Sansadhanavemvikas-005

उद्योग


क्या आपने कभी यह विचार किया है कि लिखने की अभ्यास पुस्तिका जो आप इस्तेमाल में लाते हैं, वह विनिर्माण की लंबी प्रक्रिया के बाद आपके पास पहुँचती है। इसके जीवन की शुरुआत वृक्ष से होती है। उसे काटा जाता है और लुगदी-मिल तक ले जाया जाता है। वहाँ वृक्षों की लकड़ी को संसाधित एवं काष्ठ-लुगदी में परिवर्तित किया जाता है। काष्ठ-लुगदी को रासायनिक द्रव्य के साथ मिलाया जाता है और अंतत: मशीनों के द्वारा कागज़ के रूप में परिवर्तित किया जाता है। यह कागज़ प्रेस में जाता है जहाँ रसायनों से निर्मित स्याही का इस्तेमाल पृष्ठों पर रेखाएँ छापने में किया जाता है। इसके उपरांत पृष्ठों को अभ्यास पुस्तिका के रूप में बाँधकर व पैक करके बिक्री के लिए बाज़ार भेज दिया जाता है। अंत में यह आपके हाथों में पहुँचती है।


यात्रा आरंभ....


...कागज़ निर्माण....

...पुन:चक्रण...


द्वितीयक क्रियाकलाप या विनिर्माण में कच्चे माल को लोगों के लिए अधिक मूल्य के उत्पादों के रूप में परिवर्तित किया जाता है, जैसा कि आपने देखा लुगदी कागज़ के रूप में और कागज़ अभ्यास पुस्तिका के
रूप में। ये विनिर्माण प्रक्रिया के दो चरणों को प्रदर्शित करते हैं।

उद्योग का संबंध आर्थिक गतिविधि से है जो कि वस्तुओं के उत्पादन, खनिजों के निष्कर्षण अथवा सेवाओं की व्यवस्था से संबंधित है। इस प्रकार लोहा और इस्पात उद्योग वस्तुओं के उत्पादन से संबंधित है, कोयला खनन उद्योग कोयले को धरती से निकालने से संबंधित है तथा पर्यटन सेवा देने से संबंधित उद्योग है।


क्रियाकलाप

कपास के खेत से अपने घर तक अपनी कमीज़ की यात्रा का पता कीजिए।


उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों का वर्गीकरण कच्चा माल, आकार और स्वामित्व के आधार पर किया जा सकता है।

कच्चा माल : कच्चे माल के उपयोग के आधार पर उद्योग कृषि आधारित, खनिज आधारित, समुद्र आधारित और वन आधारित हो सकते हैं। 

कृषि आधारित उद्योग कच्चे माल के रूप में वनस्पति और जंतु आधारित उत्पादों का उपयोग करते हैं। खाद्य संसाधन, वनस्पति तेल, सूती वस्त्र, डेयरी उत्पाद और चर्म उद्योग कृषि आधारित उद्योगों के उदाहरण हैं। खनिज आधारित उद्योग प्राथमिक उद्योग हैं जो खनिज अयस्कों का उपयोग कच्चे माल के रूप मेें करते हैं। इन उद्योगों के उत्पाद अन्य उद्योगों का पोषण करते हैं। अयस्क से निर्मित लोहा खनिज आधारित उद्योग का उत्पाद है। यह कई अन्य उत्पादों के विनिर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जैसे भारी मशीनों, भवन निर्माण सामग्री तथा रेल के डिब्बे बनाने में। समुद्र आधारित उद्योग सागरों और महासागरों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। समुद्री खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और मत्स्य तेल निर्माण इसके कुछ उदाहरण हैं। वन आधारित उद्योग वनों से प्राप्त उत्पाद का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। लुगदी एवं कागज़ , औषध रसायन, फर्नीचर और भवन निर्माण वनों से संबंधित उद्योग हैं।


