Table of Contents
शिक्षकों के लिए
इस ईकाई में सार्वजनिक सुविधाएँ मुहैया कराने और बाज़ार, फ़ैक्टरी तथा लोगों की कार्यस्थितियों पर लागू होने वाले कानूनों को क्रियान्वित करने में सरकार की भूमिका पर चर्चा की गई है। इसका मकसद विद्यार्थियों को इस बात की समझ प्रदान करना है कि सरकार की यह भूमिका मौलिक अधिकारों के मुद्दे से किस तरह जुड़ी हुई है। मौलिक अधिकारों के साथ यह जुड़ाव ही पिछले अध्यायों में उठाए गए मुद्दों के साथ इस मुद्दे को भी जोड़ देता है। कक्षा 6 और 7 की पाठ्यपुस्तकों में आजीविका और बाज़ारों पर हुई चर्चा को अध्याय 10 के संदर्भ में इस्तेमाल किया जा सकता है।
अध्याय 9 में जनसुविधाओं पर चर्चा की गई है। यहाँ पानी को एक अहम उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया गया है। यह महत्त्वपूर्ण बात है कि विद्यार्थी इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि जनसुविधाओं का क्या मतलब होता है और ये सुविधाएँ मुहैया कराने और उनकी ज़िम्मेदारी उठाने में सरकार को अहम भूमिका निभाने की ज़रूरत क्यों होती है। पानी की समान उपलब्धता, उसकी सस्ती लागत और गुणवत्ता का सवाल जनसुविधाओं से जुड़े मुद्दों में काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। कक्षा के भीतर होने वाली चर्चा में जनसुविधाओं के विषय में सरकार की भूमिका तथा मौज़ूदा असमान वितरण, दोनों को एक-दूसरे से अलग कर लें तो बेहतर होगा। इसका मतलब यह है कि लोगों को अगर अलग-अलग मात्रा में पानी मिल रहा है तो इसके आधार पर यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि सरकार जनसुविधाएँ मुहैया कराने में सक्षम नहीं है।
अध्याय 10 में आर्थिक गतिविधियों के नियमन में सरकार की केंद्रीय भूमिका पर चर्चा की गई है। एेसा मोटे तौर पर कानूनों के ज़रिए किया गया है। इस अध्याय में मौज़ूदा कानूनों को लागू करने और बाज़ार में मज़दूरों, उपभोक्ताओं व उत्पादकों के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानून बनाने के महत्त्व पर खास ज़ोर दिया गया है। भोपाल गैस त्रासदी को कानूनों में लापरवाही की मिसाल के तौर पर पेश किया गया है। संभव है बहुत सारे विद्यार्थियों ने इस दुर्घटना के बारे में न पढ़ा हो। बेहतर होगा कि उन्हें इस घटना के बारे में अनुसंधान करने और स्कूल के लिए एक दीवार पत्रिका (वॉल-पेपर) या लघु-नाटिका तैयार करने में मदद दी जाए। पुस्तक के आखिर में जिन वेबसाइट्स का उल्लेख किया गया है, वहाँ से आप अतिरिक्त संदर्भ सामग्री जुटा सकते हैं। भोपाल गैस त्रासदी एक एेतिहासिक मोड़ थी जिसने ‘पर्यावरण’ के मुद्दों को आर्थिक कानूनों से गहरे तौर पर जोड़ दिया। मज़दूरों व आम नागरिकों के प्रति उद्योग जगत तथा सरकार की जवाबदेही का विचार इस अध्याय का केंद्रीय तत्त्व है।
अध्याय 9
जनसुविधाएँ
1. आपने ऊपर उल्लिखित चार स्थितियों को देखा है। अब बताइए कि चेन्नई में पानी की स्थिति कैसी है।
2. उपरोक्त वर्णन में से घरेलू इस्तेमाल केविभिन्न जल स्रोतों को चुनें।
3. आपकी राय में सुब्रमण्यन और पद्मा के अनुभवों में क्या समानता है और क्या अलग है।
4. अपने इलाके में जलापूर्ति की स्थिति का वर्णन करते हुए एक अनुच्छेद लिखें।
5. देश के ज़्यादातर स्थानों पर गर्मियों में पानीबूँद-बूँद क्यों आने लगता है? पता लगाइए।
कक्षा में चर्चा के लिए-
क्या चेन्नई में सभी के लिए पानी का संकट है? क्या आप बता सकते हैं कि अलग-अलग लोगों को अलग-अलग मात्रा में पानी क्यों मिलता है? दो कारण बताएँ।
चेन्नई के लोग और पानी
