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अध्याय 5
यूक्लिड की ज्यामिति का परिचय
5.1 भूमिका
शब्द ‘ज्यामिति’ (geometry) यूनानी भाषा के शब्दों ‘जियो’ (geo) और ‘मीट्रीन’ (metrein) से मिल कर बना है। जियो का अर्थ है ‘पृथ्वी’ या ‘भूमि’ और मीट्रीन का अर्थ है ‘मापना’। इससे एेसा प्रतीत होता है कि ज्यामिति का उद्गम भूमि मापने की आवश्यकता के कारण हुआ है। गणित की इस शाखा का अध्ययन विभिन्न रूपों में प्रत्येक प्राचीन सभ्यताओं द्वारा किया गया, चाहे वह मिस्र हो, बेबीलोन हो, चीन हो, भारत हो, यूनान हो या इनकास (incas), इत्यादि। इन सभ्यताओं के लोगों को अनेक व्यावहारिक समस्याओं का सामना करना पड़ा जिनमें ज्यामिति के विकास की विभिन्न प्रकार से आवश्यकता पड़ी।
उदाहरण के तौर पर, जब भी नील नदी में बाढ़ आती थी, तो विभिन्न भूमि स्वामियों के संलग्न खेतों के बीच की परिसीमाओं (boundaries) को अपने साथ बहा ले जाती थी। इन बाढ़ों के बाद, इन परिसीमाओं को पुनः बनाया जाता था। इस कार्य के लिए, मिस्रवासियों ने सरल क्षेत्रफल परिकलित करने के साथ ही सरल रचनाएँ करने के लिए, अनेक ज्यामितीय तकनीकें और नियम विकसित किए। उन्होंने ज्यामिति के ज्ञान का उपयोग अन्नभण्डारों के आयतन निकालने तथा नहरों और पिरामिडों (pyramids) के निर्माण करने में किया। वे एक कटे हुए पिरामिड (truncated pyramid) (देखिए आकृति 5.1) का आयतन ज्ञात करने का सही
आकृति 5.1 : कटा हुआ पिरामिड
सूत्र भी जानते थे। आप जानते हैं कि पिरामिड एक एेसी ठोस आकृति होती है, जिसका आधार एक त्रिभुज या वर्ग या कोई अन्य बहुभुज होता है और जिसके पार्श्व फलक (side faces या lateral faces), ऊपर एक ही बिंदु पर मिलने वाले त्रिभुज होते हैं।
भारतीय उप-महाद्वीप में, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, इत्यादि की खुदाइयों से यह पता लगता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता (लगभग 3000 ई॰पू॰) ने ज्यामिति का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया। वह एक उच्च कोटि का संगठित समाज था। शहर अत्याधिक रूप से विकसित थे और बड़े योजनाबद्ध ढंग से निर्मित किए गए थे। उदाहरणार्थ, सड़कें परस्पर समांतर होती थीं और भूमिगत नालियों की व्यवस्था थी। घरों में विभिन्न प्रकार के अनेक कमरे हुआ करते थे। ये बातें दर्शाती हैं कि नगरवासी क्षेत्रमिति (mensuration) और व्यावहारिक अंकगणित में पूर्ण रूप से निपुण थे। निर्माण कार्य में प्रयोग की जाने वाली ईंटें भट्टों पर पकाई (बनाई) जाती थीं और इन ईंटों के लिए अनुपात लम्बाई: चौड़ाई:मोटाई, 4: 2:1 होता था।
प्राचीन भारत में, सुल्बासूत्र (800 ई॰पू॰-500 ई॰पू॰) ज्यामितीय रचनाओं के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ थे। वैदिक काल की ज्यामिति का उद्गम वैदिक पूजा के लिए आवश्यक भिन्न-भिन्न प्रकार की वेदियों और अग्नि-कुण्डों के निर्माण कार्य से हुआ। पवित्र अग्नियों को अधिक प्रभावशाली साधक होने के लिए, उनके स्थान, उनके आकारों और क्षेत्रफलों के बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित अनुदेशों के अनुसार, होते थे। घरेलू धार्मिक क्रियाओं के लिए, वर्गाकार और वृत्ताकार वेदियों का प्रयोग किया जाता था, जबकि सार्वजनिक पूजा स्थलों के लिए आयतों, त्रिभुजों और समलंबों के संयोजनों (मिले जुले) से बने आकारों का प्रयोग आवश्यक होता था। (अथर्ववेद में दिए) ‘श्रीयंत्र’ में एक दूसरे के साथ जुड़े नौ समद्विबाहु त्रिभुज अंतर्निहित हैं। ये त्रिभुज इस प्रकार व्यवस्थित किए गए हैं कि इनसे 43 छोटे (या गौण) त्रिभुजों का निर्माण होता है। यद्यपि वेदियों की रचना करने में परिशुद्ध ज्यामितीय विधियों का उपयोग किया गया था, फिर भी इनसे संबंधित सिद्धांतों की कोई चर्चा नहीं की गई।
