डिस्क से बंद कीजिए जिसमें भीतर का दृश्य देखने के लिए एक छिद्र बना हो [चित्र 16.12(b)]। डिस्क को टिकाऊ बनाने के लिए इसके नीचे पारदर्शी प्लास्टिक की शीट चिपका दीजिए। ट्यूब के दूसरे सिरे पर समतल काँच की एक वृत्ताकार प्लेट दर्पणों को छूते हुए दृरिफिलढ़तापूर्वक लगाइए [चित्र 16.12(c)]। इस प्लेट पर छोटे-छोटे रंगीन काँच के कुछ टुकरिफिलड़े (रंगीन चूरिफिलड़ियों के टुकरिफिलड़े) रखिए। ट्यूब के इस सिरे को घिसे हुए काँच की प्लेट से बन्द कीजिए। रंगीन टुकरिफिलड़ों की हलचल के लिए पर्याप्त जगह रहने दीजिए।
चित्र 16.12 : बहुमूर्तिदर्शी (कैलाइडोस्कोप) बनाना।
आपका कैलाइडोस्कोप तैयार है। जब आप छिद्र से झाँकते हैं तो आपको ट्यूब में भांति-भांति के पैटर्न दिखाई देते हैं। कैलाइडोस्कोप की एक रोचक विशेषता यह है कि आप कभी भी एक पैटर्न दोबारा नहीं देख पाएँगे। प्रायः दीवारों वाले कागरिफिलज़ों तथा वस्त्रों के डिरिफिलज़ाइन बनाने वाले तथा कलाकार कैलाइडोस्कोप का उपयोग नए-नए पैटर्न की कल्पना करने के लिए करते हैं। अपने खिलौने को आकर्षक बनाने के लिए आप इस पर रंगीन कागरिफिलज़ चिपका सकते हैं।
16.6 सूर्य का प्रकाश - श्वेत या रंगीन
कक्षा VII में आपने सीखा कि सूर्य के प्रकाश को श्वेत प्रकाश के रूप में जाना जाता है। आपने यह भी सीखा है कि इसमें सात रंग होते हैं। यह दर्शाने के लिए कि सूर्य के प्रकाश में अनेक रंग होते हैं एक और क्रियाकलाप (16.7) करते हैं।
16.7 हमारे नेत्रों की संरचना क्या है?
हम वस्तुओं को केवल तभी देख पाते हैं जब उनसे आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है। नेत्र हमारी सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रियों में से एक है। इसीलिए इसकी संरचना तथा कार्यविधि को समझना हमारे लिए विशेष महत्त्व रखता है।
क्रियाकलाप 16.7
उपयुक्त साइरिफिलज़ का एक समतल दर्पण लीजिए। इसे चित्र 16.13 में दर्शाए अनुसार एक कटोरी में रखिए। कटोरी में जल भरिए। इस व्यवस्था को किसी खिरिफिलड़की के पास इस प्रकार रखिए कि दर्पण पर सूर्य का प्रकाश सीधा परिफिलड़ सके। कटोरी की स्थिति को इस प्रकार समायोजित कीजिए कि दर्पण से परावर्तित होने वाला प्रकाश किसी दीवार पर परिफिलड़े। यदि दीवार सफेद न हो तो इस पर सफेद कागरिफिलज़ की शीट चिपकाइए। परावर्तित प्रकाश में आपको अनेक रंग दिखाई देंगे। आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे? दर्पण एवं जल संयुक्त रूप से एक प्रिरिफिलज़्म बनाते हैं। यह प्रकाश को इसके रंगों में विभक्त कर देता है, जैसा कि आपने कक्षा VII में अध्ययन किया है। प्रकाश के अपने रंगों में विभाजित होने को प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं। इन्द्रधनुष विक्षेपण को दर्शाने वाली एक प्राकृतिक परिघटना है।
चित्र 16.13 : प्रकाश का विक्षेपण।
हमारे नेत्र की आकृति लगभग गोलाकार है। नेत्र का बाहरी आवरण सफेद होता है। यह कठोर होता है ताकि यह नेत्र के आंतरिक भागों की दुर्घटनाओं से बचाव कर सके। इसके पारदर्शी अग्र भाग को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं (चित्र 16.14)। कॉर्निया के पीछे हम एक गहरे रंग की पेशियों की संरचना पाते हैं जिसे परितारिका (आइरिस) कहते हैं। आइरिस में एक छोटा सा द्वार होता है जिसे पुतली कहते हैं। पुतली के साइरिफिलज़ को परितारिका से नियंत्रित किया जाता है। परितारिका नेत्र का वह भाग है जो इसे इसका विशिष्ट रंग प्रदान करती है। जब हम कहते हैं कि किसी व्यक्ति के नेत्र हरे हैं तो वास्तव में हम परितारिका के रंग की ही बात कर रहे होते हैं। परितारिका नेत्र में प्रवेशकरने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। आइए देखें यह कैसे होता है।
