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तारे एवं सौर परिवार


र्मियों की छुट्टियों में पहेली तथा बूझो अपने दादा-दादी के गाँव गए। रात्रि का भोजन करने के पश्चात् वे घर की छत पर गए। उस दिन आकाश स्वच्छ था, बादल नहीं थे। वे आकाश में अत्यधिक संख्या में चमकीले तारे देखकर आश्चर्यचकित हो उठे। अपने शहर में उन्होंने एेसा सुन्दर दृश्य कभी नहीं देखा था (चित्र 17.1)।

पहेली यह जानना चाहती थी कि बरिफिलड़े शहरों के आकाश से गाँव का आकाश इतना भिन्न क्यों है। उसके दादा जी ने यह स्पष्ट किया कि चमकीले प्रकाश, धुएँ तथा धूल के कारण, बरिफिलड़े शहरों में तो स्वच्छ आकाश विरले ही दिखाई देते हैं। उन्होंने रात्रि के आकाश में कुछ आकाशीय पिंडों की पहचान कर उनसे सम्बंधित कहानियाँ सुनाईं। रात्रि के आकाश का अवलोकन करना चित्ताकर्षक वहीं हो सकता है जहाँ वातावरण स्वच्छ हो तथा चमकीला प्रकाश न हो।


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चित्र 17.1 : रात्रि का आकाश।

किसी स्वच्छ अंधेरी रात्रि में आकाश की ओर दृष्टि डालिए। आपको समस्त आकाश में बिंदुओं के समान असंख्य तारे दिखाई देंगे जिनमें कुछ बहुत चमकीले और कुछ अपेक्षाकृत मंद होंगे। इनका सावधानीपूर्वक प्रेक्षण कीजिए। क्या ये सभी टिमटिमाते प्रतीत होते हैं? क्या आपको तारे जैसा कोई एेसा पिंड दिखाई देता है जो टिमटिमा न रहा हो? इनमें जो पिंड टिमटिमाते नहीं दिखते, वे ग्रह हैं।

रात्रि के आकाश में सबसे अधिक प्रदीप्त पिंड चन्द्रमा है। तारे, ग्रह, चन्द्रमा तथा आकाश के बहुत से अन्य पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं।

खगोलीय पिंडों और उनसे संबंधित परिघटनाओं के अध्ययन को खगोलिकी कहा जाता है। प्राचीन भारत में हमारे पूर्वजों ने आकाश का सुव्यवस्थित रूप में अध्ययन किया। उस काल में खगोलिकी का उनका ज्ञान उन्नत था। सूर्य, तारों, चंद्रमा और ग्रहों की गति के सम्बन्ध में उनका ज्ञान सही कैलेंडर और पंचाग सृजित करने में सहायक रहा है। इनसे लोगों को अपनी दिनचर्या बनाने में सहायता मिली। कैलेंडर और पंचांगों से लोगों को फसलों के चुनाव और उनके बुवाई के समय के लिए जलवायु और वर्षा के पैटर्न की समझ में बरिफिलढ़ोत्तरी हुई। तथा इस प्रकार से मौसम और पर्वों की तिथियाँ भी निश्चित हुईं। इस अध्याय में हम आकाशीय पिंडों का अवलोकन कर उनके बारे में जानेंगे।

17.1 चन्द्रमा

क्रियाकलाप 17.1

रात्रि में चन्द्रमा का प्रतिदिन प्रेक्षण कीजिए। यदि सम्भव हो तो एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक अपनी नोटबुक में हर रात्रि को चन्द्रमा की रूपरेखा खींचिए तथा पूर्णिमा के दिन से व्यतीत दिनों की संख्या को भी नोट कीजिए। प्रतिदिन यह भी नोट कीजिए कि आकाश के किस भाग (पूर्व अथवा पश्चिम) में चन्द्रमा दिखाई दिया है।

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चित्र 17.2 :  चन्द्रमा की कलाएँ।


क्या चन्द्रमा की आकृति में प्रतिदिन परिवर्तन होता है? क्या एेसे भी दिन है जब चन्द्रमा की आकृति पूर्णतः गोल प्रतीत होती है? क्या एेसे भी दिन हैं जब स्वच्छ आकाश होने पर भी चन्द्रमा को नहीं देखा जा सकता?

उस दिन को जब चन्द्रमा की पूर्ण चक्रिका दिखाई देती है, पूर्णिमा कहते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक रात्रि को चन्द्रमा का चमकीला भाग घटता चला जाता है। पंद्रहवें दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं परिफिलड़ता। इस दिन को अमावस्या कहते हैं। अगले दिन, चन्द्रमा का एक छोटा भाग आकाश में दिखाई देता है। इसे बालचन्द्र कहते हैं। इसके पश्चात फिर प्रतिदिन चन्द्रमा बरिफिलड़ा होता जाता है। पंद्रहवें दिन एक बार फिर से हम चन्द्रमा का पूरा दृश्य देखते हैं।

पूरे माह तक दिखाई देने वाली चन्द्रमा की प्रदीप्त भाग की विभिन्न आकृतियों को चन्द्रमा की कलाएँ कहते हैं (चित्र 17.2)।

चंद्रमा की कलाओं की हमारे सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में लगभग सभी पर्वों को चंद्रमा की कलाओं के अनुसार मनाया जाता है। उदाहरण के लिए, दीवाली को अमावस्या पर मनाया जाता है; बुध पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती पूर्णिमा पर मनाई जाती हैं; महा शिवरात्रि को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है; बालचंद्र (शुक्ल पक्ष की प्रथमा) के दर्शन के अगले दिन ईद-उल-फितर मनाई जाती है आदि।

एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक की अवधि 29 दिन से कुछ अधिक होती है। बहुत से कैलेण्डरों में इस अवधि को एक माह कहते हैं।

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चन्द्रमा अपनी आकृति में प्रतिदिन परिवर्तन क्यों करता है?



आइए यह जानने का प्रयास करें कि चन्द्रमा की कलाएँ क्यों दिखाई देती हैं। अध्याय 16 में आपने यह परिफिलढ़ा है कि चन्द्रमा, सूर्य तथा अन्य तारों की भांति अपना प्रकाश उत्पन्न नहीं करता। हमें चन्द्रमा इसलिए दिखाई देता है क्योंकि यह अपने पर परिफिलड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को हमारी ओर परावर्तित कर देता है (चित्र 17.3)। इसीलिए, हम चन्द्रमा के उसी भाग को देख पाते हैं जिस भाग से सूर्य का परावर्तित प्रकाश हम तक पहुँचता है।

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चित्र 17.3 : सूर्य के परातवर्तित प्रकाश के कारण चन्द्रमा दिखाई देता है।


क्रियाकलाप 17.2

एक बरिफिलड़ी गेंद अथवा घरिफिलड़ा लीजिए। इसके आधे भाग को सफेद तथा आधे भाग को काले पेंट से पोतिए।

अपने दो मित्रों के साथ खेल के मैदान में जाइए। मैदान में लगभग 2 m त्रिज्या का वृत्त खींचिए। चित्र 17.4 में दर्शाए अनुसार इस वृत्त को आठ बराबर भागों में बाँटिए।

