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प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

क्या आपने कभी अपने स्कूल, घर या आसपास के मैदानों में भाँति-भाँति के वृक्ष, झाड़ियाँ, घास तथा पक्षियों को देखा है? क्या वह एक ही प्रकार के हैं या अलग-अलग तरह के हैं? भारत एक विशाल देश है। अत: इसमें आप अनेक प्रकार की जैव रूपों की कल्पना कर सकते हैं।

हमारा देश भारत विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में से एक है। लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह देश विश्व में दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है। भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधों का 6 प्रतिशत है। इस देश में बहुत से बिना फूलोें के पौधे हैं जैसे कि फर्न, शैवाल (एलेगी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं। भारत में लगभग 90,000 जातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार की मछलियाँ, ताजे तथा समुद्री पानी की पाई जाती हैं।

प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है कि वनस्पति का वह भाग, जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता। इसे अक्षत वनस्पति कहते हैं। अत: विभिन्न प्रकार की कृषिकृत फसलें, फल और बागान, वनस्पति का भाग तो हैं परंतु प्राकृतिक वनस्पति नहीं है।

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• वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे ‘देशज’ कहते हैं लेकिन जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें ‘विदेशजपौधे’ कहते हैं।

वनस्पति-जगत शब्द का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में, किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है। इस तरह प्राणि जगत जानवरों के विषय में बतलाता है। वनस्पति तथा वन्य प्राणियों में इतनी विविधता निम्नलिखित कारणों से है।


धरातल

भूभाग

भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। क्या पर्वत, पठार तथा मैदान और शीतोष्ण कटिबंधों में एक ही प्रकार की वनस्पति नहीं हो सकती? धरातल के स्वभाव का वनस्पति पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उपजाऊ भूमि पर प्राय: कृषि की जाती है। ऊबड़़ तथा असमतल भूभाग पर, जंगल तथा घास के मैदान हैं, जिन में वन्य प्राणियों को आश्रय मिलता है।


मृदा

विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की मृदा पाई जाती है, जो विविध प्रकार की वनस्पति का आधार है। मरुस्थल की बलुई मृदा में कंटीली झाड़ियाँ तथा नदियों के डेल्टा क्षेत्र मेें पर्णपाती वन पाए जाते हैं। पर्वतों की ढलानों में जहाँ मृदा की परत गहरी है शंकुधारी वन पाए जाते हैं।


जलवायु

तापमान

वनस्पति की विविधता तथा विशेषताएँ तापमान और वायु की नमी पर भी निर्भर करती हैं। हिमालय पर्वत की ढलानों तथा प्रायद्वीप के पहाड़ियों पर 915 मी॰ की ऊँचाई से ऊपर तापमान में गिरावट वनस्पति के पनपने और बढ़ने को प्रभावित करती है और उसे उष्ण कटिबंधीय से उपोष्ण, शीतोष्ण तथा अल्पाइन वनस्पतियों में परिवर्तित करती है।


सूर्य का प्रकाश

किसी भी स्थान पर सूर्य के प्रकाश का समय, उस स्थान के अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई एवं ऋतु पर निर्भर करता है। प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं।

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हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर उत्तरी ढलानों की अपेक्षा ज्यादा सघन वनस्पति क्योें है?


वर्षण

भारत में लगभग सारी वर्षा आगे बढ़ते हुए दक्षिण-पश्चिमी मानसून (जून से सितंबर तक) एवं पीछे हटते उत्तर-पूर्वी मानसून से होती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों की अपेक्षा सघन वन पाए जातेे हैं।

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पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों पर पूर्वी ढलानों की अपेक्षा अधिक सघन वनस्पति क्यों है?

