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सप्तम: पाठ:
प्रत्यभिज्ञानम्
प्रस्तुतोऽयं पाठ: महाकविभासप्रणीतम् "पञ्चरात्रम्" इति नाटकात् सम्पाद्य सङ्गृहीतोऽस्ति। अत्र नाटकांशे दुर्योधनादिना राज्ञ: विराटस्य गाव: अपहृता:, तेषाम् उन्मोचनार्थम् विराटपुत्र: उत्तर: अस्य सारथिरूपेण बृहन्नलावेषधारी अर्जुनश्च उभावपि गतवन्तौ। तत्पक्षत: भीष्मादिना सह अर्जुनपुत्र: अभिमन्युरपि युद्धं कृतवान्, युद्धे कौरवाणां पराजय: अभवत्। अस्मिन्नेव क्षणे राजभवने सूचना सम्प्राप्ता यद् वल्लभ इति वेषधारिणा भीमेन रणभूमौ अभिमन्यु: आबद्ध:। गृहीत: अभिमन्यु: अर्जुनभीमौ न प्रत्यभिजानाति, तेन स उभाभ्यां सह सरोषं वार्तालापं करोति। तत: उभौ अभिमन्युं राजसभायां नयत:, तत्र उपस्थित: राजकुमार: उत्तर: उभयो: रहस्यं
बोधयति अनेन छद्मवेषधारिणां पाण्डवानाम् अभिज्ञानं भवति।
भट: - जयतु महाराज:।
राजा - अपूर्व इव ते हर्षो ्रूहि
केनासि विस्मित:?
भट: - अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गत:।।
राजा - कथमिदानीं गृहीत:?
भट: - रथमासाद्य निश्शङ्ंक बाहुभ्यामवतारित:।
राजा - केन?
भट: - य: किल एष नरेन्द्रेण विनियुक्तो महानसे। (अभिमन्युमुद्दिश्य) इत इत: कुमार:।
अभिमन्यु: - भो: को नु खल्वेष:? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडित: अस्मि।
बृहन्नला - इत इत: कुमार:।
अभिमन्यु: - अये! अयमपर: क: विभात्युमावेषमिवाश्रितो हर:।
बृहन्नला - आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचालयत्वेनमार्य:।
वल्लभ: - (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो!
अभिमन्यु: - अभिमन्युर्नाम?
वल्लभ: - रुष्यत्येष मया, त्वमेवैनमभिभाषय।
बृहन्नला - अभिमन्यो!
अभिमन्यु: - कथं कथम्। अभिमन्युर्नामाहम्। भो:! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूता: नीचै: अपि नामभि: अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गत:। अतएव तिरस्क्रियते।
बृहन्नला - अभिमन्यो! सुखमास्ते ते जननी?
अभिमन्यु: - कथं कथम्? जननी नाम? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्य:? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति?
बृहन्नला - अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्र: केशव:?
अभिमन्यु: - कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना। अथ किम् अथ किम्?
(बृहन्नलावल्लभौ परस्परमवलोकयत:)
अभिमन्यु: - कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते?
बृहन्नला - न खलु किञ्चित्।
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम्।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजय:।।
अभिमन्यु: - अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।
बृहन्नला - एवं वाक्यशौण्डीर्यम्। किमर्थं तेन पदातिना गृहीत:?
अभिमन्यु: - अशस्त्रं मामभिगत:। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशा: न प्रहरन्ति। अत: अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
राजा - त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्यु:।
बृहन्नला - इत इत: कुमार:। एष महाराज:। उपसर्पतु कुमार:।
अभिमन्यु: - आ:। कस्य महाराज:?
राजा - एह्येेहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि? (आत्मगतम्) अहो! उत्सिक्त: खल्वयं क्षत्रियकुमार:। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीत:?
भीमसेन: - महाराज! मया।
अभिमन्यु: - अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।
भीमसेन: - शान्तं पापम्। धनुस्तु दुर्बलै: एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
अभिमन्यु: - मा तावद् भो:! किं भवान् मध्यम: तात: य: तस्य सदृशं वच: वदति।
भगवान् - पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम?
अभिमन्यु: - योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीत: कृष्णोऽतदर्हताम्।।
राजा - न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति।।
अभिमन्यु: - यद्यहमनुग्राह्य: -
पादयो: समुदाचार: क्रियतां निग्रहोचित:।
बाहुभ्यामाहृतं भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति।।
(तत: प्रविशत्युत्तर:)
उत्तर: - तात! अभिवादये!
राजा - आयुष्मान् भव पुत्र। पूजिता: कृतकर्माणो योधपुरुषा:।
उत्तर: - पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।
राजा - पुत्र! कस्मै?