वृत्त के केन्द्र पर खरिफिलड़े होइए। अपने मित्र से गेंद को पकरिफिलड़कर वृत्त के विभिन्न बिन्दुओं पर खरिफिलड़े होने को कहिए। उससे कहिए कि वह घरिफिलड़े के सफेद भाग को सदैव सूर्य के सामने रखे। यदि आप इस क्रियाकलाप को प्रातःकाल के समय कर रहे हैं तो गेंद के सफेद भाग को पूर्व दिशा में रखना चाहिए। यदि आप इस क्रियाकलाप को सायं काल के समय कर रहे है तो गेंद के सफेद भाग को पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। प्रत्येक प्रकरण में सफेद तथा काले भागों को विभाजित करने वाली रेखा ऊर्ध्वाधर होनी चाहिए।

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वृत्त के केन्द्र पर खरिफिलड़े रहकर गेंद के सफेद दृश्य भाग का प्रेक्षण कीजिए तथा इसकी आकृति अपनी नोटबुक में खींचिए। इन आकृतियों की तुलना चित्र 17.5 में दर्शायी गई चन्द्रमा की कलाओं से कीजिए।

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चित्र 17.4 : अपनी कक्षा में विभिन्न स्थितियों पर चन्द्रमा भिन्न-भिन्न प्रतीत होता है।


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चित्र 17.5 : अपनी कक्षा में चन्द्रमा की स्थितियाँ एवं संबंधित कलाएँ।


याद रखिए, चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। पृथ्वी चन्द्रमा सहित सूर्य की परिक्रमा करती है (चित्र 17.6)।

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चित्र 17.6 : पृथ्वी चन्द्रमा के साथ सूर्य की परिक्रमा करते हुए।

क्या अब आप पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी की सापेक्ष स्थितियों का अनुमान लगा सकते हैं? इनकी स्थितियों को अपनी नोटबुक में आरेखित कीजिए। पूर्ण चन्द्रमा देखने के लिए आप आकाश के किस भाग में देखेंगे?

बालचन्द्र के पश्चात पृथ्वी से देखने पर प्रतिदिन चन्द्रमा के प्रदीप्त भाग में वृद्धि होती जाती है। पूर्णिमा के पश्चात पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा का सूर्य द्वारा प्रदीप्त भाग प्रतिदिन आकार में घटता जाता है।

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मैने सुना है कि कि हम पृथ्वी से चन्द्रमा के पीछे की ओर के भाग को कभी नहीं देखते। क्या यह सही है?

 

क्रियाकलाप 17.3

धरती पर लगभग 1m व्यास का एक वृत्त खींचिए। अपने किसी मित्र से इस वृत्त के केन्द्र पर खरिफिलड़े रहने के लिए कहिए। आप अपने मित्र की परिक्रमा इस प्रकार कीजिए कि आपका मुख सदैव उसकी ओर ही रहे। क्या आपका मित्र आपकी पीठ देख सकता है? एक परिक्रमा करने में आपने कितने घूर्णन पूरे किए? चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा इसी ढंग से करता है।

चन्द्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करने में अपने अक्ष पर एक घूर्णन पूरा करता है।

चन्द्रमा का पृष्ठ

कवियों तथा कहानीकारों के लिए चन्द्रमा एक चित्ताकर्षक पिंड है। परन्तु जब अन्तरिक्षयात्रियों ने चन्द्रमा पर कदम रखे तो उन्होंने चन्द्रमा के पृष्ठ को धूल भरा तथा निर्जन पाया। उस पर विभिन्न आमापों के गर्त हैं। इस पर बहुत से खरिफिलड़ी ढाल वाले ऊँचे पर्वत भी हैं (चित्र 17.7)। इनमें से कुछ पर्वत तो ऊँचाई में पृथ्वी के सर्वाधिक ऊँचाई के पर्वतों के समान हैं।

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चित्र 17.7 : चन्द्रमा का पृष्ठ।

चन्द्रमा पर न तो वायुमण्डल है और न ही जल। क्या चन्द्रमा पर किसी प्रकार के जीवन की संभावना हो सकती है।


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अध्याय 13 में हमने यह सीखा था कि जब कोई माध्यम नहीं होता तो ध्वनि गमन नहीं कर सकती। तब फिर हम चन्द्रमा पर किसी ध्वनि को कैसे सुन सकते हैं?



क्या आप जानते हैं?

21 जुलाई 1969 को अमेरिका के अन्तरिक्षयात्री नील आर्मस्ट्राँग ने सबसे पहले चन्द्रमा पर अपने कदम रखे। उनके बाद एडविन एल्डरिन चन्द्रमा पर उतरे।

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NASA

चित्र 17.8 : चन्द्रमा पर अन्तरिक्षयात्री।


17.2 तारे

रात्रि के आकाश में आप अन्य कौन सी वस्तुएँ देखते हैं? आकाश में असंख्य तारे हैं। बरिफिलड़े शहर से दूर किसी अँधियारी रात को आकाश का सावधानीपूर्वक प्रेक्षण कीजिए। क्या सभी तारे समान रूप से चमकीले हैं? क्या सभी तारों का रंग एक जैसा है? वास्तव में, तारे अपना प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। सूर्य भी एक तारा है। अन्य तारों की तुलना मेंसूर्य इतना अधिक बरिफिलड़ा क्यों दिखाई देता है?

आपके पास रखी फुटबाल अथवा 100 m दूरी पर रखी फुटबाल में से कौन बरिफिलड़ी प्रतीत होती है? तारे सूर्य की तुलना में लाखों गुना अधिक दूर हैं। इसीलिए तारे हमें बिन्दुजैसे प्रतीत होते हैं।

सूर्य पृथ्वी से लगभग 150,000,000 किलोमीटर (15 करोरिफिलड़ किलोमीटर) दूर है।

सूर्य के पश्चात दूसरा निकटतम तारा प्राक्सिमा सेन्टॉरी है। इसकी दूरी पृथ्वी से लगभग 40,000,000,000,000 km है। क्या आप इस दूरी को आसानी से परिफिलढ़ सकते हैं? कुछ तारे तो इससे भी कहीं अधिक दूर हैं।

इतनी अधिक दूरियों को लम्बाई के अन्य मात्रप्रकाश वर्ष में व्यक्त करते हैं। यह प्रकाश द्वारा एक वर्ष में चली गई दूरी है। याद कीजिए, प्रकाश की चाल 300,000 किलोमीटर प्रति सेकंड है। इस प्रकार सूर्य की पृथ्वी से दूरी लगभग 8 प्रकाश मिनट है। एेल्फा सेन्टॉरी लगभग 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है।



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यदि तारों का प्रकाश हमारे पास तक पहुँचने में वर्षों का समय लेता है तो तारों को देखते समय क्या हम अपने अतीत को देख रहे होते हैं? 



वास्तव में, दिन के समय भी आकाश में तारे होते हैं। तथापि, उस समय सूर्य के तीव्र प्रकाश के कारण वे हमें दिखाई नहीं देते।


कुछ प्रमुख तारों अथवा तारों के समूह का आकाश में लगभग दो घंटे अथवा अधिक समय तक प्रेक्षण कीजिए। आपको क्या पता चलता है? क्या आप आकाश में तारों की स्थितियों में कोई परिवर्तन होता हुआ पाते हैं?

