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शिक्षक के लिए निर्देश
अध्याय 5– उपभोक्ता अधिकार
यह अध्याय हमारे देश में बाज़ार की कार्यविधि के संदर्भ में उपभोक्ता अधिकारों के मुद्दे पर विचार करता है। बाज़ार में असमान स्थितियों के बहुत से पहलू हैं तथा नियमों और कानूनों को लागू करने की स्थिति असंतोषप्रद है। इसलिए, नये उपभोक्ताओं को वास्तविकता से परिचित कराने और उपभोक्ता आंदोलन में भाग लेने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है (नये उपभोक्ताओं को उपभोक्ता के रूप में सावधान और जानकार नागरिक बनना है)। यह अध्याय कुछ घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे वास्तविक जीवन में कुछ उपभोक्ता शोषण का शिकार हुए थे और कैसे वैध संस्थाओं ने उनके उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा की हैं और क्षतिपूर्ति प्राप्त करने में उन्हें सहायता प्रदान की। इन घटनाओं का विवरण छात्रों को उनके जीवन अनुभवों को आसपास की घटनाओं से जोड़ने में समर्थ बनाएगा। हमें छात्रों को इस योग्य बनाना है कि वे समझदार उपभोक्ता के रूप में जागरूक होकर उपभोक्ता आंदोलन को नयी दिशा दें और अपने लंबे संघर्षों द्वारा लोगों की सक्रिय भागीदारी बढ़ाएँ। यह अध्याय कुछ एेसे संगठनों के बारे में भी जानकारी देता है, जो विभिन्न प्रकार से उपभोक्ताओं की मदद करते हैं। अध्याय के अंत में भारत में उपभोक्ता आंदोलन के कुछ गंभीर मुद्दों को बताया गया है।
शिक्षण के तरीके/सूचना के स्रोत
इस अध्याय में प्रश्नों, संदर्भ अध्ययनों और गतिविधियों को शामिल किया गया है। इन मुद्दों पर छात्रों का समूहों में विचार-विमर्श करना बेहतर होगा। इनमें से कुछ का उत्तर व्यक्तिगत रूप से लिख कर दिया जा सकता है।
आप प्रत्येक क्रियाकलाप का आरंभ उस पर एक गहन परिचर्चा-सत्र के साथ कर सकते हैं। साथ ही, इस अध्याय में आपकी भूमिका निर्धारित करने के लिए अनेक संभावनाएँ हैं, जो मुद्दों को गहराई से समझने और अपने अनुभवों को लोगों में बाँटने का बेहतर तरीका हो सकती हैं। सम्मिलित रूप से इश्तहार बनाना इन मुद्दों पर विचार करने का दूसरा तरीका है। इस अध्याय में कई गतिविधियों को रखा गया है, जिनको पूरा करने के लिए विभिन्न संस्थाओं से संपर्क करने की आवश्यकता पड़ेगी। यात्राओं की ज़रूरत पड़ेगी। ये संस्थाएँ उपभोक्ता संरक्षण परिषदें, उपभोक्ता संस्थाएँ, उपभोक्ता अदालतों, खुदरा दुकानें, बाज़ारों आदि की हो सकती हैं। छात्रों के अधिकाधिक अनुभवों को प्राप्त करने के लिए संपर्कों का आयोजन करें। संपर्कों के उद्देश्यों के बारे में उनसे परिचर्चा करें, काम शुरू करने से पहले की सावधानी, अन्य ज़रूरी चीज़ें और कार्य (रिपोर्ट, प्रस्ताव, नियमावली, सामान आदि) जो उन्हें यात्रा के बाद प्राप्त होंगी, उन पर चर्चा करें। इस अध्याय में छात्र पत्र लेखन और वार्तालाप में हिस्सा ले सकते हैं। हमें इस अध्याय के अभ्यासों की भाषा के प्रति संवेदनात्मक होना पड़ेगा।
इस अध्याय में प्रामाणिक वेबसाइटों, पुस्तकों, समाचार -पत्रों और पत्रिकाओं से सामग्री संकलित की गई है। उदाहरण के लिए, http://consumeraffairs.nic.in केंद्रीय सरकार की उपभोक्ता मामले, भोजन एवं सार्वजनिक वितरण के मंत्रालय की वेबसाइट है। दूसरी वेबसाइट www.cuts-international.org जो भारत में तीस वर्षों से अधिक समय से काम कर रही उपभोक्ता संगठन की वेबसाइट है। यह भारत में उपभोक्ता को जागरूक बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री प्रकाशित करती है। इसे छात्रों के बीच साझेदारी की आवश्यकता है ताकि वे भी अपने कार्यकलापों में हिस्से के रूप में संकलित कर सकें। इसलिए, वे कार्यकलापों से प्राप्त सामग्री को भी इकट्ठा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, विभिन्न घटनाओं की जानकारी समाचार-पत्रों के अंशों और उपभोक्ता अदालतों में संघर्ष कर रहे उपभोक्ताओं से ली जा सकती है। छात्र उपभोक्ता संरक्षण परिषदों, उपभोक्ता अदालतों और इंटरनेट जैसे विभिन्न स्रोतों से सामग्री को संकलित करें और पढ़ें।
अध्याय 5
उपभोक्ता अधिकार
उपरोक्त संग्रह उपभोक्ता न्यायालय के निर्णयों के कुछ समाचारों के नमूने हैं। इन मामलों में लोग उपभोक्ता अदालत में क्यों गये? ये निर्णय इस लिए दिये गये क्योंकि कुछ लोग न्याय पाने के लिए दृढ़ एवं संघर्षरत रहे। किस तरह वे न्याय को पाने के लिए तरसते रहे? इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि जब उन्हें लगा कि उनके साथ गलत हुआ है, तो विक्रेताओें से यथोचित व्यवहार प्राप्त करने के लिए वे अपने उपभोक्ता अधिकार का प्रयोग कैसे कर सकते हैं?
