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अध्याय 13

हम बीमार क्यों होते हैं

(Why Do We Fall ill)


क्रियाकलाप 13.1

• हमने लातूर, भुज, कश्मीर आदि में आए भूकंप अथवा तटवर्ती भाग को प्रभावित करने वाले चक्रवात के विषय में सुना है। आप यह कल्पना करें कि इनके जैसी कितनी संभावित आपदाओं से लोगों का स्वास्थ्य किस प्रकार प्रभावित होगा, यदि ये हमारे आस-पास घटित हों।

• इन आपदाओं के वास्तव में घटने के समय हमारे ऊपर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे?

आपदा घटित होने के पश्चात् कितने समय तक विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा होती रहेंगी?

पहली स्थिति में (आपदा के समय) स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ते हैं? तथा दूसरी स्थिति में (आपदा के पश्चात्) स्वास्थ्य संबंधी कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होंगी?


इस क्रियाकलाप के दौरान हमें यह अनुभव होता है कि मानव समुदाय में स्वास्थ्य एवं रोग एक जटिल समस्या है, जिसके लिए एक-दूसरे से संबंधित अनेक कारक उत्तरदायी हैं। हम यह भी अनुभव करते हैं कि ‘स्वास्थ्य’ और ‘रोग’ का अर्थ स्वयं में बहुत जटिल है। जब हम पूछते हैं कि बीमारियों के क्या कारण हैं और इसकी रोकथाम केस होगी? तो हमें इन अवधारणाओं के अर्थ जानने होंगे।

हम जानते हैं कि कोशिकाएँ सजीवों की मौलिक इकाई हैं। कोशिकाएँ विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों; जैसे–प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा अथवा लिपिड, आदि से बनी होती हैं। कोशिका एक क्रियाशील स्थल है जिसमें अंदर कुछ न कुछ क्रियाएँ सदैव होती रहती हैं। कोशिकाओं में जटिल प्रक्रियाएं एवं कुछ न कुछ मरम्मत का कार्य चलता रहता है। नई-नई कोशिकाएँ बनती रहती हैं। हमारे अंगों अथवा ऊतकों में बहुत-सी विशिष्ट क्रियाएँ चलती रहती हैं; जैसे–हृदय धड़कता है, फेफड़े सांस लेते हैं, वृक्क में निस्पंदन द्वारा मूत्र बनता है, मस्तिष्क सोचता है।

ये सभी क्रियाएँ परस्पर संबंधित हैं। उदाहरणतः यदि वृक्क में निस्पंदन न हो तो विषैले पदार्थ हमारे शरीर में एकत्र हो जाएँगे। इस परिस्थिति में मस्तिष्क उचित प्रकार से नहीं सोच सकेगा। इन सभी पारस्परिक क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा तथा कच्चे पदार्थों की आवश्यकता होती है अर्थात् कोशिकाओं तथा ऊतकों को कार्य करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। एेसा कोई भी कारक जो कोशिकाओं एवं ऊतकों को उचित प्रकार से कार्य करने से रोकता है, वह हमारे शरीर की समुचित क्रिया में कमी का कारण होगा।

उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर हम स्वास्थ्य तथा रोग की अवधारणाओं को समझेंगे।

13.1 स्वास्थ्य तथा इसका बिगड़ना

13.1.1 ‘स्वास्थ्य’ का महत्त्व (सार्थकता)

हम सभी ने ‘स्वास्थ्य’ शब्द को सुना है तथा इस शब्द का प्रयोग भी हम प्रायः करते हैं, जैसे कि हम कहते हैं कि ‘मेरी दादी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है’। हमारे अध्यापक भी इस शब्द का प्रयोग करते हैं जब कहते हैं कि ‘आपकी अभिवृत्ति स्वस्थ नहीं है’। इस ‘स्वास्थ्य’ शब्द का अर्थ क्या है?

यदि हम इस विषय पर विचार करें तो हमें बोध होगा कि इनका अर्थ ‘अच्छा’ रहने से है। हम इस अच्छापन का अर्थ ‘प्रभावी कार्य करना’ सोच सकते हैं। हमारी दादी के लिए बाज़ार जाना अथवा पास-पड़ोस में जाने योग्य होना ‘अच्छे स्वास्थ्य’ के प्रतीक हैं। यदि वे, ये करने योग्य नहीं हैं तो हम कहते हैं कि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। जब आपकी रुचि कक्षा में पढ़ने की है तो हम कहते हैं कि आपकी अभिवृत्ति ठीक है और यदि पढ़ने की रुचि नहीं है तो कहते हैं अभिवृत्ति स्वस्थ नहीं है। अतः ‘स्वास्थ्य’ वह अवस्था है जिसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कार्य समुचित क्षमता द्वारा उचित प्रकार से किया जा सके।

13.1.2 व्यक्तिगत तथा सामुदायिक समस्याएँः दोनों ही स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं

स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक जीवन क्षमता की पूर्णरूपेण-समन्वयित स्थिति है तो कोई भी व्यक्ति इसे स्वयं ही पूर्णरूपेण प्राप्त नहीं कर सकता। सभी जीवों का स्वास्थ्य उसके पास-पड़ोस अथवा उसके आस-पास के पर्यावरण पर आधारित होता है। पर्यावरण में भौतिक कारक आते हैं। उदाहरणार्थः चक्रवात हमारे स्वास्थ्य को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है।

मानव समाज में रहता है। अतः हमारा सामाजिक पर्यावरण हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। हम गाँवों, कस्बों अथवा शहरों में रहते हैं। एेसे स्थानों में हमारे भौतिक पर्यावरण का निर्धारण सामाजिक पर्यावरण द्वारा ही होता है।

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सोचिए कूड़ा-करकट उठाने वाली एजेंसी कचरे का निपटारा न करे तो क्या होगा? सोचिए यदि नालियाँ साफ न हाें तो क्या होगा? यदि काफी मात्रा में कूड़ा-करकट गलियों में फेंका जाता है अथवा खुले नाले के रुके हुएे पानी में स्थिर पड़ा रहता है, तो खराब स्वास्थ्य की संभावना बढ़ जाती है। अतः सामुदायिक स्वच्छता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।


क्रियाकलाप 13.2

• पता करें कि आपके स्थानीय प्राधिकरण (पंचायत/नगर निगम) ने स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए क्या उपाय किए हैं?

• क्या आपके मोहल्ले में सभी निवासियों को स्वच्छ जल प्राप्त हो रहा है।

क्रियाकलाप 13.3

• पता करें कि आपका स्थानीय प्राधिकरण आपके मोहल्ले में उत्पन्न कचरे का निपटारा कैसे करता है?

• क्या प्राधिकरण द्वारा किए गए उपाय पर्याप्त हैं?

• यदि नहीं, तो इसके सुधार के लिए आप क्या सुझाव देंगे?

• आप अपने घर में दैनिक/साप्ताहिक उत्पन्न होने वाले कचरे को कम करने के लिए क्या करेंगे?


