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शिक्षकों के लिए

कक्षा 6 और 7 की पाठ्यपुस्तकों में शासन व्यवस्था के बारे में बात की गई थी। यह उसी क्रम में अगली कड़ी है। लिहाज़ा अब तक जिन विचारों पर चर्चा की गई है उनको संक्षेप में दोहरा लेना अच्छा रहेगा, खासतौर से निर्वाचन, प्रतिनिधित्व और सहभागिता से जुड़े विचारों को। अगर कक्षा में वास्तविक जीवन के उदाहरणों का इस्तेमाल किया जाए तो बच्चे इन विचारों को और अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस प्रसंग में अखबार और टेलीविजन रिपोर्टों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

अध्याय 3 में संसद के कुछ कार्यों पर चर्चा की गई है। ये कार्य संसदीय लोकतंत्र के विचार से किस तरह जुड़ते हैं, इस बात पर खास ज़ोर दिया जाना चाहिए। इसीलिए नागरिकों की अहम भूमिका को समझाना और विद्यार्थियों को इसके बारे में अपनी राय व्यक्त करने का मौका देना बहुत महत्त्वपूर्ण है। कई विद्यार्थी राजनीतिक प्रक्रिया के बारे में सनक भरा या नाउम्मीदी का रवैया लिये होते हैं। एेसी सूरत में शिक्षक के तौर पर आपकी भूमिका इस निराशा को खारिज़ करने या बच्चों के सुर में सुर मिलाने की नहीं होगी। आपको उन्हें यह बताना है कि संविधान का सही उद्देश्य क्या है।

अध्याय 4 कानूनों की समझ पर केंद्रित है। बच्चों को कानूनों के बारे में विशेष जानकारी नहीं होती। कानूनों के बारे में उन्हें समझाने के लिए ज़्यादातर उदाहरण उनके आसपास के माहौल से लेने पड़ेंगे। तभी वे यह समझ सकते हैं कि कानून सबके लिए बराबर होते हैं। अध्याय की शुरुआत में चर्चा की गई है कि कानून का यह शासन किस तरह विकसित हुआ और राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश कानूनों के मनमानेपन का किस तरह विरोध किया।

अध्याय 4 में दिए गए चित्रकथा-पट्ट में बताया गया है कि नया कानून किस तरह बनता है। इस चित्रकथा-पट्ट का मुख्य ज़ोर संसद में चलने वाली प्रक्रियाओं पर नहीं है। यह इस बात को दर्शाता है कि किसी महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे को कानून का रूप देने में आम लोग कितनी अहम भूमिका निभाते हैं। इस अध्याय में उल्लिखित कानूनों के अलावा आप किसी नए/विचाराधीन/प्रस्तावित कानून का भी उदाहरण दे सकते हैं ताकि विद्यार्थी उसके संदर्भ में लोगों की भूमिका को समझ पाएँ।

अध्याय के आखिर में अलोकप्रिय कानूनों की चर्चा की गई है। इसका मतलब एेसे कानूनों से है जो आबादी के कुछ हिस्सों के मौलिक अधिकारों को बाधित करते हैं। इतिहास में हमें एेसे बहुत सारे समूह दिखाई देते हैं जिन्होंने अन्यायपूर्ण दिखने वाले कानूनों का विरोध किया था। कोई कानून किस आधार पर अलोकप्रिय हो सकता है, इस बात की चर्चा के लिए इतिहास के इन उदाहरणों का सहारा लें। विद्यार्थियों को भारतीय संदर्भ में एेसे और उदाहरण ढूँढ़ने और अध्याय 1 में दिए गए मौलिक अधिकारों की कसौटी का इस्तेमाल करते हुए कक्षा में उन पर चर्चा करने का मौका दें।

अध्याय 3

हमें संसद क्यों चाहिए?

हम भारतीयों को इस बात का गर्व है कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा हैं। इस अध्याय में हम निर्णय प्रक्रिया में सहभागिता और लोकतांत्रिक सरकार के लिए नागरिकों की सहमति के महत्त्व जैसे विचारों के आपसी संबंधों को समझने की कोशिश करेंगे।

यही वे तत्त्व हैं जो सम्मिलित रूप से भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं। इस बात की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति संसद के रूप में मिलती है। इस अध्याय में हम यह देखेंगे कि किस तरह हमारी संसद देश के नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने और सरकार पर अंकुश रखने में मदद देती है। इसी आधार पर संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक और संविधान का केंद्रीय तत्त्व है।

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लोगों को फ़ैसला क्यों लेना चाहिए?