बाज़ार में उपभोक्ता
बाज़ार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है। वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में, हम पहले वर्णित कृषि, उद्योग या सेवा जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हो सकते हैं। उपभोक्ताओं की भागीदारी बाज़ार में तब होती है, जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं। उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा उपभोग किए जानेवाली ये अंतिम वस्तुएँ होती हैं।
पिछले अध्यायों में हमने विकास को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी नियमों और नियंत्रणों या इसके लिए उठाये गए कदमों की आवश्यकता का वर्णन किया है। इनका महत्त्व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सुरक्षा के लिए उसी तरह हो सकता है, जिस तरह साहूकारों द्वारा लगाए जाने वाले उच्च ब्याज दर से लोगों को बचाने के लिए नियमों और नियंत्रणों की जरूरत होती है। इसी प्रकार से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए नियमों एवं विनियमों की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए, अनौपचारिक क्षेत्रों के साहूकार जिनके बारे में आप पहले के अध्याय 3 में पढ़ चुके हैं, कर्जदार पर बंधन डालने के लिए तरह-तरह के दाँव-पेच अपनाते हैं। सामयिक ऋण के कारण वे उत्पादक को उत्पाद निम्न दर पर बेचने के लिए मजबूर कर सकते हैं। वे स्वप्ना जैसी महिला को ऋण चुकाने के लिए अपनी जमीन बेचने को विवश कर सकते हैं। इसी प्रकार, असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले बहुत से लोगों को निम्न वेतन पर कार्य करना पड़ता है और उन परिस्थितियों को झेलना पड़ता है, जो न्यायोचित नहीं होती हैं और प्रायः उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होती हैं। एेसे शोषण को रोकने के लिए और उनकी सुरक्षा हेतु हमने नियमों एवं विनियमों की बात की है। एेसी कई संस्थाएँ हैं जिन्होनें यह सुनिश्चित करने के लिए लम्बा संघर्ष किया है कि इन नियमों का अनुपालन हो।
बाज़ार में भी उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियम एवं विनियमों की आवश्यकता होती है, क्योंकि अकेला उपभोक्ता प्रायः स्वयं को कमजोर स्थिति में पाता है। खरीदी गयी वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है, तो विक्रेता सारा उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। सामान्यतः उनकी प्रतिक्रिया होती हैः "आपने जो खरीदा है अगर वह पसंद नहीं है तो कहीं और जाइए।" मानो, बिक्री हो जाने के बाद विक्रेता की कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाती। उपभोक्ता आंदोलन, जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे, इस स्थिति को बदलने का एक प्रयास है।
बाज़ार में शोषण कई रूपों में होता है। उदाहरणार्थ, कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, जैसे दुकानदार उचित वजन से कम वजन तौलते हैं या व्यापारी उन शुल्कों को जोड़ देते हैं, जिनका वर्णन पहले न किया गया हो या मिलावटी/दोषपूर्ण वस्तुएँ बेची जाती हैं।
जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और उपभोक्ता कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाज़ार उचित तरीके से कार्य नहीं करता है। विशेष रूप से यह स्थिति तब होती है, जब इन वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कंपनियाँ कर रही हों। अधिक पूँजीवाली, शक्तिशाली और समृद्ध कंपनियाँ विभिन्न प्रकार से चालाकीपूर्वक बाजार को प्रभावित कर सकती हैं। उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए वे समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूचना देते हैं। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ने यह दावा करते हुए कि माता के दूध से हमारा उत्पाद बेहतर है, सर्वाधिक वैज्ञानिक उत्पाद के रूप में शिशुओं के लिए दूध का पाउडर पूरे विश्व में कई वर्षों तक बेचा। कई वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद कंपनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि वह झूठे दावे करती आ रही थी। इसी तरह, सिगरेट उत्पादक कंपनियों से यह बात मनवाने के लिए कि उनका उत्पाद कैंसर का कारण हो सकता है, न्यायालय में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। अतः उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियम और विनियमों की आवश्यकता है।
आओ-इन पर विचार करें
1. वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा बाज़ार में लोगों का शोषण हो सकता है?