क्रियाकलाप

कृषि आधारित उद्योगों के कुछ उदाहरण दीजिए।



आकार : उद्योग के आकार का तात्पर्य निवेश की गई पूँजी की राशि, नियोजित लोगों की संख्या और उत्पादन की मात्रा से है। आकार के आधार पर उद्योगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है -लघु आकार के उद्योग और बृहत आकार के उद्योग। कुटीर या घरेलू उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग हैं जिसमें दस्तकारों के द्वारा उत्पादों का निर्माण हाथ से होता है। टोकरी बुनाई, मिट्टी के बर्तन और अन्य हस्तनिर्मित वस्तुएँ कुटीर उद्योगों के उदाहरण हैं। बड़े पैमाने के उद्योग जो बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, उनकी तुलना में छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी व प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। बड़े पैमाने के उद्योगों में पूँजी का निवेश अधिक और प्रयुक्त प्रौद्योगिकी उच्चस्तरीय होती है। रेशम बुनाई और खाद्य प्रक्रमण उद्योग लघु पैमाने के उद्योग हैं (चित्र 5.1)। अॉटोमोबाइल और भारी मशीनों का उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योग हैं।


चित्र 5.1: मखाने के खाद्य प्रक्रमण की अवस्थाएँ


स्वामित्व : स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को निजी क्षेत्र, राज्य स्वामित्व अथवा सार्वजनिक क्षेत्र, संयुक्त क्षेत्र और सहकारी क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन या तो एक व्यक्ति द्वारा या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा होता है जैसे हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और स्टील अॉथॉरिटी अॉफ इंडिया लिमिटेड। संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन राज्यों और व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा होता है। मारुति उद्योग लिमिटेड संयुक्त क्षेत्र के उद्योग का एक उदाहरण है। सहकारी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या पूर्तिकारों, कामगारों अथवा दोनों द्वारा होता है। आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड एवं सुधा डेयरी सहकारी उपक्रम के उत्तम उदाहरण हैं।


चित्र 5.2: सहकारी क्षेत्र में सुधा डेयरी


उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक


chap5img


चित्र 5.3 : उद्योगों के अवस्थिति संबंधी कारक


वे कारक जो उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करते हैं, कच्चे माल की उपलब्धता, भूमि, जल, श्रम, शक्ति, पूँजी, परिवहन और बाज़ार हैं। उद्योग उन्हीं स्थानों पर केंद्रित होते हैं जहाँ इनमें से कुछ या ये सभी कारक आसानी से उपलब्ध होते हैं। कभी-कभी सरकार कम दाम पर विद्युत उपलब्धता, कम परिवहन लागत तथा अन्य अवसंरचना जैसे प्रोत्साहन प्रदान करती है ताकि पिछड़े क्षेत्रों में भी उद्योग स्थापित किया जा सके। औद्योगीकरण से प्राय: नगरों और शहरों का विकास एवं वृद्धि होती है।


औद्योगिक तंत्र

औद्योगिक तंत्र में निवेश, प्रक्रम और निर्गत शामिल हैं। निवेश में कच्चे माल, श्रम और भूमि की लागत, जल की उपलब्धता, परिवहन, विद्युत और अन्य अवसंरचना शामिल हैं। प्रक्रम में कई तरह के क्रियाकलाप शामिल हैं जो कच्चे माल को परिष्कृत माल में परिवर्तित करते हैं। निर्गत अंतिम उत्पाद और इससे अर्जित आय है। सूती वस्त्र उद्योग के संदर्भ में कपास, मानव श्रम, कारखाना और परिवहन लागत निवेश हो सकतेे हैं। प्रक्रमों में ओटाई, कटाई, बुनाई, रँगाई और छपाई शामिल है। कमीज़ जिसे आप पहनते हैं वह उत्पादन है।


क्रियाकलाप

चमड़े के जूते के विनिर्माण में शामिल निवेश, प्रक्रम और निर्गत को ज्ञात करें।


औद्योगिक प्रदेश

औद्योगिक प्रदेश का विकास तब होता है जब कई तरह के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं और वे अपनी निकटता के लाभ आपस में बाँटते हैं। विश्व के प्रमुख औद्योगिक प्रदेश पूर्वोत्तर अमेरिका, पश्चिमी और मध्य यूरोप, पूर्वी यूरोप और पूर्वी एशिया हैं। मुख्य औद्योगिक प्रदेश अधिकांशत: शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों, समुद्री पत्तनों के समीप और विशेष तौर पर कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित होते हैं।