स्वस्थ रहने के लिए हमें भोजन की आवश्यकता होती है। इस भोजन को प्राप्त करने के लिए हमें काम करना पड़ता है। इसके लिए, हमें काम करने के अवसर खोजने पड़ते हैं।

स्वस्थ रहने के लिए हमें प्रसन्न रहना आवश्यक है। यदि किसी से हमारा व्यवहार ठीक नहीं है और एक-दूसरे से डर हो तो हम प्रसन्न तथा स्वस्थ नहीं रह सकते। इसलिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामाजिक समानता बहुत आवश्यक है। हम इसी प्रकार सोच सकते हैं कि अनेक सामुदायिक समस्याएँ हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं?

13.1.3 ‘स्वस्थ रहने’ तथा ‘रोगमुक्त’ में अंतर

यदि हम इसे स्वास्थ्य समझते हैं तो रोग अथवा व्याधि क्या है? अंग्रेजी का यह शब्द (DIS+BASE) स्वयं को परिभाषित करता है ‘बाधित आराम’। रोग का दूसरा अर्थ है असुविधा। यद्यपि इस शब्द के अर्थ का प्रयोग बहुत सीमित है। हम रोग के विषय में तब बात करते हैं जब हमें असुविधा के विशिष्ट कारण का पता होता है। इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि हम इसका सही तथा अंतिम उत्तर जानें; हम बिना कारण जाने यह कह सकते हैं कि कोई व्यक्ति प्रवाहिका से ग्रस्त है।

हम यह सरलता से पाते हैं कि बिना किसी विशेष रोग के भी आप अस्वस्थ हो सकते हैं। केवल कोई रोग न होने का अर्थ यह नहीं कि आप स्वस्थ हैं। नर्तक के लिए अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ है कि वह शिष्टतापूर्वक अपने शरीर द्वारा विषम परिस्थितियों की मुद्रा अभिव्यक्त कर सके। संगीतकार के लिए इसका अर्थ है कि वह लंबा श्वास ले सके जिससे कि वह अपनी बाँसुरी में स्वर को नियंत्रित कर सके। हमें अपनी विशिष्ट क्षमता को प्राप्त करने का अवसर भी वास्तविक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार हम किसी रोग के लक्षणों की अभिव्यक्ति के बिना भी अस्वस्थ हो सकते हैं। यही कारण है जब हम स्वास्थ्य के विषय में सोचते हैं, हम समाज तथा समुदाय के विषय में सोचते हैं। और रोग के विषय में सोचते समय हम सिर्फ अपने बारे में विचार करते हैं।

प्रश्न

1. अच्छे स्वास्थ्य की दो आवश्यक स्थितियाँ बताइए।

2. रोगमुक्ति की कोई दो आवश्यक परिस्थितियाँ बताइए।

3. क्या उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर एक जैसे हैं अथवा भिन्न क्यों?


13.2 रोग तथा इसके कारण

13.2.1 रोग किस तरह के दिखाई देते हैं?

आओ, रोग के विषय में और अधिक सोचें। पहले यह कि हमें कैसे पता लगता है कि हमें कोई रोग है? अर्थात् कैसे पता लगता है कि शरीर में कुछ दोष है? हमने छठे अध्याय में पढ़ा है कि हमारे शरीर में अनेक ऊतक होते हैं। ये ऊतक हमारे शरीर के क्रियात्मक तंत्रों अथवा अंगतंत्रों को बनाते हैं जो शरीर के विभिन्न कार्यों को संपादित करते हैं। हर अंग तंत्र का अपना एक विशेष अंग होता है जिसका एक विशेष कार्य होता है। जैसेः पाचन तंत्र में आमाशय तथा आँत्र होते हैं, जो हमारे द्वारा खाए गए भोजन को पचाते हैं। पेशियों तथा अस्थियों से बना पेशी-कंकाल तंत्र, हमारे शरीर को संभालता है और शरीर की गति में सहायता करता है।

जब कोई रोग होता है तब शरीर के एक अथवा अनेक अंगों एवं तंत्रों में क्रिया अथवा संरचना में ‘खराबी’ परिलक्षित होने लगती है। ये बदलाव (परिवर्तन) रोग के लक्षण दर्शाते हैं। रोग के लक्षण हमें ‘खराबी’ का संकेत देते हैं। इस प्रकार सिरदर्द, खाँसी, दस्त, किसी घाव में पस (मवाद) आना, ये सभी लक्षण हैं। इन लक्षणों से किसी-न-किसी रोग का पता लगता है। लेकिन इनसे यह नहीं पता चलता कि कौन-सा रोग है? उदाहरण के लिए, सिरदर्द का कारण परीक्षा का भय अथवा इसका अर्थ मस्तिष्क का वरण शोथ (meningitis) होना अथवा दर्जनों विभिन्न बीमारियों में से एक हो सकता है।

रोग के चिह्न वे हैं जिन्हें चिकित्सक लक्षणों के आधार पर देखते हैं। लक्षण किसी विशेष रोग के बारे में सुनिश्चित संकेत देते हैं। चिकित्सक रोग के सही कारण को जानने के लिए प्रयोगशाला में कुछ परीक्षण भी करवा सकता है।

13.2.2 तीव्र (प्रचंड) तथा दीर्घकालिक रोग (बीमारी)

रोगों की अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न हो सकती है और कई कारकों पर निर्भर करती है। कुछ रोगों की अवधि कम होती है जिन्हें तीव्र रोग कहते हैं। हम सभी ने अनुभव किया है कि खाँसी-जुकाम बहुत कम अवधि तक रहते हैं। अन्य एेसे रोग हैं जो लंबी अवधि तक अथवा जीवनपर्यंत रहते हैं, एेसे रोगों को दीर्घकालिक रोग कहते हैं। इसका एक उदाहरण एलिफ़ेनटाइसिस अथवा फीलपाँव रोग है। यह भारत के कुछ क्षेत्रों में बहुत आम है।


क्रियाकलाप 13.4

• निम्न का पता करने के लिए अपने पास-पड़ोस का पर्यावलोकन करेंः

• पिछले तीन महीनों में कितने लोग तीव्र रोगों से ग्रसित हुए?

• पिछले तीन महीनों में कितने लोग दीर्घकालिक रोग से ग्रसित हुए?

• आपके पड़ोस में कुल कितने लोग दीर्घकालिक रोग से पीड़ित हैं?

क्या उपरोक्त प्रश्न 1 तथा 2 के उत्तर भिन्न हैं?

क्या उपरोक्त प्रश्न 2 तथा 3 के उत्तर भिन्न हैं?

क्या आप सोच सकते हैं कि इस भिन्नता के क्या कारण हो सकते हैं? इस भिन्नता का लोगों के सामान्य स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा?


