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आइए चर्चा करें
• कुछ लोगों का कहना है कि बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण हुआ था। सारणी 4.1 का अध्ययन करें और बताएँ कि क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
• किस वर्ष में खाद्य उपलब्धता में भारी कमी हुई?
खाद्य-असुरक्षित कौन हैं?
सारणी 4.2: भारत में ‘भुखमरी’ से ग्रस्त परिवारों का प्रतिशत
स्रोत: सागर 2004, विद्या (देखें इस अध्याय का ‘संदर्भ’)
स्वतंत्रता के बाद खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना भारत का लक्ष्य रहा है।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नीति-निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए। भारत ने कृषि में एक नयी रणनीति अपनाई, जिसकी परिणति हरित क्रांति में हुई, विशेषकर गेहूँ और चावल के उत्पादन में।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जुलाई, 1968 मेें ‘गेहूँ क्रांति’ शीर्षक से एक विशेष डाक टिकट जारी कर कृषि के क्षेत्रक में हरित क्रांति की प्रभावशाली प्रगति को आधिकारिक रूप से दर्ज किया। गेहूँ की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में इस सफलता की पुनरावृत्ति हुई। बहरहाल, अनाज की उपज में वृद्धि समानुपातिक नहीं थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक वृद्धि हुई जोकि 44.01 और 30.21 करोड़ टन क्रमशः 2015-16 में है। वर्ष 2015-16 में कुल अनाजाें का उत्पादन 252.22 करोड़ टन है। वर्ष 2016-17 में कुल अनाजों का उत्पादन 275.68 करोड़ टन है। गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जोकि 26.87 और 17.69 करोड़ टन क्रमशः 2015-16 में है। दूसरी तरफ, पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि जोकि 15.75 एवं 12.51 करोड़ टन क्रमशः 2015-16 में है।
चित्र 4.3: पंजाब का एक किसान एच.वाई.वी. प्रकारों वाले गेहूँ के एक खेत के सामने, जिस पर हरित क्रांति आधारित है
सुझाई गई क्रियाएँ
• निकट के किसी गाँव में कुछ खेतों पर जाएँ और किसानों द्वारा उपजाई गई खाद्य फसलों का ब्यौरा एकत्रित करें।
भारत में खाद्य सुरक्षा
70 के दशक के प्रारंभ में हरित क्रांति के आने के बाद से मौसम की विपरीत दशाओं के दौरान भी देश में अकाल नहीं पड़ा है।
देश भर में उपजाई जाने वाली विविध फसलों के कारण भारत पिछले तीस वर्षों के दौरान खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में (खराब मौसम स्थितियों के बावजूद अथवा किसी अन्य कारण से) अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई। इस व्यवस्था के दो घटक हैंः (क) बफ़र स्टॉक और (ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
बफ़र स्टॉक क्या है?
बफ़र स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ़.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानाें से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है। इन फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले सरकार न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि सरकार बफ़र स्टॉक क्यों बनाती है? एेसा कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाज़ार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं। यह खराब मौसम में या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता है।
आइए चर्चा करें
आरेख 4.1 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें ः
• हमारे देश में किस वर्ष में अनाज उत्पादन 200 करोड़ टन प्रतिवर्ष से अधिक हुआ?
• भारत में किस दशक में अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि हुई?
• क्या 2000-01 से भारत में उत्पादन में वृद्धि स्थायी है?
आरेख 4.1: भारत में अनाज की उपज (करोड़ टन)
स्रोत: कृषि निगम और किसानों के कल्याण विभाग, वार्षिक रिपोर्ट 2017-18
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.)कहते हैं। अब अधिकांश क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं। देश भर में लगभग 5.5 लाख राशन की दुकानें हैं। राशन की दुकानों में, जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, चीनी खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है। ये सब बाज़ार कीमत से कम कीमत पर लोगों को बेचा जाता है। राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्रा (जैसे 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।
राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं: (क) निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय कार्ड, (ख) निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए बी पी एल कार्ड और (ग) अन्य लोगों के लिए ए पी एल कार्ड।
सुझाई गई क्रियाएँ
• अपने इलाके की राशन की दुकान पर जाएँ और वहाँ से निम्नलिखित ब्यौरा प्राप्त करें:
1 राशन की दुकान कब खुलती है?
2 राशन की दुकान पर कौन-कौन सी चीज़ें बेची जाती हैं?
3 राशन की दुकान के चावल और चीनी (निर्धरता की रेखा से नीचे वाले परिवारों के लिए) की कीमत की तुलना किसी अन्य किराने की दुकान की कीमतों से करें।
• पता लगाएँ:
1 क्या आपके पास राशन कार्ड है?