उत्तर: - इहात्रभवते धनञ्जयाय।
राजा - कथं धनञ्जयायेति?
उत्तर: - अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके।
नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिता:।।
राजा - एवमेतत्।
उत्तर: - व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धर: धनञ्जय:।
बृहन्नला - यद्यहं अर्जुन: तर्हि अयं भीमसेन: अयं च राजा युधिष्ठिर:।
अभिमन्यु: - इहात्रभवन्तो मे पितर:। तेन खलु ...
न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम्।
दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिता:।।
(इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति।)
शब्दार्था:
प्रत्यभिज्ञानम् | पुनः ज्ञानम्, संस्कार-जन्यं ज्ञानम्, पुनः स्मृतिः | पहचान | Identity |
अपूर्वः | अविद्यमानपूर्वः | जो पहले न हुआ हो | Strange |
अश्रद्धेयम् | न श्रद्धेयम् | श्रद्धा के अयोग्य | Unbelivable |
सौभद्रः | सुभद्रायाः पुत्रः, अभिमन्युः | अभिमन्यु | Son of subhadra |
आसाद्य | प्राप्य | पाकर, पहुँचकर | Reaching |
निश्शङ्कम् | शङ्कया रहितम् | बिना किसी हिचक के | Unhesitating |
भुजैकनियन्त्रितः | एकेन एव बाहुना संयतः | एक ही हाथ से पकड़ा गया | Held by |
विभाति | शोभते | सुशोभित होता है | Magnifies |
कौतूहलम् | जिज्ञासा | जानने की उत्कण्ठा | Quriosity |
अपवार्य | दूरीकृत्य | हटाकर | Getting aside |
रुष्यति | क्रुद्धः भवति | क्रोधित होता है | Gets angry |
वाचालयतु | वक्तुं प्रेरयतु | बोलने को प्रेरित करें | Make (him/ her) talk |
तिरस्क्रियते | उपेक्ष्यते | उपेक्षा की जाती है | Being isalted |
पितृव्यः | पितुःभ्राता | चाचा | Uncle |
अवलोकयतः | पश्यतः | देखते हैं (द्विवचन) | Both of them see |
सावज्ञम् | अपमानेन सहितम् | उपेक्षा करते हुए | With inattention |
वाक्यौण्डीर्यम् | वाचिकं वीरत्वम् | वाणी की वीरता | Braveness in speech |
पदातिः | पादाभ्याम् अतति | पैदल चलने वाला | Waken |
उपसर्पतु | समीपं गच्छतु | पास जाओ | Go near |
एहि | आगच्छ | आओ | Come |
उत्सिक्तः | गर्वोद्धतः, अहङ्कारी | गर्व से युक्त | Proud |
दर्प-प्रशमनम् | गर्वस्य शमनम् | घमंड को शान्त करना | Pacifying of pride |
गृहीतः | ग्रहणे कृतः | पकड़ा गया | Caught |
प्रहरणम् | शस्त्रम् | हथियार | Weapon |
योक्त्रयित्वा | बद्ध्वा | बाँधकर | Tying |
क्षेपेण | निन्दावचनेन | निन्दा से | By insult |
रमे (√ रम्) | प्रीतो भवामि | प्रसन्न होता हूँ | I am happy |
यातु | गच्छतु | जाओ | (He/she) may go |
समुदाचारः | शिष्टाचारः | सभ्य आचरण | Mannerliness |
अनुग्राह्यः | अनुग्रहस्य योग्यम् | कृपा के योग्य | Worth obliging |
निग्रहोचितम् | बन्धनोचित | कैद के लिए उचित | Fit for arresting |
तूणीर | बाणकोशः | तरकस | Quiver |
व्यपनयतु | दूरीकरोतु | दूर करें | (He/she) may remove |
क्षिप्ताः | व्यङ्ग्येन सम्बोधिताः | आक्षेप किये जाने पर | Reprobated |
दिष्ट्या | भाग्येन | भाग्य से | Fortunately |
गोग्रहणम् | धेनूनाम् अपहरणम् | गायों का अपहरण | Stealing of cows |
स्वन्तम् (सु + अन्तम्) | सुखान्तम् | सुखान्त | Comedy |
अन्वय:
1. पितरं पार्थं मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजय: युक्त:।
2. कण्ठश्लिष्ठेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा कृष्ण: (भीमेन) अतदर्हतां नीत:।
3. रुष्यता भवता रमे ते क्षेपेण न रुष्यामि, किम् उक्त्वा अहं नापराद्ध:, कथं (भवान्) तिष्ठति यातु इति।
4. पादयो: निग्रहोचित: समुदाचार: क्रियताम्, बाहुभ्याम् आहृतं (माम्) भीम: बाहुभ्याम् एवं नेष्यति।
5. श्मशानात् तूणीराक्षयसायके धनु: आदाय भीष्मादय: नृपा: भग्ना: वयं च परिरक्षिता:।
6. मया क्षिप्ता: (अपि) न रुष्यन्ति, हसन्त: च मां क्षिपन्ति दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं (भवति) येन पितर: दर्शिता।
पात्रपरिचय:?
