KrirtikaBhag1-002

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माटी वाली

विद्यासागर नौटियाल

शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी घर की खोली में पहुँचकर उसने दोनों हाथों की मदद से अपने सिर पर धरा बोझा नीचे उतारा मिट्टी से भरा एक कंटर1 माटी वाली टिहरी शहर में शायद ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसे वह न जानती हो या जहाँ उसे न जानते हों, घर के कुल निवासी, बरसों से वहाँ रहते आ रहे किराएदार, उनके बच्चे तलक घर-घर में लाल मिट्टी देते रहने के उस काम को करने वाली वह अकेली है उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं उसके बगैर तो लगता है, टिहरी शहर के कई एक घरों में चूल्हों का जलना तक मुश्किल हो जाएगा वह न रहे तो लोगों के सामने रसोई और भोजन कर लेने के बाद अपने चूल्हे-चौके की लिपाई करने की समस्या पैदा हो जाएगी भोजन जुटाने और खाने की तरह रोज़ की एक समस्या घर में साफ़, लाल मिट्टी तो हर हालत में मौजूद रहनी चाहिए चूल्हे-चौकों को लीपने के अलावा साल-दो साल में मकान के कमरों, दीवारों की गोबरी-लिपाई करने के लिए भी लाल माटी की ज़रूरत पड़ती रहती है शहर के अंदर कहीं माटाखान है नहीं भागीरथी और भीलांगना, दो नदियों के तटों पर बसे हुए शहर की मिट्टी इस कदर रेतीली है कि उससे चूल्हों की लिपाई का काम नहीं किया जा सकता आने वाले नए-नए किराएदार भी एक बार अपने घर के आँगन में उसे देख लेते हैं तो अपने आप माटी वाली के ग्राहक बन जाते हैं घर-घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक हरिजन बुढ़िया-माटी वाली


कनस्तर

शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं रद्दी कपड़े को मोड़कर बनाए गए एक गोल डिल्ले1 के ऊपर लाल, चिकनी मिट्टी से छुलबुल भरा कनस्तर टिका रहता है उसके ऊपर किसी ने कभी कोई ढक्कन लगा हुआ नहीं देखा अपने कंटर को इस्तेमाल में लाने से पहले वह उसके ऊपरी ढक्कन को काटकर निकाल फेंकती है ढक्कन के न रहने पर कंटर के अंदर मिट्टी भरने और फिर उसे खाली करने में आसानी रहती है उसके कंटर को ज़मीन पर रखते-रखते सामने के घर से नौ-दस साल की एक छोटी लड़की कामिनी दौड़ती हुई वहाँ पहुँची और उसके सामने खड़ी हो गई

"मेरी माँ ने कहा है, ज़रा हमारे यहाँ भी आ जाना"

"अभी आती हूँ"

घर की मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी कच्चे आँगन के एक कोने पर उड़ेल देने को कह दिया

"तू बहुत भाग्यवान है चाय के टैम पर आई है हमारे घर भाग्यवान आए खाते वक्त"

वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियाँ लेती आई रोटियाँ उसे सौंपकर वह फिर अपनी रसोई में घुस गई

माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं था घर की मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर-उधर तेज़ निगाहें दौड़ाईं हाँ, इस वक्त वह अकेली थी उसे कोई देख नहीं रहा था उसने फ़ौरन अपने सिर पर धरे डिल्ले के कपड़े के मोड़ाें को हड़बड़ी में एक झटके में खोला और उसे सीधा कर दिया फिर इकहरा खुल जाने के बाद वह एक पुरानी चादर के एक फटे हुए कपड़े के रूप में प्रकट हुआ


1. सिर पर बोझे के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी

मालकिन के बाहर आँगन में निकलने से पहले उसने चुपके से अपने हाथ में थामी दो रोटियों में से एक रोटी को मोड़ा और उसे कपड़े पर लपेटकर गाँठ बाँध दी साथ ही अपना मुँह यों ही चलाकर खाने का दिखावा करने लगी घर की मालकिन पीतल के एक गिलास में चाय लेकर लौटी उसने वह गिलास बुढ़िया के पास ज़मीन पर रख दिया

"ले, सद्दा-बासी साग कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ निगल जा"

माटी वाली ने खुले कपड़े के एक छोर से पूरी गोलाई में पकड़कर पीतल का वह गरम गिलास हाथ में उठा लिया अपने होंठों से गिलास के किनारे को छुआने से पहले, शुरू-शुरू में उसने उसके अंदर रखी गरम चाय को ठंडा करने के लिए सू-सू करके, उस पर लंबी-लंबी फूँकें मारीं तब रोटी के टुकड़ों को चबाते हुए धीरे-धीरे चाय सुड़कने लगी

"चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराइनजी"

"भूख तो अपने में एक साग होती है बुढ़िया भूख मीठी कि भोजन मीठा?"