जैसा कि हम जानते हैं, भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ। इस आज़ादी के लिए पूरे देश की जनता ने एक लंबा और मुश्किल संघर्ष चलाया था। इस संघर्ष में समाज के बहुत सारे तबकों की हिस्सेदारी थी। तरह-तरह की पृष्ठभूमि के लोगों ने इसमें भाग लिया। वे स्वतंत्रता, समानता तथा निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदारी के विचारों से प्रेरित थे। औपनिवेशिक शासन के तहत लोग ब्रिटिश सरकार से भयभीत रहते थे। वे सरकार के बहुत सारे फ़ैसलों से असहमत थे। लेकिन अगर वे इन फ़ैसलों की आलोचना करते तो उन्हें भारी खतरों का सामना करना पड़ता था। स्वतंत्रता आंदोलन ने यह स्थिति बदल डाली। राष्ट्रवादी खुलेआम ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने लगे और अपनी माँगें पेश करने लगे। 1885 में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने माँग की कि विधायिका में निर्वाचित सदस्य होने चाहिए और उन्हें बजट पर चर्चा करने एवं प्रश्न पूछने का अधिकार मिलना चाहिए। 1909 में बने गवर्नमेंट अॉफ़ इंडिया एक्ट ने कुछ हद तक निर्वाचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मंज़ूरी दे दी। हालाँकि ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत बनाई गई ये शुरुआती विधायिकाएँ राष्ट्रवादियों के बढ़ते जा रहे दबाव के कारण ही बनी थीं, लेकिन इनमें भी सभी वयस्कों को न तो वोट डालने का अधिकार दिया गया था और न ही आम लोग निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते थे।

पिछले पन्ने पर दी गई संसद की तस्वीर के ज़रिए कलाकार क्या कहने का प्रयास कर रहा है?

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इस चित्र में


जैसा कि आपने पहले अध्याय में पढ़ा था, औपनिवेशिक शासन के अनुभव और स्वतंत्रता संघर्ष में तरह-तरह के लोगों की हिस्सेदारी के आधार पर राष्ट्रवादियों को विश्वास हो गया था कि स्वतंत्र भारत में सभी लोग अपने जीवन को प्रभावित करने वाले फ़ैसलों में हिस्सा लेने की क्षमता रखते हैं। स्वतंत्रता मिलने पर हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक बनने वाले थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि सरकार जो चाहे कर सकती थी। इसका मतलब यह था कि अब सरकार को लोगों की ज़रूरतों और माँगों के प्रति संवेदनशील रहना होगा। स्वतंत्रता संघर्ष के सपनों और आकांक्षाओं ने स्वतंत्र भारत के संविधान में ठोस रूप ग्रहण किया। इस संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाया। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार है।

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार क्यों मिलना चाहिए, इसके पक्ष में एक कारण बताइए।

क्लास मॉनीटर का चुनाव शिक्षक द्वारा किया जाता है या विद्यार्थियों द्वारा – आपकी राय में इस बात से कोई फ़र्क पड़ता है या नहीं? चर्चा कीजिए।

लोग और उनके प्रतिनिधि

सहमति का विचार लोकतंत्र का प्रस्थानबिंदु होता है। सहमति का मतलब है चाह, स्वीकृति और लोगों की हिस्सेदारी। लोगों का निर्णय ही लोकतांत्रिक सरकार का गठन करता हैऔर उसके कामकाज के बारे में फ़ैसला देता है। इस तरह के लोकतंत्र के पीछे मूल सोच यह होती है कि व्यक्ति या नागरिक ही सबसे महत्त्वपूर्ण है और सैद्धांतिक स्तर पर सरकार एवं अन्य सार्वजनिक संस्थानों में इन नागरिकों की आस्था होनी चाहिए।

व्यक्ति सरकार को अपनी मंज़ूरी कैसे देता है? जैसा कि आपने पढ़ा है, मंज़ूरी देने का एक तरीका चुनाव है। लोग संसद के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इन्हीं निर्वाचित प्रतिनिधियों में से एक समूह सरकार बनाता है। जनता द्वारा चुने गए सभी प्रतिनिधियों के इस समूह को ही संसद कहा जाता है। यह संसद सरकार को नियंत्रित करती है और उसका मार्गदर्शन करती है। इस लिहाज़ से अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से लोग ही सरकार बनाते हैं और उस पर नियंत्रण रखते हैं।