13.2.3 दीर्घकालिक रोग तथा अस्वस्थता

तीव्र तथा दीर्घकालिक रोगों के हमारे स्वास्थ्य पर भिन्न-भिन्न प्रभाव होते हैं। कोई भी रोग जो हमारे शरीर के किसी भी भाग के कार्य को प्रभावित करता है, तो वह हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगा। क्याेंकि स्वास्थ्य के लिए शरीर के सभी अंगों का समुचित कार्य करना आवश्यक है। लेकिन तीव्र रोग, जो बहुत कम समय तक रहता है, उसे स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव डालने का समय ही नहीं मिलता। लेकिन दीर्घकालिक रोग हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

उदाहरणतः खाँसी-जुकाम के विषय में सोचो जो हम सभी को प्रायः होता रहता है। हममें से अधिकांश लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं और हमारे स्वास्थ्य पर कोई विशेष कुप्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन यदि हम दीर्घकालिक रोग जैसे- फेफड़ों के क्षय रोग से संक्रमित हो जाएँ तो कई वर्षों तक बीमार होने के कारण वजन कम हो जाता है और हर समय थकान महसूस करते हैं।

यदि आप तीव्र रोग से पीड़ित हैं तो आप कुछ दिनों के लिए विद्यालय नहीं जा सकते हैं लेकिन यदि दीर्घकालिक रोग से पीड़ित हैं तो हमें स्कूल में पढ़ाई को समझने में कठिनाई होगी और हमारे सीखने की क्षमता भी कम हो जाएगी अर्थात् हम काफ़ी समय तक अस्वस्थ रह सकते हैं। इसलिए दीर्घकालिक रोग तीव्र रोग की अपेक्षा लोगों के स्वास्थ्य पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बनाए रखता है।

13.2.4 रोग के कारक

रोग के क्या कारण हैं? जब हम रोग के कारण के विषय में सोचते हैं तब हमें यह याद रखना चाहिए कि इस कारण के बहुत से स्तर होते हैं। आओ, एक उदाहरण लें। यदि कोई छोटा बच्चा पतले दस्त (loose motions) से ग्रस्त है तो हम कह सकते हैं कि इसका संभावित कारण संक्रमण है।

लेकिन अगला प्रश्न उठता है–संक्रमण कहाँ से आता है ? मान लो कि हमें पता लगता है कि संक्रमण दूषित जल पीने से आता है। लेकिन अन्य बच्चों ने भी तो दूषित जल पिया है। तब इसका क्या कारण है कि एक बच्चे को ही दस्त लग गया और दूसरों को नहीं?

इसका एक कारण यह हो सकता है कि बच्चा स्वस्थ्य न हो। जिसके परिणामस्वरूप, एेसा संभव हुआ कि जब यह बच्चा संक्रमण के संपर्क में आता है, तो वह बीमार हो जाता है जबकि अन्य बच्चे नहीं। अब प्रश्न उठता है कि बच्चा स्वस्थ्य क्यों नहीं है? शायद बच्चे का पोषण ठीक न हो और वह पर्याप्त भोजन नहीं करता हो। अतः पर्याप्त पोषण का न होना ही रोग का दूसरा कारण है। बच्चा पर्याप्त पोषण क्यों नहीं पाता? शायद बच्चे के माता-पिता गरीब हों।

यह भी संभव है कि बच्चे में आनुवंशिक भिन्नता हो जो रोगकारक के संपर्क में आने पर पतले दस्त से प्रभावित हो जाता है। केवल आनुवंशिक विभिन्नता अथवा कम पोषण भी बिना रोगकारक के पतले दस्त नहीं उत्पन्न कर सकते। लेकिन ये भी रोग के कारण में सहयोगी बनते हैं।

बच्चे के लिए साफ़ पानी उपलब्ध क्यों नहीं था? शायद जहाँ बच्चे का परिवार रहता है वहाँ पर खराब लोक सेवाओं के कारण साफ़ पानी उपलब्ध न हो। इस प्रकार गरीबी तथा लोक सेवाओं की अनुप्लब्धता बच्चे की बीमारी के तीसरे कारण हैं।

इस प्रकार अब यह स्पष्ट हो गया है कि सभी रोगों के तात्कालिक कारण तथा सहायक कारण होते हैं। साथ ही विभिन्न प्रकार के रोग होने के एक नहीं बल्कि बहुत से कारण होते हैं।

13.2.5 संक्रामक तथा असंक्रामक कारक

हमने देखा कि जब कभी भी रोग के कारण के विषय में सोचें तो हमें लोक स्वास्थ्य तथा समुदाय स्वास्थ्य संबंधी कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है। हम इस विषय में और चर्चा करते हैं। रोग के तात्कालिक कारणों के विषय में सोचना अच्छा है, क्योंकि ये दोनों भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। रोग के कारण का एक वर्ग है, संक्रामक कारक, जो अधिकांशतः सूक्ष्म जीव होते हैं। वह रोग जिनके तात्कालिक कारक सूक्ष्म जीव होते हैं उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं। इसका कारण यह है कि सूक्ष्म जीव समुदाय में फैल सकते हैं और इनके कारण होने वाले रोग भी इनके साथ फैल जाते हैं।

इनके विषय में सोचोः

1. क्या रोगी व्यक्ति के संपर्क में आने पर सभी रोग फैल जाते हैं ?

2. एेसे कौन से रोग हैं जो नहीं फैलते ?

3. मनुष्यों में वे रोग कैसे हो जाते हैं, जो रोगी के संपर्क में आने से नहीं फैलते?


दूसरी तरफ़, कुछ रोग एेसे होते हैं जो संक्रामक कारकों द्वारा नहीं होते। उनके कारक भिन्न होते हैं। लेकिन वे बाहरी कारक जो सूक्ष्म जीव नहीं होते वे समुदाय में फैल सकते हैं। यद्यपि ये बहुधा आंतरिक एवं असंक्रामक हैं।

उदाहरणतः, कुछ प्रकार के कैंसर आनुवंशिक असामान्यता के कारण होते हैं। उच्च रक्त चाप का कारण अधिक वजन होना तथा व्यायाम न करना है। आप एेसे ही अन्य रोगों के विषय में सोच सकते हैं जो संक्रामक नहीं हैं।

पेप्टिक व्रण तथा नोबेल पुरस्कार

कई वर्षों से हम यही सोचते थे कि पेप्टिक व्रण, जो आमाशय तथा ग्रहणी में एेसिडिटी संबंधित दर्द तथा रक्तस्राव करता है, का कारण रहने-सहने का ढंग है। प्रत्येक व्यक्ति सोचता था कि परेशानी भरे जीवन से आमाशय में एसिड का स्राव होता है जिसके कारण पेप्टिक व्रण हो जाता है।

दो आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि एक बैक्टीरिया-हेलीकोबैक्टर पायलोरी पेप्टिक व्रण का कारण है। पर्थ, आस्ट्रेलिया के रोग विज्ञानी रॉबिन वॉरेन (जन्म सन् 1937) ने इन छोटे-छोटे वक्राकार बैक्टीरियाओं को अनेक रोगियों के आमाशय के निचले भाग में देखा। बैरी मार्शल (जन्म सन् 1951), एक चिकित्सक ने वॉरेन की खोज़ में दिलचस्पी ली और उन्होंने इन स्रोतों से बैक्टीरिया का संवर्धन करने में सफलता प्राप्त की।

अपने उपचार अध्ययन में मार्शल तथा वॉरेन ने पता लगाया कि रोगी के पेप्टिक व्रण का उपचार तभी हो सकता है जब बैक्टीरियाओं को आमाशय में मार दिया जाए। मार्शल तथा वॉरेन के इस अद्भुत कार्य के लिए विश्व समुदाय आभारी है कि पेप्टिक व्रण अब दीर्घकालिक एवं असहाय स्थिति वाला रोग नहीं रहा, बल्कि कुछ समय तक प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) के उपचार से ठीक हो जाता है।


इस खोज़ के लिए मार्शल तथा वॉरेन को (चित्र देखें) शरीरक्रिया विज्ञान तथा औषधि (medicine) के लिए सन् 2005 में संयुक्त रूप में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

रोगों के फैलने के तरीके तथा उनके उपचार की विधियाँ तथा सामुदायिक स्तर पर उनके निवारण की विधियाँ विभिन्न रोगों के लिए भिन्न-भिन्न होती हैं। यहाँ पर यह निर्भर करता है कि इनके तात्कालिक कारण संक्रामक हैं अथवा असंक्रामक।

प्रश्न

1. एेसे तीन कारण लिखिए जिससे आप सोचते हैं कि आप बीमार हैं तथा चिकित्सक के पास जाना चाहते हैें। यदि इनमें से एक भी लक्षण हो तो क्या आप फिर भी चिकित्सक के पास जाना चाहेंगे? क्यों अथवा क्यों नहीं ?

