पद्माकर

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(सन् 1753-1833)

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रीतिकाल के कवियों में पद्माकर का महत्त्वपूर्ण स्थान हैै। वे बाँदा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। उनके परिवार का वातावरण कवित्वमय था। उनके पिता के साथ-साथ उनके कुल के अन्य लोग भी कवि थे, अतः उनके वंश का नाम ही ‘कवीश्वर’ पड़ गया था। वे अनेक राज-दरबारों में रहे। बूँदी दरबार की ओर से उन्हें बहुत सम्मान, दान आदि मिला। पन्ना महाराज ने उन्हें बहुत से गाँव दिए। जयपुर नरेश ने उन्हें कविराज शिरोमणि की उपाधि दी और साथ में जागीर भी। उनकी रचनाओं में हिम्मतबहादुर विरुदावली, पद्माभरण, जगद्विनोद, रामरसायन, गंगा लहरी आदि प्रमुख हैं।

पद्माकर ने सजीव मूर्त विधान करने वाली कल्पना के द्वारा प्रेम और सौंदर्य का मार्मिक चित्रण किया है। जगह-जगह लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग द्वारा वे सूक्ष्म-से-सूक्ष्म भावानुभूतियों को सहज ही मूर्तिमान कर देते हैं। उनके ऋतु वर्णन में भी इसी जीवंतता और चित्रात्मकता के दर्शन होते हैं। उनके आलंकारिक वर्णन का प्रभाव परवर्ती कवियों पर भी पड़ा है। पद्माकर की भाषा सरस, सुव्यवस्थित और प्रवाहपूर्ण है। काव्य-गुणों का पूरा निर्वाह उनके छंदों में हुआ है। गतिमयता और प्रवाहपूर्णता की दृष्टि से सवैया और कवित्त पर जैसा अधिकार पद्माकर का था, वैसा अन्य किसी कवि का नहीं दिखाई पड़ता। भाषा पर पद्माकर का अद्भुत अधिकार था। अनुप्रास द्वारा ध्वनिचित्र खड़ा करने में वे अद्वितीय हैं।

पाठ्यपुस्तक में संकलित पहले कवित्त में कवि ने प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन किया है। प्रकृति का संबंध विभिन्न ऋतुओं से है। वसंत ऋतुओं का राजा है। वसंत के आगमन पर प्रकृति, विहग और मनुष्यों की दुनिया में जो सौंदर्य संबंधी परिवर्तन आते हैं, कवि ने इसमें उसी को लक्षित किया है। दूसरे कवित्त में गोपियाँ लोक-निंदा और सखी-समाज की कोई परवाह किए बिना कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती हैं। अंतिम कवित्त में कवि ने वर्षा ऋतु के सौंदर्य को भौंरों के गुंजार, मोरों के शोर और सावन के झूलों में देखा है। मेघ के बरसने में कवि नेह को बरसते देखता है।

 

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1

औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,

औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।

कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,

छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।

औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,

एेसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।

औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,

औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।

2

गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के

जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।

कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,

द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।

तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,

नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।

हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,

बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।

 

3

भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,

मंजुल मलारन को गावनो लगत है।

कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,

प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।

मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,

हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।

नेह सरसावन में मेह बरसावन में,

सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।


प्रश्न-अभ्यास

1. पहले छंद में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है?

2. इस ऋतु में प्रकृति में क्या परिवर्तन होते हैं?

3. ‘औरै’ की बार-बार आवृत्ति से अर्थ में क्या विशिष्टता उत्पन्न हुई है?

4. ‘पद्माकर के काव्य में अनुप्रास की योजना अनूठी बन पड़ी है।’ उक्त कथन को प्रथम छंद के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

5. होली के अवसर पर सारा गोकुल गाँव किस प्रकार रंगों के सागर में डूब जाता है? दूसरे छंद के आधार पर लिखिए।

6. ‘बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं’ इस पंक्ति में गोपिका के मन का क्या भाव व्यक्त हुआ है?

7. पद्माकर ने किस तरह भाषा शिल्प से भाव-सौंदर्य को और अधिक बढ़ाया है? सोदाहरण लिखिए।

8. तीसरे छंद में कवि ने सावन ऋतु की किन-किन विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है?

9. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए–

(क) औरै भाँति कुंजन................छबि छ्वै गए।

(ख) तौ लौं चलित................बनै नहीं।

(ग) कहैं पद्माकर................लगत है।


योग्यता-विस्तार

1. वसंत एवं सावन संबंधी अन्य कवियों की कविताओं का संकलन कीजिए।

2. पद्माकर के भाषा-सौंदर्य को प्रकट करनेवाले अन्य कवित्त, सवैये भी संकलित कीजिए।


शब्दार्थ और टिप्पणी

औरै - और ही प्रकार का

कुंजन - झाड़ियों में

भीर-भौंर - भौंरों का समूह

छबीले-छैल - सुंदर नवयुवक

भाखत भनै नहीं - कहा नहीं जा सकता, वर्णन करते नहीं बनता

बोरत - डुबोना

निचौरे - निचोड़ना

मंजुल - सुंदर

मलारन - मल्हार राग

हिंडोरन - झूला