चित्र 5.4 : विश्व -औद्योगिक प्रदेश


भारत में अनेक औद्योगिक प्रदेश हैं, जैसे मुंबई-पुणे समूह, बंगलौर, तमिलनाडु प्रदेश, हुगली प्रदेश, अहमदाबाद-वडोदरा प्रदेश, छोटानागपुर औद्योगिक प्रदेश, विशाखापट्नम -गुंटूर औद्योगिक प्रदेश, गुड़गाँव-दिल्ली-मेरठ औद्योगिक प्रदेश और कोल्लम-तिरुवनंतपुरम औद्योगिक प्रदेश।


औद्योगिक विपदा

उद्योगों में दुर्घटना/विपदा मुख्य रूप से तकनीकी विफलता या संकट उत्पन्न करने वाले पदार्थों के बेतरतीब उपयोग के कारण घटित होती है। भोपाल में 3 दिसंबर 1984 को लगभग 00.30 बजे घटित, अब तक की सबसे त्रासदपूर्ण औद्योगिक दुर्घटना है। यह एक प्रौद्योगिकीय दुर्घटना थी जिसमें यूनियन कार्बाइड के कीटनाशी कारखाने से हाइड्रोजन सायनाइट तथा प्रतिक्रियाशील उत्पादों के साथ-साथ अत्यंत विषैली मिथाइल आइसोसायनेट (एम.आई.सी.) गैस का रिसाव हुआ था। 1989 में सरकारी सूचना के अनुसार 35,598 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी। हजारों लोग जो बच गए वो आज भी एक या अधिक बीमारियों जैसे अंधापन, प्रतिरक्षा तंत्र विकृति, आंत्रशोथ विकृतियों आदि से पीड़ित हैं।

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री


23 दिसंबर 2005 में चीन के गाओ कायो, चोंगगिंग में गैस कूप विस्फोट से 243 लोगों की मृत्यु तथा 9000 लोग दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे और इन स्थानों से 64,000 लोगों को विस्थापित किया गया था। कई लोग विस्फोट के बाद न भाग सकने के कारण मर गए। वे जो समय पर भाग पाए उनकी आँखें, त्वचा और फेफड़े गैस से क्षतिग्रस्त हो गए थे।



गाओ कायो में बचाव अभियान


जोखिम कम करने के उपाय

1. घने बसे आवासीय क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्रों से अलग बहुत दूर रखा जाना चाहिए।

2. उद्योगों के समीप बसने वाले लोगों को दुर्घटना होने की स्थिति में विषैले या खतरनाक पदार्थों के संग्रहण और उनके संभव प्रभावों का ज्ञान होना चाहिए।

3. आग की चेतावनी और अग्निशमन की व्यवस्था को उन्नत किया जाना चाहिए।

4. विषैले पदार्थों के भंडारण क्षमता की सीमा होनी चाहिए।

5. उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय को उन्नत किया जाना चाहिए।


प्रमुख उद्योगों का वितरण

विश्व के प्रमुख उद्योग लोहा-इस्पात उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग हैं। लोहा-इस्पात उद्योग और वस्त्र उद्योग काफ़ी पुराने उद्योग हैं जबकि सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग एक नया उभरता उद्योग है।

वे देश जिसमें लोहा-इस्पात उद्योग अवस्थित हैं, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और रूस है। वस्त्र उद्योग भारत, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान में संकेंद्रित है। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के मुख्य केंद्र मध्यवर्ती कैलिफोर्निया के सिलिकॉन घाटी में और भारत के बेंगलुरु प्रदेश में हैं।


क्या आप जानते हैं?

उभरते हुए उद्योग ‘सनराइज़ उद्योग’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य लाभ, सत्कार तथा ज्ञान से संबंधित उद्योग शामिल हैं।


लोहा-इस्पात उद्योग

अन्य उद्योगों की तरह लोहा-इस्पात उद्योग में भी बहुत से निवेश, प्रक्रम और निर्गत शामिल हैं। यह एक पोषक उद्योग है जिसके उत्पाद अन्य उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं। उद्योग के लिए निवेश में श्रम, पूँजी, स्थान और अन्य अवसंरचना के साथ-साथ लौह-अयस्क, कोयला और चूना-पत्थर कच्चे माल के रूप में सम्मिलित हैं। लौह-अयस्क से इस्पात निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं। कच्चे माल को झोंका भट्टी में रखा जाता है जहाँ यह प्रगलित होता है (चित्र 5.6)। इसके बाद यह परिशोधित होता है। प्राप्त उत्पाद इस्पात होता है जो अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।