2. निम्नलिखित में से किसके लंबे समय तक रहने के कारण आप समझते हैं कि आपके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। तथा क्यों?

• यदि आप पीलिया रोग से ग्रस्त हैं।

• यदि आपके शरीर पर जूँ (lice) हैं।

• यदि आप मुँहासों से ग्रस्त हैं।


13.3 संक्रामक रोग

13.3.1 संक्रामक कारक

हमने देखा कि सजीव जगत की संपूर्ण विविधता को कुछ ही वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। विभिन्न जीवों का वर्गीकरण कुछ सामान्य गुणों के आधार पर करते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले जीव इनमें से अनेक वर्गों के अंतर्गत आते हैं। उनमें से कुछ वाइरस, कुछ बैक्टीरिया, कुछ फंजाई (कवक), कुछ एककोशिक जंतु अथवा प्रोटोजोआ हैं (चित्र 13.1)। कुछ रोग बहुकोशिक जीवों, जैसे अनेक प्रकार के कृमि से भी होते हैं।

वाइरस से होने वाले सामान्य रोग हैं खाँसी-जुकाम, इंफ्लुएंजा, डेंगु बुखार तथा एड्स (AIDS)। कुछ रोग जैसे कि टायफॉयड बुखार, हैजा, क्षयरोग तथा एंथ्रेक्स बैक्टीरिया द्वारा होते हैं। बहुत से सामान्य त्वचा रोग विभिन्न प्रकार की फंजाई द्वारा होते हैं। प्रोटोजोआ से मलेरिया, तथा कालाजार नामक रोग हो जाते हैं। हम आँत्र कृमि संक्रमण से परिचित हैं। इसी प्रकार फीलपाँंव नामक रोग भी कृमि की विभिन्न स्पीशीज़ द्वारा होता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है कि हम संक्रामक कारकों के इन वर्गों के विषय में सोचते हैं? इसका उत्तर यह है कि ये वर्ग उपचार की विधि निर्धारित करते हैं। इन वर्गों के प्रत्येक सदस्यों के जैविक गुणों में समानता है (जैसे वाइरस, बैक्टीरिया आदि)।

उदाहरणतः, सभी वाइरस, परपोषी की कोशिकाओं में रहते हैं, लेकिन बैक्टीरिया में एेसा कम ही होता है। वाइरस, बैक्टीरिया तथा फंजाई में गुणन अत्यंत तेज़ी से होता है जबकि तुलनात्मक रूप से कृमि में गुणन मंद होता है। वर्गीकरण के अनुसार सभी बैक्टीरिया एक-दूसरे से वाइरस की अपेक्षा अधिक निकट होते हैं। एेसा वाइरस में भी होता है। इसका अर्थ यह है कि अनेक जैव प्रक्रियाएँ सभी बैक्टीरियाओं में समान होती हैं, लेकिन वाइरस वर्ग से भिन्न होंगी। इसके परिणामस्वरूप औषधि जो किसी वर्ग में किसी एक जैव प्रक्रिया को रोकती है तो यह उस वर्ग के अन्य सदस्यों पर भी इसी प्रकार का प्रभाव डालेगी। लेकिन वही औषधि अन्य वर्ग से संबंधित रोगाणुओं पर प्रभाव नहीं डालेगी।



चित्र 13.1(a): संक्रमित कोशिका से बाहर निकलते हुए SARS बैक्टीरिया चित्र में तीर द्वारा इंगित किए गए हैं। चित्र में सफ़ेद रेखा 500 नैनोमीटर माप को दर्शाती है, जो एक माइक्रोमीटर का आधा है। एक माइक्रोमीटर एक मिलीमीटर के एक हज़ारवें भाग के बराबर है। यह मापचित्र इस बात को दर्शाता है कि हम कितनी सूक्ष्म वस्तुओं को देख रहे हैं।

सौजन्य - इमर्जिंग इंफेक्शस डिसीज़, सीडीसी यू. एस. का एक जर्नल


चित्र 13.1(b): स्टेफ़ाइलोकोकाई बैक्टीरिया जो मुँहासे का कारक है। ऊपर बाईं ओर की रेखा 5 माइक्रोमीटर माप को प्रदर्शित करती है



चित्र 13.1(c): प्रोटोजोआ ट्रिप्नोसोमा यह निंद्रालु व्याधि का कारक है। ट्रिप्नोसोमा को तस्तरीनुमा लाल रक्त कोशिका के साथ प्रदर्शित किया गया है जिससे आपको उसके आकार का पता चल सके कॉपीराइट–ओरेगॉज हैल्थ एंड सांइस युनीवर्सिटी, यू.एस.



चित्र 13.1(d): लेश्मानिया–कालाज़ार व्याधि कारक प्रोटोजोआ। यह जीव अंडाकार तथा प्रत्येक में एक चाबुकनुमा संरचना होती है। विभाजित होते जीव को तीर द्वारा दर्शाया गया है

हम एंटीबायोटिक का ही उदाहरण लेते हैं। वे सामान्यतः बैक्टीरिया के महत्वपूर्ण जैव रासायनिक मार्ग को बंद कर देते हैं। उदाहरणतः, बहुत-से बैक्टीरिया अपनी रक्षा के लिए कोशिका भित्ति बना लेते हैं। पेनिसिलीन, एंटीबायोटिक बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति बनाने वाली प्रक्रिया को बाधित कर देती है। इसके परिणामस्वरूप बैक्टीरिया कोशिका भित्ति नहीं बना सकते हैं और वे सरलता से मर जाते हैं। मानव की कोशिकाएँ कोशिका भित्ति नहीं बना सकतीं इसलिए पेनिसिलीन का प्रभाव हम पर नहीं होता। पेनिसिलीन एेसे सभी बैक्टीरिया को प्रभावित करेंगे जिनमें कोशिका भित्ति बनाने की प्रक्रिया होती है। इसी प्रकार बहुत से एंटीबायोटिक बैक्टीरिया की अनेक स्पीशीज़ को प्रभावित करते हैं न कि केवल एक स्पीशीज़ को।


चित्र 13.1(e): गोलकृमि (एस्केरिस लुंब्रीकॉयडिस) छोटी आँत में पाया जाता है। 4cm के स्केल की माप एक व्यस्क गोलकृमि के आकार के अनुमान के लिए है


