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भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन


तंजानिया (अफ्रीका) के एक छोटे गाँव में, माम्बा पानी लाने के लिए प्रात: शीघ्र उठती है। उसे बहुत दूर जाना पड़ता है और वह कुछ घंटों के बाद लौटती है। इसके उपरांत वह घर के कार्यों में अपनी माँ का हाथ बँटाती है और अपने भाइयों की बकरियों की देखभाल में मदद करती है। उसके पूरे परिवार के पास उनकी छोटी झोंपड़ी के चारों ओर चट्टानी भूमि का एक भाग है। माम्बा के पिता कठिन परिश्रम के बाद मात्र कुछ मक्का और सेम ही उगा सकते हैं। फिर भी यह उनके परिवार के साल भर के खाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

पीटर न्यूजीलैंड के भेड़ पालन प्रदेश के मध्यवर्ती भाग में रहता है जहाँ उसका परिवार ऊन प्रक्रमण करने का कारखाना चलाता है। प्रतिदिन जब पीटर स्कूल से लौटता है, वह अपने चाचा को अपनी भेड़ों की देखभाल करते हुए देखता है। उनका भेड़ों का बाड़ा कुछ दूरी पर पहाड़ियों से लगे हुए एक विस्तृत घास के मैदान पर स्थित है। वहाँ नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए एक वैज्ञानिक विधि से इसका प्रबंध किया जाता है। पीटर का परिवार जैविक कृषि द्वारा  सब्जियां  भी उगाता है।


आओ कुछ करके सीखें

जिस प्रदेश में आप रहते हैं, उस प्रदेश में भूमि, मृदा के प्रकार तथा जल उपलब्धता का प्रेक्षण करें। अपनी कक्षा में परिचर्चा करें कि किस प्रकार लोगों की जीवन शैली इन के द्वारा प्रभावित हुई है।



क्या आप जानते हैं?

विश्व की 90 प्रतिशत जनसंख्या भूमि क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर ही रहती है। शेष 70 प्रतिशत भूमि पर या तो विरल जनसंख्या है या वह निर्जन है।


माम्बा और पीटर विश्व के दो विभिन्न स्थानों में रहते हैं और उनके जीवन व्यतीत करने में बहुत अंतर है। यह विभिन्नता भूमि की गुणवत्ता, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति, प्राणियों और प्रौद्योगिकी के उपयोग की भिन्नता के कारण है। इन स्थानों का एक-दूसरे से भिन्न होने का मुख्य कारण इस प्रकार के संसाधनों की उपलब्धता है।


भूमि

सभी महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में भूमि भी शामिल है। भूपृष्ठ के कुल क्षेत्रफल का लगभग 30 प्रतिशत भाग भूमि है। यही नहीं इस थोड़े से प्रतिशत के भी सभी भाग आवास योग्य नहीं हैं।



 चित्र 2.1 : अॉस्टिंया में  साल्जबर्ग
इस चित्र में आप भूमि के कितने उपयोग पहचान सकते हैं?


मुख्यत: भूमि और जलवायु के भिन्न-भिन्न लक्षणों के कारण विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण असमान पाया जाता है। ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति, पर्वतों के तीव्र ढाल, जलाक्रांत संभावित निम्न क्षेत्र, मरुस्थल क्षेत्र एवं सघन वन क्षेत्र सामान्यत: विरल अथवा निर्जन हैं। उर्वर मैदानों और नदी घाटियों में कृषि के लिए उपयुक्त भूमि उपलब्ध है। इसलिए, ये स्थान विश्व के सघन बसे क्षेत्र हैं।


भूमि उपयोग

भूमि का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे कृषि, वानिकी, खनन, सड़कों और उद्योगों की स्थापना। साधारणत: इसे भूमि उपयोग कहते हैं। क्या आप माम्बा और पीटर के परिवारों के भूमि उपयोग के विभिन्न तरीकों की सूची बना सकते हैं?