श्री रामगोपाल जैसे आला सरकारी अफ़सर चेन्नई के अन्ना नगर में रहते हैं। भरपूर पानी के छिड़काव के कारण हरे-भरे बाग-बगीचों वाला यह इलाका खासा आकर्षक है। यहाँ के नलों में 24 घंटे पानी रहता है। जब पानी की आपूर्ति कम होती है तो श्री रामगोपाल नगर जल निगम में परिचित एक बड़े अफ़सर से बात करते हैं और फ़ौरन उनके लिए पानी के टैंकर का इंतज़ाम हो जाता है।
शहर के ज़्यादातर इलाकों की तरह मैलापुर में सुब्रमण्यन के अपार्टमेंट में भी पानी की कमी है। यहाँ नगरपालिका दो दिन में एक बार पानी उपलब्ध कराती है। कुछ लोगों की ज़रूरतें निजी बोरवेल से पूरी हो जाती हैं। लेकिन बोरवेल का पानी खारा है। लोग उसे शौचालय और साफ़-सफ़ाई के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। दूसरे कामों के लिए टैंकरों का पानी खरीदना पड़ता है। सुब्रमण्यन टैंकरों से पानी खरीदने के लिए हर महीने 500-600 रुपए खर्च करते हैं। पीने के पानी को साफ़ करने के लिए लोगों ने घरों में ही जलशोधन उपकरण लगवाए हुए हैं।
मडीपाक्कम के एक मकान में शिवा पहली मंजिल में किराए पर रहता है। उसे चार दिन में एक बार पानी मिलता है। पानी की कमी के कारण वह अपने परिवार को चेन्नई नहीं ला पा रहा है। पीने के लिए शिवा बाज़ार से पानी की बोतलें खरीदता है।
पद्मा घरेलू नौकरानी है। वह सैदापेट में काम करती है और पास ही एक झुग्गी बस्ती में रहती है। उसकी झुग्गी का किराया 650 रुपए माहवार है। उसकी झुग्गी में न तो शौचालय है और न ही पानी का अन्य स्रोत है। इस तरह की 30 झुग्गियों के लिए कोने में एक ही नल है। इस नल में रोज़ 20 मिनट के लिए एक बोरवेल से पानी आता है। इस दौरान एक परिवार को ज़्यादा से ज़्यादा 3 बाल्टियाँ भरने का मौका मिलता है। इसी पानी को लोग नहाने, धोने और पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं। गर्मियों में पानी इतना कम हो जाता है कि कई परिवारों को पानी ही नहीं मिल पाता। उन्हें टैंकरों का घंटों इंतज़ार करना पड़ता है।
जीवन के अधिकार के रूप में पानी
जीवन और स्वास्थ्य के लिए पानी आवश्यक है। न केवल यह हमारी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है, बल्कि पीने का साफ़ पानी बहुत सारी पानी से होने वाली बीमारियों को भी रोक सकता है। भारत की स्थिति यह है कि जिन देशों में दस्त, पेचिश, हैजा जैसी बीमारियों के सबसे ज़्यादा मामले सामने आते हैं, उनमें उसका स्थान काफ़ी ऊपर आता है। पानी से संबंधित बीमारियों के कारण हर रोज़ 1600 से ज़्यादा भारतीय मौत के मुँह में चले जाते हैं। उनमें से ज़्यादातर पाँच साल से भी कम उम्र के बच्चे होते हैं। अगर लोगों के पास पीने का पानी सहज रूप से उपलब्ध हो तो इन मौतों को रोका जा सकता है।
"...जल अधिकार का मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत और घरेलू इस्तेमाल के लिए पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, भौतिक रूप से पहुँच के भीतर और सस्ती दर पर पानी मिलना चाहिए।"
संयुक्त राष्ट्र 2002
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत पानी के अधिकार को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। इसका मतलब यह है कि अमीर-गरीब, हर व्यक्ति का यह अधिकार है कि उसे सस्ती कीमत पर दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिले। कहने का मतलब यह हैकि पानी तक सार्वभौमिक पहुँच होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में सबको पानी मिलना चाहिए।
