
   अरुण कमल
 (1954)
 अरुण कमल का जन्म बिहार केरोहतास ज़िले के नासरीगंज में 15 फरवरी 1954 को हुआ। ये इन दिनों पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। इन्हें अपनी कविताओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इन्होंने कविता-लेखन के अलावा कई पुस्तकों और रचनाओं का अनुवाद भी किया है।
 अरुण कमल की प्रमुख कृतियाँ हैं: अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार (चाराें कविता-संग्रह) तथा कविता और समय (आलोचनात्मक कृति)। इनके अलावा अरुण कमल ने मायकोव्यस्की की आत्मकथा और जंगल बुक का हिंदी में और हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया, जो ‘वॉयसेज’ नाम से प्रकाशित हुआ।
 अरुण कमल की कविताओं में नए बिंब, बोलचाल की भाषा, खड़ी बोली के अनेक लय-छंदों का समावेश है। इनकी कविताएँ जितनी आपबीती हैं, उतनी ही जगबीती भी। इनकी कविताओं में जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण है। इस विविधता के कारण इनकी भाषा में भी विविधता के दर्शन होते हैं। ये बड़ी कुशलता और सहजता से जीवन-प्रसंगों को कविता में रूपांतरित कर देते हैं। इनकी कविता में वर्तमान शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ़ आक्रोश, नफ़रत और उसे उलटकर एक नयी मानवीय व्यवस्था का निर्माण करने की आकुलता सर्वत्र दिखाई देती है।
 प्रस्तुत पाठ की पहली कविता ‘नए इलाके में’ में एक एेसी दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण है, जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है। यह इस बात का बोध कराती है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता। इस पल-पल बनती-बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता। इस पाठ की दूसरी कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ सामाजिक विषमताओं को बेनकाब करती है। यह किसकी और कैसी कारस्तानी है कि जो वर्ग समाज में सौंदर्य की सृष्टि कर रहा है और उसे खुशहाल बना रहा है, वही वर्ग अभाव में, गंदगी में जीवन बसर कर रहा है? लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरनेवाले हाथ भयावह स्थितियों में अपना जीवन बिताने पर मजबूर हैं! क्या विडंबना है कि खुशबू रचनेवाले ये हाथ दूरदराज़ के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में जीवन बिता रहे हैं। स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान करनेवाले ये लोग इतने उपेक्षित हैं! आखिर कब तक?
 			 
   		
 (1) नए इलाके में
 
 इन नए बसते इलाकों में
 जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
 मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
  
 धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
 खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
 खोजता हूँ ढहा हुआ घर
 और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
 मुड़ना था मुझे
 फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
 घर था इकमंज़िला
  
 और मैं हर बार एक घर पीछे
 चल देता हूँ
 या दो घर आगे ठकमकाता
  
 यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
 रोज़ कुछ घट रहा है
 यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
 एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
 जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
 जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
 अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
 और पूछो– क्या यही है वो घर?
  
 समय बहुत कम है तुम्हारे पास
 आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
 शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
 
 (2) खुशबू रचते हैं हाथ
 
 कई गलियों के बीच
 कई नालों के पार
 कूड़े-करकट
 के ढेरों के बाद
 बदबू से फटते जाते इस
 टोले के अंदर
 खुशबू रचते हैं हाथ
 खुशबू रचते हैं हाथ।
  
 उभरी नसोंवाले हाथ
 घिसे नाखूनोेंवाले हाथ
 पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
 जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
 गंदे कटे-पिटे हाथ
 ज़ख्म से फटे हुए हाथ
 खुशबू रचते हैं हाथ
 खुशबू रचते हैं हाथ।
  
 यहीं इस गली में बनती हैं
 मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
 इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
 बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
 अगरबत्तियाँ
 दुनिया की सारी गंदगी के बीच
 दुनिया की सारी खुशबू
 रचते रहते हैं हाथ
  
 खुशबू रचते हैं हाथ
 खुशबू रचते हैं हाथ।
 
 प्रश्न-अभ्यास
  (1) नए इलाके में
 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
 (क)	नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है?
 (ख)	कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?
 (ग)	कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है?
 (घ)	‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है?
 (ङ)	कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है?
 (च)	इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है?
 2. व्याख्या कीजिए–
 (क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
 एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
 (ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
 आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
 शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर
 
 योग्यता-विस्तार
 पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी हिंदी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।
 
 (2)  खुशबू रचते हैं हाथ
 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
 (क)	‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ-कहाँ रहते हैं?
 (ख)	कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है?
 (ग)	कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’?
 (घ)	जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है?
 (ङ)	इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
 2. व्याख्या कीजिए–
 (क)	(i) पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
 	जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
 	(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
 	  दुनिया की सारी खुशबू
 	  रचते रहते हैं हाथ
 (ख)	कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है? इसका क्या कारण है?
 (ग)	कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है?
 योग्यता-विस्तार
 अगरबत्ती बनाना, माचिस बनाना, मोमबत्ती बनाना, लिफ़ाफ़े बनाना, पापड़ बनाना, मसाले कूटना आदि लघु उद्योगों के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
 शब्दार्थ और टिप्पणियाँ
 इलाका	–	क्षेत्र
 अकसर	–	प्रायः, बहुधा
 ताकता	–	देखता
 ढहा	–	गिरा हुआ, ध्वस्त
 ठकमकाता	–	धीरे-धीरे, डगमगाते हुए
 स्मृति	–	याद
 वसंत	–	छह ऋतुओं में से एक
 पतझड़ –	एक ऋतु जब पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं
 वैसाख (वैशाख)	–	चैत (चैत्र) के बाद आने वाला महीना
 भादों –	सावन के बाद आने वाला महीना
 अकास (आकाश)	–	गगन
 नालों	–	घरों और सड़कों के किनारे गंदे पानी के बहाव के लिए बनाया गया रास्ता
 कूड़ा-करकट	–	रद्दी, कचरा
 टोले	–	छोटी बस्ती
 ज़ख्म	–	घाव, चोट
 मुल्क	–	देश
 केवड़ा	–	एक छोटा वृक्ष जिसके फूल अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं
 खस	–	पोस्ता
 रातरानी	–	एक सुगंधित फूल
 मशहूर	–	प्रसिद्ध