Table of Contents
अध्याय 1
लोकतंत्र क्या?
लोकतंत्र क्यों?
परिचय
लोकतंत्र क्या है? इसकी विशेषताएँ क्या है? हम बहुत सरल परिभाषा से शुरुआत करते हैं। फिर हम बारी-बारी से इन बिंदुओं का व्यावहारिक अर्थ जानेंगे। यहाँ हमारा उद्देश्य किसी भी सरकार के लोकतांत्रिक होने की न्यूनतम विशेषताओं को चिहित करना है। यह अध्याय पढ़ लेने के बाद हम लोकतांत्रिक और गैर-लोकतांत्रिक शासन में अंतर कर सकते हैं। अध्याय के अंत में हम इस न्यूनतम लक्ष्य से आगे बढ़कर लोकतंत्र की वृहत्तर परिभाषा पर आएँगे।
समकालीन दुनिया में लोकतंत्र ही सबसे लोकप्रिय शासन पद्धति है। पर ऐसा क्यों है? कौन-सी चीज़ इसे दूसरी व्यवस्थाओं से बेहतर बनाती है? क्या यही शासन की सर्वोत्तिम व्यवस्था है? इन सवालों पर हम इस अध्याय के बाद वाले हिस्से में चर्चा करेंगे।
1.1 लोकतंत्र क्या है?
आप सरकार के विभिन्न रूपों के बारे में पढ़ चुके हैं। लोकतंत्र की अब तक की आपकी समझ के आधार पर, कुछ उदाहरण देते हुए सरकारों की कुछ सामान्य विशेषताएँ लिखें:
- लोकतांत्रिक सरकोरें
- गैर-लोकतांत्रिक सरकोरें
परिभाषा की जरूरत क्यों ?
आगे बढ़ने से पहले, आइए सबसे पहले एक मेधावी छात्रा मेरी की आपत्ति पर गौर किया जाए। वह लोकतंत्र को परिभाषित करने के इस तरीके को पसंद नहीं करती और कुछ बुनियादी सवाल पूछना चाहती है। उसकी अध्यापिका मेटिल्डा लिंगदोह ने उसके सवालों का जवाब देना शुरू किया तो कक्षा की अन्य छात्राएँ भी इस चर्चा में भाग लेने लगीं।
मेरीः मैडम, मुझे यह तरीका ठीक नहीं लगता | पहले लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के बारे में चर्चा किया और अब आकर हम लोकतंत्र का मतलब जानने की कोशिश कर रहे हैं | मेरे कहने का मतलब है कि इस काम को ही हमें पहले करना था और पहले अध्याय वाली पढ़ाई अब। क्या ऐसा ठीक नहीं होता?
लिंगदोह मैडम: तुम्हारी बातों में दम है| पर क्या हम अपने सामान्य जीवन में भी ऐसा ही नहीं करते? क्या हम कलम, बरसात या प्रेम जैसे शब्दों का उपयोग करने के पहले इनकी परिभाषा स्पष्ट करना ज़रूरी मानते हैं? ज़रा सोचो, क्या हमारे पास इन शब्दों की बहुत स्पष्ट और सर्वमान्य परिभाषा है? शब्दों का उपयोग करके ही हम उनका अर्थ जानते हैं।
मेरीः फिर परिभाषा की ज़रूरत ही क्यों है?
लिंगदोह मैडम: हमें परिभाषा की जरूरत तभी पड़ती है जब हमें किसी शब्द का उपयोग करने में परेशानी होती है | हमें बारिश की परिभाषा की जरूरत तभी होती है जब हमें बूँदा-बाँदी और बादल फटने जैसी स्थिति और सामान्य बरसात में फ़र्क करना हो। लोकतंत्र पर भी यही बात लागू होती है। हमें इसके लिए भी स्पष्ट परिभाषा की जरूरत है क्योंकि लोण इस शब्द का प्रयोग अलग-अलग अर्थों केलिए करते हैं, बहुत अलग-अलग तरह की सरकारें भी खुद को लोकतांत्रिक ही कहती हैं।
रिबियांगः लेकिन हमें परिभाषा बनाने की ज़रूरत ही क्या है? एक दिन आपने हमें अब्राहम लिंकन का एक वाक्य सुनाया था; “लोगों के लिए, लोगों की और लोगों के द्वारा चलने वाली शासन व्यवस्था ही लोकतंत्र है ।” मेघालय में हम स्वयं पर राज करते रहे हैं । इसे सभी लोग मानते भी हैं । हमें इसमें बदलाव करने की क्या ज़रूरत है?
लिंगदोह मैडम: मैं यह नहीं कहती कि इसमें बदलाव करने की ज़रूरत है | मुझे भी यह परिभाषा बहुत सुंदर लगती है । जब तक हम इस मसले पर खुद से विचार न करें तब तक यह तय करना मुश्किल होगा कि लोकतंत्र की यही सर्वोत्तम परिभाषा है। हमें किसी चीज को सिर्फ़ इसी आधार पर स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए कि किसी बहुत नामी-गिरामी आदमी ने उसके लिए कुछ बहुत अच्छा कहा है या सभी लोग उसे सही मानते हैं।
योलांदाः मैडम, क्या मैं कुछ कह सकती हूँ? हमें कोई परिभाषा तलाशने की ज़रूरत नहीं है | मैंने कहीं पढ़ा है कि 'डेमोक्रे सी' यूनानी शब्द 'डेमोक्रेशिया' से बना है। यूनानी में 'डिमोस” का अर्थ होता है "लोग' और 'क्रेशिया' का अर्थ होता है 'शासन' | इस प्रकार डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र का अर्थ है लोगों का शासन। यही सही अर्थ है। फिर परिभाषा की क्या जरूरत है?
लिंगदोह मैडम: इस सवाल पर विचार करने का यह भी बहुत उपयोगी तरीका है। पर मैं इतना कहूँगी कि सिर्फ शब्द की उत्पत्ति से उसकी परिभाषा निकालने का तरीका हरदम उपयोगी नहीं रहता। शब्द का अर्थ हमेशा अपने मूल से जुड़ा या बंधा नहीं रहता। समय और प्रयोग के साथ-साथ उसका अर्थ बदलता भी रहता है। अब कंप्यूटर शब्द को ही लो | यह कंप्यूटिंग अर्थात गणना शब्द से बना है | मुश्किल गणनाओं को सरलता से करने के लिए बने यंत्र को ही कंप्यूटर कहा जाता था। दरअसल ये बहुत शक्तिशाली कैलकुलेटर थे | पर आज शायद ही कोई इस अर्थ में कंप्यूटर शब्द का प्रयोग करता है। अब तो कंप्यूटर का उपयोग लिखने, पढ़ने, डिजाइन बनाने, संगीत बनाने- सुनने और फिल्म देखने में होता है। शब्द वही रहते हैं पर समय बीतने के साथ उनका अर्थ बदल सकता है। ऐसी स्थिति में सिर्फ शब्दों के मूल अर्थ पर ही भरोसा करना बहुत उपयोगी नहीं होता।
मैंने तो यह भी सुना है कि लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ लोक पर तंत्र हावी रहता है। इसके बारे में आपकी क्या राय है?
मेरीः मैडम, आपके कहने का मतलब यह है कि इस विषय पर खुद सोचने का कोई शॉर्टकट नहीं है।हमें इसके अर्थ पर गौर करना ही होगा और इसकी परिभाषा गढ़नी होगी ।
लिंगदोह मैडमः एकदम सही | इसलिए आओ अब यह काम कर ही डालें।
आइए लिंगवीह मैडम की बात को गंभीरता सै लें और कलम, बारिश और प्रेम जैप्ते सदा प्रयोग होने वाले साधारण ग़ह्दों की ठीक-जीक परिमाषा लिखने की कोशिग़ करें। जैसे, ला की कोई ऐसी स्पष्ट परिभाषा है जो उसे पेंसिल, ब्रुश, हाइलाइटर या मार्कर से अलग बताती हो ?