उच्च न्यायालयाें और सर्वोच्च न्यायालय ने कई मुकदमों में यह कहा है कि सुरक्षित पेयजल का अधिकार भी मौलिक अधिकारों में से एक है। 2007 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पानी में गंदगी के सवाल पर महबूब नगर जिले के एक किसान द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर चली सुनवाई में इस बात को फिर दोहराया है। पत्र भेजने वाले किसान की शिकायत थी कि एक कपड़ा बनाने वाली कंपनी गाँव के पास स्थित जलधारा में विषैले रसायन छोड़ रही है। उससे भूमिगत पानी दूषित हो गया है जो कि सिंचाई और पीने के पानी का स्रोत है। इस मुकदमे के आधार पर न्यायाधीशों ने महबूब नगर के ज़िला कलेक्टर को आदेश दिया कि वह गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को हर रोज़ 25 लीटर पानी उपलब्ध कराएँ।
सतत विकास लक्ष्य 6: जल और स्वच्छता
www.in.undp.org
जनसुविधाएँ
पानी की तरह कुछ अन्य सुविधाएँ भी हैं जिनका हर व्यक्ति के लिए इंतज़ाम किया जाना चाहिए। पिछले साल आपने स्वास्थ्य और स्वच्छता, इनदो सुविधाओं के बारे में पढ़ा था। इसी तरह बिजली, सार्वजनिक परिवहन, विद्यालय और कॉलेज भी अनिवार्य चीज़ें हैं। इन्हें जनसुविधाएँ के नाम से जाना जाता है।
किसीजनसुविधा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि एक बार निर्माण हो जाने के बाद उसका बहुत सारे लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। मसलन अगर गाँव में एक स्कूल बना दिया जाए तो उससे बहुत सारे बच्चों को शिक्षा मिलती है। इसी तरह किसी इलाके में बिजली की आपूर्ति बहुत सारे लोगों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है : किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए पंपसेट चला सकते हैं, लोग बिजली से चलने वाली छोटी-मोटी वर्कशॉप खोल सकते हैं, विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने में आसानी हो जाती है और किसी न किसी तरीके से गाँव के अधिकांश लोगों को फ़ायदा होता है।
सरकार की भूमिका
चूँकि जनसुविधाएँ इतनी महत्त्वपूर्ण हैं,इसलिए उन्हें मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी भी किसी न किसी के ऊपर ज़रूर आनी चाहिए। जी हाँ, यह ज़िम्मेदारी सरकार के ऊपर आती है। सरकार की बहुत सारी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से एक यह है कि वह सभी लोगों को इस तरह की जनसुविधाएँ मुहैया कराए। आइए, इस बात को समझें कि यह ज़िम्मेदारी सरकार (और केवल सरकार) को ही क्यों उठानी चाहिए।
हम देख चुके हैं कि निजी कंपनियाँ मुनाफ़े के लिएचलती हैं। कक्षा 7 की पुस्तक में ‘बाज़ार में एक कमीज़’ अध्याय को पढ़ कर आप यह समझ चुके होंगे। ज़्यादातर जनसुविधाओं में मुनाफ़े की गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिए नालियों को साफ़ रखने या मलेरिया-रोधी अभियान चलाने से किसी कंपनी को क्या मुनाफ़ा हो सकता है? फलस्वरूप कोई निजी कंपनी इस तरह के कामों में दिलचस्पी नहीं लेगी।
सरकार पूरी आबादी के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करने में अहम भूमिका निभाती है। पोलियो जैसी बीमारियों का उन्मूलन भी इसी तरह की योजनाओं के तहत आता है। इस चित्र में एक छोटे बच्चे को पोलियो की खुराक दी जा रही है।
लेकिन स्कूल और अस्पताल जैसी कुछ जनसुविधाओं में निजी कंपनियों को दिलचस्पी हो सकती है। हमारे पास इस आशय के बहुत सारे उदाहरण हैं। अगर आप शहर में रहते हैं तो आपने कई जगह निजी कंपनियों को टैंकरों या सीलबंद बोतलों के ज़रिए पानी की आपूर्ति करते हुए भी देखा होगा। एेसी स्थितियों में निजी कंपनियाँ जनसुविधाएँ तो मुहैया कराती हैं, लेकिन उनकी कीमत इतनी ज़्यादा होती है कि चंद लोग ही उसका खर्च उठा पाते हैं। यह सुविधा सस्ती दर पर सभी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होती। जितना खर्च करेंगे लोग उसके मुताबिक ही सुविधाएँ पाएँगे, यदि यह सामान्य नियम बन जाए तो बड़ी मुश्किल होगी। इसका नतीज़ा यह होगा कि जो इन सुविधाओं के एवज में खर्च नहीं कर पाएँगे वे सम्मानजनक जीवन जीने से वंचित रह जाएँगे।