भूमि का उपयोग भौतिक कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जैसे स्थलाकृति, मृदा, जलवायु, खनिज और जल की उपलब्धता। मानवीय कारक जैसे जनसंख्या और प्रौद्योगिकी भी भूमि उपयोग प्रतिरूप के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं।


आओ कुछ करके सीखें

अपने घर/पड़ोस में कुछ  बुज़ुर्ग व्यक्तियों से बात करें और पिछले कुछ वर्षों में हुए भूमि उपयोग परिवर्तन के विषय में सूचना एकत्रित कीजिए। प्राप्त जानकारी को अपनी कक्षा के सूचनापट्ट पर प्रदर्शित कीजिए।


स्वामित्व के आधार पर भूमि को निजी भूमि और सामुदायिक भूमि में बाँटा जा सकता है। निजी भूमि व्यक्तियों के स्वामित्व में होती है जबकि सामुदायिक भूमि समुदाय के स्वामित्व में होती है। सामान्य रूप से इसका उपयोग समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जैसे चारा, फलों, नट या औषधीय बूटियों को एकत्रित करना। इस सामुदायिक भूमि को साझा संपत्ति संसाधन भी कहते हैं।


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जनसंख्या और उनकी माँग सदैव बढ़ती रहती है लेकिन भूमि की उपलब्धता सीमित है। स्थान के अनुसार भूमि की गुणवत्ता में अन्तर होता है। लोगों ने सामुदायिक भूमि पर व्यापारिक क्षेत्र बनाने, नगरीय क्षेत्रों में घर बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का विस्तार करने के लिए अनाधिकृत हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। आज भूमि उपयोग प्रतिरूप में व्यापक परिवर्तन हमारे समाज में सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाते हैं। वर्तमान में कृषि और निर्माण सम्बन्धी गतिविधियों के प्रसार के कारण निम्नीकरण, भूस्खलन, मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण पर्यावरण के लिए प्रमुख खतरा है।


भूमि संसाधन का संरक्षण

बढ़ती जनसंख्या तथा इसकी बढ़ती माँगों के कारण वन भूमि और कृषि योग्य भूमि का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इससे इस प्राकृतिक संसाधन के समाप्त होने का डर पैदा हो गया है। इसीलिए विनाश की वर्तमान दर को अवश्य ही रोकना चाहिए। वनरोपण, भूमि उद्धार, रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के विनियमित उपयोग तथा अतिचारण पर रोक आदि भूमि संरक्षण के लिए प्रयुक्त कुछ सामान्य तरीके हैं।


मृदा

पृथ्वी के पृष्ठ पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत मृदा कहलाती है। यह भूमि से निकटता से जुड़ी हुई है। स्थल रूप मृदा के प्रकार को निर्धारित करते हैं। मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है। यह अपक्षय की प्रक्रिया के माध्यम से बनती है। खनिजों और जैव पदार्थों का सही मिश्रण मृदा को उपजाऊ बनाता है।

भूस्खलन

भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है। वे प्राय: भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी के साथ घटित होते हैं। लंबे समय तक भारी वर्षा होने से भूस्खलन होता है। यह नदी के प्रवाह को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर देता है। नदी अवरुद्धता के अचानक फूट पड़ने से निचली घाटियों के आवासों में विध्वंस आ जाता है। पहाड़ी भू-भाग में, भूस्खलन एक मुख्य और विस्तृत रूप से फैली प्राकृतिक आपदा है जो प्राय: जीवन और संपत्ति को आघात पहुँचाती है और चिंता का एक मुख्य विषय है।


भूस्खलन

एक वस्तुस्थिति अध्ययन

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में रेकांग पीओ के निकट पंजी गाँव में बड़े भूस्खलन के कारण राष्ट्रीय महामार्ग-22 की पुरानी हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क का 200 मीटर तक का भाग नष्ट हो गया। यह भूस्खलन पंजी गाँव में तीव्र विस्फोटन द्वारा हुआ था। विस्फोटन के कारण ढाल का यह कम”ाोर क्षेत्र नीचे गिर गया, जिसके कारण सड़क और गाँव के आस-पास के क्षेत्र को क्षति पहुँची। पंजी गाँव को किसी संभावित मानव विनाश से बचाने के लिए पूर्ण रूप से खाली करा दिया गया था।

