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अध्याय 14

प्राकृतिक संपदा

(Natural Resources)

हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी ही एक एेसा ग्रह है जहाँ जीवन विद्यमान है। पृथ्वी पर जीवन बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है। हम यह भी जानते हैं कि जीवन के लिए परिवेश ताप, जल तथा भोजन की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर उपलब्ध सभी प्रकार के जीवों की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सूर्य से ऊर्जा तथा पृथ्वी पर उपलब्ध संपदा की आवश्यकता होती है।

पृथ्वी पर ये संपदा कौन-कौन सी हैं?

ये स्थल, जल एवं वायु हैं। पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को स्थलमंडल कहते हैं। पृथ्वी के 75 प्रतिशत भाग पर जल है। यह भूमिगत जल के रूप में भी पाया जाता है। इन सभी को जलमंडल कहते हैं। वायु जो पूरी पृथ्वी को कंबल के समान ढके रहती है, उसे वायुमंडल कहते हैं। जीवित पदार्थ वहीं पाए जाते हैं जहाँ ये तीनों अवयव स्थित होते हैं। जीवन को आश्रय देने वाला पृथ्वी का यह घेरा जहाँ वायुमंडल, स्थलमंडल तथा जलमंडल एक-दूसरे से मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं उसे जीवमंडल के नाम से जाना जाता है।

सजीव, जीवमंडल के जैविक घटक को बनाते हैं। वायु, जल और मृदा जीवमंडल के निर्जीव घटक हैं। आइए अब इन अजैव घटकों जो पृथ्वी पर जीवन के संपूषण के लिए आवश्यक हैं, उनकी भूमिका का विस्तृत अध्ययन करते हैं।

14.1 जीवन की श्वासः वायु

हम पहले अध्याय में वायु के घटकों के विषय में पढ़ चुके हैं। यह बहुत-सी गैसों; जैसे–नाइट्रोजन, अॉक्सीजन, कार्बन डाइअॉक्साइड तथा जलवाष्प का मिश्रण है। यह जानना रुचिकर है कि पृथ्वी पर जीवन वायु के घटकों का परिणाम है। शुक्र तथा मंगल जैसे ग्रहों जहाँ कोई जीवन नहीं है, वायुमंडल का मुख्य घटक कार्बन डाइअॉक्साइड है। वास्तव में शुक्र तथा मंगल ग्रहों के वायुमंडल में 95 से 97 प्रतिशत तक कार्बन डाइअॉक्साइड है।

यूकैरियोेटिक कोशिकाओं और बहुत-सी प्रोेकैरियोटिक कोशिकाओं को ग्लूकोस अणुओं को तोड़ने तथा उससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अॉक्सीजन की आवश्यकता होती है जैसा कि हम अध्याय 5 में पढ़ चुके हैं। इसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइअॉक्साइड की उत्पत्ति होती है। दूसरी प्रक्रिया, जिसके परिणामस्वरूप अॉक्सीजन की खपत होती है और कार्बन डाइअॉक्साइड का उत्पादन होता है, दहन की क्रिया है। इसमें केवल मनुष्य के वे क्रियाकलाप ही नहीं जो ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ईंधन को जलाते हैं बल्कि जंगलों में लगी आग भी आती है।

इसके अतिरिक्त, हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइअॉक्साइड की मात्रा 1 प्रतिशत का एक छोटा-सा भाग है क्योंकि कार्बन डाइअॉक्साइड दो विधियों से ‘स्थिर’ होती हैः (i) हरे पेड़ पौधे सूर्य की किरणों की उपस्थिति में कार्बन डाइअॉक्साइड को ग्लूकोस में बदल देते हैं तथा (ii) बहुत-से समुद्री जंतु समुद्री जल में घुले कार्बोनेट से अपने कवच बनाते हैं।

14.1.1 जलवायु के नियंत्रण में वायुमंडल की भूमिका

हम जान चुके हैं कि वायुमंडल पृथ्वी को कंबल के समान ढके हुए है। हम जानते हैं कि वायु ऊष्मा का कुचालक है। वायुमंडल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय और यहाँ तक कि पूरे वर्षभर लगभग नियत रखता है। वायुमंडल दिन में तापमान को अचानक बढ़ने से रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अंतरिक्ष में जाने की दर को कम करता है। चंद्रमा के बारे में सोचें जो सूर्य से लगभग उतनी ही दूरी पर है जितना कि पृथ्वी । इसके बावजूद चंद्रमा की सतह, जहाँ वायुमंडल नहीं है, पर तापमान –190°C से 110°C के मध्य रहता है।

क्रियाकलाप 14.1

निम्नलिखित का ताप मापिएः

(i) जल से भरा एक बीकर, (ii) मृदा या बालू से भरा एक बीकर और (iii) एक बंद बोतल लें, जिसमें थर्मामीटर लगा हो। इन सभी को सूर्य के प्रकाश में तीन घंटे तक रखें। अब तीनों बर्तनों के तापमान की माप करें। उसी समय छाया में भी तापमान को देखें।


अब उत्तर दें

1. (i) या (ii) में से किसमें तापमान की माप अधिक है?

2. प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर कौन सबसे पहले गर्म होगा - स्थल या समुद्र?

3. क्या छाया में वायु के तापमान बालू तथा जल के तापमान के समान होगा? आप इसके कारण के बारे में क्या सोचते हैं? और तापमान को छाया में क्यों मापा जाता है?

4. क्या बंद बोतल या शीशे के बर्तन में लिया गया हवा का तापमान और खुले में लिया गया हवा का तापमान समान है? इसके कारण के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या हम प्रायः इस तरह की घटनाओं से अवगत होते हैं?


जैसा कि हमने देखा बालू तथा जल एकसमान दर से गर्म नहीं होते हैं। आप उनके ठंडा होने की दर के बारे में क्या सोचते हैं? क्या हम अपने अनुमान की सत्यता के लिए एक प्रयोग कर सकते हैं?


14.1.2 वायु की गतिः पवनें

हम दिनभर की गर्मी के बाद शाम को बहने वाले ठंडे समीर से राहत महसूस करते हैं। कभी-कभी कई दिनों तक अधिक गर्म मौसम के पश्चात् वर्षा होती है। वायु की गति का क्या कारण है और वे कौन-से कारक हैं जो उन्हें कभी समीर, कभी तेज़ हवा या कभी तूफ़ान के रूप में गति प्रदान करते हैं? वर्षा का क्या कारण है?

