श्रीकांत वर्मा

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(सन् 1931-1986)

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श्रीकांत वर्मा का जन्म बिलासपुर, मध्य प्रदेश में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई। सन् 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. करने के बाद उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना साहित्यिक जीवन शुरू किया। वे श्रमिक, कृति, दिनमान और वर्णिका आदि पत्रों से संबद्ध रहे। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें तुलसी पुरस्कार, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार और शिखर सम्मान से सम्मानित किया। उन्हें केरल का कुमारन आशान राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

श्रीकांत वर्मा की कविताओं में समय और समाज की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के प्रति क्षोभ का स्वर प्रकट हुआ है। भटका मेघ, दिनारंभ, मायादर्पण, जलसाघर और मगध उनके चर्चित काव्य संग्रह हैं। इन कविताओं से गुज़रते हुए यह महसूस होता है कि कवि का अपने परिवेश और संघर्षरत मनुष्य से गहरा लगाव है। उसके आत्मगौरव और भविष्य को लेकर वे लगातार चिंतित हैं। उनमेें यदि परंपरा का स्वीकार है, तो उसे तोड़ने और बदलने की बेचैनी भी। प्रारंभ में उनकी कविताएँ अपनी ज़मीन और ग्राम्य-जीवन की गंध को अभिव्यक्त करती हैं किंतु जलसा घर तक आते-आते महानगरीय बोध का प्रक्षेपण करने लगती हैं या कहना चाहिए, शहरीकृत अमानवीयता के खिलाफ़ एक संवेदनात्मक बयान में बदल जाती हैं। इतना ही नहीं इनके दायरे में शोषित-उत्पीड़ित और बर्बरता के आतंक में जीती पूरी-की-पूरी दुनिया सिमट आती है। उनकी कविताओं में अभिव्यक्त यथार्थ हमें अनेक स्तरों पर प्रभावित करता है। उनका अंतिम कविता संग्रह मगध तत्कालीन शासक वर्ग के त्रास और उसके अंधकारमय भविष्य को बहुत प्रभावी ढंग से रेखांकित करता है।

उनकी प्रकाशित अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं – झाड़ी संवाद (कहानी-संग्रह), दूसरी बार (उपन्यास), जिरह (आलोचना), अपोलो का रथ (यात्रा-वृत्तांत), फ़ैसले का दिन (अनुवाद), बीसवीं शताब्दी के अँधेरे में (साक्षात्कार और वार्तालाप)।

पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता हस्तक्षेप में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की ज़रूरत होती है वरना व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। इस कविता में एेसे ही तंत्र का वर्णन है जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है। कवि सवाल खड़ा करता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है उस समाज में जीता-जागता मनुष्य चुप क्यों?

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हस्तक्षेप

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कोई छींकता तक नहीं

इस डर से

कि मगध की शांति

भंग न हो जाए,

मगध को बनाए रखना है, तो,

मगध में शांति

रहनी ही चाहिए

 

मगध है, तो शांति है

 

कोई चीखता तक नहीं

इस डर से

कि मगध की व्यवस्था में

दखल न पड़ जाए

मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए

 

मगध में न रही

तो कहाँ रहेगी?

क्या कहेंगे लोग?

 

लोगों का क्या?

लोग तो यह भी कहते हैं

मगध अब कहने को मगध है,

 

रहने को नहीं

 

कोई टोकता तक नहीं

इस डर से

कि मगध में

टोकने का रिवाज न बन जाए

 

एक बार शुरू होने पर

कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप–

 

वैसे तो मगधनिवासियो

कितना भी कतराओ

तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से–

 

जब कोेई नहीं करता

तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ

मुर्दा

यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है–

मनुष्य क्यों मरता है?


प्रश्न-अभ्यास

1. मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है?

2. व्यवस्था को ‘निरंकुश’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें ‘हस्तक्षेप’ ज़रूरी है – कविता को दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।

3. मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं?

4. ‘मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’ – के आधार पर मगध की स्थि्ति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

5. मुर्दे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है? प्रश्न की सार्थकता को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

6. ‘मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए’ – भाव स्पष्ट कीजिए।

7. ‘हस्तक्षेप’ कविता सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध की कविता है – स्पष्ट कीजिए।

8. निम्नलिखित लाक्षणिक प्रयोगों को स्पष्ट कीजिए –

(क) कोई छींकता तक नहीं

(ख) कोई चीखता तक नहीं

(ग) कोई टोकता तक नहीं

9. निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए –

(क) मगध को बनाए रखना है, तो,..........मगध है, तो शांति है

(ख) मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए..........क्या कहेंगे लोग?

(ग) जब कोेई नहीं करता..........मनुष्य क्यों मरता है?


योग्यता-विस्तार

1. ‘एक बार शुरू होने पर

कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप’

इस पंक्ति को केंद्र में रखकर परिचर्चा आयोजित करें।

2. ‘व्यक्तित्व के विकास में प्रश्न की भूमिका’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

 

 

शब्दार्थ और टिप्पणी

हस्तक्षेप - रोकना, प्रश्न उठाना

रिवाज - चलन, प्रथा

कतराओ - बचो, सामने न आओ