इकाई एक 


जीव जगत में विविधता

अध्याय 1

जीव जगत

अध्याय 2

जीव जगत का वर्गीकरण

अध्याय 3

वनस्पति जगत

अध्याय 4

प्राणि जगत

जीव विज्ञान सभी प्रकार के जीवन रचना एवं जैव प्रक्रमों का विज्ञान है! जीव जगत कौतुहल जैव विविधताओं से परिपूर्ण है! आदि मानव आसानीपूर्वक निर्जीव पदार्थ एवं सजीवों के बीच अंतर कर सकता था आदि मानव ने कुछेक निर्जीव पदार्थों (जैसे वायु, समुंद्र, आग आदि) तथा कुछ सजीव प्राणियों एवं पोधों में भेद किया था इन सभी प्रकार के जीवित एवं जीवहीन स्वरूप में, उन्होंने जो सर्वसामान्य विशिष्टताएं पाईं, वे उनके द्वारा भय या दूर भागने के भाव पर आधारित थी सजीवों का वर्णन, जिसमें मानव भी शामिल था, मानव इतिहास में काफी बाद में प्रारंभ हुआ जो समाज (जीव विज्ञान की दृष्टि से) मानवोद्भव विज्ञान में संलग्न थें वे जैव वैज्ञानिक ज्ञान में सीमित प्रगति दर्ज कर सके!

जीव स्वरूप के वर्गिकी विज्ञान एवं स्मारकीय विवरण ने विस्तृत पहचान प्रणाली नाम-पद्धति तथा वर्गीकरण पद्धति की आवश्यकता प्रदान की है इस प्रकार के अध्ययनों का सबसे बड़ ा प्रचक्रण सजीवों द्वारा ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज, दोनों ही समानताओं के भागीदारी को मान्यता देना था वर्तमान के सभी जीवों के परस्पर संबद्ध और साथ ही पृथ्वी पर आदिकाल वाले सभी जीव के साथ उनके संवादों का रहस्योद्घाटन मानवीय अहंकार और जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक सांस्कृतिक आंदोलन के कारण थे इस इकाई के अनुगामी अध्यायों में आप वर्गीकरण-परिप्रेस्य वैज्ञानिक प्राणियों एवं पादपों के वर्गीकरण सहित वर्णन के बारे में पढ़ेंगे !


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एरनस्ट मेयर

(1904 - 2004)

एर्नस्ट मेयर का जन्म 5 जुलाई, 1904 में केंपटन, जर्मनी में हुआ था आप हावर्ड विश्वविद्यालय के विकासपरक जीव वैज्ञानिक थे, जिन्हें ‘20वीं शती का डार्विन’ कहा गया आप अब तक के 100 महान वैज्ञानिकों में से एक थे मेयर ने सन् 1953 में हावर्ड विश्वविद्यालय की कला एवं विज्ञान संकाय में नौकरी प्राप्त की और 1975 मे एलेक्जेंडर अगासीज प्रो\फ़ेसर अॉफ जुलोजी एमीरिटस की पदवी के साथ अवकाश प्राप्त किया अपने 80 सालों के कार्य जीवन में आपका पक्षी-विज्ञान, वर्गीकरण-विज्ञान, प्राणि-भूगोल, विकास, वर्गिकी तथा जीव विज्ञान के इतिहास एवं दर्शन आदि पर अनुसंधान केंद्रित रहा आप ने लगभग अकेले ही विकासीय जीव विज्ञान के केंद्रीय प्रश्न जाति विविधता की उत्पत्ति को खड़ ा किया, जो कि आज सच है इसके साथ ही आपने हाल ही में स्वीकृत जीव वैज्ञानिक जाति वर्गिकी की परिभाषा की अगुवाई की मेयर को तीन पुरस्कार दिए गए, जिन्हें व्यापक तौर पर जीव विज्ञान के तीन ताजों की संज्ञा दी जाती हैः 1983 में बालजॉन प्राइज, 1998 में जीव विज्ञान के लिए इंटरनेशनल प्राइज और 1999 में क्राफूर्ड प्राइज मेयर ने 100 वर्ष की आयु में 2004 को स्वर्गवासी हुए  



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अध्याय 1

जीव जगत

1.1 ‘जीव’ क्या है?

1.2 जीव जगत में विविधता

1.3 वर्गिकी संवर्ग

1.4 वर्गिकी सहायता साधन

जीव जगत कैसा निराला है? जीवो के विस्तृत प्रकारों की शृंखला विस्मयकारी है असाधारण वास स्थान चाहे वे ठंडे पर्वत, पर्णपाती वन, महासागर, अलवणीय (मीठा) जलीय झीलें, मरूस्थल अथवा गरम झरनों जिनमें जीव रहते हैं, वे हमें आश्चर्यचकित कर देते हैं सरपट दौड़ ते घोड़ े, प्रवासी पक्षियों, घाटियों में खिलते फूल अथवा आक्रमणकारी शार्क की सुंदरता विस्मय तथा चमत्कार का आह्वान करती है पारिस्थितिक विरोध, तथा समष्टि के सदस्यों तथा समष्टि और समुदाय मे सहयोग अथवा यहां तक कि कोशिका में आण्विक गतिविधि से पता चलता है कि वास्तव में जीवन क्या है ? इस प्रश्न में दो निर्विवाद प्रश्न हैं पहला तकनीकी जो जीव तथा निर्जीव क्या हैं, इसका उत्तर खोजने का प्रयत्न करता है, तथा दूसरा प्रश्न दार्शनिक है जो यह जानने का प्रयत्न करता है कि जीवन का उद्देश्य क्या है वैज्ञानिक होने के नाते हम दूसरे प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास नहीं करेंगे हम इस विषय पर चिंतन करेंगे कि जीव क्या है?

1.1 ‘जीव’ क्या है?