2 इस राशन कार्ड से आपके परिवार ने हाल में कौन-सी चीज़ खरीदी है?
3 क्या उन्हें किसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
4 राशन की दुकानें क्यों ज़रूरी हैं?
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 के दशक में हुई। हरित क्रांति से पूर्व भारी खाद्य संकट के कारण 60 के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनर्जीवित की गई। गरीबी के उच्च स्तरों को ध्यान में रखते हुए 70 के दशक के मध्य एन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार खाद्य संबंधी तीन महत्त्वपूर्ण अंतःक्षेप कार्यक्रम प्रारंभ किए गएः सार्वजनिक वितरण प्रणाली (जो पहले से ही थी, लेकिन उसे और मज़बूत किया गया), एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (आई.सी.डी.एस., जो प्रायोगिक आधार पर 1975 में शुरू की गई) और काम के बदले अनाज (एफ.एफ.डब्ल्यू., 1977-78 में प्रारंभ)। इन वर्षों में कई नए कार्यक्रम शुरू किए गए हैं और कार्यक्रमों को चलाने के बढ़ते अनुभवों के आधार पर अन्य कार्यक्रमों का पुनर्गठन किया गया। वर्तमान में अनेक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (पी.ए.पी.) चल रहे हैं जो अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। इनमें स्पष्ट रूप से घटक खाद्य भी है, जहाँ सार्वजनिक वितरण प्रणाली, दोपहर का भोजन आदि विशेष रूप से खाद्य की दृष्टि से सुरक्षा के कार्यक्रम हैं। अधिकतर पी.ए.पी. भी खाद्य सुरक्षा बढ़ाते हैं, रोज़गार कार्यक्रम गरीबों की आय मे बढ़ोतरी कर खाद्य सुरक्षा में बड़ा योगदान करते हैं।
राष्ट्रीय उत्पादन एवं वितरण योजना उचित दर राशन की दुकान सर्किल सं. IX
सुझाए गए क्रियाकलाप
सरकार की ओर से शुरू किए गए खाद्य पर आधारित कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी एकत्र करें।
संकेतः ग्रामीण वेतन रोज़गार कार्यक्रम, रोज़गार गारंटी योजना, संपूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना, दोपहर का भोजन, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ आदि।
अपने शिक्षक के साथ चर्चा करें।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान स्थिति
सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कदम है। प्रारंभ में यह प्रणाली सबके लिए थी और निर्धनों और गैर-निर्धनों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता था। बाद के वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक दक्ष और अधिक लक्षित बनाने के लिए संशोधित किया गया। 1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर पी डी एस) शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज़ और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था। जून 1997 से ‘सभी क्षेत्रों में गरीबों’ को लक्षित करने के सिद्धांत को अपनाने के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) प्रारंभ की गई। यह पहला मौका था जब निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई। इसके अलावा, 2000 में दो विशेष योजनाएँ–अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना प्रारंभ की गईं। ये योजनाएँ क्रमशः ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों पर लक्षित हैं। इन दोनों योजनाओं का संचालन सार्वजनिक वितरण प्रणाली के वर्तमान नेटवर्क से जोड़ दिया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का सारांश सारणी 4.3 में दिया गया है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013
भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराई जा सके ताकि मानव गरिमामय जीवन निर्वाह कर सके। इस अधिनियम के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या एवं 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को योग्य परिवार में वर्गीकृत किया गाया है।
इन वर्षों के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली मूल्यों को स्थिर बनाने और सामर्थ्य अनुसार कीमतों पर उपभोक्ताओं को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सरकार की नीति में सर्वाधिक प्रभावी साधन सिद्ध हुई है। इसने देश के अनाज की अधिशेष क्षेत्रों से कमी वाले क्षेत्रों में खाद्य पूर्ति के माध्यम से अकाल और भुखमरी की व्यापकता को रोकने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त, आमतौर पर निर्धन परिवारों के पक्ष में कीमतों का संशोधन होता रहा है। न्यूनतम समरथित कीमत और अधिप्राप्ति ने खाद्यान्नों के उत्पादन की वृद्धि में योगदान दिया है तथा कुछ क्षेत्रों में किसानों को आय सुरक्षा प्रदान की है।
सारणी 4.3: सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ
नोट: बी पी एलः निर्धनता रेखा से नीचे, ए पी एल: निर्धनता रेखा से ऊपर।
स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण
तथापि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अनेक आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। अनाजों से ठसाठस भरे अन्न भंडारों के बावजूद भुखमरी की घटनाएँ हो रही हैं। एफ.सी.आई. के भंडार अनाज से भरे हैं। कहीं अनाज सड़ रहा हैं तो कुछ स्थानों पर चूहे अनाज खा रहे हैं। नीचे दिया गया आरेख 4.2 में केन्द्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक और इसकी मोजा मानदडों में अंतर को दर्शाती है।
आओ चर्चा करें
आरेख 4.2 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देंः
• हाल में किस वर्ष में सरकार के पास खाद्यान्न का स्टॉक सबसे अधिक था?
