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लोकतंत्र और विविधता

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 परिचय

पिछले अध्याय में हमने देखा कि भाषायी और क्षेत्रीय विविधताओं को संग-साथ लेकर चलने के लिए सत्ता का बँटवारा किया जा सकता है। लेकिन, लोगों की विशिष्ट पहचान सिर्फ़ भाषा और क्षेत्र के आधार पर ही नहीं बनती। कई बार लोग अपनी पहचान और दूसरों से अपने संबंध शारीरिक बनावट, वर्ग, धर्म, लिंग, जाति, कबीले वगैरह के आधार पर भी परिभाषित करते हैं। इस अध्याय में हम देखेंगे कि किस तरह लोकतंत्र सारी सामाजिक विभिन्नताओं, अंतरों और असमानताओं के बीच सामंजस्य बैठाकर उनका सर्वमान्य समाधान देने की कोशिश करता है। यहाँ हम सामाजिक विभाजनों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति के एक उदाहरण के जरिए अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे। इसके बाद हम यह चर्चा करेंगे कि सामाजिक विभिन्नता कैसे अलग-अलग रूप धारण करती है। फिर हम यह देखेंगे कि सामाजिक विभिन्नता और लोकतांत्रिक राजनीति किस तरह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

मैक्सिको ओलंपिक की कहानी
Carlos-Smith.jpgइस पृष्ठ पर छपी तस्वीर अमरीका में चले नागरिक अधिकार आंदोलन की एक प्रमुख घटना से संबंधित है। यह 1968 में मैक्सिको सिटी में हुए ओलंपिक मुकाबलों की 200 मीटर दौड़ के पदक समारोह की तस्वीर है। अमरीका का राष्ट्रगान बज रहा है और सिर झुकाए तथा मुट्ठी ताने हुए जो दो खिलाड़ी खड़े हैं, वे हैं अमरीकी धावक टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस। ये एफ्रो-अमरीकी हैं। इन्होंने क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक जीता था। उन्होंने जूते नहीं पहने थे। सिर्फ़ मोज़े चढ़ाए पुरस्कार लेकर दोनों ने यह जताने की कोशिश की कि अमरीकी अश्वेत लोग गरीब हैं। स्मिथ ने अपने गले में एक काला मफ़लर जैसा परिधान भी पहना था जो अश्वेत लोगों के आत्मगौरव का प्रतीक है। कार्लोस ने मारे गए अश्वेत लोगों की याद में काले मनकों की एक माला पहनी थी। अपने इन प्रतीकों और तौर-तरीकों से उन्होंने अमरीका में होने वाले रंगभेद के प्रति अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान खींचने की कोशिश की। काले दस्ताने और बँधी हुई मुट्ठियाँ अश्वेत शक्ति का प्रतीक थीं। रजत पदक जीतने वाले आस्ट्रेलियाई धावक पीटर नार्मन ने पुरस्कार समारोह में अपनी जर्सी पर मानवाधिकार का बिल्ला लगाकर इन दोनों अमरीकी खिलाड़ियों के प्रति अपना समर्थन जताया।

क्या कार्लोस और स्मिथ द्वारा अमरीकी समाज के आंतरिक मामलों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाना उचित था? क्या आप उनके काम को राजनीतिक मानेंगे? पीटर नार्मन, जो न तो अमरीकी थे, न अश्वेत, क्यों इस विरोध में शामिल हो गए? क्या आप उनकी जगह होते तो एेसा ही करते?

