त्रयोदशः  पाठः

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः 

[प्रस्तुत पाठ्यांश डॉ. कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित हैं, जिसमे भारत के गौरव का गुणगान है। इसमें देश की खाद्यान्न सम्पन्नता, कलानुराग, प्राविधिक प्रवीणता, वन एवं सामरिक शक्ति की महनीयता को दर्शाया गया है। प्राचीन परम्परा, संस्कृति, आधुनिक मिसाइल क्षमता एवं परमाणु शक्ति सम्पन्नता के गीत द्वारा कवि ने देश की सामर्थ्यशक्ति का वर्णन किया है। छात्र संस्कृत के इन श्लोकों का सस्वर गायन करें तथा देश के गौरव को महसूस करें, इसी उद्देश्य से इन्हें यहाँ संकलित किया गया है।]
Our Past -3


   सुपूर्णं सदैवास्ति खाद्यान्नभाण्डं

नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम्।

इयं स्वर्णवद् भाति शस्यैर्धरेयं

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ।।1।।


  त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः

    अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।

सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरेयम्

           क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ।।2।।


इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या

जगद्वन्दनीया च भूः देवगेया।

सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयं

          क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ।।3।।


इयं ज्ञानिनां चैव वैज्ञानिकानां

      विपश्चिज्जनानामियं संस्कृतानाम्।

बहूनां मतानां जनानां धरेयं

           क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ।।4।।


  इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां

        भिषक्शास्त्रिणां भूः प्रबन्धे युतानाम्।

नटानां नटीनां कवीनां धरेयं

          क्षितौ राजतै भारतस्वर्णभूमिः ।।5।।


वने दिग्गजानां तथा केसरीणां

तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्।

   शिखीनां शुकानां पिकानां धरेयं

 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ।।6।।

शब्दार्थाः

पीयूषतुल्यम् - अमृत समान

भाति - सुशोभित होती है

शस्यैः - फसलों से

धरेयम् - धरा + इयम् = यह पृथ्वी

क्षितौ - क्षिति (पृथ्वी) पर

त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः - त्रिशूल, अग्नि, नाग तथा पृथ्वी - चार मिसाइलों (अस्त्रों) के नाम

मेदिनी - पृथ्वी

पर्वणामुत्सवानाम् - पर्व और उत्सवों की

निमज्जति - विद्वज्जनों की

विपश्चिज्जनानाम् - यन्त्रविद्या को जानने वालों की

यन्त्रविद्याधराणाम् - मध्य भाग तक

भिषक् - वैद्य, चिकित्सक

प्रबन्धे युतानाम् - ‘प्रबन्धक’ समुदाय प्रबन्ध कार्यों में लगे हुए

नट, नटी - अभिनेता, अभिनेत्री

केसरीणाम् [केश+रि+डी (औणादि)] - सिंहों की

तटीनाम् - नदियों की

भूधराणाम् - पर्वतों का

पिकानाम् - कोयलाें का

शिखीनाम् - मोरों की

अभ्यासः

1. प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत–

(क) इयं धरा कैः स्वर्णवद् भाति?

(ख) भारतस्वर्णभूमिः कुत्र राजते?

(ग) इयं केषां महाशक्तिभिः पूरिता?

(घ) इयं भूः कस्मिन् युतानाम् अस्ति?

(ङ) अत्र किं सदैव सुपूर्णमस्ति?

2. समानार्थकपदानि पाठात् चित्वा लिखत–

(क) पृथिव्याम् ............................(क्षितौ/पर्वतेषु/त्रिलोक्याम्)

(ख) सुशोभते ............................ (लिखते/भाति/पिबति)

(ग) बुद्धिमताम् ............................ (पर्वणाम्/उत्सवानाम्/विपश्चिज्जनानाम्)

(घ) मयूराणाम् ............................(शिखीनाम्/शुकानाम्/पिकानाम्)

(ङ) अनेकेषाम् ............................(जनानाम्/वैज्ञानिकानाम्/बहूनाम्)

3. श्लोकांशमेलनं कृत्वा लिखत–

(क) त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यास्त्रघोरैः  
नदीनांर जलं यत्र पीयूषतुल्यम्
(ख) सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयम्
जगद्वन्दनीया च भूःदेवगेया
(ग) वने दिग्गजानां तथा केसरीणाम्
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
(घ) सुपूर्ण सदैवास्ति खाद्यान्नभाण्डम्
अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्
(ङ) इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या
 तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्

