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अध्याय 21

तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय


21.1 तंत्रिकीय तंत्र

21.2 मानव का तंत्रिकीय तंत्र

21.3 तंत्रि कोशिका तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई

21.4 केंद्रीय तंत्रिका तंत्र

21.5 प्रतिवर्ती क्रिया एक प्रतिवर्ती चाप

21.6 संवेदिक अभिग्रहण एवं प्रसंसाधन


जैसा कि तुम जानते हो मानव शरीर में बहुत से अंग एवं अंग तंत्र पाए जाते हैं जो कि स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ होते हैं! जैव स्थिरता (समअवस्था) बनने हेतु इन अंगों के कार्यों में समन्वय अत्यधिक आवश्यक है! समन्वयता एक एेसी क्रियाविधि है, जिसके द्वारा दो या अधिक अंगों में क्रियाशीलता बढ़ती है व एक-दूसरे अंगों के कार्यों में मदद मिलती है! उदाहरणार्थ, जब हम शारीरिक व्यायाम करते हैं तो पेशियों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ जाती है! अॉक्सीजन की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है! अॉक्सीजन की अधिक आपूर्ति के लिए श्वसन दर, हृदय स्पंदन, दर एवं वृक्क वाहिनियों में रक्त प्रवाह की दर बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है! जब शारीरिक व्यायाम बंद कर देते हैं तो तंत्रिकीय क्रियाएं, फुप्फुस, हृदय रुधिर वाहिनियों, वृक्क व अन्य अंगों के कायाेंρ में समन्वय स्थापित हो जाता है! हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र एवं अंतःस्रावी तंत्र सम्मिलित रूप से अन्य अंगों की क्रियाओं में समन्वय करते हैं तथा उन्हें एकीकृत करते हैं, जिससे सभी क्रियाएं एक साथ संचालित होती रहती हैं!

तंत्रिकीय तंत्र एेसे व्यवस्थित जाल तंत्र गठित करता है, जो त्वरित समन्वय हेतु बिंदु दर बिंदु जुड़ा रहता है! अंतःस्रावी तंत्र हार्मोन द्वारा रासायनिक समन्वय बनाता है! इस अध्याय में आप मनुष्य के तंत्रिकीय तंत्र एवं तंत्रिकीय समन्वय की क्रियाविधि जैसे तंत्रिकीय आवेग का संचरण, आवेगों का सिनेप्स से संचरण तथा प्रतिवर्ती क्रियाओं की कार्यिकी का अध्ययन करेंगे!


21.1 तंत्रिकीय तंत्र

सभी प्राणियों का तंत्रिका तंत्र अति विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं से बनता है, जिन्हें तंत्रिकोशिका कहते हैं! ये विभिन्न उद्दीपनों को पहचान कर ग्रहण करती हैं तथा इनका संचरण करती हैं!

निम्न अकशेरुकी प्राणियों में तंत्रिकीय संगठन बहुत ही सरल प्रकार का होता है! उदाहरणार्थ हाइड्रा में यह तंत्रिकीय जाल के रूप में होता है! कीटों का तंत्रिका तंत्र अधिक व्यवस्थित होता है! यह मस्तिष्क अनेक गुच्छिकाओं एवं तंत्रिकीय ऊतकों का बना होता है! कशेरुकी प्राणियों में अधिक विकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है!

21.2 मानव का तंत्रिकीय तंत्र

मानव का तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है (क) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तथा (ख) परिधीय तंत्रिका तंत्र! केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु सम्मिलित है, जहाँ सूचनाओं का संसाधन एवं नियंत्रण होता है! मस्तिष्क एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र सभी तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क व मेरूरज्जू) से जुड़ी होती हैं! परिधीय तंत्रिका तंत्र में दो प्रकार की तंत्रिकाएं होती हैं (अ) संवेदी या अभिवाही एवं (ब) चालक/प्रेरक या अपवाही! संवेदी या अभिवाही तंत्रिकाएं उद्दीपनों को ऊतकों/अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक तथा चालक/अभिवाही  तंत्रिकाएं नियामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित परिधीय ऊतक/अंगों तक पहुँचाती हैं!

परिधीय तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है कायिक तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र! कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहुँचाता है! स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पुनः दो भागों - (अ) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र व (ब) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में वर्गीकृत किया गया है! अंतरंग तंत्रिका तंत्र परिधीय तंत्रिका तंत्र का एक भाग है! इसके अंतर्गत वे सभी तंत्रिकाएँ, तंत्रिका तंतु, गुच्छिकाएँ एवं जालिकाएँ सम्मिलित हैं जिनके द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से आवेग, अंतरंगों तक तथा अंतरंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक संचरित होते हैं!