न्यूनीकरण क्रियाविधि

वैज्ञानिक प्रविधियों के विकास से हमें समझने की शक्ति मिली है कि भूस्खलन उत्पन्न होने के कौन-कौन से कारक हैं और उनका प्रबन्धन कैसे करना है। भूस्खलन को रोकने की कुछ प्रविधियाँ निम्न हैं:


प्रतिधारी दीवार

  • भूस्खलन प्रभावी क्षेत्रों का मानचित्र बनाकर इसमें प्रभावित होने वाले स्थानों को इंगित करना। इस प्रकार इन क्षेत्रों को आवास बनाने के लिए छोड़ा जा सकता है।
  • भूमि को खिसकने से बचाने के लिए प्रतिधारी दीवार का निर्माण।
  • भूस्खलन को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका वनस्पति आवरण में वृद्धि है।
  • सतही अपवाह तथा झरना प्रवाहों के साथ-साथ भूस्खलन की गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए पृष्ठीय अपवाह नियंत्रण उपाय कार्यान्वित किए गए हैं।

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चित्र 2.3: मृदा परिच्छेदिका

शब्दावली

अपक्षय

तापमान परिवर्तन, तुषार क्रिया, पौधों, प्राणियों और मनुष्य के क्रियाकलाप द्वारा अनावरित शैलों का टूटना और क्षय होना।


क्या आप जानते हैं?

केवल एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं।



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चित्र 2.4: मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक


मृदा निर्माण के कारक

मृदा निर्माण के मुख्य कारक जनक शैल का स्वरूप और जलवायविक कारक हैं। मृदा निर्माण के अन्य कारक स्थलाकृति, जैव पदार्थों की भूमिका और मृदा निर्माण के संघटन में लगा समय है। अलग-अलग स्थानों में ये भिन्न-भिन्न हैं।


क्रियाकलाप

भारत में जलोढ़, काली, लाल, लैटराइट, मरुस्थलीय और पर्वतीय प्रकार की मृदाएँ हो सकती हैं। विभिन्न प्रकार की मृदाओं की एक-एक मुट्ठी एकत्रित कीजिए और निरीक्षण कीजिए। वे किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न हैं?


मृदा का निम्नीकरण और संरक्षण के उपाय


मृदा अपरदन और क्षीणता मृदा संसाधन के लिए दो मुख्य खतरे हैं। मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारकों से मृदाओं का निम्नीकरण हो सकता है। मृदा के निम्नीकरण में सहायक कारक वनोन्मूलन, अतिचारण, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, वर्षा दोहन, भूस्खलन और बाढ़ हैं।

मृदा संरक्षण की कुछ विधियाँ निम्न प्रकार हैं:

मल्च बनाना : पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे प्रवाल से ढक दी जाती है। इससे मृदा की आर्द्रता रुकी रहती है।

वेदिका फार्म : चौड़े, समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढालों पर बनाए जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम होता है (चित्र 2.5)।


चित्र 2.5: वेदिका फार्म


समोच्चरेखीय जुताई : एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के सामान्तर जुताई ढाल से नीचे बहते जल के लिए एक प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है (चित्र : 2.6)।



चित्र 2.6: समोच्चरेखीय जुताई


रक्षक मेखलाएँ : तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके (चित्र 2.7)।


चित्र 2.7: रक्षक मेखला

समोच्चरेखीय रोधिकाएँ : समोच्चरेखाओं पर रोधिकाएँ बनाने के लिए पत्थरों, घास, मृदा का उपयोग किया जाता है। रोधिकाओं के सामने जल एकत्र करने के लिए खाइयाँ बनाई जाती हैं।


क्रियाकलाप

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एक ही आकार की  और दो ट्रे लीजिए। इन ट्रे के अंत में छ: छेद बनाइए और इन्हें बराबर मात्रा में मृदा से भरिए। ट्रे की मृदा को खाली छोड़ दीजिए जबकि ट्रे में गेहूँ अथवा चावल के दाने लगाइए। बाद में ट्रे के दाने उगकर कुछ ऊँचे हो जाते हैं। अब दोनों ट्रे को एेसे रखिए कि वे एक ढाल पर हों। दोनों ट्रे में बराबर ऊँचाई से, एक ओर से मग से जल डालते हैं। दोनों ट्रे के छिद्रों से निकलने वाले पंकिल जल को दो अलग-अलग डिब्बों में एकत्रित करें और तुलना करें कि प्रत्येक ट्रे से कितनी मृदा बह गई है।


चट्टान बाँध : यह जल के प्रवाह को कम करने के लिए बनाए जाते हैं। यह नालियों की रक्षा करते हैं और मृदा क्षति को रोकते हैं।

बीच की फसल उगाना : वर्षा दोहन से मृदा को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न फसलें एकांतर कतारों में उगाई जाती हैं।


क्या आप जानते हैं?