एक सरल परिभाषा
आइए, उस चर्चा पर फिर से गौर करें जो खुद को लोकतांत्रिक बताने का दावा करने वाली सरकारों के बीच की समानताओं और असमानताओं से जुड़ी थी। सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की पहचान के लिए एक बहुत ही सरल पैमाना था लोगों के पास अपनी सरकार को चुनने का अधिकार होना। इसलिए, हम एक सरल परिभाषा से शुरुआत कर सकते हैं। लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें शासकों का चुनाव लोग करते हैं।
यह एक उपयोगी शुरुआत है। यह परिभाषा बहुत स्पष्ट ढंग से लोकतांत्रिक और गैर- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में अंतर कर देती है। म्यांमार के सैनिक शासकों का चुनाव लोगों ने नहीं किया है। जिन लोगों का सेना पर नियंत्रण था वे देश के शासक बन गए। शासक के फ़ैसलों में लोगों की कोई भागीदारी नहीं है। पिनोशे (चिले) जैसे तानाशाहों का चुनाव लोग नहीं करते। यही बात राजशाहियों पर भी लागू होती है। सऊदी अरब के शाह लोगों द्वारा शासक नहीं चुने गए हैं बल्कि राजपरिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने यह हक पाया है।
लेकिन यह सरल परिभाषा पूर्ण या पर्याप्त नहीं है। इससे हमें यह समझ में आता है कि लोकतंत्र का मतलब लोगों का शासन है। पर इस परिभाषा का प्रयोग यदि हमने बिना सोचे- समझे किया तो फिर उन सभी सरकारों को लोकतांत्रिक कहना पड़ेगा जो चुनाव करवाती हैं और फिर हम सही नतीजे पर नहीं पहुँच पाएँगे। जेसा कि हम अध्याय 3 में देखेंगे कि समकालीन दुनिया की हर सरकार, चाहे वह लोकतांत्रिक हो या न हो, खुद को लोकतांत्रिक कहना, कहलाना चाहती है। इसलिए हमें असली लोकतंत्र और दिखावटी लोकतंत्र वाली सरकारों के बीच सावधानीपूर्वक फ़र्क करना होगा। यह काम हम तभी कर पाएँगे जब हम इस परिभाषा के एक-एक शब्द को सावधानी से समझें और लोकतांत्रिक सरकार की विशेषताओं को जानें।
कहाँ
पहुँचे ?
क्या
समझे?
रिबियांग स्कूल से घर गई और उसने लोकतंत्र के बारे में कुछ अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों को जमा किया। इस बार उसने इन उक्तियों को कहने या लिखने वाले के नाम का उपयोग नहीं किया। वह चाहती है कि आप भी इन्हें पढ़ें और बताएँ कि ये उक्तियाँ कितनी अच्छी या उपयोगी हैं?
- लोकतंत्र हर व्यक्ति को अपना शोषक आप बन जाने का अधिकार देता है।
- लोकतंत्र का मतलब है अपने तानाशाहों का चुनाव करना पर उनके मुँह से अपनी इच्छा की बातें सुनने के बाद।
- व्यक्ति की न्यायप्रियता लोकतंत्र को संभव बनाती है लेकिन अन्याय के प्रति व्यक्ति का रुझान लोकतंत्र को ज़रूरी बनाता है।
- लोकतंत्र शासन का ऐसा तरीका है जो सुनिश्चित करता है कि हम जैसी सरकार के लायक हैं वैसी सरकार ही हम पर शासन करे।
- लोकतंत्र की सारी बुराइयों को और अधिक लोकतंत्र से ही दूर किया जा सकता है।
इराक में अमेरिका और अन्य विदेशी शक्तियों की उपस्थिति में हुए चुनाव के समय यह कार्टून बना था। यह कार्टून क्या कहता है?
इसमें 'डेमोक्रेसी' को इस तरह क्यों लिखा गया है?
1.2 लोकतंत्र की विशेषताएँ
हमने इस सरल परिभाषा के साथ शुरुआत की है कि लोकतंत्र शासन का एक रूप है जिसमें जनता शासकों का चुनाव करती है। इससे अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं:
- इस परिभाषा के अनुसार शासक कौन हैं? किसी सरकार को लोकतांत्रिक कहे जाने के लिए उसके किन अधिकारियों का चुना हुआ होना आवश्यक है। लोकतंत्र में वे कौन-से फ़ैसले हैं जो बिना चुने हुए अधिकारी भी ले सकते हैं?
- किस तरह के चुनाव को लोकतांत्रिक चुनाव कहते हैं? किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के लिए किन शर्तों को पूरा किया जाना ज़रूरी है?
- कौन लोग शासकों का चुनाव कर सकते हैं या खुद शासक चुने जा सकते हैं? क्या इसमें प्रत्येक नागरिक का बराबरी की हैसियत से भाग लेना ज़रूरी है? क्या कोई लोकतांत्रिकव्यवस्था अपने कुछ नागरिकों को इस अधिकार से वंचित कर सकती है?
- सरकार के किस स्वरूप को लोकतांत्रिक कहेंगे? क्या चुने हुएशासक लोकतंत्र में अपनी मर्ज़ी से सब कुछ कर सकते हैं या लोकतांत्रिक सरकार के लिए कुछ लक्ष्मणरेखाओं में बंधकर काम करना ज़रूरी है? क्या लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को नागरिकों के कुछ अधिकारों का आदर करना चाहिए?
आइए, कुछ उदाहरणों के साथ इन सब पर बारी-बारी से विचार करें।
प्रमुख फ़ैसले निर्वाचित नेताओं के हाथ
पाकिस्तान में ज़नरल परवेज्ञ मुशर्रफ़ ने अक्तूबर 1999 में सैनिक तख्तापलट की अगुवाई की। उन्होंने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को
सीरिया पश्चिम एशिया का एक छोठा-सा देश है। शासक बाथ पार्टी और उसकी कुछ सहयोगी पार्टियों को ही देश में राजनैतिक गतिविधियों की अनुमति है |क्या इस कार्टून को चीन और मैक्सिको पर भी लागू किया जा सकता है? लोकतंत्र के माथे पर पत्तों से बने ताज का क्या महत्त्व है?
उखाड़ फेंका और खुद को देश का ' मुख्य कार्यकारी ' घोषित किया। बाद में उन्होंने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया और 2002 में एक जनमत संग्रह कराके अपना कार्यकाल पाँच साल के लिए बढ़वा लिया। पाकिस्तानी मीडिया, मानवाधिकार संगठनों और लोकतंत्र के लिए काम करने वालों ने आरोप लगाया कि जनमत संग्रह एक धोखाधड़ी है और इसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ की गईं हैं। अगस्त 2002 में उन्होंने "लीगल फ्रेमवर्क आर्डर' के ज़रिए पाकिस्तान के संविधान को बदल डाला। इस आर्डर के अनुसार राष्ट्रपति, राष्ट्रीय और प्रांतीय असेंबलियों को भंग कर सकता है। मंत्रिपरिषद् के कामकाज पर एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् की निगरानी रहती है जिसके ज़्यादातर सदस्य फ़ौजी अधिकारी हैं। इस कानून के पास हो जाने के बाद राष्ट्रीय और प्रांतीय असेंबलियों के लिए चुनाव कराए गए। इस प्रकार पाकिस्तान में चुनाव भी हुए, चुने हुए प्रतिनिधियों को कुछ अधिकार भी मिले लेकिन सर्वोच्च सत्ता सेना के अधिकारियों और ज्ञनरल मुशर्रफ़ के पास थी।
स्पष्ट है कि ज्ञनरल मुशर्रफ के शासन वाले पाकिस्तान को लोकतंत्र न कहने के अनेक ठोस कारण हैं। लेकिन यहाँ सिर्फ़ एक कारण पर ही चर्चा करते हैं। क्या हम कह सकते हैं कि पाकिस्तान के लोगों ने अपने शासकों का चुनाव किया है? हम ऐसा नहीं कह सकते। लोगों ने राष्ट्रीय और प्रांतीय असेंबलियों के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव किया है। लेकिन चुने हुए प्रतिनिधि वास्तविक शासक नहीं थे। वे अंतिम 'फ़ैसला नहीं कर सकते। अंतिम फ़ैसला सेना के अधिकारियों और जनरल मुशर्रफ़ के हाथ में था जो जनता द्वारा नहीं चुने गए थे। ऐसा तानाशाही और राजशाही वाली अनेक शासन व्यवस्थाओं में होता है। वहाँ औपचारिक रूप से चुनी हुई संसद और सरकार तो होती है पर असली सत्ता उन लोगों के हाथ में होती है जिन्हें जनता नहीं चुनती। कुछ देशो में असली ताकत विदेशी शक्तियों के हाथ में रहती है न कि चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में। इसे लोगों का शासन नहीं कहा जा सकता।
इससे हम लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की 'पहली विशेषता पर पहुँचते हैं। लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के पास ही होनी चाहिए।
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी मुकाबला
चीन की संसद को कवांगुओ रेममिन दाइवियाओ दाहुई (राष्ट्रीय जन संसद) कहते हैं। चीन की संसद के लिए प्रति पाँच वर्ष बाद नियमित रूप से चुनाव होते हैं। इस संसद को देश का राष्ट्रपति नियुक्त करने का अधिकार है। इसमें पूरे चीन से करीब 3000 सदस्य आते हैं। कुछ सदस्यों का चुनाव सेना भी करती है। चुनाव लड़ने से पहले सभी उम्मीदवारों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से मंजूरी लेनी होती है। 2002-03 में हुए चुनावों में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी और उससे संबद्ध कुछ छोटी पार्टियों के सदस्यों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति मिली। सरकार सदा कम्युनिस्ट पार्टी की ही बनती है।
यह कार्टून लातिनी अमेरिका के संदर्भ में बना था। क्या आपको लगता है कि यह पाकिस्तान पर भी फिट बैठता है? कुछ अन्य देशों के बारे में सोचिए जिन पर यह कार्टून लागू हो सकता है। क्या ऐसा कई बार हमारे देश में भी होता है?