लेकिन वाइरस में एेसा मार्ग नहीं होता और यही कारण है कि कोई भी एंटीबायोटिक वाइरस संक्रमण पर प्रभावकारी नहीं है। यदि हम खाँसी-जुकाम से ग्रस्त हैं तो एंटीबायोटिक लेने से रोग की तीव्रता अथवा उसकी समय अवधि कम नहीं होती। यद्यपि, यदि वाइरस संक्रमित खाँसी-जुकाम के साथ बैक्टीरिया संक्रमण होता है तब एंटीबायोटिक का उपयोग लाभदायक होगा लेकिन फिर भी एंटीबायोटिक बैक्टीरिया संक्रमण पर ही उपयोगी होगा न कि वाइरस संक्रमण पर।

क्रियाकलाप 13.5

• पता कीजिए कि आपकी कक्षा में कुछ दिनों पहले कितने विद्यार्थियों को जुकाम/ खाँसी/बुखार हुआ था।

• उनको बीमारी कितने दिनों तक रही ?

• इनमें से कितनों ने एंटीबायोटिक का उपयोग किया (अपने माता-पिता से पूछो कि आपने एंटीबायोटिक लिया अथवा नहीं।)

• जिन्होंने एंटीबायोटिक लिया था वे कितने दिनों तक बीमार रहे ?

• जिन्होंने एंटीबायोटिक नहीं लिया था वे कितने दिनों तक बीमार रहे?

• क्या इन दोनों वर्गों में कोई अंतर हैं?

• यदि हाँ तो क्यों; यदि नहीं तो क्यों नहीं ?


13.3.2 रोग फैलने के साधन

संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं? बहुत से सूक्ष्मजीवीय कारक रोगी से अन्य स्वस्थ मनुष्य तक विभिन्न तरीकों से फैलते हैं अर्थात् वे संचारित हो सकते हैं अतः इन्हें संचारी रोग भी कहते हैं।

एेसे रोगों के सूक्ष्म जीव हवा द्वारा फैलते हैं। एेसा तब होता है जब रोगी मनुष्य छींकता है अथवा खाँसी करता है। उस समय छोटे-छोटे बूँदक बाहर निकलते हैं। जब उसके समीप कोई अन्य व्यक्ति हो तो श्वास द्वारा ये बूँदक उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इनसे सूक्ष्म जीवों को नए संक्रमण करने का अवसर मिल जाता है। वायु द्वारा फैलने वाले रोगों के उदाहरण हैं खाँसी-जुकाम, निमोनिया तथा क्षय रोग।

हम सभी ने एेसा अनुभव किया होगा कि जब हम किसी खाँसी-जुकाम से ग्रस्त व्यक्ति के पास बैठते हैं तो हमें भी खाँसी-जुकाम हो जाता है। जहाँ पर अधिक भीड़ होगी वहाँ पर हवा द्वारा फैलने वाले रोग भी अधिक होंगे।

जल द्वारा भी रोग फैल सकते हैं। जब संक्रमणीय रोग यथा हैजा से ग्रसित रोगी के अपशिष्ट पेयजल में मिल जाते हैं और यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति जाने-अनजाने में इस जल को पीता है तो रोगाणु एक स्वस्थ व्यक्ति में प्रवेश कर जाता है जिससे वह भी इस रोग से ग्रसित हो जाता है। एेसे रोग अधिकतर साफ़ पेय जल न मिलने के कारण फैलते हैं। छोटी-छोटी बूँदकें वायु वेग के साथ मिनटों से घंटों तक वातावरण में प्रवाहित होती रहती हैं।

लैंगिक क्रियाओं द्वारा दो लोग शारीरिक रूप से एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं अतः यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कुछ सूक्ष्मजीवीय रोग जैसे सिफलिस अथवा एड्स (AIDS) लैंगिक संपर्क के समय एक साथी से दूसरे साथी में स्थानांतरित हो जाए। यद्यपि एेसे लैंगिक संचारी रोग सामान्य संपर्क जैसे हाथ मिलाना अथवा गले मिलना अथवा खेलकूद जैसे कुश्ती, अथवा और कोई अन्य विधि जिसमें हम सामाजिक रूप से एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं, से नहीं फैलते।

AIDS, लैंगिक संपर्क के अतिरिक्त रक्त स्थानांतरण द्वारा भी संक्रमित होता है; जैसे AIDS से ग्रसित व्यक्ति का रक्त स्वस्थ व्यक्ति को स्थानांतरित किया जाय अथवा गर्भावस्था में रोगी माता से अथवा शिशु को स्तनपान द्वारा।

हम एेसे पर्यावरण में रहते हैं जिसमें हमारे अतिरिक्त अन्य जीव भी रहते हैं। इसलिए कुछ रोग अन्य जंतुओं द्वारा भी संचारित होते हैं। ये जंतु रोगाणुओं (संक्रमण करने वाले कारक) को रोगी से लेकर अन्य नए पोषी तक पहुंचा देते हैं। अतः ये मध्यस्थ का काम करते हैं जिन्हें रोगवाहक (वेक्टर) कहते हैं। सामान्य रोगवाहक का मच्छर एक उदाहरण है। मच्छर की बहुत सी एेसी स्पीशीज़ हैं जिन्हें अत्यधिक पोषण की आवश्यकता होती है जिससे कि वे परिपक्व अंडे उत्पन्न कर सकें। मच्छर अनेक समतापी प्राणियों (जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं) पर निर्वाह करता है। इस प्रकार वे एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में रोग को फैलाते हैं।

चित्र 13.2: रोग संक्रमण के सामान्य तरीके


13.3.3 अंग-विशिष्ट तथा ऊतक-विशिष्ट अभिव्यक्ति

विभिन्न साधनों द्वारा रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म जीव शरीर में प्रवेश करते हैं। फिर ये कहाँ जाते हैं? सूक्ष्मजीव की अपेक्षा शरीर बहुत बड़ा है। इसलिए हमारे शरीर में बहुत से स्थान, अंग, ऊतक आदि हैं जहाँ ये सूक्ष्मजीव जा सकते हैं। क्या सभी सूक्ष्मजीव एक ही अंग अथवा ऊतक में जाते हैं अथवा वे भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाते हैं ?