आप यह पाएँगे कि तारे पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते प्रतीत होते हैं। कोई तारा जो सूर्यास्त होते ही पूर्व में उदय होता है सामान्यतः सूर्योदय से पहले ही पश्चिम में अस्त हो जाता है।

तारे पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते क्यों प्रतीत होते हैं? आइए पता लगाएँ।

क्रियाकलाप 17.4

किसी बरिफिलड़े कमरे के बीच में खरिफिलड़े होकर घूर्णन कीजिए। कमरे में रखी वस्तुएँ किस दिशा में गति करती प्रतीत होती हैं? क्या आप इन वस्तुओं को अपनी गति के विपरीत दिशा में गतिमान पाते हैं?

पहेली याद करती है, जब वह किसी चलती रेलगारिफिलड़ी में होती है तो निकट के वृक्ष तथा भवन पीछे की दिशा में जाते प्रतीत होते हैं।

यदि हमें तारे पूर्व से पश्चिम की ओर गमन करते प्रतीत होते हैं तो क्या इसका अर्थ है कि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में घूर्णन करती है?


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मेरे दादाजी ने मुझे बताया था कि आकाश में एक एेसा तारा है जो एक ही स्थान पर स्थिर दिखाई देता है। यह कैसे संभव होता है?


क्रियाकलाप 17.5

एक छाता लीजिए और इसे खोलिए। कागरिफिलज़ को काटकर लगभग 10-15 तारे बनाइए। छाते की केन्द्रीय छरिफिलड़ की स्थिति पर एक तारा चिपकाइए। छाते के प्रत्येक तार (स्पोक) के सिरे के निकट कपरिफिलड़े पर अन्य पर तारों को चिपकाइए।

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चित्र 17.9 : ध्रुव तारा गति करता प्रतीत नहीं होता।

अब छाते की केन्द्रीय छरिफिलड़ को अपने हाथ में पकरिफिलड़कर घुमाइए तथा छाते पर चिपकाए सभी तारों का प्रेक्षण कीजिए। क्या कोई एेसा तारा है जो गति करता प्रतीत नहीं होता? यह तारा कहाँ स्थित है?


यदि कोई तारा वहाँ स्थित होता जहाँ आकाश में पृथ्वी का अक्ष मिलता है, तो क्या वह तारा भी स्थिर होता?

वास्तव में ध्रुव तारा एक एेसा ही तारा है जो पृथ्वी के अक्ष की दिशा में स्थित है। यह गति करता प्रतीत नहीं होता (चित्र 17.10)।

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चित्र 17.10 : ध्रुव तारा पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के निकट स्थित है।


17.3 तारामण्डल

कुछ समय तक आकाश का प्रेक्षण कीजिए। क्या कुछ तारे चित्र 17.11 में दर्शाए अनुसार आकृतियों के समूह बनाए हुए हैं।

पहचाने जाने योग्य आकृतियों वाले तारों के समूह को तारामण्डल कहते हैं।

प्राचीन काल में मनुष्यों ने आकाश में तारों को पहचानने के लिए तारामण्डलों की अभिकल्पना की। तारामण्डलों की आकृतियाँ उन व्यक्तियों की सुपरिचित वस्तुओं के सदृश थीं।

रात्रि के आकाश में कुछ तारामण्डलों की आप आसानी से पहचान कर सकते हैं। इसके लिए आपको यह जानना होगा कि कोई विशिष्ट तारामण्डल कैसा दिखाई देता है और रात्रि के आकाश में उसे कहाँ देखना होगा।

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(a) ग्रेट बियर (b) ओरॉयन (c) कैसियोपिया (d) लिओ मेजर

चित्र 17.11 : रात्रि के आकाश में कुछ तारामण्डल।

सर्वविख्यात तारामण्डलों में से एक विख्यात तारामण्डल सप्तर्षि [(चित्र 17.11(a)] है जिसे आप गर्मियों में रात्रि के प्रथम प्रहर में देख सकते हैं।

इस तारामण्डल को ‘बिग डिपर,’ ‘ग्रेट बीयर’ अथवा अर्सामेजर भी कहते हैं। इस तारामण्डल में सात सुस्पष्ट तारे होते हैं। यह बरिफिलड़ी कलछी अथवा प्रश्नचिह्न जैसा प्रतीत होता है। इस कलछी की हत्थी में तीन तथा कटोरी में चार तारे होते हैं (चित्र 17.12)।

सभी प्राचीन संस्कृतियों में, विभिन्न नक्षत्रों के सम्बन्ध में दिलचस्प पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।


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चित्र 17.12 : प्राचीन काल में जल पीने के लिए उपयोग होने वाली कलछी।


सप्तार्षि

सप्तार्षि, सात प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय संतों या ऋषियों के नामों के साथ संबद्ध है, जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार, सप्तर्षि नक्षत्र वेदों के शाश्वत ज्ञान को इंगित करते हैं।

 

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क्रियाकलाप 17.6

कुछ घंटों तक इस तारामण्डल का प्रेक्षण कीजिए। क्या आप इसकी आकृति में कोई परिवर्तन देखते हैं? क्या आप इसकी स्थिति में कोई परिवर्तन देखते हैं? आप यह प्रेक्षण करेंगे कि इस तारामण्डल की आकृति समान रहती है। आप यह भी पाएँगे कि यह तारामण्डल पूर्व से पश्चिम की ओर गति करता प्रतीत होता है।



क्रियाकलाप 17.7

इस क्रियाकलाप को गर्मियों में रात्रि के समय लगभग 9.00 बजे उस दिन कीजिए जब आकाश में चन्द्रमा न हो। आकाश के उत्तरी भाग का प्रेक्षण करके सप्तर्षि को पहचानिए। इस कार्य में आप अपने परिवार के बरिफिलड़ों की सहायता ले सकते हैं। सप्तर्षि के सिरे के दो तारों को देखिए। चित्र 17.13 में दर्शाए अनुसार इन दोनों तारों से गुजरने वाली सरल रेखा की कल्पना कीजिए। इस काल्पनिक रेखा को उत्तर दिशा में आगे बरिफिलढ़ाइए (इन दो तारों के बीच की दूरी का लगभग पाँच गुना)। यह रेखा एक एेसे तारे पर पहुँचती है जो अधिक चमकीला नहीं है। यह ध्रुव तारा है। ध्रुव तारे का कुछ समय तक प्रेक्षण कीजिए। नोट कीजिए कि यह तारा अन्य तारों की भांति पूर्व से पश्चिम की ओर गति नहीं करता।

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चित्र 17.13 : ध्रुव तारे की स्थिति ज्ञात करना।

क्रियाकलाप 17.8

गर्मियों में किसी दिन रात्रि के समय 2 से 3 घंटे के अंतराल में सप्तर्षि का 3-4 बार प्रेक्षण कीजिए। हर बार ध्रुव तारे का स्थान भी निर्धारित कीजिए। क्या सप्तर्षि पूर्व से पश्चिम की ओर गमन करता है? क्या यह ध्रुव तारे की परिक्रमा करता दिखाई देता है? अपने प्रेक्षणों की तुलना चित्र 17.14 में दर्शायी स्थितियों से कीजिए।

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चित्र 17.14 :  सप्तर्षि ध्रुव तारे की परिक्रमा करता है।


वास्तव में सभी तारे ध्रुव तारे की परिक्रमा करते प्रतीत होते हैं।

ध्यान दीजिए, ध्रुव तारा दक्षिणी गोलार्ध से नहीं दिखाई देता। सप्तर्षि जैसे उत्तरी गोलार्ध के कुछ तारामण्डल भी दक्षिणी गोलार्ध के कुछ स्थानों से नहीं दिखाई देते।