ये सभी प्रक्रियाएँ हमारे वायुमंडल में हवा के गर्म होने और जलवाष्प के बनने का परिणाम हैं। जलवाष्प जीवित प्राणियों के क्रियाकलापों और जल के गर्म होने के कारण बनती है। स्थलीय भाग या जलीय भाग से होने वाले विकिरण के परावर्तन तथा पुनर्विकिरण के कारण वायुमंडल गर्म होता है। गर्म होने पर, वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं। संवहन धाराओं की प्रकृति को जानने के लिए आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप करें।


क्रियाकलाप 14.2

एक मोमबत्ती को चौड़े मुँह वाली बोतल में या बीकर में रखें और उसे जलाएँ। एक अगरबत्ती को जलाएँ और उसे बोतल के मुँह के समीप ले जाएँ (चित्र 14.1)।

जब अगरबत्ती को मुँह के किनारे पर ले जाया जाता है तब अवलोकन करें कि धुआँ किस ओर जाता है?

• जब अगरबत्ती को मोमबत्ती के थोड़ा ऊपर रखा जाता है तब धुआँ किस ओर जाता है?

• दूसरे भागों में जब अगरबत्ती को रखा जाता है तो धुआँ किस ओर जाता है?


धुएँ द्वारा अपनाया गया पैटर्न हमें बताता है कि किस दिशा में गर्म और ठंडी हवाएँ बहती हैं। इसी प्रकार जब वायु स्थल और जल के विकिरण के कारण गर्म होती है तब यह ऊपर की ओर प्रवाह करती है। चूँकि, जल की अपेक्षा स्थल जल्दी गर्म होता है इसलिए स्थल के ऊपर की वायु जल के ऊपर की वायु के अपेक्षा तेज़ी से गर्म होगी।


चित्र 14.1: वायु के असमान तापन से वायुप्रवाह


इसलिए अगर हम तटीय क्षेत्रों को दिन में देखते हैं तो पाते हैं कि स्थल के ऊपर की वायु तेज़ी से गर्म होकर ऊपर उठना शुरू करती है। जैसे ही यह वायु ऊपर की ओर उठती है, वहाँ कम दाब का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित हो जाती है। एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वायु की गति पवनों का निर्माण करती है। दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होगी।

रात के समय स्थल और समुद्र दोनों ठंडे होने लगते हैं। चूँकि स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे ठंडा होता है इसलिए जल के ऊपर की वायु स्थल के ऊपर की वायु से गर्म होगी। ऊपर दी गई परिचर्चा के आधार पर आप निम्न के विषय में क्या कह सकते हैंः

1. तटीय क्षेत्रों पर कम तथा उच्च दाब के क्षेत्र रात में प्रतीत होते हैं?

2. तटीय क्षेत्रों में रात के समय वायु की दिशा क्या होगी?

इसी प्रकार, हवा की सभी गतियाँ विभिन्न वायुमंडलीय प्रक्रियाओं का परिणाम है जो पृथ्वी के वायुमंडल के असमान विधियोें से गर्म होने के कारण होता है। लेकिन इन हवाओं को बहुत-से अन्य कारक भी प्रभावित करते हैं जैसे पृथ्वी की घूर्णन गति तथा पवन के मार्ग में आने वाली पर्वत श्रृंखलाएँ। हम इन कारकाें के बारे में इस अध्याय में विस्तृत अध्ययन नहीं करेंगे। लेकिन इसके बारे में सोचते हैंः कैसे हिमालय की उपस्थिति से इलाहाबाद से उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली वायु की दिशा परिवर्तित हो जाती है?

14.1.3 वर्षा

आइए हम इस प्रश्न पर विचार करें कि बादल कैसे बनते हैं और वर्षा करते हैं। हम इसके लिए एक साधारण प्रयोग कर सकते हैं जिससे ज्ञात हो सके कि कुछ कारक जलवायु को कैसे प्रभावित करते हैं।

क्रियाकलाप 14.3

एक पतले प्लास्टिक की बोतल लें। इसमें 5 से 10 mL जल लें तथा बोतल को कस कर बंद करें। इसे अच्छी तरह हिलाएँ तथा 10 मिनट तक धूप में रखें। इससे बोतल में मौजूद वायु जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है।

• अब एक जली हुई अगरबत्ती लें। बोतल के ढक्कन को खोलें और अगरबत्ती के धुएँ की कुछ मात्रा को बोतल केअंदर जाने दें। पुनः बोतल को कस कर बंद करें। बोतल को अपने हथेलियों के बीच में रखकर जितना ज़ोर से हो सके दबाएँ। कुछ समय तक प्रतीक्षा करें और बोतल को छोड़ दें। एक बार पुनः बोतल को आप जितना ज़ोर से संभव हो सकता है दबाएँ।


अब उत्तर दें

1. आपने कब देखा कि बोतल के अंदर स्थित हवा कुहरे की भाँति हो जाती है?

2. यह कुहासा कब समाप्त होता है?

3. बोतल के अंदर दाब कब अधिक है?

4. कुहासा दिखाई देने की स्थिति में, बोतल के अंदर का दाब कम है या अधिक है?

5. इस प्रयोग के लिए बोतल के भीतर धुएँ की आवश्यकता क्यों है?

6. क्या होगा जब आप इस प्रयोग को बिना अगरबत्ती के धुएँ के करेंगे? अब एेसा प्रयत्न करें और देखें कि परिकल्पना सही थी या गलत।

बहुत छोटे स्तर पर उपरोक्त प्रयोग को दोहराएँ, क्या होता है जब जलवाष्प से भरी हुई वायु उच्च दाब वाले क्षेत्र से कम दाब वाले क्षेत्र में या इसके विपरीत प्रवाहित होती है।

दिन के समय जब जलीय भाग गर्म हो जातेे हैं, तब बहुत बड़ी मात्रा में जलवाष्प बन जाती है और यह वाष्प वायु में प्रवाहित हो जाती है। जलवाष्प की कुछ मात्रा विभिन्न जैविक क्रियाओं के कारण वायुमंडल में चली जाती है। यह वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म वायु अपने साथ जलवाष्प को लेकर ऊपर की ओर उठ जाती है। जैसे ही वायु ऊपर की ओर जाती है यह फैलती है तथा ठंडी हो जाती है। ठंडा होने के कारण हवा में उपस्थित जलवाष्प छोटी-छोटी जल की बूँदों के रूप में संघनित हो जाती है। जल का यह संघनन सहज होता है यदि कुछ कण नाभिक की तरह कार्य करके अपने चारों ओर बूँदों को जमा होने देते हैं। सामान्यतः वायु में उपस्थित धूल के कण तथा दूसरे निलंबित कण नाभिक के रूप में कार्य करते हैं।