उपरोक्त उदाहरण यह दर्शाते हैं कि ज्यामिति का विकास और अनुप्रयोग विश्व के सभी स्थानों पर होता रहा। परन्तु यह बड़े अव्यवस्थित प्रकार से हो रहा था। प्राचीन विश्व में, ज्यामिति के विकास की इन गतिविधियों की एक रोचक बात यह है कि इनका ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को या तो मौखिक रूप से या ताड़ के वृक्ष की पत्तियों पर लिखे संदेशों या कुछ अन्य विधियों द्वारा दिया जाता रहा। साथ ही, हम यह भी पाते हैं कि कुछ सभ्यताओं, जैसे कि बेबीलोनिया में, ज्यामिति एक अत्याधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण वाले विषय तक सीमित रही तथा एेसा ही भारत और रोम में रहा। मिस्रवासियों द्वारा विकसित की गई ज्यामिति में मुख्यतः परिणामों के कथन ही निहित थे। इनमें प्रक्रियाओं (अथवा विधियों) के कोई व्यापक नियम नहीं दिए गए। वस्तुतः बेबीलोन और मिस्रवासियों दोनों ही ने ज्यामिति का उपयोग अधिकांशतः व्यावहारिक कार्यों के लिए ही किया तथा उसको एक क्रमबद्ध विज्ञान के रूप में विकसित करने के लिए बहुत कम काम किया। परन्तु यूनान जैसी सभ्यताओं में इस तर्क पर बल दिया जाता था कि कुछ रचनाएँ किस प्रकार हो जाती हैं। यूनानियों की अभिरुचि उन कथनों, जिनको उन्होंने स्थापित किया था, की सत्यता निगमनिक तर्कण (deductive reasoning) का उपयोग करके जाँचने में थी (देखिए परिशिष्ट 1)।
एक यूनानी गणितज्ञ थेल्स (Thales) को श्रेय जाता है कि उन्होंने सबसे पहली ज्ञात उपपत्ति (proof) प्रदान की। यह उपपत्ति इस कथन की थी कि वृत्त का व्यास वृत्त को समद्विभाजित (अर्थात् दो बराबर भागों में विभाजित) करता है। थेल्स का एक सबसे प्रसिद्ध शिष्य पाइथागोरस (572 ई॰पू॰) था, जिसका नाम आपने अवश्य सुना होगा। पाइथागोरस और उसके साथियों ने अनेक ज्यामितीय गुणों की खोज की और ज्यामिति के सिद्धांतों का अत्याधिक विकास किया। यह प्रक्रिया 300 ई॰पू॰ तक जारी रही। इसी समय मिस्र में अलेक्जेंड्रिया के एक गणित के शिक्षक यूक्लिड (Euclid) ने उस समय तक ज्ञात गणित के सभी ज्ञान को एकत्रित किया और एलीमेंट्स (Elements) नामक अपने प्रसिद्ध ग्रंथ के रूप में उसे व्यवस्थित किया। उन्होंने एलीमेंट्स को 13 अध्यायों में विभाजित किया, जिनमें से प्रत्येक को ‘पुस्तिका’ माना जाता है। इन पुस्तिकाओं ने समस्त विश्व की ज्यामिति संबंधी समझ को आने वाली पीढ़ियों तक प्रभावित किया।
थेल्स
(640 सा०यु०पू०-546 सा०यु०पू०)
आकृति 5.2
यूक्लिड
(325 सा०यु०पू०-265 सा०यु०पू०)
आकृति 5.3
इस अध्याय में, हम ज्यामिति के प्रति यूक्लिड के दृष्टिकोण की चर्चा करेंगे और ज्यामिति के वर्तमान स्वरूप से इसे जोड़ने का प्रयत्न करेंगे।
5.2 यूक्लिड की परिभाषाएँ, अभिगृहीत और अभिधारणाएँ
यूक्लिड के समय के यूनानी गणितज्ञों ने ज्यामिति को उस विश्व का एक सिद्धांतीय प्रतिमान (model) सोचा जिसमें वे रहते थे। बिंदु (point), रेखा (line), तल (plane) [या पृष्ठ (surface)], इत्यादि की अवधारणाएँ उन वस्तुओं से स्थापित की गईं जो उनके आस-पास थीं। आकाश (space) और उनके आस-पास के ठोसों के अध्ययनों के आधार पर, एक ठोस वस्तु की सिद्धांतीय ज्यामितीय अवधारणा विकसित की गई। एक ठोस (solid) का आकार होता है, माप और स्थिति होती है तथा उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है। इसकी परिसीमाएँ पृष्ठ (surface) कहलाती हैं। ये आकाश के एक भाग को दूसरे भाग से पृथक करती हैं और इनकी कोई मोटाई नहीं होती। पृष्ठों की परिसीमाएँ वक्र (curves) या सीधी रेखाएँ (lines) होती हैं। इन रेखाओं के सिरे बिंदु (points) होते हैं।