21.3 तंत्रिकोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई

न्यूरॉन एक सूक्ष्मदर्शीय संरचना है जो तीन भागाें से मिलकर बनती है - कोशिका काय, दुम्राक्ष्य व तंत्रिकाक्ष (चित्र 21.1)! कोशिका काय में कोशिका द्रव्य व प्रारूपिक कोशिकांग व विशेष दानेदार अंगक निसेल ग्रेन्यूल पाए जाते हैं! छोटे तंतु जो कोशिका काय से प्रवर्धित होकर लगातार विभाजित होते हैं तथा जिनमें निसेल ग्रेन्यूल भी पाए जाते हैं, दुम्राक्ष्य कहलाते हैं! ये तंतु उद्दीपनों को कोशिका काय की ओर भेजते हैं! एक तंत्रिकोशिका में एक तंत्रिकाक्ष निकलता है! इसका दूरस्थ भाग शाखित व प्रत्येक शाखित भाग का अंतिम छोर लड़ीनुमा संरचना सिनेप्टिक नोब जिसमें सिनेप्टी पुटिकाएं होती हैं, इसमें रसायन न्यूरोट्रांसमीटर्स पाए जाते हैं! तंत्रिकाक्ष तांत्रिकीय आवेगों को कोशिका काय से दूर सिनेप्स पर अथवा तांत्रिकीयपेशी संधि पर पहुँचाते हैं! तंत्रिकाक्ष तथा दुम्राक्ष की संख्या के आधार पर न्यूरोंस को तीन समूहों में बाँटते हैं! जैसे बहुध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष व दो या अधिक दुम्राक्ष्य युक्त जो प्रमस्तिष्क वल्कुट में पाए जाते हैं!) तथा द्विध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष एवं एक द्रुमाक्ष्य जो दृष्टि पटल में पाए जाते हैं!) तंत्रिकाक्ष दो प्रकार के होते हैंः आच्छदी व आच्छदहीन! आच्छदी तंत्रिका तंतु श्वान कोशिका से ढके रहते हैं, जो तंत्रिकाक्ष के चारो ओर माइलिन आवरण बनाती है! माइलिन आवरणों के बीच अंतराल पाए जाते हैं, जिन्हें रेनवीयर के नोड कहते हैं! आच्छदी तंत्रिका तंतु मेरू व कपाल तंत्रिकाओं में पाए जाते हैं! आच्छदहीन तंत्रिका तंतु भी श्वान कोशिका से घिरे रहते हैं; लेकिन वे एेक्सोन के चारों ओर माइलीन आवरण नहीं बनाते हैं! सामान्यतया स्वायत्त तथा कायिक तंत्रिका तंत्र में मिलते हैं!

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चित्र 21.1 तंत्रिकोशिका की संरचना

21.3.1 तंत्रिका आवेगों की उत्पत्ति व संचरण

तंत्रिकोशिकाएं (न्यूरोंस)उद्दीपनशील कोशिकाएं हैं; क्योंकि उनकी झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में रहती है! क्या आप जानते हैं, यह झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में क्यों रहती है? विभिन्न प्रकार के आयन पथ (चैनल) तंत्रिका झिल्ली पर पाए जाते हैं! ये आयन पथ विभिन्न आयनों के लिए चयनात्मक पारगम्य हैं! जब कोई न्यूरॉन आवेगों का संचरण नहीं करते हैं जैसे कि विराम अवस्था में तंत्रिकाक्ष झिल्ली सोडियम आयंस की तुलना में पोटैसियम आयंस तथा क्लोराइड आयंस के लिए अधिक पारगम्य होती है! इसी प्रकार से झिल्ली, तंत्रिकाक्ष द्रव्य में उपस्थित ऋण आवेषित प्रोटिकाल में भी अपारगम्य होती है! धीरे-धीरे तंत्रिकाक्ष के तंत्रिका द्रव्य में K+ तथा ऋणात्मक आवेषित प्रोटीन की उच्च सांद्रता तथा Na+ की निम्न सांद्रता होती है! इस भिन्नता के कारण सांन्द्रता प्रवणता बनती है! झिल्ली पर पाई जाने वाली इस आयनिक प्रवणता को सोडियम पोटैसियम पंप द्वारा नियमित किया जाता है! इस पंप द्वारा प्रतिचक्र 3Na+ बाहर की ओर व 2K+ कोशिका में प्रवेश करते हैं! परिणामस्वरूप तंत्रिकाक्ष झिल्ली की बाहरी सतह धन आवेशित; जबकि अांतरिक सतह ऋण आवेशित हो जाती है; इसलिए यह ध्रुवित हो जाती है! विराम स्थिति में प्लाज्मा झिल्ली पर इस विभवांतर को विरामकला विभव कहते हैं!

आप यह जानने के लिए उत्सुक हाेंगे कि तंत्रिकाक्ष पर तंत्रिका आवेग की उत्पत्ति एवं उसका संचरण किस प्रकार होता है? जब किसी एक स्थान पर ध्रुवित झिल्ली पर आवेग होता है (चित्र 21.2 का उदाहरण) तब A स्थल की ओर स्थित झिल्ली Na+ के लिए मुक्त पारगमी हो जाती है! जिसके फलस्वरूप Na+ तीव्र गति से अंदर जाते हैं और एक सतह पर विपरीत ध्रुवता हो जाती है अर्थात् झिल्ली की बाहरी सतह ऋणात्मक आवेशित तथा आंतरिक सतह धनात्मक आवेशित हो जाती है! A स्थल पर झिल्ली की विपरीत ध्रुवता होने से विध्रुवीकरण हो जाता है! A झिल्ली की सतह पर विद्युत विभवांतर क्रियात्मक विभव कहलाता है, जिसे तथ्यात्मक रूप से तंत्रिका आवेग कहा जाता है!