यह कोई अच्छा विकल्प नहीं है। जनसुविधाओं का संबंध लोगों की मूलभूत सुविधाओं से होता है। किसी भी आधुनिक समाज के लिए ज़रूरी है कि वहाँ इन सुविधाओं का इंतज़ाम हो ताकि लोगों की मूलभूत ज़रूरतें पूरी की जा सकें। संविधान में जीवन के अधिकार का जो आश्वासन दिया गया है वह देश के सभी लोगों को प्राप्त है। इसलिए जनसुविधाएँ मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी लाजिमी तौर पर सरकार के ऊपर ही आनी चाहिए।
आप हर साल सुनते होंगे कि सरकार ने संसद में बजट पेश किया है। बजट के ज़रिए सरकार अपने नफ़े-नुकसान का ब्यौरा पेश करती है। इसमें सरकार पिछले साल के खर्चों का खाता पेश करती है और अगले साल के खर्चों की योजना सामने रखती है।
बजट में सरकार को इस बात का भी एेलान करना पड़ता है कि अगले साल की योजनाओं के लिए पैसे की व्यवस्था कहाँ से की जाएगी। जनता से मिलने वाला कर सरकार की आमदनी का मुख्य जरिया होता है। जनता से कर वसूल करने और उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों पर खर्च करने का सरकार को पूरा अधिकार होता है। उदाहरण के लिए पानी की आपूर्ति के लिए सरकार को पानी निकालने, पानी को दूर तक पहुँचाने, पाइपों का जाल बिछाने, पानी को साफ करने और आखिर में गंदे पानी को ठिकाने लगाने पर खर्च करना पड़ता है। सरकार इन खर्चों को कुछ हद तक करों के ज़रिए और कुछ हद तक पानी की कीमत वसूल करके पूरा करती है। पानी की कीमत इस तरह तय की जाती है कि ज़्यादातर लोग रोज़ाना एक निश्चित मात्रा में पानी का खर्च उठा सकें।
अमू- देखा तुमने, सैदापेट की सड़कें कितनी ऊबड़-खाबड़ थीं? सड़कों पर बत्ती भी नहीं थी। पता नहीं रात में वहाँ क्या हालत होती होगी!
कुमार-किसी झुग्गी बस्ती में तुम और क्या उम्मीद करोगी!
अमू-झुग्गी बस्तियाँ एेसी क्यों होती हैं? क्या वहाँ जनसुविधाएँ नहीं होनी चाहिए?
कुमार-मेरे खयाल में जनसुविधाएँ उन लोगों के लिए होती हैं जो बस्तियों में ठीक-ठाक घरों में रहते हैं। वही लोग हैं जो कर चुकाते हैं।
अमू-सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह केवल ‘ठीक-ठाक’ बस्तियों को ही नहीं, बल्कि सभी को जनसुविधाएँ मुहैया कराए। तुम एेसे क्यों कह रहे हो? क्या बस्ती के लोग देश के नागरिक नहीं हैं? उनके भी तो कुछ अधिकार हैं।
कुमार (गुस्से में)-पर एेसे तो सरकार दिवालिया हो जाएगी!
अमू-चाहे जो हो, उसे रास्ता तो निकालना पड़ेगा। क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि सड़क, पानी, बिजली के बिना झुग्गियों में जिंदगी कैसी होगी?
कुमार-अरे...!
अमू-हमारे संविधान में बहुत सारी जनसुविधाओं को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इन अधिकारों की अवहेलना न हो ताकि हर व्यक्ति एक सम्मानजनक जीवन जी सके।
आप किसकी राय से सहमत हैं?
1. जनसुविधाएँ क्या होती हैं? जनसुविधाएँ मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार पर क्यों होनी चाहिए?
2. सरकार कुछ जनसुविधाओं के लिए निजी कंपनियों का भी सहारा ले सकती है। उदाहरण के लिए सड़कें बनाने के ठेके निजी कंपनियों या ठेकेदारों को भी दिए जाते हैं। दिल्ली में बिजली के वितरण का काम दो निजी कंपनियों के हाथ में है। लेकिन सरकार को इन कंपनियों पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इन सुविधाओं को सस्ती कीमत पर सभी लोगों तक पहुँचाने के लक्ष्य को पूरा करने मेें कोई कसर न छोड़ें।
आपको एेसा क्यों लगता है कि जनसुविधाओं की ज़िम्मेदारी सरकार के ऊपर ही होनी चाहिए जबकि वह इन कामों को निजी कंपनियों के ज़रिए भी करवा सकती है?