ठोसों से बिंदुओं (ठोस-पृष्ठ-रेखाएँ-बिंदु) तक के तीन चरणों पर विचार कीजिए। प्रत्येक चरण में, हम एक विस्तार, जिसे हम विमा (dimension) भी कहते हैं, से वंचित होते हैं। इसलिए, यह कहा जाता है कि एक ठोस की तीन विमाएँ होती हैं, एक पृष्ठ की दो विमाएँ, एक रेखा की एक विमा होती है और एक बिंदु की कोई विमा नहीं होती। यूक्लिड ने इन कथनों को संक्षिप्त रूप से परिभाषाओं के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने इन रहस्योदघाटनों का प्रारम्भ ‘एलीमेंट्स’ की पुस्तक 1 में 23 परिभाषाएँ (definitions) देकर किया। इनमें से कुछ परिभाषाएँ नीचे दी जा रही हैंः
1. एक बिंदु (point) वह है जिसका कोई भाग नहीं होता।
2. एक रेखा (line) चौड़ाई रहित लम्बाई होती है।
3. एक रेखा के सिरे बिंदु होते हैं।
4. एक सीधी रेखा एेसी रेखा है जो स्वयं पर बिंदुओं के साथ सपाट रूप से स्थित होती है।
5. एक पृष्ठ (surface) वह है जिसकी केवल लम्बाई और चौड़ाई होती है।
6. पृष्ठ के किनारे (edges) रेखाएँ होती हैं।
7. एक समतल पृष्ठ (plane surface) एेसा पृष्ठ है जो स्वयं पर सीधी रेखाओं के साथ सपाट रूप से स्थित होता है।
यदि आप ध्यानपूर्वक इन परिभाषाओं को देखें, तो आप पाएँगे कि कुछ पदों जैसे भाग, चौड़ाई, लम्बाई, सपाट रूप से, इत्यादि को स्पष्ट रूप से आगे और अधिक समझाने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ, बिंदु की परिभाषा पर विचार कीजिए जो यूक्लिड ने दी है। इस परिभाषा में, ‘एक भाग’ को परिभाषित करने की आवश्यकता है। मान लीजिए कि हम यह परिभाषित करें कि एक भाग वह है जो ‘क्षेत्र’ घेरता है, तो हमें पुनः ‘क्षेत्र’ को परिभाषित करने की आवश्यकता होगी। अतः एक वस्तु को परिभाषित करने के लिए, आपको अनेक वस्तुओं को परिभाषित करने की आवश्यकता होती है और बिना किसी अंत के परिभाषाओं की एक लम्बी शृंखला प्राप्त हो सकती है। इन्हीं कारणवश, गणितज्ञों द्वारा यह सुविधाजनक पाया गया कि कुछ ज्यामितीय पदों को अपरिभाषित (undefined) मान लिया जाए। इस विधि से, हम एक बिंदु की ज्यामितीय संकल्पना का ऊपर दी हुई ‘परिभाषा’ की तुलना में एक बेहतर अंतर्ज्ञानात्मक आभास प्राप्त करेंगे। इसलिए, हम बिंदु को एक सूक्ष्म बिंदी (dot) से निरूपित करते हैं, परन्तु इस सूक्ष्म बिंदी की कुछ न कुछ विमा अवश्य होती है।
इसी प्रकार की समस्या उपरोक्त परिभाषा 2 में भी आती है। इसमें चौड़ाई और लम्बाई का संदर्भ आता है और इनमें से किसी को भी पहले परिभाषित नहीं किया गया है। इसी कारण, किसी भी विषय के अध्ययन के लिए कुछ पदों को अपरिभाषित रखा गया है। इसलिए, ज्यामिति में हम बिंदु, रेखा और तल (यूक्लिड के शब्दों में समतल पृष्ठ) को अपरिभाषित शब्दों के रूप में मान कर चलते हैं। केवल यह बात अवश्य है कि हम इन्हें अंतर्ज्ञानात्मक रूप से निरूपित कर सकते हैं अथवा ‘भौतिक प्रतिमानों’ (वस्तुओं) की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