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इस फ़ोटो में चुनाव कर्मचारी एक दुर्गम इलाके में स्थित मतदान केंद्र तक मतदान सामग्री और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पहुँचाने के लिए हाथी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

प्रतिनिधित्व का यह विचार कक्षा 6 और 7 की सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन पाठ्यपुस्तकों का एक महत्त्वपूर्ण विषय था। आप इस बात से पहले ही परिचित हैं कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव किस तरह किया जाता है। आइए निम्नलिखित अभ्यास के माध्यम से इन विचारों को एक बार फिर दोहरा लें।

1. विधायक (एमएलए) कौन होता है और उसका चुनाव कैसे किया जाता है – इस बात को समझाने के लिए ‘निर्वाचन क्षेत्र’ और ‘प्रतिनिधित्व’ शब्दों का प्रयोग करें।

2. राज्य विधानसभा और संसद (लोकसभा) के बीच क्या फ़र्क है – इस बारे में अपने शिक्षक के साथ
चर्चा कीजिए।

3. नीचे दिये गए विकल्पों में से कौन से काम राज्य सरकार के हैं और कौन से केंद्र सरकार के हैं?

(क) चीन के साथशांतिपूर्ण संबंध रखा जाएगा।

(ख) मध्य प्रदेश में बोर्ड के तहत आने वाले सभी स्कूलों में कक्षा 8 को बोर्ड की परीक्षाओं से बाहर रखा जाएगा।

(ग) अजमेर और मैसूर के बीच एक नयी रेलगाड़ी चलाई जाएगी।

(घ) 1000 रुपये का नया नोट जारी किया जाएगा।

4. निम्नलिखित शब्दों कोरिक्त स्थानों में भरें-

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार; विधायकों; प्रतिनिधियों; प्रत्यक्ष रूप से

हमारे समय में लोकतांत्रिक सरकारों को आमतौर पर प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र की संज्ञा दी जाती है। प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र में लोग ........................................ हिस्सेदारी नहीं करते बल्कि चुनाव प्रक्रिया के ज़रिए अपने .................................. को चुनते हैं। ये ................................................ पूरी जनता के बारे में मिलकर फ़ैसले लेते हैं। आज के दौर में एेसी किसी सरकार को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता जो अपने लोगों को

............................................. न देती हो। इसका मतलब यह है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार होता है।

5. आप पढ़ चुके हैं कि पंचायत, राज्य विधायिका या संसद के लिए चुने जाने वाले ज़्यादातर निर्वाचित प्रतिनिधियों को 5 साल की अवधि के लिए चुना जाता है। एेसा क्यों है कि जनप्रतिनिधियों को केवल कुछ सालों के लिए ही चुना जाता है, जीवनभर के लिए नहीं?

6. आप यह पढ़ चुके हैं कि सरकार की कार्रवाइयों पर अपनी सहमति या असहमति व्यक्त करने के लिए लोग केवल चुनावों का ही इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि वे दूसरे रास्ते भी अख्तियार करते हैं। क्या आप छोटे से नाटक के ज़रिए इस तरह के तीन तरीके बता सकते हैं?

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संसद की भूमिका

आज़ादी के बाद गठित की गई भारतीय संसद लोकतंत्र के सिद्धांतों में भारतीय जनता की आस्था का प्रतीक है। ये सिद्धांत हैं निर्णय प्रक्रिया में जनता की हिस्सेदारी और सहमति पर आधारित शासन। हमारी व्यवस्था में संसद के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ हैं क्याेंकि यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है। लोक सभा के लिए भी उसी तरह चुनाव होते हैं जिस तरह राज्य विधानसभा के लिए चुनाव होते हैं। आम तौर पर लोक सभा के लिए हर पाँच साल में चुनाव करवाए जाते हैं। जैसा कि पृष्ठ संख्या 41 पर दिए गए नक्शे में दिखाया गया है, देश को बहुत सारे निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक व्यक्ति को संसद में भेजा जाता है। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार आमतौर पर विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य होते हैं।

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पृष्ठ 28 पर दिए गए चित्र में 1962 में हुए तीसरे लोक सभा चुनावों के परिणाम दिखाए गए हैं। इस चित्र के आधार पर निम्नलिखित सवालों के जवाब दें-

(क) लोक सभा में किस राज्य के सांसद सबसे अधिक हैं? आपके विचार से एेसा क्यों है?

