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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिदुस्तान पधारने वाली थीं अखबारों में उनकी चर्चा हो रही थी रोज़ लंदन के अखबारों से खबरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ हो रही हैं-रानी एलिज़ाबेथ का दरज़ी परेशान था कि हिदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर रानी कब क्या पहनेंगी? उनका सेक्रेटरी और शायद जासूस भी उनके पहले ही इस महाद्वीप का तूफ़ानी दौरा करने वाला था आखिर कोई मज़ाक तो था नहीं ज़माना चूँकि नया था, फ़ौज-फाटे के साथ निकलने के दिन बीत चुके थे, इसलिए फ़ोटोग्राफ़रों की फ़ौज तैयार हो रही थी...|
इंग्लैंड के अखबारों की कतरनें हिदुस्तानी अखबारों में दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थीं, कि रानी ने एक ऐसा हलके नीले रंग का सूट बनवाया है जिसका रेशमी कपड़ा हिदुस्तान से मँगाया गया है...कि करीब चार सौ पौंड खरचा उस सूट पर आया है|
रानी एलिज़ाबेथ की जन्मपत्री भी छपी प्रिस फिलिप के कारनामे छपे और तो और, उनके नौकरों, बावरचियों, खानसामों, अंगरक्षकों की पूरी की पूरी जीवनियाँ देखने में आईं शाही महल में रहने और पलने वाले कुत्तों तक की तसवीरें अखबारों में छप गईं...|
बड़ी धूम थी बड़ा शोर-शराबा था शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूँज हिदुस्तान में आ रही थी|
इन खबरों से हिदुस्तान में सनसनी फैल रही थी राजधानी में तहलका मचा हुआ था जो रानी पाँच हजार रुपए का रेशमी सूट पहनकर पालम के हवाई अड्डे पर उतरेगी, उसके लिए कुछ तो होना ही चाहिए कुछ क्या, बहुत कुछ होना चाहिए जिसके बावरची पहले महायुद्ध मेें जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान-शौकत के क्या कहने, और वही रानी दिल्ली आ रही है...नयी दिल्ली ने अपनी तरफ़ देखा और बेसाख्ता1 मुँह से निकल गया, "वह आए हमारे घर, खुदा की रहमत...कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं!" और देखते-देखते नयी दिल्ली का कायापलट होने लगा|
और करिश्मा तो यह था कि किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा पर सड़कें जवान हो गईं, बुढ़ापे की धूल साफ़ हो गई इमारतों ने नाज़नीनों2 की तरह शंगार किया...|
लेकिन एक बड़ी मुश्किल पेश थी-वह थी जॉर्ज पंचम की नाक!...नयी दिल्ली में सब कुछ था, सब कुछ होता जा रहा था, सब कुछ हो जाने की उम्मीद थी पर जॉर्ज पंचम की नाक बड़ी मुसीबत थी नयी दिल्ली में सब था...सिर्फ़ नाक नहीं थी!
इस नाक की भी एक लंबी दास्तान है इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे किसी वक्त! आंदोलन हुए थे राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए थे चंदा जमा किया था कुछ नेताओं ने भाषण भी दिए थे गरमागरम बहसें भी हुई थीं अखबारों के पन्ने रंग गए थे बहस इस बात पर थी कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए! और जैसा कि हर राजनीतिक आंदोलन में होता है, कुछ पक्ष में थे कुछ विपक्ष में और ज़्यादातर लोग खामोश थे खामोश रहने वालों की ताकत दोनों तरफ़ थी...|
यह आंदोलन चल रहा था जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियार बंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे, क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुँच जाए हिदुस्तान में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के हाथ पहुँच गए उन्हें शानो-शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया कहीं-कहीं तो शाही लाटों3 की नाकों के लिए गुरिल्ला युद्ध होता रहा...|
उसी जमाने में यह हादसा हुआ, इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक एकाएक गायब हो गई! हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई|
रानी आए और नाक न हो! एकाएक परेशानी बढ़ी बड़ी सरगरमी शुरू हुई देश के खैरख्वाहों4 की एक मीटिंग बुलाई गई और मसला पेश किया गया कि क्या किया जाए? वहाँ सभी सहमत थे कि अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी...|
1. स्वाभाविक रूप से 2. कोमलांगी 3. खंभा, मूर्ति 4. भलाई चाहने वाले
उच्च स्तर पर मशवरे हुए, दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत ज़रूरी है यह तय होते ही एक मूर्तिकार को हुक्म दिया गया कि वह फ़ौरन दिल्ली में हाजि़र हो|
मूर्तिकार यों तो कलाकार था पर ज़रा पैसे से लाचार था आते ही, उसने हुक्कामों के चेहरे देखे, अजीब परेशानी थी उन चेहरों पर, कुछ लटके, कुछ उदास और कुछ बदहवास थे उनकी हालत देखकर लाचार कलाकार की आँखों में आसूँ आ गए तभी एक आवाज़ सुनाई दी, "मूर्तिकार! जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है!"