वर्ष 1975 में मानव उपयोग के लिए जल की खपत 3850 घन किण्मीण्/वर्ष थी जो वर्ष 2000 में बढ़कर 6000 घन किण्मीण्/वर्ष से भी अधिक हो गई है।


जल

जल एक महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है, भूपृष्ठ का तीन-चौथाई भाग जल से ढका है। इसीलिए इसे ‘जल ग्रह’ कहना उपयुक्त है। लगभग 3ण्5 अरब वर्ष पहले जीवन, आदि महासागरों में ही प्रारंभ हुआ था। यद्यपि आज भी महासागर पृथ्वी की सतह के दो-तिहाई भाग को ढके हुए हैं और विविध प्रकार के पौधों और जंतुओं को मदद करते हैं। महासागरों का जल लवणीय है और मानवीय उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है। अलवण जल केवल 2.7 प्रतिशत ही है। इसका लगभग 70 प्रतिशत भाग बर्फ़ की चादरों और हिमानियों के रूप में अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। अपनी स्थिति के कारण ये मनुष्य की पहुँच के बाहर है। केवल एक प्रतिशत अलवण जल उपलब्ध है और वह मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है। यह भौम जल, नदियों और झीलों में पृष्ठीय जल के रूप में तथा वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में पाया जाता है।


क्या आप जानते हैं?

एक टपकता नल एक वर्ष में 1,200 लीटर जल व्यर्थ करता है।



इसलिए अलवणीय जल पृथ्वी का सबसे अधिक मूल्यवान पदार्थ है। पृथ्वी पर जल न बढ़ाया जा सकता है और न घटाया जा सकता है। इसकी कुल मात्रा स्थिर रहती है। इसकी प्रचुरता में विविधता प्रतीत होती है क्योंकि यह वाष्पीकरण, वर्षण और वाह की प्रक्रियाओं द्वारा महासागरों, वायु, भूमि और पुन: महासागरों में चक्रण द्वारा निरंतर गतिशील है। जैसा कि आप जानते हैं इसे ‘जल चक्र’ कहते हैं। मनुष्य जल की बड़ी मात्रा का उपयोग न केवल पीने और धुलाई में ही करता है वरन उत्पादन प्रक्रिया में भी करता है। जल कृषि, उद्योगों तथा बाँधों के जलाशयों के माध्यम से विद्युत उत्पादन करने में भी प्रयोग किया जाता है। जल स्रोतों के सूखने अथवा जल प्रदूषण के कारण अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी के मुख्य कारक बढ़ती जनसंख्या, भोजन और नकदी फसलों की बढ़ती माँग, बढ़ता नगरीकरण और बेहतर होता जीवन स्तर हैं।


क्या आप जानते हैं?

क्या आपने जल  बाज़ार के बारे में सुना है? सौराष्ट्र प्रदेश में 1ण्25 लाख जनसंख्या वाला अमरेली शहर पास के तालुकों से पानी खरीदने के लिए पूर्णत: निर्भर है।


जल उपलब्धता की समस्याएँ




चित्र 2.8: यमुना नदी वाहित मल, औद्योगिक बहि:स्राव एवं
कचरे के कारण प्रदूषित हो रही है


विश्व के कई प्रदेशों में जल की कमी है। अधिकांश अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, दक्षिणी एशिया, पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के भाग, उत्तर-पश्चिमी मैकस्किो, दक्षिण अमेरिका के भाग और संपूर्ण आस्ट्रेलिया अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी का सामना कर रहे हैं। ये देश एेसे जलवायु प्रदेशों में स्थित हैं जहाँ अकसर सूखा पड़ता है। उनमें जलाभाव की अधिक समस्या बनी रहती है। इस प्रकार जल का अभाव मौसमी अथवा वार्षिक वर्षण में विविधता के परिणामस्वरूप हो सकता है अथवा अति उपयोग और जल स्रोतों के संदूषण के कारण भी जल का अभाव हो सकता है।