3. अपने घर के पानी के बिल को देखें और पता लगाएँ कि आपके इलाके में नगरपालिका जल की न्यूनतम कीमत क्या है। अगर आप ज़्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं तो क्या उसकी दर भी बढ़ जाती है? पानी के ज़्यादा इस्तेमाल पर बढ़ी हुई दर से बिल वसूल करने के पीछे सरकार का क्या उद्देश्य है?
4. किसी वेतनभोगी कर्मचारी, अपना व्यवसाय/फैक्टरी चलाने वाले व्यक्ति और एक दुकानदार से बात करके पता लगाएँ कि लोग किस-किस तरह के कर सरकार को चुकाते हैं। अपने नतीजों को कक्षा में शिक्षक को दिखाएँ और चर्चा करें।
चेन्नई में पानी की आपूर्ति : क्या सबको पानी मिल रहा है?
इसमें कोई शक नहीं कि जनसुविधाएँ सभी को मुहैया होनी चाहिए। लेकिन हकीकत में एेसा नहीं है। बहुत सारे स्थानों पर एेसी सुविधाओं का भारी अभाव है। इस अध्याय के अगले हिस्सों में आप पानी की व्यवस्था के बारे में पढ़ेंगे। यह जनसुविधा बहुत मायने रखती है।
जैसा कि इस अध्याय की शुरुआत में हमने देखा था, चेन्नई में पानी की भारी कमी है। नगरपालिका की आपूर्ति से शहर की लगभग आधी ज़रूरत ही पूरी हो पाती है। कुछ इलाकों में नियमित रूप से पानी आता है। कुछ इलाकों में बहुत कम पानी आता है। जहाँ पानी का भंडारण किया गया है उसके आसपास के इलाकों में ज़्यादा पानी आता है, जबकि दूर की बस्तियों को कम पानी मिलता है।
ग्रामीण इलाकों में मनुष्यों और मवेशियों, दोनों के लिए पानी की ज़रूरत पड़ती है। यहाँ कुआँ, हैंडपंप, तालाब और कभी-कभार छत पर स्थित टंकियों से पानी मिलता है। इनमें से ज़्यादातर निजी स्वामित्व में हैं। शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक जलापूर्ति का और भी ज़्यादा अभाव है।
जलापूर्ति में कमी का बोझ ज़्यादातर गरीबों पर पड़ता है। जब मध्यम वर्ग के लोगों के सामने पानी की किल्लत पैदा हो जाती है तो इस वर्ग के लोग ज़्यादा आसानी से इसका हल ढूँढ़ लेते हैं। वे बोरवेल खोद कर, टैंकरों से पानी खरीद कर या बोतलबंद पानी खरीद का अपना काम चला लेते हैं।
पानी की उपलब्धता के अलावा कुछ ही लोगों की ‘सुरक्षित’ पेयजल तक पहुँच है। यह इस पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कितना खर्च कर सकता है। इस तरह संपन्न तबके के पास ही ज़्यादा विकल्प होते हैं। वे बोतलबंद पानी और जलशोधक उपकरणों के सहारे साफ पानी का इंतज़ाम कर सकते हैं। इस मद में खर्च कर सकने के कारण उन्हें साफ़ पानी मिल जाता है। परंतु गरीब इस सुविधा से वंचित रह जाते हैं। लिहाज़ा एेसा लगता है कि जिन लोगों के पास पैसा है उन्हीं के पास पानी का अधिकार है। यह स्थिति ‘पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने’ के लक्ष्य से बहुत दूर है।
किसानों से पानी छीनना
पानी की कमी ने निजी कंपनियों के लिए मुनाफ़े के नए रास्ते खोल दिए हैं। बहुत सारी निजी कंपनियाँ शहर के आसपास के इलाकों से पानी खरीद कर शहरों में बेचती हैं। चेन्नई में मामंदूर, पालुर, कारुनगिझी जैसे कस्बों और शहर के उत्तर में स्थित गाँवों से पानी लाया जाता है। 13,000 से भी ज़्यादा टैंकर इस काम में लगे हुए हैं। हर महीने पानी के व्यापारी किसानों को पेशगी रकम देते हैं ताकि वे किसानों की ज़मीन से पानी निकाल सकें। इस तरह न केवल खेती का पानी छिन जाता है, बल्कि गाँवों के लिए पीने के पानी की आपूर्ति भी कम पड़ने लगती है। नतीज़ा यह है कि इन सारे कस्बों और गाँवों में भूमिगत जल स्तर बहुत बुरी तरह गिर चुका है।
सतत विकास लक्ष्य 11: संवहनीय शहर और समुदाय
www.in.undp.org
विकल्पों की तलाश
चेन्नई की स्थिति कोई अनूठी नहीं है। गर्मियों के महीनों में पानी की कमी का यह हाल देश के दूसरे शहरों में भी दिखाई देने लगता है। नगरपालिका की जलापूर्ति में कमी से निपटने के लिए निजी कंपनियाँ ज़्यादा से ज़्यादा इलाकों में फ़ैलती जा रही हैं। ये कंपनियाँ अपने मुनाफ़े के लिए पानी बेचती हैं। पानी के इस्तेमाल में भी ज़बरदस्त गैर-बराबरी दिखाई देती है। शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति लगभग 135 लीटर पानी प्रतिदिन मिलना चाहिए। पानी की यह मात्रा लगभग 7 बाल्टी के बराबर है। शहरी जल आयोग ने यह मात्रा तय की है। लेकिन झुग्गी बस्तियों में लोगों को रोज़ाना प्रति व्यक्ति 20 लीटर पानी (एक बाल्टी) भी नहीं मिलता। दूसरी तरफ़ आलीशान होटलों में रहने वाले लोगों को रोज़ाना प्रति व्यक्ति 1600 लीटर (80 बाल्टी) तक पानी मिलता है।
चर्चा करें : अगर सरकार जलापूर्ति की ज़िम्मेदारी से हाथ खींच ले तो क्या होगा? क्या आपको लगता है कि यह सही कदम होगा?
