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अफ़सोस इस बात का नहीं है कि मौत बेरहम है।

अफ़सोस इस बात का है कि अस्पताल बेरहम क्यों हैं?

(आईने के सामने)


कृश्नचंदर


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जन्म : सन् 1914, पंजाब के वज़ीराबाद गाँव (ज़िला-गुजरांकलां)

प्रमुुख रचनाएँ एक गिरजा-ए-खंदक, यूकेलिप्ट्स की डाली (कहानी-संग्रह); शिकस्त, ज़रगाँव की रानी, सड़क वापस जाती है, आसमान रौशन है, एक गधे की आत्मकथा, अन्नदाता, हम वहशी हैं, जब खेत जागे, बावन पत्ते, एक वायलिन समंदर के किनारे, कागज़ की नाव, मेरी यादों के किनारे (उपन्यास)

सम्मान साहित्य अकादमी सहित बहुत से पुरस्कार

मृत्युसन् 1977

प्रेमचंद के बाद जिन कहानीकारों ने कहानी विधा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया, उनमें उर्दू कथाकार कृश्नचंदर का नाम महत्वपूर्ण है। प्रगतिशील लेखक संघ से उनका गहरा संबंध था, जिसका असर उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। कृश्नचंदर एेसे गिने-चुने लेखकों में आते हैं, जिन्होंने बाद में चलकर लेखन को ही रोज़ी-रोटी का सहारा बनाया।

कृश्नचंदर की प्राथमिक शिक्षा पुंछ (जम्मू एवं कश्मीर) में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे सन् 1930 में लाहौर आ गए और फॉरमेन क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया। 1934 में पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। बाद में उनका जुड़ाव फ़िल्म जगत से हो गया और अंतिम समय तक वे मुंबई में ही रहे।

यों तो कृश्नचंदर ने उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज और लेख भी बहुत से लिखे हैं, लेकिन उनकी पहचान कहानीकार के रूप में अधिक हुई है। महालक्ष्मी का पुल, आईने के सामने आदि उनकी मशहूर कहानियाँ हैं। उनकी लोकप्रियता इस कारण भी है कि वे काव्यात्मक रोमानियत और शैली की विविधता के कारण अलग मुकाम बनाते हैं। कृश्नचंदर उर्दू कथा-साहित्य में अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित रहे हैं। वे प्रगतिशील और यथार्थवादी नज़रिए से लिखे जाने वाले साहित्य के पक्षधर थे।

जामुन का पेड़ कृश्नचंदर की एक प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कथा है। हास्य-व्यंग्य के लिए चीज़ों को अनुपात से ज़्यादा फैला-फुलाकर दिखलाने की परिपाटी पुरानी है और यह कहानी भी उसका अनुपालन करती है। इसलिए यहाँ घटनाएँ अतिशयोक्ति- पूर्ण और अविश्वसनीय जान पड़ें, तो कोई हैरत नहीं। विश्वसनीयता एेसी रचनाओं के मूल्यांकन की कसौटी नहीं हो सकती। प्रस्तुत पाठ में हँसते-हँसते ही हमारे भीतर इस बात की समझ पैदा होती है कि कार्यालयी तौर-तरीकों में पाया जाने वाला विस्तार कितना निरर्थक और पदानुक्रम कितना हास्यास्पद है। बात यहीं तक नहीं रहती? इस व्यवस्था के संवेदनशून्य एवं अमानवीय होने का पक्ष भी हमारे सामने आता है।

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जामुन का पेड़


रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियेट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पड़ा। सवेरे को जब माली ने देखा, तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।

माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया, क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिंटेंडेंट के पास गया, सुपरिंटेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे हुए आदमी के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई।

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"बेचारा जामुन का पेड़। कितना फलदार था!’’ एक क्लर्क बोला।

"और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं!’’ दूसरा क्लर्क याद करते हुए बोला।

"मैं फलों के मौसम में झोली भरकर ले जाता था, मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे।’’ तीसरा क्लर्क लगभग रुआँसा होकर बोला।

"मगर यह आदमी?’’ माली ने दबे हुए आदमी की तरफ़ इशारा किया।

"हाँ, यह आदमी।’’ सुपरिंटेंडेंट सोच में पड़ गया।

"पता नहीं ज़ि्ांदा है कि मर गया?’’ एक चपरासी ने पूछा।

"मर गया होगा, इतना भारी पेड़ जिसकी पीठ पर गिरे वह बच कैसे सकता है?’’ दूसरा चपरासी बोला।