• एफ.सी.आई. का न्यूनतम बफ़र स्टॉक प्रतिमान क्या है?
• एफ.सी.आई. के भंडारों में खाद्यान्न ठसाठस क्यों भरा हुआ है?
अंत्योदय अन्न योजना
अंत्योदय अन्न योजना दिसंबर 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। संबंधित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को सर्वेक्षण के द्वारा चुना। 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्त दर पर प्रत्येक पात्र परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ा कर 35 किलोग्राम कर दी गई। जून 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त बी.पी.एल. परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।
सहायिकी (सब्सिडी) वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाज़ार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। सहायिकी से घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए, उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।
आरेख 4.2: न्यूनतम बफ़र स्टॉक का स्तर (करोड़ टन) एवं चावल और गेहूँ के मानक
स्रोत: भारतीय खाद्य निगम, 2018; ब.फर स्टॉक का स्तर 1 जुलाई 2017 से माननीय है
वर्ष 2014 में एफ.सी.आई. के पास गेहूँ और चावल का भंडार 65.2 करोड़ टन था जो न्यूनतम बफ़र प्रतिमान से बहुत अधिक था। फिर भी यह बफ़र स्टॉक प्रतिमानों से लगातार ऊँचा बना रहा। सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं के अधीन खाद्यान्नों के वितरण के द्वारा स्थिति में सुधार हुआ। अनाज वितरण से हालात सुधरे। इस बात पर आम सहमति है कि बफ़र स्टॉक का उच्च स्तर बेहद अवांछनीय है और यह बर्बादी भी है। विशाल खाद्य स्टॉक का भंडारण बर्बादी और अनाज की गुणवत्ता में ह्रास के अतिरिक्त उच्च रख-रखाव लागत के लिए भी ज़िम्मेदार है। न्यूनतम समर्थित कीमत को कुछ वर्ष के लिए स्थिर रखने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
वर्धित न्यूनतम समर्थित कीमत पर अनाज की अधिक खरीदारी प्रमुख अनाज उत्पादक राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश की ओर से डाले गए दबावों का नतीजा है। इसके अलावा, चूँकि खरीदारी कुछ समृद्ध क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कुछ सीमा तक पश्चिम बंगाल) में मुख्यतः दो फसलों-गेहूँ और चावल तक सीमित है, न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि ने विशेषतया खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों को अपनी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेहूँ उपजाने के लिए प्रेरित किया है, जबकि मोटे अनाज गरीबों का प्रमुख भोजन है। धान की खेती के लिए सघन सिंचाई से पर्यावरण और जल स्तर में गिरावट भी आई है, जिससे इन राज्यों में कृषिगत विकास को बनाए रखने में खतरा पैदा हो गया है।
न्यूनतम समर्थित कीमतों के बढ़ने से सरकार की खाद्यान्नों की वसूली अनुरक्षण लागत बढ़ गई है। एफ.सी.आई. की बढ़ती परिवहन और भंडारण लागत ने इसे और बढ़ा दिया है।
एन.एस.एस.ओ. न. 558 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत 6.38 किग्रा. वर्ष 2004-05 से घटकर 5.98 किग्रा. वर्ष 2011-12 में हो गया। नगरीय भारत में प्रति व्यक्ति प्रति माह चावल की खपत 4.71 किग्रा. से घटकर 4.49 किग्रा. 2011-12 में हो गया। प्रतिव्यक्ति पी.डी.एस. चावल की खपत 2004-05 से 2011-12 तक ग्रामीण भारत में दुगनी हुई है और नगरीय भारत में 66 प्रतिशत बढ़ी हैं। पी.डी.एस. गेहूँ की प्रति माह प्रति व्यक्ति खपत 2004-05 से ग्रामीण एवं नगरीय भारत में दोगुना हो गई है।
पी.डी.एस. डीलर अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को खुले बाज़ार में बेचना, राशन दुकानों में घटिया अनाज बेचना, दुकान कभी-कभार खोलना जैसे अपचार करते हैं। राशन दुकानों में घटिया किस्म के अनाज का पड़ा रहना आम बात है, जो बिक नहीं पाता। यह एक बड़ी समस्या साबित हो रही है। जब राशन की दुकानें इन अनाजों को बेच नहीं पातीं, तो एफ.सी.आई. के गोदामों में अनाज का विशाल स्टॉक जमा हो जाता है। हाल के वर्षों में एक और कारण से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गिरावट आई है। पहले प्रत्येक परिवार के पास निर्धन या गैर-निर्धन राशन कार्ड था जिसमें चावल, गेहूँ, चीनी आदि वस्तुओं का एक निश्चित कोटा होता था। ये प्रत्येक परिवार को एक समान निम्न कीमत पर बेचे जाते थे। आज आप जो तीन प्रकार के कार्ड और कीमतों की शृंखला देखते हैं, पहले यह नहीं थी। बड़ी संख्या में परिवार राशन की दुकानों से अनाज खरीद सकते थे। हाँ, उनका कोटा निश्चित था। इनमें निम्न आय वर्ग के परिवार शामिल थे, जिनकी आय निर्धनता रेखा से नीचे के परिवार की आय से थोड़ी ही अधिक थी। अब तीन भिन्न कीमतों वाले टी.पी.डी.एस. की व्यवस्था में निर्धनता रेखा से ऊपर वाले किसी भी परिवार को राशन दुकान पर बहुत कम छूट मिलती है। ए.पी.एल. परिवारों के लिए कीमतें लगभग उतनी ही ऊँची हैं जितनी खुले बाज़ार में, इसलिए राशन की दुकान से इन चीज़ों की खरीदारी के लिए उनको बहुत कम प्रोत्साहन प्राप्त है।
