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शिला पर चली शिला हुई चूर, गिरि पर चली तो गिरि में पड़ी दरार

(वचन सौरभ)

अक्कमहादेवी

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जन्मः 12वीं सदी, कर्नाटक के उडुतरी गाँव ज़िला–शिवमोगा

प्रमुख रचनाएँः हिंदी में वचन सौरभ नाम से अंग्रेज़ी में स्पीकिंग अॉफ़ शिवा (सं.-ए. के. रामानुजन)

इतिहास में वीर शैव आंदोलन से जुड़े कवियों, रचनाकारों की एक लंबी सूची है। अक्कमहादेवी इस आंदोलन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कवयित्री थीं। चन्नमल्लिकार्जुन देव (शिव) इनके आराध्य थे। बसवन्ना और अल्लामा प्रभु इनके समकालीन कन्नड़ संत कवि थे। कन्नड़ भाषा में अक्क शब्द का अर्थ बहिन होता है।

अक्कमहादेवी अपूर्व सुंदरी थीं। एक बार वहाँ का स्थानीय राजा इनका अद्भुत-अलौकिक सौंदर्य देखकर मुग्ध हो गया तथा इनसे विवाह हेतु इनके परिवार पर दबाव डाला। अक्कमहादेवी ने विवाह के लिए राजा के सामने तीन शर्तें रखीं। विवाह के बाद राजा ने उन शर्तों का पालन नहीं किया, इसलिए महादेवी ने उसी क्षण वस्त्राभूषण तथा राज-परिवार को छोड़ दिया। पर यह त्याग स्त्री केवल शरीर नहीं है इसके गहरे बोध के साथ महावीर आदि महापुरुषों के समक्ष खड़े होने का प्रयास था। इस दृष्टि से देखें तो मीरा की पंक्ति तन की आस कबहू नहीं कीनी ज्यों रणमाँही सूरो अक्क पर पूर्णतः चरितार्थ होती है।

अक्क के कारण शैव आंदोलन से बड़ी संख्या में स्त्रियाँ (जिनमें अधिकांश निचले तबकों से थीं) जुड़ीं और अपने संघर्ष और यातना को कविता के रूप में अभिव्यक्ति दी।

इस प्रकार अक्कमहादेवी की कविता पूरे भारतीय साहित्य में इस क्रांतिकारी चेतना का पहला सर्जनात्मक दस्तावेज़ है और संपूर्ण स्त्रीवादी आंदोलन के लिए एक अजस्र प्रेरणास्रोत भी।

यहाँ इनके दो वचन लिए गए हैं। दोनों वचनों का अंग्रेज़ी से अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। प्रथम कविता या वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है। यह उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मनुहार है।

दूसरा वचन एक भक्त का ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है। चन्नमल्लिकार्जुन की अनन्य भक्त अक्कमहादेवी उनकी अनुकंपा के लिए हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे एेसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं जिससे उनका स्व या अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाए।

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( 1 )

हे भूख! मत मचल

प्यास, तड़प मत

हे नींद ! मत सता

क्रोध, मचा मत उथल-पुथल

हे मोह ! पाश अपने ढील

लोभ, मत ललचा

हे मद! मत कर मदहोश

ईर्ष्या, जला मत

ओ चराचर! मत चूक अवसर

आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का

( 2 )

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

मँगवाओ मुझसे भीख

और कुछ एेसा करो

कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह

झोली फैलाऊँ और न मिले भीख

कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को

तो वह गिर जाए नीचे

और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने

तो कोई कुत्ता आ जाए

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।


अभ्यास

कविता के साथ

1. लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं– इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।

2. ओ चराचर! मत चूक अवसर – इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गईं है और क्यों?


कविता के आस-पास

1. क्या अक्क महादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है? चर्चा करें।


शब्द-छवि

पाश - जकड़

ढील - ढीला करना

मद - नशा

चराचर - जड़ और चेतन

चन्नमल्लिकार्जुन - शिव


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