क्या आपने कभी सोचा है कि वन मनुष्य के लिए क्यों आवश्यक हैं? वन नवीकरण योग्य संसाधन हैं और वातारण की गुणवत्ता बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। ये स्थानीय जलवायु, मृदा अपरदन तथा नदियों की धारा नियंत्रित करते हैं। ये बहुत सारे उद्योगों के आधार हैं तथा कई समुदायों को जीविका प्रदान करते हैं। ये मनोरम प्राकृतिक दृश्यों के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ये पवन तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं और वर्षा लाने में भी सहायता करते हैं। इनसे मृदा को जीवाश्म मिलता है और वन्य प्राणियों को आश्रय।

भारतीय प्राकृतिक वनस्पति में कई कारणों से बहुत बदलाव आया है जैसे कि कृषि के लिए अधिक क्षेत्र की माँग, उद्योगों का विकास, शहरीकरण की परियोजनाएँ और पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के कारण वन्य क्षेत्र कम हो रहा है।

परियोजना कार्य
अपने स्कूल या गली-मुहल्ले मेें वन महोत्सव का आयोजन करो और वृक्षों की पौध लगाओ। उनकी देखभाल करो और देखो वे कैसे बढ़ते हैं।

सन् 2003 में वनों का कुल क्षेत्रफल 68 लाख वर्ग कि॰मी॰ था। भारत के बहुत से भाग में वन क्षेत्र सही मायने में प्राकृतिक नहीं है। कुछ अगम्य क्षेत्रों को छोड़कर जैसे हिमालय और मध्य भारत के कुछ भाग तथा मरुस्थल, जहाँ प्राकृतिक वनस्पति है, शेष भागोें में मनुष्य के हस्तक्षेप से प्राकृतिक वनस्पति आंशिक या संपूर्ण रूप से परिवर्तित हो चुकी है या फिर बिल्कुल निम्न कोटि की हो गई है।

परियोजना कार्य
चित्र 5.1 में दिए गए दंड आरेख का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) किस राज्य में वनों का क्षेत्रफल सबसे अधिक है?

(ii) किस केंद्र शासित प्रदेश में वनों का क्षेत्रफल सबसे कम है और एेसा क्यों है?

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इंडिया स्टेट अॉफ फारेस्ट रिपोर्ट 2011 के अनुसार भारत में वनों का कुल क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का 21.05 प्रतिशत है।


वनस्पति के प्रकार

हमारे देश में निम्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती हैं (चित्र 5.3)।

(i) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

(iii) उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

(iv) पर्वतीय वन

(v) मैंग्रोव वन

उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन


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चित्र 5.1 : वनों का क्षेत्रफल

स्रोत : इंडिया स्टेट अॉफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2013-14

ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 से॰मी॰ से अधिक वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। इन वनों में वृक्ष 60 मी॰ या इससे अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं। चूँकि ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं अत: यहाँ हर प्रकार की वनस्पति - वृक्ष, झाड़ियाँ व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाईयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अत: यह वन साल भर हरे-भरे लगते हैं।


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चित्र 5.2 : उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोज़वुड, रबड़ और सिंकोना हैं।

इन वनों में सामान्य रूप से पा, जाने वाले जानवर हाथी, बंदर, लैमूर और हिरण हैं। एक सींग वाले गैंडे, असम और पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इन जंगलों में कई प्रकार के पक्षी, चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।

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मानचित्र को देखकर पता लगाए कि कुछ राज्यों में वनों का विस्तार अधिक क्यों है?

चित्र 5.3 : प्राकृतिक वनस्पति


उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए वन हैं। इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 से॰मी॰ से 200 से॰मी॰ तक वर्षा होती है। इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छ: से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

जल की उपलब्धि के आधार पर इन वनों को आर्द्र तथा शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है। इनमें से आर्द्र या नम पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100 से॰मी॰ 200 से॰मी॰ तक वर्षा होती है। अत: एेसे वन देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं। सागोन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है। बाँस, साल, शीशम, चंदन, रवैर, कुसुम, अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाली प्रजातियाँ हैं।

शुष्क पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70 से॰मी॰ से 100 से॰मी॰ के बीच होती है। ये वन प्रायद्वीपीय पठार के एेसे वर्षा वाले क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं। विस्तृत क्षेत्रों में प्राय: सागोन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष उगते हैं। इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं और कुछ भागों में पशुचारण भी होता है।

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चित्र 5.4: उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

इन जंगलों में पाए जाने वाले जानवर प्राय: सिंह, शेर, सूअर, हिरण और हाथी हैं। विविध प्रकार के पक्षी, छिपकली, साँप और कछुए भी यहाँ पाए जाते हैं।


कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

जिन क्षेत्रों में 70 से॰मी॰ से कम वर्षा होती है, वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्ध शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम), यू\फ़ोरबिया तथा नाग\फ़नी (कैक्टाई) यहाँ की मुख्य पादप प्रजातियाँ हैं। इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं। इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली होती हैं। पत्तियाँ प्राय: छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके। शुष्क भागों में झाड़ियाँ और कंटीले पादप पाए जाते हैं।

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चित्र 5.5: कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

इन जंगलों में प्राय: चूहे, खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए, शेर, सिंह, जंगली गधा, घोड़े तथा ऊँट पाए जाते हैं।


पर्वतीय वन

पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है। 1,000 मी॰ से 2,000 मी॰ तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है। 1,500 से 3,000 मी॰ की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ (पाइन), देवदार, सिल्वर-फर, स्प्रूस, सीडर आदि पाए जाते हैं। ये वन प्राय: हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई पर प्राय: शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं।

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चित्र 5.6: पर्वतीय वन

प्राय: 3,600 मी॰ से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। जैसे-जैसे हिमरेखा के निकट पहुँचते हैं इन वृक्षाें के आकार छोटे होते जाते हैं। अंतत: झाड़ियों के रूप के बाद वे अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं। इनका उपयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है। अधिक ऊँचाई वाले भागों में मॉस, लिचन घास, टुंड्रा वनस्पति का एक भाग है।

इन वनों में प्राय: कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, आइबैक्स, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियाँ पाई जाती हैं।


मैंग्रोव वन

यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं, की सबसे महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी और बालू इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। घने मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती है। नारियल, ताड़, क्योड़ा ,वं एेंगार के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं।

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चित्र 5.7: मैंग्रोव वन

इस क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है। इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के साँप भी इन जंगलों में मिलते हैं।

आओ विचार करें : यदि वनस्पति और जानवर धरती से अदृश्य हो जाएँ? क्या मनुष्य उन अवस्थाओं में जीवित रह पाएगा? जैव विविधता क्यों अनिवार्य है और इसका संरक्षण क्यों आवश्यक है?


न्य प्राणी

वनस्पति की भाँति ही, भारत विभिन्न प्रकार की प्राणी संपत्ति में भी धनी है। यहाँ जीवों की लगभग 90,000 प्रजातियाँ मिलती हैं। देश में लगभग 2,000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है। यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ हैं जो विश्व की लगभग 12 प्रतिशत है। भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं।

औषधीय पादप

भारत प्राचीन समय से अपने मसालों तथा जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है। आयुर्वेद में लगभग 2,000 पादपों का वर्णन है और कम से कम 500 तो निरंतर प्रयोग में आते रहे हैं। ‘विश्व संरक्षण संघ’ ने लाल सूची के अंतर्गत 352 पादपों की गणना की है जिसमें से 52 पादप अति संकटग्रस्त हैं और 49 पादपों को विनष्ट होने का खतरा है। भारत में प्राय: औषधि के लिए प्रयोग होने वाले कुछ निम्नलिखित पादप हैं :

सर्पगंधा : यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है और केवल भारत में ही पाया जाता है।

जामुन : पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं। बीज का बनाया हुआ पाउडर मधुमेह (Diabetes) रोग में सहायता करता है।

अर्जुन : ताजे पत्तों का निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है। यह रक्तचाप की नियमिता के लिए भी लाभदायक है।

बबूल : इसके पत्ते आँख की फुंसी के लिए लाभदायक हैं। इससे प्राप्त गोंद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।

नीम : जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।

तुलसी पादप : जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।

कचनार : फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है। इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।

अपने क्षेत्र के औषधीय पादपों की पहचान करो। कौन-से पौधे औषधि के लिए प्रयोग होते हैं और उस स्थान के लोग उनका कौन-सी बीमारियों के लिए प्रयोग करते हैं। प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य है। क्या यह संभव है कि प्राकृतिक पर्यावरण का निरंतर होता जा रहा विनाश रोका जा सके? 