जल संसाधनों का संरक्षण

आज के विश्व में शुद्ध तथा पर्याप्त जल स्रोतों तक पहुँचना एक बड़ी समस्या बन गई है। इस क्षीण होते संसाधन के संरक्षण के लिए कदम उठाने चाहिए। यद्यपि जल एक नवीकरणीय संसाधन है तथापि इसका अतिउपयोग और प्रदूषण इसे उपयोग के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं। अशोधित या आंशिक रूप से शोधित वाहित मल, कृषि रसायनों का विसर्जन और जल निकायों में औद्योगिक बहि:स्राव जल के प्रमुख संदूषक हैं। इनमें शामिल नाइट्रेट धातुएँ और पीड़कनाशी, जल को प्रदूषित कर देते हैं। इनमें से अधिकांश रसायन अजैव निम्नीकरणीय होने के कारण जल द्वारा मानव शरीर में पहुँच जाते हैं। इन प्रदूषकों को जल निकायों में छोड़ने से पूर्व बहि:स्रावों को उपयुक्त विधि से शोधित करके जल प्रदूषण नियंत्रित किया जा सकता है।



वन और अन्य वनस्पति आवरण धरातलीय प्रवाह को मंद करते हैं और भूमिगत जल को पुन: पूरित करते हैं। जल संग्रहण पृष्ठीय प्रवाह को बचाने की दूसरी विधि है। जल रिसाव को कम करने के लिए खेतों को सिंचित करने वाली नहरों को ठीक से पक्का करना चाहिए। रिसाव और वाष्पीकरण से होने वाली जल क्षति को रोकने के लिए क्षेत्र की सि्ंप्रकलरों से सिंचाई करना अधिक प्रभावी विधि है। वाष्पीकरण की अधिक दर वाले शुष्क प्रदेशों में सिंचाई की ड्रिप अथवा टपकन विधि बहुत उपयोगी होती है। सिंचाई की इन विधियों को अपनाकर बहुमूल्य जल संसाधन को संरक्षित किया जा सकता है।


क्या आप जानते हैं?

अपने घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करके, इस जल का संग्रहण करना एवं विभिन्न उत्पादक उपयोगों में लाना वर्षा जल संग्रहण कहलाता है। औसतन दो घंटे की वर्षा का एक दौर 8,000 लीटर जल बचाने के लिए  काफ़ी है।


प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन

स्कूल के बच्चे हस्तशिल्प प्रदर्शनी में घूम रहे थे। प्रदर्शनी की वस्तुएँ देश के भिन्न-भिन्न भागों से एकत्रित की गई थीं। मोना ने एक थैला हाथ में उठाया और उत्साह से कहा, "यह एक सुंदर हैंड बैग है!" अध्यापिका ने कहा, "हाँ, यह जूट से बना है।" "क्या आप उन टोकरियों, दीप छत्रों और कुर्सियों को देखते हैं? वे बेंत और बाँस की बनी हैं। भारत के पूर्वी और उत्तर पूर्वी आर्द्र प्रदेशों में बाँस प्रचुर मात्रा में पैदा किया जाता है।" जेस्सी रेशमी स्कार्फ देखकर उत्साहित थी। "यह खूबसूरत स्कार्फ देखो।" अध्यापिका ने स्पष्ट किया कि रेशम रेशमकीटों से प्राप्त किया जाता है जो शहतूत के पेड़ों पर पाले जाते हैं। बच्चे समझ गए कि पौधे हमें अनेक विभिन्न उत्पाद प्रदान करते हैं जिनका उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं।