एक बार जब जल की बूँदें निर्मित हो जाती हैं तो वे संघनित होने के कारण बड़ी हो जाती हैं। जब ये बूँदें बड़ी और भारी हो जाती हैं तब ये वर्षा के रूप में नीचे की ओर गिरती हैं। कभी-कभी जब वायु का तापमान काफ़ी कम हो जाता है तब ये हिमवृष्टि अथवा ओले के रूप में अवक्षेपित हो जाती हैं।

वर्षा का पैटर्न, पवनों के पैटर्न पर निर्भर करता है। भारत के बहुत बड़े भू-भाग में अधिकतर वर्षा दक्षिण पश्चिम या उत्तर पूर्वी मानसून के कारण होती है। हमने मौसम सूचनाओं में भी सुना है कि बंगाल की खाड़ी पर वायु का दबाव कम होने के कारण कई क्षेत्रों में वर्षा हुई।


चित्र 14.2: भारत पर आच्छादित बादलों का उपग्रह द्वारा प्रदर्शित चित्र


क्रियाकलाप 14.4

पूरे देश में होने वाली वर्षा के पैटर्न के बारे में समाचारपत्र या टेलीविजन के माध्यम से मौसम सूचनाओं की जानकारी एकत्र करें। यह भी पता लगाएँ कि एक वर्षा-मापक यंत्र कैसे बनाया जाता है और उसे बनाएँ। वर्षा-मापक यंत्र से सही डाटा प्राप्त करने के लिए कौन-कौन से सुरक्षात्मक उपाय करने आवश्यक हैं? अब निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें :

(i) किस महीने में आपके शहर/नगर/गाँव में सबसे अधिक वर्षा हुई?

(ii) किस महीने में आपके राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वर्षा हुई?

(iii) क्या वर्षा हमेशा बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ होती है? अगर नहीं तो किस मौसम में सबसे अधिक वर्षा, बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ होती है?

क्रियाकलाप 14.5

पुस्तकालय से मानसून और चक्रवात के बारे में और अधिक जानकारी एकत्र करें। किसी दूसरे देश की वर्षा के पैटर्न का पता लगाएँ। क्या पूरे विश्व में वर्षा के लिए मानसून उत्तरदायी होता है?


14.1.4 वायु प्रदूषण

हम समाचारों में प्रायः सुनते हैं कि नाइट्रोेजन और सल्फ़र के अॉक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। लोग प्रायः दुःख प्रकट करते हैं कि उनके बचपन से लेकर अभी तक वायु की गुणवत्ता में कमी आई है। वायु की गुणवत्ता कैसे प्रभावित होती है और इस गुणवत्ता में आए परिवर्तन हमें और दूसरे जीवों को कैसे प्रभावित करते हैं?

जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों में नाइट्रोेजन और सल्फ़र की बहुत कम मात्रा होती है। जब ये ईंधन जलते हैं तब नाइट्रोेजन और सल्फ़र भी इसके साथ जलते हैं तथा यह नाइट्रोेजन और सल्फ़र के विभिन्न अॉक्साइड उत्पन्न करते हैं। इन गैसों का केवल साँस के रूप में लेना ही खतरनाक नहीं है बल्कि येे वर्षा के जल में मिलकर अम्लीय वर्षा भी करते हैं। जीवाश्म ईंधनों का दहन वायु में निलंबित कणों की मात्रा को भी बढ़ा देता है। ये निलंबित कण बिना जले कार्बन कण या पदार्थ हो सकते हैं जिन्हें हाइड्रोकार्बन कहा जाता है। इन सभी प्रदूषकों की अधिक मात्रा में उपस्थिति दृश्यता को कम करती है विशेषकर सर्दी के मौसम में जब जल भी वायु के साथ संघनित होता है। इसे धूम कोहरा कहते हैं तथा ये वायु प्रदूषण की ओर संकेत करते हैं अध्ययनों से पता चलता है कि इन पदार्थों वाली वायु में साँस लेने से कैंसर, हृदय रोग या एलर्जी जैसी बीमारियाँ होने की संभावनाएँ अधिक हो जाती हैं। वायु में स्थित इन हानिकारक पदार्थों की वृद्धि को वायु प्रदूषण कहते हैं।


चित्र 14.3: लाइकेन



क्रियाकलाप 14.6

लाइकेन नामक जीव वायु में उपस्थित सल्फ़र डाइअॉक्साइड के स्तर के प्रति अधिक संवेदी होते हैं। जैसा कि अनुभाग 7.3.3 में बताया जा चुका है। ये प्रायः पेड़ों की छालों पर पतले हरे और सफ़ेद रंग की परत के रूप में पाए जाते हैं। यदि आपके आस-पास पेड़ों पर लाइकेन है तो उसे आप देख सकते हैं।

वयस्त सड़क के समीप पेड़ पर स्थित लाइकेन और कुछ दूरी पर स्थित पेड़ पर स्थित लाइकेन की तुलना करें।

सड़क के समीप स्थित पेड़ों पर, सड़क की ओर की सतहों पर लगे लाइकेन की तुलना सड़क की विपरीत दिशा की ओर वाली सतहों पर लगे लाइकेन से करें।


ऊपर प्राप्त लक्षणों के आधार पर आप सड़क के किनारे या दूर प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थों के स्तर के विषय में क्या कह सकते हैं?

 प्रश्न

1. शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमंडल से हमारा वायुमंडल कैसे भिन्न है?

2. वायुमंडल एक कंबल की तरह कैसे कार्य करता है?

3. वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?

4. बादलों का निर्माण कैसे होता है?

