Shemusi Chapter-1


मङ्गलम्


 तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् ।
पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतम् ।
शृणुयाम शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतम् ।
अदीना: स्याम शरद: शतम्। भूयश्च शरद: शतात् ।।1।।
(यजुर्वेद 36.24)
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतो-
ऽदब्धासो अपरीतास उद्भिद: ।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे अस-
न्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे ।।2।।
(ऋग्वेद 1.89.1)

भावार्थ:


देवों द्वारा निरूपित यह शुक्ल वर्ण का नेत्र रूप (सूर्य) पूर्व दिशा में ऊपर उठ चुका है। हम सब सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक जीते रहें, सौ वर्षों तक सुनते रहें, सौ वर्षों तक शुद्ध रूप से बोलते रहें, सौ वर्षों तक स्वावलम्बी (अदीन) बने रहें और यह सब सौ वर्षों से भी अधिक चलता रहे ।।1।।

हमारे पास चारों ओर से एेसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके (अपरीतास:) एवम् अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले (उद्भिद:) हों, प्रगति को न रोकने वाले (अप्रायुव:) तथा सदैव रक्षा में तत्पर देवगण प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें ।।2।।

प्रथम पाठ:

शुचिपर्यावरणम्

अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः हरिदत्तशर्मणः "लसल्लतिका" इति रचनासङ्ग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। अत्र कविः महानगराणां यन्त्राधिक्येन प्रवर्धितप्रदूषणोपरि चिन्तितमनाः दृश्यते। सः कथयति यद् इदं लौहचक्रं शरीरस्य मनसश्च शोषकम् अस्ति। अस्मादेव वायुमण्डलं मलिनं भवति। कविः महानगरीयजीवनात् सुदूरं नदी-निर्झरं वृक्षसमूहं लताकुञ्जं पक्षिकुलकलरवकूजितं वनप्रदेशं प्रति गमनाय अभिलषति।

दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।

शुचि-पर्यावरणम्।।

महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।

मन: शोषयत् तनु: पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्।।

दुर्दान्तैर्दशनैरमु ना स्यान्नैव जनग्रसनम्। शुचि...।।1।।


chap-01.tif


कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।

वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।।

यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ता: कठिनं संसरणम्। शुचि...।।2।।

वायुम.डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।

कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।।

करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि...।।3।।

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।

प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पय:पूरम्।।

एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि...।।4।।

हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।

कुसमावलि: समीरचालिता स्यान्मे वरणीया।।

नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि...।।5।।


Chap-1a.tif


अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।

पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्।।

चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि...।।6।।

प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टा:।

पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा।।

मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि...।।7।।


शब्दार्था:

दुर्वहम् - दुष्करम् - कठिन, दूभर - Difficult

जीवितम् - जीवनम् - जीवन - Life

अनिशम् - अहर्निशम् - दिन-रात - Day and Night

कालायसचक्रम् - लौहचक्रम् - लोहे का चक्र - Iron wheel

शोषयत् - शुष्कीकुर्वत् - सुखाते हुए - Drying

तनुः - शरीरम् - शरीर - Body

पेषयद् - पिष्टीकुर्वत् - पीसते हुए - Grinding

वक्रम् - कुटिलम् - टेढ़ा - Askew

दुर्दान्तैः - भयङ्करैः - भयानक (से) - Scary

दशनैः - दन्तैः - दाँतों से - By teeth

अमुना - अनेन - इससे - By thus

जनग्रसनम् - जनभक्षणम् - मानव विनाश - Destruction of humans

कज्जलमलिनम् - कज्जलेन मलिनम् - काजल-सा मलिन (काला)-Black as kohl धूमः - अग्निवाहः - धुआँ - Smoke