सूक्ष्मजीव के विभिन्न स्पीशीज़ शरीर के विभिन्न भागों में विकसित होते हैं। एेसा चुनाव उनके प्रवेश के स्थान पर निर्भर करता है। यदि ये हवा से नाक द्वारा प्रवेश करें तो ये फेफड़ों में जाएँगे। एेसा बैक्टीरिया से होने वाले क्षय रोग में होता है। यदि ये मुँह के द्वारा प्रवेश करें तो ये आहार नाल में रहेंगे, जैसे टायफायड रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया। अथवा ये यकृत में जाएँगे जैसे हेपेटाइटिस बैक्टीरिया जो पीलिया के कारक हैं।

लेकिन सदैव एेसा नहीं होता। HIV वाइरस जो लैंगिक अंगों द्वारा शरीर में प्रवेश करता है, लसीका ग्रंथियों में फैलता है। मलेरिया उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव जो मच्छर के काटने से शरीर में प्रवेश करते हैं, वे यकृत में जाते हैं; उसके बाद लाल रुधिर कोशिकाओं में आते हैं। इसी प्रकार जापानी मस्तिष्क ज्वर उत्पन्न करने वाला वाइरस भी मच्छर के काटने से शरीर में पहुँचता है। लेकिन यह मस्तिष्क को संक्रमित करता है।

जिस ऊतक अथवा अंग पर सूक्ष्म जीव आक्रमण करता है, रोग के लक्षण तथा चिह्न उसी पर निर्भर करते हैं। यदि फेफड़े पर आक्रमण होता है तब लक्षण खाँसी तथा कम साँस आना होंगे। यदि यकृत पर आक्रमण होता है तब पीलिया होगा। यदि मस्तिष्क पर आक्रमण होता है तब सिरदर्द, उल्टी आना, चक्कर अथवा बेहोशी आना होगा। यदि हम यह जानते हों कि कौन-से ऊतक अथवा अंग पर आक्रमण हुआ है और उनके क्या कार्य हैं तो हम संक्रमण के चिह्न तथा लक्षण का अनुमान लगा सकते हैं।

संक्रामक रोगों के ऊतक-विशिष्ट प्रभाव के अतिरिक्त उनके अन्य सामान्य प्रभाव भी होते हैं। अधिकांश सामान्य प्रभाव इस पर निर्भर करते हैं कि संक्रमण से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र क्रियाशील हो जाए एक सक्रिय प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावित ऊतक के चारों ओर रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए अनेक कोशिकाएँ बना देता है। नयी कोशिकाओं के बनने के प्रक्रम को शोथ कहते हैं। इस प्रक्रम के अंतर्गत स्थानीय प्रभाव जैसे फूलना तथा दर्द होना और सामान्य प्रभाव जैसे बुखार होते हैं।

कुछ मामलों में संक्रमण के विशिष्ट ऊतक अति सामान्य प्रभाव को लक्षित करते हैं। उदाहरणतः HIV संक्रमण में वाइरस प्रतिरक्षा तंत्र में जाते हैं और इसके कार्य को नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार HIV-AIDS से बहुत से प्रभाव इसलिए होते हैं क्योंकि हमारा शरीर प्रतिदिन होने वाले छोटे संक्रमणों का मुकाबला नहीं कर पाता है। हलके खाँसी-जुकाम से भी निमोनिया हो सकता है। इसी प्रकार आहार नाल के संक्रमण से रुधिरयुक्त प्रवाहिका हो सकता है। अंततः ये अन्य संक्रमण ही HIV-AIDS के रोगी की मृत्यु के कारण बनते हैं।

हमें यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि रोग की तीव्रता की अभिव्यक्ति शरीर में स्थित सूक्ष्मजीवों की संख्या पर निर्भर करती है। यदि सूक्ष्मजीव की संख्या बहुत कम है तो रोग की अभिव्यक्ति भी कम होगी। यदि उसी सूक्ष्म जीव की संख्या अधिक होगी तो रोग की अभिव्यक्ति इतनी तीव्र होगी कि जीवन को भी खतरा हो सकता है। प्रतिरक्षा तंत्र एक प्रमुख कारक है जो शरीर में जीवित सूक्ष्मजीवों की संख्या को निर्धारित करता है। इस विषय में हम इस अध्याय के अंत में पढ़ेंगे।

13.3.4 उपचार के नियम

जब आप बीमार हो जाते हैं तो आपके कुटुंब के सदस्य क्या करते हैं ? क्या आपने कभी सोचा है कि आप कुछ समय सोेने के बाद अच्छा क्यों अनुभव करते हैं? उपचार में दवाई का उपयोग कब करते हैं?

अब तक के ज्ञान के आधार पर एेसा लगता है कि संक्रामक रोगों के उपचार के दो उपाय हैं। एक तो यह है कि रोग के प्रभाव को कम कर दे और दूसरा रोग के कारण को समाप्त कर दे। पहले, उपाय के लिए हम एेसा उपचार करते हैं जिससे लक्षण (symptom) कम हो जाते हैं। लक्षण प्रायः शोथ (inflammation) के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए हम बुखार, दर्द अथवा दस्त को कम करने के लिए दवाई का उपयोग करते हैं। हम आराम कर ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं जो हमारे स्वस्थ होने में सहायक होगी।

लेकिन इस प्रकार के लक्षण–आधारित उपचार स्वयं में संक्रामक सूक्ष्मजीवों को समाप्त नहीं करेंगे और रोग ठीक नहीं होंगे। इसके लिए हमें सूक्ष्म जीवों को मारना ही पड़ेगा।

हम सूक्ष्मजीवों को कैसे मारते हैं? सूक्ष्मजीवों को मारने की एक विधि है औषधियों का उपयोग करना। हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि सूक्ष्मजीव विभिन्न वर्गों में आते हैं। ये हैं वाइरस, बैक्टीरिया, फंजाई अथवा प्रोटोज़ोआ। जीवों के प्रत्येक वर्ग में कुछ आवश्यक जैवरासायनिक जैवप्रक्रियाएँ हाेंगी जो इस वर्ग के लिए विशिष्ट होंगी और अन्य वर्गों में नहीं होंगी। ये प्रक्रियाएँ नए पदार्थ बनाने के विभिन्न चरण अथवा श्वसन हो सकती हैं।

इन मार्गों का उपयोग हम नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, हमारी कोशिकाएँ एेसे प्रक्रम से नए पदार्थ बना सकती हैं जो बैक्टीरिया के प्रक्रम से भिन्न हों। हमें एेसी औषधि का उपयोग करना है जो हमारे शरीर को प्रभावित किए बिना ही बैक्टीरिया के संश्लेषी मार्ग को रोक सके। एेसा एंटीबायोटिक से संभव है। इसी प्रकार कुछ एेसी औषधियाँ हैं जो मलेरिया के परजीवी प्रोटोज़ोआ को मारती हैं।

एंटीवाइरल औषधि का बनाना एंटीबैक्टीरियल औषधि के बनाने की अपेक्षा कठिन है। इसका कारण है बैक्टीरिया में अपनी जैव रासायनिक प्रणाली होती है जबकि वाइरस में अपनी जैव रासायनिक प्रणाली बहुत कम होती है। वाइरस हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और अपनी जीवन प्रक्रिया के लिए हमारी मशीनरी का उपयोग करते हैं। इसका अर्थ यह है कि आक्रमण करने के लिए अपेक्षाकृत कम वाइरस विशिष्ट लक्ष्य होते हैं। इन सीमाओं के बावजूद अब प्रभावशाली एंटीवाइरल औषधियाँ भी उपलब्ध हैं, उदाहरण के लिए, HIV संक्रमण को नियंत्रित करने की औषधि।

13.3.5 निवारण के सिद्धांत

अभी तक हमने यह पढ़ा है कि किसी व्यक्ति में कोई रोग है तो संक्रमण से कैसे छुटकारा मिल सकता है। संक्रामक रोगों से छुटकारा पाने की तीन सीमाएँ (कठिनाइयाँ) हैं। पहली यह है कि यदि कोई एक बार बीमार हो जाए तो उनके शारीरिक कार्यों को बहुत हानि होती है और वे फिर पूरी तरह से स्वस्थ नहीं होते। दूसरी यह है कि उपचार में लंबा समय लग सकता है अर्थात् सही उपचार होने पर भी रोगी को बिस्तर पर लंबे समय तक आराम करना पड़ सकता है। तीसरी यह कि संक्रमित रोगी अन्य व्यक्तियों में रोग को फैलाने का स्रोत बन जाए इससे उपरोक्त कठिनाइयाँ और बढ़ जाएँगी। इसीलिए रोगों का निवारण उपचार से अच्छा है।

हम रोगों का निवारण कैसे कर सकते हैं? इसकी दो विधियाँ हैं। एक सामान्य तथा दूसरी रोग विशिष्ट। संक्रमण से बचने की सामान्य विधि है रोगी से दूर रहें। इससे हम संक्रामक सूक्ष्मजीवों से बचाव कर सकते हैं?