शब्दावली

प्रगलन

यह एक एेसी प्रक्रिया है जिसमें धातुओं को उसके अयस्कों द्वारा गलनांक बिंदु से अधिक तपाकर निष्कर्षित किया जाता है।


chap5img1

चित्र 5.5 : इस्पात उत्पादन


इस्पात कड़ा होता है और इसे आसानी से काटा और आकार दिया जा सकता है अथवा इससे तार बनाए जा सकते हैं। एेलुमिनियम, निकल, तांबा जैसी अन्य धातुओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इस्पात में मिलाकर इसकी मिश्र धातुएँ बनाई जा सकती हैं। मिश्र धातु इस्पात को असामान्य कठोरता, दृढ़ता और जंग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है।


chap5img2

चित्र 5.6 : झोंका भट्टी में लौह-अयस्क से इस्पात तक


इस्पात प्राय: आधुनिक उद्योगों का मेरुदंड कहलाता है। लगभग सारी वस्तुएँ जिनका हम लोग उपभोग करते हैं वे या तो लोहा या इस्पात से बने हैं अथवा इन धातुओं से निर्मित औज़ारों और मशीनों से बने हैं। पोत, रेलगाड़ी, ट्रक और अॉटो अधिकांशत: इस्पात से बने हैं। यहाँ तक कि सेफ्टी पिन और सुईयाँ, जिनका उपयोग आप करते हैं वे भी इस्पात से बनती हैं। तेल-कूप इस्पात से बनी मशीनों से बेधित किए जाते हैं। इस्पात की पाइपलाइन से तेल परिवाहित किया जाता है। खनिजों का खनन इस्पात के उपकरणों से होता है। कृषि के यंत्र प्राय: इस्पात के बने होते हैं। विशाल भवनों का ढाँचा इस्पात का बनाया जाता है। 1800 ई. के पूर्व इस्पात उद्योग वहाँ स्थित थे जहाँ कच्चा माल, विद्युत आपूर्ति और बहता जल आसानी से उपलब्ध थे। बाद में उद्योग के लिए आदर्श स्थिति कोयला क्षेत्र के समीप, नहरों और रेलवे के निकट थी। 1950 के बाद लोहा और इस्पात उद्योग समुद्रपत्तन के निकट सपाट भूमि के विशाल क्षेत्रों में केंद्रित होने शुरू हुए। एेसा इसलिए हुआ क्योंकि इस्पात निर्माण का कार्य इस समय तक बहुत विशाल हो गया और लौह-अयस्क विदेशों से आयात करना पड़ता था।


chap5img3

चित्र 5.7: लौह-इस्पात उद्योग की परिवर्तनशील अवस्थिति


चित्र 5.8: विश्व -प्रमुख लोहा-इस्पात उत्पादन के क्षेत्र


भारत में लोहा-इस्पात उद्योग कच्चा माल, सस्ते श्रमिक, परिवहन और बाज़ार का लाभ लेते हुए विकसित हुए। सभी महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र, जैसे भिलाई, दुर्गापुर, बर्नपुर, जमशेदपुर, राउरकेला, बोकारो एक ही प्रदेश में स्थित हैं जो चार राज्यों में फैले हैं। वे चार राज्य हैं -पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़। भद्रावती और विजयनगर कर्नाटक में, विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में, सलेम तमिलनाडु में अन्य महत्त्वपूर्ण इस्पात के केंद्र हैं जो स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं।

जमशेदपुर: 1947 से पूर्व भारत में केवल एक इस्पात का कारखाना था -टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को)। यह निजी स्वामित्व में था। स्वतंत्रता के पश्चात् सरकार ने यह कार्य अपने हाथ में लिया और बहुत से लोहा-इस्पात संयंत्र स्थापित किए। झारखंड में स्वर्णरेखा और खरकई नदियों के संगम के समीप साकची में सन् 1907 में टिस्को की शुरुआत की गई थी। बाद में साकची का नाम बदल कर जमशेदपुर रखा गया। भौगोलिक रूप से जमशेदपुर, देश में लोहा-इस्पात केंद्र के रूप में सर्वाधिक सुविधाजनक स्थान पर है।