चित्र 2.10: रेशमकीट


प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन केवल स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल के बीच जुड़े एक सँकरे क्षेत्र में ही पाए जाते हैं जिसे हम जैवमंडल कहते हैं। जैवमंडल में सभी जीवित जातियाँ जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से परस्पर संबंधित और निर्भर रहती हैं। इस जीवन आधारित तंत्र को पारितंत्र कहते हैं। वनस्पति और वन्य जीवन बहुमूल्य संसाधन हैं। पौधे हमें इमारती लकड़ी देते हैं, प्राणियों को आश्रय देते हैं, अॉक्सीजन उत्पन्न करते हैं जिसमें हम साँस लेते हैं, फसलों को उगाने के लिए आवश्यक मृदा की सुरक्षा करते हैं, रक्षक मेखला के रूप में कार्य करते हैं, भूमिगत जल के संग्रह में सहायता करते हैं, हमें फल, लैटेक्स, तारपीन का तेल, गोंद, औषधीय पौधे और  कागज़ प्रदान करते हैं जो आपके अध्ययन के लिए अत्यधिक आवश्यक है। पौधों के असंख्य उपयोग हैं उनमें आप कुछ और जोड़ सकते हैं।

क्या आप जानते हैं?

भारतीय उप-महाद्वीप में जिन पशुओं का उपचार डिक्लोफिनैक, एस्प्रीन अथवा इबूप्रोफ़ेन जैसे पीड़ानाशी से किया जाता था, उनके अपमार्जन उपरांत गिद्ध किडनी खराब होने से मर रहे थे। पशुओं पर इन औषधियों के उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं तथा आरक्षित स्थान पर गिद्ध के प्रजनन के प्रयास किए जा रहे हैं।


चित्र 2.14: वन में अजगर




चित्र 2.11: ब्रह्मकमलएक
औषधीय बूटी


चित्र 2.12: किलकिला
(किंग फिशर)


वन्य जीवन के अंतर्गत जंतु, पक्षी, कीट एवं जलीय जीव रूप आते हैं। उनसे हमें दूध, मांस, खाल और ऊन प्राप्त होती है। कीट जैसे मधुमक्खी हमें शहद देती हैं, फूलों के परागण में मदद करती है और पारितंत्र में अपघटक के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चिड़ियाँ अपने भोजन के लिए कीटों पर निर्भर हैं और अपघटकों के रूप में कार्य करती हैं। गिद्ध मृत जीव-जंतुओं को खाने के कारण एक अपमार्जक है और पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण शोधक समझा जाता है। इसलिए प्राणी चाहे बड़े हों अथवा छोटे सभी पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए अनिवार्य हैं।


चित्र 2.13: घास स्थल एवं वन


प्राकृतिक वनस्पति का वितरण


वनस्पति की वृद्धि मुख्य रूप से तापमान और आर्दΡता पर निर्भर करती है। विश्व की वनस्पति के मुख्य प्रकारों को चार वर्गों में रखा जा सकता है, जैसे वन, घास स्थल, गुल्म और टुंड्रा।

भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विशाल वृक्ष उग सकते हैं। इस प्रकार वन प्रचुर जल आपूर्ति वाले क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं। जैसे-जैसे आर्द्रता कम होती है वैसे-वैसे वृक्षों का आकार और उनकी सघनता कम हो जाती है। सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों में छोटे आकार वाले वृक्ष और घास उगती है जिससे विश्व के घास स्थलों का निर्माण होता है। कम वर्षा वाले शुष्क प्रदेशों में कँटीली झाड़ियाँ एवं गुल्म उगते हैं। इस प्रकार के क्षेत्रों में पौधों की जड़ें गहरी होती हैं। वाष्पोत्सर्जन से होने वाली आर्दΡता की हानि को घटाने के लिए इन पेड़ों की पत्तियाँ काँटेदार और मोमी सतह वाली होती हैं। शीत ध्रुवीय प्रदेशों की टुंड्रा वनस्पति में मॉस और लाइकेन सम्मिलित हैं।


चित्र 2.14: वन में अज़गर



चित्र 2.15: स्कूल में छात्रों द्वारा वनों पर बनाया गया कोलॉज


पिछली दो शताब्दियों में विश्व में जितने लोग थे इस समय उनसे कहीं अधिक लोग हैं। बढ़ती जनसंख्या के पोषण के लिए, फ़सलों को उगाने के लिए, वनों के विशाल क्षेत्रों से वृक्ष काट दिए गए हैं। विश्व भर में वनों का आवरण  तेज़ी से समाप्त हो रहा है। इस बहुमूल्य संसाधन के संरक्षण की तुरंत आवश्यकता है।