ओरॉयन एक अन्य विख्यात तारामण्डल है जिसे हम सर्दियों में मध्यरात्रि में देख सकते हैं। यह आकाश में सर्वाधिक भव्य तारामण्डलों में गिना जाता है। इसमें भी सात अथवा आठ चमकीले तारे हैं (चित्र 17.11 (b)। ओरॉयन को शिकारी भी कहते हैं। इसके तीन मध्य के तारे शिकारी की बेल्ट (पेटी) को निरूपित करते हैं। चार चमकीले तारे चतुर्भुज के रूप में व्यवस्थित दिखाई देते हैं।

आकाश में सबसे अधिक चमकीला तारा, सीरियस (लुब्धक), ओरॉयन के निकट दिखाई देता है। सीरियस को ढूँरिफिलढ़ने के लिए ओरॉयन के मध्य के तीन तारों से गुजरने वाली रेखा की कल्पना कीजिए तथा इसके अनुदिश पूर्व दिशा की ओर देखिए। इस रेखा के अनुदिश आपको एक अत्यंत चमकीला तारा दिखाई देगा। यह सीरियस है (चित्र 17.15)।

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चित्र 17.15 : सीरियस की स्थिति ज्ञात करना।

उत्तरी आकाश में एक अन्य प्रमुख तारामण्डल कैसियोपिया है। यह सर्दियों में रात्रि के प्रथम प्रहर में दिखाई देता है। यह अग्रेजी के अक्षर W अथवा M के बिगरिफिलड़े (विकृत) रूप जैसा दिखाई देता है चित्र 17.11(c)। 

क्या आप जानते हैं?

किसी तारामण्डल में केवल 5-10 तारे ही नहीं होते। इसमें बहुत सारे तारे होते हैं (चित्र 17.16)। तथापि, हम अपनी नंगी आँखों से किसी तारामण्डल के केवल चमकीले तारों को ही देख पाते हैं।

जिन तारों से मिलकर कोई तारामण्डल बनता है, वे सब हमसे समान दूरी पर नहीं हैं। वे आकाश में केवल एक ही दृश्य रेखा में हैं।

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चित्र 17.16


17.4 सौर परिवार

सूर्य तथा इसकी परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिंडों से मिलकर सौर परिवार बना है। इस परिवार में बहुत से पिंड हैं, जैसे–ग्रह, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह तथा उल्काएँ। सूर्य तथा इन पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ये पिंड सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं।

जैसा आप जानते ही हैं, पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा करती है। यह सौर परिवार की एक सदस्य है। यह एक ग्रह है। इसके अतिरिक्त सात अन्य ग्रह हैं जो सूर्य की परिक्रमाकरते रहते है। सूर्य से दूरी के अनुसार इनके क्रम इस प्रकार हैः बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस तथा नेप्ट्यून।

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चित्र 17.17 : सौर परिवार (पैमाने के अनुसार नहीं है)।

चित्र 17.17 : सौर परिवार का योजनावत दृश्य दर्शाता है।


क्या आप जानते हैं?

सन् 2006 तक सौर परिवार में नौ ग्रह थे। प्लूटो सौर परिवार का सूर्य से दूरतम ग्रह था। सन् 2006 में अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने ग्रह की नयी परिभाषा को अपनाया जिसके अनुसार प्लूटो, ग्रहों की श्रेणी में नहीं आता। अब यह सौर परिवार का ग्रह नहीं है।

आइए सौर परिवार के कुछ सदस्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

सूर्य

सूर्य हमसे निकटतम तारा है। यह निरंतर विशाल मात्रा में ऊष्मा तथा प्रकाश उत्सर्जित कर रहा है। पृथ्वी की लगभग समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। वास्तव में, सभी ग्रहों की ऊष्मा तथा प्रकाश की ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य ही है।

ग्रह

ग्रह तारों की भांति प्रतीत होते हैं परन्तु ग्रहों में अपना प्रकाश नहीं होता। वे केवल अपने ऊपर परिफिलड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं। क्या आप तारों तथा ग्रहों में भेद कर सकते हैं?

ग्रहों तथा तारों में अन्तर करने की सरलतम विधि यह है कि तारे टिमटिमाते हैं जबकि ग्रह एेसा नहीं 
करते। तारों के सापेक्ष सभी ग्रहों की स्थिति
 भी बदलती रहती है। 

प्रत्ये ग्रह एक निश्चित पथ पर सूर्य की परिक्रमा करता है। इस पथ को कक्षा कहते हैं। किसी भी ग्रह द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में लगे समय को उस ग्रह कापरिक्रमण काल कहते हैं। ग्रहों की सूर्य से दूरी बरिफिलढ़ने पर उनके परिक्रमण काल में भी वृद्धि हो जाती है।


क्रियाकलाप 17.9

अपने चार-पाँच मित्रों के साथ खेल के मैदान में जाइए। चित्र 17.8 में दर्शाए अनुसार 1m, 1.8m, 2.5m तथा 3.8m त्रिज्या के संकेन्द्री वृत्त खींचिए। अपने किसी एक मित्र से केन्द्र पर खरिफिलड़े होकर सूर्य को निरूपित करने के लिए कहिए।

आपके अन्य मित्र बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल को निरूपित कर सकते हैं।

अपने मित्रों से अपनी-अपनी कक्षाओं में वामावर्त दिशा में सूर्य की परिक्रमा करने के लिए कहिए (चित्र 17.18)। क्या उनकी एक-दूसरे से टक्कर होती है?

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चित्र 17.18 : ग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं में गमन करते हैं।

सूर्य की परिक्रमा करने के साथ-साथ ग्रह लट्टू की भांति अपने अक्ष पर घूर्णन गति भी करते हैं। किसी ग्रह द्वारा एक घूर्णन पूरा करने में लगने वाले समय को उसका घूर्णन काल कहते हैं।

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चित्र 17.19 :  ग्रह लट्टू की भांति अपने अक्ष पर घूर्णन करता है।

कुछ ग्रहों के ज्ञात उपग्रह (चन्द्रमा) हैं जो उनकी परिक्रमा करते हैं। किसी खगोलीय पिंड की परिक्रमा करने वाले अन्य खगोलीय पिंड को पहले खगोलीय पिंड का उपग्रह कहते हैं।

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पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। क्या इस कारण से पृथ्वी सूर्य का उपग्रह है।


पृथ्वी को सूर्य का उपग्रह कहा जा सकता है, यद्यपि, सामान्यतः हम इसे सूर्य का ग्रह कहते हैं। ग्रहों की परिक्रमा करने वाले पिंडों के लिए ही उपग्रह शब्द का उपयोग करते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है।

बहुत से मानव-निर्मित उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। इन्हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं।