यदि हम उनके फैलने की विधियों को जानते हैं तो हमें बड़़ी सुगमता होगी। वातोढ़ (वायु द्वारा फैलने वाले) सूक्ष्मजीवों से बचाव के लिए हम खुले स्थानों में रहें और भीड़ भरे स्थानों पर न जाएँ। जलोढ़ (जल द्वारा फैलना) सूक्ष्मजीवों से बचने के लिए हम साफ़ जल पिएँ। इसके लिए आप पानी में स्थित सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए उपाय कर सकते हैं। रोग वाहक सूक्ष्मजीवों से बचने के लिए हमें साफ़ पर्यावरण में रहना चाहिए। एेसे वातावरण में मच्छर उत्पन्न नहीं होते अर्थात् संक्रामक रोगों से बचने के लिए स्वच्छता आवश्यक है।

पर्यावरण से संबंधित विषयों के अतिरिक्त, संक्रामक रोगों से बचने के और भी अन्य सामान्य नियम हैं। नियमों की बात करने से पहले हम एक प्रश्न पूछते हैं जिसकी ओर अभी तक ध्यान नहीं गया है। प्रायः हम प्रतिदिन संक्रमण से गुजरते हैं। यदि कक्षा में कोई विद्यार्थी खाँसी-जुकाम से पीड़ित है तो एेसा संभव है कि उसके आस-पास के विद्यार्थी भी संक्रमित हो जाएँ। लेकिन हम सभी वास्तव में रोग से पीड़ित नहीं होते हैं। एेसा क्यों नहीं होता है?

इसका कारण है हमारे शरीर में स्थित प्रतिरक्षा तंत्र जो रोगाणुओं से लड़ता रहता है। हमारे शरीर में विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं जो रोगाणुओं को मार देती हैं। हमारे शरीर में जैसे ही कोई संक्रामक रोगाणु आता है ये कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं। यदि ये उन्हें मार देती हैं तो हमें रोग नहीं होगा। प्रतिरक्षी कोशिकाएँ संक्रमण को फैलने से पहले ही समाप्त कर देती हैं। जैसा कि हमने पहले देखा, यदि रोगाणुओं की संख्या नियंत्रित हो जाती है तो रोग की अभिव्यक्ति बहुत कम होगी। अर्थात्, संक्रामक रोगाणुओं से संक्रमित होने का अर्थ यह नहीं है कि हमें कोई विशेष
बीमारी होगी।

गंभीर संक्रामक रोग प्रतिरक्षा तंत्र की असफलता को इंगित करता है। प्रतिरक्षा तंत्र हमारे शरीर में स्थित अन्य तंत्रों की तरह सफल नहीं होगा यदि हमें पर्याप्त भोजन तथा पोषण प्राप्त न हो। इसलिए संक्रामक रोगों से बचने के लिए दूसरी मूल आवश्यकता है उचित मात्रा में सबके लिए भोजन की उपलब्धता।


क्रियाकलाप 13.6

• अपने मोहल्ले में एक सर्वेक्षण करो। दस परिवारों से बात करो जिनका रहन-सहन उच्च स्तर का है जो अच्छी प्रकार रहते हैं, और दस एेसे परिवार लो जो आपके अनुमान के अनुसार गरीब हैं। इन दोनों परिवारों में बच्चे होने चाहिए जिनकी आयु पाँच वर्ष से कम हो। प्रत्येक बच्चे की ऊँचाई मापो और आयु लिखो तथा एक ग्राफ बनाओ।

• क्या वर्ग में कोई अंतर है? यदि हाँ, तो क्यों?

• यदि उनमें कोई अंतर नहीं है तो क्या आप यह निष्कर्ष निकालते हैं कि स्वास्थ्य के लिए अमीरी तथा गरीबी का कोई महत्त्व नहीं है?


ये संक्रमण से बचने की सामान्य विधियाँ हैं। विशिष्ट विधियाँ क्या हैं? ये प्रतिरक्षा तंत्र के विशिष्ट गुणों से संबंधित है जो प्रायः रोगाणु से लड़ते रहते हैं। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।

इन दिनों सारे विश्व में चेचक नही है। लेकिन सौ वर्ष पहले चेचक महामारी बहुत होती थी। एेसी स्थिति में लोग रोगी के पास आने से डरते थे। क्योंकि उन्हें डर होता था कि उन्हें भी चेचक न हो जाए।

लेकिन एक एेसा भी वर्ग था जो चेचक से नहीं डरता था। यह वर्ग चेचक के रोगी की सेवा करता था। यह वह वर्ग था जिन्हें बहुत भयानक चेचक हुआ था। लेकिन फिर भी जीवित रहे, लेकिन उनके शरीर पर चेचक के बहुत से दाग थे। अर्थात्, यदि आपको एक बार चेचक हो जाए तो आपको चेचक रोग पुनः होने की संभावना नहीं होती। इसलिए एक बार रोग होने पर उसी रोग से बचने की यह एक विधि है।

एेसा इसलिए होता है कि जब रोगाणु प्रतिरक्षा तंत्र पर पहली बार आक्रमण करते हैं तो प्रतिरक्षा तंत्र रोगाणुओं के प्रति क्रिया करता है और फिर इसका विशिष्ट रूप से स्मरण कर लेता है। इस प्रकार जब वही रोगाणु या उससे मिलता-जुलता रोगाणु संपर्क में आता है तो पूरी शक्ति से उसे नष्ट कर देता है। इससे पहले संक्रमण की अपेक्षा दूसरा संक्रमण शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। यह प्रतिरक्षाकरण के नियम का आधार है।

अब हम कह सकते हैं कि टीकाकरण का सामान्य नियम यह है कि शरीर में विशिष्ट संक्रमण प्रविष्ट कराकर प्रतिरक्षा तंत्र को ‘मूर्ख’ बना सकते हैं। वह उन रोगाणुओं की नकल करता है जो टीके के द्वारा शरीर में पहुँचे हैं। यह वास्तव में रोग नहीं करते लेकिन यह वास्तव में रोग करने वाले रोगाणुओं को उसके बाद रोग करने से रोकता है।