क्या हम ऊपर वर्णित चुनावों को लोगों द्वारा अपना शासक चुनने का उदाहरण मान सकते हैं? इन उदाहरणों को पढ़ने के बाद तो यही लगता है कि हम ऐसा नहीं कह सकते। यहाँ काफ़ी सारी समस्याएँ हैं। चीन के चुनावों में लोगों के सामने कोई वास्तविक और गंभीर विकल्प ही नहीं होता। लोगों को शासक दल या उसके द्वारा स्वीकृत उम्मीदवारों को ही वोट देना होता है। क्या हम इसे मनपसंद चुनाव कह सकते हैं? मैक्सिको के मामले में ऐसा लगता है कि कहने को विकल्प होते हुए भी असल में वहाँ की जनता के पास कोई दूसरा विकल्प न था। किसी भी तरह वहाँ शासक दल को पराजित नहीं किया जा सकता था, लोगों के चाहने पर भी नहीं। वहाँ हुए चुनाव निष्पक्ष नहीं थे।
जाने कहाँ-कहाँ की बातें हो रही हैं! क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ सरकारों और शासनों से ही है? क्या हम अपनी कक्षा में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात कर सकते हैं? क्या हम अपने परिवार में लोकतंत्र की बात कर सकते हैं? क्या हम एक लोकतांत्रिक परिवार की बात कर सकते हैं?
यह कार्टून लातिनी अमेरिका के लोकतंत्र के कामकाज से संबंधित है । इसमें सिक्कों की थैलियों का क्या मतलब है? राजनीति में यैलीशाहों की भूमिका के बारे में कार्टून बनाने वाला क्या कहना चाहता है? क्या इस कार्टून को भारत पर भी लागू किया. जा सकता है?
कॉन, एल इकोनोमिस्ता, मैक्सिकों, केगल कार्टूस। ।7 मई 2005
इस प्रकार अब हम लोकतंत्र की अपनी समझ में एक अन्य विशेषता या गुण को जोड़ सकते हैं। लोकतंत्र के लिए सिर्फ़ चुनाव कराना ही पर्याप्त नहीं होता। चुनाव में एक से ज़्यादा असली राजनैतिक विकल्पों के बीच चुनने की स्थिति भी होनी चाहिए। लोगों के पास यह विकल्प रहना चाहिए कि वे चाहें तो शासक दल को गद्दी से उतार दें। इस प्रकार, लोकतंत्र निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों पर आधारित होना चाहिए ताकि सत्ता में बैठे लोगों के लिए जीत-हार के समान अवसर हों। लोकतांत्रिक चुनावों के बारे में हम अध्याय 3 में और बातें जानेंगे।
एक व्यक्ति-एक वोट-एक मोल
पहले हमने पढ़ा है कि किस तरह लोकतंत्र के लिए होने वाला संघर्ष सार्वभौम वयस्क मताधिकार के साथ जुड़ा था। अब इस सिद्धांत को लगभग पूरी दुनिया में मान लिया गया है। पर किसी व्यक्ति को मतदान के समान अधिकार से वंचित करने के उदाहरण भी कम नहीं हैं।
- 2015 तक सऊदी अरब में औरतों को वोट देने का अधिकार नहीं था।
- एस्टोनिया ने अपने यहाँ नागरिकता के नियम कुछ इस तरह से बनाए हैं कि रूसी अल्पसंख्यक समाज के लोगों को मतदान का अधिकार हासिल करने में मुश्किल होती है।
- फिजी की चुनाव प्रणाली में वहाँ के मूल वासियों के वोट का महत्त्व भारतीय मूल के फफिजी नागरिक के वोट से ज़्यादा है।
लोकतंत्र राजनैतिक समानता के बुनियादी सिद्धांत पर आधारित है। इस प्रकार हम लोकतंत्र की तीसरी विशेषता को जान लेते हैं: लोकतंत्र में हर वयस्क नागरिक का एक वोट होना चाहिए और हर वोट का एक समान मूल्य होना चाहिए। अध्याय 3 में हम इस बारे में ज़्यादा विस्तार से पढ़ेंगे।
यह कार्टून सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़ फैंकने के डि बाद हुए चुनावों से संबंधित 'ई है।उन्हें जेल में बंद दिखाया | गया है | यहाँ कार्टूनिस्ट क्या [हूं कहना चाहता है? इस कार्टून है के संदेश और अध्याय में ७ आए पहले कार्टून के संदेश की तुलना कीजिए।
कानून का राज और अधिकारों का आदर
जिंबाब्वे को 1980 में अल्पसंख्यक गोरों के शासन से मुक्ति मिली। उसके बाद देश पर जानु-पीएफ दल का राज है जिसने देश के स्वतंत्रता-संघर्ष की अगुवाई की थी। इसके नेता राबर्ट मुगाबे आज़ादी के बाद से ही शासन कर रहे थे। चुनाव नियमित रूप से होते थे और सदा जानु-पीएफ दल ही जीतता था। राष्ट्रपति मुगाबे कम लोकप्रिय नहीं थे पर वे चुनाव में गलत तरीके भी अपनाते थे। आज़ादी के बाद से उनकी सरकार ने कई बार संविधान में बदलाव करके राष्ट्रपति के अधिकारों में वृद्धि की थी और उसकी ज़वाबदेही को कम किया था। विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं को परेशान किया जाता था और उनकी सभाओं में गड़बड़ कराई जाती थी। सरकार विरोधी प्रदर्शनों और आंदोलनों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था। एक ऐसा कानून भी था जो राष्ट्रपति की आलोचना के अधिकार को सीमित करता था। और उन पर सिर्फ़ शासक दल के विचार ही प्रसारित होते थे। अखबार स्वतंत्र थे पर सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को परेशान किया जाता था। सरकार ने कुछ ऐसे अदालती फ़ैसलों की परवाह नहीं की जो उसके खिलाफ़ जाते थे और उसने जजों पर दबाव भी डाला। 2017 में मुगाबे को राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया।
जिंबाब्वे का उदाहरण बताता है कि शासकों के लिए बार-बार जनादेश पाना लोकतंत्र की एक ज़रूरत है पर इतना ही पर्याप्त नहीं है। लोकप्रिय नेता भी अलोकतांत्रिक हो सकते हैं। लोकप्रिय नेता भी तानाशाह हो सकते हैं। अगर हम लोकतंत्र को परखना चाहते हैं तो चुनावों पर नजर डालना ज़रूरी है। पर उतना ही ज़रूरी है कि चुनाव के पहले और बाद की स्थितियों पर भी नज़र डाली जाए। चुनाव के पहले सत्ता पक्ष के विरोधी समूहों के कामकाज़ समेत सभी तरह की राजनैतिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त गुंजाइश रहनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार नागरिकों के
जिंबाब्वे की बात क्यों करें? मैं तो अपने देश में भी इस तरह की घटनाओं की खबर अखबारों में पढ़ते रहती हूँ। हम इसकी चर्चा क्यों नहीं करते?