(ख) लोक सभा में किस राज्य के सांसदों की संख्या सबसे कम है?

(ग) किस राजनीतिक दल ने सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा सीटें जीती हैं?

(घ) आपके राज्य में कौन सा दल सरकार बनाएगा? कारण बताएँ।

बगल में दी गई तालिका के आधार पर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें-

कौन सरकार बनाएगा? क्यों?

विपक्ष किसको कहा जाएगा? उसकी क्या भूमिका है?

लोक सभा में चर्चा के लिए कौन उपस्थित होंगे?

क्या यह प्रक्रिया कक्षा 7 में पढ़ाई गई प्रक्रिया जैसी ही है?

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चुने जाने के बाद ये उम्मीदवार संसद सदस्य या सांसद(एम.पी.) कहलाते हैं। इन सांसदों को मिलाकर संसद बनती है। संसद के चुनाव हो जाने के बाद संसद को निम्नलिखित काम करने होते हैं-

(क) राष्ट्रीय सरकार का चुनाव करना

भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं- राज्य सभा और लोक सभा। लोक सभा चुनावों के बाद सांसदों की एक सूची बनाई जाती है। इससे पता चलता है कि किस राजनीतिक दल के कितने सांसद हैं। यदि कोई राजनीतिक दल सरकार बनाना चाहता है तो उसे निर्वाचित सांसदों में बहुमत प्राप्त होना चाहिए। चूँकि लोक सभा में कुल 543 निर्वाचित सदस्य (और 2 मनोनीत सदस्य) होते हैं। इसलिए बहुमत हासिल करने के लिए लोक सभा में किसी भी दल के पास कम से कम 272 सदस्य होने चाहिए। संसद में बहुमत प्राप्त करने वालेदल या गठबंधन का विरोध करने वाले सभी राजनीतिक दल विपक्षी दल कहलाते हैं।

कार्यपालिका का चुनाव करना लोक सभा का एक महत्त्वपूर्ण काम होता है। जैसा कि आपने पहले अध्याय में पढ़ा था, कार्यपालिका एेसे लोगों का समूह होती है जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए मिलकर काम करते हैं। जब हम सरकार शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो हमारे ज़ेहन में अकसर यही कार्यपालिका होती है।

भारत का प्रधानमंत्री लोक सभा में सत्ताधारी दल का मुखिया होता है। प्रधानमंत्री अपने दल के सांसदों में से मंत्रियों का चुनाव करता है जो प्रधानमंत्री के साथ मिलकर फ़ैसलों को लागू करते हैं। ये मंत्री स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त इत्यादि विभिन्न सरकारी कार्यों का जिम्मा सँभालते हैं।

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केंद्रीय सचिवालय की ये दो मुख्य इमारतें हैं। इनमें से एक का नाम साउथ ब्लॉक और दूसरी का नाम नॉर्थ ब्लॉक है। इनका निर्माण 1930 के दशक में किया गया था। बाईं ओर साउथ ब्लॉक का चित्र है जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के दफ़्तर हैं। दाईं ओर नॉर्थ ब्लॉक है जहाँ वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय स्थित हैं। केंद्र सरकार के अन्य मंत्रालय नई दिल्ली की विभिन्न इमारतों में स्थित हैं।

राज्य सभा मुख्य रूप से देश के राज्यों की प्रतिनिधि के रूप में काम करती है। राज्य सभा भी कोई कानून बनाने का प्रस्ताव पेश कर सकती है। किसी विधेयक को कानून के रूप में लागू करने के लिए यह ज़रूरी है कि उसे राज्य सभा की भी मंज़ूरी मिल चुकी हो। इस प्रकार राज्य सभा की भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। संसद का यह सदन लोक सभा द्वारा पारित किए गए कानूनों की समीक्षा करता है और अगर ज़रूरत हुई तो उसमें संशोधन करता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं। राज्य सभा में 233 निर्वाचित सदस्य होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाते हैं।