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने कार्लोस और स्मिथ द्वारा राजनीतिक बयान देने की इस युक्ति को ओलंपिक भावना के विरुद्ध बताते हुए उन्हें दोषी करार दिया और उनके पदक वापस ले लिए गए। नार्मन को भी अपने फ़ैसले की कीमत चुकानी पड़ी और अगले ओलंपिक में उन्हें आस्ट्रेलिया की टीम में जगह नहीं दी गई पर इनके फ़ैसलों ने अमरीका में बढ़ते नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रति दुनिया का ध्यान खींचने में सफलता पाई। हाल में ही सैन होज़ स्टेट यूनिवर्सिटी ने, जहाँ इन दोनों ने पढ़ाई की थी, इन दोनों का अभिनंदन किया और विश्वविद्यालय के भीतर उनकी मूर्ति लगवाई। जब 2006 में नार्मन की मौत हुई तो उनकी अरथी को कंधा देने वालों में स्मिथ और कार्लोस भी थे।

chap%203-2.jpgकार्लोस और स्मिथ को मेरा सलाम! क्या मेरे अंदर एेसा कर पाने का साहस कभी होगा?

एफ्रो-अमरीकी : एप्रुो-अमरीकन, अश्वेत अमरीकी या अश्वेत शब्द उन अप्रुीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक अमरीका में गुलाम बनाकर लाया गया था।

अमरीका में नागरिक अधिकार आंदोलन (1954-1968): घटनाओं और सुधार आंदोलनों का एक सिलसिला जिसका उद्देश्य एफ्रो-अमरीकी लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ल आधारित भेदभाव को मिटाना था। मार्टिन लूथर किंग जूनियर की अगुवाई में लड़े गए इस आंदोलन का स्वरूप पूरी तरह अहिंसक था। इसने नस्ल के आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों और व्यवहार को समाप्त करने की माँग उठाई जो अंततः सफल हुई।

अश्वेत शक्ति आंदोलन : यह आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया ज़्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमरीका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज़ नहीं है।


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2005 में सैन हो\ज़ स्टेट यूनिवर्सिटी ने टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस के विरोध प्रदर्शन के प्रतीक के रूप में एक 20 फीट ऊँची मूर्ति लगवाई। 1968 के पदक वितरण समारोह की असल तस्वीर भी ऊपर इंसेट में है।

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मैं पाकिस्तानी लड़कियों की एक टोली से मिली और मुझे लगा कि अपने ही देश के दूसरे हिस्सों की लड़कियों की तुलना में वे मुझसेे ज़्यादा समानता रखती हैं, क्या इसे राष्ट्र-विरोधी मेल कहा जाएगा?

समानताएँ, असमानताएँ और विभाजन

ऊपर दिए गए उदाहरण में खिलाड़ी सामाजिक बँटवारे और सामाजिक भेदभाव का अपने तरीके से विरोध कर रहे थे। पर क्या एेसा भेदभाव सिर्फ़ नस्ल या रंग के आधार पर ही होता है? पिछले दो अध्यायों में हमने सामाजिक बँटवारे के कुछ अन्य स्वरूपों को देखा था। उदाहरण के लिए बेल्ज़ियम और श्रीलंका में यह विभाजन क्षेत्रीय और सामाजिक, दोनों स्तरों पर मौजूद था। बेल्ज़ियम में अलग-अलग इलाकों में रहने वाले लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं। श्रीलंका में यह बँटवारा भाषा और क्षेत्र दोनों आधारों पर दिखाई देता है। इस प्रकार हर समाज में सामाजिक विविधता अलग-अलग रूप में सामने आती है।

सामाजिक भेदभाव की उत्पत्ति

सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वश में नहीं होता। हम सिर्फ़ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो जाते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है। जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में लगभग रोज़ करते हैं। हम अपने आस-पास देखते हैं कि चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष, लंबा हो या छोटा-सबकी चमड़ी का रंग अलग-अलग है, उनकी शारीरिक क्षमताएँ या अक्षमताएँ अलग-अलग हैं। बहरहाल, सभी किस्म के सामाजिक विभाजन सिर्फ़ जन्म पर आधारित नहीं होते। कुछ चीज़ें हमारी पसंद या चुनाव के आधार पर भी तय होती हैं। कई लोग अपने माँ-बाप और परिवार से अलग अपनी पसंद का भी धर्म चुन लेते हैं। हम सभी लोग पढ़ाई के विषय, पेश्ेा, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव अपनी पसंद से करते हैं। इन सबके आधार पर भी सामाजिक समूह बनते हैं और ये जन्म पर आधारित नहीं होते।

हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। सामाजिक विभिन्नताएँ लोगों के बीच बँटवारे का एक बड़ा कारण होती ज़रूर हैं लेकिन यही विभिन्नताएँ कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के बीच पुल का काम भी करती हैं। विभिन्न सामाजिक समूहों के लोग अपने समूहों की सीमाओं से परे भी समानताओं और असमानताओं का अनुभव करते हैं। जो उदाहरण पहले दिया गया है उसमें कार्लोस और स्मिथ तो एक हिसाब से समान थे (दोनों एफ्रो अमरीकी थे) जबकि नार्मन श्वेत थे। पर इन तीनों में एक समानता थी कि वे सभी नस्ल आधारित भेदभाव के खिलाफ़ थे।

अक्सर यह देखा जाता है कि एक धर्म को मानने वाले लोग खुद को एक ही समुदाय का सदस्य नहीं मानते क्योंकि उनकी जाति या उनका पंथ अलग होता है। यह भी संभव है कि अलग-अलग धर्म के अनुयायी होकर भी एक जाति वाले लोग खुद को एक-दूसरे के ज़्यादा करीब महसूस करें। एक ही परिवार के अमीर और गरीब ज़्यादा घनिष्ठ संबंध नहीं रख पाते क्योंकि सभी अलग-अलग तरीके से सोचने लगते हैं। इस प्रकार हम सभी की एक से ज़्यादा पहचान होती है। इसी तरह लोग एक से ज़्यादा सामाजिक समूहों का हिस्सा हो सकते हैं। दरअसल हर संदर्भ में हमारी पहचान एक अलग रूप धारण करती है।

Cartoon1.tifएरेस-केगल कार्टूंस

इस कार्टून से हर व्यक्ति अलग अर्थ निकाल सकता है। आपको इस कार्टून का क्या मतलब समझ में आता है? आपकी कक्षा के अन्य छात्र इससे क्या अर्थ निकालते हैं?

विभिन्नताओं में सामंजस्य और टकराव
सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमरीका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज़्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।

अगर एक-सी सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। इसका मतलब यह है कि किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं जबकि किसी दूसरे मुद्दे पर उनके नजरिए में अंतर हो सकता है। उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड का उदाहरण लें। दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं लेकिन यहाँ के लोग प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक खेमे में बँटे हैं। उत्तरी आयरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच गहरी समानता है। वहाँ का कैथोलिक समुदाय गरीब है। लंबे समय से उसके साथ भेदभाव होता आया है। नीदरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच एेसा मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, दोनों में अमीर और गरीब हैं। परिणाम यह है कि उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच भारी मारकाट चलती रही है पर नीदरलैंड में एेसा नहीं होता। जब सामाजिक विभिन्नताएँ एक दूसरे से गुँथ जाती है तो एक गहरे सामाजिक विभाजन की जमीन तैयार होने लगती है। जहाँ ये सामाजिक विभिन्नताएँ एक साथ कई समूहों में विद्यमान होती हैं वहाँ उन्हें सँभालना अपेक्षाकृत आसान होता है।

आज अधिकतर समाजों में कई किस्म के विभाजन दिखाई देते हैं। देश बड़ा हो या छोटा इससे खास फर्क नहीं पड़ता। भारत काफ़ी बड़ा देश है और इसमें अनेक समुदायों के लोग रहते हैं। बेल्ज़ियम छोटा देश है पर वहाँ भी अनेक समुदायों के लोग हैं। जर्मनी और स्वीडन जैसे समरूप समाज में भी, जहाँ मोटे तौर पर अधिकतर लोग एक ही नस्ल और संस्कृति के हैं, दुनिया के दूसरे हिस्सों से पहुँचने वाले लोगों के कारण तेज़ी से बदलाव हो रहा है। एेसे लोग अपने साथ अपनी संस्कृति लेकर पहुुँचते हैं। उनमें अपना अलग समुदाय बनाने की प्रवृत्ति होती है। इस हिसाब से आज दुनिया के अधिकतर देश बहु-सांस्कृतिक हो गए हैं।
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समरूप समाज : एक एेसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ ज़्यादा गहरी नहीं होतीं।