अपनी इन परिभाषाओं से प्रारम्भ करते हुए, यूक्लिड ने कुछ गुणों को बिना सिद्ध किए सत्य कथन मानने की कल्पना की। ये कल्पनाएँ वास्तव में ‘स्पष्टतः सर्वव्यापी सत्य’ थे। उन्होंने इनको दो वर्गों में विभाजित किया। ये वर्ग थे ः अभिगृहीत (axioms) और अभिधारणाएँ (postulates)। उन्होंने अभिधारणा शब्द का प्रयोग उन कल्पनाओं के लिए किया जो विशिष्ट रूप से ज्यामिति से संबंधित थीं। दूसरी ओर, सामान्य अवधारणाएँ [जिन्हें प्रायः अभिगृहीत (axioms) कहा गया] वे कल्पनाएँ थीं जिन्हें निरंतर गणित में प्रयोग किया गया और जिनका केवल ज्यामिति से ही विशेष संबंध नहीं था। अभिगृहीत और अभिधारणाओं की और अधिक जानकारी के लिए परिशिष्ट 1 को देखिए।
यूक्लिड के कुछ अभिगृहीतों को, बिना उनके द्वारा दिए क्रम के, नीचे दिया जा रहा हैः
(1) वे वस्तुएँ जो एक ही वस्तु के बराबर हों एक दूसरे के बराबर होती हैं।
(2) यदि बराबरों को बराबरों में जोड़ा जाए, तो पूर्ण भी बराबर होते हैं।
(3) यदि बराबरों को बराबरों में से घटाया जाए, तो शेषफल भी बराबर होते हैं।
(4) वे वस्तुएँ जो परस्पर संपाती हों, एक दूसरे के बराबर होती हैं।
(5) पूर्ण अपने भाग से बड़ा होता है।
(6) एक ही वस्तुओं के दुगुने परस्पर बराबर होते हैं।
(7) एक ही वस्तुओं के आधे परस्पर बराबर होते हैं।
ये सामान्य अवधारणाएँ किसी प्रकार के परिमाणों (magnitudes) के संदर्भ में कही गई हैं। पहली सामान्य अवधारणा को समतलीय आकृतियों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, यदि एक त्रिभुज का क्षेत्रफल एक आयत के क्षेत्रफल के बराबर हो और इस आयत का क्षेत्रफल एक वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर हो, तो त्रिभुज का क्षेत्रफल भी वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होगा।
एक ही प्रकार के परिमाणों की तुलना की जा सकती है और उन्हें जोड़ा भी जा सकता है, परंतु भिन्न-भिन्न प्रकार के परिमाणों की तुलना नहीं की जा सकती है। उदाहरणार्थ, एक रेखा को एक आयत में जोड़ा नहीं जा सकता और न ही एक कोण की एक पंचभुज (pentagon) से तुलना की जा सकती है।
ऊपर दिया हुआ चौथा अभिगृहीत यह बताता हुआ प्रतीत होता है कि यदि दो वस्तुएँ सर्वसम (identical) हों (अर्थात् वे एक ही हों), तो वे बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी वस्तु स्वयं के बराबर होती है। यह अध्यारोपण (superposition) के सिद्धांत की तर्कसंगतता प्रकट करता है। अभिगृहीत (5) ‘से बड़ा है (greater than)’ की परिभाषा देता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई राशि B, किसी अन्य राशि A का एक भाग हो, तो A को राशि B और एक अन्य राशि C के योग के रूप में लिखा जा सकता है। सांकेतिक रूप से, A > B का अर्थ है कि कोई C एेसा है कि A = B + C है।
आइए अब यूक्लिड की पाँच अभिधारणाओं (postulates) की चर्चा करें। ये इस प्रकार हैंः
अभिधारणा 1 : एक बिंदु से एक अन्य बिंदु तक एक सीधी रेखा खींची जा सकती है।
ध्यान दीजिए कि यह अभिधारणा हमें बताती है कि दो भिन्न (distinct) बिंदुओं से होकर कम से कम एक रेखा अवश्य खींची जा सकती है, परन्तु इससे यह नहीं ज्ञात होता कि एेसी एक से अधिक सीधी रेखाएँ नहीं हो सकतीं। परन्तु अपने समस्त कार्यों में यूक्लिड ने, बिना कुछ बताए, यह बार-बार कल्पना की है कि दो भिन्न बिंदुओं से एक अद्वितीय (unique) रेखा ही खींची जा सकती है। हम इस परिणाम को एक अभिगृहीत के रूप में नीचे दे रहे हैंः
अभिगृहीत 5.1 : दिए हुए दो भिन्न बिंदुओं से होकर एक अद्वितीय रेखा खींची जा सकती है।
बिंदु P से होकर कितनी रेखाएँ खींची जा सकती हैं जो बिंदु Q से होकर भी जाती हों (देखिए आकृति 5.4)? केवल एक। यह रेखा PQ है। बिंदु Q से होकर जाने वाली एेसी कितनी रेखाएँ हैं जो बिंदु P से होकर भी जाती है? केवल एक, अर्थात् रेखा PQ। इस प्रकार, उपरोक्त कथन एक स्वयं सिद्ध (self evident) सत्य है और इसीलिए हम इसे एक अभिगृहीत के रूप में मान लेते हैं।
