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हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में धातु से बनी विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। क्या आप अपने घर में प्रयोग की जाने वाली धातु से बनी चीजों की सूची बना सकते हैं? ये धातुएँ कहाँ से आती हैं?

आपने पढ़ा है कि भू-पर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है। इन खनिजों का उपयुक्त शोधन करके ही ये धातुएँ निकाली जाती है

खनिज हमारे जीवन के अति अनिवार्य भाग हैं। लगभग हर चीज़ जो हम इस्तेमाल करते हैं – एक छोटी सूई से लेकर एक बड़ी इमारत तक, या फिर एक बड़ा जहाज आदि – सभी खनिजों से बने हैं। रेलवे लाइन और सड़क के पत्थर, हमारे औजार तथा मशीनें भी खनिजों से बने हैं। कारें, बसें, रेलगाड़ियाँ, हवाई जहाज सभी खनिजों से निर्मित हैं और धरती से प्राप्त ऊर्जा के साधनों द्वारा चालित होते हैं। यहाँ तक कि भोजन में भी खनिज होते हैं जिसे हम खाते हैं। मनुष्य ने विकास की सभी अवस्थाओं में – अपनी जीविका तथा सजावट, त्योहारों व धार्मिक अनुष्ठान के लिए खनिजों का प्रयोग किया है।

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खनिज क्या है?

भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं। खनिज इतने विविध क्यों हैं?

भूगोलविद् स्थलाकृतियों की बेहतर जानकारी हेतु खनिजों का अध्ययन भू-पृष्ठ के एक अं के रूप में करते हैं। भूगोलवेत्ता निज संसाधनों के वितरण खनिजों से संबंधित आर्थिक क्रियाओं में ज्यादा रूचि रखते हैं। परंतु एक भू-वैज्ञानिक, खनिजों की निर्माण प्रक्रिया, इनकी आयु व खनिजों के भौतिक व रासायनिक संगठन से संबंधित विषयों की जानकारी रखते हैं।

आप चट्टानों के विषय में पहले ही पढ़ चुके हैं। चट्टानें खनिजों के समरूप तत्त्वों के यौगिक हैं। कुछ चट्टानें जैसे चूना पत्थर - केवल एक ही खनिज से बनी हैं; लेकिन अधिकतर चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों का योग हैं। यद्यपि 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की जा चुकी है, लेकिन अधिकतर चट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की बहुतायत है।

एक खनिज विशेष जो निश्चित तत्त्वों का योग है, उन तत्त्वों का निर्माण उस समय के भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों का परिणाम है। इसके फलस्वरूप ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं। भू-वैज्ञानिक इन्हीं विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं।

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सामान्य व वाणिज्यिक (व्यापारिक) उद्देश्य हेतु खनिज निम्न प्रकार से वर्गीकृत किये जाते हैं –

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खनिजों की उपलब्धता

खनिज कहाँ पाए जाते हैं?

सामान्यतः खनिज ‘अयस्कों’ में पाए जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्त्वों के मिश्रण या संचयन हेतु ‘अयस्कशब्द का प्रयोग किया जाता है। खनन का आर्थिक महत्त्व तभी है जब अयस्क में खनिजों का संचयन पर्याप्त मात्रा में हो। खनिजों के खनन की सुविधा इनके निर्माण व संरचना पर निर्भर हैं। खनन सुविधा इसके मूल्य को निर्धारित करती है। अतः हमारे लिए मुख्य शैल समूहों को समझना अत्यंत आवश्यक है जिनमें ये खनिज पाये जाते हैं।

खनिज प्रायः निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं :

(क) ग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं। छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं। ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज जैसे – जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं।

(ख) अनेक खनिज अवसादी ट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं। इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचयन जमाव का परिणाम है। कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह यस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है

(ग) खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(घ) पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः  एेसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।

(ङ) महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं लेकिन इनमें से अधिकांश के व्यापक रूप से विसरित होने के कारण इनकी आर्थिक सार्थकता कम है। फिर भी सामान्य नमक, मैगनीशियम तथा ब्रोमाइन ज्यादातर समुद्री जल से ही प्रग्रहित (derived) होते हैं। महासागरीय तली भी मैंगनीज़ ग्रंथिकाओं(nodules) में धनी हैं।

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ज़रा ध्यान से सोचें व बताएँ – एक खुली खदान (Open pit mine), उत्खनन व एक शैफ्टयुक्त भूमिगत खदान में क्या अंतर है?