जब हम जीवन को पारिभाषित करने का प्रयत्न करते हैं, तब हम प्रायः जीवों के सुस्पष्ट अभिलक्षणों को देखते हैं वृद्धि, जनन, पर्यावरण के प्रति संवेदना का पता लगाना और उसके अनुकूल क्रिया करना, ये सब हमारे मस्तिष्क में तुरंत आते हैं कि ये अद्भुत लक्षण जीवों के हैं आप इस सूची में उपापचय, स्वयं की प्रतिलिपि बनाना, स्वयं को संगठित करना, प्रतिक्रिया करना तथा उद्गमन आदि को भी जोड़ सकते हैं आओ, हम इन सबको विस्तार से समझने का प्रयत्न करें

सभी जीव वृद्धि करते हैं जीवों के भार तथा संख्या में वृद्धि होना, ये दोनों वृद्धि के द्वियुग्मी अभिलक्षण हैं बहुकोशिक जीव कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं पौधों में यह वृद्धि जीवन पर्यंत कोशिका विभाजन द्वारा संपन्न होती रहती है प्राणियों में, यह वृद्धि कुछ आयु तक होती है लेकिन कोशिका विभाजन विशिष्ट ऊतकों में होता है ताकि विलुप्त कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकायें आ सकें एककोशिक जीव भी कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं बड़ ी सरलता से कोई भी इसे पात्रे संवर्धन में सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से देखकर कोशिकाओं की संख्या गिन सकता है अधिकांश उच्चकोटि के प्राणियों तथा पादपों में वृद्धि तथा जनन पारस्परिक विशिष्ट घटनाएं हैं हमें याद रखना चाहिए कि जीव के भार में वृद्धि होने को भी वृद्धि समझा जाता है यदि हम भार को वृद्धि का अभिलक्षण मानते हैं तो निर्जीवों के भार में भी वृद्धि होती है पर्वत, गोलाश्म तथा रेत के टीले भी वृद्धि करते हैं लेकिन निर्जीवों में इस प्रकार की वृद्धि उनकी सतह पर पदार्थों के एकत्र होने के कारण होती हैं जीवों में यह वृद्धि अंदर की ओर से होती है इसलिए वृद्धि को जीवों का एक विशिष्ट गुण नहीं मान सकते हैं जीवों में यह लक्षण जिन परिस्थितियों में परिलक्षित होता है; उनका विवेचना करके ही यह समझना चाहिए कि यह जीव तंत्र के लक्षण हैं

इस प्रकार जनन भी जीवों का अभिलक्षण है वृद्धि के संदर्भ में इस तथ्य की व्याख्या हो जाती है बहुकोशिक जीवों में जनन का अर्थ अपनी संतति उत्पन्न करना है जिसके अभिलक्षण लगभग उसे अपने माता-पिता से मिलते हैं निर्विवाद रूप से हम लैंगिक जनन के विषय में चर्चा कर रहे हैं जीव अलैंगिक जनन भी करते हैं फेजाई (कवक) लाखों अलैंगिक बीजाणुओं द्वारा गुणन करती है और सरलता से फैल जाती है निम्न कोटि के जीवों जैसे यीस्ट तथा हाइड्रा में मुकुलन द्वारा जनन होता है प्लैनेरिया (चपटा कृमि) में वास्तविक पुनर्जनन होता है अर्थात् एक खंडित जीव अपने शरीर के लुप्त अंग को पुनः प्राप्त (जीवित) कर लेता है और इस प्रकार एक नया जीव बन जाता है फेजाई, तंतुमयी शैवाल, मॉस का प्रथम तंतु सभी विखंडन विधि द्वारा गुणन करते हैं जब हम एककोशिक जीवों जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया), एककोशिक शैवाल अथवा अमीबा के विषय में चर्चा करते हैं तब जनन की वृद्धि पर्यायवाची है अर्थात् कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है हम पहले ही कोशिकाओं की संख्या अथवा भार में वृद्धि होने को वृद्धि के रूप में पारिभाषित कर चुके हैं अब तक, हमने देखा है कि एककोशिक जीवों में वृद्धि तथा जनन इन दोनों शब्दों के उपयोग के विषय में सुस्पष्ट नहीं है कुछ एेसे भी जीव हैं जो जनन नहीं करते (खेसर या खच्चर, बंध्य कामगार मधुमक्खी, अनुर्वर मानव युगल आदि) इस प्रकार जनन भी जीवों का समग्र विशिष्ट लक्षण नहीं हो सकता यद्यपि, कोई भी निर्जीव वस्तु जनन अथवा अपनी प्रतिलिपि बनाने में अक्षम है

जीवों का दूसरा लक्षण उपापचयन है सभी जीव रसायनों से बने होते हैं ये रसायन छोटे, बड़ े, विभिन्न वर्ग, माप, क्रिया आदि वाले होते हैं जो अनवरत जैव अणुओं में बदलते और उनका निर्माण करते हैं ये परिवर्तन रासायनिक अथवा उपापचयी क्रियाएं हैं सभी जीवों, चाहें वे बहुकोशिक हो अथवा एककोशिक हों, में हजारों उपापचयी क्रियाएं साथ-साथ चलती रहती हैं सभी पौधों, प्राणियों, कवकों (फेजाई) तथा सूक्ष्म जीवों में उपापचयी क्रियाएं होती हैं हमारे शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाएं उपापचयी क्रियाएं हैं किसी भी निर्जीव में उपापचयी क्रियाएं नहीं होती शरीर के बाहर कोशिका मुक्त तंत्र में उपापचयी क्रियाएं प्रदर्शित हो सकती हैं जीव के शरीर से बाहर परखनली में की गई उपापचयी क्रियाएं न तो जैव हैं और न ही निर्जीव अतः उपापचयी क्रियाएं निरापवाद जीवों के विशिष्ट गुण के रूप में पारिभाषित हैं जबकि पात्रे में एकाकी उपापचयी क्रियाएं जैविक नहीं है यद्यपि ये निश्चित ही जीवित क्रियाएं हैं अतः शरीर का कोशिकीय संगठन जीवन स्वरूप का सुस्पष्ट अभिलक्षण हैं