नगरपालिका के ज़रिए जलापूर्ति में कमी को अकसर सरकार की नाकामयाबी माना जाता है। कुछ लोगों की दलील है कि चूँकि सरकार ज़रूरत के हिसाब से पानी मुहैया नहीं करवा पा रही है और बहुत सारे शहरी जल विभाग घाटे में चल रहे हैं, इसलिए जलापूर्ति का काम निजी कंपनियाें को सौंप दिया जाना चाहिए। उन्हें लगता है कि निजी कंपनियाँ ज़्यादा बेहतर काम कर सकती हैं।
इस दलील की रोशनी में निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कीजिए-
1. दुनिया भर में जलापूर्ति की ज़िम्मेदारी सरकार पर रही है। निजी जलापूर्ति व्यवस्था के उदाहरण बहुत कम हैं।
2. दुनिया में कई एेसे क्षेत्र हैं जहाँ सार्वभौमिक जलापूर्ति सब लोगों तक पहुँच चुकी है (नीचे बॉक्स देखें)।
पोर्तो एलेग्रे में सार्वजनिक जलापूर्ति
पोर्तो एलेग्रे ब्राजील का एक शहर है। इस शहर में बहुत सारे लोग गरीब हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के दूसरे ज़्यादातर शहरों के मुकाबले यहाँ शिशु मृत्यु दर बहुत कम है। यहाँ नगर जल विभाग ने सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया करा दिया है। शिशु मृत्यु दर में गिरावट के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। यहाँ पानी की औसत कीमत कम रखी गई है और गरीबों से केवल आधी कीमत ली जाती है। विभाग को जो भी फ़ायदा होता है उसका इस्तेमाल जलापूर्ति में सुधार के लिए किया जाता है। जल विभाग का काम पारदर्शी ढंग से चलता है। विभाग को कौन सी योजना हाथ में लेनी चाहिए, इस बारे में लोग मिलकर तय करते हैं। जनसभाओं में जनता प्रबंधकों का पक्ष सुनती है और जल विभाग की प्राथमिकताएँ तय करने में वोट के ज़रिए फ़ैसला करती है।
3.जहाँ जलापूर्ति की ज़िम्मेदारी निजी कंपनियों को सौंपी गई, एेसे कुछ मामलों में पानी की कीमत में भारी इज़ाफ़ा हुआ। इस कारण वहाँ बहुत सारे लोगों के लिए पानी का खर्चा उठाना संभव नहीं हो पाया। एेसे शहरों में लोगों के विशाल प्रदर्शन हुए। बोलीविया आदि देशों में तो दंगे भी फैल गए जिसके दबाव में सरकार को जलापूर्ति व्यवस्था निजी हाथों से छीन कर दोबारा अपने हाथों में लेनी पड़ी।
ऊपर के भाग में आए मुख्य विचारों पर चर्चा करें। जलापूर्ति में सुधार के लिए आपकी राय में क्या किया जा सकता है?
क्या आपको एेसा लगता है कि पानी और बिजली जैसे संसाधनों को बचाना और सार्वजनिक परिवहन साधनों का ज़्यादा इस्तेमाल करना बेहतर है?