मुञ्चति - त्यजति - छोड़ता है - Releasing

शतशकटीयानम् - शकटीयानानां शतम्- सैकड़ों मोटर - Hundreds of

गाड़ियाँ vehicles

वाष्पयानमाला - वाष्पयानानां पंक्तिः- रेलगाड़ी की पंक्ति - Row of trains

वितरन्ती - ददती/वितरणं कुर्वाणा- देती हुई - Distributing

ध्वानम् - ध्वनिम् - कोलाहल - Sound

संसरणम् - सञ्चलनम् - चलना - Movement

भृशं - अत्यधिकम् - अत्यधिक - Enormous

भक्ष्यम् - खाद्यपदार्थ - भोज्य पदार्थ - Eatable

समलम् - मलेन युक्तम् - मलयुक्त, गन्दगी से युक्त- Dirty

ग्रामान्ते - ग्रामस्य सीमायाम् (सीम्नि) - गाँव की सीमा पर - At village border


पयःपूरम् - जलाशयम् - जल से भरा - Pond

हुआ तालाब

कान्तारे - वने - जंगल में - In the forest

कुसुमावलिः - कुसुमानां पंक्तिः - फूलों की पंक्ति - Row of flowers

समीरचालिता - वायुचालिता - हवा से चलायी हुई - Moved by wind

रुचिरम् - सुन्दरम् - सुन्दर - Attractive

खगकुलकलरव - खगकुलानां कलरवः - पक्षियों के समूह - Chirping of birds

(पक्षिसमूहध्वनिः) की ध्वनि

चाकचिक्यजालम्- कृत्रिमं प्रभावपूर्णं - चकाचौंध भरी दुनिया - Web of dazzle

जगत्

प्रस्तरतले - शिलातले - पत्थरों के तल पर - On the surface

of the rocks

लतातरुगुल्माः - लताश्च तरवश्च - लता, वृक्ष और झाड़ी- Creepers, trees and

गुल्माश्च shrubs

पाषाणी - पर्वतमयी - पथरीली - Stony

निसर्गे - प्रकृत्याम् - प्रकृति में - In the nature


अभ्यास:

1. एकपदेन उत्तरं लिखत–

(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम्?

(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति?

(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति?

(घ) अहं कस्मै जीवनं कामये?

(ङ) केषां माला रमणीया?


2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- 

(क) कवि: किमर्थं प्रकृते: शरणम् इच्छति?

(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?

(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?

(घ) कवि: कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति?

(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?

(च) अन्तिमे पद्यांशे कवे: का कामना अस्ति?


3. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत-

(क) प्रकृति: + .................................. = प्रकृतिरेव

(ख) स्यात् + ..........  + .......... = स्यान्नैव

(ग) ...........  + अनन्ता: = ह्यनन्ता:

(घ) बहि: + अन्त: + जगति = ..................................

(ङ) ........... + नगरात् = अस्मान्नगरात्

(च) सम् + चरणम् = ..................................

(छ) धूमम् + मुञ्चति = ..................................


4. अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-

भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहि:

(क) इदानीं वायुम.डलं .......................... प्रदूषितमस्ति।

(ख) .......................... जीवनं दुर्वहम् अस्ति।

(ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् .......................... लाभदायकं भवति।

(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् .......................... प्रकृते: आराधना।

(ङ) .......................... समयस्य सदुपयोग: करणीय:।

(च) भूकम्पित-समये .......................... गमनमेव उचितं भवति।

(छ) .......................... हरीतिमा .......................... शुचि पर्यावरणम्।


5. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

(क) सलिलम् ..........................

(ख) आम्रम् ..........................

(ग) वनम् ..........................

(घ) शरीरम् ..........................

(ङ) कुटिलम् ..........................

(च) पाषाण:  ..........................


(आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत-

(क) सुकरम् ..........................

(ख) दूषितम् ..........................

(ग) गृहणन्ती ..........................

(घ) निर्मलम्   ..........................

(ङ) दानवाय ..........................

(च) सान्ता: ..........................


6. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समासनाम च लिखत-

यथा-विग्रह पदानि                   समस्तपद         समासनाम

(क) मलेन सहितम्                  समलम्          अव्ययीभाव

(ख) हरिता: च ये तरव: (तेषां)         ..........................

(ग) ललिता: च या: लता: (तासाम्)     ..........................

(घ) नवा मालिका                   ..........................

(ङ) धृत: सुखसन्देश: येन (तम्)       ..........................

(च) कज्जलम् इव मलिनम्            ..........................

(छ) दुर्दान्तै: दशनै:                  ..........................


7. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।

(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेत: प्रसादयति।

(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्मा: प्रस्तरतले पिष्टा: सन्ति।

(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ता: पङ्क्तय: धावन्ति।

(ङ) प्रकृत्या: सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।


योग्यताविस्तार:

यह पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तन-मन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

समास - समसनं समास:

समास का शाब्दिक अर्थ होता है-संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो नया और संक्षिप्त रूप बनता है वह समास कहलाता है। समास के मुख्यत: चार भेद हैं-

1. अव्ययीभाव समास    2. तत्पुरुष  3. बहुव्रीहि      4. द्वन्द्व

1. अव्ययीभाव

इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है और समस्तपद अव्यय बन जाता है।

यथा-निर्मक्षिकम्-मक्षिकाणाम् अभाव:।

यहाँ प्रथमपद निर् है और द्वितीयपद मक्षिकम् है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अत: यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें-

(i) उपग्रामम् - ग्रामस्य समीपे - (समीपता की प्रधानता)

(ii) निर्जनम् - जनानाम् अभाव: - (अभाव की प्रधानता)

(iii) अनुरथम् - रथस्य पश्चात् - (पश्चात् की प्रधानता)

(iv) प्रतिगृहम् - गृहं गृहं प्रति - (प्रत्येक की प्रधानता)

(v) यथाशक्ति - शक्तिम् अनतिक्रम्य - (सीमा की प्रधानता)

(vi) सचक्रम् - चक्रेण सहितम् - (सहित की प्रधानता)


2. तत्पुरुष -

 ‘प्रायेण उत्तरपदप्रधान: तत्पुरुष:’ इस समास में प्राय: उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।

यथा- राजपुरुष: अर्थात् राजा का पुरुष। यहांँ राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है।

(i) ग्रामगत: - ग्रामं गत:।

(ii) शरणागत: - शरणम् आगत:।

(iii) देशभक्त: - देशस्य भक्त:।

(iv) सिंहभीत: - सिंहात् भीत:।

(v) भयापन्न: - भयम् आपन्न:।

(vi) हरित्रात: - हरिणा त्रात:।

तत्पुरुष समास के दो प्रमुख भेद हैं-कर्मधारय और द्विगु।

(i) कर्मधारय कर्मधारय-इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है। विशेषण विशेष्य भाव के अतिरिक्त उपमान उपमेय भाव भी कर्मधारय समास का लक्षण है।

यथा-

पीताम्बरम् - पीतं च तत् अम्बरम्।

महापुरुष: - महान् च असौ पुरुष:।

कज्जलमलिनम् - कज्जलम् इव मलिनम्।

नीलकमलम् - नीलं च तत् कमलम्।

मीननयनम् - मीन इव नयनम्।

मुखकमलम् - कमलम् इव मुखम्।

(ii) द्विगु - ‘संख्यापूर्वो द्विगु:’ इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (एकत्रीकरण या समूह) अर्थ  की प्रधानता होती है।

यथा- त्रिभुजम् - त्रयाणां भुजानां समाहार:।

इसमें पूर्वपद ‘त्रि’ संख्यावाची है।

पंचपात्रम् - पंचानां पात्राणां समाहार:।

पंचवटी - पंचानां वटानां समाहार:।

सप्तर्षि: - सप्तानां ऋषीणां समाहार:।

चतुर्युगम् - चतुर्णां युगानां समाहार:।

3. बहुव्रीहि -

 ‘अन्यपदप्रधान: बहुब्रीहि:’ इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।