मूर्तिकार ने सुना और जवाब दिया, "नाक लग जाएगी पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी थी इस लाट के लिए पत्थर कहाँ से लाया गया था?"
सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका...एक की नज़र ने दूसरे से कहा कि यह बताने की जिम्मेदारी तुम्हारी है खैर, मसला हल हुआ एक क्लर्क को फोन किया गया और इस बात की पूरी छानबीन करने का काम सौंप दिया गया...पुरातत्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए पर कुछ भी पता नहीं चला क्लर्क ने लौटकर कमेटी के सामने काँपते हुए बयान किया, "सर! मेरी खता माफ़ हो, फ़ाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं|"
हुक्कामों के चेहरों पर उदासी के बादल छा गए एक खास कमेटी बनाई गई और उसके जिम्मे यह काम दे दिया गया कि जैसे भी हो, यह काम होना है और इस नाक का दारोमदार5 आप पर है|
आखिर मूर्तिकार को फिर बुलाया गया, उसने मसला हल कर दिया वह बोला, "पत्थर की किस्म का ठीक पता नहीं चला तो परेशान मत होइए, मैं हिदुस्तान के हर पहाड़ पर जाऊँगा और ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा" कमेटी के सदस्यों की जान में जान आई सभापति ने चलते-चलते गर्व से कहा, "ऐसी क्या चीज़ है जो हिदुस्तान में मिलती नहीं हर चीज़ इस देश के गर्भ में छिपी है, ज़रूरत खोज करने की है खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा...आने वाला ज़माना खुशहाल होगा|"
यह छोटा-सा भाषण फ़ौरन अखबारों में छप गया|
मूर्तिकार हिदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल पड़ा कुछ दिन बाद वह हताश लौटा, उसके चेहरे पर लानत बरस रही थी, उसने सिर लटकाकर खबर दी, "हिदुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला पर इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला यह पत्थर विदेशी है"
सभापति ने तैश में आकर कहा, "लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीज़ें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?"
मूर्तिकार चुप खड़ा था सहसा उसकी आँखों में चमक आ गई उसने कहा, "एक बात मैं कहना चाहूँगा, लेकिन इस शर्त पर कि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे...|"
सभापति की आँखों में भी चमक आई चपरासी को हुक्म हुआ और कमरे के सब दरवाज़े बंद कर दिए गए तब मूर्तिकार ने कहा, "देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं, अगर इजाज़त हो और आप लोग ठीक समझें तो...मेरा मतलब है तो...जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे उतार लाया जाए...|"
सबने सबकी तरफ़ देखा सबकी आँखों में एक क्षण की बदहवासी के बाद खुशी तैरने लगी सभापति ने धीमे से कहा, "लेकिन बड़ी होशियारी से|"
और मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा जॉर्ज पंचम की खोई हुई नाक का नाप उसके पास था दिल्ली से वह बंबई पहुँचा दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कॉवसजी जहाँगीर-सबकी नाकें उसने टटोलीं, नापीं और गुजरात की ओर भागा- गांधी जी, सरदार पटेल, विट्ठलभाई पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियों को परखा और बंगाल की ओर चला-गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय आदि को भी देखा, नाप-जोख की और बिहार की तरफ़ चला बिहार होता हुआ उत्तर प्रदेश की ओर आया-चंद्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय की लाटों के पास गया घबराहट में मद्रास भी पहुँचा, सत्यमूर्ति को भी देखा और मैसूर-केरल आदि सभी प्रदेशों का दौरा करता हुुआ पंजाब पहुँचा-लाला लाजपतराय और भगतसिह की लाटों से भी सामना हुआ आखिर दिल्ली पहुँचा और उसने अपनी मुश्किल बयान की, "पूरे हिदुस्तान की परिक्रमा कर आया, सब मूर्तियाँ देख आया सबकी नाकों का नाप लिया पर जॉर्ज पंचम की इस नाक से सब बड़ी निकलीं|
5. किसी कार्य के होने या न होने की पूरी जिम्मेदारी, कार्यभार
सुनकर सब हताश हो गए और झुँझलाने लगे मूर्तिकार ने ढाढस बँधाते हुए आगे कहा, "सुना है कि बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद होेने वाले बच्चाें की मूर्तियाँ स्थापित हैं, शायद बच्चों की नाक ही फिट बैठ जाए, यह सोचकर वहाँ भी पहुँचा पर उन बच्चों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं अब बताइए, मैं क्या करूँ?"