4. भारत में सरकारी जल विभागों की सफलता के कई उदाहरण रहे हैं। लेकिन ये उदाहरण कम हैं और उनकी सफलता कुछ क्षेत्रों में ही सीमित दिखाई देती है। मुंबई का जलापूर्ति विभाग अपने खर्चों को पूरा करने के लिए जल शुल्क के ज़रिए पर्याप्त पैसा जुटा लेता है। हाल ही की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि हैदराबाद में जल विभाग के दायरे में इज़ाफ़ा हुआ है और उसकी आमदनी बढ़ी है। चेन्नई में जल विभाग ने वर्षा जल संचय के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं ताकि भूमिगत जलस्तर में सुधार लाया जा सके। वहाँ पर पानी की ढुलाई और वितरण के लिए निजी कंपनियों की भी सेवाएँ ली जा रही हैं, लेकिन पानी के टैंकरों की दर सरकारी जलापूर्ति विभाग ही तय करता है और वही उन्हें काम करने की इजाजत देता है। इसलिए इन टैंकरों को ‘अनुबंधित’ कहा जाता है।
मुंबई की उपनगरीय रेलवे एक अच्छी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली है। यह दुनिया का सबसे घना यातायात मार्ग है। यह रेलवे हर रोज़ 65 लाख यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। 300 किलोमीटर से भी ज़्यादा लंबे नेटवर्क पर चलने वाली इन स्थानीय ट्रेनों के ज़रिए दूर-दूर रहने वाले लोग भी शहर में काम ढूँढ़ने आते हैं। इस बात पर गौर करें कि शहरों में रहन-सहन की भारी लागत के कारण साधारण मेहनतकश लोग शहर में नहीं रह सकते।
स्वच्छता संबंधी सुविधाओं का विस्तार
" ‘हमारे लिए पाखाने/शौचालय!’ उन्होंने हैरानी से कहा।
‘हम तो बाहर खुले में जाकर अपना काम निपटा लेते हैं।’
‘लैट्रीन तो तुम्हारे जैसे बड़े लोगों के लिए होती है।’ "
‘अछूतों’ की शिकायतों को याद करते हुए महात्मा गांधी का वक्तव्य, राजकोट स्वच्छता समिति, 1896.
पीने के साफ पानी के अलावा यह भी ज़रूरी है कि पानी से फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। लेकिन भारत में स्वच्छता सुविधाओं का दायरा तो जलापूर्ति से भी छोटा है। 2011 के सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के 87 प्रतिशत परिवारों के पास पेयजल की सुविधा उपलब्ध है, जबकि स्वच्छता सुविधाएँ (घर के भीतर शौचालय) 53 प्रतिशत परिवारों में ही उपलब्ध हैं। यहाँ भी ग्रामीण और शहरी इलाकों के गरीबों की स्थिति ज़्यादा कमज़ोर दिखाई देती है।
गैर-सरकारी संगठन ‘सुलभ इंटरनेशनल’ पिछले लगभग पाँच दशक से निम्न-जाति, निम्न-आय वर्ग लोगों के सामने मौजूद स्वच्छता के अभाव की समस्या से निपटने के लिए कोशिश कर रहा है। इस संगठन ने 8,500 से ज़्यादा सामुदायिक शौचालय इकाइयाँ और 15,00,000 से ज़्यादा घरेलू शौचालय बनाए हैं जिससे दो करोड़ लोग इन सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। सुलभ की सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर गरीब मेहनतकश वर्ग के लोग होते हैं।
सुलभ ने सरकारी पैसे से शौचालय इकाइयाँ बनाने के लिए नगरपालिकाओं या अन्य स्थानीय निकायों के साथ अनुबंध भी किए हैं। स्थानीय विभाग इन सेवाओं की स्थापना के लिए ज़मीन और पैसा मुहैया कराते हैं जबकि रख-रखाव की लागत कई बार प्रयोक्ताओं से मिलने वाले पैसे से पूरी की जाती है (शहरों में शौचालयों के इस्तेमाल पर ₹2 शुल्क लिया जाता है)।
अगली बार जब आप सुलभ शौचालय को देखेंगे तो हो सकता है खुद यह जानना चाहें कि ये शौचालय कैसे होते हैं!
क्या आपको लगता है कि समुचित स्वच्छता सुविधाओं के अभाव से लोगों का जीवन प्रभावित होता है? कैसे?
आपको एेसा क्यों लगता है कि इससे औरतों और लड़कियों पर ज़्यादा गहरा असर पड़ेगा?