चित्र 5.9 : जमशेदपुर में लोहा-इस्पात उद्योग की अवस्थिति


साकची को कई कारणों से इस्पात संयंत्र स्थापित करने के लिए चुना गया। यह स्थान बंगाल-नागपुर रेलमार्ग पर कालीमाटी स्टेशन से मात्र 32 किमी. की दूरी पर था। यह स्थान लौह-अयस्क, कोयला और मैंगनीज निक्षेपों के साथ-साथ कोलकाता के निकट भी था, जहाँ विशाल बाज़ार उपलब्ध था। टिस्को को झरिया कोयला क्षेत्रों से कोयला और ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ से लौह-अयस्क, चूना-पत्थर, डोलोमाइट और मैंगनीज प्राप्त होता है। खरकई और स्वर्ण रेखा नदियों से पर्याप्त जल की आपूर्ति होती है। सरकारी प्रोत्साहनों से इसे प्रर्याप्त पूँजी उपलब्ध हुई।


आओ कुछ करके सीखें

एटलस की सहायता से भारत के कुछ लोहा-इस्पात उद्योग खोजें एवं भारत के रूपरेखा मानचित्र पर उनकी स्थिति चिह्नित करें।


जमशेदपुर में टिस्को की स्थापना के बाद कई अन्य औद्योगिक संयंत्र स्थापित किए गए। इनमें रसायन, इंजनों के पुर्जे, कृषि उपकरण, मशीनें, टिन की चादरें, केबल और तार का उत्पादन किया जाता है।

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के विकास से त्वरित औद्योगिक विकास आरंभ हुआ। भारतीय उद्योग के लगभग सभी क्षेत्र अधिकांशत: अपने आधारभूत अवसंरचना के लिए लोहा-इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं। भारतीय लोहा-इस्पात उद्योग में बृहत् समाकलित इस्पात संयंत्रों के साथ-साथ लघु इस्पात मिल भी सम्मिलित हैं। इसमें द्वितीयक उत्पादक, रॉलिंग मिल और सहायक उद्योग भी शामिल हैं।

पिट्सबर्ग: यह संयुक्त राज्य अमेरिका का एक महत्त्वपूर्ण इस्पात नगर है। पिट्सबर्ग के इस्पात उद्योग को स्थानीय सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कच्चा माल जैसे कोयला पिट्सबर्ग में ही उपलब्ध है जबकि लौह-अयस्क मिनेसोटा की लोहे की खानों से प्राप्त होता है जो पिट्सबर्ग से लगभग 1500 किमी. दूर है। इन खानों और पिट्सबर्ग के बीच नौपरिवहन का सर्वोत्तम मार्ग, ग्रेट लेक्स जलमार्ग, आता है। यह अयस्क के नौपरिवहन हेतु सस्ता मार्ग है। ग्रेट लेक्स से पिट्सबर्ग क्षेत्र तक लौह-अयस्क रेलगाड़ियों से लाया जाता है। ओहियो, मोनोगहेला और एल्घनी नदियों से पर्याप्त जल प्राप्त होता है।

आज पिट्सबर्ग में बहुत कम बड़ी इस्पात मिल हैं। ये मिल पिट्सबर्ग के ऊपर मोनोगहेला और एल्घनी नदी की घाटियों में तथा पिट्सबर्ग के नीचे ओहियो नदी के सहारे स्थित है। परिष्कृत इस्पात स्थल और जल दोनों मार्गों द्वारा बाज़ार में भेजा जाता है।

पिट्सबर्ग क्षेत्र में इस्पात मिलों के अतिरिक्त कई अन्य कारखाने हैं। ये रेल, रेल पटरी उपकरण और भारी मशीनों के उत्पादन में इस्पात का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं।


क्या आप जानते हैं?

ग्रेट लेक्स के नाम सुपीरियर, ह्ययूरॅन, ओंटारियो, मिशीगन और ईरी हैं। इन पाँचों झीलों में से सुपीरियर झील सबसे बड़ी है जो अन्य की तुलना में उच्च ऊर्ध्वप्रवाह पर स्थित है।