चेतावनीः इस क्रियाकलाप के लिए कभी भी लेरिफिलज़र टॉर्च का प्रयोग न करें।
क्रियाकलाप 16.8
अपने मित्र की आँख में देखिए। पुतली के साइरिफिलज़ का अवलोकन कीजिए। एक टॉर्च से उसकी आँख पर प्रकाश डालिए। अब पुतली का अवलोकन कीजिए। टॉर्च को बन्द कीजिए तथा उसकी पुतली का एक बार पुनः अवलोकन करें। क्या आप पुतली के साइरिफिलज़ में कोई परिवर्तन देख पाते हैं? किस स्थिति में पुतली बरिफिलड़ी थी? क्या आप बता सकते हैं कि एेसा क्यों हुआ।
किस स्थिति में आपको आँख में अधिक प्रकाश भेजने की आवश्यकता है, मंद प्रकाश में या तीव्र प्रकाश में?
पुतली के पीछे एक लेंस है जो केन्द्र पर मोटा है। किस प्रकार का लेंस केन्द्र पर मोटा होता है? स्मरण करिए, कक्षा VII में लेंसों के बारे में क्या परिफिलढ़ा है? लेंस प्रकाश को आँख के पीछे एक परत पर .फोकसित करता है। इस परत को रेटिना (दृष्टि पटल) कहते हैं (चित्र 16.14)। रेटिना अनेक तंत्रिका कोशिकाओं का बना होता है। तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा अनुभव की गई संवेदनाओं को दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिया जाता है। तंत्रिका कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं।
(i) शंकु, जो तीव्र प्रकाश के लिए सुग्राही होते हैं तथा
(ii) शलाकाएँ, जो मंद प्रकाश के लिए सुग्राही होती हैं। इसके अतिरिक्त, शंकु रंगों (वर्णों) की सूचनाएँ भी भेजते हैं। दृक् तंत्रिकाओं तथा रेटिना की संधि पर कोई तंत्रिका कोशिका नहीं होती। इस बिंदु को अंध बिंदु कहते हैं। इसके अस्तित्व को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है।
क्रियाकलाप 16.9
किसी कागरिफिलज़ की शीट पर एक गोल चिह्न तथा एक क्रॅास बनाइए। गोल चिह्न क्रॅास के दाईं ओर होना चाहिए (चित्र 16.15)। दोनों चिह्नों के बीच 6-8 cm की दूरी होनी चाहिए। कागरिफिलज़ की शीट को नेत्र से भुजा की दूरी पर पकरिफिलड़े रखिए। अपने बाएँ नेत्र को बन्द कीजिए। क्रॉस को कुछ देर तक लगातार देखिए। अपने नेत्र को क्रॉस पर स्थिर रखते हुए, शीट को धीरे-धीरे अपनी ओर लाइए। आप क्या देखते हैं? क्या गोल चिह्न शीट के किसी दूरी तक आने पर अदृश्य हो जाता है? अब अपना दायाँ नेत्र बन्द कीजिए। अब गोल चिह्न पर देखते हुए उपरोक्त क्रियाकलाप को दोहराइए। क्या इस बार क्रॉस अदृश्य हो जाता है? क्रॉस अथवा गोल चिह्न का अदृश्य होना यह दर्शाता है कि रेटिना पर कोई एेसा बिन्दु है जो प्रकाश गिरने पर इसकी सूचना मस्तिष्क तक नहीं पहुँचाता।
चित्र 16.15 : अंध बिंदु दिखाना।
रेटिना पर बने प्रतिबिंब का प्रभाव, वस्तु को हटा लेने पर, तुरन्त ही समाप्त नहीं होता। यह लगभग 1/16 सेकंड तक बना रहता है। इसलिए, यदि नेत्र पर प्रति सेकंड 16 या इससे अधिक दर पर किसी गतिशील वस्तु के स्थिर प्रतिबिंब बनें, तो नेत्र को वह वस्तु चलचित्र की भाँति चलती-फिरती अनुभव होगी।
क्रियाकलाप 16.10
6-8 cm भुजा का गत्ते का एक वर्गाकार टुकरिफिलड़ा लीजिए। चित्र 16.16 में दर्शाए अनुसार इसमें दो छिद्र बनाइए। इन दोनों छिद्रों में एक धागा पिरोइए। गत्ते के एक ओर एक पिंजरा तथा दूसरी ओर एक पक्षी बनाइए या इनके चित्र चिपकाइए। मरोरिफिलड़कर उसमें एेंठन डालिए। अब धागे के दोनों सिरों को खींचिए ताकि धागे की एेंठन खुले व गत्ता तेरिफिलज़ी से घूमने लगे। गत्ते के घूमते समय क्या आपको पक्षी पिंजरे के अन्दर दिखाई देता है?