यथा-

पीताम्बर: - पीतम् अम्बरम् यस्य स: (विष्णु:)। यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।

नीलकण्ठः - नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।

दशानन: - दश आननानि यस्य स: (रावण:)।

अनेककोटिसार: - अनेककोटि: सार: (धनम्) यस्य स:।

विगलितसमृद्धिम् - विगलिता समृद्धि: यस्य तम् (पुरुषम्)।

प्रक्षालितपादम् - प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम् (जनम्)।

4. द्वन्द्व -

 ‘उभयपदप्रधान: द्वन्द्व:’ इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोंनों की समान रूप से प्रधानता होती है। पदों के बीच में ‘च’ का प्रयोग विग्रह में होता है।

यथा-

रामलक्ष्मणौ - रामश्च लक्ष्मणश्च।

पितरौ - माता च पिता च।

धर्मार्थकाममोक्षा: - धर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च।

वसन्तग्रीष्मशिशिरा: - वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।

कविपरिचय - प्रो. हरिदत्त शर्मा इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत के आचार्य रहे हैं। इनके कई संस्कृत काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे-गीतकंदलिका, त्रिपथगा, उत्कलिका, बालगीताली, आक्रन्दनम्, लसल्लतिका इत्यादि। इनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति दिशानिर्देश के भाव प्राप्त होते हैं।

भावविस्तार:

पृथिवी, जलं, तेजो वायुराकाशश्चेति पञ्चमहाभूतानि प्रकृते: प्रमुखतत्त्वानि। एतै: तत्त्वैरेव पर्यावरणस्य रचना भवति। आव्रियते परित: समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सर्वविधजीवनसुखं ददाति। अस्माभि: सदैव तथा प्रयतितव्यं यथा जलं स्थलं गगनञ्च निर्मलं स्यात्। पर्यावरणसम्बद्धा: केचन श्लोका: अधोलिखिता: सन्ति.

यथा-

पृथिवीं परितो व्याप्य, तामाच्छाद्य स्थितं च यत्।

जगदाधाररूपेण, पर्यावरणमुच्यते।।

प्रदूषणविषये-

सृष्टौ स्थितौ विनाशे च नृविज्ञैर्बहुनाशकम्।

पञ्चतत्त्वविरुद्धं यत्साधितं तत्प्रदूषणम्।।

वायुप्रदूषणविषये-

प्रक्षिप्तो वाहनैर्धूम: कृष्ण: बह्वपकारक:।

दुष्टैरसायनैर्युक्तो घातक: श्वासरुग्वह:।।

जलप्रदूषणविषये-

यन्त्रशाला परित्यक्तैर्नगरेदूषितद्रवै:।

नदीनदौ समुद्राश्च प्रक्षिप्तैर्दूषणं गता:।।

प्रदूषण निवारणाय संरक्षणाय च -

शोधनं रोपणं रक्षावर्धनं वायुवारिण:।

वनानां वन्यवस्तूनां भूमे: संरक्षणं वरम्।।

एते श्लोका: पर्यावरणकाव्यात् संकलिता: सन्ति।

तत्सम-तद्भव-शब्दानामध्ययनम्-

अधोलिखितानां तत्समशब्दानां तदुद्भूतानां च तद्भवशब्दानां परिचय: करणीय:-

तत्सम तद्भव

प्रस्तर - पत्थर

वाष्प - भाप

दुर्वह - दूभर

वक्र - बाँका

कज्जल - काजल

चाकचिक्य - चकाचक, चकाचौंध

धूम: - धुअाँ

शतम् - सौ (100)

बहि: - बाहर

छन्द: परिचय:

अस्मिन् गीते शुचि पर्यावरणम् इति ध्रुवकं (स्थायी) वर्तते। तदतिरिक्तं सर्वत्र प्रतिपङ्क्ति 26 मात्रा: सन्ति। इदं गीतिकाच्छन्दस: रूपमस्ति।