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क्रियाकलाप: क्या आप चित्र देखकर बता सकते हैं कि यह किस प्रकार का वन है? इस चित्र में आप कितने प्रकार के वृक्षों को पहचान सकते हैं? अपने क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति तथा इस वनस्पति में आप किस प्रकार की समानता/असमानता पाते हैं।

स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ये असम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं। एक सींग वाले गैंडे अन्य जानवर हैं जो पश्चिमी बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमश: जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं। भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, छोटा मृग (गैजल) तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर हैं जो भारत में पाए जाते हैं। यहाँ बंदरों की भी अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

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• भारत जीव सुरक्षा अधिनियम सन् 1972 में लागू किया गया था।

भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं। भारतीय शेरों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है। बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। बिल्ली जाति के सदस्यों में तेंदुआ भी है। यह शिकारी जानवरों में मुख्य है।

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चित्र 5.8: वन्य प्राणी निचय

स्रोत : मेडीसिनल प्लॉट, डॅा॰ एस॰ के॰ जैन, पाँचवाँ संस्करण, 1994, नेशनल बुक ट्रस्ट अॉफ इंडिया 

हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जानवर अपेक्षाकृत कठोर जलवायु को सहन करने वाले होते हैं जो अत्यधिक ठंड में भी जीवित रहते हैं। लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगो वाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है। तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं। कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं।

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क्या आप जानते हैं

एशियाई शेर केवल गुजरात के गिर जंगलों में पाए जाते हैं।

नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ की प्रजाति का एक एेसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है।

भारत में अनेक रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर, बत्तख, तोता, मैना, सारस तथा कबूतर आदि कुछ पक्षी प्रजातियाँ हैं जो देश के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहती हैं।

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परियोजना कार्य

(i) उपरोक्त समाचार पत्रों के अंशों में कौन-से समाचार महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं?

(ii) इस प्रकार की संकटग्रस्त प्रजातियों की और सूचनाए समाचार पत्र और पत्रिकाओं से एकत्र कीजिए।

(iii) भारत सरकार द्वारा इनके संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

(iv) आप संकटग्रस्त जानवर और पक्षियों को बचाने के लिए क्या सहायता कर सकते हैं? 


प्रवासी पक्षी

भारत के कुछ दलदली भाग प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। शीत ऋतु में साइबेरियन सारस बहुत संख्या में यहाँ आते हैं। इन पक्षियों का एक मनपसंद स्थान कच्छ का रन है। जिस स्थान पर मरुभूमि समुद्र से मिलती है वहाँ लाल सुंदर कलंगी वाली फ्लैमिंगोए हजारों की संख्या में आती हैं और खारे कीचड़ के ढेर बनाकर उनमें घोंसले बनाती है और बच्चों को पालती है। देश में अनेकों दर्शनीय दृश्यों में से यह भी एक है। क्या यह हमारी कीमती धरोहर नहीं है?

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अठारह जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र)