चित्र 16.16 : पिंजरे में पक्षी।
हम जो चलचित्र देखते हैं वह वास्तव में कुछ-कुछ भिन्न अनेक चित्रों का उपयुक्त क्रम में परदे पर प्रक्षेपण है। उन्हें नेत्र के सामने प्रायः 24 प्रतिबिंब प्रति सेकंड (16 प्रति सेकंड की दर से अधिक) की दर से परिवर्तित होते दिखाया जाता है। इस प्रकार हम चलचित्र देख पाते हैं।
नेत्रों को बाहरी वस्तुओं के प्रवेश से सुरक्षा देने के लिए प्रकृति ने पलकें प्रदान की हैं। पलकें बंद होकर अनावश्यक प्रकाश को भी नेत्रों में प्रवेश करने से रोक देती हैं।
नेत्र एक एेसा अद्भुत यंत्र है कि सामान्य नेत्र दूर स्थित वस्तुओं के साथ-साथ निकट की वस्तुओं को भी स्पष्टतया देख सकता है। वह न्यूनतम दूरी जिस पर नेत्र वस्तुओं को स्पष्टतया देख सकता है, आयु के साथ परिवर्तित होती रहती है। सामान्य नेत्र द्वारा परिफिलढ़ने के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक दूरी लगभग 25 cm होती है।
कुछ मनुष्य पास रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं परन्तु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाते। इसके विपरीत, कुछ मनुष्य निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते परन्तु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं। उचित संशोधक लेंसों के उपयोग द्वारा नेत्र के इन दृष्टि दोषों का संशोधन किया जा सकता है।
कभी-कभी, विशेष रूप से वृृद्धावस्था में नेत्रदृष्टि धुँधली हो जाती है। यह नेत्र लेंस के धुँधला हो जाने के कारण होता है। एेसा होने पर यह कहा जाता है कि नेत्र में मोतियाबिंद विकसित हो रहा है। इसके कारण दृष्टि कमजोर हो जाती है जो कभी-कभी अत्यधिक गंभीर रूप ले लेता है। इस दोष की चिकित्सा सम्भव है। अपारदर्शी लेंस को हटा कर नया कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है। आधुनिक प्राौद्योगिकी ने इस प्रक्रिया को और सरल एवं सुरक्षित बना दिया है।
16.8 नेत्रों की देखभाल
यह आवश्यक है कि आप अपने नेत्रों की उचित देखभाल करें। यदि कोई भी समस्या है तो आपको किसी नेत्र विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए। नेत्रों की नियमित जाँच कराइए।
- यदि परामर्श दिया गया है तो उचित चश्मे का उपयोग कीजिए।
- नेत्रों के लिए बहुत कम या बहुत अधिक प्रकाश हानिकारक है। अपर्याप्त प्रकाश से नेत्र-खिंचाव तथा सरदर्द हो सकता है। सूर्य या किसी शक्तिशाली लैम्प का अत्यधिक तीव्र प्रकाश, अथवा लेरिफिलज़र टार्च का प्रकाश रेटिना को क्षति पहुँचा सकता है।
- सूर्य या किसी शक्तिशाली प्रकाश स्रोत को कभी भी सीधा मत देखिए।
- अपने नेत्रों को कभी मत रगरिफिलड़िए। यदि आपके नेत्रों में कोई धूल का कण गिर जाए तो नेत्रों को स्वच्छ जल से धोइए। यदि कोई सुधार न हो तो डॉक्टर के पास जाइए।
- पठन सामग्री को सदैव दृष्टि की सामान्य दूरी पर रखकर परिफिलढ़िए। अपनी पुस्तक को नेत्रों के बहुत समीप लाकर अथवा उसे नेत्रों से बहुत दूर ले जाकर मत परिफिलढ़िए।
क्या आप जानते हैं?