"नहीं, मैं ज़िंदा हूँ।’’ दबे हुए आदमी ने बड़ी कठिनता से कराहते हुए कहा।

"ज़िंदा है!’’ एक क्लर्क ने ताज्जुब से कहा।

"पेड़ को हटाकर इसे जल्दी से निकाल लेना चाहिए।’’ माली ने सुझाव दिया।

"मुश्किल मालूम होता है,’’ एक सुस्त, कामचोर और मोटा चपरासी बोला, "पेड़ का तना बहुत भारी और वज़नी है।’’

"क्या मुश्किल है?’’ माली बोला, "अगर सुपरिंटेंडेंट साहब हुक्म दें, तो अभी पंद्रह-बीस माली, चपरासी और क्लर्क लगाकर पेड़ के नीचे से दबे हुए आदमी को निकाला जा सकता है।’’

"माली ठीक कहता है,’’ बहुत-से क्लर्क एक साथ बोल पड़े,"लगाओ ज़ोर, हम तैयार हैं।’’

एक साथ बहुत से लोग पेड़ को उठाने को तैयार हो गए।

"ठहरो!’’ सुपरिंटेंडेंट बोला, "मैं अंडर-सेक्रेटरी से पूछ लूँ।’’

सुपरिंटेंडेंट अंडर-सेक्रेटरी के पास गया। अंडर-सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्टी सेक्रेटरी ज्वाइंट सेक्रेटरी के पास गया। ज्वाइंट सेक्रेटरी चीफ़ सेक्रेटरी के पास गया। चीफ़ सेक्रेटरी मिनिस्टर के पास गया। मिनिस्टर ने चीफ़ सेक्रेटरी से कुछ कहा। चीफ़ सेक्रेटरी ने ज्वाइंट सेक्रेटरी से कुछ कहा। ज्वाइंट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कहा। डिप्टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा। फ़ाइल चलती रही। इसी में आधा दिन बीत गया।

दोपहर के खाने पर दबे हुए आदमी के चारों ओर बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लर्कों ने समस्या को खुद ही सुलझाना चाहा। वे हुकूमत के फैसले का इंतज़ार किए बिना पेड़ को अपने-आप हटा देने का निश्चय कर रहे थे कि इतने में सुपरिंटेंडेंट फ़ाइल लिए भागा-भागा आया। बोला– "हमलोग खुद इस पेड़ को नहीं हटा सकते। हमलोग व्यापार-विभाग से संबंधित हैं, और यह पेड़ की समस्या है, जो कृषि-विभाग के अधीन है। मैं इस फ़ाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि-विभाग में भेज रहा हूँ– वहाँ से उत्तर आते ही इस पेड़ को हटवा दिया जाएगा।’’

दूसरे दिन कृषि-विभाग से उत्तर आया कि पेड़ व्यापार-विभाग के लॉन में गिरा है, इसलिए इस पेड़ को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी व्यापार-विभाग पर पड़ती है।

यह उत्तर पढ़कर व्यापार विभाग को गुस्सा आ गया। उन्होंने फौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी कृषि-विभाग पर लागू होती है, व्यापार विभाग का इससे कोई संबंध नहीं है।

दूसरे दिन भी फ़ाइल चलती रही। शाम को जवाब आ गयाहम इस मामले को हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के हवाले कर रहे हैं, क्योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फ़ैसला करने का हकदार है। जामुन का पेड़ चूँकि एक फलदार पेड़ है, इसलिए यह पेड़ हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है।

रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया, जबकि उसके चारों तरफ़ पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में लेकर पेड़ को खुद से हटवाने की कोशिश न करें। मगर एक पुलिस कांस्टेबल को दया आ गई और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाज़त दे दी।

माली ने दबे हुए आदमी से कहा, "तुम्हारी फ़ाइल चल रही है, उम्मीद है कल तक फ़ैसला हो जाएगा।’’

दबा हुआ आदमी कुछ नहीं बोला।

माली ने पेड़ के तने को ध्यान से देखकर कहा, "अच्छा हुआ कि तना तुम्हारे कूल्हे पर गिरा, अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।’’

दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ नहीं बोला।

माली ने फिर कहा, "तुम्हारा यहाँ कोई वारिस है तो मुझे उसका अता-पता बताओ, मैं उन्हें खबर देने की कोशिश करूँगा।’’

"मैं लावारिस हूँ।’’ दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।

माली खेद प्रकट करता हुआ वहाँ से हट गया।

तीसरे दिन हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट से जवाब आ गया। बड़ा कड़ा जवाब था
और व्यंग्यपूर्ण!

हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी साहित्य-प्रेमी आदमी जान पड़ता था। उसने लिखा था, "आश्चर्य है, इस समय जब हम ‘पेड़ लगाओ’ स्कीम ऊँचे स्तर पर चला रहे हैं, हमारे देश में एेसे सरकारी अफ़सर मौजूद हैं जो पेड़ों को काटने का सुझाव देते हैं, और वह भी एक फलदार पेड़ को, और वह भी जामुन के पेड़ को, जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है! हमारा विभाग किसी हालत में इस फलदार वृक्ष को काटने की इजाज़त नहीं दे सकता।’’

"अब क्या किया जाए?’’ इसपर एक मनचले ने कहा, "अगर पेड़ काटा नहीं जा सकता, तो इस आदमी ही को काटकर निकाल लिया जाए।’’

"यह देखिए,’’ उस आदमी ने इशारे से बताया, "अगर इस आदमी को ठीक बीच में से, यानी धड़ से काटा जाए तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा, आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ वहीं का वहीं रहेगा।

"मगर इस तरह तो मैं मर जाऊँगा।’’ दबे हुए आदमी ने आपत्ति प्रकट करते हुए कहा।

"यह भी ठीक कहता है।’’ एक क्लर्क बोला।

आदमी को काटने वाली युत्तिη प्रस्तुत करने वाले ने भरपूर विरोध किया, "आप जानते नहीं हैं, आजकल प्लास्टिक सर्जरी कितनी उन्नति कर चुकी है। मैं तो समझता हूँ, अगर इस आदमी को बीच में से काटकर निकाल लिया जाए तो प्लास्टिक सर्जरी से धड़ के स्थान से इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।’’

इस बार फ़ाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फ़ौरन एक्शन लिया और जिस दिन फ़ाइल उनके विभाग में पहुँची, उसके दूसरे ही दिन उन्होंने अपने विभाग का सबसे योग्य प्लास्टिक सर्जन छान-बीन के लिए भेज दिया। सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोलकर, उसका स्वास्थ्य देखकर, खून का दबाव देखा, नाड़ी की गति को परखा, दिल और फेफड़ों की जाँच करके रिपोर्ट भेज दी कि इस आदमी का प्लास्टिक अॉपरेशन तो हो सकता है, और अॉपरेशन सफल भी होगा, मगर आदमी मर जाएगा।

इसलिए यह फ़ैसला भी रद्द कर दिया गया।

रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुँह में खिचड़ी डालते हुए उसे बताया कि अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि कल सेक्रेटेरियेट के सारे सेक्रेटेरियों की मीटिंग होगी। उसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा। उम्मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।

दबा हुआ आदमी एक आह भरकर धीरे से बोला–

"ये तो माना कि तगाफ़ुल न करोगे लेकिन

खाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!’’ *

माली ने अचंभे से मुँह में उँगली दबा ली और चकित भाव से बोला, "क्या तुम शायर हो?’’

दबे हुए आदमी ने धीरे से सिर हिला दिया।


* मिर्ज़ा गालिब का शेर


दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्लर्क को, क्लर्क ने हैड-क्लर्क को। थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरियेट में यह अफ़वाह फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस, फिर क्या था। लोगों का झुंड का झुंड शायर को देखने के लिए उमड़ पड़ा। इसकी चर्चा शहर में भी फैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए। सेक्रेटेरियेट का लॉन भाँति-भाँति के कवियों से भर गया और दबे हुए आदमी के चारों ओर कवि-सम्मेलन का-सा वातावरण उत्पन्न हो गया। सेक्रेटेरियेट के कई क्लर्क और अंडर सेक्रेटरी तक जिन्हें साहित्य और कविता से लगाव था, रुक गए। कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी कविताएँ और दोहे सुनाने लगे। कई क्लर्क उसको अपनी कविता पर आलोचना करने को मजबूर करने लगे।

जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी एक कवि है, तो सेक्रेटेरियेट की सब-कमेटी ने फैसला किया कि– चूँकि दबा हुआ आदमी एक कवि है, इसलिए इस फ़ाइल का संबंध न एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से है, न हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट से, बल्कि सिर्फ़ कल्चरल डिपार्टमेंट से है। कल्चरल डिपार्टमेंट से अनुरोध किया गया कि जल्द से जल्द मामले का फ़ैसला करके अभागे कवि को इस फलदार पेड़ से छुटकारा दिलाया जाए।

फ़ाइल कल्चरल डिपार्टमेंट के अनेक विभागों से गुज़रती हुई साहित्य अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुँची। बेचारा सेक्रेटरी उसी समय अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरियेट पहुँचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्यू लेने लगा।

"तुम कवि हो?’’ उसने पूछा।

"जी हाँ।’’ दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।

"किस उपनाम से शोभित हो?’’

"ओस।’’

"ओस?’’ सेक्रेटरी ज़ोर से चीखा, "क्या तुम वही ‘ओस’ हो, जिसका गद्य-संग्रह ‘ओस के फूल’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है?"

दबे हुए कवि ने हुँकार में सिर हिलाया।

"क्या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?’’ सेक्रेटरी ने पूछा।

"नहीं!"

"आश्चर्य है," सेक्रेटरी ज़ोर से चीखा, "इतना बड़ा कवि– ‘ओस के फूल’ का लेखक और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है। उफ़! कैसी भूल हो गई हमसे, कितना बड़ा कवि और कैसी अँधेरी गुमनामी में दबा पड़ा है।’’

"गुमनामी में नहीं,– एक पेड़ के नीचे दबा हूँ, कृपया मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।’’

"अभी बंदोबस्त करता हूँ।’’ सेक्रेटरी फ़ौरन बोला और फ़ौरन उसने अपने विभाग में रिपोर्ट की।

दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा-भागा कवि के पास आया और बोला, "मुबारक हो, मिठाई खिलाओ। हमारी सरकारी साहित्य अकादमी ने तुम्हें अपनी केंद्रीय शाखा का मेंबर चुन लिया है, यह लो चुनाव-पत्र।’’

"मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो!’’ दबे हुए आदमी ने कराहकर कहा। उसकी साँस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आँखों से मालूम होता था कि वह घोर पीड़ा और दुःख में पड़ा है।

"यह हम नहीं कर सकते।’’ सेक्रेटरी ने कहा, "और जो हम कर सकते थे, वह हमने कर दिया है, बल्कि हम तो यहाँ तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ, तो तुम्हारी बीवी को वज़ीफा दे सकते हैं, अगर तुम दरख्वास्त दो, तो हम वह भी कर सकते हैं।’’

"मैं अभी जीवित हूँ।’’ कवि रुक-रुककर बोला, "मुझे ज़िंदा रखो।’’

"मुसीबत यह है,’’ सरकारी साहित्य अकादमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला, "हमारा विभाग सिर्फ़ कल्चर से संबंधित है। पेड़ काटने का मामला कलम- दवात से नहीं, आरी-कुल्हाड़ी से संबंधित है। उसके लिए हमने फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लिख दिया है और अर्जेंट लिखा है।’’

शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया, "कल फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी।’’

माली बहुत खुश था। दबे हुए आदमी का स्वास्थ्य जवाब दे रहा था, मगर वह किसी न किसी तरह अपने जीवन के लिए लड़े जा रहा था। कल तक, कल सवेरे तक...किसी न किसी तरह उसे जीवित रहना है।

दूसरे दिन जब फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदमी आरी-कुल्हाड़ी लेकर पहुँचे तो उनको पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश-विभाग से हुक्म आया था कि इस पेड़ को न काटा जाए। कारण यह था कि इस पेड़ को दस साल पहले पीटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरियेट के लॉन में लगाया था। अब अगर यह पेड़ काटा गया, तो इस बात का काफ़ी अंदेशा था कि पीटोनिया सरकार से हमारे संबंध सदा के लिए बिगड़ जाएँगे।

"मगर एक आदमी की जान का सवाल है,’’ एक क्लर्क चिल्लाया।

"दूसरी ओर दो राज्यों के संबंधों का सवाल है,’’ दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया, "और यह भी तो समझो कि पीटोनिया सरकार हमारे राज्य को कितनी सहायता देती है– क्या हम उनकी मित्रता की खातिर एक आदमी के जीवन का भी बलिदान नहीं कर सकते?’’