चीनी सरकार ने 'गूगल' और 'याहू” जैसी लोकप्रिय वेबसाइटों पर बंदिशें लगाकर इंटरनेट पर सूचना के मुक्त प्रवाह को रोक दिया। इस कार्टून में इसी पर टिप्पणी की गई है ।टैंक और निहत्थे छात्र की तस्वीर पाठक को चीन के हाल के इतिहास की एक अन्य बड़ी घटना की याद दिलाते हैं | वह घटना क्या थी? उसके बारे में अन्य ब्यौरे जुटाओ।
© एरिक एली, पायनियर प्रेस, अमेरिका, केणल कार्टूस।
कुछ बुनियादी अधिकारों का आदर करे। उनको सोचने की, अपनी राय बनाने की, सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त करने की, संगठन बनाने की, विरोध करने और अन्य राजनैतिक गतिविधियाँ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कानून की नज़र में सभी लोगों की समानता होनी चाहिए। इन अधिकारों की रक्षा स्वतंत्र न्यायपालिका को करनी चाहिए जिसके आदेशों का पालन सब लोग करते हों। इन अधिकारों के बारे में हम अधिक विस्तार से अध्याय 5 में पढ़ेंगे।
इसी प्रकार कुछ दूसरी शर्तें हैं जो चुनाव के बाद सरकार चलाने के तौर-तरीकों पर लागू होती हैं। एक लोकतांत्रिक सरकार सिर्फ इस कारण से मनमानी नहीं कर सकती कि उसने चुनाव जीता है। उसे भी कुछ बुनियादी तौर- तरीकों का पालन करना होता है। खास तौर से उसे अल्पमत वाले समूहों को दी गई कुछ गारंटियों का आदर करना होता है। हर प्रमुख फ़ैसला लंबे विचार-विमर्श के बाद लेना होता है। हर पदाधिकारी को उस पद के साथ जुड़े अधिकार और जिम्मेदारियाँ संविधान द्वारा दी जाती हैं।
ये सभी न सिर्फ़ जनता के प्रति उत्तरदायी हैं बल्कि अन्य स्वतंत्र अधिकारियों के प्रति भी उनकी जवाबदेही होती है। इसके बारे में हम ज़्यादा विस्तार से अध्याय 4 में पढ़ेंगे।
इस प्रकार हम लोकतंत्र की चौथी और अंतिम विशेषता को रेखांकित कर सकते हैं; एक लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक कानूनों और नागरिक अधिकारों द्वारा खींची लक्ष्मण रेखाओं के भीतर ही काम करती है।
परिभाषाओं का सारांश
आइए, अब तक हुई चर्चा को समेटें। हमने लोकतंत्र की इस सरल सी परिभाषा से बात शुरू की थी कि लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें शासकों का चुनाव लोग करते हैं। हमने पाया कि जब तक हम इसके कुछ प्रमुख शब्दों के बारे में और स्पष्ट न हो जाएँ, यह परिभाषा पर्याप्त नहीं है। अनेक उदाहरणों के जरिए हमने शासन के एक तरीके के रूप में लोकतंत्र की चार विशेषताओं को रेखांकित किया। इनके अनुसार लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें:
कहाँ
पहुँचे ?
क्या
समझे?
लोकतंत्र के कामकाज या उसकी अनुपस्थिति के इन पाँच उदाहरणों को पढ़िए | इनका मेल लोकतंत्र की उन प्रासंगिक विशेषताओं से कराएँ जिनकी चर्चा ऊपर की णई है। | |
उदाहरण | विशेषताएँ |
भूटान नरेश ने घोषणा की है कि आगे से वे चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा दी गई सलाह पर काम करेंगे | कानून का शासन |
भारत से गए अनेक तमिल मजूदरों को श्रीलंका में वोट डालने का अधिकार नहीं दिया गया | अधिकारों का सम्मान |
नेपाल नरेश ने राजनैतिक जमाबड़ों, प्रदर्शनों और रैलियों पर रोक लगा दी | एक व्यक्ति, एक वोट, एक मोल |
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार विधानसभा भंण करने को असंवैधानिक ठहराया | स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी मुकाबला |
बांग्लादेश की राजनैतिक पार्टियाँ इस बात पर सहमत हुईं कि चुनाव के समय किसी पार्टी की सरकार न रहे। | चुने हुए नेताओं द्वारा प्रमुख फ़ैसले करना |
1.3 लोकतंत्र ही क्यो ?
मैडम लिंगदोह की कक्षा में एक बहस शुरू हुई थी। उन्होंने इस अध्याय को यहाँ तक पढ़ाने के बाद छात्रों से पूछा कि क्या उन्हें लोकतंत्र ही शासन का सबसे अच्छा स्वरूप लगता है। इस सवाल पर सबने कोई न कोई टिप्पणी की।
लोकतंत्र के गुणों पर चर्चा
योलांदाः हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं | दुनिया भर में सभी जणह लोग लोकतंत्र चाहते हैं |जिन देशों में पहले लोकतांत्रिक शासन प्रणाली नहीं थी वहाँ भी अब इसे अपनाया जा रहा है | सभी महान लोगों ने लोकतंत्र के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कही हैं | क्या इतने से ही यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि लोकतंत्र सबसे अच्छा है? क्या अब भी इस पर बहस करने की ज़रूरत है?
तांगकिनीः लेकिन लिंगदोह मैडम ने तो कहा था कि हमें किसी चीज को सिर्फ़ इसलिए नहीं मान लेना चाहिए कि बाकी सभी ने उसे मान लिया है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बाकी सभी लोग गलत रास्ते पर जा रहे हों?
जेनी: हाँ, यह गलत रास्ता ही है । लोकतंत्र ने हमारे देश को क्या दे दिया है? आधी सदी से ज्यादा समय से लोकतंत्र है और तब भी देश में इतनी अधिक गरीबी है।
रिबियांगः लेकिन लोकतंत्र इसमें क्या कर सकता है? क्या हमारे यहाँ लोकतंत्र के कारण गरीबी है या फिर लोकतंत्र होने के बावज़ूद भी गरीबी है?
मैं लिंगदोह मैडम की कक्षा में बैठना चाहती हूँ! यही सही अर्थों में लोकतांत्रिक कक्षा लगती है। ठीक है न?
जेनी: जो भी है, इससे क्या फर्क पड़ता है? मुद्दा यह है कि हम इसे शासन का सर्वश्रेष्ठ रूप नहीं मान सकते | लोकतंत्र का मतलब है अराजकता, अस्थिरता, भ्रष्टाचार और दिखावा ।राजनेता आपस में ही लड़ते रहते हैं | देश की परवाह किसे है?
पाइमोन: तो फिर इसकी जगह कौन-सी प्रणाली होनी चाहिए? क्या अंग्रेज़ी हुकूमत वापस लाई जाए? बाहर से किसी राजा को देश पर शासन के लिए बुलाया जाए?
रोज़: पता नहीं | पर मुझे लगता है कि देश को एक मजबूत नेता की ज़रूरत है-ऐसे नेता की जिसे चुनाव की, संसद की परवाह न हो | एक ही नेता के पास सारे अधिकार हों। देश के हित में जो कुछ ज़रूरी हो वह सब करने में उसे सक्षम होना चाहिए | सिफफ़ इसी से देश से गरीबी और भ्रष्टाचार खत्म होंगे।
कोई पीछे से चिललायाः इसी को तानाशाही कहते हैं।
दोई: अगर वह व्यक्ति सत्ता का उपयोग सिर्फ अपने लिए और अपने परिवार के लिए करने लगे तो क्या होगा? अगर वह खुद भ्रष्ट हो तब?