तंत्रिकाक्ष से कुछ आगे (जैसे स्थान B) झिल्ली की बाहरी सतह पर धनात्मक आवेश तथा आंतरिक सतह पर ऋणात्मक आवेश होता है! परिणामस्वरूप A स्थल से B स्थल की ओर झिल्ली की आंतरिक सतह पर आवेग विभव का संचरण होता है! अतः स्थान A पर आवेग क्रियात्मक विभव उत्पन्न होता है! तंत्रिकाक्ष की लंबाई के समांतर क्रम का पुनरावर्तन होता है और आवेग का संचरण होता है! उद्दीपन द्वारा प्रेरित Na+ के लिए बढ़ी पारगम्यता क्षणिक होती है उसके तुरंत पश्चात K+ की प्रति पारगम्यता बढ़ जाती है! कुछ ही क्षणों के भीतर K+ झिल्ली के बाहरी ओर परासरित होता है और उद्दीपन के स्थान पर (विराम विभव का) पुनः संग्रह करता है तथा तंतु आगे के उद्दीपनों के लिए एक बार फिर उत्तरदायी हो जाते हैं!

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चित्र 21.2 एक तंत्रिकाक्ष में तंत्रिका आवेग का संचरण प्रदर्शित करते हुए आरेख


21.3.2 आवेगों का संचरण

तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण सिनेप्सिस द्वारा होता है! एक सिनेप्स का निर्माण पूर्व सिनैप्टिक न्यूरॉन तथा पश्च सिनेप्टिन न्यूरॉन की झिल्ली द्वारा होता है, जो कि सिनेप्टिक दरार द्वारा विभक्त हो भी सकती है या नहीं भी! सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं, विद्युत सिनेप्स एवं रासायनिक सिनेप्स! विद्युत सिनेप्सिस पर, पूर्व और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ एक दूसरे के समीप होती है! एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक विद्युत धारा का प्रवाह सिनेप्सिस से होता है! विद्युतीय सिनेप्सिस से आवेग का संचरण, एक तंत्रिकाक्ष से आवेग के संचरण के समान होता है! विद्युतीय-सिनेप्सिस से आवेग का संचरण, रासायनिक सिनेप्सिस से संचरण की तुलना में अधिक तीव्र होता है! हमारे तंत्र में विद्युतीय सिनेप्सिस बहुत कम होते हैं!

रासायनिक सिनेप्स पर, पूर्व एवं पश्च सिनेप्टिक न्यूरोंस की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा पृथक होती है जिसे सिनेप्टिक दरार कहते हैं (चित्र 21.3)! क्या आप जानते हैं किस प्रकार पूर्व सिनेप्टिक आवेग (सक्रिय विभव) का संचरण सिनेप्टिक दरार से पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन तक करते हैं? सिनेप्सिस द्वारा आवेगों के संचरण में न्यूरोट्रॉसमीटर (तंत्रिका संचारी) कहलाने वाले रसायन सम्मिलित होते हैं! तंत्रिकाक्ष के छोर पर स्थित (आश्रय पुटिकाएें) तंत्रिका संचारी अणुओं से भरी होती हैं! जब तक आवेग तंत्रिकाक्ष के छोर तक पहुँचता है! यह सिनेप्टिक पुटिका की गति को झिल्ली की ओर उत्तेजित करता है, जहाँ वे प्लाज्मा झिल्ली के साथ जुड़कर तंत्रिका संचारी अणुओं को सिनेप्टिक दरार में मुक्त कर देते हैं! मुक्त किए गए तंत्रिका संचारी अणु पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर स्थित विशिष्ट ग्राहियों से जुड़ जाते हैं! इस जुड़ाव के फलस्वरूप आयन चैनल खुल जाते हैं और उसमें आयनों के आगमन से पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर नया विभव उत्पन्न हो जाता है! उत्पन्न हुआ नया विभव उत्तेजक या अवरोधक हो सकता है!


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चित्र 21.3 तंत्रिकाक्ष सिरा एवं सिनेप्स को प्रदर्शित करते हुए


21.4 केंद्रीय तंत्रिका तंत्र - मानव मस्तिष्क

मस्तिष्क हमारे शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसारण अंग है और यह ‘आदेश व नियंत्रण तंत्र’ की तरह कार्य करता है! यह एेच्छिक गमन शरीर के संतुलन, प्रमुख अनेच्छिक अंगों के कार्य (जैसे फेफड़े, हृदय, वृक्क आदि), तापमान नियंत्रण, भूख एवं प्यास, परिवहन, लय, अनेकों अंतःस्रावी ग्रंथियों की क्रियाएं और मानव व्यवहार का नियंत्रण करता है! यह देखने, सुनने, बोलने की प्रक्रिया, याददाश्त, कुशाग्रता, भावनाओं और विचारों का भी स्थल है!मानव मस्तिष्क खोपड़ी के द्वारा अच्छी तरह सुरक्षित रहता है! खोपड़ी के भीतर  कपालीय मेनिंजेज से घिरा होता है, जिसकी बाहरी परत ड्यूरा मैटर, बहुत पतली मध्य परत एरेक्नॉइड और एक आंतरिक परत पाया मैटर (जो कि मस्तिष्क ऊतकों के संपर्क में होती है) कहलाती है! मस्तिष्क को 3 मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता हैः (i) अग्र मस्तिष्क, (ii) मध्य मस्तिष्क, और (iii) पश्च मस्तिष्क (चित्र 21.4)!