5. मनुष्य के तीन क्रियाकलापों का उल्लेख करें जो वायु प्रदूषण में सहायक हैं।


14.2 जलः एक अद्भुत द्रव

जल पृथ्वी की सतह के सबसे बड़े भाग पर उपस्थित है और यह भूमिगत भी होता है। जल की कुछ मात्रा जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में भी पाई जाती है। पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाला अधिकतर जल समुद्र और महासागरों में है तथा यह खारा है। शुद्ध जल बर्फ़ के रूप में दोनों ध्रुवों पर और बर्फ़ से ढके पहाड़ों पर पाया जाता है। भूमिगत जल और नदियों, झीलों और तालाबों का जल भी शुद्ध होता है। फिर भी इस जल की उपलब्धता विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। गर्मी में अधिकतर स्थानों पर जल की कमी होती है। ग्रामीण इलाकों में जहाँ जल आपूर्ति की व्यवस्था नहीं है वहाँ लोगों का अधिकतर समय दूर से जल लाने में व्यय होता है।

क्रियाकलाप 14.7

बहुत से नगर निगम जल की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए जल-संग्रहण की तकनीकों पर कार्य कर रहे हैं।

पता लगाइए ये कौन-सी तकनीक हैं तथा ये उपयोग के लिए उपलब्ध जल की मात्रा बढ़ाने में किस प्रकार सहायक हैं।


लेकिन जल इतना अधिक आवश्यक क्यों है? तथा क्या सभी प्राणियों को जल की आवश्यकता है? सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं। सभी प्रतिक्रियाएँ जो हमारे शरीर में या कोशिकाओं के अंदर होती हैं, वह जल में घुले हुए पदार्थों में होती हैं। शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में होता है। इसलिए जीवित प्राणी जीवित रहने के लिए अपने शरीर में जल की मात्रा को संतुलित बनाए रखते हैं। स्थलीय जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है क्योंकि खारे जल में नमक की अधिक मात्रा होने के कारण जीवों का शरीर उसे सहन नहीं कर पाता है। इसलिए प्राणियों और पौधों को पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए आसानी से जल उपलब्धि के स्रोत आवश्यक हैं।

क्रियाकलाप 14.8

किसी नदी, तालाब या झील के समीप एक छोटे स्थान को चुनें। मान लें एक वर्गमीटर इस क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों एवं जंतुओं की संख्या को गिनें। प्रत्येक स्पीशीज़ की अलग-अलग गणना करें।

इसकी तुलना सूखे और पथरीले भाग के उतने ही बड़े क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं और पौधों से करें।

क्या दोनों क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधे और जंतु एक ही प्रकार के हैं?

क्रियाकलाप 14.9

अपने विद्यालय के समीप या किसी प्रयोग में न आने वाली भूमि को चुनें (लगभग एक वर्ग मीटर) और उसे चिह्नित करें।

उसी प्रकार उस क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न जंतुओं और पौधों तथा प्रत्येक स्पीशीज़ के जीवों की संख्याओं की गणना करें।

उसी स्थान की गणना वर्ष में दो बार करें, एक बार गर्मी या सूखे मौसम में और दूसरी बार बरसात के मौसम के बाद।


अब उत्तर दें

1. क्या दोनों बार संख्याएँ समान थीं?

2. किस मौसम में आपने विभिन्न प्रकार के पौधों और जंतुओं की अधिकता पाई?

3. प्रत्येक प्रकार के जीवों की संख्या किस मौसम में अधिक थी?


उपरोक्त दोनों क्रियाकलापों के परिणामों को संकलित करने के बाद आप विचार करें कि क्या जल की मात्रा की उपलब्धता का संबंध पौधों और जंतुओं के प्रकार तथा उनकी संख्या से है जो एक निश्चित या दिए हुए स्थान में रह सकते हैं। अगर संबंध है, तो बताएँ कि आप किस क्षेत्र में सबसे अधिक प्रकार और जीवन की उपलब्धता पाएँगे — 200 cm वर्षा वाले क्षेत्र में या 5 cm वर्षा वाले क्षेत्र में? एटलस में वर्षा के पैटर्न वाले मानचित्र को देखें और यह बताएँ कि भारत के किस राज्य में सबसे अधिक जैव विभिन्नता होगी और किस राज्य में कम। अनुमान सही है या गलत इसकी जाँच करने के लिए क्या हम किसी विधि पर विचार कर सकते हैं?

जल की उपलब्धता प्रत्येक स्पीशीज़ के वर्ग जो कि एक विशेष क्षेत्र में जीवित रहने में सक्षम है, की संख्या को ही निर्धारित नहीं करती है अपितु यह वहाँ के जीवन में विविधता को भी निर्धारित करती है। यद्यपि जल की उपलब्धता ही केवल एक कारक नहीं है जो उस क्षेत्र में जीवन के लिए आवश्यक है। दूसरे कारक जैसे तापमान और मिट्टी की प्रकृति भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन जल एक महत्वपूर्ण संपदा है, जो जीवन को स्थल पर निर्धारित करता है।

14.2.1 जल प्रदूषण

जल उन कीटनाशकों और उर्वरकों को भी घोल लेता है जिसका उपयोग हम खेतों में करते हैं। अतः इन पदार्थों का कुछ प्रतिशत भाग जल में चला जाता है। हमारे शहर या नगर के नाले का जल और उद्योगों का कचरा भी नदियों तथा झीलों में संग्रहित हो जाता है। कुछ विशेष उद्योगों की बहुत सारी क्रियाओं में शीतलता बनाए रखने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है तथा इस प्रकार निष्पादित गर्म जल को जलाशय में वापस लौटा दिया जाता है। जब बाँध से जल को छोड़ा जाता है तब नदियों के जल के तापमान पर भी प्रभाव पड़ता है। गहरे जलाशय के अंदर का जल सूर्य के द्वारा गर्म ऊपर की सतह के जल की तुलना में शीतल होगा।

ये सभी जलाशयों में पाए जाने वाले जीवों के प्रकार को विभिन्न प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं। ये कुछ जीवों की वृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं, तो कुछ को हानि पहुँचा सकते हैं। ये इस प्रणाली में उपस्थित विभिन्न जीवों के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं।
अतः हम निम्नलिखित प्रभावों को दिखाने के लिए जल-प्रदूषण शब्द का प्रयोग करते हैं।

1. जलाशयों में अनैच्छिक पदार्थों का मिलना। ये पदार्थ पीड़कनाशी या उर्वरक हो सकते हैं जो खेतों में उपयोग होते हैं, या वे कागज़ उद्योग में प्रयुक्त होने वाले विषैले पदार्थ जैसे पारा के लवण हो सकते हैं। ये बीमारी फैलाने वाले जीव जैसे हैज़ा फैलाने वाले बैक्टीरिया भी हो सकते हैं।

2. इच्छित पदार्थों को जलाशयों से हटाना। घुली हुई अॉक्सीजन जल में रहने वाले पौधों और जंतुओं के द्वारा उपयोग की जाती है। किसी भी तरह का परिवर्तन जो इस घुली हुई अॉक्सीजन की मात्रा को कम करता है उसका जलीय जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जलाशय से अन्य पोषक की कमी भी हो सकती है।

3. तापमान में परिवर्तन। जलीय जीव जिस जलाशय में रहते हैं वे वहाँ के एक विशिष्ट तापमान के अनुकूल होते हैं और उस तापमान में अचानक परिवर्तन उनके लिए खतरनाक होगा या प्रजनन की प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। विभिन्न प्रकार के जंतुओं के अंडे और लार्वा तापमान परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न

1. जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?