"तुमने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखे हैं पूरे बाज़ार में और किसी घर में अब नहीं मिल सकते ये गिलास"

"इनके खरीदार कई बार हमारे घर के चक्कर काटकर लौट गए पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता हमें क्या मालूम कैसी तंगी के दिनों में अपनी जीभ पर कोई स्वादिष्ट, चटपटी चीज़ रखने के बजाय मन मसोसकर दो-दो पैसे जमा करते रहने के बाद खरीदी होंगी उन्होंने ये तमाम चीज़ें, जिनकी हमारे लोगों की नज़रों में अब कोई कीमत नहीं रह गई है बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगता है और ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकट्ठा कर ले जाते हैं, तमाम बर्तन-भाँडे काँसे के बरतन भी गायब हो गए हैं, सब घरों से"

"इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहाँ या तो स्टील के भाँडे दिखाई देते हैं या फिर काँच और चीनी मिट्टी के"

"अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है मैं तो सोचकर पागल हो जाती हूँ कि अब इस उमर में इस शहर को छोड़कर हम जाएँगे कहाँ!"

"ठकुराइन जी, जो ज़मीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो कहीं न कहीं ठिकाने पर जाएँगे ही पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा! मेरी तरफ़ देखने वाला तो कोई भी नहीं"

चाय खत्म कर माटी वाली ने एक हाथ में अपना कपड़ा उठाया, दूसरे में खाली कंटर और खोली से बाहर निकलकर सामने के घर में चली गई

उस घर में भी ‘कल हर हालत में मिट्टी ले आने’ के आदेश के साथ उसे दो रोटियाँ मिल गईं उन्हें भी उसने अपने कपड़े के एक दूसरे छोर में बाँध लिया लोग जानें तो जानें कि वह ये रोटियाँ अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है उसके घर पहुँचते ही अशक्त बुड्ढा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है वह घर में रसोई बनने का इंतज़ार करने लगता है आज वह घर पहुँचते ही तीन रोटियाँ अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी रोटियों को देखते ही चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का

साथ में ऐसा भी बोल देगी, "साग तो कुछ है नहीं अभी"

और तब उसे जवाब सुनाई देगा, "भूख मीठी कि भोजन मीठा?"

उसका गाँव शहर के इतना पास भी नहीं है कितना ही तेज़ चलो फिर भी घर पहुँचने में एक घंटा तो लग ही जाता है रोज़ सुबह निकल जाती है वह अपने घर से पूरा दिन माटाखान में मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक उसे ढोने में बीत जाता है घर पहुँचने से पहले रात घिरने लगती है उसके पास अपना कोई खेत नहीं ज़मीन का एक भी टुकड़ा नहीं झोंपड़ी, जिसमें वह गुज़ारा करती है, गाँव के एक ठाकुर की ज़मीन पर खड़ी है उसकी ज़मीन पर रहने की एवज़ में उस भले आदमी के घर पर भी माटी वाली को कई तरह के कामों की बेगार करनी होती है

नहीं, आज वह एक गठरी में बदल गए अपने बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी माटी बेचने से हुई आमदनी से उसने एक पाव प्याज़ खरीद लिया प्याज़ को कूटकर वह उन्हें जल्दी-जल्दी तल लेगी बुड्ढे को पहले रोटियाँ दिखाएगी ही नहीं सब्ज़ी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियाँ अब वह दो रोटियाँ भी नहीं खा सकता एक ही रोटी खा पाएगा या हद से हद डेढ़ अब उसे ज़्यादा नहीं पचता बाकी बची डेढ़ रोटियों से माटी वाली अपना काम चला लेगी एक रोटी तो उसके पेट में पहले ही जमा हो चुकी है मन में यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई वह अपने घर पहुँच गई

उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी माटी वाली के पाँवों की आहट सुनकर हमेशा की तरह आज वह चौंका नहीं उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाईं घबराई हुई माटी वाली ने उसे छूकर देखा वह अपनी माटी को छोड़कर जा चुका था

टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने उससे पूछा कि वह रहती कहाँ है

"तुम तहसील से अपने घर का प्रमाणपत्र ले आना"

"मेरी जिनगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुज़र गई साब"

"माटी कहाँ से लाती हो?"

"माटाखान से लाती हूँ माटी"

"वह माटाखान चढ़ी है तेरे नाम? अगर है तो हम तेरा नाम लिख देते हैं"

"माटाखान तो मेरी रोज़ी है साहब"

"बुढ़िया हमें ज़मीन का कागज़ चाहिए, रोज़ी का नहीं"

"बाँध बनने के बाद मैं क्या खाऊँगी साब?"

"इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते वह बात तो तुझे खुद ही तय करनी पड़ेगी"

टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है शहर में पानी भरने लगा है शहर में आपाधापी मची है शहरवासी अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे हैं पानी भर जाने से सबसे पहले कुल श्मशान घाट डूब गए हैं

माटी वाली अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी है गाँव के हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती जा रही है-"गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए"

प्रश्न-अभ्यास

  1. ‘शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं’ आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे?
  2. माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
  3. ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है?
  4. ‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता’-मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए
  5. माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
  6. आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी-इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए
  7. ‘गरीब आदमी का शमशान नहीं उजड़ना चाहिए’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए
  8. ‘विस्थापन की समस्या’ पर एक अनुच्छेद लिखिए