KshitijBhag2-008

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ऋतुराज



तुराज का जन्म सन् 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। चालीस वर्षों तक अंग्रेज़ी साहित्य के अध्यापन के बाद अब सेवानिवृत्ति लेकर वे जयपुर में रहते हैं। उनके अब तक आठ कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें एक मरणधर्मा और अन्य, पुल पर पानी, सुरत निरत और लीला मुखारविंद प्रमुख हैं। उन्हें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं।

मुख्यधारा से अलग समाज के हाशिए के लोगों की चिंताओं को ऋतुराज ने अपने लेखन का विषय बनाया है। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और वे अपने आसपास रोज़मर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर निगाह डालते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुड़ी हुई है।

कन्यादान  कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर सीख दे रही है। कवि का मानना है कि समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में ‘कमज़ोरी’ का उपहास छिपा रहता है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है। बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुख की साथी होती है। इसी कारण उसे अंतिम पूँजी कहा गया है। कविता में कोरी भावुकता नहीं बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। इस छोटी-सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति ऋतुराज जी की गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।



 कन्यादान 


कितना प्रामाणिक था उसका दुख

लड़की को दान में देते वक्त

जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

लड़की अभी सयानी नहीं थी

अभी इतनी भोली सरल थी

कि उसे सुख का आभास तो होता था

लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था

पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

माँ ने कहा पानी में झाँककर

अपने चेहरे पर मत रीझना

आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

जलने के लिए नहीं

वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह

बंधन हैं स्त्री जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना

पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।



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  1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
  2. ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

    जलने के लिए नहीं’

    (क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

    (ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?

  3. ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

    कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’

    इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।

  4. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
  5. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?


    रचना और अभिव्यक्ति

  6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?


पाठेतर सक्रियता

  • ‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए। यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?


मैं लौटूँगी नहीं

मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ

मैंने अपनी राह देख ली है

अब मैं लौटूँगी नहीं

मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं

सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं

भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी

मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ

मैंने अपनी राह देख ली है।

अब मैं लौटूँगी नहीं



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