"कवि को मर जाना चाहिए।’’

"निस्संदेह।’’

अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया, "आज सवेरे प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे विदेश विभाग इस पेड़ की फ़ाइल उनके सामने पेश करेगा। जो वे फैसला देंगे, वही सबको स्वीकार होगा।’’

शाम के पाँच बजे स्वयं सुपरिंटेंडेंट कवि की फ़ाइल लेकर उसके पास आया, "सुनते हो!’’ आते ही वह खुशी से फ़ाइल को हिलाते हुए चिल्लाया, "प्रधानमंत्री ने इस पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया, और इस घटना की सारी अंतर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी अपने सिर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा, और तुम इस संकट से छुटकारा हासिल कर लोगे। सुनते हो? आज तुम्हारी फ़ाइल पूर्ण हो गई।’’

मगर कवि का हाथ ठंडा था, आँखों की पुतलियाँ निर्जीव और चींटियों की एक लंबी पाँत उसके मुँह में जा रही थी....।

उसके जीवन की फ़ाइल भी पूर्ण हो चुकी थी।


अभ्यास

पाठ के साथ

1. बेचारा जामुन का पेड़। कितना फलदार था।

और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं।

क. ये संवाद कहानी के किस प्रसंग में आए हैं?

ख. इससे लोगों की कैसी मानसिकता का पता चलता है?

2. दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात कैसे पता चली और इस जानकारी का फ़ाइल की यात्रा पर क्या असर पड़ा?

3. कृषि-विभाग वालों ने मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग को सौंपने के पीछे क्या तर्क दिया?

4. इस पाठ में सरकार के किन-किन विभागों की चर्चा की गई है और पाठ से उनके कार्य के बारे में क्या अंदाज़ा मिलता है?


पाठ के आस-पास

1. कहानी में दो प्रसंग एेसे हैं, जहाँ लोग पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकालने के लिए कटिबद्ध होते हैं। एेसा कब-कब होता है और लोगों का यह संकल्प दोनों बार किस-किस वजह से भंग होता है।

2. यह कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है कि इस कहानी में हास्य के साथ-साथ करुणा की भी अंतर्धारा है। अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।

3. यदि आप माली की जगह पर होते, तो हुकूमत के फैसले का इंतज़ार करते या नहीं? अगर हाँ, तो क्यों? और नहीं, तो क्यों?


शीर्षक सुझाइए

कहानी के वैकल्पिक शीर्षक सुझाएँ। निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर शीर्षक गढ़े जा सकते हैं–

  • कहानी में बार-बार फ़ाइल का ज़िक्र आया है और अंत में दबे हुए आदमी के जीवन की फाइल पूर्ण होने की बात कही गई है।
  • सरकारी दफ़्तरों की लंबी और विवेकहीन कार्यप्रणाली की ओर बार-बार इशारा किया गया है।
  • कहानी का मुख्य पात्र उस विवेकहीनता का शिकार हो जाता है।


भाषा की बात

1. नीचे दिए गए अंग्रेज़ी शब्दों के हिंदी प्रयोग लिखिए–

अर्जेंट, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, मेंबर, डिप्टी सेक्रेटरी, चीफ़ सेक्रेटरी, मिनिस्टर, अंडर सेक्रेटरी, हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट

2. इसकी चर्चा शहर में भी फैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए– यह एक संयुक्त वाक्य है, जिसमें दो स्वतंत्र वाक्यों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द और से जोड़ा गया है। संयुक्त वाक्य को इस प्रकार सरल वाक्य में बदला जा सकता है इसकी चर्चा शहर में फैलते ही शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए। पाठ में से पाँच संयुक्त वाक्यों को चुनिए और उन्हें सरल वाक्य में रूपांतरित कीजिए।

3. साक्षात्कार अपने-आप में एक विधा है। जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी के फाइल बंद होने (मृत्यु) के लिए ज़िम्मेदार किसी एक व्यक्ति का काल्पनिक साक्षात्कार करें और लिखें।


शब्द छवि

झक्कड़ - आँधी

रुआँसा - रोनी सूरत

ताज्जुब - आश्चर्य

हॉर्टीकल्चर - उद्यान कृषि

एग्रीकल्चर - कृषि

तगाफ़ुल - विलंब, देर, उपेक्षा


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