2. जिस गाँव/शहर/नगर में  आप रहते हैं वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत क्या है?

3. क्या आप किसी क्रियाकलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रदूषित कर रहा है?


14.3 मृदा में खनिज की प्रचुरता

एक क्षेत्र में जीवन की विविधता को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण संपदा मृदा है। लेकिन मृदा (मिट्टी) क्या है और यह कैसे बनती है? पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को भू-पृष्ठ कहा जाता है और इस परत में पाए जाने वाले खनिज जीवों को विभिन्न प्रकार के पालन-पोषण करने वाले तत्व प्रदान करते हैं। लेकिन यदि ये खनिज बड़े पत्थरों के साथ संलग्न होते हैं तो ये जीवों के लिए उपलब्ध नहीं होंगे। हज़ारों और लाखों वर्षों के लंबे समयांतराल में पृथ्वी की सतह या उसके समीप पाए जाने वाले पत्थर विभिन्न प्रकार के भौतिक रासायनिक और कुछ जैव प्रक्रमों के द्वारा टूट जाते हैं। टूटने के बाद सबसे अंत में बचा महीन कण मृदा है। लेकिन कौन-से कारक या प्रक्रियाएँ हैं जिनसे मृदा बनती है?

• सूर्यः सूर्य दिन के समय पत्थर को गर्म कर देता है जिससे वे प्रसारित हो जाते हैं। रात के समय ये पत्थर ठंडे होते हैं और संकुचित हो जाते हैं क्योंकि पत्थर का प्रत्येक भाग असमान रूप से प्रसारित तथा संकुचित होता है। एेसा बार-बार होने पर पत्थर में दरार आ जाती है तथा अंत में ये बड़े पत्थर टूट कर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाते हैं।

• जलः जल मृदा के निर्माण में दो प्रकार से सहायता करता है। पहला सूर्य के ताप से बने पत्थरों की दरार में जल जा सकता है। यदि यह जल बाद में जम जाता है, तो यह दरार को और अधिक चौड़ा करेगा। क्या आप सोच सकते हैं कि एेसा क्यों होना चाहिए? दूसरा बहता हुआ जल कठोर पत्थरों को भी तोड़-फोड़ देता है। तेज़ गति के साथ बहता हुआ जल प्रायः अपने साथ बड़े और छोटे पत्थरों को बहा कर ले जाता है। ये पत्थर दूसरे पत्थरों के साथ टकराकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं। जल पत्थरों के इन कणों को अपने साथ ले जाता है और आगे निक्षेपित कर देता है। इस प्रकार मृदा अपने मूल पत्थर से काफ़ी दूर वाले स्थान पर पाई जाती है।

• वायु : जिस प्रकार जल में पत्थर एक-दूसरे से टकराने के कारण टूटते हैं उसी प्रकार तेज़ हवाएँ भी पत्थरों को तोड़ देती हैं। वायु जल की ही तरह बालू को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है।

• जीव भी मृदा के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लाइकेन जिसके बारे में हमने पहले पढ़ा है, पत्थरों की सतह पर भी उगते हैं। इस क्रम में वे एक पदार्थ छोड़ते हैं जो पत्थर की सतह को चूर्ण के समान कर देता है और मृदा की एक पतली परत का निर्माण करता है। अब इस सतह पर मॉस (moss) जैसे दूसरे छोटे पौधे उगने में सक्षम होते हैं और ये पत्थर को और अधिक तोड़ते हैं। बड़े पेड़ों की मूलें कभी-कभी पत्थरों में बनी दरारों में चली जाती हैं और वे दरार को चौड़ा कर देती हैं।

क्रियाकलाप 14.10

कुछ मृदा लें तथा उसे जल से भरे बीकर में डाल दें। ली गई मृदा की मात्रा के लगभग पाँच गुणा जल होना चाहिए। मृदा और जल को मिलाएँ और फिर मृदा को नीचे जमा होने दें। कुछ समय पश्चात् अवलोकन करें।

क्या बीकर के तल में मृदा समांगी है या परतों में विभाजित है?

अगर परतों का निर्माण हुआ है तो किस प्रकार एक परत दूसरे से भिन्न है?

क्या वहाँ जल की सतह पर कुछ तैर रहा है?

क्या आप सोच सकते हैं कि कुछ पदार्थ जल में घुल गए होंगे? आप इसे कैसे रोकेंगे?


जैसा कि आपने देखा है, मृदा एक मिश्रण है। इसमें विभिन्न आकार के छोटे-छोटे टुकड़े मिले होते हैं। इसमें सड़े-गले जीवों के टुकड़े भी मिले होते हैं, जिसे ह्यूमस (humus) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव भी मिले होते हैं। मृदा के प्रकार का निर्णय उसमें पाए जाने वाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है। मृदा के गुण को उसमें स्थित ह्यूमस की मात्रा और पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों के आधार पर किया जाता है। मृदा की संरचना का मुख्य कारक ह्यूमस है क्योंकि यह मृदा को सरंध्र बनाता है और वायु तथा जल को भूमि के अंदर जाने में सहायक होता है। खनिज पोषक तत्व जो उस मृदा में पाए जाते हैं वह उन पत्थरों पर निर्भर करते हैं जिससे मृदा बनी है। किस मृदा पर कौन-सा पौधा होगा यह इस पर निर्भर करता है कि उस मृदा में पोषक तत्व कितने हैं, ह्यूमस की मात्रा कितनी है और उसकी गहराई क्या है। इस प्रकार, मृदा की ऊपरी परत में जिसमें मृदा के कणों के अतिरिक्त ह्यूमस और सजीव स्थित होते हैं, उसे ऊपरिमृदा कहा जाता है। ऊपरिमृदा की गुणवत्ता जो उस क्षेत्र की जैविक विविधता को निर्धारित करती है, में एक महत्वपूर्ण कारक है।