रोज़: मैं सिफ़ ईमानदार, संजीदा और मजबूत नेता की बात कर रही हूँ।
दोई: यह ठीक नहीं है | तुम वास्तविक लोकतंत्र की तुलना आदर्श तानाशाही के साथ कर रही हो। हमें आदर्श की तुलना आदर्श के साथ और वास्तविक की तुलना वास्तविक से करनी चाहिए। जरा तानाशाहों के वास्तविक जीवन के बारे में पढ़ो | वे सबसे ज्यादा भ्रष्ट, स्वार्थी और क्रूर होते हैं। होता सिर्फ़ यह है कि हमें उनके बारे में जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हो पातीं । और, सबसे बड़ी गड़बड़ तो यह है कि आप उन्हें सत्ता से हटा भी नहीं सकते |
मैडम लिंगदोह इस चर्चा को पूरी दिलचस्पी से सुन रही थीं। अब उन्होंने हस्तक्षेप किया: “तुम सब लोग इतने मगन होकर इस बहस में लगे थे यह देखकर मुझे खुशी हुई। मुझे नहीं मालूम कौन सही है, कौन गलत है। यह तो आप लोग सुलझाएँ। पर मुझे लगा कि आप खुले दिमाग से बातें कर रहे थे। अगर किसी ने आपको रोकने की कोशिश की होती या आपको अपनी बात कहने के लिए सजा दी होती तो निश्चित रूप से आपको बहुत बुरा लगता। क्या आप ऐसा उस देश में कर सकते हैं जहाँ लोकतंत्र न हो? क्या यह लोकतंत्र के पक्ष में एक अच्छा तर्क है?"
लोकतंत्र के रिवलाफ़ तर्क
इस चर्चा में लोकतंत्र के खिलाफ़ वे अधिकांश तर्क सामने आ गए हैं जिन्हें हम आम तौर पर सुनते हैं। ये तर्क कुछ इस प्रकार के होते हैं :
- लोकतंत्र में नेता बदलते रहते हैं। इससे अस्थिरता पैदा होती है।
- लोकतंत्र का मतलब सिर्फ राजनैतिक लड़ाई और सत्ता का खेल है। यहाँ नैतिकता की कोई जगह नहीं होती।
- लोकतांत्रिक व्यवस्था में इतने सारे लोगों से बहस और चर्चा करनी पड़ती है कि हर फ़ैसले में देरी होती है।
- चुने हुए नेताओं को लोगों के हितों का पता ही नहीं होता। इसके चलते खराब फ़ैसले होते हैं।
- लोकतंत्र में चुनावी लड़ाई महत्त्वपूर्ण और खर्चीली होती है, इसीलिए इसमें भ्रष्टाचार होता है।
- सामान्य लोगों को पता नहीं होता कि उनके लिए क्या चीज़ अच्छी है और क्या चीज़ बुरी; इसलिए उन्हें किसी चीज़ का फ़ैसला नहीं करना चाहिए।
क्या लोकतंत्र के खिलाफ़ कुछ और भी बातें हैं जो आपके मन में रह गई हैं? इनमें से कौन- सा तर्क मुख्य रूप से लोकतंत्र पर ही लागू होता है? इनमें से कौन-सा तर्क किसी भी तरह की सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग करने के मामले में लागू नहीं होगा? इनमें से किस तर्क से आप सहमत हैं?
यह कार्टून ब्राजील का है जिसे तानाशाही के लंबे दौर का अनुभव है । इसका शीर्षक है 'तानाशाही का छुपा पक्ष'। इस कार्टून में किस छुपे पहलू को उजागर किया गया है? क्या हर तानाशाही का एक पक्ष छुपा रहे यह ज़रूरी है? अगर संभव हो तो, चिले के पिनोशे, पौलेंड के जाउज़ेल्स्की, नाइजीरिया के सनी अबाचा और फिलीपींस के फेर्डिनांड मार्कोस के बारे में भी ऐसी जानकारियाँ इकट्ठी करें।
निश्चित रूप से लोकतंत्र सभी समस्याओं को खत्म करने वाली जादू की छड़ी नहीं है। लोकतंत्र ने हमारे देश में या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी गरीबी नहीं मिटाई है। सरकार के स्वरूप के तौर पर लोकतंत्र सिर्फ़ इसी बुनियादी चीज़ को देखता है कि लोग अपने बारे में खुद फ़ैसले करें। इससे इस बात की गारंटी नहीं हो जाती कि उनके सभी फ़ैसले अच्छे ही होंगे। लोग गलतियाँ भी कर सकते हैं। इन फ़ैसलों में लोगों को भागीदार बनाने से फ़ैसलों में देरी होती है। यह भी सही है कि लोकतंत्र में जल्दी- जल्दी नेतृत्व परिवर्तन होता है। कई बार बड़े फ़ैसलों और सरकार की कार्यकुशलता पर भी इसका बुरा असर होता है।
इन तर्को से यह लगता है कि हम लोकतंत्र का जो रूप देखते हैं वह सरकार का आदर्श स्वरूप नहीं हो सकता है। पर वास्तविक जीवन में हमारे सामने यह सवाल नहीं होता। वहाँ सवाल यह होता है कि कया हमारे पास सरकार के स्वरूपों के जो विकल्प उपलब्ध हैं उनमें लोकतंत्र किसी भी दूसरे से बेहतर है?
लोकतंत्र के पक्ष में तर्क
चीन में 1958-61 के दौरान पड़ा अकाल विश्व इतिहास का अब तक ज्ञात सबसे भयावह अकाल था। इसमें करीब तीन करोड़ लोग भूख से मरे। उन दिनों भारत की आर्थिक स्थिति चीन से कोई बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी भारत में चीन के समान अकाल और भुखमरी की स्थिति नहीं आई। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ऐसा दोनों देशों की सरकारी नीतियों के अंतर के कारण हुआ। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने से भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा के मामले में जिस तरह से काम किया है वैसा करने की ज़रूरत चीनी सरकार ने महसूस नहीं की। अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि किसी भी स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में कभी भी बड़ा अकाल और बड़ी संख्या में भुखमरी नहीं हुई है। अगर चीन में भी बहुदलीय चुनावी व्यवस्था होती, विपक्षी दल होता और सरकार की आलोचना कर सकने वाली स्वतंत्र मीडिया होती तो इतने सारे लोग भूख से नहीं मर सकते थे।
यह उदाहरण लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति बताने वाली विशेषताओं में से एक को बहुत स्पष्ट ढंग से सामने लाता है। लोगों की ज़रूरत के अनुरूप आचरण करने के मामले में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली किसी भी अन्य प्रणाली से बेहतर है। गैर-लोकतांत्रिक सरकार लोगों की ज़रूरतों पर ध्यान दे भी सकती है और नहीं भी, और यह सब सरकार चलाने वालों की मर्जी पर निर्भर करेगा। अगर शासकों को कुछ करने की ज़रूरत नहीं लगती तो उनको लोगों की इच्छा के अनुरूप काम करने की ज़रूरत नहीं है। पर लोकतंत्र में यह ज़रूरी है कि शासन करने वाले, आम लोगों की ज़रूरतों पर तत्काल ध्यान दें। लोकतांत्रिक शासन पद्धति दूसरों से बेहतर है क्योंकि यह शासन का अधिक ज़वाबदेही वाला स्वरूप है।
अगर भारत लोकतंत्र नहीं' अपनाता तो क्या हुआ होता? क्या ऐसी स्थिति में हम एक राष्ट्र बने रह सकते थे?