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सामाजिक विभाजनों की राजनीति

सामाजिक विभाजन राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? राजनीति का इन सामाजिक विभाजनों से क्या लेना-देना है? पहली नज़र में तो राजनीति और सामाजिक विभाजनों का मेल बहुत खतरनाक और विस्फोटक लगता है। लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वंद्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वंद्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और एेसे में देश विखंडन की तरफ़ जा सकता है। एेसा कई देशों में हो चुका है।

परिणामों का दायरा

उत्तरी आयरलैंड का ही उदाहरण लें जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं। ग्रेट ब्रिटेन का यह हिस्सा काफ़ी लंबे समय से हिंसा, जातीय कटुता और राजनीतिक टकराव की गिर ़फ्त में रहा है। यहाँ की आबादी मुख्यतः ईसाई ही है पर वह इस धर्म के दो प्रमुख पंथों में बुरी तरह बँटी है। 53 फ़ीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट है जबकि 44 फ़ीसदी रोमन कैथोलिक। कैथोलिकों का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं। उनकी माँग है कि उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य के साथ मिलाया जाए जो कि मुख्यतः कैथोलिक बहुल है। प्रोटेस्टेंट लोगोें का प्रतिनिधित्व यूनियनिस्ट पार्टियाँ करती हैं जो ग्रेट ब्रिटेन के साथ ही रहने के पक्ष में हैं क्योंकि ब्रिटेन मुख्यतः प्रोटेस्टेंट देश है। यूनियनिस्टों और नेशनलिस्टों के बीच चलने वाले हिंसक टकराव में ब्रिटेन के सुरक्षा बलों सहित सैकड़ों लोग और सेना के जवान मारे जा चुके हैं। 1998 में ब्रिटेन की सरकार और नेशनलिस्टों के बीच शांति समझौता हुआ जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसक आंदोलन बंद करने की बात स्वीकार की। यूगोस्लाविया में कहानी का एेसा सुखद अंत नहीं हुआ। वहाँ धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।

एेसे उदाहरणों के आधार पर कुछ लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि राजनीति और सामाजिक विभाजन का मेल नहीं होना चाहिए। उनका मानना है कि सर्वश्रेष्ठ स्थिति तो यह है कि समाज में किसी किस्म का विभाजन ही न हो। अगर किसी देश में सामाजिक विभाजन है तो उसे राजनीति में अभिव्यक्त ही नहीं होने देना चाहिए।

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पर इसके साथ यह भी सच्चाई है कि राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती। हमने पहले भी देखा है कि दुनिया के अधिकतर देशों में किसी न किसी किस्म का सामाजिक विभाजन है और एेसे विभाजन राजनीतिक शक्ल भी अख्तियार करते ही हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक विभाजनों की बात करना तथा विभिन्न समूहों से अलग अलग वायदे करना ब\ड़ी स्वाभाविक बात है, विभिन्न समुदायोें को उचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करना और विभिन्न समुदायों की उचित माँगों और ज़रूरतों को पूरा करने वाली नीतियाँ बनाना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। अधिकतर देशों में मतदान के स्वरूप और सामाजिक विभाजनों के बीच एक प्रत्यक्ष संबंध दिखाई देता है। इसके तहत एक समुदाय के लोग आमतौर पर किसी एक दल को दूसरों के मुकाबले ज़्यादा पसंद करते हैं और उसी को वोट देते हैैं। कई देशों में एेसी पार्टियाँ हैं जो सिर्फ़ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं और उसी के हित में राजनीति करती हैं। पर इस सबकी परिणति देश के विखंडन में नहीं होती।