2001 की जनगणना के अनुसार 44 प्रतिशत ग्रामीण घरों में बिजली पहुँच चुकी है। इसका मतलब यह है कि लगभग 7 करोड़ 80 लाख परिवार अभी भी अँधेरे में हैं।
निष्कर्ष
जनसुविधाओं का संबंध हमारी बुनियादी ज़रूरतों से होता है। भारतीय संविधान में पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि अधिकारों को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। इस प्रकार सरकार की एक अहम ज़िम्मेदारी यह बनती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त जनसुविधाएँ मुहैया करवाए।
लेकिन इस मोर्चे पर संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। आपूर्ति में कमी है और वितरण में भारी असमानता दिखाई देती है। महानगरों और बड़े शहरों के मुकाबले कस्बों और गाँवों में तो इन सुविधाओं की स्थिति और भी खराब है। संपन्न बस्तियों के मुकाबले गरीब बस्तियों में सेवाओं की स्थिति कमज़ोर है। इन सुविधाओं को निजी कंपनियों के हाथों में सौंप देने से समस्या हल होने वाली नहीं है। किसी भी समाधान में इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि देश के प्रत्येक नागरिक को इन सुविधाओं को पाने का अधिकार है और उसे ये सुविधाएँ समतापरक ढंग से मिलनी चाहिए।
अभ्यास
1.आपको एेसा क्यों लगता है कि दुनिया में निजी जलापूर्ति के उदाहरण कम हैं?
2.क्या आपको लगता है कि चेन्नई में सबको पानी की सुविधा उपलब्ध है और वे पानी का खर्च उठा सकते हैं? चर्चा करें।
3.किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी बेचने से स्थानीय लोगों पर क्या असर पड़ रहा है? क्या आपको लगता है कि स्थानीय लोग भूमिगत पानी के इस दोहन का विरोध कर सकते हैं? क्या सरकार इस बारे में कुछ कर सकती है?
4.एेसा क्यों है कि ज़्यादातर निजी अस्पताल और निजी स्कूल कस्बों या ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही हैं?
5.क्या आपको लगता है कि हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष है? अपनी बात के समर्थन में एक उदाहरण दें।
6.अपने इलाके की पानी, बिजली आदि कुछ जनसुविधाओं को देखें। क्या उनमें सुधार की कोई गुंजाइश है? आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए? इस तालिका को भरें।
क्या यह उपलब्ध है? | उसमें कैसे सुधार लाया जाए? | |
पानी | ||
बिजली | ||
सड़क | ||
सार्वजनिक परिवहन |
7.क्या आपके इलाके के सभी लोग उपरोक्त जनसुविधाओं का समान रूप से इस्तेमाल करते हैं? विस्तार से बताएँ।
8.जनगणना के साथ-साथ कुछ जनसुविधाओं के बारे में भी आँकड़े इकट्ठा किए जाते हैं। अपने शिक्षक के साथ चर्चा करें कि जनगणना का काम कब और किस तरह किया जाता है।
9.हमारे देश में निजी शैक्षणिक संस्थान – स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान – बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्त्व कम होता जा रहा है। आपकी राय में इसका क्या असर हो सकता है? चर्चा कीजिए।
शब्द संकलन
स्वच्छता-मानव मल-मूत्र को सुरक्षित ढंग से नष्ट करने की सुविधा। इसके लिए शौचालयों का निर्माण किया जाता है और गंदे पानी की सफ़ाई के लिए पाइप लगाए जाते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए एेसा करना ज़रूरी होता है।
कंपनी-कंपनी एक तरह की व्यावसायिकसंस्था होती है जिसकी स्थापना कुछ लोग या सरकार करती है। जिन कंपनियों का संचालन और स्वामित्व निजी समूहों या व्यक्तियों के हाथ में होता है उन्हें निजी कंपनी कहा जाता है। उदाहरण के लिए टाटा स्टील एक निजी कंपनी है, जबकि इंडियन अॉयल सरकार द्वारा संचालित कंपनी है।
सार्वभौमिक पहुँच-जब हर व्यक्ति को कोई चीज़ पूरी तरह हासिल हो जाती है और वह उसका खर्च उठा सकता हैतो इसे सार्वभौमिक पहुँच कहा जाता है। उदाहरण के लिए घर में नल में पानी आ रहा हो तो परिवार को पानी तक पहुँच मिल जाती है और अगर उसकी कीमत कम हो या वह मुफ्त उपलब्ध हो तो हर कोई उसका इस्तेमाल कर सकता है।
मूलभूत सुविधाएँ-भोजन,पानी, आवास, साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें जो ज़ि्ांदा रहने के लिए ज़रूरी होती हैं।