जन्तुओं के नेत्र विभिन्न आकृतियों के होते हैं। केकरिफिलड़े के नेत्र बहुत छोटे होते हैं परन्तु इनके द्वारा केकरिफिलड़ा चारों ओर देख सकता है। इसलिए यदि शत्रु पीछे से भी उसकी ओर आता है तब भी उसे पता लग जाता है। तितली के बरिफिलड़े नेत्र होते हैं जो सहस्रों छोटे नेत्रों से मिलकर बने प्रतीत होते हैं (चित्र
16.17)। यह केवल सामने अथवा पार्श्व में ही नहीं बल्कि पीछे का भी देख सकती है।
उल्लू रात में भली भाँति देख सकता है परन्तु दिन में नहीं देख पाता। इसके विपरीत दिन के प्रकाश में सक्रिय पक्षी (चील, गरुरिफिलड़) दिन में अच्छी प्रकार देख सकते हैं लेकिन रात में ठीक से नहीं देख पाते। उल्लू के नेत्र में बरिफिलड़ा कॉर्निया तथा बरिफिलड़ी पुतली होती है, ताकि नेत्र में अधिक प्रकाश प्रवेश कर सके। इसी के साथ-साथ इसके रेटिना में बरिफिलड़ी संख्या में शलाकाएँ होती हैं तथा केवल कुछ ही शंकु होते हैं। इसके विपरीत दिन के पक्षियों के नेत्रों में शंकु अधिक तथा शलाकाएँ कम
होती हैं।
चित्र 16.17: तितली के नेत्र।
कक्षा VI में आपने संतुलित आहार के बारे में सीखा था। यदि भोजन में किसी अवयव का अभाव है तो इससे नेत्रों को भी क्षति हो सकती है। भोजन में विटामिन A का अभाव नेत्रों के अनेक रोगों के लिए उत्तरदायी होता है। इनमें सबसे अधिक सामान्य रोग रतौंधी है।
इसलिए हमें अपने आहार में विटामिन A युक्त अवयवों को सम्मिलित करना चाहिए। कच्ची गाजर, फूलगोभी तथा हरी सब्जियाँ (जैसे पालक) तथा कॉड-लीवर तेल मेें विटामिन A की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। अंडे, दूध, दही, पनीर, मक्खन एवं फल जैसे आम तथा पतीता भी विटामिन A से भरपूर होते हैं।
16.9 चाक्षुष-विकृति वाले व्यक्ति परिफिलढ़-लिख सकते हैं
कुछ व्यक्ति जिनमें बच्चे भी सम्मिलित हैं, चाक्षुषी (दृष्टि सम्बंधी)-अक्षमता से पीरिफिलड़ित होते हैं। उनकी वस्तुओं को देखने के लिए सीमित दृष्टि होती है। कुछ व्यक्ति जन्म से ही बिलकुल नहीं देख पाते। कुछ व्यक्ति किसी बीमारी या किसी चोट के कारण अपनी दृष्टि खो देते हैं। एेसे व्यक्ति स्पर्श द्वारा अथवा ध्वनियों को ध्यानपूर्वक सुनकर वस्तुओं को पहचानने का प्रयत्न करते हैं। वे अपनी दूसरी ज्ञानेन्द्रियों को अधिक विकसित कर लेते हैं। तथापि, अतिरिक्त संसाधन उन्हें अपनी क्षमताओं को और अधिक विकसित करने में सक्षम बना सकते हैं।
चाक्षुष- विकृति वाले व्यक्तियों के लिए अप्रकाशिक साधन तथा प्रकाशिक साधन
अप्रकाशिक साधनों में चाक्षुष साधन, स्पर्श साधन (स्पर्श की ज्ञानेन्द्रिय का उपयोग करके), श्रवण साधन (श्रवण की ज्ञानेन्द्रिय का उपयोग करके) तथा इलेक्ट्रॉनिक साधन सम्मिलित हैं।
चाक्षुष साधन शब्दों को आवर्धित कर सकते हैं, उचित तीव्रता का प्रकाश प्रदान कर सकते हैं तथा सामग्री को उचित दूरी पर जुटा सकते हैं। स्पर्श साधन जिनमें ब्रैल लेखन पाटी तथा शलाका सम्मिलित हैं, चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्तियों को परिफिलढ़ने तथा लिखने में सहायता करते हैं। श्रवण साधनों में कैसेट, टेपरिकोर्डर, बोलने वाली पुस्तकें तथा एेसे अन्य साधन सम्मिलित हैं। बोलने वाले कैलकुलेटर तथा कम्प्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक साधन भी उपलब्ध हैं जिनसे अनेक संगणना कार्य किए जा
