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रामधारी सिंह दिनकर
(1908 - 1974)
गीत-अगीत
( 1 )
( 2 )
बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर
रह जाते सनेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में,
फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
( 3 )
दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब
बड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना’, यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
प्रश्न-अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है? इससे
संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तब प्रेमिका की क्या इच्छा होती है?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को लिखिए।
2. संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए–
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना यों मन में गुनती है
3. निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य-विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य-विन्यास लिखिए–
उदाहरण : तट पर एक गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
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(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
...................................................
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
...................................................
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
...................................................
(ङ) शुकी बैठ अंडे है सेती
...................................................
शब्दार्थ और टिप्पणियाँ
तटिनी – नदी, तटों के बीच बहती हुई
वेगवती – तेज़ गति से
उपलों – किनारों से
विधाता – ईश्वर
निर्झरी – झरना, नदी
पाटल – गुलाब
शुक – तोता
खोंते – घोंसला
पर्ण – पत्ता, पंख
शुकी – मादा तोता
आल्हा – एक लोक-काव्य का नाम
कड़ी – वे छंद जो गीत को जोड़ते हैं
बिधना – भाग्य, विधाता
गुनती – विचार करती है
वेग – गति