गैर-लोकतांत्रिक सरकारों की तुलना में लोकतांत्रिक सरकारों के बेहतर फ़ैसले करने का एक अन्य कारण भी है। लोकतंत्र का आधार व्यापक चर्चा और बहसें हैं। लोकतांत्रिक फ़ैसले में हरदम ज़्यादा लोग शामिल होते हैं, चर्चा करके फ़ैसले होते हैं, बेठकें होती हैं। अगर किसी एक मसले पर अनेक लोगों की सोच लगी हो तो उसमें गलतियों की गुंजाइश कम से कम हो जाती है। इसमें कुछ ज़्यादा समय ज़रूर लगता है लेकिन महत्त्वपूर्ण मसलों पर थोड़ा समय लेकर फ़ैसले करने के अपने लाभ भी हैं | इससे ज्यादा उग्र या गैर-जिम्मेवार फ़ैसले लेने की संभावना घटती है। इस प्रकार लोकतंत्र बेहतर निर्णय लेने की संभावना बढ़ाता है।
इसी से जुड़ा तीसरा तर्क भी है। लोकतंत्र मतभेदों और टकरावों को संभालने का तरीका उपलब्ध कराता है। किसी भी समाज में लोगों के हितों और विचारों में अंतर होगा ही। भारत की तरह भारी सामाजिक विविधता वाले देश में इस तरह का अंतर और भी ज़्यादा होता है। अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग समूहों के लोग रहते हैं, विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं, उनकी धार्मिक मान्यताएँ अलग-अलग हैं और जातियाँ भी जुदा-जुदा। दुनिया को ये सभी अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं और उनकी पसंद में भी अंतर है। एक समूह की पसंद और दूसरे समूह की पसंद में टकराव भी होता है। ऐसे टकराव को कैसे सुलझाएँगे? इसे ताकत के बल पर सुलझाया जा सकता है। जिस समूह के पास ज़्यादा ताकत होगी वह दूसरे को दबा देगा और कमज़ोर समूह को इसे मानना होगा। लेकिन इससे नाराज़गी और असंतोष पैदा होगा। ऐसी स्थिति में विभिन्न समूह ज़्यादा समय तक साथ नहीं रह सकते। लोकतंत्र इस समस्या का एकमात्र शांतिपूर्ण समाधान उपलब्ध कराता है। लोकतंत्र में कोई भी स्थायी विजेता नहीं होता और कोई स्थायी रूप से पराजित नहीं होता। सो विभिन्न समूह एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रह सकते हैं। भारत की तरह विविधता वाले देश को लोकतंत्र ही एकजुट बनाए हुए है।
बेहतर सरकार और सामाजिक जीवन पर प्रभाव के हिसाब से ये तीन तर्क लोकतंत्र को काफी मज़बूत साबित करते हैं। लेकिन लोकतंत्र के पक्ष में सबसे मज़बूत तर्क उससे बनने वाली सरकार के कामकाज से जुड़ा नहीं है। यह तर्क लोकतंत्र और नागरिकों के रिश्ते का है-लोकतंत्र में नागरिकों की जो हैसियत होती है वह किसी और व्यवस्था में नहीं होती। अगर इस व्यवस्था में बेहतर फ़ैसले लेने और उत्तरदायी सरकार चलाने का काम न भी हो तब भी यह दूसरों से बेहतर है। लोकतंत्र नागरिकों का सम्मान बढ़ाता है। लोकतंत्र राजनीतिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है, यहाँ सबसे गरीब और अनपढ़ को भी वही दर्जा प्राप्त है जो अमीर और पढ़े-लिखे लोगों को है। लोग किसी शासक की प्रजा न होकर खुद अपने शासक हैं। अगर वे गलतियाँ करते हैं तब भी वे खुद इसके लिए जवाबदेह होते हैं।
लोकतंत्र के पक्ष में आखिरी तर्क यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरों से बेहतर है क्योंकि इसमें हमें अपनी गलती ठीक करने का अवसर भी मिलता है। जैसा कि हमने ऊपर देखा है, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि लोकतंत्र में कोई गलती नहीं हो सकती। किसी भी किस्म की सरकार इस बात की गारंटी नहीं दे सकती। इस मामले में लोकतंत्र का लाभ यह है कि इसमें गलतियों को ज़्यादा देर तक छुपाए नहीं रखा जा सकता। इन गलतियों पर सार्वजनिक चर्चा की गुंजाइश लोकतंत्र में है। और फिर, इनमें सुधार करने की गुंजाइश भी है। इसका मतलब यह कि या तो शासक समूह अपना फ़ैसला बदले या शासक समूह को ही बदला जा सकता है। गैर-लोकतांत्रिक सरकारों में ऐसा नहीं किया जा सकता।
चलें, अब इस चर्चा को समेटें। लोकतंत्र हमें सब चीज़ नहीं दे सकता और ना ही यह सभी समस्याओं का समाधान है। लेकिन यह साफ़ तौर पर उन सभी दूसरी व्यवस्थाओं से बेहतर है जिन्हें हम जानते हैं और दुनिया के लोगों को जिनका अनुभव है। यह अच्छे फ़ैसलों के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध कराता है, इसमें लोगों की इच्छाओं का सम्मान किए जाने की ज़्यादा संभावना है और इसमें अलग-अलग तरह के लोग ज़्यादा बेहतर ढंग से साथ-साथ रह सकते हैं। अगर यह इनमें से कुछ काम करने में असफल रहता है तब भी इसमें गलती सुधारने की संभावना है और इसमें सभी नागरिकों को ज़्यादा सम्मान मिलता है। इसी वजह से लोकतंत्र को सबसे अच्छी शासन व्यवस्था माना जाता है।
यह कार्टून कनाडा के 2004 संसदीय चुनावों के ठीक पहले प्रकाशित हुआ था। इस कार्टूनिस्ट समेत सभी लोगों का मानना था कि लिबरल पार्टी ही एक बार फिर चुनाव जीत जाएगी । पर जब नतीजे आए तो लिबरल पार्टी चुनाव हार गई। यह कार्टून लोकतंत्र के खिलाफ तर्क देता है या लोकतंत्र के पक्ष में?
हम मतदाता बहोत नाराज़ है | हम अब और सहन नहीं करेंगे | | ये लिबरल बहोत घमण्डी हो गए हैं | | इन्होने सरकार में हमारा विश्वास ही तोड़ दिया है | |
हमारा धन हड़प लिया है | | २८ जून हो होने वाले चुनाव में हम वही करने जा रहे है जो एक कैनेडियन सबसे अचे ढंग से करते है | | यानि हम उनको फिर से जीता देंगे | |
कहाँ
पहुँचे ?
क्या
समझे?
राजेश और मुजफ्फ़र ने एक लेख पढ़ा। इसमें बताया गया था कि किसी भी लोकतांत्रिक देश ने दूसरे लोकतांत्रिक देश के साथ कभी लड़ाई नहीं छेड़ी है। लड़ाई तभी होती है जब कम से कम एक देश में गैर- लोकतांत्रिक सरकार होती है । पर लेख पढ़ने के बाद राजेश ने कहा कि यह लोकतंत्र के पक्ष में कोई अच्छा तर्क नहीं है । ऐसा सिर्फ़ संयोग से हुआ होगा। यह संभव है कि भविष्य में लोकतांत्रिक देशों के बीच भी युद्ध हो। मुज़फ्फर का कहना था कि ऐसा सिर्फ़ संयोग नहीं हो सकता। लोकतंत्र में जिस तरह से फ़ैसले लिए जाते हैं उसमें युद्ध होने का अंदेशा काफ़ी कम हो जाता है।
इन दोनों विचारों में से आपकी सहमति किसकी तरफ़ है और क्यों?
1.4 लोकतंत्र का तृहतर उर्थ
इस अध्याय में हमने लोकतंत्र की एक सीमित और विवरणात्मक शैली में चर्चा की। हमने शासन के एक स्वरूप के तौर पर लोकतंत्र को समझा। लोकतंत्र की इस प्रकार की व्याख्या हमें उन न्यूनतम विशेषताओं या गुणों की पहचान कराती है जो लोकतंत्र की ज़रूरत है। हमारे समय में लोकतंत्र का सबसे आम रूप है प्रतिनिधित्व वाला लोकतंत्र। हम जिन देशों में लोकतंत्र होने की बात करते हैं वहाँ सभी लोग शासन नहीं चलाते। सभी लोगों की तरफ से बहुमत को फ़ैसले लेने का अधिकार होता है और यह बहुमत भी स्वयं शासन नहीं चलाता। बहुमत का शासन भी चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है। यह ज़रूरी हो जाता है क्योंकि:
- आधुनिक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में इतने अधिक लोग होते हैं कि हर बात के लिए सबको साथ बैठाकर सामूहिक 'फ़ैसला कर पाना संभव ही नहीं हो सकता।
- अगर यह संभव हो तब भी हर एक नागरिक के पास हर फ़ैसले में भाग लेने का समय, इच्छा या योग्यता और कौशल नहीं होता।
इसमें हमें लोकतंत्र की स्पष्ट लेकिन न्यूनतम ज़रूरी समझ मिलती है। इस स्पष्टता से हमें लोकतांत्रिक और अलोकतांत्रिक सरकारों में अंतर करने में मदद मिलती है। लेकिन इससे हमें एक सामान्य लोकतंत्र और एक अच्छे लोकतंत्र के बीच अंतर करने की क्षमता नहीं मिल जाती। इससे हम लोकतंत्र को सरकार से परे जाकर नहीं समझ पाते। इसके लिए हमें लोकतंत्र के वृहत्तर अर्थ को समझना होगा।
प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण का यह चर्चित कार्टून देश की आजादी की स्वर्ण जयंती पर टिप्पणी करता है। दीवार पर बने चित्रों में से आप किन-किन को पहचानते हैं? क्या देश के बहुत-से आम आदमी इस कार्टून के आम आदमी की तरह सोचते हैं?