आकृति 5.4
अभिधारणा 2 : एक सांत रेखा (terminated line) को अनिश्चित रूप से बढ़ाया जा सकता है।
ध्यान दीजिए जिसको हम आजकल रेखाखंड (line segment) कहते हैं, उसे यूक्लिड ने सांत रेखा कहा था। अतः, वर्तमान की भाषा में, दूसरी अभिधारणा यह कहती है कि एक रेखाखंड को दोनों ओर विस्तृत करके एक रेखा बनाई जा सकती है (देखिए आकृति 5.5)।
आकृति 5.5
अभिधारणा 3 : किसी को केन्द्र मान कर और किसी त्रिज्या से एक वृत्त खींचा जा सकता है।
अभिधारणा 4 : सभी समकोण एक दूसरे के बराबर होते हैं।
अभिधारणा 5 : यदि एक सीधी रेखा दो सीधी रेखाओं पर गिर कर अपने एक ही ओर दो अंतः कोण (interior angles) इस प्रकार बनाए कि इन दोनों कोणों का योग मिल कर दो समकोणों से कम हो, तो वे दोनों सीधी रेखाएँ अनिश्चित रूप से बढ़ाए जाने पर उसी ओर मिलती हैं जिस ओर यह योग दो समकोणों से कम होता है।
उदाहरणार्थ, आकृति 5.6 में, रेखा PQ रेखाओं AB और CD पर इस प्रकार गिरती है कि अंतः कोणों 1 और 2 का योग, जो PQ के बाईं ओर स्थित हैं, 180º से कम है। अतः, रेखाएँ AB और CD अंततः PQ के बाईं ओर प्रतिच्छेद करेंगी।
आकृति 5.6
उपरोक्त पाँचों अभिधारणाओं को केवल देखने मात्र से, हमें यह स्पष्टतः पता चल जाएगा कि अन्य अभिधारणाओं की तुलना में अभिधारणा 5 कुछ अधिक जटिल है। दूसरी ओर, अभिधारणाएँ 1 से 4 इतनी सरल और स्पष्ट हैं कि उन्हें स्वयं सिद्ध सत्य के रूप में मान लिया जाता है। परन्तु, इन्हें सिद्ध करना संभव नहीं है। इसलिए, इन कथनों को बिना उपपत्ति (proof) के स्वीकृत कर लिया गया है (देखिए परिशिष्ट 1)। इस जटिलता के कारण, पाँचवीं अभिधारणा पर अगले अनुच्छेद में अधिक ध्यान दिया जाएगा।
आजकल, ‘अभिधारणा’ और ‘अभिगृहीत’ दोनों पदों को एक दूसरे के लिए एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है। वास्तव में, अभिधारणा एक क्रिया (verb) है। जब हम कहते हैं कि ‘आइए अभिधारणा करें’, तो इसका अर्थ है कि ‘आइए विश्व में प्रेक्षित परिघटनाओं (phenomena) के आधार पर कुछ कथन कहें।’ इसकी सत्यता/मान्यता की जाँच बाद में की जाती है। यदि वह सत्य है, तो उसे ‘अभिधारणा’ के रूप में स्वीकृत कर लिया जाता है।
कुछ अभिगृहीतों का एक निकाय (system) अविरोधी (consistent) कहलाता है (देखिए परिशिष्ट 1), यदि इन अभिगृहीतों से एेसा कथन निर्मित करना असंभव हो, जो किसी अन्य अभिगृहीत या पहले सिद्ध किए गए किसी कथन के विरोधी (contradictory) हो। अतः, यदि अभिगृहीतों का कोई निकाय दिया हो, तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह निकाय अविरोधी हो।
यूक्लिड ने अपनी अभिधारणाएँ और अभिगृहीतों को देने के बाद, इनका प्रयोग अन्य परिणामों को सिद्ध करने में किया। फिर इन परिणामों का प्रयोग करके, उन्होंने निगमनिक तर्कण (deductive reasoning) द्वारा कुछ और परिणामों को सिद्ध किया। जिन कथनों को सिद्ध किया वे साध्य (propositions) या प्रमेय (theorems) कहलाती थीं। यूक्लिड ने अपनी अभिगृहीतों, अभिधारणाओं, परिभाषाओं और पहले सिद्ध की गई प्रमेयों का प्रयोग करके, एक तार्किक शृंखला में 465 साध्य निगमित (deduce) किए। ज्यामिति के कुछ अगले अध्यायों में आप इन अभिगृहीतों का प्रयोग करके कुछ प्रमेयों को सिद्ध करेंगे।
आइए आगे आने वाले उदाहरणों में देखें कि यूक्लिड ने कुछ परिणामों को सिद्ध करने के लिए अपनी अभिगृहीतों और अभिधारणाओं का किस प्रकार प्रयोग किया।