आधुनिक खेती में पीड़कनाशकों और उर्वरकों का बहुत बड़ी मात्रा में प्रयोग हो रहा है। लंबे समय तक इन पदार्थों का उपयोग करने से मृदा के सूक्ष्म जीव मृत हो जाते हैं और मृदा की संरचना को नष्ट कर सकते हैं जो कि मृदा के पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करते हैं। ह्यूमस बनाने में सहायक भूमि में स्थित केंचुओं को भी ये समाप्त कर सकते हैं। अगर संपूषणीय खेती नहीं की जाए तो उपजाऊ मृदा जल्द बंजर भूमि में परिवर्तित हो सकती है। उपयोगी घटकों का मृदा से हटना और दूसरे हानिकारक पदार्थों का मृदा में मिलना जो कि मृदा की ऊर्वरता को प्रभावित करते हैं और उसमें स्थित जैविक विविधता को नष्ट कर देते हैं। इसे भूमि-प्रदूषण कहते हैं।

मृदा जिसे हम आज एक स्थान पर देखते हैं वह लंबे समयांतराल के पश्चात् निर्मित हुई है। यद्यपि, कुछ मृदा को एक स्थान पर निर्मित करने वाले कुछ कारक, इसको किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए भी उत्तरदायी हो सकते हैं। मृदा के महीन कण प्रवाहित वायु या जल के साथ भी स्थानांतरित हो सकते हैं। मृदा के समस्त कणों के स्थानांतरित हो जाने पर कठोर पत्थर बाहर आ जाता है। इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण संपदा की हानि हो जाती है क्योंकि पत्थर पर ऊर्वरता नगण्य होती है।


क्रियाकलाप 14.11

एक ही तरह की दो ट्रे लें और उन्हें मृदा से भर दें। एक ट्रे में सरसों या मूंग अथवा धान या हरे चने का पौधा रोप दें और दोनों ट्रे में तब तक जल दें जब तक कि जिस ट्रे में पौधा रोपा गया है वह पौधे की वृद्धि से ढक नहीं जाए। यह सुनिश्चित करें कि दोनों ट्रे एक ही कोण पर झुके हों। दोनों ट्रे में समान मात्रा में जल इस तरह से डालें कि जल बाहर की ओर निकल जाए (चित्र 14.4)।

ट्रे से बाहर जाने वाली मृदा की मात्रा का अध्ययन करें। क्या बहने वाली मृदा की मात्रा दोनों ट्रे में समान है?

अब कुछ ऊँचाई से दोनों ट्रे में समान मात्रा में जल डालें। जितना आपने पहले डाला है उतनी ही मात्रा में जल तीन से चार बार डालें।

अब मृदा की मात्रा का अध्ययन करें जो ट्रे से बाहर चली गई। क्या दोनों ट्रे में मृदा की मात्रा समान हैं?


चित्र 14.4: बहते जल का ऊपरिमृदा (सतह की मृदा) पर प्रभाव

पौधों की जड़ें मृदा के अपरदन (erosion) को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बड़े स्तर पर जंगलों का कटना (जो कि पूरे विश्व में हो रहा है) न केवल जैविक विविधता को नष्ट कर रहा है बल्कि मृदा के अपरदन के लिए भी उत्तरदायी है। वनस्पति के लिए सहायक ऊपरिमृदा, अपरदन की प्रक्रिया में तीव्रता से हट सकती है। यह पहाड़ी और पर्वतों वाले भागों में त्वरित गति से होता है। मृदा के अपरदन की इस क्रिया (मृदा-अपरदन) को रोकना बहुत कठिन है। सतह पर पाई जाने वाली वनस्पति, जल को परतों के अंदर जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न

1. मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?

2. मृदा-अपरदन क्या है?

3. अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?


14.4 जैव रासायनिक चक्रण

जीवमंडल के जैविक और अजैविक घटकों के बीच का सामंजस्य जीवमंडल को गतिशील और स्थिर बनाता है। इस सामंजस्य के द्वारा जीवमंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ और ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। आइए देखते हैं कि वे कौन-कौन सी क्रियाएँ हैं जो संतुलन को बनाए रखती हैं।

14.4.1 जलीय-चक्र

आपने देखा है कि जलाशयों से जल के वाष्पीकरण और फिर संघनन के बाद वर्षा कैसे होती है। लेकिन हमने समुद्रों और महासागरों को सूखते हुए नहीं देखा है, तो किस प्रकार जल इन जलाशयों में वापस आता है? पूरी प्रक्रिया को, जिसके द्वारा जल, जलवाष्प बनता है और वर्षा के रूप में सतह पर गिरता है और फिर नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच जाता है, जलीय चक्र कहते हैं। यह चक्र उतना आसान और सरल नहीं है जैसा कि वक्तव्य से प्रतीत होता है। वह सारा जल जो पृथ्वी पर गिरता है तुरंत समुद्र में नहीं चला जाता है। इनमें से कुछ मृदा के अंदर चला जाता है और भूजल का हिस्सा बन जाता है। कुछ भूजल झरनों के द्वारा सतह पर आ जाता है या हम इसे अपने व्यवहार के लिए कूपों और नलकूपों की मदद से सतह पर लाते हैं। जीवन की विभिन्न प्रकियाओं में स्थलीय जीव-जंतु और पौधे जल का उपयोग करते हैं (चित्र 14.5)।


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चित्र 14.5: प्रकृति में जलीय-चक्र

आइए जलीय-चक्र में जल का क्या होता है, के एक अन्य पहलू पर विचार करते हैं। जैसा कि आप जानते हैं जल बहुत से पदार्थों को घुलाने में सक्षम है। घुलने वाले खनिजों से होकर जब जल गुजरता है तब इनमें से कुछ खनिज जल में घुल जाते हैं। इस प्रकार नदी बहुत से पोषक तत्वों को सतह से समुद्र में ले जाती है और इनका उपयोग समुद्री जीव-जंतुआें द्वारा किया जाता है।

