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मङ्गलम्
यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत् सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ।।1।।
यस्याश्चतस्रः प्रदिशः पृथिव्या यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः।
या बिभर्ति बहुधा प्राणदेजत् सा नो भूमिर्गोष्वप्यन्ने दधातु ।।2।।
जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम्।
सहस्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरन्ती ।।3।।
1. जिस (भूमि) में महासागर, नदियाँ और जलाशय (झील, सरोवर आदि) विद्यमान हैं, जिसमें अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ उपजते हैं तथा कृषि, व्यापार आदि करने वाले लोग सामाजिक संगठन बना कर रहते हैं (कृष्टयः सं बभूवुः), जिस (भूमि) में ये साँस लेते (प्राणत्) प्राणी चलते-फिरते हैं; वह मातृभूमि हमें प्रथम भोज्य पदार्थ (खाद्य-पेय) प्रदान करे ।।1।।
2. जिस भूमि में चार दिशाएँ तथा उपदिशाएँ अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ (फल, शाक आदि) उपजाती हैं; जहाँ कृषि-कार्य करने वाले सामाजिक संगठन बनाकर रहते हैं (कृष्टयः सं बभूवुः); जो (भूमि) अनेक प्रकार के प्राणियों (साँस लेने वालों तथा चलने-फिरने वाले जीवों) को धारण करती है, वह मातृभूमि हमें गौ-आदि लाभप्रद पशुओं तथा खाद्य पदार्थों के विषय में सम्पन्न बना दे ।।2।।
3. अनेक प्रकार से विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले तथा अनेक धर्मों को मानने वाले जन-समुदाय को, एक ही घर में रहने वाले लोगों के समान, धारण करने वाली तथा कभी नष्ट न होने देने वाली (अनपस्फुरन्ती) स्थिर-जैसी यह पृथ्वी हमारे लिए धन की सहस्रों धाराओं का उसी प्रकार दोहन करे जैसे कोई गाय बिना किसी बाधा के दूध देती हो ।।3।।
प्रथमः पाठः
भारतीवसन्तगीतिः
अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः पण्डितजानकीवल्लभशास्त्रिणः "काकली" इति गीतसंग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। प्रकृतेः सौन्दर्यम् अवलोक्य एव सरस्वत्यः वीणायाः मधुरझङ्कृतयः प्रभवितुं शक्यन्ते इति भावनापुरस्सरं कविः प्रकृतेः सौन्दर्यं वर्णयन् सरस्वतीं वीणावादनाय सम्प्रार्थयते।
निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदुं गाय गीतिं ललित-नीति-लीनाम् ।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ।।1।।
निनादय...।।
वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पंक्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ।।2।।
निनादय...।।
ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ।।3।।
निनादय...।।
लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ।।4।। निनादय...।।
शब्दार्थाः
निनादय | नितरां वादय गुंजित करो/बजाओ | गुंजित करो/बजाओ | Play (the musical instrument) |
मृदुं | चारु, मधुरं कोमल | कोमल | Melodious |
ललितनीतिलीनाम् | सुन्दरनीतिसंलग्नाम् | सुन्दर नीति में लीन | Merged in nice rules |
मञ्जरी | आम्रकुसुमम् आम्रपुष्प | आम्रकुसुमम् आम्रपुष्प | Blossom of mango tree |
पिञ्जरीभूतमालाः | पीतपङ्क्तयः पीले वर्ण से युक्त पंक्तियाँ | पीतपङ्क्तयः पीले वर्ण से युक्त पंक्तियाँ | Yellow rows |
लसन्ति | शोभन्ते सुशोभित हो रही हैं | शोभन्ते सुशोभित हो रही हैं | Looking magnificent |
इह | अत्र यहाँ | अत्र यहाँ | Here |
सरसाः | रसपूर्णाः मधुर | रसपूर्णाः मधुर | Juicy |
रसालाः | आम्राः आम के पेड़ | आम्राः आम के पेड़ | Mango trees |
कलापाः | समूहाः समूह | समूहाः समूह | Groups |
काकली | कोकिलानां ध्वनिः कोयल की आवाज | कोकिलानां ध्वनिः कोयल की आवाज | Sound of cuckoo birds |
सनीरे | सजले जल से पूर्ण | सजले जल से पूर्ण | Full of water |
समीरे | वायौ हवा में | वायौ हवा में | In the wind |
कलिन्दात्मजायाः | यमुनायाः यमुना नदी के | यमुनायाः यमुना नदी के | Of the river Yamuna |
सवानीरतीरे | वेतसयुक्ते तटे | बेंत की लता से युक्त तट पर | On the shore with bamboos |
नताम् | नतिप्राप्ताम् | झुकी हुई | The bent |
मधुमाधवीनाम् | मधुमाधवीलतानाम् | मधुर मालती लताओं का | Of Malti creepers |
ललितपल्लवे | मनोहरपल्लवे | मन को आकर्षित करने वाले पत्ते | On an attractive leaf |
पुष्पपुञ्जे | पुष्पसमूहे | पुष्पों के समूह पर | On the bunch of flowers |
मलयमारुतोच्चुम्बिते | मलयानिलसंस्पृष्टे | चन्दन वृक्ष की सुगन्धित वायु से स्पर्श किये गये | Full of fragrance of sandal tree |
मञ्जुकुञ्जे | शोभनलताविताने | सुन्दर लताओं से | In the summer |
स्वनन्तीं | ध्वनिं कुर्वन्तीम् | ध्वनि करती हुई | Creating sound |
ततिं | पंक्ति | समूह को | The row |
ततिं | पंक्ति | समूह को | The row |
प्रेक्ष्य | दृष्ट्वा | देखकर | Seeing |
मलिनाम् | कृष्णवर्णाम् | मलिन | The black |
अलीनाम् | भ्रमराणाम् | भ्रमरों के | Of drones |
सुमम् | कुसुमम् | पुष्प को | The flower |
शान्तिशीलम् | शान्तियुक्तम् | शान्ति से युक्त | Peaceful |
उच्छलेत् | ऊर्ध्वं गच्छेत् | उच्छलित हो उठे | Go up |
कान्तसलिलम् | मनोहरजलम् | स्वच्छ जल | Clear water |
सलीलम् | क्रीडासहितम् | खेल-खेल के साथ | In a playful manner |
आकर्ण्य | श्रुत्वा | सुनकर | Listening |
अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) कविः कां सम्बोधयति?