प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन का संरक्षण


चित्र 2.16: सुनामी के पश्चात ग्रेट निकोबार के वर्षा-प्रचुर वन में क्षति


वन हमारी संपदा है। पौधे जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं और साथ ही पारितंत्र को भी अनुरक्षित रखते हैं। जलवायु में परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण पौधों और जंतुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो सकते हैं। बहुत-सी जातियाँ असुरक्षित अथवा संकटापन्न हैं और कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। वनोन्मूलन, मृदा अपरदन, निर्माण कार्य, दावानल और भूस्खलन में से कुछ मानव और प्राकृतिक कारक हैं जो मिलकर इन महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के लुप्त होने की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं। आज की मुख्य चिंताओं में से एक अनाधिकार शिकार करने की संख्या का बढ़ना है जिससे कुछ खास प्रजातियों की संख्या में ते”ाी से कमी आई है। पशु खाल, चमड़ा, नाखून, दाँत और पंखों के साथ-साथ सींगों के एकत्रीकरण और गैर-कानूनी व्यापार के लिए जंतुओं का अनाधिकार शिकार किया गया है। इनमें से कुछ जंतु चीता, शेर, हाथी, ब्लैकबक, मगरमच्छ, दरियाई घोड़ा, हिम तेंदुआ, शुतुरमुर्ग और मोर हैं। इनका संरक्षण जागरूकता बढ़ाकर किया जा सकता है।



चित्र 2.17: ब्लैकबक को सुरक्षा की आवश्यकता है


दावानल


क्रियाकलाप

समाचारों को पढ़िए और ज्ञात कीजिए कि यह अग्नि कैसे प्रारंभ हुई? क्या इससे बचा जा सकता था?

अधिक जानिए

दावानल प्राणिजात और वनस्पतिजात के संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक खतरा है। दावानल मुख्य रूप से तीन कारणों से घटित होता है :

1. तड़ित झंझा के कारण प्राकृतिक अग्नि का लगना।

2. लोगों की लापरवाही के कारण घास-फूस में जनित ऊष्मा के कारण अग्नि का लगना।

3. स्थानिक लोगों, ऊधमी एवं शरारती लोगों द्वारा किसी उद्देश्य से अग्नि लगाना।

नियंत्रण के कुछ उपाय

1. शिक्षण द्वारा अग्नि लगने से रोकना।

2. परीक्षण बिंदुओं, निपुण भूमि चौकसी तथा संचार जाल के समन्वित जाल द्वारा अग्नि लगने का शीघ्र पता लगाना।


राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण्य, जैवमंडल निचय, हमारी प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन को सुरक्षित रखने के लिए बनाए जाते हैं। सँकरी घाटियों, झीलों और आर्द्रभूमि का संरक्षण मूल्यवान संसाधन नष्ट होने से बचाने के लिए आवश्यक है।


शब्दावली

राष्ट्रीय उद्यान

वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए एक या एक से अधिक पारितंत्रों की पारिस्थितिक एकता की रक्षा के लिए नामित किया गया प्राकृतिक क्षेत्र।


यदि प्रजातियों की सापेक्ष संख्या को भंग न किया जाए तो पर्यावरण में संतुलन बना रहता है। विश्व के अनेक भागों में मनुष्य ने अपने क्रियाकलापों से अनेक प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों में उथल-पुथल कर दी है। अनेक पक्षियों और जीव-जंतुओं के अंधाधुंध शिकार के कारण या तो वे विलुप्त हो गए हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। प्रादेशिक और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों जैसे सामाजिक वानिकी, वनमहोत्सव को प्रोत्साहित करना चाहिए। स्कूल के बच्चों को पक्षी देखने, प्राकृतिक कैंपों में जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे विविध जातियों के निवास का अवलोकन कर सकें।

बहुत से देश पक्षियों और पशुओं को मारने और उनके व्यापार करने के विरुद्ध हैं। भारत में शेरों, चीतों, हिरणों, भारतीय सारंग और मोर को मारना अवैध है।