शायद, सभी जीवो का सबसे स्पष्ट परंतु पेंचीदा अभिलक्षण अपने आस-पास या पर्यावरण के उद्दीपनों, जो भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक हो सकती हैं, के प्रति संवेदनशीलता तथा प्रतिक्रिया करना है हम अपने संवेदी अंगों द्वारा अपने पर्यावरण से अवगत होते हैं पौधे प्रकाश, पानी, ताप, अन्य जीवों, प्रदूषकों आदि जैसे बाह्य कारकों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं प्रोकेरिअॉट से लेकर जटिलतम यूकेरिअॉट तक सभी जीव पर्यावरण संकेतों के प्रति संवदेना एवं प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं पादप तथा प्राणियों दोनों में दीप्ति काल मौसमी प्रजनकों के जनन को प्रभावित करता है इसलिए सभी जीव अपने पर्यावरण से अवगत रहते हैं मानव ही केवल एेसा जीव है जो स्वयं से अवगत अर्थात् स्वचेतन है इसलिए चेतना जीवों को पारिभाषित करने के लिए अभिलक्षण हो जाती है

जब हम मानव के विषय में चर्चा करते हैं तब जीवों को पारिभाषित करना और भी कठिन हो जाता है हम रोगी को अस्पताल में अचेत अवस्था में लेटे रहते हुए देखते हैं जिसके हृदय तथा फुप्फुस को चालू रखने के लिए मशीनें लगाई गई होती हैं रोगी का मस्तिष्क मृतसम होता है रोगी में स्वचेतना नहीं होती एेसे रोगी जो कभी भी अपने सामान्य जीवन में वापस नहीं आ पाते, तो क्या हम इन्हें जीव अथवा निर्जीव
कहेंगे?

उच्चस्तरीय अध्ययन में जीव विज्ञान पृथ्वी पर जैव विकास की कथा है आपको पता लगेगा कि सभी जीव घटनाएं उसमें अंतर्निहित प्रतिक्रियाओं के कारण होती हैं ऊतकों के गुण कोशिका में स्थित कारकों के कारण नहीं हैं, बल्कि घटक कोशिकाओं की पारस्परिक प्रतिक्रिया के कारण है इसी प्रकार कोशिकीय अंगकों के लक्षण अंगकों में स्थित आण्विक घटकों के कारण नहीं बल्कि अंगकों में स्थित आण्विक घटकों के आपस में क्रिया करने के कारण हैं उच्च स्तरीय संगठन उद्गामी गुणधर्म इन प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप होते हैं सभी स्तरों पर संगठनात्मक जटिलता की पदानुक्रम में यह अद्भुत घटना यथार्थ है अतः हम कह सकते हैं कि जीव स्वप्रतिकृति, विकासशील तथा स्वनियमनकारी पारस्पारिक क्रियाशील तंत्र हैे जो बाह्य उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया की क्षमता रखते हैं जीव विज्ञान पृथ्वी पर जीवन की कहानी है वर्तमान, भूत एवं भविष्य के सभी जीव एक दूसरे से सर्वनिष्ठ आनुवंशिक पदार्थ की साझेदारी द्वारा संबद्ध है, परंतु यह पदार्थ सबमें विविध अंशों में होते हैं


1.2 जीव जगत में विविधता

यदि आप अपने आस-पास देखें तो आप जीवों की बहुत सी किस्में देखेंगे, ये किस्में, गमले में उगने वाले पौधे, कीट, पक्षी, पालतू अथवा अन्य प्राणी व पौधे हो सकती हैं बहुत से एेसे जीव भी होते हैं जिन्हें आप अाँखों की सहायता से नहीं देख सकते, लेकिन आपके आस-पास ही हैं यदि आप अपने अवलोकन के क्षेत्र को ब\ढ़ाते हैं तो आपको विविधता की एक बहुत बड़ ी शृंखला दिखाई पड़ ेगी स्पष्टतः यदि आप किसी सघन वन में जाएं तो आपको जीवों की बहुत बड़ ी संख्या तथा उनकी कई किस्में दिखाई पड़ ेंगी प्रत्येक प्रकार के पौधे, जंतु अथवा जीव जो आप देखते हैं किसी एक जाति (स्पीशीज) का प्रतीक हैं अब तक की ज्ञात तथा वर्णित स्पीशीज की संख्या लगभग 1.7 मिलियन से लेकर 1.8 मिलियन तक हो सकती है हम इसे जैविक विविधता अथवा पृथ्वी पर स्थित जीवों की संख्या तथा प्रकार कहते हैं हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि जैसे-जैसे हम नए तथा यहां तक कि पुराने क्षेत्रों की खोज करते हैं, हमें नए-नए जीवों का पता लगता रहता है

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि विश्व में कई मिलियन पौधे तथा प्राणी हैं हम पौधों तथा प्राणियों को उनके स्थानीय नाम से जानते हैं ये स्थानीय नाम एक ही देश के विभिन्न स्थान के अनुसार बदलते रहते हैं यदि हमने कोई एेसी विधि नहीं निकाली जिसके द्वारा हम किसी जीव के विषय में चर्चा कर सकें जो शायद इससे भ्रमकारी स्थिति पैदा हो सकती है

प्रत्येक जीव का एक मानक नाम होता है, जिससे वह उसी नाम से सारे विश्व में जाना जाता है इस प्रक्रिया को नाम-पद्धति कहते हैं स्पष्टतः नाम-पद्धति तभी संभव है जब जीवों का वर्णन सही हो और हम यह जानते हों कि यह नाम किस जीव का है इसे पहचानना कहते हैं