प्राचीन भारत में खगोलिकी

लगभग 4000 वर्ष पुराने ऋगवेद में प्राचीन भारत की खगोलिकी का उल्लेख है। खगोलिकी में कई भारतीय विद्वानों का योगदान रहा है। मुख्यतः ज्ञात खगोलज्ञों में से एक आर्यभट्ट हैं। खगोलिकी पर आर्यभट्ट के योगदान का वर्णन उनकी रचना ‘आर्यभट्टिया’ में उल्लिखित है। जिसे उन्होंने 23 वर्ष की आयु में 499 CE में लिखा था। उनके द्वारा परिकलित पृथ्वी के व्यास का मान वर्तमान में ज्ञात मान के निकट है। ‘पृथ्वी अचल है’ के प्रचलित मान्यता के विपरीत आर्यभट्ट ने सुझाया कि पृथ्वी गोल है तथा यह अपने अक्ष पर घूर्णन करती हैं। पृथ्वी के नाक्षत्र काल के लिए उनका अनुमानित मान 23 घण्टे, 56 मिनट, और 4.1 सेकण्ड वर्तमान में ज्ञात मान के बहुत निकट है। चन्द्रमा तथा ग्रह, सूर्य के प्रकाश के परावर्तन द्वारा चमकते प्रतीत होते हैं- एेसा भी उन्होंने प्रतिपादित किया था। उन्हाेंने चन्द्र तथा सूर्य ग्रहणों की भी वैज्ञानिक व्याख्या दी। जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर परिफिलड़ती है तो चन्द्र ग्रहण की परिघटना होती है और जब चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर परिफिलड़ती है तो सूर्य ग्रहण की परिघटना होती है। आर्यभट्ट के अनुसार पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की दूरी का मान वर्तमान में ज्ञात दूरी के बहुत करीब है।

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आर्यभट्ट

C.E. 476 - 550

बुध

बुध ग्रह सूर्य से निकटतम ग्रह है। यह हमारे सौर परिवार का लघुतम ग्रह है। क्योंकि बुध सूर्य के अत्यधिक निकट है, अतः अधिकांश समय तक सूर्य की चकाचौंध में छिपा रहने के कारण इसका प्रेक्षण करना अत्यंत कठिन है। तथापि, सूर्योदय से तुरन्त पूर्व अथवा सूर्यास्त के तुरंत पश्चात इसे क्षितिज पर देेखा जा सकता है। अतः यह वहीं दिखाई देता है जहाँ वृक्षों अथवा भवनों द्वारा क्षितिज को देखने में कोई बाधा नहीं आती। बुध का अपना कोई उपग्रह नहीं है।

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शुक्र


ग्रहों में शुक्र पृथ्वी का निकटतम परिफिलड़ोसी है। रात्रि के आकाश में यह सबसे अधिक चमकीला ग्रह है।कभी-कभी शुक्र पूर्वी आकाश में सूर्योदय से पूर्व दिखाई देता है। कभी-कभी सूर्यास्त के तुरन्त पश्चात यह पश्चिमी आकाश में दिखाई देता है। इसीलिए इसे प्रायः प्रभात तारा (प्रातःतारा) अथवा सांध्यतारा कहते हैं, यद्यपि यह तारा नहीं है। रात्रि के आकाश में इसे ढूँरिफिलढ़ने का प्रयास कीजिए।

शुक्र का अपना कोई उपग्रह (चन्द्रमा) नहीं है। इसकी अपने अक्ष पर घूर्णन गति कुछ असाधारण है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर घूर्णन करता है जबकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व कीओर गति करती है।

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क्रियाकलाप 17.10

किसी समाचार पत्र, पंचांग अथवा जंतरी में देखकर पता कीजिए कि आकाश में किस समय व किस दिन शुक्र दिखाई देगा। आप शुक्र ग्रह की पहचान इसकी चमक द्वारा बरिफिलड़ी आसानी से कर सकते हैं। याद रखिए शुक्र को आकाश में अधिक ऊँचाई पर नहीं देखा जा सकता। आपको या तो सूर्योदय से 1-3 घंटे पूर्व अथवा सूर्यास्त के 1-3 घंटेपश्चात की अवधि में शुक्र ग्रह का प्रेक्षण करने का प्रयास करना चाहिए।

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तब क्या इसका यह अर्थ हुआ कि शुक्र पर सूर्योदय पश्चिम में तथा सूर्यास्त पूर्व में होता होगा?


यदि आपको अवसर मिले तो दूरबीन द्वारा शुक्र को देखने का प्रयास कीजिए। आप चन्द्रमा की भांति शुक्र की कलाओं का प्रेक्षण करेंगे (चित्र 17.20)।

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चित्र 17.20 : शुक्र की कलाएँ।

पृथ्वी

पृथ्वी ही सौर परिवार का एकमात्र एेसा ग्रह है जिस पर जीवन का अस्तित्व ज्ञात है। पृथ्वी पर जीवन विद्यमान होने तथा उसकी निरंतरता बनाए रखने के लिए कुछ विशिष्ट पर्यावरणीय अवस्थाएँ उत्तरदायी हैं। इनमें पृथ्वी की सूर्य से उचित दूरी होना भी सम्मिलित है ताकि पृथ्वी पर सही ताप परिसर, जल की उपस्थिति, उपयुक्त वायुमंडल तथा ओजोन का आवरण बना रह सके।

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हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पृथ्वी पर जीवन को कोई संकट न हो।


अन्तरिक्ष से देखने पर पृथ्वी के पृष्ठ पर जल तथा भूमि से प्रकाश के परावर्तित होने के कारण वह नीली- हरी प्रतीत होती है।

पृृथ्वी का घूर्णन अक्ष इसकी कक्षा के तल के लम्बवत नहीं है। इसका अपने अक्ष पर झुकाव पृथ्वी पर ऋतु-परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। पृथ्वी का केवल एक ही उपग्रह (चन्द्रमा) है।


मंगल

अगला ग्रह जो पृथ्वी की कक्षा के बाहर का पहला ग्रह है, वह मंगल है। यह हलका रक्ताभ प्रतीत होता है इसीलिए इस ग्रह को लाल ग्रह भी कहते हैं। मंगल के दो छोटे प्राकृतिक उपग्रह हैं।

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मंगलयान

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारत का पहला मंगल कक्षित्र (अॉर्बिटर) मिशन-मंगलयान, 5 नवम्बर 2013 को प्रेक्षेपित किया। यह 24 सितम्बर 2014 को मंगल की कक्षा में सफलता पूर्वक पहुँच गया। इस प्रकार भारत अपने प्रथम प्रयास में ही इस कार्य को करने वाला विश्व में पहला देश बना।


बृहस्पति

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बृहस्पति सौर परिवार का सबसे बरिफिलड़ा ग्रह है। यह ग्रह इतना बरिफिलड़ा है कि लगभग 1300 पृथ्वियाँ इस विशाल ग्रह के भीतर रखी जा सकती हैं। परन्तु, बृहस्पति का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 318 गुना है। यह अपने अक्ष पर अत्यधिक तीव्र गति से घूर्णन करता है।

आप पृथ्वी के विषुवत् वृत्त से परिचित हैं। विषुवत् वृत्त के तल को पृथ्वी का विषुवतीय तल कहते हैं (चित्र 17.21) वह तल जिसमें पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है उसे पृथ्वी का कक्षीय तल कहते हैं चित्र (17.21)। ये दोनों तल एक दूसरे से 23.5° के कोण पर झुके हैं। इसका यह तात्पर्य है कि पृथ्वी का अक्ष अपने कक्षीय तल से 66.5° के कोण पर झुका है।

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चित्र 17.21 : पृथ्वी झुके अक्ष पर घूर्णन करती है।