21.4.1 अग्र मस्तिष्क

अग्र मस्तिष्क  सेरीब्रम, थेलेमस और हाइपोथेलेमस का बना होता हैं सेरीब्रम (प्रमस्तिष्क) मानव मस्तिष्क का एक बड़ा भाग बनाता है! एक गहरी लंबवत विदर प्रमस्तिष्क को दो भागों, दाएं व बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्द्धो में विभक्त करती है! ये गोलार्द्ध तंत्रिका तंतुओं की पट्टी कार्पस कैलोसम द्वारा जुड़े होते हैं (चित्र 21.4)

प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध को कोशिकाओं की एक परत आवरित करती है, जिसे प्रमस्तिष्क वल्कुट कहते हैं तथा यह निश्चित गर्तो में बदल जाती है! प्रमस्तिष्क वल्कुट को इसके धूसर रंग के कारण धूसर द्रव्य कहा जाता है! तंत्रिका कोशिका काय सांद्रित होकर इसे रंग प्रदान करती है! प्रमस्तिष्क वल्कुट में प्रेरक क्षेत्र, संवेदी भाग और बड़े भाग होते हैं, जो स्पष्टतया न तो प्रेरक क्षेत्र होते हैं न ही संवेदी! ये भाग सहभागी क्षेत्र कहलाते हैं तथा जटिल क्रियाओं जैसे अंतर संवेदी सहभागिता, स्मरण, संपर्क सूत्र आदि के लिए उत्तरदायी होते हैं! इस पथ के रेशे माइलिन आच्छद से आवरित रहते हैं जो कि प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध का आंतरिक भाग बनाते हैं! ये इस परत को सफेद अपारदर्शी रूप प्रदान करते हैं, जिसे श्वेत द्रव्य कहते हैं! प्रमस्तिष्क थेलेमस नामक संरचना के चारों ओर लिपटा होता है, जो कि संवेदी और प्रेरक संकेतों का मुख्य संपर्क स्थल है! थेलेमस के आधार पर स्थित मस्तिष्क का दूसरा मुख्य भाग हाइपोथेलेमस स्थित होता है! हाइपोथेलेमस में कई केंद्र होते हैं, जो शरीर के तापमान, खाने और पीने का नियंत्रण करते हैं! इसमें कई तंत्रिका स्रावी कोशिकाएं भी होती हैं जो हाइपोथेलेमिक हार्मोन का स्रवण करती हैं! प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध का आंतरिक भाग और अंदरूनी अंगों जैसे एमिगडाला, हिप्पोकैपस आदि का समूह मिलकर एक जटिल संरचना का निर्माण करता है, जिसे लिंबिकलोब या लिबिंक तंत्र कहते हैं! यह हाइपोथेलेमस के साथ मिलकर लैंगिक व्यवहार, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति (जैसे उत्तेजना, खुशी, गुस्सा और भय) आदि का नियंत्रण करता है!

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चित्र 21.4 मानव मस्तिष्क का सममितार्धी (सेजीटल) काट

21.4.2 मध्य मस्तिष्क

मध्य मस्तिष्क अग्र मस्तिष्क के थेलेमस/हाइपोथेलेमस तथा पश्च मस्तिष्क के पोंस के बीच स्थित होता है! एक नाल प्रमस्तिष्क तरल नलिका मध्य मस्तिष्क से गुजरती है! मध्य मस्तिष्क का ऊपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना होता है जिन्हें कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन कहते हैं!

21.4.3 पश्च मस्तिष्क

पश्च मस्तिष्क पोंस, अनुमस्तिष्क और मध्यांश (मेड्यूला ओबलोगेंटा) का बना होता है! पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है जो कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ते हैं! अनुमस्तिष्क की सतह विलगित होती है जो न्यूरोंस को अतिरिक्त स्थान प्रदान करती है! मस्तिष्क का मध्यांश मेरूरज्जु से जुड़ा होता है! मध्यांश में श्वसन, हृदय परिसंचारी प्रतिवर्तन और पाचक रसों के स्राव के नियंत्रण केंद्र होते हैं!

मध्य मस्तिष्क, पोंस और मेडुला ओबलोगेटा मस्तिष्क स्तंभ के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं! मस्तिष्क स्तंभ, मस्तिष्क और मेरू रज्जू के बीच संयोजन स्थापित करता है!

21.5 प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप

जब हमारे शरीर का कोई अंग अत्यधिक गर्म, ठंडी, नुकीली वस्तु या जहरीले अथवा डरावने जानवर के संपर्क में आता है तो उस अंग को अचानक हटा लिए जाने को आपने अनुभव किया होगा! अनुभव की संपूर्ण क्रियाविधि एक अनैच्छिक क्रिया है जो कि परिधीय तंत्रिकीय उद्दीपन के फलस्वरूप केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के भाग विशेष की अनुपस्थिति में होती है, प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है! प्रतिवर्ती क्रिया पथ अभिवाही न्यूरॉन (ग्राही) और अपवाही न्यूरॉन (प्रभावक/उत्तेजक), जो कि निश्चित क्रम में लगे होते हैं, से बना होता है (चित्र 21.5)! अभिवाही न्यूरॉन संवेदी अंगों से संकेत ग्रहण करके पृष्ठ तंत्रिकीय मूल के द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में आवेगों का संप्रेषण करता है! प्रभावक/प्रेरक न्यूरॉन तब संकेतों को प्रभावी अंगों तक पहुँचाती है! इस प्रकार उद्दीपन एवं प्रतिवर्ती क्रिया मिलकर प्रतिवर्ती चाप का निर्माण करते हैं, जैसाकि दी गई रिफलेक्स में प्रदर्शित किया गया है! नी जर्क रिफलेक्स (Knee jerk reflex) क्रियाविधि का अध्ययन करने के लिए चित्र 21.5 का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिए!