सहकारी समितियों की खाद्य सुरक्षा में भूमिका
भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागोें में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं। उदाहरणार्थ, तमिलनाडु में जितनी राशन की दुकानें है, उनमें से करीब 94 प्रतिशत सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्ज़ियाँ उपलब्ध कराने में तेज़ी से प्रगति कर रही है। गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी हैं। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत सहकारी समितियों के और अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराई है।
इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी आफ डेवलपमेंट साइंस (ए.डी.एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है।
ए.डी.एस. गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है। अनाज बैंक अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में खुलते जा रहे हैं। अनाज बैंकों की स्थापना, गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से उन्हें फैलाने और खाद्य सुरक्षा पर सरकार की नीति को प्रभावित करने में ए.डी.एस. की कोशिश रंग ला रही है। ए.डी.एस. अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति मिली है।
सारांश
किसी देश की खाद्य सुरक्षा तब सुनिश्चित होती है, जब उसके सभी नागरिकों को पोषक भोजन उपलब्ध होता है। सभी व्यक्तियों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य खरीदने की सामर्थ्य होती है और भोजन तक पहुँचने में कोई अवरोध नहीं होता। निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे लोग खाद्य की दृष्टि से सदैव ही असुरक्षित रह सकते हैं, जबकि संपन्न लोग भी आपदाओं के समय खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित हो सकते हैं। यद्यपि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य और पोषक तत्वों की असुरक्षा से ग्रस्त है, सबसे अधिक प्रभावित समूह ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन और गरीब परिवार, बहुत कम वेतन वाले कार्यों में लगे लोग और शहरी क्षेत्राें में मौसमी कार्यों में लगे अनियत श्रमिक हैं। देश के कुछ क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की बड़ी संख्या तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक है जैसे, आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में जहाँ बहुत अधिक गरीबी है, जनजातियों वाले व दूरस्थ क्षेत्रों में और एेसे क्षेत्रों में जहाँ प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं। समाज के सभी वर्गों के लिए खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने सावधानीपूर्वक खाद्य सुरक्षा प्रणाली तैयार की है, जिसके दो घटक हैंः (क) बफ़र स्टॉक और (ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अतिरिक्त कई निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम भी शुरू किए गए, जिनमें खाद्य सुरक्षा का घटक भी शामिल था। इनमें से कुछ कार्यक्रम हैंः एकीकृत बाल विकास सेवाएँ, काम के बदले अनाज, दोपहर का भोजन, अंत्योदय अन्न योजना आदि। खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में सरकार की भूमिका के अतिरिक्त अनेक सहकारी समितियाँ और गैर-सरकारी संगठन भी हैं, जो इस दिशा में तेज़ी से काम कर रहे हैैं।
अभ्यास
1. भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
2. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
3. भारत में कौन से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
4. क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है कैसे?
5. भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
6. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
7. मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए?
8. गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
9. सरकार बफ़र स्टॉक क्यों बनाती है?
10. टिप्पणी लिखें:
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत
(ख) बफ़र स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत
(घ) उचित दर की दुकान
11. राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
12. खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
संदर्भ
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