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मेरी यह धारणा है कि यदि आप एक इतनी बरिफिलड़ी गेंद लें जिसमें लगभग 1300 मटर के दानें समा सकें, तो यह गेंद बृहस्पति को निरूपित करेगी तथा मटर का दाना पृथ्वी को निरूपित करेगा।


बृहस्पति के बहुत से प्राकृतिक उपग्रह हैं। इसके चारों ओर धुँधले वलय भी हैं। आकाश में अत्यधिक चमकीला प्रतीत होने के कारण आप इसे आसानी से पहचान सकते हैं। यदि आप इसका प्रेक्षण दूरबीन की सहायता से करें तो आप इसके चार बरिफिलड़े चन्द्रमा भी देख सकते हैं (चित्र 17.22)।

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चित्र 17.22 : बृहस्पति और उसके चार बरिफिलड़े उपग्रह।


शनि

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बृहस्पति के परे शनि है जो रंग में पीला सा प्रतीत होता है। इस ग्रह के रमणीय वलय इसे सौर परिवार में अद्वितीय बनाते हैं। यह वलय नंगी आँखों से दिखाई नहीं देते। आप छोटे दूरदर्शक द्वारा इनका प्रेक्षण कर सकते हैं। शनि के भी बहुत से प्राकृतिक उपग्रह हैं।

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चित्र 17.23 : शनि जल से कम सघन है।

शनि के बारे में एक रोचक बात यह है कि सभी ग्रहों में यह सबसे कम सघन है। इसका घनत्व जल के घनत्व से भी कम है।


यूरेनस तथा नेप्ट्यून

ये सौर परिवार के बाह्यतम ग्रह हैं। इन्हें केवल बरिफिलड़े दूरदर्शकों की सहायता से ही देखा जा सकता है। शुक्र की भांति यूरेनस भी पूर्व से पश्चिम दिशा में घूर्णन करता है। इसकी विलक्षण विशेषता इसका अत्यधिक झुका घूर्णन अक्ष है (चित्र 17.24)। इसके परिणामस्वरूप यह कक्षीय गति करते समय अपने पृष्ठ पर लुरिफिलढ़कता सा प्रतीत होता है।

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चित्र 17.24 : अपने कक्षीय पथ पर यूरेनस।


सौर परिवार के प्रथम चार ग्रह - बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल अन्य चार ग्रहों की तुलना में सूर्य के अत्यन्त निकट हैं। इन्हें आन्तरिक ग्रह कहते हैं। आन्तरिक ग्रहों के बहुत कम चन्द्रमा होते हैं।

वे ग्रह जो मंगल की कक्षा से बाहर हैं, जैसे– बृहस्पति, शनि, यूरेनस तथा नेप्ट्यून, आन्तरिक ग्रहों की तुलना में कहीं अधिक दूर हैं। इन्हें बाह्य ग्रह कहते हैं। इनके चारों ओर वलय-निकाय हैं। बाह्य ग्रहों के अधिक संख्या में चन्द्रमा होते हैं।


17.5 सौर परिवार के कुछ अन्य सदस्य 

ग्रहों के अतिरिक्त सूर्य की परिक्रमा करने वाले कुछ अन्य पिंड भी हैं। ये भी सौर परिवार के सदस्य हैं। आइए, इनमें से कुछ के विषय में जानकारी प्राप्त करें

क्षुद्रग्रह

मंगल तथा बृहस्पति की कक्षाओं के बीच काफी बरिफिलड़ा अंतराल है (चित्र 17.25)। इस अन्तराल को बहुत सारे एेसे छोटे-छोटे पिंडों ने घेर रखा है जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इन्हें क्षुद्रग्रह कहते हैं। क्षुद्रग्रहों को केवल बरिफिलड़े दूरदर्शकों द्वारा ही देखा जा सकता है।

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चित्र 17.25 : क्षुद्रग्रह पट्टी।

 

धूमकेतु


धूमकेतु भी हमारे सौर परिवार के सदस्य हैं। ये अत्यन्त परवलीय कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। परन्तु, इनका सूर्य का परिक्रमण काल सामान्यतः काफी अधिक होता है। सामान्यतः धूमकेतु चमकीले सिर तथा लम्बी पूँछ वाले होते हैं। जैसे-जैसे कोई धूमकेतु सूर्य के समीप आता जाता है इसकी पूँछ आकार में बरिफिलढ़ती जाती है। किसी धूमकेतु की पूँछ सदैव ही सूर्य से परे होती है (चित्र 17.26)।
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चित्र 17.26 : किसी धूमकेतु की विभिन्न स्थितियाँ।

एेसे बहुत से धूमकेतु ज्ञात हैं जो समय-समय पर एक निश्चित काल-अंतराल पर दृष्टिगोचर होते हैं। हैलेका धूमकेतु एक एेसा ही धूूमकेतु है जो लगभग हर 76 वर्ष के अंतरालमें दिखाई देता है। इसे सन् 1986 में पिछली बार देखा गया था। क्या आप बता सकते हैं कि अगली बार हैलेका धूमकेतु कब दिखाई देगा?

धूमकेतुओं के विषय में अंधविश्वास

कुछ व्यक्ति एेसा सोचते हैं कि धूमकेतु घोर विपत्तियों, जैसे– युद्ध, महामारी, बारिफिलढ़ आदि के दूत (संदेशवाहकहैं। परन्तु ये सब मिथक (कल्पित मान्यताएँतथाअंधविश्वास हैं। धूमकेतु  का दृष्टिगोचर होना एक प्राकृतिक परिघटना है। इनसे भयभीत होने का कोई औचित्य नहीं है।


उल्काएँ तथा उल्कापिंड

रात्रि के समय जब आकाश साफ हो तथा चन्द्रमा भी न दिखाई दे रहा हो तो आप कभी-कभी आकाश में प्रकाश की एक चमकीली धारी-सी देख सकते हैं (चित्र 17.27)। इसे शूटिंग स्टार-सा टूटता तारा कहते हैं यद्यपि यह तारा नहीं है। इन्हें उल्का कहते हैं। उल्का सामान्यतः छोटे पिंड होते हैं जो यदा-कदा पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं। उस समय इनकी अति उच्च चाल होती है। वायुमण्डलीय घर्षण के कारण ये तप्त होकर जल उठते हैं और चमक के साथ शीघ्र ही वाष्पित हो जाते हैं। यही कारण है कि प्रकाश की चमकीली धारी अति अल्प समय के लिए ही दृष्टिगोचर होती है।

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चित्र 17.27 :  रात्रि के आकाश में उल्का।

कुछ उल्का आकार में इतनी बरिफिलड़ी होती हैं कि पूर्णतः वाष्पित होने से पूर्व ही वे पृथ्वी पर पहुँच जाती हैं। वह पिंड जो पृथ्वी पर पहुँचता है उसे उल्का पिंड कहते हैं। उल्का पिंड वैज्ञानिकों को उस पदार्थ की प्रकृति की खोज करने में सहायता करते हैं जिससे सौर परिवार बना है।

उल्कावृष्टि

जब पृथ्वी किसी धूमकेतु की पूँछ को पार करती है तो उल्काओं के झुँड दिखाई देते हैं। इन्हें उल्कावृष्टि कहते हैं। कुछ उल्कावृष्टि नियमित समय अंतराल पर हर वर्ष होती हैं। आप किसी वैज्ञानिक पत्रिका या इन्टरनैट से उनके दिखाई देने के समय का पता लगा सकते हैं।