भारत अच्छे और विविध प्रकार के खनिज संसाधनों में सौभाग्यशाली है, यद्यपि इनका वितरण असमान है। मोटे तौर पर प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयले, धात्विक खनिज, अभ्रक व अन्य अनेक अधात्विक खनिजों के अधिकांश भंडार संचित हैं। प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी पार्श्वाे पर गुजरात और असम की तलछटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल निक्षेप पाए जाते हैं। प्रायद्वीपीय शैल क्रम के साथ राजस्थान में अनेक अलौह खनिज पाए जाते हैं। उत्तरी भारत के विस्तृत जलोढ़ मैदानआर्थिक महत्त्व के खनिजों से लगभग विहीन है। ये विभिन्नताएँ खनिजों की रचना में अंतरग्रस्त भू-गर्भिक संरचना, प्रक्रियाओं और समय के कारण हैं।

आइए, अब हम भारत में कुछ प्रमुख खनिजों के वितरण का अध्ययन करें। सदैव स्मरण रखें कि अयस्क में खनिज का सांद्रण उत्खनन की सुगमता और बाज़ार की निकटता, किसी संचय (reserve) की आर्थिक जीव्यता (Viability) को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः माँग की पूर्ति के लिए अनेक संभवविकल्पों में से चयन करना पड़ता है। एेसा हो जाने के बाद एक खनिज ‘निक्षेप’ अथवा ‘भंडार’ खदान में परिवर्तित हो जाता है।

लौह खनिज

लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता है।

लौह अयस्क (Iron Ore)

लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगोंमें विशेष रूप से उपयोगी हैं। हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किंतु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है। (इसमें लोहांश 50 से 60 प्रतिशत तक पाया जाता है।)

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चित्र 5.2 – लौह अयस्क उत्पादन में राज्यों का अंश (प्रतिशत में)

स्रोत : खान मंत्रालय वार्षिक रिपोर्ट 2016-17

कन्नड़ भाषा में ‘कुदरे’ शब्द का अर्थ है घोड़ा। कर्नाटक के पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी घोड़े के मुख से मिलती जुलती है। बेलाडिला की पहाड़ियाँ, बैल केडील (hump) से मिलती-जुलती हैं, जिसके कारण इसका यह नाम पड़ा।

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चित्र 5.3 – लौह अयस्क खदान

भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ हैं

ओडिशा-झारखंड पेटी – ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है। इसी से सन्निद्ध झारखंड के सिंहभूम जिले में गुआ तथा नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।

दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी – यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है जिसमें इस गुणवत्ता के लौह के 14 जमाव मिलते हैं। इसमें इस्पात बनाने में आवश्यक सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं। इन खदानों का लौह अयस्क विशाखापट्टनम् पत्तन से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।

बल्लारि-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु-तुमकूरु पेटी – कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की बृहत् राशि संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत् प्रतिशत निर्यात इकाई हैं। कुद्रेमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं। लौह अयस्क कर्दम (Slurry) रूप में पाइपलाइन द्वारामंगलूरु के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।

महाराष्ट्र-गोआ पेटी – यह पेटी गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है तथापि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।

मैंगनीज़

मैंगनीज़ मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है

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चित्र 5.4 – मैंगनीज़ उत्पादन में राज्यों का अंश (प्रतिशत में) - 2016-17
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भारत – महत्त्वपूर्ण खनिजों का वितरण

भारत में उड़ीसा मैंगनीज़ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2000-01 में देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई भाग यहाँ से प्राप्त हुआ।

ज़रा ध्यान से सोचें व बताएँ – भारत में लौह अयस्क, मैंगनीज़, कोयला तथा लोहा इस्पात उद्योग के वितरण वाले मानचित्रों को अध्यारोपित करें। क्या आप इनमें कोई संबंध देखते हैं? स्पष्ट करें।

अलौह खनिज

भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि  उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है। यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों मेें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए! हम ताँबा बॉक्साइट का वितरण समझें।

ताँबा

भारत में ताँबे के भंडार व उत्पादन क्रांतिक रूप से न्यून हैं। घातवर्ध्य (malleable), तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलैक्ट्रोनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है। मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। झारखंड का सिंहभूम जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थी