4. चित्रं दृष्ट्वा (पाठात्) उपयुक्तपदानि गृहीत्वा वाक्यपूर्ति कुरुत–



(क) अस्मिन् चित्रे एका .......................................................... वहति।

(ख) नदी .......................................................... निःसरति।

(ग) नद्याः जलं .......................................................... भवति।

(घ) .......................................................... शस्यसेचनं भवति।

(ङ) भारतः .......................................................... भूमिः अस्ति।

5. चित्राणि दृष्ट्वा (मञ्जूषातः) उपयुक्तपदानि गृहीत्वा वाक्यपूर्तिं कुरुत–

ruchira image

अस्त्राणाम्,    भवति, अस्त्राणि, सैनिकाः, प्रयोगः, उपग्रहाणां

(क) अस्मिन् चित्रे .................................................दृश्यन्ते।

(ख) एतेषाम् अस्त्राणां ........................................................ युद्धे भवति।

(ग) भारतः एतादृशानां ...........................................प्रयोगेण विकसितदेशः मन्यते।

(घ) अत्र परमाणुशक्तिप्रयोगः अपि .............................................।

(ङ) आधुनिकैः अस्त्रैः ............................................. अस्मान् शत्रुभ्यः रक्षन्ति।

(च) .......................................................... सहायतया बहूनि कार्याणि भवन्ति।

6. (अ) चित्रं दृष्ट्वा संस्कृते पञ्चवाक्यानि लिखत–


(क) ....................................................................................................................

(ख) ....................................................................................................................

(ग) ....................................................................................................................

(घ) ....................................................................................................................

(ङ) ....................................................................................................................

(आ) चित्रं दृष्ट्वा संस्कृते पञ्चवाक्यानि लिखत–


(क) ....................................................................................................................

(ख) ....................................................................................................................

(ग) ....................................................................................................................

(घ) ....................................................................................................................

(ङ) ....................................................................................................................


7. अत्र चित्रं दृष्ट्वा संस्कृतभाषया पञ्चवाक्येषु प्रकृतेः वर्णनं कुरुत–

(क) ....................................................................................................................

(ख) ....................................................................................................................

(ग) ....................................................................................................................

(घ) ....................................................................................................................

(ङ) ....................................................................................................................

योग्यता-विस्तारः

प्राचीन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, इसी भाव को ग्रहण कर कवि ने प्रस्तुत पाठ में भारतभूमि की प्रशंसा करते हुए कहा है कि आज भी यह भूमि विश्व में स्वर्णभूमि बनकर ही सुशोभित हो रही है।

कवि कहते हैं कि आज हम विकसित देशों की परम्परा में अग्रगण्य होकर मिसाइलों का निर्माण कर रहे हैं, परमाणु शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। इसी के साथ ही साथ हम ‘उत्सवप्रियाः खलु मानवाः’ नामक उक्ति को चरितार्थ भी कर रहे हैं कि ‘अनेकता में एकता है हिंद की विशेषता’ इसी आधार पर कवि के उद्गार हैं कि बहुत मतावलम्बियों के भारत में होने पर भी यहाँ ज्ञानियों, वैज्ञानिकों और विद्वानों की कोई कमी नहीं है। इस धरा ने सम्पूर्ण विश्व को शिल्पकार, इंजीनियर, चिकित्सक, प्रबंधक, अभिनेता, अभिनेत्री और कवि प्रदान किए हैं। इसकी प्राकृतिक सुषमा अद्भुत है। इस तरह इन पद्यों में कवि ने भारत के सर्वाधिक महत्त्व को उजागर करने का प्रयास किया है।

पाठ में पर्वों और उत्सवों की चर्चा की गई है ये समानार्थक होते हुए भी भिन्न हैं। पर्व एक निश्चित तिथि पर ही मनाए जाते हैं, जैसे-होली, दीपावली, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस इत्यादि। परन्तु उत्सव व्यक्ति विशेष के उद्गार एवं आह्लाद के द्योतक हैं। किसी के घर संतानोत्पत्ति उत्सव का रूप ग्रहण कर लेती है तो किसी को सेवाकार्य में प्रोन्नति प्राप्त कर लेना, यहाँ तक कि बिछुड़े हुए बंधु-बांधवों से अचानक मिलना भी किसी उत्सव से कम नहीं होता है।