अध्ययन को सरल करने के लिए अनेकों वैज्ञानिकों ने प्रत्येक ज्ञात जीव को वैज्ञानिक नाम देने की प्रक्रिया बनाई है इस प्रक्रिया को विश्व में सभी जीव वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है पौधों के लिए वैज्ञानिक नाम का आधार सर्वमान्य नियम तथा कसौटी है, जिनको इंटरनेशनल कोड अॅाफ बोटेनीकल नोमेनकलेचर (ICBN) में दिया गया है आप पूछ सकते हैं कि प्राणियों का नामकरण कैसे किया जाता है प्राणी वर्गिकीविदों ने इंटरनेशनल कोड अॅाफ जूलोजीकल नोमेनकलेचर (ICZN) बनाया है वैज्ञानिक नाम की यह गारंटी है कि प्रत्येक जीव का एक ही नाम रहे किसी भी जीव के वर्णन से विश्व में किसी भी भाग में लोग एक ही नाम बता सके वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि एक ही नाम किसी दूसरे ज्ञात जीव का न हो

जीव विज्ञानी ज्ञात जीवों के वैज्ञानिक नाम देने के लिए सार्वजनिक मान्य नियमों का पालन करते हैं प्रत्येक नाम के दो घटक होते है: वंशनाम तथा जाति संकेत पद इस प्रणाली को जिसमें दो नाम के दो घटक होते हैं, उसे द्विपदनाम पद्धति कहते हैं इस नामकरण प्रणाली को कैरोलस लीनियस ने सुझाया था इसका उपयोग सारे विश्व के जीवविज्ञानी करते हैं दो शब्दों वाली नामकरण प्रणाली बहुत सुविधाजनक है आओ, आपको आम के उदाहरण द्वारा वैज्ञानिक नाम देने की विधि को समझाएं आम का वैज्ञानिक नाम मैंजीफेरा इंडिका है तब आप यह देख सकते हैं कि यह नाम कैसे द्विपद है इस नाम में मैंजीफेरा वंशनाम है जबकि इंडिका एक विशिष्ट स्पीशीज अथवा जाति संकेत पद है नाम पद्धति के अन्य सार्वजनिक नियम निम्नलिखित हैं ः

1. जैविक नाम प्रायः लैटिन भाषा में होते हैं और तिरछे अक्षरों में लिखे जाते हैं इनका उद्भव चाहे कहीं से भी हुआ हो इन्हें लैटिनीकरण अथवा इन्हें लैटिन भाषा का व्युत्पन्न समझा जाता है

2. जैविक नाम में पहला शब्द वंशनाम होता है जबकि दूसरा शब्द जाति संकेत पद होता है

3. जैविक नाम को जब हाथ से लिखते हैं तब दोनों शब्दों को अलग-अलग रेखांकित अथवा छपाई में तिरछा लिखना चाहिए यह रेखांकन उनके लैटिन उद्भव को दिखाता है

4. पहला अक्षर जो वंश नाम को बताता है, वह बड़ े अक्षर में होना चाहिए जबकि जाति संकेत पद में छोटा अक्षर होना चाहिए मैंजीफेरा इंडिका के उदाहरण से इसकी व्याख्या कर सकते हैं

जाति संकेत पद के बाद अर्थात् जैविक नाम के अंत में लेखक का नाम लिखते हैं और इसे संक्षेप में लिखा जाता है उदाहरणतः मैंजीफेरा इंडिका (लिन) इसका अर्थ है सबसे पहले स्पीशीज का वर्णन लीनियस ने किया था

यद्यपि सभी जीवों का अध्ययन करना लगभग असंभव है, इसलिए एेसी युक्ति बनाने की आवश्यकता है जो इसे संभव कर सके इस प्रक्रिया को वर्गीकरण कहते हैं वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें कुछ सरलता से दृश्य गुणों के आधार पर सुविधाजनक वर्ग में वर्गीकृत किया जा सके उदाहरण के लिए हम पौधों अथवा प्राणियों और कुत्ता, बिल्ली अथवा कीट को सरलता से पहचान लेते हैं जैसे ही हम इन शब्दों का उपयोग करते है, उसी समय हमारे मस्तिष्क में इन जीव के एेसे कुछ गुण आ जाते हैं जिससे उनका उस वर्ग से संबंध होता है जब आप कुत्ते के विषय में सोचते हो तो आपके मस्तिष्क में क्या प्रतिबिंब बनता है स्पष्टतः आप कुत्ते को ही देखेंगे न कि बिल्ली को अब, यदि एलशेशियन के विषय में सोचे तो हमें पता लगता है कि हम किसके विषय में चर्चा कर रहे हैं इसी प्रकार, मान लो हमें ‘स्तनधारी’ कहना है तो आप एेसे जंतु के विषय में सोचोगे जिसके बाह्य कान और शरीर पर बाल होते हैं इसी प्रकार पौधों में यदि हम ‘गेहूँ’ के विषय में चर्चा करें तो हमारे मस्तिष्क में गेहूँ का पौधा आ जाएगा इसलिए ये सभी ‘कुत्ता’, ‘बिल्ली’, ‘स्तनधारी’, ‘गेहूँ’, ‘चावल’, ‘पौधे’, ‘जंतु’ आदि सुविधाजनक वर्ग हैं जिनका उपयोग हम प\ढ़ने में करते हैं इन वर्गों की वैज्ञानिक शब्दावली टैक्सा है यहाँ आपको स्वीकार करना चाहिए कि ‘टैक्सा’ विभिन्न स्तर पर सही वर्गों को बता सकता है ‘पौधे’ भी एक टैक्सा हैं ‘गेहूँ’ भी एक टैक्सा है इसी प्रकार ‘जंतु’, ‘स्तनधारी’, ‘कुत्ता’ ये सभी टैक्सा हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुत्ता एक स्तनधारी और स्तनधारी प्राणी है इसलिए प्राणी, स्तनधारी तथा कुत्ता विभिन्न स्तरों पर टैक्सा को बताता है