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चित्र 5.5 – मलंजखंड में ताँबा खदान
बॉक्साइट

यद्यपि अनेक अयस्कों में एल्यूमिनियम पाया जाता है परंतु सबसे अधिक एल्यूमिना क्ले (Clay) जैसे दिखने वाले पदार्थ बॉक्साइट से ही प्राप्त किया जाता है बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सीलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।

एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता(malleability) भी पाई जाती है

भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।

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चित्र 5.6 – बॉक्साइट उत्पादन में राज्यों का अंश (प्रतिशत में) - 2016-17
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चित्र 5.7 – बॉक्साइट खदान

डिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है, (2016-17) यहाँ कोरापुट जिले में पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।

ज़रा ध्यान से सोचें व बताएँ – भारत के भौतिक मानचित्र पर बॉक्साइट की खानें चिह्नित करें।

एल्यूमिनियम की खोज के बाद सम्राट नेपोलियन तृतीय अपने कपड़ों पर एल्यूमिनियम से बने हुक  बटन पहनता था तथा अपने खास मेहमानों को 

एल्यूमिनियम से बने बर्तनों में भोजन कराता, तथा आम मेहमानों को सोने  चाँदी के बर्तनों में भोजन परोसा जाता। इस घटना के ती वर्ष बाद पेरिस 
में भिखारियों के पासएल्यूमिनियम के बर्तन एक आम बात थी।
अधाात्विक खनिज

अभ्रक अभ्रक एक एेसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है। इसका चादरों में विपाटन (split) आसानी से हो सकता है। ये परतें इतनी महीन हो सकती हैं कि इसकी एक हज़ार परतें कुछ सेंटीमीटर ऊँचाई में समाहित हो सकती हैं। अभ्रक पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले अथवा भूरे रंग का हो सकता है।

इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, र्जा ह्रास का निम्न गुणांक, विंसवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों मेंप्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।

अभ्रक के निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाए जाते हैं। बिहार-झारखंड की कोडरमा- गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं। राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस पास हैं। आंध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।

चट्टानी खनिज

चूना पत्थर (Limestone) – चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। यह अधिकांशतःअवसादी चट्टानों में पाया जाता है। चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है। और लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।

ज़रा ध्यान से सोचें व बताएँ – मानचित्र का अध्ययन करें तथा बताएँ कि छोटानागपुर क्षेत्र खनिजों का भंडार क्यों है?

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चित्र 5.8 – चूना पत्थर उत्पादन में राज्यों का अंश (प्रतिशत में) - 2016-17

खनन को घातक उद्योग (Killer Industry) बनने से रोकने के लिए दृढ़ सुरक्षा विनियम और पर्यावरणीय कानूनों का क्रियांवयन अनिवार्य है

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खनिजों का संरक्षण
हम सभी को उद्योग और कृषि की खनिज निक्षेपों और उनसे विनिर्मित पदार्थों पर भारी निर्भरता सुप्रेक्षित है। खनन योग्य निक्षेप की कुल राशि असार्थक अंश है, अर्थात् भू-पर्पटी का एक प्रतिशत। जिन खनिज संसाधनों के निर्माण व सांद्रण में लाखों वर्ष लगे हैं, हम उनका शीघ्रता से उपभोग कर रहे हैं। खनिज निर्माण कीभूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी है कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है। इसीलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरण योग्य हैं। समृद्ध खनिज निक्षेप हमारे देश की अत्यधिक मूल्यवान संपत्ति हैं, लेकिन ये अल्पजीवी हैं। अयस्कों के सतत् उत्खनन से लागत बढ़ती है क्योंकि खनिजों के उत्खनन की गहराई बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता घटती जाती है।

आपने खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत् पोषणीय ढंग से प्रयोग करने के लिए एक तालमेल युक्त प्रयास करना होगा। निम्न कोटि के अयस्कों का 

कमलागतों पर प्रयोग करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों का सतत् विकास करते रहना होगा। धातुओं का पुनः चक्रण, रद्दी धातुओं का प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापनों का उपयोग भविष्य में हमारे खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय हैं।

ज़रा ध्यान से सोचें व बताएँ – उन पदार्थों की सूची बनाएँ जहाँ खनिजों की अपेक्षा उनके प्रतिस्थापनों का प्रयोग हो रहा है। ये प्रतिस्थापन क्या हैं और कहाँ से प्राप्त होते हैं?