कृत्रिम उपग्रह

आपने यह सुना होगा कि एेसे बहुत से कृत्रिम उपग्रह हैं जो पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। आप यह जानना चाहेंगे कि कृत्रिम उपग्रह प्राकृतिक उपग्रहों से किस प्रकार भिन्न हैं। कृत्रिम उपग्रह मानव-निर्मित हैं। इनका प्रमोचन पृथ्वी से किया गया है। ये पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह अर्थात् चन्द्रमा की तुलना में कहीं अधिक निकट रहकर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।

भारत ने बहुत से कृत्रिम उपग्रहों का निर्माण तथा प्रमोचन किया है। आर्यभट्ट भारत का प्रथम उपग्रह था। कुछ अन्य भारतीय उपग्रह इन्सैट (INSAT), 
आई.आर.एस. 
(IRS), कल्पना-1, EDUSAT, आदि हैं (चित्र 17.28)।

कृत्रिम उपग्रहों के बहुत से व्यावहारिक अनुप्रयोग हैं। इनका उपयोग मौसम की भविष्यवाणी, रेडियो तथा टेलीविजन संकेतों के प्रेषण में किया जाता है। इनका उपयोग दूरसंचार तथा सुदूर संवेदन के लिए भी होता है।


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मुझे यह कहना है कि सुदूर संवेदन से हमारा तात्पर्य दूरी से सूचनाएँ एकत्र करना है।



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चित्र 17.28 : कुछ भारतीय उपग्रह।


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अभ्यास

प्रश्न 1 - 3 में सही उत्तर का चयन कीजिए–

1. निम्नलिखित में से कौन सौर परिवार का सदस्य नहीं है?

(क) क्षुद्रग्रह

(ख) उपग्रह

(ग) तारामण्डल

(घ) धूमकेतु

2. निम्नलिखित में से कौन सूर्य का ग्रह नहीं है?

(क) सीरियस

(ख) बुध

(ग) शनि

(घ) पृथ्वी

3. चन्द्रमा की कलाओं के घटने का कारण यह है कि

(क) हम चन्द्रमा का केवल वह भाग ही देख सकते हैं जो हमारी ओर प्रकाश को परावर्तित करता है।

(ख) हमारी चन्द्रमा से दूरी परिवर्तित होती रहती है।

(ग) पृथ्वी की छाया चन्द्रमा के पृष्ठ के केवल कुछ भाग को ही ढकती है।

(घ) चन्द्रमा के वायुमण्डल की मोटाई नियत नहीं है।

4. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए–

(क) सूर्य से सबसे अधिक दूरी वाला ग्रह 3452.png है।

(ख) वर्ण में रक्ताभ प्रतीत होने वाला ग्रह 3454.png है।

(ग) तारों के एेसे समूह को जो कोई पैटर्न बनाता है 3456.png कहते हैं।

(घ) ग्रह की परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिंड को 3458.png कहते हैं।

(ङ) शूटिंग स्टार वास्तव में  3460.png नहीं हैं।

(च) क्षुद्रग्रह 3462.png तथा  3464.png की कक्षाओं के बीच पाए जाते है।

5. निम्नलिखित कथनों पर सत्य (T) अथवा असत्य (F) अंकित कीजिए–

(क) ध्रुव तारा सौर परिवार का सदस्य है। ( )

(ख) बुध सौर परिवार का सबसे छोटा ग्रह है। ( )

(ग) यूरेनस सौर परिवार का दूरतम ग्रह है। ( )

(घ) INSAT एक कृत्रिम उपग्रह है। ( )

(ङ) हमारे सौर परिवार में नौ ग्रह हैं। ( )

(च) ‘ओरॉयन’ तारामण्डल केवल दूरदर्शक द्वारा देखा जा सकता है। ( )

6. स्तम्भ I के शब्दों का स्तम्भ II के एक या अधिक पिंड या पिंडों के समूह से उपयुक्त मिलान कीजिए

स्तम्भ I  स्तम्भ II

(क) आन्तरिक ग्रह (a) शनि

(ख) बाह्य ग्रह (b) ध्रुवतारा

(ग) तारामण्डल (c) सप्तर्षि

(घ) पृथ्वी के उपग्रह (d) चन्द्रमा

(e) पृथ्वी

(f) ओरॉयन

(g) मंगल

7. यदि शुक्र सांध्यतारे के रूप में दिखाई दे रहा है तो आप इसे आकाश के किस भाग में पाएँगे?

8. सौर परिवार के सबसे बरिफिलड़े ग्रह का नाम लिखिए।

9. तारामण्डल क्या होता है? किन्हीं दो तारामण्डलों के नाम लिखिए।

10. (i) सप्तर्षि तथा (ii) ओरॉयन तारामण्डल के प्रमुख तारों की आपेक्षिक स्थितियाँ दर्शाने के लिए आरेख खींचिए।

11. ग्रहों के अतिरिक्त सौर परिवार के अन्य दो सदस्यों के नाम लिखिए।

12. व्याख्या कीजिए कि सप्तर्षि की सहायता से ध्रुव तारे की स्थिति आप कैसे ज्ञात करेंगे।

13. क्या आकाश में सारे तारे गति करते हैं? व्याख्या कीजिए।

14. तारों के बीच की दूरियों को प्रकाश वर्ष में क्यों व्यक्त करते हैं? इस कथन से क्या तात्पर्य है कि कोई तारा पृथ्वी से आठ प्रकाश वर्ष दूर है?

15. बृहस्पति की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या की 11 गुनी है। बृहस्पति तथा पृथ्वी के आयतनों का अनुपात परिकलित कीजिए। बृहस्पति में कितनी पृथ्वियाँ समा सकती हैं? 

16. बूझो ने सौर परिवार का निम्नलिखित आरेख (चित्र 17.29) खींचा। क्या यह आरेख सही है? यदि नहीं, तो इसे संशोधित कीजिए।


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चित्र 16.29

 


विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप एवं परियोजनाएँ

1. आपके स्थान पर उत्तर-दक्षिण रेखा 

किसी छरिफिलड़ी की छाया की सहायता से उत्तर-दक्षिण रेखा खींचना सीखें। जिस स्थान पर कि सूर्य का प्रकाश दिन में अधिक समय तक रहता हो, वहां पर जमीन में एक सीधी छरिफिलड़ी को लंबवत स्थापित करें। इस छरिफिलड़ी के निचले बिंदु को ‘O’ कहें। सुबह में किसी समय छरिफिलड़ी के छाया की नोक को चिह्नित करें। इसे बिंदु A कहें। जमीन पर OA को त्रिज्या मानते हुए एक वृत्त खींचे। अब, तब तक इंतजार करें जब तक कि छाया का आकार छोटा होते-होते पुनः बरिफिलड़ा न होने लगे। जब छाया फिर से वृत्त को छू लेती है, तो उसे बिंदु B के रूप मे चिन्हित करें। कोण AOB का द्विविभाजक खींचें। यह द्विविभाजक रेखा उत्तर-दक्षिण रेखा को इंगित करती है। यह तय करने के लिए कि इस रेखा का कौन सा सिरा उत्तर है, चुंबकीय दिक्सूचक काप्रयोग करें।