इसलिए, गुणों के आधार पर सभी जीवों को विभिन्न टैक्सा में वर्गीकृत कर सकते हैं गुण जैसे प्रकार, रचना, कोशिका की रचना, विकासीय प्रक्रम तथा जीव की पारिस्थितिक सूचनाएं आवश्यक हैं और ये आधुनिक वर्गीकरण अध्ययन के आधार हैं

इसलिए, विशेषीकरण, पहचान (अभिज्ञान), वर्गीकरण तथा नाम पद्धति आदि एेसे प्रक्रम (प्रणाली) हैं जो वर्गिकी (वर्गीकरण विज्ञान) के आधार हैं

वर्गिकी कोई नई नहीं है मानव सदैव विभिन्न प्रकार के जीवों के विषय में अधिकाधिक जानने का प्रयत्न करता रहा है, विशेष रूप से उनके विषय में जो उनके लिए अधिक उपयोगी थे आदिमानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, कपड़ े तथा आश्रय के लिए नए-नए स्रोत खोजने पड़ ते थे इसलिए विभिन्न जीवों के वर्गीकरण का आधार ‘उपयोग’ पर आधारित था

काफी समय से मानव विभिन्न प्रकार के जीवों के विषय में जानने और उनकी विविधता सहित उनके संबंध में रुचि लेता रहा है अध्ययन की इस शाखा को वर्गीकरण पद्धति (सिस्टेमेटिक्स) कहते हैं ‘सिटेमेटिक्स’ शब्द लैटिन शब्द ‘सिस्टेमा’ से आया है जिसका अर्थ है जीवों की नियमित व्यवस्था लीनियस ने अपने पब्लिकेशन का टाइटल ‘सिस्टेमा नेचर’ चुना वर्गीकरण पद्धति में पहचान, नाम पद्धति तथा वर्गीकरण को शामिल करके इसके क्षेत्र को ब\ढ़ा दिया गया है वर्गीकरण पद्धति में जीवों के विकासीय संबंध का भी ध्यान रखा गया है


1.3 वर्गिकी संवर्ग

वर्गीकरण एकल सोपान प्रक्रम नहीं है; बल्कि इसमें पदानुक्रम सोपान होते हैं जिसमें प्रत्येक सोपान पद अथवा वर्ग को प्रदर्शित करता है चूँकि संवर्ग समस्त वर्गिकी व्यवस्था है इसलिए इसे वर्गिकी संवर्ग कहते हैं और तभी सारे संवर्ग मिलकर वर्गिकी पदानुक्रम बनाते हैं प्रत्येक संवर्ग वर्गीकरण की एक इकाई को प्रदर्शित करता है वास्तव में, यह एक पद को दिखाता है और इसे प्रायः वर्गक (टैक्सॉन) कहते हैं

वर्गिकी संवर्ग तथा पदानुक्रम का वर्णन एक उदाहरण द्वारा कर सकते हैं कीट जीवों के एक वर्ग को दिखाता है जिसमें एक समान गुण जैसे तीन जोड़ ी संधिपाद (टाँगें) होती हैं इसका अर्थ है कि कीट स्वीकारणीय सुस्पष्ट जीव है जिसका वर्गीकरण किया जा सकता है, इसलिए इसे एक पद अथवा संवर्ग का दर्जा दिया गया है क्या आप एेसे किसी जीवों के अन्य वर्ग का नाम बता सकते हैं? स्मरण रहे कि वर्ग संवर्ग को दिखाता है प्रत्येक पद अथवा वर्गक वास्तव में, वर्गीकरण की एक इकाई को बताता है ये वर्गिकी वर्ग/संवर्ग सुस्पष्ट जैविक है ना कि केवल आकारिकीय समूहन

सभी ज्ञात जीवों के वर्गिकीय अध्ययन से सामान्य संवर्ग जैसे जगत (किंगडम), संघ (फाइलम), अथवा भाग (पौधों के लिए), वर्ग (क्लास), गण (आर्डर), कुल (फैमिली), वंश (जीनस) तथा जाति (स्पीशीज) का विकास हुआ पौधों तथा प्राणियों दोनों में स्पीशीज सबसे निचले संवर्ग में आती है अब आप यह प्रश्न पूछ सकते हैं, कि किसी जीव को विभिन्न संवर्गों में कैसे रखते हैं ? इसके लिए मूलभूत आवश्यकता व्यष्टि अथवा उसके वर्ग के गुणों का ज्ञान होना है यह समान प्रकार के जीवों तथा अन्य प्रकार के जीवों में समानता तथा विभिन्नता को पहचानने में सहायता करता है

1.3.1 स्पीशीज (जाति)

वर्गिकी अध्ययन में जीवों के वर्ग, जिसमें मौलिक समानता होती है, उसे स्पीशीज कहते हैं हम किसी भी स्पीशज को उसमें समीपस्थ संबंधित स्पीशीज से, उनके आकारिकीय विभिन्नता के आधार पर उन्हें एक दूसरे से अलग कर सकते हैं हम इसके लिए मैंजीफेरा इंडिका (आम) सोलेनम टयूवीरोसम (आलू) तथा पेंथरा लिओ (शेर) के उदाहरण लेते हैं इन सभी तीनों नामों में इंडिका, टयूबीरोसम तथा लिओ जाति संकेत पद हैं जबकि पहले शब्द मैंजीफेरा, सोलेनम, तथा पेंथरा वंश के नाम हैं और यह टैक्सा अथवा संवर्ग का भी निरूपण करते हैं प्रत्येक वंश में एक अथवा एक से अधिक जाति संकेत पद हो सकते हैं जो विभिन्न जीवों, जिनमें आकारकीय गुण समान हों, को दिखाते हैं उदाहरणार्थ, पेंथरा में एक अन्य जाति संकेत पद है जिसे टिगरिस कहते हैं सोलेनम वंश में नाइग्रिम, मेलांजेना भी आते हैं मानव की जाति सेपियंस है, जो होमों वंश में आता है इसलिए मानव का वैज्ञानिक नाम होमोसेपियंस है