ऊर्जा संसाधन

ऊर्जा सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक हैं। खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है। ऊर्जा संसाधनों को परंपरागत तथा गैर-परंपरागत साधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है। परंपरागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (दोनाें जल विद्युत व ताप विद्युत) सम्मिलित हैं। गैर-परंपरागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किये जाते हैं। ग्रामीण भारत में लकड़ी व उपले बहुतायत में प्रयोग किये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण घरों में आवश्यक ऊर्जा का 70 प्रतिशत से अधिक इन दो साधनों से प्राप्त होता है; लेकिन अब घटते वन क्षेत्र के कारण इनका उपयोग करते रहना कठिन होता जा रहा है। इसके अतिरिक्त उपलों का उपभोग भी हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि इससे सर्वाधिक मूल्यवान खाद्य का उपभोग होता हैं जिसे कृषि में प्रयोग किया जा सकता है।

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत

कोयला  भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत अपनी वााणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है।

जैसा कि आप पहले से ही जानते हैं कि कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है। इसीलिए संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है। दलदलों में क्षय होते पादपों से पीट उत्पन्न होता है, जिसमें कम कार्बन, नमी की उच्च मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है। लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं। गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है। एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।

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चित्र 5.10 (अ) – कोयला खदान का आंतरिक दृश्य
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भारत – परंपरागत ऊर्जा स्रोत
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चित्र 5.10 (ब) – कोयला खदान का बाह्य दृश्य
भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है – एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं। गोंडवाना कोयले, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।

टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों – मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है। 

यह स्मरण रहे कि कोयला स्थूल पदार्थ है  जिसका प्रयोग करने पर भार घटता है  क्योंकि यह राख में परिवर्तित हो जाता है। 

इसी कारण भारी उद्योग तथा तापविद्युत गृह कोयला क्षेत्रों अथवा उनके निकट ही स्थापित किये जाते हैं।

पेट्रोलियम

भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है। तेल शोधन शालाएँ - संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।

भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है। तेल धारक परत संरध्र चूना पत्थर या बालुपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को ऊपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं।

पेट्रोलियम संरध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।

भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं। भारत के मानचित्र में तीन प्रमुख अपतटीय तेल क्षेत्र चिह्नित करें। अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्राकृतिक गैस

प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ अथवा अलग भी पाई जाती है। इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।

कार्बनडाई-अॉक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है।

कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं। पश्चिमी तट के साथ मुम्बई हाई और सन्निध क्षेत्रों को खंभात की खाड़ी में पाए जाने वाले तेल क्षेत्र संपूरित करते हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।

1700 किलोमीटर लंबी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) गैस पाइपलाइन मुम्बई हाई और बसीन (Bassien) को पश्चिमी व उत्तरी भारत के उर्वरक, विद्युतव अन्य औद्योगिक क्षेत्रों से जोड़ती है। इस धमनी से भारत के गैस उत्पादन को संवेग मिला है। ऊर्जा व उर्वरक उद्योग प्राकृतिक गैस के प्रमुख प्रयोक्ता हैं। गाड़ियों में तरल ईंधन का संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) से प्रतिस्थापन देश में लोकप्रिय हो रहा है।

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विद्युत

आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने ज्यादा विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है। विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है  (प्रवाही जल से जो हाइड्रो-टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है; (ख) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम  प्राकृतिक गैस कोजलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है। एक बार उत्पन्न हो जाने के बाद विद्युत एक जैसी ही होती है।

कुछ नदी घाटी परियोजनाओं के नाम बताएँ तथा इन नदियों पर बने बाँधों का नाम लिखिए।

तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। भारत में अनेक बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं; जैसे - भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।

ताप विद्युत-कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।

अपने राज्य के ताप विद्युत गृह की जानकारी एकत्र कीजिए तथा उसमें प्रयुक्त ईंधन का नाम भी लिखिए।

गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधन

ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्मी ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है। गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमी ने भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंधनों का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है। अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसे – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत ज़रूरत है। ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं

भारत धूप, जल तथा जीवभार साधनों में समृद्ध है। भारत में नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु बृहत् कार्यक्रम भी बनाए गए हैं।

परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा

परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब एेसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है; और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। यूरेनियम और थोरियम जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।