सुंदरवन सिमलीपाल कच्छ

मन्नार की खाड़ी दिहांग दिबांग ठंडा रेगिस्तान

नीलगिरी डिब्रु साइकवोवा शेष अचलम

नंदादेवी अगस्त्यमलाई पन्ना

नाकरेक कंचनजुंगा

ग्रेट निकोबार पंचमढ़ी

मानस अचनकमर-अमरकंटक   

हमने अपनी फसलें जैव-विविध पर्यावरण से चुनी है यानि खाने योग्य पौधों के निचय से। हमने बहुत से औषधि पादपों का प्रयोग कर उनका चुनाव किया है। दूध देने वाले पशु भी प्रकृति द्वारा दिए बहुत सारे जानवरों में से चुने गए हैं। जानवर हमें बोझा ढोने, कृषि कार्य तथा यातायात के साधन के रूप में मदद करते हैं। इनसे माँस, एवं अंडे भी प्राप्त होते हैं। मछली से पौष्टिक आहार मिलता है। बहुत से कीड़े-मकौड़े फसलों, फलों और वृक्षों के परागण में मदद करते हैं और हानिकारक कीड़ों पर जैविक नियंत्रण रखते हैं। प्रत्येक प्रजाति का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान है। अत: उनका संरक्षण अनिवार्य है। जैसा पहले बताया गया है कि मनुष्यों द्वारा पादपों और जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थतिक तंत्र असंतुलित हो गया है। लगभग 1,300 पादप प्रजातियाँ संकट में हैं तथा 20 प्रजातियाँ विनष्ट हो चुकी हैं। काफी वन्य जीवन प्रजातियाँ भी संकट में हैं और कुछ विनष्ट हो चुकी हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का मुख्य कारण लालची व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार करना है। रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट तथा तेज़ाबी जमाव के कारण प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, कृषि तथा निवास के लिए वनों की अंधाधुन कटाई पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का कारण हैं।

अपने देश की पादप और जीव संपत्ति की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं :

(i) देश में अठारह जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) स्थापित किए गए हैं। इनमें से दस सुंदरवन, नंदादेवी, मन्नार की खाड़ी, नीलगिरी, नाकरेक, ग्रेट निकोबार, मानस, सिमलीपाल, पंचमढ़ी और अचनकमर-अमरकंटक की गणना विश्व के जीव मंडल निचय में की गई है।(ii) सन् 1992 से सरकार द्वारा पादप उद्यानों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई है।

(iii) शेर संरक्षण, गैंडा संरक्षण, भारतीय भैसा संरक्षण तथा पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए कई योजनाएँ बनाई गई हैं।

(iv) 103 नेशनल पार्क, 535 वन्य प्राणी अभयवन और कई चिड़ियाघर राष्ट्र की पादप और जीव संपत्ति की रक्षा के लिए बनाए गए हैं।

हम सभी को अपनी अति जीविता के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के महत्व को समझना चाहिए। यह तब संभव है जब प्राकृतिक पर्यावरण का अंधविनाश तत्काल समाप्त कर दिया जाए।


अभ्यास

1. वैकल्पिक प्रश्न

(i) रबड़ का संबंध किस प्रकार की वनस्पति से है?

(क) टुंड्रा (ख) हिमालय

(ग) मैंग्रोव (घ) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन

(ii) सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?

(क) 100 से०मी० (ख) 70 से०मी०

(ग) 50 से०मी० (घ) 50 से०मी० से कम वर्षा

(iii) सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है?

(क) पंजाब (ख) दिल्ली

(ग) ओडिशा (घ) पश्चिम बंगाल

(iv) भारत के कौन-से जीव मंडल निचय विश्व के जीव मंडल निचयों में लिए गए हैं?

(क) मानस (ख) मन्नार की खाड़ी

(ग) नीलगिरी (घ) नंदादेवी

2. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न :

(i) भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?

(ii) जीव मंडल निचय से क्या अभिप्राय हैए कोई दो उदाहरण दो।

(iii) कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।

3. निम्नलिखित में अंतर कीजिए :

(i) वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत

(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन

4. भारत में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली वनस्पति के नाम बताएँ और अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।

5. भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं- उदाहरण सहित कारण दीजिए।

6. भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?


मानचित्र कौशल

भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित दिखाएँ और अंकित करें

(i) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन

(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

(iii) दो जीव मंडल निचय भारत के उत्तरीए दक्षिणीए पूर्वी और पश्चिमी भागों में।


परियोजना कार्य

(i) अपने पड़ोस में पाए जाने वाले कुछ औषधि पादप का पता लगाएँ।

(ii) किन्हीं दस व्यवसायों के नाम ज्ञात करो जिन्हें जंगल और जंगली जानवरों से कच्चा माल प्राप्त होता है।

(iii) वन्य प्राणियों का महत्त्व बताते हुए एक पद्यांश या गद्यांश लिखिए।

(iv) वृक्षों का महत्त्व बताते हुए एक नुक्कड़ नाटक की रचना करो ओर उसका अपने गली-मुहल्ले में मंचन करो।

(v) अपने या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के जन्मदिन पर किसी भी पौधे को लगाइए और देखिए कि वह कैसे बड़ा होता है और किस मौसम में जल्दी बढ़ता है?