ओरियन/जूस्का रैंटेनेन-फ्लिकर डॉट कॉम

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उत्तरी आयरलैंड के कुछ स्थानों में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक लोगों के समुदाय दीवार के माध्यम से बँटे हैं। इन दीवारों पर अक्सर कु ना कुछ लिखा हुआ देखने को मिल जाता है। इस तस्वीर में भी आप यह देख सकते हैं। आयरिश रिपब्ल्किन आर्मी और ब्रिटेन की सरकार के बीच 2005 में एक समझौता हुआ था। यहाँ अंकित दीवार-लेखन सामाजिक तनाव के बारे में क्या कहता है?

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तीन आयाम

सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन चीज़ों पर निर्भर करता है। पहली चीज है लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना। अगर लोग खुद को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। जब तक उत्तरी आयरलैंड के लोग खुद को सिर्फ़ प्रोटेस्टेंट या कैथोलिक के तौर पर देखते रहेंगे तब तक उनका शांत हो पाना संभव नहीं है। अगर लोग अपनी बहु-स्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं तब कोई समस्या नहीं होती। जैसे, बेल्ज़ियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्ज़ियाई ही मानते हैं भले ही वे डच या जर्मन बोलते हों। इस नज़रिए से उन्हें साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। हमारे देश में भी ज़्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर एेसा ही नज़रिया रखते हैं। वे खुद कोे पहले भारतीय मानते हैं फिर किसी प्रदेश, क्षेत्र, भाषा समूह या धार्मिक और सामाजिक समुदाय का सदस्य ।

दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ है कि किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान है। श्रीलंका में ‘श्रीलंका केवल सिंहलियों के लिए’ की माँग तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ़ थी। यूगोस्लाविया में विभिन्न समुदायों के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ़ से एेसी माँगें रख दीं जिन्हें एक देश की सीमा के भीतर पूरा करना असंभव था।

तीसरी चीज़ है सरकार का रुख। सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, यह भी महत्वपूर्ण है। जैसा कि हमने बेल्ज़ियम और श्रीलंका के उदाहरणों में देखा, अगर शासन सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो और अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए तोे सामाजिक विभाजन मुल्क के लिए खतरा नहीं बनते। अगर शासन राष्ट्रीय एकता के नाम पर किसी एेसी माँग को दबाना शुरू कर देता है तो अक्सर उलटे और नुकसानदेह परिणाम ही निकलते हैं। ताकत के दम पर एकता बनाए रखने की कोशिश अक्सर विभाजन की ओर ले जाती है।

इस तरह किसी देश में सामाजिक विभिन्नताओं पर ज़ोर देने की बात को हमेशा खतरा मानकर नहीं चलना चाहिए। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता हैै। इसी से विभिन्न छोटे सामाजिक समूह, हाशिये पर पड़ी ज़रूरतों और परेशानियों को जाहिर करते हैं और सरकार का ध्यान अपनी तरफ़ खींचते हैं। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति एेसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती हैं। इसके चलते कोई भी सामाजिक विभाजन एक हद से ज़्यादा उग्र नहीं हो पाता। इस स्थिति में लोकतंत्र मज़बूत ही होता है।

पर विभिन्नता के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखना और सभी चीज़ों को समाहित करने की इच्छा रखना इतना आसान मामला नहीं है। जो लोग खुद को वंचित, उपेक्षित और भेदभाव का शिकार मानते हैं उन्हें अन्याय से संघर्ष भी करना होता है। एेसी लड़ाई अक्सर लोकतांत्रिक रास्ता ही अख्तियार करती है। लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से अपनी माँगों को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से उसके लिए दबाव बनाते हैं, उसका समाधान पाने का प्रयास करते हैं। कई बार सामाजिक असमानताएँ इतनी ज़्यादा गैर-बराबरी और अन्याय वाली होती हैं कि उनको स्वीकार करना असंभव है। एेसी गैर-बराबरी और अन्याय के खिलाफ़ होने वाला संघर्ष कई बार हिंसा का रास्ता भी अपना लेता है और शासन के खिलाफ़ उठ खड़ा होता है। इतिहास बताता है कि एेसी तमाम गड़बड़ियों की पहचान करने और विविधता को समाहित करने का लोकतंत्र ही सबसे अच्छा तरीका है।

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प्रश्नावली

1. सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।

2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?