भारत के मानचित्र पर 6 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की अवस्थिति दिखाएँ तथा उनके राज्यों के नाम ज्ञात करें जिनमें ये अवस्थित हैं।

सौर-ऊर्जा
भारत एक उष्ण-कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए जा रहे हैं। एेसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा। फलस्वरूप यह पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की पर्याप्त आपूर्ति होगी।
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चित्र 5.11 – सौर ऊर्जा संचालित इलेक्ट्रॉनिक दुग्ध परीक्षण उपकरण
भारत में नए स्थापित सौर ऊर्जा संयंत्रों के बारे में जानकारी एकत्र करें।
पवन ऊर्जा

भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ हैं। भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।

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चित्र 5.12 – पवन चक्की-नागरकोइल
बायोगैस

ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। बायोगैस संयत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में ‘गोबर गैस प्लांट’ के नाम से जाने जाते हैं। ये किसानों को दो प्रकार से लाभांवित करते हैं– एक ऊर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में। बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है। यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।

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चित्र 5.13 – बायोगैस संयंत्र
ज्वारीय ऊर्जा

महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर, बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।

भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल मेें सुंदर वन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।

भू-तापीय ऊर्जा

पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा हैं  भूतापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है कहते  क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है। जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक है होती  वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाताहै। एेसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है।यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप मेंपरिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और 

विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

भारत में सैंकड़ों गर्म पानी के चश्मे हैं, जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भू तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए  भारत में दो प्रायोगिकपरियोजनाएँ शुरू की  हैं।  एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा दूसरी लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।

ऊर्जा संसाधनों का सरंक्षण

आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर - कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् क्रियांवित आर्थिक विकास की योजनाओं को चालू रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता थी। फलस्वरूप पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

इस पृष्ठभूमि में ऊर्जा के विकास के सतत् पोषणीय मार्ग के विकसित करने की तुरंत आवश्यकता है। ऊर्जा संरक्षण की प्रोन्नति और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग सतत् पोषणीय ऊर्जा के दो आधार हैं।

वर्तमान में भारत विश्व के अल्पतम ऊर्जादक्ष देशों में गिना जाता है। हमें ऊर्जा के सीमित संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग के लिए सावधानीपूर्ण उपागम अपनाना होगा। उदाहरणार्थ एक जागरूक नागरिक के रूप में हम यातायात के लिए निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक वाहन का उपयोग करके, जब प्रयोग न हो रही हो तो बिजली बन्द करके विद्युत बचत करने वाले उपकरणों के प्रयोग से तथा गैर पारंपरिक ऊर्जा साधनों के प्रयोग से हम अपना छोटा योगदान दे सकते हैं। आखिरकार‘ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा उत्पादन है।’


अभ्यास 

1.बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अपक्षयित पदार्थ के अवशिष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से बनता है?

(क) कोयला (ख) बॉक्साइट (ग) सोना (घ) जस्ता

(ii) झारखंड में स्थित कोडरमा निम्नलिखित से किस खनिज का अग्रणी उत्पादक है?

(क) बॉक्साइट (ख) अभ्रक (ग) लौह अयस्क (घ) ताँबा

(iii) निम्नलिखित चट्टानों में से किस चट्टान के स्तरों में खनिजों का निक्षेपण और संचयन होता है?

(क) तलछटी चट्टानें (ग) आग्नेय चट्टानें

(ख) कायांतरित चट्टानें (घ) इनमें से कोई नहीं

(iv) मोनाजाइट रेत में निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज पाया जाता है?

(क) खनिज तेल (ख) यूरेनियम (ग) थोरियम (घ) कोयला


2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।

(i)निम्नलिखित में अंतर 30 शब्दों से अधिक न दें।

(क) लौह और अलौह खनिज (ख) परंपरागत तथा गैर परंपरागत ऊर्जा साधन

(ii) खनिज क्या हैं?

(iii) आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण कैसे होता है?

(iv) हमें खनिजों के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है?


3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।

(i) भारत में कोयले के वितरण का वर्णन कीजिए।

(ii) भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्जवल है। क्यों?

क्रियाकलाप

नीचे दी गई वर्ग पहेली में उपयुक्त खनिजों का नाम भरें –

नोट : पहेली के उत्तर अंग्रेज़ी के शब्दों में हैं।

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