चित्र 2.18: चीतलों का झुंड


एक अंतर्राष्ट्रीय परिपाटी सी.आई.टी.ई.एस. (द कन्वेंशन अॉन इंटरनेश्नल ट्रेड इन इनडेंजर्ड स्पीशीष अॉफ वाइल्ड फौना एंड फ्लौरा) की स्थापना की गई है जिसने प्राणियों और पक्षियों की अनेक जातियों की सूची तैयार की है। इस सूची में दिए गए सभी पक्षियों और प्राणियों के व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। पौधों और प्राणियों का संरक्षण प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य है।



चित्र 2.19: काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में हाथियों का झुंड


शब्दावली

जैवमंडल निचय

यह वैश्विक नेटवर्क द्वारा जुड़े रक्षित क्षेत्रों की एक शृंखला है जिसे संरक्षण और विकास के बीच संबंध को प्रदर्शित करने के इरादे से बनाया गया है।


क्या आप जानते हैं?

सी.आई.टी.ई.एस. (द कन्वेंशन अॉन इंटरनेश्नल ट्रेड इन इनडेंजर्ड स्पीशीष अॉफ वाइल्ड फौना एंड फ्लौरा) सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य प्राणी एवं पौधों के नमूनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उनके जीवन को कोई खतरा नहीं है। मोटे तौर पर पशुओं की 5,000 जातियाँ और पौधों की 28,000 जातियाँ रक्षित की गई हैं। भालू, डाल्फिन, कैक्टस, प्रवाल, आर्किड और एेलो कुछ उदाहरण हैं।


अभ्यास

1. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

(1) मृदा निर्माण के लिए उत्तरदायी दो मुख्य जलवायु कारक कौन-से हैं?

(2) भूमि निम्नीकरण के कोई दो कारण लिखिए।

(3) भूमि को महत्त्वपूर्ण संसाधन क्यों माना जाता है?

(4) किन्हीं दो सोपानों के नाम बताइए जिन्हें सरकार ने पौधों और प्राणियों के संरक्षण के लिए आरंभ किया है।

(5) जल संरक्षण के तीन तरीके बताइए।


2. सही उत्तर को चिह्नित कीजिए -

(1) निम्नलिखित में से कौन-सा कारक मृदा निर्माण का नहीं है?

(क) समय (ख) मृदा का गठन (ग) जैव पदार्थ

(2) निम्नलिखित में से कौन-सी विधि तीव्र ढालों पर मृदा अपरदन को रोकने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है?

(क) रक्षक मेखला (ख) मलचिंग (ग) वेदिका कृषि

(3) निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकृति के संरक्षण के अनुकूल नहीं है?

(क) बल्ब को बंद कर देना चाहिए जब आवश्यकता न हो।

(ख) नल को उपयोग के बाद तुरंत बंद कर देना चाहिए।

(ग) खरीददारी के बाद पॉली पैक को नष्ट कर देना चाहिए।


3. निम्नलिखित का मिलान कीजिए -

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4. निम्नलिखित कथनों में से सत्य अथवा असत्य बताइए। यदि सत्य है तो उसके कारण लिखिए-

(1) भारत का गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान अत्यधिक आबाद प्रदेश है।

(2) भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता कम हो रही है।

(3) तटीय क्षेत्रों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतार में लगाए जाते हैं, जिसे बीच की फसल उगाना कहते हैं।

(4) मानवीय हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन पारितंत्र को व्यवस्थित रख सकते हैं।


5. क्रियाकलाप

भूमि उपयोग प्रतिरूप के परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कुछ और कारणों की चर्चा कीजिए। पिछले कुछ

वर्षों में क्या आपके स्थान पर भूमि उपयोग प्रतिरूप में कोई परिवर्तन हुआ है? अपने माता-पिता और

बड़े लोगों से पता कीजिए। आप निम्नलिखित प्रश्नों को पूछकर एक साक्षात्कार ले सकते हैं μ


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आपने जो तालिका पूरी की है उसके आधार पर भूमि उपयोग प्रतिरूपों का एक चित्र बनाइए जिन्हें आप 20 वर्ष बाद अपने पड़ोस में देखने की कल्पना करते हैं। आप क्यों सोचते हैं कि वर्षों बाद भूमि उपयोग प्रतिरूप बदल जाता है?