भट: - विराटराजस्य सेवक:
राजा - विराटराज:
भगवान् - युधिष्ठिर:
वल्लभ: - भीमसेन:
बृहन्नला - अर्जुन:
अभिमन्यु:- अर्जुनस्य पुत्र:
अभ्यास:
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) क: उमावेषमिवाश्रित: भवति?
(ख) कस्या: अभिभाषणकौतूहलं महत् भवति?
(ग) अस्माकं कुले किमनुचितम्?
(घ) क: दर्पप्रशमनं कर्तुमिच्छति?
(ङ) क: अशस्त्र: आसीत्?
(च) कया गोग्रहणम् अभवत्?
(छ) क: ग्रहणं गत: आसीत्?
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) भट: कस्य ग्रहणम् अकरोत्?
(ख) अभिमन्यु: कथं गृहीत: आसीत्?
(ग) क: वल्लभ-बृहन्नलयो: प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति?
(घ) अभिमन्यु: स्वग्रहणे किमर्थम् आत्मानं वञ्चितम् अनुभवति?
(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्यु: गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते?
3. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत-
(क) भो: को नु खल्वेष:? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडित: अस्मि। (विस्मय:, भयम्, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं! अभिमन्युर्नामाहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमान:, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोध:, प्रसन्नता)
(घ) धनुस्तु दुर्बलै: एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्। (अन्धविश्वास:, शौर्यम्, उत्साह:)
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वास:, निराशा, वाक्संयम:)
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिता:। (क्षमा, हर्ष:, धैर्यम्)
4. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत-
(क) खलु + एष: = ................
(ख) बल + ................ + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् + इव + आश्रित: = बिभात्युमावेषम्
(घ) ................ + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = ................
(छ) यातु + ................ = यात्विति
(ज) ................ + इति = धनञ्जयायेति
5. अधोलिखितानि वचनानि क: कं प्रति कथयति-
यथा - क: कं प्रति
आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत् | बृहन्नला | भीमसेनम् |
(क) कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते | .............. | .............. |
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् | .............. | .............. |
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा | .............. | .............. |
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम | .............. | .............. |
(ङ) शान्तं पापम्! धनुस्तु दुर्बलै: एव गृह्यते | .............. | .............. |
6. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि-
(क) वाचालयतु एनम् आर्य:।
(ख) किमर्थं तेन पदातिना गृहीत:।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
(ङ) अपूर्व इव अत्र ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मित: असि?
7. श्लोकानाम् अपूर्ण: अन्वय: अधोदत्त:। पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) पार्थं पितरं मातुलं .............. च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य .............. युक्त:।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन .............. जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं .............. कृत्वा (भीमेन) कृष्ण: अतदर्हतां नीत:।
(ग) रुष्यता .............. रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं .............. अहं नापराद्ध:, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयो: निग्रहोचित: समुदाचार: .............. । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) .............. बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
(अ) अधोलिखितेभ्य: पदेभ्य: उपसर्गान् विचित्य लिखत-
पदानि | उपसर्ग: |
---|---|
यथा-आसाद्य | आ |
(क) अवतारित: - | .................... |
(ख) विभाति - | .................... |
(ग) अभिभाषय - | .................... |
(घ) उद्भूता: - | .................... |
(ङ) उत्सिक्त: - | .................... |
(च) प्रहरन्ति - | .................... |
(छ) उपसर्पतु - | .................... |