1.3.2 वंश (जीनस)

वंश में संबंधित स्पीशीज का एक वर्ग आता है जिसमें स्पीशीज के गुण अन्य वंश में स्थित स्पीशीज की तुलना में समान होते हैं हम कह सकते हैं कि वंश समीपस्थ संबंधित स्पीशीज का एक समूह है उदाहरणार्थ आलू, टमाटर तथा बैंगन; ये दोनों अलग-अलग स्पीशीज हैं, लेकिन ये सभी सोलेनम वंश में आती हैं शेर (पेंथरा लिओ), चीता (पेंथर पारडस) तथा (पेंथर टिगरिस) जिनमें बहुत से गुण हैं, वे सभी पेंथरा वंश में आते हैं यह वंश दूसरे वंश फेलिस, जिसमें बिल्ली आती है, से भिन्न है

1.3.3 कुल 

अगला संवर्ग कुल है जिसमें संबंधित वंश आते हैं वंश स्पीशीज की तुलना में कम समानता प्रदर्शित करते हैं कुल के वर्गीकरण का आधार पौधों के कायिक तथा जनन गुण हैं उदाहरणार्थ; पौधों में तीन विभिन्न वंश सोलेनम, पिटूनिआ तथा धतूरा को सोलेनेसी कुल में रखते हैं जबकि प्राणी वंश पेंथरा जिसमें शेर, बाघ, चीता आते हैं को फेलिस (बिल्ली) के साथ फेलिडी कुल में रखे जाते हैं इसी प्रकार, यदि आप बिल्ली तथा कुत्ते के लक्षण को देखो तो आपको दोनों में कुछ समानताएं तथा कुछ विभिन्नताएं दिखाई पड़ ेंगी उन्हें क्रमशः दो विभिन्न कुलों कैनीडी तथा फेलिडी में रखा गया है

1.3.4 गण (आर्डर)

आपने पहले देखा है कि संवर्ग जैसे स्पीशीज, वंश तथा कुल समान तीनों लक्षणों पर आधारित है प्रायः गण तथा अन्य उच्चतर वर्गिकी संवर्ग की पहचान लक्षणों के समूहन के आधार पर करते हैं गण में उच्चतर वर्ग होने के कारण कुलों के समूह होते हैं जिनके कुछ लक्षण एक समान होते हैं इसमें एक जैसे लक्षण कुल में शामिल विभिन्न वंश की अपेक्षा कम होते हैं पादप कुल जैसे कोनवोलव्युलेसी, सोलेनेसी को पॉलिसोनिएलस गण में रखा गया है इसका मुख्य आधार पुष्पी लक्षण है जबकि प्राणी कारनीवोरा गण में फेलिडी तथा कैनीडी कुलों को रखा गया है

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1.3.5 वर्ग (क्लास)

इस संवर्ग में संबंधित गण आते हैं उदाहरणार्थ प्राइमेटा गण जिसमें बंदर, गोरिला तथा गिब्बॅान आते हैं, और कारनीवोरा गण जिसमें बाघ, बिल्ली तथा कुत्ता आते हैं, को मैमेलिया वर्ग में रखा गया है इसके अतिरिक्त मैमेलिया वर्ग में अन्य गण भी आते हैं

1.3.6 संघ (फाइलम)

वर्ग जिसमें जंतु जैसे मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी आते हैं, अगले उच्चतर संवर्ग, जिसे संघ कहते हैं, का निर्माण करते हैं इन सभी को एक समान गुणों जैसे पृष्ठरज्जु (नोटोकॉर्ड) तथा पृष्ठीय खोखला तंत्रिका तंत्र के होने के आधार पर कॉर्डेटा संघ में रखा गया है पौधों में इन वर्गों, जिसमें कुछ ही एक समान लक्षण होते हैं, को उच्चतर संवर्ग भाग (डिविजन) में रखा गया है

1.3.7 जगत (किंगडम)

जंतु के वर्गिकी तंत्र में विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को उच्चतम संवर्ग जगत में रखा गया है जबकि पादप जगत में विभिन्न भाग (डिविजन) के सभी पौधों को रखा गया है विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को एक अलग जगत एनिमेलिया में रखा गया है जिससे कि उन्हें पौधों से अलग किया जा सके पौधों को प्लांटी जगत में रखा गया है भविष्य में हम इन दो वर्गों को जंतु तथा पादप जगत कहेंगे!

इनमें स्पीशीज से लेकर जगत तक विभिन्न वर्गिकी संवर्ग को आरोही क्रम में दिखाया गया है ये संवर्ग हैं यद्यपि वर्गिकी विज्ञानियों ने इस पदानुक्रम में उपसंवर्ग भी बताए हैं इसमें विभिन्न टैक्सा का उचित वैज्ञानिक स्थान देने में सुविधा होती है!