14.4.2 नाइट्रोेजन-चक्र

हमारे वायुमंडल का 78 प्रतिशत भाग नाइट्रोेजन गैस है। यह गैस जो जीवन के लिए आवश्यक बहुत सारे अणुओं का भाग है; जैसे–प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, डी.एन.ए. और आर.एन.ए. तथा कुछ विटामिन। नाइट्रोेजन दूसरे जैविक यौगिकों में भी पाया जाता है; जैसे– एेल्केलॉइड् तथा यूरिया। इसलिए नाइट्रोेजन सभी प्रकार के जीवों के लिए एक आवश्यक पोषक है। सभी जीवरूपों द्वारा वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन गैस के प्रत्यक्ष उपयोग से जीवन सरल हो जाएगा। यद्यपि कुछ प्रकार के बैक्टीरिया को छोड़कर दूसरे जीवरूप निष्क्रिय नाइट्रोेजन परमाणुओं को नाइट्रेट्स तथा नाइट्राइट्स जैसे दूसरे आवश्यक अणुओं में बदलने में सक्षम नहीं हैं। ‘नाइट्रोेजन स्थिरीकरण’ करने वाले ये बैक्टीरिया या तो स्वतंत्र रूप से रहते हैं या द्विबीजपत्री पौधाें की कुछ स्पीशीज़ के साथ पाए जाते हैं। साधारणतः ये नाइट्रोेजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया फलीदार पौधों की जड़ों में एक विशेष प्रकार की संरचना (मूल ग्रंथिका) में पाए जाते हैं। इन बैक्टीरिया के अलावा नाइट्रोेजन परमाणु नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स में भौतिक क्रियाओं के द्वारा बदलते हैं। बिजली चमकने के समय वायु में पैदा हुआ उच्च ताप तथा दाब नाइट्रोेजन को नाइट्रोेजन के अॉक्साइड में बदल देता है। ये अॉक्साइड जल में घुलकर नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाते हैं और वर्षा के साथ भूमि की सतह पर गिरते हैं। तब इसका उपयोग विभिन्न जीवरूपों द्वारा किया जाता है।



चित्र 14.6: प्रकृति में नाइट्रोेजन-चक्र

नाइट्रोजन-संयोजी अणु बनाने में प्रयुक्त होने वाले रूपों के निर्माण के पश्चात् नाइट्रोजन का क्या होता है? सामान्यतः पौधे नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स को ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अमीनो अम्ल में बदल देते हैं जिनका उपयोग प्रोटीन बनाने में होता है। कुछ दूसरे जैव-रासायनिक विकल्प हैं जिनका प्रयोग नाइट्रोेजन वाले दूसरे जटिल यौगिकों को बनाने में होता है। इन प्रोटीनों और दूसरे जटिल यौगिकों का प्रयोग जंतुओं द्वारा किया जाता है। जब जंतु या पौधे की मृत्यु हो जाती है तो मिट्टी में मौजूद अन्य बैक्टीरिया विभिन्न यौगिकों में स्थित नाइट्रोेजन को नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स में बदल देते हैं तथा अन्य तरह के बैक्टीरिया इन नाइट्रेट्स एवं नाइट्राइट्स को नाइट्रोेजन तत्व में बदल देते हैं। इसी प्रकार, प्रकृति में एक नाइट्रोेजन-चक्र होता है जिसमें नाइट्रोेजन वायुमंडल मेें अपने मूल रूप से गुजरता हुआ मृदा और जल में साधारण परमाणु के रूप में बदलता है तथा जीवित प्राणियों में और अधिक जटिल यौगिक के रूप में बदल जाता है। फिर ये साधारण परमाणु के रूप में वायुमंडल में वापस आ जाता है।


14.4.3 कार्बन-चक्र

कार्बन पृथ्वी पर बहुत सारी अवस्थाओं में पाया जाता हैं। यह अपने मूल रूप में हीरा और ग्रेफ़ाइट में पाया जाता है। यौगिक के रूप में यह वायुमंडल में कार्बन डाइअॉक्साइड के रूप में, विभिन्न प्रकार के खनिजों में कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है। जबकि सभी जीवरूप कार्बन आधारित अणुओं; जैसे–प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, न्यूक्लिक अम्ल और विटामिन पर आधारित होते हैं। बहुत सारे जंतुओं के बाहरी और भीतरी कंकाल भी कार्बोनेट लवणों से बने होते हैं। प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया जो सूर्य की उपस्थिति में उन सभी पौधों में होती है जिनमें कि क्लोरोफ़िल होता है। इस मूल क्रिया द्वारा कार्बन जीवन के विभिन्न प्रकारों में समाविष्ट होता है। यह प्रक्रिया वायुमंडल में या जल में घुले कार्बन डाइअॉक्साइड को ग्लूकोस अणुओं में बदल देती है। ये ग्लूकोस अणु या तो दूसरे पदार्थों में बदल दिए जाते हैं या ये दूसरे जैविक रूप से महत्वपूर्ण अणुओं के संश्लेषण के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं (चित्र 14.7)।



चित्र 14.7: प्रकृति में कार्बन-चक्र

जीवित प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करने की प्रक्रिया में ग्लूकोस का उपयोग होता है। श्वसन की क्रिया द्वारा ग्लूकोस को कार्बन डाइअॉक्साइड में बदलने के लिए अॉक्सीजन का प्रयोग हो भी सकता है और नहीं भी। यह कार्बन डाइअॉक्साइड वायुमंडल में वापस चली जाती है। दहन की क्रिया जहाँ ईंधन का उपयोग खाना पकाने, गर्म करने, यातायात और उद्योगों में होता है, के द्वारा वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड का प्रवेश होता है। वास्तव में, जब से औद्योगिक क्रांति हुई है और मानव ने बहुत बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधनों को जलाना शुरू किया है तब से वायुमंडल में कार्बन डाइअॉक्साइड की मात्रा दोगुनी हो गई है। जल की तरह कार्बन का भी विभिन्न भौतिक एवं जैविक क्रियाओं के द्वारा पुनर्चक्रण होता है।


14.4.3 (i) ग्रीन हाउस प्रभाव

क्रियाकलाप 14.1 में किए गए अवलोकनों का स्मरण कीजिए। शीशे (glass) द्वारा ऊष्मा को रोक लेने के कारण शीशे के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से काफ़ी अधिक हो जाता है। ठंडे मौसमों में ऊष्ण कटिबंधीय पौधों को गर्म रखने के लिए आवरण बनाने की प्रक्रिया में इस अवधारणा का उपयोग किया गया है। इस प्रकार के आवरण को ग्रीन हाउस कहते हैं। वायुमंडलीय प्रक्रियाओं मेें भी ग्रीन हाउस होता है। कुछ गैसें पृथ्वी से ऊष्मा को पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर जाने से रोकती हैं। वायुमंडल में विद्यमान इस प्रकार की गैसों में वृद्धि संसार के औसत तापमान को बढ़ा सकती है। इस प्रकार के प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। कार्बन डाइअॉक्साइड भी एक इसी प्रकार की ग्रीन हाउस गैस है। वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाइअॉक्साइड में वृद्धि से वायुमंडल में ऊष्मा की वृद्धि होगी। इस प्रकार के कारणों द्वारा वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) की स्थिति उत्पन्न हो रही है।


क्रियाकलाप 14.12

वैश्विक ऊष्मीकरण के क्या परिणाम हो सकते हैं?