21.6 संवेदिक अभिग्रहण एवं संसाधन

क्या आपने कभी सोचा है कि आपको वातावरण के परिवर्तन की पहचान किस प्रकार होती है? आप किस प्रकार किसी वस्तु एवं उसके रंग को देख पाते हैं? कैसे आप ध्वनि को सुनते हैं? संवेदी अंग सभी प्रकार की वातावरणीय बदलावों का पता लगाकर समुचित संदेशोें को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को भेजते हैं जहाँ सभी अंतर क्रियाएं संचालित व विश्लेषित की जाती हैं! इसके बाद संदेशों को मस्तिष्क के विभिन्न भागों या केंद्रों तक भेजा जाता है! इस प्रकार आप वातावरणीय बदलावों को अनुभव करते हैं! हम वस्तुओं को अपनी नासिका द्वारा सूँघते हैं, जीभ द्वारा स्वाद की पहचान करते हैं, कान द्वारा सुनते हैं तथा आँखों द्वारा देखते हैं!

नासिका में श्लेष्म आवरणयुक्त संवेदनग्राही होते हैं जो गंध का संवेदन करते हैं! इन्हें घ्राणग्राही कहते हैं! ये घ्राण उपकला से बने होते हैं जिनमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं! घ्राण उपकला की तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) बाह्य वातावरण से सीधे एक जोड़ी सेम के आकार के अंग में विस्तारित होते हैं! इन्हें घ्राण बल्ब कहते हैं! घ्राण बल्ब मस्तिष्क के पादाधार तंत्र का विस्तारण हैं!

नासिका (घ्राणांग) तथा जीभ दोनों ही विलेय रसायनों की पहचान करते हैं! स्वाद (रस संवेदन) तथा घ्राण (गंध) के रासायनिक संवेदन क्रियात्मक रूप से समान हैं तथा परस्पर संबंधित हैं! जीभ स्वाद कलिकाओं द्वारा स्वाद की पहचान करती है! स्वाद कलिकाओं में रसग्राही होते हैं! आहार अथवा पेय पदार्थ के प्रत्येक स्वाद के साथ मस्तिष्क स्वाद कलिकाओं से प्राप्त विभेदक निवेश का समाकलन करता है और एक सुरुचिकर अवगम (अनुभव) होता है!

नीचे दिए गए भागों में आँख (देखने हेतु संवेदी अंग) और कान (सुनने हेतु संवेदी अंग) की संरचना और क्रियाविधि से आपका परिचय करवाया जाएगा!

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चित्र 21.5 प्रतिवर्ती क्रिया (नीजर्क रिंफलेक्स) का आरेखी प्रदर्शन


21.6.1 नेत्र

हमारे एक जोड़ी नेत्र खोपड़ी में स्थित अस्थि गर्तिक, जिसे नेत्र कोटर कहते हैं, में स्थित होते हैं! मानव नेत्र की संरचना और कार्य का संक्षिप्त विवरण अगले भाग में दिया गया है!

21.6.1.1 नेत्र के भाग

वयस्क मनुष्य के नेत्र लगभग गोलाकार संरचना है! नेत्र की दीवारें तीन परतों की बनी होती हैं! बाहरी परत घने संयोजी ऊतकों की बनी होती हैं जिसे स्क्लेरा (श्वेत पटल) कहते हैं (चित्र 21.6)! अग्र भाग कॉर्निया कहलता है! मध्य परत, कोरॉइड (रक्त पटल) में अनेक रक्त वाहिनियाँ होती हैं और यह हल्के नीले रंग की दिखती हैं! नेत्र गोलक के पिछले दो-तीहाई भाग पर कोरॉइड की परत पतली होती है, लेकिन यह अग्र भाग में मोटी होकर पक्ष्माभ काय बनाती है! 
पक्ष्माभ काय आगे की ओर निरंतरता बनाते हुए वर्णक युक्त और अपारदर्शी संरचना आइरिस बनाती है, जो कि आँख का रंगीन देखने योग्य भाग होता है! नेत्र गोलक के भीतर पारदर्शी क्रिस्टलीय लैंस होता है जो कि तंतुओं द्वारा पक्ष्माभ काय से जुड़ा रहता है! लैंस के सामने आइरिस से घिरा हुआ एक छिद्र होता है, जिसे प्यूपिल कहते हैं! प्यूपिल के घेरे का नियंत्रण आइरिस के पेशी तंतु करते हैं! 