उदाहरण 1 : यदि A, B और C एक रेखा पर स्थित तीन बिंदु हैं और B बिंदुओं A और C के बीच में स्थित है (देखिए आकृति 5.7), तो सिद्ध कीजिए कि AB + BC = AC है।
आकृति 5.7
हल : उपरोक्त आकृति में, AB + BC के साथ AC संपाती है।
साथ ही, यूक्लिड का अभिगृहीत (4) कहता है कि वे वस्तुएँ जो परस्पर संपाती हों एक दूसरे के बराबर होती हैं। अतः, यह सिद्ध किया जा सकता है कि
AB + BC = AC
है। ध्यान दीजिए कि इस हल में यह मान लिया गया है कि दो बिंदुओं से होकर एक अद्वितीय रेखा खींची जा सकती है।
उदाहरण 2 : सिद्ध कीजिए कि एक दिए हुए रेखाखंड पर एक समबाहु त्रिभुज की रचना की जा सकती है।
हल : उपरोक्त कथन में, एक दी हुई लम्बाई का एक रेखाखंड, मान लीजिए, AB दिया है [देखिए आकृति 5.8 (i)]।
आकृति 5.8
यहाँ आपको कुछ रचना करने की आवश्यकता है। यूक्लिड की अभिधारणा (3) का प्रयोग करके, आप बिंदु A को केन्द्र और AB त्रिज्या लेकर एक वृत्त खींच सकते हैं
[देखिए आकृति 5.8 (ii)]। इसी प्रकार, B को केन्द्र मानकर और BA त्रिज्या लेकर एक अन्य वृत्त खींचा जा सकता है। ये दोनों वृत्त मान लीजिए बिंदु C पर मिलते हैं। अब रेखाखंडों AC और BC खींच कर ∆ ABC बनाइए [देखिए आकृति 5.8 (iii)]।
इसलिए, आपको सिद्ध करना है कि यह त्रिभुज एक समबाहु त्रिभुज है; अर्थात् AB = AC = BC है।
अब, AB = AC है, क्योंकि ये एक वृत्त की त्रिज्याएँ हैं। (1)
इसी प्रकार, AB = BC (एक ही वृत्त की त्रिज्याएँ) (2)
उपरोक्त दोनों तथ्यों और यूक्लिड के पहले अभिगृहीत (वे वस्तुएँ जो एक ही वस्तु के बराबर होती हैं एक दूसरे के बराबर होती हैं) से आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि AB = BC = AC है।
अतः, ∆ ABC एक समबाहु त्रिभुज है।
ध्यान दीजिए कि यहाँ यूक्लिड ने, बिना कहीं बताए, यह मान लिया है कि केन्द्रों A और B को लेकर खींचे गए वृत्त परस्पर एक बिंदु पर मिलेंगे।
अब हम एक प्रमेय सिद्ध करेंगे जो विभिन्न परिणामों में अनेक बार अधिकांशतः प्रयोग की जाती हैः
प्रमेय 5.1 : दो भिन्न रेखाओं में एक से अधिक बिंदु उभयनिष्ठ नहीं हो सकता।
उपपत्ति : यहाँ, हमें दो रेखाएँ l और m दी हुई हैं। हमें यह सिद्ध करना है कि l और m में केवल एक बिंदु उभयनिष्ठ है।
थोड़े समय के लिए, यह मान लीजिए कि ये दो रेखाएँ दो भिन्न बिंदुओं P और Q पर प्रतिच्छेद करती हैं।
इस प्रकार, दो भिन्न बिंदुओं P और Q से होकर जाने वाली आपके पास दो रेखाएँ l और m हो जाती हैं। परन्तु यह कथन अभिगृहीत 5.1 के विरुद्ध है, जिसके अनुसार दो भिन्न बिंदुओं से होकर एक अद्वितीय रेखा खींची जा सकती है। अतः, हम जिस कल्पना से चले थे कि दो रेखाएँ दो भिन्न बिंदुओं से होकर जाती हैं गलत है।
इससे हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? हम निष्कर्ष निकालने पर बाध्य हो जाते हैं कि दो भिन्न रेखाओं में एक से अधिक बिंदु उभयनिष्ठ नहीं होगा।
प्रश्नावली 5.1
1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-से कथन सत्य हैं और कौन-से कथन असत्य हैं? अपने उत्तरों के लिए कारण दीजिए।
(i) एक बिंदु से होकर केवल एक ही रेखा खींची जा सकती है।
(ii) दो भिन्न बिंदुओं से होकर जाने वाली असंख्य रेखाएँ हैं।
(iii) एक सांत रेखा दोनों ओर अनिश्चित रूप से बढ़ाई जा सकती है।
(iv) यदि दो वृत्त बराबर हैं, तो उनकी त्रिज्याएँ बराबर होती हैं।
(v) आकृति 5.9 में, यदि AB = PQ और PQ = XY है, तो AB = XY होगा।
आकृति 5.9
2. निम्नलिखित पदों में से प्रत्येक की परिभाषा दीजिए। क्या इनके लिए कुछ एेसे पद हैं, जिन्हें परिभाषित करने की आवश्यकता है? वे क्या हैं और आप इन्हें कैसे परिभाषित कर पाएँगे?