चित्र 1.1 में पदानुक्रम को देखो क्या आप इस व्यवस्था के आधार का स्मरण कर सकते हो ? उदाहरण के लिए जैसे-जैसे हम स्पीशीज से जगत की ओर ऊपर जाते हैं; वैसे ही समान गुणों में कमी आती जाती है सबसे नीचे जो टैक्सा होगा उसके सदस्यों में सबसे अधिक समान गुण होंगे जैसे-जैसे उच्चतर संवर्ग की ओर जाते हैं, उसी स्तर पर अन्य टैक्सा के संबंध निर्धारित करने अधिक कठिन हो जाते हैं इसलिए वर्गीकरण की समस्या और भी जटिल हो जाती है


तालिका 1.1 में कुछ सामान्य जीवों जैसे घरेलू मक्खी, मानव, आम तथा गेहूँ के विभिन्न वर्गिकी संवर्गों को दिखाया गया है

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1.4 वर्गिकी सहायता साधन

जीवों की पहचान के लिए एक गहन तथा आधुनिक उपकरणों से संसाधित प्रयोगशाला तथा प्रयोगशाला के बाहर के पर्यावरण के अध्ययन की आवश्यकता होती है पौधों तथा प्राणियों के वास्तविक नमूने एकत्र करने आवश्यक होते हैं ये वर्गिकी अध्ययन के मुख्य स्रोत होते हैं ये अध्ययन के मौलिक तथा वर्गीकरण विज्ञान के प्रशिक्षण के लिए आवश्यक हैं इनका उपयोग जीवों के वर्गीकरण में किया जाता है जो भी सूचनाएं एकत्र की जाती हैं उन्हें नमूने सहित संचयित कर लेते हैं कुछ मामलों में नमूने को भविष्य में अध्ययन के लिए परिरक्षित कर लेते हैं जीवविज्ञानियों ने सूचना सहित नमूनों को संचय करने तथा उन्हें परिरक्षित करने की कुछ विधियाँ तथा तकनीक विकसित की हैं उनमें से कुछ का वर्णन किया गया है जो आपको इन सहायता साधनों को उपयोग करने में सहायता करेंगे

1.4.1 हरबेरियम

वनस्पति संग्रहालय में पौधों के एकत्र नमूनों को काग\ज़ की शीट पर सुखाकर, दबाकर परिरक्षित करते हैं इन शीटों को विश्वव्यापी मान्य वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार व्यवस्थित करते हैं ये नमूने सूचना सहित भविष्य में अध्ययन के लिए वनस्पति संग्रहालय में सुरक्षित रखे जाते हैं हरबेरियम की शीट पर एक लेबल लगा दिया जाता है इस लेबल पर पौधे को एकत्र करने की तिथि, स्थान, पौधे का इंग्लिश, स्थानीय तथा वैज्ञानिक नाम, कुल, एकत्र करने वाले का नाम आदि लिखा रहता है हरबेरियम वर्गिकी अध्ययन के लिए तत्काल संदर्भ तंत्र उपलब्ध कराता है

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चित्र 1.2 वनस्पति संग्रहालय में पौधों के एकत्रित नमूने

1.4.2 वनस्पति उद्यान (बोटेनिकल गार्डन)

इन विशिष्ट उद्यानों में संदर्भ के लिए जीवित पौधों का संग्रहण होता है इन उद्यानों में पौधों की स्पीशीज को पहचान के लिए उगाया जाता है और प्रत्येक पौधे पर लेबल लगा रहता है, जिस पर वनस्पति/वैज्ञानिक नाम तथा उसके कुल का नाम लिखा रहता है प्रसिद्ध बोटेनिकल गार्डन क्यिू (इंगलैंड), इंडियन बोटेनिकल गार्डन हावड़ ा (भारत) में तथा नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ (भारत) में हैं

1.4.3 संग्रहालय (म्यूजियम)

वानस्पतिक संग्रहालय प्रायः शैक्षिक संस्थानों जैसे विद्यालय तथा कॉलेजों में स्थापित किए जाते हैं संग्रहालय में अध्ययन के लिए परिरक्षित पौधों तथा प्राणियों के नमूने होते हैं नमूने परिरक्षित घोल में डालकर जारों में रखे जाते हैं पौधे तथा प्राणियों के नमूनों को सुखाकर परिरक्षित करते हैं कीटों को एकत्र, मारने के बाद कीटों को डिब्बों में पिन लगाकर रखते हैं बड़ े प्राणी जैसे पक्षी तथा स्तनधारी को प्रायः भरकर परिरक्षित करते हैं संग्रहालय में प्रायः प्राणियों के कंकाल भी रखे जाते हैं

1.4.4 प्राणि उपवन अथवा चिड़ ियाघर (जूलोजिकल पार्क)

इन उपवनों में अधिकांशतः वन्य आवासी जीवित प्राणी रखे जाते हैं इनसे हमें वन्य जीवों की मानव की देख रेख में आहार-प्रकृति तथा व्यवहार को सीखने का अवसर प्राप्त होता है जहाँ तक संभव होता है; प्राणी उपवनों में विभिन्न प्राणी उपलब्ध कराए जाते हैं चिड़ ियाघर में सभी प्राणियों को उनके प्राकृतिक आवासों वाली परिस्थितियों में रखने का प्रयास किया जाता है इन उद्यानों को प्रायः चिड़ ियाघर कहते हैं इसे देखने के लिए बहुत से लोग तथा बच्चे आते हैं

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चित्र 1.3 भारत के विभिन्न चिड़ याघरों में वन्य प्राणी



1.4.5 कुंजी अथवा चाबी

यह एक अन्य साधन सामग्री है जिसका प्रयोग समानताओं तथा असमानताओं पर आधारित होकर पौधों तथा प्राणियों की पहचान में किया जाता है यह कुंजी विपर्यासी लक्षणों, जो प्रायः जोड़ ों (युग्मों) जिन्हें युग्मित कहते हैं, के आधार पर होती है कुंजी दो विपरीत विकल्पों को चुनने को दिखाती है इसके परिणामस्वरूप एक को मान्यता तथा दूसरे को अमान्यता प्राप्त होती हैं कुंजी में प्रत्येक कथन मार्गदर्शन का कार्य करता है पहचानने के लिए प्रत्येक वर्गिकी संवर्ग जैसे कुल, वंश तथा जाति के लिए अलग वर्गिकी कुंजी की आवश्यकता होती है