आंतरिक परत रेटिना (दृष्टि पटल) कहलाती है और यह कोशिकाओं की तीन तंत्रिकीय परतों से बनी होती है अर्थात् अंदर से बाहर की ओर गुच्छिका कोशिकाएं, द्विध्रुवीय कोशिकाएं और प्रकाश ग्राही कोशिकाएं! प्रकाश ग्राही कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं! शलाका और शंकु! इन कोशिकाओं में प्रकाश संवेदी प्रोटीन प्रकाशीय वर्णक होता है! दिन की रोशनी में देखना (प्रकाशानुकूली) और रंग देखना शंकु के कार्य है तथा स्कोटोपिक (तिमिरानुकूलित) दृष्टि शलाका का कार्य है! शलाकाओं में बैंगनी लाल रंग का प्रोटीन रोडोεंप्सन या दृष्टि बैंगनी होता है, जिसमें विटामिन ए का व्युत्पन्न होता है! मानव नेत्र में तीन प्रकार के शंकु होते हैं, जिनमें कुछ विशेष प्रकाश वर्णक होते हैं, जो कि लाल, हरे और नीले प्रकाश को पहचानने में सक्षम होते हैं! विभिन्न प्रकार के शंकुओं और उनके प्रकाश वर्णकों के मेल से अलग-अलग रंगों के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है! जब इन शंकुओं को समान मात्रा में उत्तेजित किया जाता है तो सफेद रंग के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है!

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चित्र 21.6 नेत्र के भागों को प्रदर्शित करते हुए चित्र

दृक तंत्रिका नेत्र तथा दृष्टि पटल को नेत्र गोलक के मध्य तथा थोड़ी पश्च ध्रुव के ऊपर छोड़ती है तथा रक्त वाहिनी यहाँ प्रवेश करती है! प्रकाश संवेदी कोशिकाएं उस भाग में नहीं होती है, अंतः इसे अंधबिंदु कहते हैं! अंधबिंदु के पार्श्व में आँख के पिछले ध्रुव पर पीला वर्णक बिंदु होता है, जिसे मैक्यूला ल्यूटिया कहते हैं और जिसके केंद्र में एक गर्त होता है जिसे फोविया कहते हैं! फोविया रेटिना का पतला भाग होता है, जहाँ केवल शंकु संघनित होते हैं! यह वह बिंदु है जहाँ दृष्टि क्रियाएं (दिखाई देना) अधिकतम होती हैं!

कॉर्निया और लैंस के बीच की दूरी को एक्वस चैंबर (जलीय कोष्ठ) कहते हैं! जिसमें पतला जलीय द्रव नेत्रोद होता है! लैंस और रेटिना के बीच के रिक्त स्थान को काचाभ/द्रव कोष्ठ कहते हैं और यह पारदर्शी द्रव काचाभ द्रव कहलाता है!

21.6.1.2 देखने की प्रक्रिया

दृश्य तरंगदैर्ध्य में प्रकाश किरणों को कॉर्निया व लैंस द्वारा रेटिना पर फोकस करने पर शलाकाओं व शंकु में आवेग उत्पन्न होते हैं! यह पहले इंगित किया जा चुका है कि मानव नेत्र में प्रकाश संवेदी यौगिक (प्रकाश वर्णक) ओप्सिन (एक प्रोटिन) और रेटिनल (विटामिन ए का एल्डिहाइड से) बने होते हैं! प्रकाश ओप्सिन से रेटिनल के अलगाव को प्रेरित करता है, फलस्वरूप अॉप्सिन की संरचना में बदलाव आता है तथा यह झिल्ली की पारगम्यता में बदलाव लाता है!
इसके परिणामस्वरूप विभावांतर प्रकाश ग्राही कोशिका में संचरित होती है तथा एक संकेत की उत्पत्ति होती है, जो कि गुच्छिका कोशिकाओं में द्विध्रुवीय कोशिकाओं द्वारा सक्रिय कोशिका विभव उत्पन्न करता है! इन सक्रिय विभव के आवेगों का दृक तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क के दृष्टि वल्कुट क्षेत्र में भेजा जाता है, जहाँ पर तंत्रिकीय आवेगों की विवेचना की जाती है और छबि को पूर्व स्मृति एवं अनुभव के आधार पर पहचाना जाता है!

21.6.2 कर्ण


कर्ण दो संवेदी क्रियाएं करते हैं, सुनना और शरीर का संतुलन बनाना! शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से कर्ण को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है - बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण और अंतःकर्ण (चित्र 21.7)! बाह्य कर्ण पिन्ना या अॉरीकुला तथा बाह्य श्रवण गुहा का बना होता है! पिन्ना वायु में उपस्थित तंरगों को एकत्र करता है जो ध्वनि उत्पन्न करती है! बाह्य श्रवण गुहा, कर्ण पटह झिल्ली तक भीतर की ओर जाती है! पिन्ना तथा मिटस में कुछ महीन बाल और मोम स्रवित करने वाली ग्रंथियाँ होती हैं! कर्ण पटह झिल्ली संयोजी ऊतकों की बनी होती है जो बाहरी ओर त्वचा से तथा अंदर श्लेष्मा झिल्ली से आवरित होती है! मध्य कर्ण तीन अस्थिकाओं से बना होता है जिन्हें मैलियस, इंकस और स्टेपीज कहते हैं! ये एक दूसरे से शृंखला के रूप में जुड़ी रहती है! मैलियस कर्ण पटह झिल्ली से और स्टेपीज कोक्लिया की अंडाकार खिड़की से जुड़ी होती है! कर्ण अस्थिकाएं ध्वनि तंरगों को अंतःकर्ण तक तक पहुँचाने की क्षमता को बढ़ाती है! यूस्टेकीयन नलिका मध्यकर्ण गुहा को फेरिंक्स से जोड़ती है! यूस्टेकियन नलिका कर्ण पटह के दोनों ओर दाब को समान रखती हैं!