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2. यदि संभव हो तो किसी कृत्रिम नभोमण्डल (Planetarium) का भ्रमण कीजिए। हमारे देश के कई शहरों में कृत्रिम नभोमण्डल हैं। इन नभोमण्डलों में आप तारों, तारामण्डलों तथा ग्रहों की गतियों का विशाल गुम्बद पर अवलोकन कर सकते हैं।

3. रात्रि में कुछ घंटे तक आकाश का प्रेक्षण कीजिए। उस रात्रि को आकाश में चन्द्रमा नहीं होना चाहिए। देखते समय आप उल्का का संसूचन कर सकते हैं। इस कार्य के लिए सितम्बर - नवम्बर तक की अवधि अधिक उपयुक्त है।

4. नंगी आँखों से आकाश में दिखाई देने वाले कुछ ग्रहों तथा सप्तर्षि और ओरॉयन जैसे प्रमुख तारामण्डलों की पहचान करना सीखिए। ध्रुव तारे तथा सीरियस तारे कीअवस्थिति ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।

5. सूर्योदय की स्थिति- उत्तरायन तथा दक्षिणायन

इस क्रियाकलाप को करने में कई सप्ताह लग सकते हैं। एक एेसा स्थान चुनिये जहाँ से कि पूर्वी क्षितिज स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा हो। उगते सूर्य की स्थिति को चिह्नित करने के लिए एक सूचक जैसे कि कोई पेरिफिलड़ अथवा विद्युत पोल को चुनिये। प्रति सप्ताह एक प्रेक्षण लेना पर्याप्त है। किसी भी दिन, उगते सूर्य की दिशा को नोट कीजिये। हर सप्ताह इस अवलोकन को दोहराएँ। आपको क्या मिलता है? आप पायेंगे कि सूर्योदय की दिशा लगातार बदलती है। ग्रीष्म संक्रांति (लगभग 21 जून), से सूर्योदय की दिशा धीर-धीरे दक्षिण की ओर होती जाती है। इस अवस्था में सूर्य को दक्षिणायन (दक्षिण की ओर बरिफिलढ़ता हुआ) कहा जाता है।। एेसा शीतकालीन संक्रांति (22 दिसंबर के आसपास) तक होता रहता है। इसके बाद, सूर्योदय की दिशा बदलकर उत्तर की ओर होने लगती है। इस समय सूर्य को उत्तरायन (उत्तर की ओर बरिफिलढ़ता हुआ) कहा जाताहै। भूमध्य रेखा पर, विषुवों के केवल दो दिन (लगभग 21 मार्च और 23 सितंबर) ही में सूर्य पूर्व में उगता है। अन्य सभी दिनों में, सूर्योदय पूर्व के उत्तर या पूर्व के दक्षिण की ओर होता जाता है। अतः सूर्योदय की दिशा, दिशा-निर्धारण हेतु कोई उचित मार्गदर्शन प्रदान नहीं करती। उत्तर दिशा को परिभाषित करने वाला ध्रुव तारा दिशा निर्धारण हेतु अच्छा संकेतक है।

6. ग्रहों तथा उनके आपेक्षिक साइरिफिलज़ को दर्शाने वाला सौर परिवार का मॉडल (प्रतिरूप) बनाइए। इसके लिए बरिफिलड़ा चार्ट पेपर लीजिए। विभिन्न ग्रहों को निरूपित करने के लिए उनके आपेक्षिक साइरिफिलज़ के अनुसार (सारणी 17.1 का उपयोग करके) गोले बनाइए। गोले बनाने के लिए आप समाचार पत्रों, चिकनी मिट्टी, अथवा प्लास्टीसीन का उपयोग कर सकते हैं। इन गोलों को आप विभिन्न वर्णों के कागरिफिलज़ से ढक सकते हैं। कक्षा में अपने मॉडल को प्रदर्शित कीजिए।

सारणी 17.1

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7. सूर्य से ग्रहों की दूरी को दर्शाते हुए (सारणी 17.1 का उपयोग करके) पैमाने के अनुसार सौर परिवार का मॉडल बनाने का प्रयास कीजिए। क्या आपको कोई कठिनाई हुई? व्याख्या कीजिए।

8. निम्नलिखित पहेली को हल कीजिए तथा इसी प्रकार की पहेलियाँ स्वयं बनाने का प्रयास 
कीजिए।

मेरा पहला अक्षर शुभ में है पर लाभ में नहीं है

मेरा अंतिम अक्षर क्रम में है पर भ्रम में नहीं है।।

मैं हूँ एक ग्रह जो दिखता सबसे चमकीला।

नाम बताओ मेरा मैं हूँ न लाल और न नीला।।

इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए निम्न वेबसाइट देखिए–

  • http://www.nineplanets.org
  • http://www.kidsastronomy.com



क्या आप जानते हैं?

प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि पृथ्वी विश्व के केन्द्र पर स्थित है तथा चन्द्रमा, ग्रह, सूर्य तथा तारे इसकी परिक्रमा कर रहे हैं। लगभग 500 वर्ष पूर्व पोलैण्ड के पादरी तथा खगोलज्ञ जिनका नाम निकोलस कॉपरनिकस (1473-1543) था, ने यह उल्लेख किया कि सूर्य सौर परिवार के केन्द्र पर स्थित है तथा ग्रह इसकी परिक्रमा कर रहे हैं। यह एक क्रांतिकारी धारणा थी। कॉपरनिकस स्वयं अपने इस कार्य को प्रकाशित करने में झिझक अनुभव कर रहे थे। उनके इस कार्य का प्रकाशन उनकी मृत्यु वाले वर्ष 1543 में हुआ। 

सन् 1609 में गैलीलियो ने अपना दूरदर्शक स्वयं डिरिफिलज़ाइन किया। अपने दूरदर्शक द्वारा गैलीलियो ने बृहस्पति के चन्द्रमाओं, शुक्र की कलाओं तथा शनि के वलयों काप्रेक्षण किया। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं पृथ्वी की नहीं। 

इस प्रकार आप यह देखते हैं कि विचार तथा धारणाएँ विकसित एवं परिवर्तित होती रहती हैं। क्या आपकी अपनी धारणाएँ भी परिवर्तित होती हैं? यदि पर्याप्त साक्ष्य तथाप्रमाण उपलब्ध हैं तो क्या आप खुले मस्तिष्क से नयी धारणाओं को अपना लेते हैं?





कल्पना चावला-अंतरिक्ष में प्रथम भारतीय महिला

कल्पना चावला प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री थी। उनका जन्म करनाल, हरियाणा में 17 मार्च 1962 को हुआ था। उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चण्डीगरिफिलढ़ से अपनी विज्ञान की स्नातक उपाधि एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में प्राप्त की। 1982 में वह संयुक्त राज्य अमरीका चली गई ओर टैक्सास विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विज्ञान की मास्टर डिग्री तथा कोलॉराडो विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएच.डी. प्राप्त की। वर्ष 1988 मे उन्होंने NASA में कार्य करना आरंभ किया और 1996 में पहली उरिफिलड़ान के लिए चयनित की गई। वह अंतरिक्ष में उरिफिलड़ान भरने वाली भारत में जन्मी पहली महिला और दूसरी भारतीय व्यत्तिη थीं। दुर्भाग्यवश फरवरी 2003 को अंतरिक्ष यान कोलम्बिया हादसे में जान गंवाने वाले सात अंतरिक्ष यात्रियों में से वह एक थी। वह विश्वभर में युवा महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं।

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