...राजधानी में सब तैयारियाँ थीं जॉर्ज पंचम की लाट को मल-मलकर नहलाया गया था रोगन लगाया गया था सब कुछ हो चुका था, सिर्फ़ नाक नहीं थी|
बात फिर बड़े हुक्कामों तक पहुँची बड़ी खलबली मची-अगर जॉर्ज पंचम के नाक न लग पाई तो फिर रानी का स्वागत करने का मतलब? यह तो अपनी नाक कटाने वाली बात हुई|
लेकिन मूर्तिकार पैसे से लाचार था...यानी हार मानने वाला कलाकार नहीं था एक हैरतअंगेज़ खयाल उसके दिमाग में कौंधा और उसने पहली शर्त दोहराई जिस कमरे में कमेटी बैठी हुई थी उसके दरवाज़े फिर बंद हुए और मूर्तिकार ने अपनी नयी योजना पेश की, "चूँकि नाक लगना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जि़दा नाक काटकर लगा दी जाए...|"
बात के साथ ही सन्नाटा छा गया कुछ मिनटों की खामोशी के बाद सभापति ने सबकी तरफ़ देखा सबको परेशान देखकर मूर्तिकार कुछ अचकचाया6 और धीरे से बोला, "आप लोग क्यों घबराते हैं! यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए...नाक चुनना मेरा काम है, आपकी सिर्फ़ इजाज़त चाहिए|"
कानाफूसी हुई और मूर्तिकार को इजाज़त दे दी गई|
6. चौंक उठना, भौंचक्का होना
अखबारों में सिर्फ़ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है|
नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया उसकी रवाब निकाली गई और ताज़ा पानी डाला गया ताकि जो जि़दा नाक लगाई जाने वाली थी, वह सूखने न पाए इस बात की खबर जनता को नहीं थी यह सब तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं रानी के आने का दिन नज़दीक आता जा रहा था मूर्तिकार खुद अपने बताए हल से परेशान था जि़दा नाक लाने के लिए उसने कमेटी वालों से कुछ और मदद माँगी वह उसे दी गई लेकिन इस हिदायत के साथ कि एक खास दिन हर हालत में नाक लग जानी चाहिए|
और वह दिन आया|
जॉर्ज पंचम के नाक लग गई|
सब अखबारों ने खबरें छापीं कि जॉर्ज पंचम के जि़दा नाक लगाई गई है...यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती|
लेकिन उस दिन के अखबारों में एक बात गौर करने की थी उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी किसी ने कोई फीता नहीं काटा था कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी कहीं भी किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई थी किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ था किसी का ताज़ा चित्र नहीं छपा था|
सब अखबार खाली थे|
पता नहीं ऐसा क्यों हुआ था?
नाक तो सिर्फ़ एक चाहिए थी और वह भी बुत के लिए|
प्रश्न-अभ्यास
- सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है|
- रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
- ‘और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा’–नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
- आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है–
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जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
- प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं’ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए
- नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए
- जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है|
- अखबारों ने जि़दा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
- "नयी दिल्ली में सब था....सिर्फ़ नाक नहीं थी" इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
- जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?