(ख) कविः वाणीं कां वादयितुं प्रार्थयति?
(ग) कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति।
(घ) गीतिं कथं गातुं कथयति?
(ङ) सरसाः रसालाः कदा लसन्ति?
2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-
(क) कविः वाणीं किं कथयति?
(ख) वसन्ते किं भवति?
(ग) सलिलं तव वीणामाकर्ण्य कथम् उच्चलेत्।
(घ) कविः भगवतीं भारतीं कस्याः तीरे मधुमाधवीनां नतां पε१म् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति?
3. ‘क’ स्तम्भे पदानि, ‘ख’ स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि। तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत-
‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः
(क) सरस्वती (1) तीरे
(ख) आम्रम् (2) अलीनाम्
(ग) पवनः (3) समीरः
(घ) तटे (4) वाणी
(ङ) भ्रमराणाम् (5) रसालः
4. अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य संस्कृतभाषया वाक्यरचनां कुरुत-
(क) निनादय (ख) मन्दमन्दम्
(ग) मारुतः (घ) सलिलम्
(ङ) सुमनः
5. प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत-
6. अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत-
(क) कठोरम् - .......................
(ख) कटु - .......................
(ग) शीघ्रम् - .......................
(घ) प्राचीनम् - .......................
(ङ) नीरसः - .......................
परियोजनाकार्यम्
पाठेऽस्मिन् वीणायाः चर्चा अस्ति। अन्येषां पञ्चवाद्ययन्त्राणां चित्रं रचयित्वा संकलय्य वा तेषां नामानि लिखत।
योग्यताविस्तारः
यह गीत आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रख्यात कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना ‘काकली’ नामक गीतसंग्रह से संकलित है। इसमें सरस्वती की वन्दना करते हुए कामना की गई है कि हे सरस्वती! एेसी वीणा बजाओ, जिससे मधुर मञ्जरियों से पीत पंक्तिवाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुञ्जार और नदियों का (लीला के साथ बहता हुआ) जल, वसन्त ऋतु में मोहक हो उठे। स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गयी यह गीतिका एक नवीन चेतना का आवाहन करती है तथा एेसे वीणास्वर की परिकल्पना करती है जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करे।
अन्वय और हिन्दी भावार्थ
अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय।
हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ, सुन्दर नीतियों से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो।
इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललित- कोकिलाकाकलीनां कलापाः (विलसन्ति)। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
इस वसन्त में मधुर मञ्जरियों से पीली हो गयी सरस आम के वृक्षों की माला सुशोभित हो रही है। मनोहर काकली (बोली, कूक) वाली कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति) माधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
यमुना के वेतस लताओं से घिरे तट पर जल बिन्दुओं से पूरित वायु के मन्द मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधुमाधवी लता को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुञ्जे मलय-मारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
मलयपवन से स्पृष्ट ललित पल्लवों वाले वृक्षों, पुष्पपुञ्जों तथा सुन्दर कुञ्जों पर काले भौंरों की गुञ्जार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी नवीन वीणा को बजाओ।
तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के नितान्त शान्त सुमन हिल उठें, नदियों का मनोहर जल क्रीडा करता हुआ उछल प\ड़े। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
प्रस्तुत गीत के समानान्तर गीत-
वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मन्त्र नव,
भारत में भर दे।
वीणावादिनि वर दे
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिये प्रार्थना की गई है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की रचना "भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती" भी एेसे ही भावों से ओतप्रोत है।
पं. जानकीवल्लभ शास्त्री
पं. जानकी वल्लभ शास्त्री हिन्दी के छायावादी युग के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये संस्कृत के रचनाकार एवं उत्कृष्ट अध्येता रहे। बाल्यकाल में ही शास्त्री जी की काव्य रचना में प्रवृत्ति बन गई थी। अपनी किशोरावस्था में ही इन्हें संस्कृत कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। उन्नीस वर्ष की उम्र में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ।
शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं का प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गजल, श्लोक, आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। इनकी संस्कृत कविताओं में संगीतात्मकता और लय की विशेषता ने लोगों पर अप्रतिम प्रभाव डाला।