कई बार हम लोकतंत्र का प्रयोग सरकार से अलग संगठनों के लिए करते हैं। ज़रा इन कथनों पर गौर कीजिए :
- “हम लोगों का परिवार काफी लोकतांत्रिक है। जब भी फ़ैसला करना होता है तो हम सभी साथ बैठकर आपसी सहमति से फ़ैसले लेते हैं। फ़ैसले में मेरे विचारों का भी उतना ही महत्त्व होता है जितना मेरे पिताजी का।”
- “मुझे वे शिक्षक नापसंद हैं जो कक्षा में छात्रों को बोलने और सवाल पूछने की इजाजत नहीं देते। मैं वो ऐसा शिक्षक पसंद करूँगी जो लोकतांत्रिक मानसिकता का हो।”
- “एक नेता और उसके परिवार के लोग इस पार्टी के सारे फ़ैसले करते हैं। वे क्या लोकतंत्र की बात करेंगे?”
लोकतंत्र शब्द का इस तरह का प्रयोग फ़ैसले लेने के उसके बुनियादी तरीके को उजागर करता है। लोकतांत्रिक फ़ैसले का मतलब होता है उस फ़ैसले से प्रभावित होने वाले सभी लोगों के साथ विचार-विमर्श के बाद और उनकी स्वीकृति से फ़ैसले लेना यानि जो बहुत शक्तिशाली न हो उसका भी किसी फ़ैसले में उतना ही महत्त्व होना जितना किसी बहुत शक्तिशाली का। यह बात सरकार या परिवार पर भी लागू होती है और किसी अन्य संगठन पर भी। इस प्रकार लोकतंत्र एक ऐसा सिद्धांत है जिसका प्रयोग जीवन के किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।
कई बार हम लोकतंत्र शब्द का प्रयोग किसी मौजूदा सरकार के लिए नहीं करके कुछ आदर्शो के लिए करते हैं। इन्हें पाने का प्रयास सभी लोकतांत्रिक शासनों को ज़रूर करना चाहिए:
- “इस देश में वास्तविक लोकतंत्र तभी आएगा जब किसी को भी भूखे पेट सोने की ज़रूरत नहीं रहेगी।"
- “लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को फ़ैसला लेने में समान भूमिका निभानी चाहिए। इसके लिए वोट के समान अधिकार भर की ज़रूरत नहीं है। हर नागरिक को इसके लिए सूचना की समान उपलब्धता, बुनियादी शिक्षा, बुनियादी संसाधन और पक्की निष्ठा होनी चाहिए।”
मेरे गॉव में ग्राम सभा की बैठक कभी नहीं होती। यह कैसा लोकतंत्र है?
अगर हम इन आदर्श पैमानों के आधार पर आज की शासन व्यवस्थाओं को परखें तो लगेगा कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र नहीं है। फिर भी आदर्श के रूप में लोकतंत्र की हमारी समझदारी हमें बार-बार यह याद दिलाती है कि हम लोकतंत्र को इतना महत्त्व क्यों देते हैं। इससे हमें मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को परखने और उनकी कमजोरियों की पहचान करने में मदद मिलती है। इससे हमें न्यूनतम या कामचलाऊ लोकतंत्र और अच्छे लोकतंत्र के बीच का अंतर समझने में मदद मिलती है।
इस किताब में हमने लोकतंत्र की व्यापक अवधारणा पर ज़्यादा बातें नहीं की हैं। हमने सिर्फ़ शासन के एक तरीके के रूप में लोकतंत्र के कुछ बुनियादी संस्थागत स्वरूपों की चर्चा की है। अगले साल आप लोकतांत्रिक समाज और अपने लोकतंत्र के मूल्यांकन के तरीकों के बारे में और ज़्यादा बातें जानेंगे। इस समय हमें सिर्फ़ इतना याद कर लेना ज़रूरी है कि लोकतंत्र जीवन के अनेक पहलुओं में प्रासंगिक है और लोकतंत्र कई रूप ग्रहण कर सकता है। समानता के आधार पर चर्चा और विचार-विमर्श के बुनियादी सिद्धांत को माना जाए तो लोकतांत्रिक ढंग का फ़ैसला भी कई तरह का हो सकता है। आज की दुनिया में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का सबसे आम रूप है लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाना। इसके बारे में हम अध्याय 4 में ज़्यादा विस्तार से पढ़ें गे। लेकिन जब समुदाय छोटा हो तब लोकतांत्रिक फ़ैसले लेने के दूसरे तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। फिर तो सभी लोग साथ बैठकर सीधे वहीं फ़ैसले कर सकते हैं। किसी गाँव की ग्रामसभा को इसी तरह काम करना चाहिए। क्या आप लोकतांत्रिक फ़ैसले लेने के कुछ और तरीकों की कल्पना कर सकते हैं?
इसका यह भी मतलब हुआ कि किसी भी देश में आदर्श लोकतंत्र नहीं है। लोकतंत्र की जिन विशेषताओं की चर्चा हमने इस अध्याय में की वे लोकतंत्र की न्यूनतम शर्तें हैं। पर इनसे यह आदर्श लोकतंत्र नहीं बनता। एक आदर्श लोकतंत्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होनी चाहिए। हर लोकतंत्र को इस आदर्श को पाने का प्रयास करना चाहिए। यह स्थिति एक बार में और एक साथ सभी के लिए हासिल नहीं की जा सकती। इसके लिए लोकतांत्रिक फ़ैसले लेने की प्रक्रिया को बचाए रखने और मजबूत करते जाने की ज़रूरत होती है। नागरिक के तौर पर हम जो भी काम करते हैं वह भी हमारे देश के लोकतंत्र को अच्छा या खराब बनाने में मदद करता है। यही लोकतंत्र की ताकत है और यही कमज़ोरी भी। देश का भविष्य शासकों के कामकाज से भी ज़्यादा नागरिकों के कामकाज पर निर्भर करता है।
यही चीज लोकतंत्र को अन्य शासन व्यवस्थाओं से अलग करती है। राजशाही, तानाशाही या एक दल के शासन जैसी अन्य व्यवस्थाओं में सभी नागरिकों को राजनीति में हिस्सेदारी करने की ज़रूरत नहीं रहती। दरअसल, अधिकांश गैर- लोकतांत्रिक सरकारें चाहती ही नहीं कि लोग राजनीति में हिस्सा लें। लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर ही निर्भर करती है। इसीलिए लोकतंत्र के बारे में पढ़ाई हो तो लोकतांत्रिक राजनीति पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
आपने विधानम्रभा और संसदीय क्षेत्र के सभी मतदाताओं की संख्या का पता लगाएं | फिर यह पता करें कि आपके आसपास के सबसे बड़े स्टेडियम या हॉल में कितने लोग बैठ सकक्ते है | फिर सोचे कि क्या एक विद्यानसभा या संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का एक साथ बैठना, सार्थक चर्चा करना लोकतांत्रिक फैसले करना संभव है?