2. अपने अनुभव से एक एेसे उदाहरण पर विचार करें, जहाँ आपको यह लगा हो कि बाज़ार में ‘धोखा’ दिया जा रहा था। कक्षा में चर्चा करें।
3. आपकी राय में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए सरकार की क्या भूमिका होनी चाहिए?
उपभोक्ता आंदोलन
उपभोक्ता आंदोलन का प्रारंभ उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुआ, क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में शामिल होते थे। बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक, जब एक उपभोक्ता एक विशेष ब्रांड उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यतः वह उस ब्रांड उत्पाद को खरीदना बंद कर देता था या उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था। यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते वक्त वह सावधानी बरते। संस्थाओं को लोगों में जागरुकता लाने में, भारत और पूरे विश्व में कई वर्ष लग गए। इसने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दिया।
भारत में ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगीं थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नज़र रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया। हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
उपभोक्ता इंटरनेशनल
1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के दिशा–निर्देशों को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रों के लिए और एेसा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु ‘उपभोक्ता की वकालत करने वाले समूह’ के लिए, एक हथियार था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आंदोलन का आधार बना। आज उपभोक्ता इंटरनेशनल 115 से भी अधिक देशों के 220 संस्थाओं का एक संरक्षक संस्था बन गया है।
इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून का बनना था, जो COPRA के नाम से प्रसिद्ध है। आप COPRA के बारे में आगे पढ़ेंगे।
आओ-इन पर विचार करें
1. उपभोक्ता दलों द्वारा कौन-कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
2. नियम एवं कानून होने के बावजूद उनका अनुपालन नहीं होता है। क्यों? विचार-विमर्श करें।
उपभोक्ता अधिकार
सुरक्षा सबका अधिकार है
रेजी का कष्ट
रेजी मेथ्यू, कक्षा 9 का एक स्वस्थ लड़का, केरल के एक निजी चिकित्सालय में टॉन्सिल निकलवाने के लिए भर्ती हुआ। एक ई.एन.टी. सर्जन ने सामान्य बेहोशी की दवा देकर टॉन्सिल निकालने के लिए अॉपरेशन किया। अनुचित बेहोशी के कारण रेजी में दिमागी असामान्यता के लक्षण आ गए, जिसकी वजह से वह जीवन भर के लिए अपंग हो गया।
उसके पिता ने सेवा में चिकित्सा की गलती और लापरवाही के लिए राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण समिति में 5,00,000 के मुआवजे का दावा किया। राज्य समिति ने यह कह कर मामला खारिज कर दिया कि सबूत पर्याप्त नहीं है। रेजी के पिता ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण समिति में पुनः अपील की। मामले की जाँच करने के बाद राष्ट्रीय समिति ने अस्पताल को चिकित्सा में लापरवाही का दोषी पाया और हर्जाना देने का निर्देश दिया।
रेजी की व्यथा यह साबित करती है कि कैसे एक अस्पताल में चिकित्सकों और कर्मचारियों द्वारा बेहोश करने में लापरवाही के कारण एक छात्र जिन्दगी भर के लिए अपंग हो जाता है। जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाज़ारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है, क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों का पालन करें। एेसी बहुत सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, प्रेशर कूकर में एक सेफ्टी वॉल्व होता है, जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण हो सकता है। सेफ्टी वॉल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए। आपको सार्वजनिक या सरकारी कार्यवाहियों को देखकर यह सुनिश्चित करना होगा कि गुणवत्ता का पालन किया गया है या नहीं? फिर भी हमें बाजार में निम्न गुणवत्तावाले उत्पाद प्राप्त होते हैं, क्योंकि इन नियमों का पर्यवेक्षण उचित रूप से नहीं हो रहा है और उपभोक्ता आंदोलन भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है।
आओ-इन पर विचार करें
1. निम्नलिखित उत्पादों/सेवाओं (आप सूची में नया नाम जोड़ सकते हैं) पर चर्चा करें कि इनमें उत्पादकों द्वारा किन सुरक्षा नियमों का पालन करना चाहिए?