ख)सरकार को नियंत्रित करना, मार्गदर्शन देना और जानकारीदेना

जब संसद का सत्र चल रहा होता है तो उसमें सबसे पहले प्रश्नकाल होता है। प्रश्नकाल एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है। इसके माध्यम से सांसद सरकार के कामकाज के बारे में जानकारियाँ हासिल करते हैं। इसके ज़रिए संसद कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। सवालों के माध्यम से सरकार को उसकी खामियों के प्रति आगाह किया जाता है। इस तरह सरकार को भी जनता के प्रतिनिधियों यानी सांसदों के ज़रिए जनता की राय जानने का मौका मिलता है। सरकार से सवाल पूछना किसी भी सांसद की बहुत महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होती है। लोकतंत्र के स्वस्थ संचालन में विपक्षी दल एक अहम भूमिका अदा करते हैं। वे सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की कमियों को सामने लाते हैं और अपनी नीतियों के लिए जनसमर्थन जुटाते हैं।

संसद में पूछे गए एक प्रश्न का उदाहरण

लोक सभा

अतारांकित प्रश्न संख्या 48

दिनांक 15 दिसंबर 2017 को उत्तर के लिए

बच्चों के लिए योजनाओं का समेकन

48. डा. मनोज राजोरिया

क्या महिला और बाल विकास मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि ः

() :क्या सरकार का देश में बच्चों के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों का समेकन करने का विचार है;

(ख) : यदि हाँ, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है; और

(ग) : यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?

उत्तर

डा. वीरेंद्र कुमार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री

(क) से (ग) : मंत्रालय ने राष्ट्रीय बाल कार्य योजना, 2016 का विकास किया है जो .ज्यादातर विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों की विद्यमान योजनाओं एवं कार्यक्रमों पर आधारित है। इसमें मंत्रालयों/विभागों तथा राज्य सरकारों/ संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के अभिसरण एवं समन्वय के लिए रूप रेखा का प्रावधान है तथा यह बच्चों की बहुआयामी कम.जोरियों को दूर करने के लिए सभी हितधारकों से सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करती है। राष्ट्रीय बाल कार्य योजना, 2016 बच्चों के अधिकारों को प्राथमिकता के चार प्रमुख क्षेत्रों अर्थात् (1) उत्तरजीविता, स्वास्थ्य एवं पोषण (2) शिक्षा एवं विकास, (3) संरक्षण और (4) भागीदारी में वर्गीकृत करती है। यह विभिन्न रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए प्रमुख कार्यक्रमों, योजनाओं एवं नीतियों तथा हितधारकों को भी चिंहित करती हैं।

स्रोत : http://loksabha.nic.in

उपरोक्त प्रश्न के माध्यम से महिला और बाल विकास मंत्री से क्या जानकारी माँगी जा रही है?

अगर आप सांसद होते तो कौन-से दो सवाल पूछते?

सांसदों के प्रश्नों से सरकार को भी महत्त्वपूर्ण फ़ीडबैक मिलता है। इसके चलते सरकार चुस्त रहती है। इसके अलावा वित्त से संबंधित सभी मामलों में संसद की मंज़ूरी सरकार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। यह उन कई तरीकों में से एक है जिसके माध्यम से संसद सरकार को नियंत्रित करती है, उसका मार्गदर्शन करती है और उसको सूचित करती है। जनप्रतिनिधियों के रूप में संसद को नियंत्रित, निर्देशित और सूचित करने में सांसदों की एक अहम भूमिका होती है और यह भारतीय लोकतंत्र का एक मुख्य आयाम है।

(ग) कानून बनाना

कानून बनाना संसद का एक महत्त्वपूर्ण काम है। इसके बारे में हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे।

संसद में कौन लोग होते हैं?

संसद में विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिए, अब ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या पहले से ज़्यादा है। बहुत सारे क्षेत्रीय दलों के सदस्य भी अब बढ़ गए हैं। जिन समूहों और तबकों का अब तक संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, वे अब चुनाव जीत कर आने लगे हैं।

दलित और पिछड़े वर्गाें की राजनीतिक हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। निम्नलिखित तालिका से पता चलता है कि अलग-अलग सालों में लोक सभा के लिए वोट डालने वाली आबादी का प्रतिशत कितना था।

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इस तालिका को देखने के बाद क्या आप यह कह सकते हैं कि पिछले 65 सालों में चुनावों में जनता की सहभागिता कम हुई है या बढ़ी है या शुरुआती वृद्धि के बाद प्रायः स्थिर रही है?