सकते हैं। बंद परिपथ टेलीविरिफिलज़न भी एक इलेक्ट्रॉनिक साधन है जो मुद्रित सामग्री को उचित विपर्यास (कंट्रास्ट) तथा प्रदीप्ति के साथ आवर्धित करता है। आजकल श्रवण सीडी (CD) तथा कम्प्यूटरों के साथ वाक्यंत्र भी वांछित विषय को सुनने तथा लिखने में अत्यधिक सहायक हैं।
प्रकाशिक साधनों में द्वि-.फोकसी लेंस, संस्पर्श लेंस, रंजित लेंस, आवर्धक तथा दूरबीनी साधन सम्मिलित हैं। जबकि लेंसों के संयोजन चाक्षुष सीमाबन्धन के संशोधन के लिए उपयोग किए जाते हैं। दूरबीनी साधन चॉक बोर्ड तथा कक्षा प्रदर्शनों को देखने के लिए उपलब्ध हैं।
16.10 ब्रैल पद्धति क्या है?
चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय साधन ब्रैल कहलाता है।
लुई ब्रैल जो स्वयं एक चक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति थे, ने चक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों के लिए एक पद्धति विकसित की तथा इसे 1821 में प्रकाशित किया।
वर्तमान पद्धति 1932 में अपनाई गई। सामान्य भाषाओं, गणित तथा वैज्ञानिक विचारों के लिए ब्रैल कोड है। ब्रैल पद्धति का उपयोग करके अनेक भारतीय भाषाओं को परिफिलढ़ा जा सकता है।
ब्रैल पद्वति में 63 बिंदुकित पैटर्न अथवा छाप हैं। प्रत्येक छाप एक अक्षर, अक्षरों के समुच्चय, सामान्य शब्द अथवा व्याकरणिक चिह्न को प्रदर्शित करती है। बिंदुओं को ऊर्ध्वाधर पंक्तियों के दो कक्षों में व्यवस्थित किया गया है। प्रत्येक पंक्ति में तीन बिंदु हैं।
अंग्रेजी वर्णमाला के कुछ अक्षरों तथा कुछ सामान्य शब्दों को प्रदर्शित करने के लिए बिंदुकित पैटर्न नीचे दर्शाया गया है।
इन पैटर्न को जब ब्रैल शीट पर उभारा जाता है तो ये चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों को छूकर शब्दों को पहचानने में सहायता करते हैं। स्पर्श को आसान बनाने के लिए बिंदुओं को थोरिफिलड़ा सा उभार दिया जाता है।
चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति ब्रैल पद्धति को अक्षरों से सीखना प्रारम्भ करता है। इसके पश्चात विशेष छापों एवं अक्षरों के संयोजनों को पहचानता है। सीखने की विधियाँ स्पर्श से पहचान करने पर निर्भर होती हैं। प्रत्येक छाप को स्मरण करना परिफिलड़ता हैं। ब्रैल पाठों को हाथ या मशीन से तैयार किया जा सकता है। आजकल टाइपराइटर जैसी युक्तियाँ तथा मुद्रण मशीनें विकसित की गई हैं।
हेलन ए. केलर
कुछ चाक्षुषविकृति युक्त भारतीयों को महान उपलब्धियाँ प्राप्त करने का श्रेय है। दिवाकर नामक एक प्रतिभासम्पन्न बालक ने गायक के रूप में आश्चर्यजनक प्रदर्शन दिए हैं।
