KshitijBhag2-009

9

मंगलेश डबराल



manglesh_




मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तरांचल) के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।

मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं-पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है। मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एव पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी।

संगतकार कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाें; जैसे-नाटक, फ़िल्म संगीत, नृत्य के बारे में तो यह सही है ही; हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक प्रसंगों को देख सकते हैं जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं मानवीयता है। संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है मानो हम इसे अपने सामने घटित होता देख रहे हों।



 संगतकार 



मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी

वह मुख्य गायक का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार

मुख्य गायक की गरज़ में

वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है

या अपने ही सरगम को लाँघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है

जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन

जब वह नौसिखिया था

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ

तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।



prsn


  1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
  2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
  3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
  4. भाव स्पष्ट कीजिए-

    और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है

    या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं

    उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

  5. किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
  6. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  7. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?


    रचना और अभिव्यक्ति

  8. कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाएँ-

    (क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।

    (ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?

  9. आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए।
  10. किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे?


पाठेतर सक्रियता

  • आप फ़िल्में तो देखते ही होंगे। अपनी पसंद की किसी एक फ़िल्म के आधार पर लिखिए कि उस फ़िल्म की सफलता में अभिनय करने वाले कलाकारों के अतिरिक्त और किन-किन लोगों का योेेगदान रहा।
  • आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है-

    (क) इस संबंध पर सूचना पट्ट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।

    (ख) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।


शब्द-संपदा

संगतकार - मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला कलाकार, सहयोगी

गरज - ऊँची गंभीर आवाज़

अंतरा - स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण

जटिल - कठिन

तान - संगीत में स्वर का विस्तार

नौसिखिया - जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

राख जैसा कुछ गिरता हुआ - बुझता हुआ स्वर

ढाँढ़स बँधाना - तसल्ली देना, सांत्वना देना


यह भी जानें

सरगम - संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं। वे हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, धैवत और निषाद। इन्हीं नामाें के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।

सप्तक - सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।



 गद्य खंड 


prn



विद्यार्थी अपने नियत अध्ययन को पूरा कर लेने के बाद जो समय बचा सके उसे अपने देश तथा धर्म के इतिहास, अपने पूर्वजों के चरित्र, अपने देश की विगत और वर्तमान अवस्था, दूसरे देशों के इतिहास, समाचार-पत्र, पत्रिकाओं को पढ़ने और विचारने में लगाएँ। अपने अध्ययन को हानि न पहुँचाकर समय मिले तो सभा समाजों में विद्वानों के व्याख्यानों को भी सुनें।

-मदनमोहन मालवीय 


जो काम अपना उद्देश्य आप होते हैं और अपने से बाहर कोई स्वार्थ नहीं रखते, उन्हें खेल कहते हैं। अध्यापक का काम अक्सर अपना इनाम आप होता है। वह बच्चों की भाँति जि़ंदगी जीता हुआ बच्चों के साथ एकाकार हो जाता है। एक अच्छे नाटककार या इतिहासकार की भाँति वह एक छोटी-सी बात से, एक साधारण-सी क्रिया से, चेहरे के रंग से और आँखों को देखकर पूरे आदमी की वास्तविकता का पता लगा लेता है। वह अपने विवेक और सूझबूझ से बच्चों के हृदय, बुद्धि तथा आत्मा के छिपे हुए तथ्यों को समझ लेता है। वह कभी हँसकर, कभी तारीफ़ करके, कभी नरमी से, कभी सख्ती से, कभी उकसाकर, कभी आलोचना करके बच्चे की वास्तविकता को समझ कर उसका मार्गदर्शन करता है।

-ज़ाकिर हुसैन 




chapter_end