(क) एल.पी.जी. सिलिंडर (ख) सिनेमा थिएटर (ग) सर्कस (घ) दवाइयाँ (च ) खाद्य तेल (छ) विवाह पंडाल (ज) एक बहुमंजिली इमारत
2. आपने आसपास के लोगों के साथ हुई किसी दुर्घटना या लापरवाही की किसी घटना का पता कीजिए, जहाँ आपको लगता हो कि उसका जिम्मेदार उत्पादक है। इस पर विचार-विमर्श करें।
वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जानकारी
जब आप कोई वस्तु खरीदेंगे तो उसके पैकेट पर कुछ खास जानकारियाँ पाएँगे। ये जानकारियाँ उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, बैच संख्या, निर्माण की तारीख, खराब होने की अंतिम तिथि और वस्तु बनाने वाले के पते के बारे में होती है। जब हम कोई दवा खरीदते हैं तो उस दवा के ‘उचित प्रयोग के बारे में निर्देश’ और उस दवा के प्रयोग के अन्य प्रभावों और खतरों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जब आप वस्त्र खरीदेंगे तो ‘धुलाई संबंधी निर्देश’ प्राप्त करेंगे।
आखिर एेसे नियम क्यों बनाये गए हैं कि वस्तु बनाने वाले को ये जानकारियाँ देनी पड़ती हैं? यह इसलिए कि उपभोक्ता जिन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है, उसके बारे में उसे सूचना पाने का अधिकार है। तब उपभोक्ता वस्तु की किसी भी प्रकार की खराबी होने पर शिकायत कर सकता है, मुआवजे पाने या वस्तु बदलने की माँग कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हम एक उत्पाद खरीदते हैं और उसके खराब होने की अन्तिम तिथि के पहले ही वह खराब हो जाता है, तो हम उसे बदलने के बारे में कह सकते हैं। यदि वस्तु खराब होने की अन्तिम समय-सीमा उस पर नहीं छपी है, तब विनिर्माता दुकानदार पर आरोप लगा देगा और अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेगा। यदि लोग अंतिम तिथि समाप्त हो गई दवाओं को बेचते हैं, तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। इसी तरह से यदि, कोई व्यक्ति मुद्रित मूल्य से अधिक मूल्य पर वस्तु बेचता है तो कोई भी उसका विरोध और शिकायत कर सकता है। यह अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) के द्वारा इंगित किया हुआ होता है। वस्तुतः उपभोक्ता, विक्रेता से अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से कम दाम पर वस्तु देने के लिए मोल-भाव कर सकते हैं।
आज सरकार प्रदत्त विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए सूचना पाने के अधिकार को बढ़ा दिया गया है। सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो RTI (राइट टू इनफॅारमेशन) या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है और जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
आर.टी.आई. एक्ट के प्रभाव को निम्नलिखित केसों के द्वारा समझा जा सकता है-
इंतज़ार ...
अमृता नाम की एक इंजीनियरिंग स्नातक ने नौकरी पाने के लिए अपने सभी प्रमाणपत्रों को जमा करने तथा इंटरव्यू देने के बाद भी एक सरकारी विभाग में कोई रिजल्ट नहीं प्राप्त किया। कर्मचारियों ने भी उसके प्रश्नों का उत्तर देने से इनकार कर दिया। तब उसने एक्ट का प्रयोग करते हुए एक प्रार्थना -पत्र दिया और यह कहा कि एक उचित समय तक परिणाम की जानकारी पाना उसका अधिकार था, जिससे कि वह अपने भविष्य की योजना बना सके। उसको न केवल रिजल्ट की घोषणा में देरी के कारणों के बारे में सूचित किया गया बल्कि उसको नियुक्ति के लिए बुलावे का पत्र मिल गया क्योंकि उसने इंटरव्यू अच्छा दिया था।।
आओ-इन पर विचार करें
1. "जब हम वस्तुएँ खरीदते हैं तो पाते हैं कि कभी-कभी पैकेट पर छपे मूल्य से अधिक या कम मूल्य लिया जाता है।" इसके संभावित कारणों पर बात करें। क्या उपभोक्ता समूह इस मामले में कुछ कर सकते हैं? चर्चा करें।
2. कुछ डिब्बाबंद वस्तुओं के पैकेट को लें, जिन्हें आप खरीदना चाहते हैं और उन पर दी गई जानकारियों का परीक्षण करें। देखें, कि वे किस प्रकार उपयोगी हैं। क्या आप सोचते हैं कि उन डिब्बाबंद वस्तुओं पर कुछ एेसी जानकारियाँ दी जानी चाहिए, जो उन पर नहीं हैं? चर्चा करें।
3. लोग नागरिकों की समस्याओं जैसे- खराब सड़कों या दूषित पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में शिकायतें करते हैं, लेकिन कोई नहीं सुनता। अब RTI कानून आपको प्रश्न पूछने का अधिकार देता है। क्या आप इससे सहमत हैं? विचार कीजिये?