सूती वस्त्र उद्योग

धागे से कपड़े की बुनाई एक प्राचीन कला है। कपास, ऊन, सिल्क, जूट और पटसन का प्रयोग वस्त्र-निर्माण में होता है। उपयोग में लाए गए कच्चे माल के आधार पर वस्त्र उद्योग का वर्गीकरण किया जा सकता है। रेशे वस्त्र उद्योग के कच्चे माल हैं। रेशे प्राकृतिक या मानवनिर्मित हो सकते हैं। प्राकृतिक रेशे ऊन, सिल्क, कपास, लिनन और जूट से प्राप्त किए जाते हैं। मानवनिर्मित रेशों में नाइलॉन, पॉलिएस्टर, एेक्रिलिक और रेयॉन शामिल हैं।


शब्द उत्पति

शब्द टेक्सटाइल लैटिन के टेक्सियरे से व्युत्पन्न किया गया है जिसका अर्थ बुनना होता है।




सूती वस्त्र उद्योग विश्व के प्राचीनतम उद्योगों में से एक है। 18वीं सदी की औद्योगिक क्रांति तक सूती वस्त्र हस्तकताई तकनीकों एवं हथकरघों से बनाया जाता था। 18वीं सदी में पावरलूम ने पहले ब्रिटेन में और बाद में विश्व के अन्य दूसरे भागों में सूती वस्त्र उद्योग के विकास को आगे बढ़ाया। आज भारत, चीन, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सूती वस्त्र के महत्त्वपूर्ण उत्पादक हैं।

भारत में अत्युत्तम गुणवत्ता के सूती वस्त्र उत्पादन करने की गौरवपूर्ण परंपरा रही है। ब्रिटिश शासन से पूर्व, हाथ से कते और हाथ से बुने हुए वस्त्रों का एक विस्तृत भारतीय बाज़ार था। ढाका का मलमल, मसूलीपट्टनम की छींट, कालीकट के केलिको तथा बुरहानपुर, सूरत व वदोदरा के सुनहरी ज़ री के काम वाले सूती वस्त्र गुणवत्ता और डिज़ाइनों के लिए विश्वविख्यात थे। लेकिन हाथ से बने होने के कारण सूती वस्त्र का उत्पादन महँगा और बनने में अधिक समय लेता था। इसलिए परंपरागत सूती वस्त्र उद्योग पश्चिम के नए वस्त्र मिलों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सका, जो सस्ते व अच्छी गुणवत्ता वाले वस्त्रों का निर्माण यंत्रीकृत औद्योगिक यूनिट में करते थे।



चित्र 5.10 : विश्व -प्रमुख सूती वस्त्र विनिर्माण प्रदेश


पहली सफल यंत्रीकृत वस्त्र मिल मुंबई में 1854 ई. में स्थापित की गई। कोष्ण आर्द्र जलवायु, मशीन आयात के लिए पत्तन, कच्चे माल की उपलब्धता और दक्ष श्रमिक इस प्रदेश में इस उद्योग के द्रुत फैलाव में सहायक रहा।


क्या आप जानते हैं?

देश में प्रथम वस्त्र उद्योग 1818 ई. में कोलकाता के समीप फोर्ट गैलेस्टर में स्थापित हुआ था लेकिन कुछ समय बाद यह बंद हो गया।


प्रारंभ में यह उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में अनुकूल आर्दΡ जलवायु के कारण पनपा। लेकिन वर्तमान में आर्द्रता कृत्रिम रूप से उत्पन्न की जा सकती है और कच्ची कपास शुद्ध होती है एवं वस्त्र उत्पादन प्रक्रिया में इसका वजन कम नहीं होता, इसलिए यह उद्योग भारत के विभिन्न भागों में फैल गया है। कोयंबटूर, कानपुर, चेन्नई, अहमदाबाद, मुंबई, कोलकाता, लुधियाना, पुडुचेरी और पानीपत कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण केंद्र हैं।


क्या आप जानते हैं?

भारतीय वस्त्र उद्योग के कुल उत्पादन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा निर्यात किया जाता है।