प्रतिरक्षा

परंपरा के अनुसार भारतीय तथा चीनी चिकित्सकीय तंत्र में कभी-कभी जानबूझ कर चेचक से पीड़ित व्यक्ति तथा स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा को आपस में रगड़ते थे। उन्हें इससे एेसी आशा थी कि इसके कारण से चेचक के मंद रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर देंगे।

दो सौ वर्ष पूर्व एक इंगलिश चिकित्सक, जिसका नाम एडवर्ड जेनर था, ने पता लगाया कि ग्वाले जिन्हें गो-चेेचक हुई है उन्हें महामारी के समय भी चेचक नहीं हई। गौ-चेचक मन्द रोग है। जेनर ने जान बूझकर लोगों को गौ-चेचक दिया (जैसा कि तस्वीर में दिखाया गया है)। इससे उन्होंने पाया कि अब वे लोग चेचक के प्रतिरोधी हैं। इसका कारण यह है कि चेचक का बैक्टीरिया गौ-चेचक के वाइरस का निकट संबंधी है। लैटिन में cow (गाय) का अर्थ है ‘वाक्का’ तथा cowpox (गौ-चेचक) का अर्थ है ‘वैक्सीनिया’। इस आधार पर वैक्सीन अर्थात् टीका शब्द आया है, जिसका हम आजकल उपयोग करते हैं।

एेसे बहुत से टीके आजकल उपलब्ध हैं जो संक्रामक रोगों का निवारण करते हैं और रोग निवारण का विशिष्ट साधन प्रदान करते हैं। टेटनस, डिप्थीरिया, कुकर खाँसी, चेचक, पोलियो आदि के टीके उपलब्ध हैं। यह बच्चों की संक्रामक रोगों से रक्षा करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम है।

एेसे कार्यक्रम तभी सफल होते हैं जबकि एेसी स्वास्थ्य सुविधाएँ सभी बच्चों को प्राप्त हों। क्या आप इसका कारण सोच सकते हैं कि एेसा क्यों होना चाहिए?

हिपेटाइटिस के कुछ वाइरस जिससे पीलिया होता है पानी द्वारा संचारित होता है। हिपेटाइटिस 'A' के लिए टीका उपलब्ध है। लेकिन देश के अधिकांश भागों में जब बच्चे की आयु पाँच वर्ष हो जाती है तब तक वह हिपेटाइटिस 'A' के प्रति प्रतिरक्षी हो चुका होता है। इसका कारण यह है कि वह पानी के द्वारा वाइरस के प्रभाव में आ चुका हो। इन परिस्थितियों में क्या आप टीका लगवाएँगे ?

क्रियाकलाप 13.7

• संक्रमित कुत्ते तथा अन्य जंतुओं के काटने से रैबीज वाइरस फैलता है। मनुष्य तथा जंतु दोनों के लिए प्रति-रैबीज़ टीके उपलब्ध हैं। पता करो कि आपके पास-पड़ोस में स्थानीय प्रशासन रैबीज़ को फैलने से रोकने के लिए क्या कर रहा है? क्या ये उपाय पर्याप्त हैं? यदि नहीं तो आप इसके सुधार के लिए क्या सुझाव देंगे?


प्रश्न

1. जब आप बीमार होते हैं तो आपको सुपाच्य तथा पोषणयुक्त भोजन करने का परामर्श क्यों दिया जाता है?

2. संक्रामक रोग फैलने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?

3. संक्रामक रोगाें को फैलने से रोकने के लिए आपके विद्यालय में कौन-कौन सी सावधानियाँ आवश्यक हैं?

4. प्रतिरक्षीकरण क्या है ?

5. आपके पास में स्थित स्वास्थ्य केंद्र में टीकाकरण के कौन-से कार्यक्रम उपलब्ध हैं? आपके क्षेत्र में कौन-कौन सी स्वास्थ्य संबंधी मुख्य समस्या है?


आपने क्या सीखा

• स्वास्थ्य व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक जीवन की एक समग्र समन्वयित अवस्था है।

• किसी का स्वास्थ्य उसके भौतिक पर्यावरण तथा आर्थिक अवस्था पर निर्भर करता है।

• रोगों की अवधि के आधार पर इसे तीव्र तथा दीर्घकालिक दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं।

• रोग के कारक संक्रामक अथवा असंक्रामक हो सकते हैं।

• संक्रामक कारक जीवों के विभिन्न वर्ग से हो सकते हैं। ये एककोशिक सूक्ष्मजीव अथवा बहुकोशिक हो सकते हैं।

• रोग का उपचार उसके कारक रोगाणु के वर्ग के आधार पर किया जाता है।

• संक्रामक कारक वायु, जल, शारीरिक संपर्क अथवा रोगवाहक द्वारा फैलते हैं।

• रोगों का निवारण सफल उपचार की अपेक्षा अच्छा है।

• संक्रामक रोगों का निवारण जन स्वास्थ्य स्वच्छता विधियों द्वारा किया जा सकता है जिससे संक्रामक कारक कम हो जाते हैं।

• टीकाकरण द्वारा संक्रामक रोगों का निवारण किया जा सकता है।

• संक्रामक रोगों के निवारण को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि सार्वजनिक स्वच्छता तथा टीकाकरण की सुविधा सभी को उपलब्ध हो।

अभ्यास

1. पिछले एक वर्ष में आप कितनी बार बीमार हुए? बीमारी क्या थीं?

(a) इन बीमारियों को हटाने के लिए आप अपनी दिनचर्या में क्या परिवर्तन करेंगे?

(b) इन बीमारियों से बचने के लिए आप अपने पास-पड़ोस में क्या परिवर्तन करना चाहेेंगे?

2. डॉक्टर/नर्स/स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा रोगियों के संपर्क में अधिक रहते हैं। पता करो कि वे अपने-आपको बीमार होने से कैसे बचाते हैं?

3. अपने पास-पड़ोस में एक सर्वेक्षण कीजिए तथा पता लगाइए कि सामान्यतः कौन-सी तीन बीमारियाँ होती हैं? इन बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए अपने स्थानीय प्रशासन को तीन सुझाव दीजिए।

4. एक बच्चा अपनी बीमारी के विषय में नहीं बता पा रहा है। हम कैसे पता करेंगे कि

(a) बच्चा बीमार है?

(b) उसे कौन-सी बीमारी है?

5. निम्नलिखित किन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति पुनः बीमार हो सकता है? क्यों?

(a) जब वह मलेरिया से ठीक हो रहा है।

(b) वह मलेरिया से ठीक हो चुका है और वह चेचक के रोगी की सेवा कर रहा है।

(c) मलेरिया से ठीक होने के बाद चार दिन उपवास करता है और चेचक के रोगी की सेवा कर रहा है?

6. निम्नलिखित में से किन परिस्थितियों में आप बीमार हो सकते हैं? क्यों?

(a) जब आपकी परीक्षा का समय है?

(b) जब आप बस तथा रेलगाड़ी में दो दिन तक यात्रा कर चुके हैं?

(c) जब आप का मित्र खसरा से पीड़ित है।

7. यदि आप किसी एक संक्रामक रोग के टीके की खोज कर सकते हो तो आप किसको चुनते हैं ?

(a) स्वयं की ?

(b) अपने क्षेत्र में फैले एक सामान्य रोग की। क्यों ?