विस्तृत वर्णन को लिखने के लिए नियम-पुस्तिका (मैन्युअल), मोनोग्राफ (पुस्तक जिसमें एक विषय पर विस्तृत जानकारी हो), तथा सूचीपत्र (कैटेलॉग) अन्य माध्यम हैं इसके अतिरिक्त यह सही पहचान में भी सहायता करते हैं फ्लोरा पुस्तकों में किसी क्षेत्र के पौधों तथा उसके वासस्थानों के विषय में जानकारी होती है ये उस विशेष क्षेत्र में मिलने वाली पौधों की स्पीशीज की विषय-सूची देती हैं नियम पुस्तिका से उस क्षेत्र में पाई जाने वाली स्पीशीज को पहचानने में सहायता मिलती है मोनोग्राफ में किसी एक टैक्सान की पूरी जानकारी होती है

  

सारांश

जीव जगत में प्रचुर मात्रा में विविधताएं दिखाई पड़ ती हैं असंख्य पादप तथा प्राणियों की पहचान तथा उनका वर्णन किया गया है; परंतु अब भी इनकी बहुत बड़ ी संख्या अज्ञात है जीवों के एक विशाल परिसर को आकार, रंग, आवास, शरीर क्रियात्मक तथा आकारिकीय लक्षणों के कारण हमें जीवों की व्याख्या करने के लिए बाधित होना पड़ ता है जीवों की विविधता तथा इनकी किस्मों के अध्ययन को सुसाध्य एवं सरल बनाने के लिए जीव विज्ञानियों ने कुछ नियमों तथा सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, जिससे जीवों की पहचान, उनका नाम पद्धति तथा वर्गीकरण संभव हो सकें ज्ञान की इस शाखा को वर्गिकी का नाम दिया गया है पादपों तथा प्राणियों की विभिन्न स्पीशीज का वर्गिकी अध्ययन कृषि वानिकी और हमारे जैव-संसाधन में भिन्नता के सामान्य ज्ञान में लाभदायक सिद्ध हुए वर्गिकी के मूलभूत आधार जैसे जीवों की पहचान, उनका नामकरण, तथा वर्गीकरण विश्वव्यापी रूप से अंतर्राष्ट्रीय कोड के अंतर्गत विकसित किया गया है समरूपता तथा विभिन्नताओं को आधार मानकर प्रत्येक जीव को पहचाना गया है तथा उसे द्विपद नाम दिया गया सही वैज्ञानिक तंत्र के अनुसार द्विपद नाम पद्धति, जीव वैज्ञानिक नाम जो दो शब्दों से मिलकर बना होता है, दिया जा सकता है जीव वर्गीकरण तंत्र में अपने स्थान को प्रदर्शित करता है बहुत से वर्ग/पद होते हैं जिन्हें प्रायः वर्गिकी संवर्ग अथवा टैक्सा कहते हैं यह सभी वर्ग वर्गिकी पदानुक्रम बनाते हैं

वर्गिकीविदों ने जीव की पहचान नामकरण तथा वर्गीकरण को सुगम बनाने के लिए विभिन्न वर्गिकी साधन सामग्री विकसित की ये अध्ययन वास्तविक नमूनों पर किए जाते हैं जिन्हें भिन्न क्षेत्रों से एकत्रित किया जाता है इन्हें हरबेरियम, म्यूजियम, बोटेनिकल गार्डन, जूलॉजिकल पार्क में संदर्भ के लिए परिरक्षित किया जाता है हरबेरियम तथा म्यूजियम में नमूनों के एकत्रित करने तथा परिरक्षित करने के लिए विशिष्ट तकनीक की आवश्यकता होती है वनस्पति उद्यान अथवा चिड़ िया घर में पौधों तथा प्राणियों के जीवित नमूने होते हैं वर्गिकीविदों ने वर्गिकी अध्ययन तथा सूचनाओं को प्रसारित करने के लिए मैनुअल तथा मोनोग्राफों को तैयार किया लक्षणों के आधार पर वर्गिकी कुंजी जीवों को पहचानने में सहायक सिद्ध हुई हैं

 

अभ्यास

1. जीवों को वर्गीकृत क्यों करते हैं?

2. वर्गीकरण प्रणाली को बार-बार क्यों बदलते हैं ?

3. जिन लोगों से आप प्रायः मिलते रहते हैं, आप उनको किस आधार पर वर्गीकृत करना पसंद करेंगे ? (संकेत ः ड्रेस, मातृभाषा, प्रदेश जिसमें वे रहते हैं, आर्थिक स्तर आदि)

4. व्यष्टि तथा समष्टि की पहचान से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

5. आम का वैज्ञानिक नाम निम्नलिखित हैं इसमें से कौन सा सही है ?

मेंजीफेरा इंडिका

मेंजीफेरा इंडिका

6. टैक्सॉन की परिभाषा दीजिए विभिन्न पदानुक्रम स्तर पर टैक्सा के कुछ उदाहरण दीजिए

7. क्या आप वर्गिकी संवर्ग का सही क्रम पहचान सकते हैं?

(अ) जाति (स्पीशीज) गण (आर्डर) संघ (फाइलम) जगत (किंगडम) (ब) वंश (जीनस) जाति गण जगत

(स) जाति वंश गण संघ

8. जाति शब्द के सभी मानवीय वर्तमान कालिक अर्थों को एकत्र कीजिए क्या आप अपने शिक्षक से उच्च कोटि के पौधों तथा प्राणियों तथा बैक्टीरिया की स्पीशीज का अर्थ जानने के लिए चर्चा कर सकते हैं?

9. निम्नलिखित शब्दों को समझिए तथा परिभाषित कीजिए-

(i) संघ (ii) वर्ग (iii) कुल (iv) गण (v) वंश

10. जीव के वर्गीकरण तथा पहचान में कुंजी किस प्रकार सहायक है?

11. पौधों तथा प्राणियों के उचित उदाहरण देते हुए वर्गिकी पदानुक्रम का चित्रण कीजिए