अहमदाबाद : अहमदाबाद गुजरात में साबरमती नदी के तट पर स्थित है। 1859 में यहाँ पहली सूती मिल स्थापित हुई थी। यह यथा शीघ्र ही मुंबई के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र-निर्माता नगर बन गया। अहमदाबाद को प्राय: ‘भारत का मानचेस्टर’ कहा जाता है। अनुकूल अवस्थिति कारक अहमदाबाद में सूती वस्त्र उद्योग के विकास में सहायक थे। अहमदाबाद कपास उत्पन्न करने वाले क्षेत्र के बहुत निकट स्थित है। यहाँ कच्चा माल आसानी से उपलब्ध होता है। जलवायु कताई और बुनाई के लिए आदर्श है। सपाट भूभाग और भूमि की आसानी से उपलब्धता मिलों की स्थापना में उपयुक्त है। गुजरात और महाराष्ट्र राज्य की घनी आबादी इस उद्योग को कुशल और अर्धकुशल श्रमिक उपलब्ध कराते हैं। सुविकसित सड़कें और रेल मार्गों का जाल सूती वस्त्र को देश के विभिन्न भागों में आसानी से पहुँचाने में मदद करता है। इस तरह इसकी बाज़ार तक सरल पहुँच उपलब्ध है। नज़ दीक में मुंबई पत्तन, इसे मशीनों का आयात करने और सूती वस्त्र के निर्यात की सुविधा प्रदान करता है।


क्रियाकलाप

दज़ी की दुकान से विभिन्न प्रकार के कपड़ों के टुकड़े इकट्ठा कीजिए तथा उन्हें सूती, रेशमी, कृत्रिम रेशे वाले और ऊनी कपड़ों में वर्गीकृत कीजिए।


परंतु हाल के वर्षों में, अहमदाबाद की सूती मिलों की कुछ समस्याएँ हैं। बहुत से वस्त्र मिल बंद हो चुके हैं। देश में नए वस्त्र केंद्रों का विकास और अहमदाबाद की मिलों में मशीन प्रौद्योगिकी का नवीकरण न होना इसका प्रमुख कारण है।

ओसाका : ओसाका जापान का एक महत्त्वपूर्ण वस्त्र-निर्माण केंद्र है। यह ‘जापान का मानचेस्टर’ के नाम से भी जाना जाता है। ओसाका में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कई भौगोलिक कारणों से हुआ है। ओसाका के चारों ओर का विस्तृत मैदान सूती वस्त्र मिलों के विकास के लिए आसानी से भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। कोष्ण आर्दΡ जलवायु कताई व बुनाई के लिए बहुत ही उपयुक्त है। योडो नदी मिलों के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध कराती है। श्रमिक आसानी से उपलब्ध हैं। पत्तन की अवस्थिति कच्चे कपास को आयात करने और वस्त्रों के निर्यात की सुविधा उपलब्ध कराती है। ओसाका का वस्त्र उद्योग पूर्णत: आयातित कच्चे मालों के ऊपर निर्भर है। कपास मिस्र, भारत, चीन और यू.एस.ए. से आयात की जाती है। परिष्कृत उत्पाद अधिकांशत: निर्यात किया जाता है। उच्च गुणवत्ता और कम मूल्य की वजह से उसका एक अच्छा बाज़ार है। यद्यपि देश का यह एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है लेकिन हाल ही में ओसाका के सूती वस्त्र उद्योग का स्थान अन्य उद्योग, जैसे लौह-इस्पात, मशीनरी, जहाज़ रानी, अॉटोमोबाईल, विद्युत उपकरण और सीमेंट लेते जा रहे हैं।


आओ कुछ करके सीखें

विश्व के रूपरेखा मानचित्र पर उन स्थानों को चिह्नित कीजिए जो ओसाका सूती वस्त्र उद्योग को कच्चा माल प्रदान करते हैं।



अभ्यास

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

(1) ‘उद्योग’ शब्द का क्या तात्पर्य है?

(2) वे कौन-से मुख्य तथ्य हैं जो उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करते हैं?

(3) कौन-सा उद्योग प्राय: आधुनिक उद्योग का मेरुदंड कहा जाता है और क्यों?

(4) कपास उद्योग मुंबई में तेज़ी से क्यों विकसित हुआ है?

(5) बेंगलुरु और कैलिफोर्निया में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के बीच क्या समानता है?

2. सही उत्तर चिह्नित कीजिए -

(1) फोर्ट गैलेस्टरअवस्थित है -

(क) पश्चिम बंगाल में

(ख) कैलिफोर्निया में

(ग) गुजरात में

(2) निम्न में से कौन-सा प्राकृतिक रेशा है?

(क) नायलॉन

(ख) जूट

(ग) एक्रिलिक

3. अंतर स्पष्ट कीजिए-

(1) कृषि आधारित और खनिज आधारित उद्योग

(2) सार्वजनिक क्षेत्र और संयुक्त क्षेत्र के उद्योग

4. दिए गए स्थानों में निम्नलिखित के दो-दो उदाहरण दीजिए-

(1) कच्चा माल : ................... और ...................