द्रव से भरा अंतःकर्ण लेबरिंथ कहलाता है, जो कि अस्थिल और झिल्लीनुमा लेबरिंथ से बना होता है! अस्थिल लेबरिंथ वाहिकाओं की एक शृंखला होती है! इन वाहिकाओं के भीतर झिल्ली नुमा लेबरिंथ होता है, जो कि परिलसिका द्रव से घिरा रहता है; किंतु झिल्लीनुमा लेबरिंथ एंडोलिंफ नामक द्रव से भरा रहता है! लेबरिंथ के घुमावदार भाग को कोक्लिया कहते हैं! कोक्लिया को दो झिल्लियों द्वारा तीन कक्षों में विभक्त किया जाता है, जिन्हें बेसिलर झिल्ली और राइजनर्स झिल्ली कहते हैं! ऊपरी कक्ष को स्केला वेस्टीब्यूली, मध्य कक्ष को स्केला मीडिया और निचले कक्ष को स्केला टिंपेनी कहते हैं! स्केला वेस्टीब्युली और स्केला टिंपेनी परिलसिका द्रव से तथा स्केला मीडिया अंर्तलसिका द्रव से भरा होता है (चित्र 21.8)! कोक्लिया के नीचे स्केला वेस्टीब्युली अंडाकार खिड़की में समाप्त होती हैं; जबकि स्केला टिंपनी गोलाकार खिड़की में समाप्त होते हैं!

आर्गन अॉफ कॉर्टाई आधारीय झिल्ली पर स्थित होता है जिसमें पाई जाने वाली रोम कोशिकाएं श्रवण ग्राही के रूप में कार्य करती है! रोम कोशिकाएं आर्गन अॉफ कॉर्टाई की आंतरिक सतह पर शृंखला में पाई जाती है! रोम कोशिकाएं का आधारीय भाग अभिवाही तंत्रिका तंतु के निकट संपर्क में होता है! प्रत्येक रोम कोशिका के ऊपरी भाग से कई स्टीरियो सिलिया नामक प्रवर्ध निकलता है! रोम कोशिकाओं की शृंखला के ऊपर पतली लचीली टेक्टोरियल झिल्ली होती है!

अंतःकर्ण में कोक्लिया के ऊपर जटिल तंत्र, वेस्टीब्युलर तंत्र भी होता है! वेस्टीब्युलर तंत्र तीन अर्द्धचंद्राकार नलिकाओं और अॉटोलिथ से बना होता हैै (मैक्युला, लघुकोश और यूट्रीकल का संवेदी हिस्सा है)! प्रत्येक अर्द्धचंद्राकार नलिका एक दूसरे से समकोण पर भिन्न तल पर स्थित होती है! झिल्लीनुमा नलिकाएं अस्थिल नलिकाओं के परिलसिका द्रव में डुबी रहती हैं! नलिका का फुला हुआ आधार भाग एंपुला जिसमें एक उभार निकलता है, जिसे क्रिस्टा एंपुलैरिस कहते हैं! प्रत्येक क्रिस्टा में रोम कोशिकाएं होती हैं! लघुकोश और यूट्रीकल में उभारनुमा संरचना मैक्यूला होता है! क्रिस्टा व मैक्यूला वेस्टीब्युलर तंत्र के विशिष्ट ग्राही होते हैं, जो शरीर के संतुलन व सही स्थिति के लिए उत्तरदायी होते हैं!

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चित्र 21.7 कर्ण का आरेखी दृश्य



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चित्र 21.8 कोक्लिया के काट का दृश्य


21.6.2.1 श्रवण की क्रिया

कर्ण किस प्रकार ध्वनि तंरगों को तंत्रिकीय आवेगों में बदलता है, जो कि मस्तिष्क द्वारा उदीप्त व क्रियात्मक होकर हमें ध्वनि की पहचान कराते हैं? बाह्य कर्ण ध्वनि तंरगों को ग्रहण कर कर्ण पटह तक भेजता है! ध्वनि तंरगों के प्रतिक्रिया में कर्ण पटह में कंपन्न होता है और ये कंपन्न कर्ण अस्थिकाओं (मैलियस, इंकस और स्टेपीस) से होते हुए गोलाकार खिड़की तक पहुँचते हैं! गोलाकार खिड़की से कंपन्न कोक्लिया में भरे द्रव तक पहुँचते हैं, जहां वे लिंफ में तरंगे उत्पन्न करते हैं! लिंफ की तंरगें आधार कला में हलचल उत्तेजित करती हैं!