देखने में आया है कि प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र अपने समाज को पूरे तौर पर सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं कर सकता। यह बात साफ़ दिखाई देने लगी है कि जब हमारे हित और अनुभव अलग-अलग होते हैं तो एक समूह के व्यक्ति सबके हित में आवाज़ नहीं उठा सकते। इसी बात को ध्यान में रखते हुए संसद में कुछ सीटें अनुसूचित जातियों (एस.सी.) और अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के लिए आरक्षित की गई हैं। एेसा इसलिए किया गया है ताकि इन चुनाव क्षेत्रों से केवल दलितों और आदिवासी उम्मीदवार ही जीतें और संसद में उनकी भी उचित हिस्सेदारी हो। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे दलितों और आदिवासियों की ज़िंदगी से जुड़े मुद्दों को ज़्यादा अच्छी तरह संसद में उठा सकते हैं।

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उपरोक्त चित्र में कुछ महिला सांसद दिखाई पड़ रही हैं।

आपको संसद में महिलाओं की कम संख्या का क्या कारण समझ में आता है? चर्चा करें।

इसी प्रकार हाल ही में महिलाओं के लिए भी सीटों के आरक्षण का सुझाव पेश किया गया है। इस सवाल पर अभी भी बहस जारी है। 60 साल पहले संसद में केवल 4 प्रतिशत महिलाएँ थीं। आज भी उनकी संख्या 11 प्रतिशत से जरा सा ऊपर ही पहुँच पाई है। जब आप इस बात पर ध्यान देते हैं कि आधी आबादी औरतों की है तो यह साफ़ हो जाता है कि संसद में उन्हें बहुत कम जगह मिल रही है।

इसी तरह के मुद्दों की वज़ह से आज हमारा देश एेसे कुछ मुश्किल और अनसुलझे सवालों से जूझ रहा है कि क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाकई प्रतिनिधिक है या नहीं। हम एेसे सवाल पूछ सकते हैं और उनके जवाब ढूँढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, यह बात लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की ताकत और उसमें भारत के लोगों की आस्था को झलकाती है।

शब्द संकलन

स्वीकृति-किसी चीज़ पर अपनी सहमति देना और उसके पक्ष में काम करना। इस अध्याय में यह शब्द संसद के पास उपलब्ध औपचारिक सहमति (निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से) और संसद में लोगों की आस्था बनाए रखने की ज़रूरत, दोनों संदर्भों में इस्तेमाल किया गया है।

गठबंधन-सका मतलब समूहों या दलों के तात्कालिक गठजोड़ से होता है। इस अध्याय में गठबंधन शब्द का इस्तेमाल चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में बनने वाले गठजोड़ के लिए किया गया है।

अनसुलझे-इसका आशय एेसी परिस्थितियों से है जहाँ समस्याओं का कोई आसान समाधान उपलब्ध नहीं होता है।

अभ्यास

1. राष्ट्रवादी आंदोलन ने इस विचार का समर्थन किया कि सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार होना चाहिए?

2. बगल में 2004 के संसदीय चुनाव क्षेत्रों का नक्शा दिया गया है। इस नक्शे में अपने राज्य के चुनाव क्षेत्रों को पहचानने का प्रयास करें। आपके चुनाव क्षेत्र के सांसद का क्या नाम है? आपके राज्य से संसद में कितने सांसद जाते हैं? कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को हरे और कुछ को नीले रंग में क्यों दिखाया गया है?

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3.अध्याय 1 में आपने पढ़ा था कि भारत में प्रचलित ‘संसदीय शासन व्यवस्था’ में तीन स्तर होते हैं। इनमें से एक स्तर संसद (केंद्र सरकार) तथा दूसरा स्तर विभिन्न राज्य विधायिकाओं (राज्य सरकारों) का होता है। अपने क्षेत्र के विभिन्न प्रतिनिधियों से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित तालिका को भरें-


राज्य सरकार केंद्र सरकार
कौन सा/से राजनीतिक दल अभी सत्ता में है/हैं?
आपके क्षेत्र से निर्वाचित प्रतिनिधि कौन है?
अभी कौन सा राजनीतिक दल विपक्ष में है?
पिछले चुनाव कब हुए थे?
अगले चुनाव कब होंगे?
आपके राज्य से कितनी महिला प्रतिनिधि हैं?