(2) अंतिम उत्पाद : ................... और ...................

(3) तृतीयक क्रियाकलाप : ................... और ...................

(4) कृषि-आधारित उद्योग : ...................और ...................

(5) कुटीर उद्योग : ...................और ...................

( 6) सहकारिता : ...................और ...................

5. क्रियाकलाप

उद्योग स्थापित करने के लिए अवस्थिति की पहचान कैसे की जाए-

अपनी कक्षा को समूह में बाँटें। प्रत्येक समूह, निदेशकमंडल है जिसने देवलोपन द्वीप में लोहा-इस्पात उद्योग के लिए उपयुक्त स्थान चयन करना है। तकनीकी विशेषज्ञों के एक दल ने टिप्पणी और मानचित्र के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। दल ने लौह-अयस्क, कोयला, जल और चूना-पत्थर के साथ-साथ मुख्य बाज़ार, श्रमिकों के स्रोत और पत्तन सुविधाओं की पहुँच पर विचार किया। दल ने ग् और ल् दो स्थानों का सुझाव दिया। निदेशकमंडल को अंतिम निर्णय लेना है कि इस्पात उद्योग को कहाँ स्थापित करना है।

  • दल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पढ़ें।
  • प्रत्येक स्थान से संसाधनों की दूरियाँ ज्ञात करने के लिए मानचित्र का अध्ययन करें।
  • संसाधनों की महत्ता के अनुसार इनमें से प्रत्येक संसाधन को 1 से 10 तक महत्त्व अनुसार अंक दें। एक संसाधन का उद्योगों की तरफ़ जितना ही अधिक अभिकर्षण होगा उतना ही अधिक 1 से 10 तक के बीच उसका महत्त्व होगा।
  • अगले पृष्ठ पर दी गई सारणी को पूरा करें।
  • न्यूनतम लागत वाला स्थान सर्वाधिक उपयुक्त स्थान होना चाहिए।
  • याद रखें प्रत्येक निदेशकमंडल अलग तरह से निर्णय ले सकते हैं।


रिपोर्ट

देवलोपन द्वीप पर प्रस्तावित लोह-इस्पात संयंत्र की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक/संसाधन।

  • लौह-अयस्क: यह निम्न श्रेणी के लौह-अयस्क का सबसे बड़ा निक्षेप है। अयस्क का लंबी दूरी तक परिवहन अनार्थिक होगा।
  • कोयला: एकमात्र कोयला क्षेत्र जिसमें उच्च श्रेणी के कोयले के विशाल निक्षेप हैं। रेलमार्ग से कोयले का परिवहन, तुलनात्मक रूप से सस्ता है।
  • चूना-पत्थर: यह द्वीप में प्रचुरता से उपलब्ध है लेकिन शुद्धतम निक्षेप चूना पर्वत में है।
  • जल: नील नदी की दोनों सहायक नदियाँ प्रचुर मात्रा में हर मौसम में बड़े लौह-इस्पात संयंत्र को जल उपलब्ध कराती हैं। समुद्र का जल अधिक लवणीय होने के कारण अनुपयुक्त है।
  • बाज़ार: यह अनुमान किया जाता है कि उद्योग के उत्पाद का मुख्य बाज़ार राजधानीपुर का इंजीनियरिंग कारखाना होगा। उत्पाद, मुख्यत: लघु इस्पात की छड़ों और हल्की इस्पात चादरों की परिवहन लागत सापेक्षत: कम होगी।
  • श्रम की आपूर्ति: हिल, राह और सिंग मछुआरों की तीन बस्तियों से अकुशल कामगारों की भर्ती की जाएगी। यह अनुमानित किया जाता है कि अधिकांश श्रमिक अपने वर्तमान आवास से प्रतिदिन आने-जाने का काम करेंगे।
  • पत्तन की सुविधाएँ: इस समय न्यूनतम हैं। पत्तन पश्चिमपुर अच्छा, गहरा और प्राकृतिक पोताश्रय है जो मिश्रातु के आयात के लिए विकसित किया गया है।

chap5img6

* जितना अधिक अभिकर्षण, उतने अधिक अंक।