कुछ अन्य ग्रीन हाउस गैसों के नामों का भी पता लगाएँ।


14.4.4 अॉक्सीजन-चक्र

अॉक्सीजन पृथ्वी पर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। इसकी मात्रा मूल रूप में वायुमंडल में लगभग 21 प्रतिशत है। यह बड़े पैमाने पर पृथ्वी के पटल में यौगिक के रूप में तथा वायु में कार्बन डाइअॉक्साइड के रूप में भी पाई जाती है। पृथ्वी के पटल में यह धातुओं तथा सिलिकन के अॉक्साइडों के रूप में पाई जाती है। यह कार्बोनेट, सल्फ़ेट, नाइट्रेट तथा अन्य खनिजों के रूप में भी पाई जाती है। यह जैविक अणुओं; जैसे–कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल और वसा (अथवा लिपिड) का भी एक आवश्यक घटक है।

लेकिन जब हम अॉक्सीजन-चक्र के बारे में बात करते हैं तब हम मुख्यतः उस चक्र को निर्देशित करते हैं जो अॉक्सीजन की मात्रा को वायुमंडल में संतुलित बनाए रखता है। वायुमंडल से अॉक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है, जिनके नाम हैंः श्वसन, दहन तथा नाइट्रोेजन के अॉक्साइड के निर्माण में। वायुमंडल में अॉक्सीजन में केवल एक ही मुख्य प्रक्रिया, जिसे प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं, के द्वारा लौटती है। इस प्रकार से प्रकृति में अॉक्सीजन-चक्र की रूपरेखा बनती है (चित्र 14.8)।


चित्र 14.8: प्रकृति में अॉक्सीजन चक्र


यद्यपि हम जीवन में श्वसन की क्रिया में अॉक्सीजन को महत्वपूर्ण मानते हैं, परन्तु कुछ जीव मुख्यतः बैक्टीरिया, तत्वीय अॉक्सीजन द्वारा ज़हरीले हो जाते हैं। वास्तव में, बैक्टीरिया के द्वारा नाइट्रोेजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया अॉक्सीजन की उपस्थिति में नहीं होती।

14.5 ओज़ोन परत

तत्वीय अॉक्सीजन मूल रूप में समान्यतः द्विपरमाण्विक अणु के रूप में पाई जाती है। यद्यपि, वायुमंडल के ऊपरी भाग में अॉक्सीजन के तीन परमाणु वाले अणु भी पाए जाते हैं। इसका सूत्र O3 होता है तथा इसे ओज़ोन कहते हैं। अॉक्सीजन के सामान्य द्विपरमाण्विक अणु के विपरीत ओज़ोन विषैला होता है। हम भाग्यशाली हैं कि ओज़ोन पृथ्वी की सतह के नजदीक स्थिर नहीं रह पाता है। यह सूर्य से आने वाले हानिकारक विकिरणों को अवशोषित करती है। इस प्रकार यह उन हानिकारक विकिरणों को पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से रोकती है जो कि कई जीवरूपों को हानि पहुँचा सकते हैं।

हाल ही में यह पता चला कि ओज़ोन परत का ह्रास (अवक्षय) होता जा रहा है। मनुष्य के द्वारा बनाए गए विभिन्न प्रकार के यौगिक जैसे क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) वायुमंडल में स्थिर अवस्था में उपस्थित हो जाते हैं। (CFC) क्लोरीन तथा फ्लोरीन युक्त कार्बन यौगिक हैं। ये बहुत स्थायी होते हैं तथा किसी जैव-प्रक्रिया द्वारा भी विघटित नहीं होते हैं। एक बार जब वे ओज़ोन परत के समीप पहुँचते हैं, वे ओज़ोन अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। इसके परिणामस्वरूप ओज़ोन की परत में कमी आई और हाल ही में अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन परत में छिद्र पाया गया। ओज़ोन परत के और भी अधिक क्षीण होने के कारण पृथ्वी पर जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में कल्पना करना भी कठिन है। अतः बहुत लोगों के विचार में ओज़ोन की परत के क्षीण होने की प्रक्रिया को रोकने के प्रयास आवश्यक हैं।

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चित्र 14.9: अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन की परत में छिद्र (मैजेंटा रंग) को दिखाते उपग्रह चित्र


क्रियाकलाप 14.13

यह पता लगाएँ कि और कौन से अणु हैं जो ओज़ोन परत को हानि पहुँचाते हैं।

समाचारपत्रों में प्रायः ओज़ोन परत में होने वाले छिद्र की चर्चा की जाती है।

यह पता लगाएँ कि क्या छिद्र में कोई परिवर्तन हो रहा है। वैज्ञानिक क्या सोचते हैं कि यह किस प्रकार पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करेगा।


प्रश्न

1. जल-चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पायी जाती हैं?

2. जैविक रूप से महत्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें अॉक्सीजन और नाइट्रोेजन दोनों पाए जाते हों?

3. मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानें जिनसे वायु में कार्बन डाइअॉक्साइड की मात्रा बढ़ती है।

4. ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?

5. वायुमंडल में पाए जाने वाले अॉक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?


आपने क्या सीखा

पृथ्वी पर जीवन मृदा, वायु, जल तथा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जैसी संपदाओ पर निर्भर करता है।

स्थल और जलाशयों के ऊपर विषम रूप में वायु के गर्म होने के कारण पवनें उत्पन्न होती हैं।

जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करता है।

किसी क्षेत्र में पहले से विद्यमान वायु के रूप पर होने वाली वर्षा का पैटर्न निर्भर करता है।

विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व चक्रीय रूपों से पुनः उपयोग किए जाते हैं जिसके कारण जैवमंडल के विभिन्न घटकों में एक निश्चित संतुलन स्थापित होता है।

वायु, जल तथा मृदा का प्रदूषण जीवन की गुणवत्ता और जैव विविधताओं को हानि पहुँचाता है।

हमें अपनी प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षित रखने की आवश्यकता है और उन्हें संपूषणीय रूपों में उपयोग करने की आवश्यकता है।

अभ्यास

1. जीवन के लिए वायुमंडल क्यों आवश्यक है?

2. जीवन के लिए जल क्यों अनिवार्य है?

3. जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर हैं? क्या जल में रहने वाले जीव संपदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतंत्र हैं?

4. आपने टेलीविज़न पर और समाचारपत्र में मौसम संबंधी रिपोर्ट को देखा होगा। आप क्या सोचते हैं कि हम मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?

5. हम जानते हैं कि बहुत-सी मानवीय गतिविधियाँ वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण-स्तर को बढ़ा रहे हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों मे सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?

6. जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?