जन्म से पूर्णतया चाक्षुषविकृति युक्त श्री रविन्द्र जैन ने इलाहाबाद से अपनी संगीत प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने एक गीतकार, संगीतकार तथा गायक के रूप में अपनी श्रेष्ठता को दर्शाया है। श्री लाल आडवाणी जो स्वयं चाक्षुषविकृति युक्त हैं, ने भारत में विकलांगों के पुनर्वास तथा विशिष्ट शिक्षा के लिए एक संस्था की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने यूनेस्को में ब्रैल समस्याओं पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अमेरिका की एक लेखिका एवं प्राध्यापिका हेलन ए. केलर सम्भवतः सर्वविदित तथा प्रेरक चाक्षुष विकृति युक्त महिला हैं। 18 महीने की आयु में उन्होंने दृष्टि खो दी थी। लेकिन उनके संकल्प तथा साहस के कारण वह एक विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण कर सकीं। ‘‘स्टोरी अॉफ माई लाइ.फ’’ (1903) सहित उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं।
अभ्यास
1. मान लीजिए आप एक अंधेरे कमरे में हैं। क्या आप कमरे में वस्तुओं को देख सकते हैं? क्या आप कमरे के बाहर वस्तुओं को देख सकते हैं। व्याख्या कीजिए।
2. नियमित तथा विसरित परावर्तन में अन्तर बताइए। क्या विसरित परावर्तन का अर्थ है कि परावर्तन के नियम विफल हो गए हैं?
3. निम्न में से प्रत्येक के स्थान के सामने लिखिए, यदि प्रकाश की एक समान्तर किरण-पुंज इनसे टकराए तो नियमित परावर्तन होगा या विसरित परावर्तन होगा। प्रत्येक स्थिति में अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
(क) पॉलिश युक्त लकरिफिलड़ी की मेज (ख) चॉक पाउडर
(ग) गत्ते का पृष्ठ
(घ) संगमरमर के फर्श पर फैला जल
(ङ) दर्पण (च) कागज का टुकरिफिलड़ा
4. परावर्तन के नियम बताइए।
5. यह दर्शाने के लिए कि आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलंब एक ही तल में होते हैं, एक क्रियाकलाप का वर्णन कीजिए।
6. नीचे दिए गए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए–
(a) एक समतल दर्पण के सामने 1m दूर खरिफिलड़ा एक व्यक्ति अपने प्रतिबिंब से m दूर दिखाई देता है।
(b) यदि किसी समतल दर्पण के सामने खरिफिलड़े होकर आप अपने दाएँ हाथ से अपने कान को छुएँ तो दर्पण में एेसा लगेगा कि आपका दायाँ कान हाथ से छुआ गया है।
(c) जब आप मंद प्रकाश में देखते हैं तो आपकी पुतली का साइरिफिलज़ हो जाता है।
(d) रात्रि पक्षियों के नेत्रों में शलाकाओं की संख्या की अपेक्षा शंकुओं की संख्या होती है।
प्रश्न 7 तथा 8 में सही विकल्प छाँटिए–
7. आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है–
(क) सदैव (ख) कभी-कभी
(ग) विशेष दशाओं में (ग) कभी नहीं
8. समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिंब होता है–
(क) आभासी, दर्पण के पीछे तथा आवर्धित।
(ख) आभासी, दर्पण के पीछे तथा बिंब के साइरिफिलज़ के बराबर।
(ग) वास्तविक, दर्पण के पृष्ठ पर तथा आवर्धित।
(घ) वास्तविक, दर्पण के पीछे तथा बिंब के साइरिफिलज़ के बराबर।
9. कैलाइडोस्कोप की रचना का वर्णन कीजिए।
10. मानव नेत्र का एक नामांकित रेखाचित्र बनाइए।
11. गुरमीत लेरिफिलज़र टॉर्च के द्वारा क्रियाकलाप 16.8 को करना चाहता था। उसके अध्यापक ने एेसा करने से मना किया। क्या आप अध्यापक की सलाह के आधार की व्याख्या कर सकते हैं?
12. वर्णन कीजिए कि आप अपने नेत्रों की देखभाल कैसे करेंगे।
13. यदि परावर्तित किरण आपतित किरण से 900 का कोण बनाए तो आपतन कोण का मान कितना होगा?
14. यदि दो समान्तर समतल दर्पण एक-दूसरे से 40 cm के अन्तराल पर रखे हों तो इनके बीच रखी एक मोमबत्ती के कितने प्रतिबिंब बनेंगे?