(i) समांतर रेखाएँ (ii) लम्ब रेखाएँ (iii) रेखाखंड
(iv) वृत्त की त्रिज्या (v) वर्ग
3. नीचे दी हुई दो अभिधारणाओं पर विचार कीजिए :
(i) दो भिन्न बिंदु A और B दिए रहने पर, एक तीसरा बिंदु C एेसा विद्यमान है जो A और B के बीच स्थित होता है।
(ii) यहाँ कम से कम एेसे तीन बिंदु विद्यमान हैं कि वे एक रेखा पर स्थित नहीं हैं।
क्या इन अभिधारणाओं में कोई अपरिभाषित शब्द हैं? क्या ये अभिधारणाएँ अविरोधी हैं? क्या ये यूक्लिड की अभिधारणाओं से प्राप्त होती हैं? स्पष्ट कीजिए।
4. यदि दो बिंदुओं A और B के बीच एक बिंदु C एेसा स्थित है कि AC = BC है, तो सिद्ध कीजिए कि AC = AB है। एक आकृति खींच कर इसे स्पष्ट कीजिए।
5. प्रश्न 4 में, C रेखाखंड AB का एक मध्य-बिंदु कहलाता है। सिद्ध कीजिए कि एक रेखाखंड का एक और केवल एक ही मध्य-बिंदु होता है।
6. आकृति 5.10 में, यदि AC = BD है, तो सिद्ध कीजिए कि AB = CD है।
आकृति 5.10
7. यूक्लिड की अभिगृहीतों की सूची में दिया हुआ अभिगृहीत 5 एक सर्वव्यापी सत्य क्यों माना जाता है? (ध्यान दीजिए कि यह प्रश्न पाँचवीं अभिधारणा से संबंधित नहीं है।)
5.3 यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा के समतुल्य रूपान्तरण
गणित के इतिहास में यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा का अत्याधिक महत्व है। अनुच्छेद 5.2 से पुनः इस अभिधारणा को याद कीजिए। इस अभिधारणा के परिणामस्वरूप यदि दो रेखाओं पर गिरने वाली रेखा के एक ही ओर के दोनों अंतः कोणों का योग 1800 हो, तो दोनों रेखाएँ कभी भी प्रतिच्छेद नहीं कर सकतीं। इस अभिधारणा के अनेक समतुल्य रूपांतरण (equivalent versions) हैं। इनमें से एक प्लेफेयर का अभिगृहीत (Playfair's Axiom) है (जिसे स्काटलेंड के एक गणितज्ञ जॉन प्लेफेयर ने 1729 में दिया था)। यह इस प्रकार हैः
प्रत्येक रेखा l और उस पर न स्थित प्रत्येक बिंदु P के लिए, एक अद्वितीय रेखा m एेसी होती है जो P से होकर जाती है और l के समांतर है।
आकृति 5.11 में, आप देख सकते हैं कि P से होकर जाने वाली सभी रेखाओं में से केवल m ही रेखा l के समांतर है।
इस परिणाम को निम्नलिखित रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है :
दो भिन्न प्रतिच्छेदी रेखाएँ एक ही रेखा के समांतर नहीं हो सकतीं।
यूक्लिड को अपनी प्रथम 28 प्रमेयों को सिद्ध करने में पाँचवीं अभिधारणा की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। अनेक गणितज्ञों और स्वयं यूक्लिड को यह विश्वास था कि पाँचवीं अभिधारणा वास्तव में एक प्रमेय है, जिसे चारों अभिधारणों और अन्य अभिगृहीतों की सहायता से सिद्ध किया जा सकता है। परन्तु पाँचवीं अभिधारणा को प्रमेय के रूप में सिद्ध करने के सभी प्रयत्न असफल रहे। परन्तु इन प्रयत्नों के कारण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हुई - यह उपलब्धि अनेक अन्य ज्यामितियों की रचनाएँ (सृष्टि) रही। ये ज्यामितियाँ यूक्लिडीय ज्यामिति (Euclidean Geometry) से बहुत भिन्न हैं।
आकृति 5.11
आकृति 5.12
इन्हें अयूक्लिडीय ज्यामितियाँ (Non-Euclidean Geometries) कहा जाता है। इन ज्यामितियों की रचना को विचारों के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है, क्योंकि तब तक प्रत्येक व्यक्ति यह विश्वास करता था कि यूक्लिड की ज्यामिति ही एक मात्र ज्यामिति है और संपूर्ण विश्व यूक्लिडीय है। जिस विश्व में हम रह रहे हैं, उसकी ज्यामिति को अब अयूक्लिडीय ज्यामिति दर्शाया जा चुका है। वास्तव में, यह गोलाकार ज्यामिति (spherical geometry) कहलाती है। गोलाकार ज्यामिति में रेखाएँ सीधी रेखाएँ नहीं होती हैं। ये रेखाएँ दीर्घ वृत्तों (great circles) (जो एक गोले और उसके केन्द्र से होकर जाने वाले तलों के प्रतिच्छेदन से प्राप्त वृत्त होते हैं) के भाग होती हैं।
आकृति 5.12 में, रेखाएँ AN और BN (जो एक गोले के दीर्घ वृत्तों के भाग हैं) एक ही रेखा AB पर लम्ब हैं। परन्तु ये एक दूसरे से मिल रही हैं, यद्यपि रेखा AB के एक ही ओर के अंतः कोणों का योग दो समकोणों से कम नहीं है (वास्तव में, यह 90º + 90º = 180º है)। साथ ही, ध्यान दीजिए कि त्रिभुज NAB के कोणों का योग 180º से अधिक है, क्योंकि ∠ A + ∠ B = 180º है। इस प्रकार, यूक्लिडीय ज्यामिति केवल एक तल में बनी आकृतियों के लिए ही मान्य है। वक्र पृष्ठों में यह असफल रहती है।
अब, आइए एक उदाहरण लें।
उदाहरण 3 : निम्न कथन पर विचार कीजिए ः सीधी रेखाओं के एक एेसे युग्म का अस्तित्व है, जो एक दूसरे से प्रत्येक स्थान पर समदूरस्थ (equidistant) होती हैं। क्या यह कथन यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा का एक प्रत्यक्ष (सीधा) परिणाम है? स्पष्ट कीजिए।
हल : एक रेखा l लीजिए और एक बिंदु एेसा लीजिए जो रेखा l पर स्थित न हो। तब, प्लेफेयर अभिगृहीत से, जो यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा के समतुल्य है, हम जानते हैं कि P से होकर जाती हुई एक अद्वितीय रेखा m है जो l के समांतर है।
अब, एक बिंदु की एक रेखा से दूरी उस बिंदु से रेखा पर डाले गए लम्ब की लम्बाई होती है। m पर स्थित किसी बिंदु से रेखा l की दूरी और l पर स्थित किसी बिंदु से रेखा m की दूरी सदैव समान होगी। अतः, ये दोनों रेखाएँ l और m प्रत्येक स्थान पर एक दूसरे से समदूरस्थ हैं।
टिप्पणी ः अगले कुछ अध्यायों में जो आप पढ़ेंगे वह यूक्लिडीय ज्यामिति होगी। परन्तु, इनमें हमारे द्वारा प्रयोग किए गए अभिगृहीत और प्रमेय यूक्लिड के अभिगृहीत और प्रमेयों से भिन्न हो सकते हैं।
प्रश्नावली 5.2
1. आप यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा को किस प्रकार लिखेंगे ताकि वह सरलता से समझी जा सके?