3. सामाजि विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए।

4. ........................... सामाजिक अंतर गहरे सामाजिक विभाजन और तनावों की स्थिति पैदा करते हैं। .................... सामाजिक अंतर सामान्य तौर पर टकराव की स्थिति तक नहीं जाते।

5. सामाजिक विभाजनों को सँभालने के संदर्भ में इनमें से कौन सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?

(क) लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर भी प\ड़ती है।

(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें ज़ाहिर करना संभव है

(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है।

(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।

6. निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें :

(अ) जहाँ सामाजिक अंतर एक-दूसरे से टकराते हैं वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।

(ब) यह संभव है कि एक व्यक्ति की कई पहचान हो

(स) सिर्फ़ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।

इन बयानों में से कौन-कौन से बयान सही हैं।

(क) अ, ब और स (ख) अ और ब (ग) ब और स (घ) सिर्फ स

7. निम्नलिखित बयानों को तार्किक क्रम से लगाएँ और नीचे दिए गए कोड के आधार पर सही जवाब ढूँढें।

(अ) सामाजिक विभाजन की सारी राजनीतिक अभिव्यक्तियाँ खतरनाक ही हों यह ज़रूरी नहीं है।

(ब) हर देश में किसी न किसी तरह के सामाजिक विभाजन रहते ही हैं।

(स) राजनीतिक दल सामाजिक विभाजनों के आधार पर राजनीतिक समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं।

(द) कुछ सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनों का रूप ले सकते हैं।

(क) द, ब, स, अ (ख) द, ब, अ, स (ग) द, अ, स, ब (घ) अ, ब, स, द

8. निम्नलिखित में किस देश को धार्मिक और जातीय पहचान के आधार विखंडन का सामना करना पड़ा?

(क) बेल्ज़ियम (ख) भारत (ग) यूगोस्लाविया (घ) नीदरलैंड

9. मार्टिन लूथर किंग जूनियर के 1963 के प्रसिद्ध भाषण के निम्नलिखित अंश को पढ़ें। वे किस सामाजिक विभाजन की बात कर रहे हैं? उनकी उम्मीदें और आशंकाएँ क्या-क्या थीं? क्या आप उनके बयान और मैक्सिको ओलंपिक की उस घटना में कोई संबंध देखते हैं जिसका जिक्र इस अध्याय में था?

"मेरा एक सपना है कि मेरे चार नन्हें बच्चे एक दिन एेसे मुल्क में रहेंगे जहाँ उन्हें चमड़ी के रंग के आधार पर नहीं, बल्कि उनके चरित्र के असल गुणों के आधार पर परखा जाएगा। स्वतंत्रता को उसके असली रूप में आने दीजिए। स्वतंत्रता तभी कैद से बाहर आ पाएगी जब यह हर बस्ती, हर गाँव तक पहुँचेगी, हर राज्य और हर शहर में होगी और हम उस दिन को ला पाएँगे जब ईश्वर की सारी संतानें–अश्वेत स्त्री-पुरुष, गोरे लोग, यहूदी तथा गैर-यहूदी, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक–हाथ में हाथ डालेंगी और इस पुरानी नीग्रो प्रार्थना को गाएँगी - ‘मिली आज़ादी, मिली आज़ादी! प्रभु बलिहारी, मिली आज़ादी!’ मेरा एक सपना है कि एक दिन यह देश उठ खड़ा होगा और अपने वास्तविक स्वभाव के अनुरूप कहेगा, "हम इस स्पष्ट सत्य को मानते हैं कि सभी लोग समान हैं।"