15. दो दर्पण एक-दूसरे के लंबवत् रखे हैं। प्रकाश की एक किरण एक दर्पण पर 300 के कोण पर आपतित होती है जैसा कि चित्र 16.19 में दर्शाया गया है। दूसरे दर्पण से परावर्तित होने वाली परावर्तित किरण बनाइए।
चित्र 16.19
16. चित्र 16.20 में दर्शाए अनुसार बूझो एक समतल दर्पण के ठीक सामने पार्श्व से कुछ हटकर एक किनारे A पर खरिफिलड़ा होता है। क्या वह स्वयं को दर्पण में देख सकता है? क्या वह P, Q तथा R पर स्थित वस्तुओं के प्रतिबिंब भी देख सकता है?
चित्र 16.20
17. (a) A पर स्थित किसी वस्तु के समतल दर्पण में बनने वाले प्रतिबिंब की स्थिति ज्ञात कीजिए
(b) क्या स्थिति B से पहेली प्रतिबिंब को देख सकती है?
(c) क्या स्थिति C से बूझो इस प्रतिबिंब को देख सकता है?
(d) जब पहेली B से C पर चली जाती है तो A का प्रतिबिंब किस ओर खिसक जाता है?
विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप एवं परियोजनाएँ
1. अपना स्वयं का दर्पण बनाइए। एक काँच की पट्टी अथवा काँच की सिल्ली (स्लैब) लीजिए। इसे सारिफिलफ़ कीजिए और एक स.फेद कागरिफिलज़ की शीट पर रखिए। काँच में अपने आपको देखिए। अब काँच की सिल्ली को एक काले कागरिफिलज़ की शीट पर रखिए। फिर से काँच में देखिए। किस स्थिति में आप अपने आपको अच्छी प्रकार देख पाते हैं और क्यों?
2. कुछ चाक्षुषविकृति युक्त विद्यार्थियों से मित्रता कीजिए। उनसे पूछिए कि वे किस प्रकार परिफिलढ़ते तथा लिखते हैं। यह भी ज्ञात कीजिए कि वे वस्तुओं, बाधाओं तथा मुद्रा के विभिन्न नोटों को कैसे पहचानते हैं।
3. किसी नेत्र विशेषज्ञ से मिलिए। अपनी दृष्टि क्षमता की जाँच कराइए तथा अपने नेत्रों की देखभाल के बारे में विचार-विमर्श कीजिए।
4. अपने पास-परिफिलड़ोस का सर्वेक्षण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि 12 वर्ष से कम आयु के कितने बच्चे चश्मा लगाते हैं। उनके माता-पिता से पता लगाइए कि उनके बच्चों की दृष्टि क्षीण होने का क्या कारण है।
क्या आप जानते हैं?
नेत्रदान किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। यह चाक्षुषविकृति युक्त कॉर्निया-अंधता से पीरिफिलड़ित व्यक्तियों के लिए एक बहुमूल्य भेंट है। नेत्रदान करने वाला व्यकति :
(a) किसी भी लिंग का हो सकता है (स्त्री अथवा पुरुष)।
(b) किसी भी आयु का हो सकता है।
(c) किसी भी सामाजिक स्तर का हो सकता है।
(d) चश्मा पहनने वाला हो सकता है।
(e) किसी भी सामान्य बीमारी से पीरिफिलड़ित हो सकता है लेकिन एड्स (AIDS), हेपेटाइटिस B या C, जलभीति (Rabies), ल्यूकीमिया, लिम्फोमा, धनुस्तम्भ (Tetanus), हैजा, मस्तिष्क शोध (Encephalitis) से पीरिफिलड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते।
नेत्रदान मृत्यु के 4-6 घण्टे के अन्दर किसी स्थान, घर अथवा अस्पताल में किया जा सकता है।
जो व्यक्ति नेत्रदान करना चाहता है उसे अपने जीवन-काल में ही किसी पंजीकृत नेत्र बैंक के पास प्रतिज्ञा लेकर अपने नेत्र धरोहर रखने होते हैं। अपनी इस प्रतिज्ञा के बारेमें उसे अपने निकट संबंधियों को भी सूचित कर देना चाहिए जिससे उसकी मृत्यु के पश्चात् आवश्यक कार्यवाही की जा सके।
आप एक ब्रैल किट भी दान दे सकते हैं।