- यहाँ चार देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ हैं। इन सूचनाओं के आधार पर आप इन देशों का वर्गीकरण किस तरह करेंगे? इनके सामने “लोकतांत्रिक ', 'अलोकतांत्रिक' और “पक्का नहीं' लिखें।
क. देश क : जो लोग देश के आधिकारिक धर्म को नहीं मानते उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं है।
ख. देश ख : एक ही पार्टी बीते बीस वर्षों से चुनाव जीतती आ रही है।
ग. देश ग ; पिछले तीन चुनावों में शासक दल को पराजय का मुँह देखना पड़ा।
घ. देश घ : यहाँ स्वतंत्र चुनाव आयोग नहीं है।
- यहाँ चार अन्य देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ दी गई हैं, इन सूचनाओं के आधार पर इन देशों का वर्गीकरण आप किस तरह करेंगे। इनके आगे “लोकतांत्रिक', 'अलोकतांत्रिक' और “पक्का नहीं! लिखें।
क. देश च : संसद सेना प्रमुख की मंजूरी के बिना सेना के बारे में कोई कानून नहीं बना सकती।
ख. देश छ : संसद न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती का कानून नहीं बना सकती।
ग. देश ज : देश के नेता बिना पड़ोसी देश की अनुमति के किसी और देश से संधि नहीं कर सकते।
घ. देश झ : देश के सारे आर्थिक फैसले केंद्रीय बैंक के अधिकारी करते हैं जिसे मंत्री भी नहीं बदल सकते।
- इनमें से कौन-सा तर्क लोकतंत्र के पक्ष में अच्छा नहीं है और क्यों?
क. लोकतंत्र में लोग खुद को स्वतंत्र और समान मानते हैं।
ख. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ दूसरों की तुलना में टकरावों को ज़्यादा अच्छी तरह सुलझाती हैं।
ग. लोकतांत्रिक सरकारें लोगों के प्रति ज़्यादा उत्तरदायी होती हैं।
घ. लोकतांत्रिक देश दूसरों की तुलना में ज़्यादा समृद्ध होते हैं।
- इन सभी कथनों में कुछ चीज़ें लोकतांत्रिक हैं तो कुछ अलोकतांत्रिक। हर कथन में इन चीज़ों को अलग-अलग करके लिखें।
क. एक मंत्री ने कहा कि संसद को कुछ कानून पास करने होंगे जिससे विश्व व्यापार संगठन (WTO)द्वारा तय नियमों की पुष्टि हो सके।
ख. चुनाव आयोग ने एक चुनाव क्षेत्र के सभी मतदान केंद्रों पर दोबारा मतदान का आदेश दिया जहाँ बड़े पैमाने पर मतदान में गड़बड़ की गई थी।
ग. संसद में औरतों का प्रतिनिधित्व 0 प्रतिशत तक ही पहुँचा है। इसी के कारण महिला संगठनों ने संसद में एक-तिहाई आरक्षण की माँग की है।
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लोकतंत्र में अकाल और भुखमरी की संभावना कम होती है। यह तर्क देने का इनमें से कौन-सा कारण सही नहीं है?
क. विपक्षी दल भूख और भुखमरी की ओर सरकार का ध्यान दिला सकते हैं।
ख. स्वतंत्र अखबार देश के विभिन्न हिस्सों में अकाल की स्थिति के बारे में खबरें दे सकते हैं।
ग. सरकार को अगले चुनाव में अपनी पराजय का डर होता है।
घ. लोगों को कोई भी तर्क मानने और उस पर आचरण करने की स्वतंत्रता है।
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किसी जिले में 40 ऐसे गाँव हैं जहाँ सरकार ने पेयजल उपलब्ध कराने का कोई इंतजाम नहीं किया है। इन गाँवों के लोगों ने एक बैठक की और अपनी ज़रूरतों की ओर सरकार का ध्यान दिलाने के लिए कई तरीकों पर विचार किया। इनमें से कौन-सा तरीका लोकतांत्रिक नहीं है?
क. अदालत में पानी को अपने जीवन के अधिकार का हिस्सा बताते हुए मुकदमा दायर करना।
ख. अगले चुनाव का बहिष्कार करके सभी पार्टियों को संदेश देना।
ग. सरकारी नीतियों के खिलाफ़ जन सभाएँ करना।
घ. सरकारी अधिकारियों को पानी के लिए रिश्वत देना।
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लोकतंत्र के खिलाफ़ दिए जाने वाले इन तर्कों का जवाब दीजिए:
क. सेना देश का सबसे अनुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त संगठन है। इसलिए सेना को देश का शासन करना चाहिए।
ख. बहुमत के शासन का मतलब है मूर्खों और अशिक्षितों का राज। हमें तो होशियारों के शासन की ज़रूरत है, भले ही उनकी संख्या कम क्यों न हो।
ग. अगर आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन के लिए हमें धर्म-गुरुओं की ज़रूरत होती है तो उन्हीं को राजनैतिक मामलों में मार्गदर्शन का काम क्यों नहीं सौंपा जाए। देश पर धर्म-गुरुओं का शासन होना चाहिए।
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इनमें से किन कथनों को आप लोकतांत्रिक समझते हैं? क्यों?
क. बेटी से बाप : मैं शादी के बारे में तुम्हारी राय सुनना नहीं चाहता। हमारे परिवार में बच्चे वहीं शादी करते हैं जहाँ माँ-बाप तय कर देते हैं।
ख. छात्र से शिक्षक : कक्षा में सवाल पूछकर मेरा ध्यान मत बँटाओ।
ग. अधिकारियों से कर्मचारी : हमारे काम करने के घंटे कानून के अनुसार कम किए जाने चाहिए।
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एक देश के बारे में निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करें और फ़ैसला करें कि आप इसे लोकतंत्र कहेंगे या नहीं। अपने फ़ैसले के पीछे के तर्क भी बताएँ।
क. देश के सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार है और चुनाव नियमित रूप से होते हैं।
ख. देश ने अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से ऋण लिया। ऋण के साथ यह एक शर्त जुड़ी थी कि सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अपने खर्चों में कमी करेगी।
ग. लोग सात से ज़्यादा भाषाएँ बोलते हैं पर शिक्षा का माध्यम सिर्फ़ एक भाषा है, जिसे देश के 52 फीसदी लोग बोलते हैं।
घ. सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए अनेक संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन करने और देश भर में हड़ताल करने का आह्वान किया है। सरकार ने उनके नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया है।
डः देश के रेडियो और टेलीविजन चैनल सरकारी हैं। सरकारी नीतियों और विरोध के बारे में खबर छापने के लिए अखबारों को सरकार से अनुमति लेनी होती है।
अमेरिका के बारे में 2004 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ के समाज में असमानता बढ़ती जा रही है। आमदनी की असमानता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विभिन्न वर्गों की भागीदारी घटने-बढ़ने के रूप में भी सामने आई। इन समूहों की सरकार के फ़ैसलों पर असर डालने की क्षमता भी इससे प्रभावित हुई हैं। इस रिपोर्ट की मुख्य बातें थीं:
- सन् 2004 में एक औसत अश्वेत परिवार की आमदनी 100 डालर थी जबकि गोरे परिवार की आमदनी 62 डालर। औसत गोरे परिवार के पास अश्वेत परिवार से 12 गुना ज़्यादा संपत्ति थी।
- राष्ट्रपति चुनाव में 75,000 डालर से ज़्यादा आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से 9 लोगों ने वोट डाले थे। यही लोग आमदनी के हिसाब से समाज के ऊपरी 20 फीसदी में आते हैं। दूसरी ओर 5,000 डालर से कम आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से सिर्फ़ 5 लोगों ने ही वोट डाले। आमदनी के हिसाब से ये लोग सबसे निचले 20 फीसदी हिस्से में आते हैं।
- राजनैतिक दलों का करीब 95 फीसदी चंदा अमीर परिवारों से ही आता है। इससे उन्हें अपनी राय और चिंताओं से नेताओं को अवगत कराने का अवसर मिलता है। यह सुविधा देश के अधिकांश नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।
- जब गरीब लोग राजनीति में कम भागीदारी करते हैं तो सरकार भी उनकी चिंताओं पर कम ध्यान देती है-गरीबी दूर करना, रोजगार देना, उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की व्यवस्था करने पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। राजनेता अकसर अमीरों और व्यापारियों की चिंताओं पर ही नियमित रूप से गौर करते हैं।
इस रिपोर्ट की सूचनाओं को आधार बनाकर और भारत के उदाहरण देते हुए “लोकतंत्र और गरीबी” पर एक लेख लिखें।
प्रशनावली
प्रशनावली
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- लोकतंत्र का संवैधानिक और कानूनी पहलू
- नागरिक अधिकार
- चुनावी और पार्टियों की राजनीति
- लोकतंत्र की आलोचना