(ज) परिरक्षिता: - | .................... |
(झ) प्रणमति - | .................... |
योग्यताविस्तार:
प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित कर, लिया गया है। दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वहीं भगवान नाम से कहे जाने वाले पाण्डवाग्रज युधिष्ठिर भी उपस्थित हैं। अभिमन्यु उन्हें प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का उद्घाटन हो जाता है।
कवि परिचय
संस्कृत नाटककारों में "महाकवि भास’’ का नाम अग्रगण्य है। भास रचित तेरह रूपक निम्नलिखित हैं-
दूतवाक्यम्, कर्णभारम्, दूतघटोत्कचम्, उरुभङ्गम्, मध्यमव्यायोग:, पञ्चरात्रम्, अभिषेकनाटकम्, बालचरितम्, अविमारकम्, प्रतिमानाटकम्, प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, स्वप्नवासवदत्तम् तथा चारुदत्तम्।
ग्रन्थ परिचय
पञ्चरात्रम् की कथावस्तु महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। पाण्डवों के अज्ञातवास के समय दुर्योधन एक यज्ञ करता है और यज्ञ की समाप्ति पर आचार्य द्रोण को गुरुदक्षिणा देना चाहता है। द्रोण गुरुदक्षिणा के रूप में पाण्डवों का राज्याधिकार चाहते हैं। दुर्योधन कहता है कि यदि गुरु द्रोणाचार्य पाँच रातों में पाण्डवों का पता लगा दें तो उनकी पैतृक सम्पत्ति का भाग उन्हें दिया जा सकता है। इसी आधार पर इस नाटक का नाम ‘पञ्चरात्रम्’ है।
भावविस्तार:
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजय:
अज्ञातवास में बृहन्नला के रूप में अर्जुन को बहुत समय के बाद पुत्र-मिलन का अवसर प्राप्त हुआ। वह अपने पुत्र से बात करना चाहता है परन्तु (अपने अपहरण से) क्षुब्ध अभिमन्यु उनके साथ बात करना ही नहीं चाहता। तब अर्जुन उसे उत्तेजित करने की भावना से इस प्रकार के व्यङ्ग्यात्मक वचन कहते हैं-
तुम्हारे पिता अर्जुन हैं, मामा श्री कृष्ण हैं तथा तुम शस्त्रविद्या से सम्पन्न होने के साथ ही साथ तरुण भी हो, तुम्हारे लिए युद्ध में परास्त होना उचित है।
मम तु भुजौ एव प्रहरणम्
अभिमन्यु क्षुब्ध है कि उसे धोखे से शस्त्रविहीन भीम ने निगृहीत किया है। भीम इसका स्पष्टीकरण करता है कि अस्त्र-शस्त्र तो दुर्बल व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। मेरी तो भुजा ही मेरा शस्त्र है। अत: मुझे किसी अन्य आयुध की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार का भाव अन्य नाटकों में भी उपलब्ध है, जैसे -
(क) अयं तु दक्षिणो बाहुरायुधं सदृशं मम। (मध्यमव्यायोग:)
(ख) भीमस्यानुकरिष्यामि शस्त्रं बाहुर्भविष्यति। (मृच्छकटिकम्)
(ग) वयमपि च भुजायुद्धप्रधाना:। (अविमारकम्)
नीत: कृष्णोऽतदर्हताम्
श्री कृष्ण ने जरासन्ध के जामाता (दामाद) कंस का वध किया था। इससे क्रुद्ध जरासन्ध ने यदुवंशियों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए उसने बार-बार मथुरा पर आक्रमण भी किया था। उसने श्री कृष्ण को कई बार पकड़ा भी परन्तु किसी न किसी प्रकार श्री कृष्ण वहाँ से निकल गये। वस्तुत: उचित अवसर पाकर श्री कृष्ण जरासन्ध को मारना चाहते थे, परन्तु भीम ने जरासन्ध का वध करके उनकी पात्रता स्वयं ले ली। जो कार्य श्री कृष्ण द्वारा करणीय था उसे भीमसेन ने कर दिया और श्री कृष्ण को जरासन्ध के वध का अवसर ही नहीं दिया।
प्रत्यय से बने शब्द विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं।
भाषिकविस्तार:
यथा- धातु | प्रत्यय | मूल शब्द | पुं. | स्त्री. | नपुं. |
---|---|---|---|---|---|
पठ् | क्त | पठित | पठित: | पठिता | पठितम् |
गम् | क्त | गत | गत: | गता | गतम् |
दृश् | क्त | दृष्ट | दृष्ट: | दृष्टा | दृष्टम् |
‘क्तवतु’ भी भूतकालिक प्रत्यय है। इसका प्रयोग सदैव कर्तृवाच्य में होता है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द भी तीनों लिङ्गों में होते हैं।
यथा- पठ् + क्तवतु = पठितवत्
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |||
---|---|---|---|---|---|
पु. | प्र. | वि. | पठितवान् | पठितवन्तौ | पठितवन्त: |
स्त्री. | प्र. | वि. | पठितवती | पठितवत्यौ | पठितवत्य: |
नपुं. | प्र. | वि. | पठितवत् | पठितवती | पठितवन्ति |
वाच्यपरिवर्तनम्
(क) येन पितर: दर्शिता:। (कर्मवाच्य)
य: पितृृन् दर्शितवान्। (कर्तृवाच्य)
(ख) भवद्भि: वयं परिरक्षिता:। (कर्मवाच्य)
भवन्त: अस्मान् परिरक्षितवन्त:। (कर्तृवाच्य)
(ग) केन अयं गृहीत:? (कर्मवाच्य)
क: इमं गृहीतवान्? (कर्तृवाच्य)