चयन के अधिकार का उल्लंघन
पैसे लौटाए गए
अंसारी नगर के अबिरामी नामक एक छात्रा ने दिल्ली में व्यावसायिक पाठ्यक्रम में पढ़ने के लिए एक क्षेत्रीय कोचिंग संस्थान के दो वर्षीय पाठ्यक्रम में नामांकन कराया। पाठ्यक्रम में भाग लेने के समय, पूरे दो वर्ष के अध्ययन के लिए करीब 61,020 रुपये जमा किए। लेकिन उसने यह पाया कि पढ़ाई का स्तर वहाँ ठीक नहीं है, इसीलिए उसने साल के अंत में पाठ्यक्रम को छोड़ देने का निश्चय किया। जब उसने एक साल का पैसा लौटाने की बात की, तो उसे मना कर दिया गया।
जब उसने जिला उपभोक्ता न्यायालय में मुकदमा दायर किया, तो न्यायालय ने संस्था को यह कहते हुए 28,000 रुपया लौटाने का आदेश दिया कि छात्रा को चुनने का अधिकार है। संस्थान ने पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। राज्य उपभोक्ता आयोग ने जिला न्यायालय के निर्देश को सुरक्षित रखते हुए आगे संस्थान को बेकार की अपील करने के लिए 25,000 का दंड लगाया। उसने संस्थान को 7,000 रूपये मुआवजे और याचिका खर्च के रूप में छात्रा को देने के लिए कहा।
राज्य आयोग ने सभी शिक्षा संस्थानों और व्यावसायिक संस्थाओं को विद्यार्थियों से पूरे साल की फीस को एडवांस में लेने से भी मना किया। आयोग के अनुसार, इस आदेश का उलंघन करने पर दंड शुल्क भरना पड़ सकता है साथ ही जेल भी हो सकती है।
हम इस घटना से क्या समझते हैं? किसी भी उपभोक्ता को जो कि किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी भी आयु या लिंग का हो और किसी भी तरह की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चुनने का अधिकार होगा। मान लीजिए, आप एक दंतमंजन खरीदना चाहते हैं और दुकानदार कहता है कि वह केवल दंतमंजन तभी बेचेगा, जब आप दंतमंजन के साथ एक ब्रश भी खरीदेंगे। अगर आप ब्रश खरीदने के इच्छुक नहीं हैं, तब आपके चुनने के अधिकार का उलंघन हुआ है। ठीक इसी तरह, कभी-कभी जब आप नया गैस कनेक्शन लेते हैं तो गैस डीलर उसके साथ एक चूल्हा भी लेने के लिए दबाव डालता है। इस प्रकार कई बार हमें उन वस्तुओं को खरीदने के लिए भी दबाव डाला जाता है, जिनको खरीदने की हमारी इच्छा बिलकुल नहीं होती और तब आपके पास चुनाव के लिए कोई विकल्प नहीं होता।
आओ-इन पर विचार करें
यहाँ कुछ एेसी वस्तुओं के लुभाने वाले विज्ञापन दिए गए हैं, जिन्हें हम बाजार से खरीदते हैं। इनमें वास्तव में क्या कोई एेसा विज्ञापन है, जो सचमुच में उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाता हो? इस पर विचार विमर्श कीजिए।
• प्रत्येक 500 ग्राम के पैक पर 15 ग्राम की अतिरिक्त छूट।
• अखबार के ग्राहक बनें, साल के अंत में उपहार पायें।
• खुरचिये और 10 लाख तक का इनाम जीतिए।
• 500 ग्राम ग्लूकोज डिब्बे के भीतर एक दूध का चाकलेट।
• पैकेट के भीतर एक सोने का सिक्का।
• 2000 रुपये तक का जूता खरीदें और 500 रुपये तक का एक जोड़ी जूता मुफ्त पाएँ।
इन उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए?
रेजी मैथ्यू और अबिरामी के प्रकरणों को पुनः पढ़ेें, जो पिछले अध्यायों में दिया जा चुका है।
ये कुछ उदाहरण हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के अधिकारों की अवहेलना की गई है। एेसी घटनाएँ अक्सर हमारे देश में घटित होती रहती हैं। इस स्थिति में, इन उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए?
उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है। यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है, तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूरा करने के लिए एक आसान और प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।
उपभोक्ता, उपयुक्त उपभोक्ता केन्द्र के सम्मुख अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है, स्वयं किसी वकील के साथ अथवा वकील की सेवा के बिना।
आप यह जानने के लिए इच्छुक होंगे कि कैसे एक पीड़ित व्यक्ति अपनी क्षतिपूर्ति प्राप्त करता है। अब हम श्री प्रकाश के मामले को लेते हैं। इन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए अपने गाँव एक मनीअॉडर भेजा। उनकी बेटी को जब इन पैसों की ज़रूरत थी, तब पैसे नहीं प्राप्त हुए। यहाँ तक कि महीनों बाद भी नहीं पहुँचे। प्रकाश ने नयी दिल्ली के एक जिला स्तर के उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज किया। उन्होंने जो कदम उठाए, वे सभी विस्तार से नीचे दिए जा रहे हैं।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल की है, जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के नाम से जाना जाता है। ये उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराएँ। बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष (उपभोक्ता) का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। ये स्वयंसेवी संगठन जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं।
यदि आप एक आवासीय कॉलोनी में रहते हैं तो आपने ‘निवासी कल्याण संघ’ का नामपट्ट्ट अवश्य देखा होगा। यदि उनके किसी सदस्य के साथ कोई अनुचित व्यावसायिक कार्रवाई होती है, तो उनकी तरफ से संस्था मामले को देखती है।
कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है। जिला स्तर का न्यायालय जिसे जिला केन्द्र भी कहते हैं। 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय अदालत जिसे राज्य आयोग कहते हैं। 20 लाख से एक करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालत राष्ट्रीय आयोग, 1 करोड़ से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं। यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है, तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।
इस प्रकार, अधिनियम ने उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार देकर हमें समर्थ बनाया है।
निम्नलिखित को सही क्रम में रखें–
(क) अरिता जिला उपभोक्ता अदालत में एक मुकदमा दायर करती है।
(ख) वह शिकायत के लिए पेशेवर व्यक्ति से मिलती है।
(ग) वह महसूस करती है कि दुकानदार ने उसे दोषयुक्त सामग्री दी है।
(घ) वह अदालती कार्यवाहियों में भाग लेना शुरू कर देती है।
(ड.) वह शाखा कार्यालय जाती है और डीलर के विरुद्ध शिकायत दर्ज करती है, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(च) अदालत के समक्ष पहले उससे बिल और वारंटी प्रस्तुत करने को कहा गया।
(छ) वह एक खुदरा विक्रेता से दीवाल घड़ी खरीदती है।
(ज) कुछ ही महीनों के भीतर, न्यायालय ने खुदरा विक्रेता को आदेश दिया कि उसकी पुरानी दीवाल घड़ी की जगह बिना कोई अतिरिक्त मूल्य लिए उसे एक नयी घड़ी दी जाए।
जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए आवश्यक बातें
जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते वक्त, उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत हाेंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ चुनाव करने में सक्षम होंगे। एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत कैसे हों? निम्नलिखित पृष्ठ और पहले के पृष्ठों के विज्ञापनों को देखें। आप क्या सोचते हैं?
कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केंद्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है। आप जो विज्ञापन देख चुके हैं, वह एक उदाहरण है, जिसके द्वारा सरकार कानूनी प्रक्रिया के बारे में नागरिकों को अवगत कराती है, जिसका वे प्रयोग कर सकें। आपने टेलीविजन चैनलों पर भी एेसे विज्ञापन देखे होंगे।
आई.एस.आई और एगमार्क
विभिन्न वस्तुएँ खरीदते समय आपनेे आवरण पर लिखे अक्षरों-
आई.एस.आई, एगमार्क या हॉलमार्क के शब्दचिन्ह (लोगो) को अवश्य देखा होगा। जब उपभोक्ता कोई वस्तु या सेवाएँ खरीदता है, तो ये शब्दचिह्न (लोगो) और प्रमाणक चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कराने में मदद करते हैं। एेसे संगठन जो कि अनुवीक्षण तथा प्रमाणपत्रों को जारी करते हैं, उत्पादकों को उनके द्वारा श्रेष्ठ गुणवत्ता पालन करने की स्थिति में शब्दचिह्न (लोगो को) प्रयोग करने की अनुमति देते हैं।