2. क्या यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा से समांतर रेखाओं के अस्तित्व का औचित्य निर्धारित होता है? स्पष्ट कीजिए।
5.4 सारांश
इस अध्याय में, आपने निम्नलिखित बिंदुओं का अध्ययन किया हैः
1. यद्यपि यूक्लिड ने बिंदु, रेखा और तल को परिभाषित किया है, परन्तु गणितज्ञों ने इन परिभाषाओं को स्वीकार नहीं किया है। इसलिए ज्यामिति में इन्हें अब अपरिभाषित पदों के रूप में लिया जाता है।
2. अभिगृहीत और अभिधारणाएँ एेसी कल्पनाएँ हैं जो स्पष्टतः सर्वव्यापी सत्य होती हैं। इन्हें सिद्ध नहीं किया जाता है।
3. प्रमेय वे कथन हैं जिन्हें परिभाषाओं, अभिगृहीतों, पहले सिद्ध किए गए कथनों और निगमनिक तर्कण द्वारा सिद्ध किया जाता है।
4. यूक्लिड के कुछ अभिगृहीत थे :
(1) वे वस्तुएँ जो एक ही वस्तु के बराबर हों, एक दूसरे के बराबर होती हैं।
(2) यदि बराबरों को बराबरों में जोड़ा जाए, तो पूर्ण भी बराबर होते हैं।
(3) यदि बराबरों को बराबरों में से घटाया जाए, तो शेषफल भी बराबर होते हैं।
(4) वे वस्तुएँ जो परस्पर संपाती हों एक दूसरे के बराबर होती हैं।
(5) पूर्ण अपने भाग से बड़ा होता है।
(6) एक ही वस्तुओं के दुगुने परस्पर बराबर होते हैं।
(7) एक ही वस्तुओं के आधे परस्पर बराबर होते हैं।
5. यूक्लिड की अभिधारणाएँ निम्न थीं :
अभिधारणा 1 : एक बिंदु से एक अन्य बिंदु तक एक सीधी रेखा खींची जा सकती है।
अभिधारणा 2 : एक सांत रेखा को अनिश्चित रूप से बढ़ाया जा सकता है।
अभिधारणा 3 : किसी को केन्द्र मान कर और किसी त्रिज्या से एक वृत्त खींचा जा सकता है।
अभिधारणा 4 : सभी समकोण एक दूसरे के बराबर होते हैं।
अभिधारणा 5 : यदि एक सीधी रेखा दो सीधी रेखाओं पर गिर कर अपने एक ही ओर दो अंतः कोण इस प्रकार बनाए कि इन दोनों कोणों का योग मिल कर दो समकोणों से कम हो, तो वे दोनों सीधी रेखाएँ अनिश्चित रूप से बढ़ाए जाने पर उसी ओर मिलती हैं जिस ओर यह योग दो समकोणों से कम होता है।
6. यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा के दो समतुल्य रूपांतरण हैं :
(i) प्रत्येक रेखा l और उस पर न स्थित प्रत्येक बिंदु P के लिए, एक अद्वितीय रेखा m एेसी होती है जो P से होकर जाती है और l के समांतर है।
(ii) दो भिन्न प्रतिच्छेदी रेखाएँ एक ही रेखा के समांतर नहीं हो सकतीं।
7. यूक्लिड की पाँचवीं अभिधारणा को पहली चारों अभिधारणों की सहायता से सिद्ध करने के सभी प्रयत्न असफल रहे। परन्तु इनसे अन्य ज्यामितियों की खोज हुई जिन्हें अयूक्लिडीय ज्यामितियाँ कहा जाता है।