यद्यपि ये संगठन बहुत से उत्पादों के लिए गुणवत्ता का मानदंड विकसित करते हैं, लेकिन सभी उत्पादकों का इन मानदण्डों का पालन करना जरूरी नहीं होता। फिर भी, कुछ उत्पाद जो उपभोक्ता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, जैसे कि, एल.पी.जी. सिलिंडर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेंट, बोतलबंद पेयजल आदि। इनके उत्पादन के लिए यह अनिवार्य होता है कि उत्पादक इन संगठनों से प्रमाण प्राप्त करें।
आओ-इन पर विचार करें
1. इस अध्याय के पोस्टरों के कार्टूनों को देखें – एक उपभोक्ता के दृष्टिकोण से किसी वस्तु विशेष
की उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करें। इसके लिए एक पोस्टर बनाएँ।
2. अपने क्षेत्र के निकटतम उपभोक्ता अदालत का पता करें।
3. उपभोक्ता संरक्षण परिषद् एवं उपभोक्ता अदालत में क्या अंतर है।
4. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 एक उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है–
(क) चयन का अधिकार (घ) प्रतिनिधित्व का अधिकार
(ख) सूचना का अधिकार (च) सुरक्षा का अधिकार
(ग) निवारण का अधिकार (छ) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
निम्नलिखित मामलों को उनके सामने दिए गए खानों में अलग शीर्षक और चिह्न के साथ श्रेणीबद्ध करें-
(क) लता को एक नये खरीदे गए आयरन-प्रेस से विद्युत का झटका लगा। उसने तुरन्त दुकानदार से शिकायत की। ( )
(ख) जॉन विगत कुछ महीनों से एम.टी.एन.एल. / बी.एस.एन.एल. / टाटा इंडीकॉम द्वारा दी गई सेवाओं से असंतुष्ट है। उसने जिला स्तरीय उपभोक्ता फोरम में मुकदमा दर्ज किया। ( )
(ग) तुम्हारे मित्र ने एक दवा खरीदी, जो समाप्ति तारीख (एक्सपायरी डेट) पार कर चुकी है और तुम उसे शिकायत दर्ज करने की सलाह दे रहे हो। ( )
(घ) इकबाल कोई भी सामग्री खरीदने से पहले उसके आवरण पर दी गई सारी जानकारियों की जाँच करता है। ( )
(च) आप अपने क्षेत्र के केबल अॉपरेटर द्वारा दी जाने वाली सेवाओं से असंतुष्ट हैं, लेकिन आपके पास कोई विकल्प नहीं है। ( )
(छ) आपने ये महसूस किया कि दुकानदार ने आपको खराब कैमरा दे दिया है। आप मुख्य कार्यालय में दृढ़ता से शिकायत करते हैं। ( )
5. यदि मानकीकरण वस्तुओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है, तो क्यों बाजार में बहुत सी वस्तुएँ बिना
आई.एस.आई. अथवा एगमार्क प्रमाणन के मौजूद हैं?
6. हॉलमार्क या आई.एस.ओ. प्रमाणन उपलब्ध कराने वालों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उपभोक्ता आंदोलन को आगे बढ़ाने के संबंध में
24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया था। भारत उन देशों में से एक है, जहाँ उपभोक्ता संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट न्यायालय हैं।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने संगठित समूहों की संख्या और उनकी कार्य विधियों के मामले में कुछ तरक्की की है। आज देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, जिनमें से केवल 20-25 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं।
फिर भी, उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है। कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं। अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं, एेसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है। इसके अलावा बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती हैं।
दोषयुक्त उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर मौजूदा कानून भी बहुत स्पष्ट नहीं है। कोपरा के अधिनियम के 25 वर्ष बाद भी भारत में उपभोक्ता ज्ञान बहुत धीरे-धीरे फैल रहा है। श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद, खास तौर से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार, बाजारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।
फिर भी, उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका और अपना महत्त्व समझने की जरूरत है। यह अक्सर कहा जाता है कि उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से ही उपभोक्ता आंदोलन प्रभावी हो सकता है। इसके लिए स्वैच्छिक प्रयास और सबकी साझेदारी से युक्त संघर्ष की जरूरत है।
अभ्यास
1. बाज़ार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
2. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की ज़रूरत का वर्णन करें।
4. कुछ एेसे कारकों की चर्चा करें, जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है?
5. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की ज़रूरत क्यों पड़ी?
6. अपने क्षेत्र के बाज़ार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्त्तव्यों का वर्णन करें।
7. मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखेंगे और क्यों?
8. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए?
9. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
10. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
11. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
12. निम्नलिखित को सुमेलित करें–
13. सही या गलत बताएँ ।
(क) कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है।
(ऽ) भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट अदालते हैं।
(ग) जब उपभोक्ता को एेसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे ज़िला उपभोक्ता अदालत में निश्चित रूप से मुकद्दमा दायर करना चाहिए।
(घ) जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभप्रद होता है।
(ड) हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखनेवाला प्रमाण है।
(च) उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है।
(छ) उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
अतिरिक्त परियोजना/कार्यकलाप
1. आपका विद्यालय ‘उपभोक्ता जागरूकता सप्ताह’ का आयोजन करता है। उपभोक्ता जागरूकता फोरम के सचिव के रूप में सभी उपभोक्ता अधिकारों बिन्दुओं को शामिल करते हुए एक पोस्टर तैयार करें। इसके लिए आप पृष्ठ 84 एवं 85 पर दिए गए विज्ञापन के विचारों और संकेतों का उपयोग कर सकते हैं। ये कार्य आपके अंग्रेजी शिक्षक के सहयोग से करें।
2. श्रीमती कृष्णा ने 6 महीने की वारंटी वाला रंगीन टेलीविजन खरीदा। तीन महीने बाद टी.वी. ने काम करना बंद कर दिया। जब उन्होंने उस दुकान पर शिकायत की, जहाँ से टी.वी. खरीदा था तो उसने सही करने के लिए एक इंजीनियर भेजा। टी.वी. बार-बार खराब होता रहा और श्रीमती कृष्णा का दुकानदार से शिकायतों का कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने अपने क्षेत्र के उपभोक्ता फोरम से शिकायत करने का निर्णय लिया। आप उनके लिए एक पत्र लिखिए। आप लिखने से पहले अपने सहयोगी/समूह सदस्यों से चर्चा कर सकते हैं।
3. अपने विद्यालय में उपभोक्ता क्लब स्थापित करें। बनावटी उपभोक्ता जागरूकता कार्यशाला आयोजित करें और उसमें अपने विद्यालय क्षेत्र के पुस्तक केंद्रों, भोजनालयों और दुकानों के नियंत्रण जैसे मुद्दों को शामिल करें।
4. आकर्षक नारों वाले विज्ञापन तैयार करें, जैसे–
– सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
– ग्राहक, सावधान
– सचेत उपभोक्ता
– अपने अधिकारों को पहचानो
– उपभोक्ता के रूप में, अपने अधिकारों की रक्षा करें।
– उठो, जागो और तब तक मत रुको .................................................. (पूरा करें)
5. अपने आसपास के चार-पाँच लोगों का साक्षात्कार लें, कि कैसे वे शोषण का शिकार बने और उनकी प्रतिक्रियाओं एवं विभिन्न अनुभवों को इकट्ठा करें।
6. निम्नलिखित प्रश्नावली को वितरित कर अपने क्षेत्र का एक सर्वेक्षण करें और जानें कि वे उपभोक्ता के रूप में कितने जागरूक हैं।
टिप्पणी –
(क) यदि प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘ग’ और शेष के लिए ‘क’ है, तो आप उपभोक्ता के रूप में पूरी तरह जागरूक हैं।
(ऽ) अगर प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘क’ और शेष के लिए ‘ग’ है, तो आपको उपभोक्ता के रूप में जागरूक होने की ज़रूरत है।
(ग) यदि सभी प्रश्नों के लिए आपका उत्तर ‘ख’ है, तो आप आंशिक रूप से जागरूक हैं।
परिशिष्ट तालिका : व्यस्क लड़कियों (अध्याय 1, क्रिया 3 पृष्ठ संख्या 13 पर) की शरीर द्रव्यमान सूचक तालिका
परिशिष्ट तालिका : व्यस्क लड़कों (अध्याय 1, क्रिया 3 पृष्ठ संख्या 13 पर) की शरीर द्रव्यमान सूचक तालिका
सुझावात्मक पाठ
पुस्तकें
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अमित भादुरी एंड दीपक नायर, इंटेलिजेंट पर्सन्स गाइड टु लिबरलाइजेशन, पेंगुइन बुक्स, नयी दिल्ली, 2005
अमित भादुरी, मैक्रोइकोनॉमिक्सः द डॉयनामिक्स अॉफ कमोडिटी प्रोडक्शन, मैकमिलन, लंदन, 1986
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सरकारी प्रकाशन
आर्थिक सर्वेक्षण, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार
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राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट, योजना आयोेग/नीति आयोग, भारत सरकार, नयी दिल्ली
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नयी दिल्ली एवं अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान, मुम्बई
अन्य रिपोर्टें
हैंडबुक अॉफ स्टैटिस्टिक्स अॉन इंडियन इकॉनमी, रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया, मुंबई
मानव विकास रिपोर्ट, यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम, जेनेवा
वर्ल्ड डेवलपमेंट इंडिकेटर्स, द वर्ल्ड बैंक, वाशिंगटन