आधारीय झिल्ली में गति से रोम कोशिकाएं मुड़ती हैं और टैक्टोरियल झिल्ली पर दबाव डालती हैं! फलस्वरूप संगठित अभिवाही न्यूरोंस में तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं! ये आवेग अभिवाही तंतुओं द्वारा श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क के श्रवण वल्कुट तक भेजे जाते हैं जहाँ आवेगों का विश्लेषण कर ध्वनि को पहचाना जाता है!

सांराश


तंत्रिका तंत्र समन्वयी तथा एकीकृत क्रियाओं के साथ ही अंगों की उपापचयी और समस्थैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है! तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई न्यूरोंस, झिल्ली के दोनों ओर सांद्रता प्रवणता अंतराल के कारण उत्तेजक कोशिकाएं होती हैं! स्थिर तंत्रिकीय झिल्ली के दोनों ओर का विद्युत विभवांतर विरामकला विभव कहलाता है! तंत्रिकांक्ष झिल्ली पर विद्युत विभावांतर प्रेरित उद्दीपन द्वारा संचारित होता है! इसे सक्रिय विभव कहते हैं! तंत्रिकाक्ष झिल्ली की सतह पर आवेगों का संचरण विध्रुवीकरण और पुनध्रुवीकरण के रूप में होता है! पूर्व सिनेप्टिक न्यूरॉन और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ सिनेप्स का निर्माण करती है, जो कि सिनैप्टिक विदर द्वारा पृथक हो सकती है या नहीं होती है! सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं - विद्युत सिनैप्स और रासायनिक सिनेप्स! रासायनिक सिनैप्स पर आवेगों के संचरण में भाग लेने वाले रसायन न्यूरोट्रांसमीटर कहलाते हैं!
मानव तंत्रिका तंत्र दो भागों का बना होता है -

(i) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और (ii) परीधीय तांत्रिका तंत्र! सी एन एस मस्तिष्क और मेरूरज्जु का बना होता है! मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है! (i) अग्र मस्तिष्क (ii) मध्य मस्तिष्क (iii) पश्च मस्तिष्क! अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क, थेलेमस और हाइपोथेलेमस से बना होता है! प्रमस्तिष्क लंबवत् दो अर्धगोलार्धों में विभक्त होता है, जो कॉर्पस कैलोसम से जुड़े रहते हैं! अग्र मस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग हाइपोथेलेमस शरीर के तापक्रम, खाने और पीने आदि क्रियाओं का नियंत्रण करता है! प्रमस्तिष्क गोलार्द्धो का आंतरिक भाग और संगठित गहराई में स्थित संरचनाएं मिलकर एक जटिल संरचना बनाते हैं, जिसे लिम्बिक तंत्र कहते हैं और यह सूंघने, प्रतिवर्त्ती क्रियाओं, लैंगिक व्यवहार के नियंत्रण, मनोभावों की अभिव्यक्ति और अभिप्रेरण से संबंधित होता है! मध्य मस्तिष्क ग्राही व एकीकरण तथा एकीकृत दृष्टि तंतु तथा श्रवण अंतर क्रियाओं से संबंधित है!

पश्च मस्तिष्क पोंस, अनु मस्तिष्क और मेड्यूला का बना होता है! अनु मस्तिष्क कर्ण की अर्द्धचंद्राकार नलिकाआें तथा श्रवण तंत्र से प्राप्त होने वाली सूचनाओं को एकीकृत करता है! मध्यांश (मैड्यूला) में श्वसन, हृदय परिसंचयी, प्रतिवर्तित और जठर स्रावों के नियंत्रण केंद्र होते हैं! पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है, जो मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ता है! परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्राप्त उद्दीपनों के लिए अनैच्छिक प्रतिक्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएं कहा जाता है!
वातावरणीय बदलाव की सूचना सी एन एस को संवेदी अंगों से प्राप्त होती हैं, जिन्हें संचरित और विश्लेषित किया जाता है! इसके बाद संदेशों को आवश्यक समायोजन हेतु भेजा जाता है!

मानव नेत्र गोलक की दीवारें तीन उपपरतों से बनी होती है! कॉर्निया को छोड़कर बाहरी परत स्केलेरा (शुक्ल पटल) है! स्केलेरा के भीतर की ओर मध्य परत कॉरोइड कहलाती है! आंतरिक परत रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश ग्राही कोशिकाएं होती हैं - शलाका और शंकु! इन कोशिकाओं में प्रकाश संवेदी प्रोटीन प्रकाश वर्णनक पाए जाते हैं!

दिन-रात की दृष्टि (फोटोपिक दृष्टि) शंकु का कार्य है तथा स्कोटोपिक दृष्टि शलाका का कार्य है! प्रकाश रेटिना से प्रवेश कर लैंस तक पहुँचता है और रेटिना पर वस्तु की छवि बनती है! रेटिना में उत्पन्न आवेगों को मस्तिष्क के दृष्टि वल्कुट भाग तक दृक तंत्रिका द्वारा भेजा जाता है! जहाँ पर तंत्रिकीय आवेगों का विश्लेषण होता है और रेटिना पर बनने वाली छवि को पहचाना जाता है!

कर्ण को बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण व अंतःकर्ण में विभाजित किया जा सकता है! बाह्य कर्ण पिन्ना तथा बाह्य श्रवण गुहा से बना होता है! मध्य कर्ण तीन अस्थिकाओं मैलियस, इंकस और स्टेप्सीज से बना होता है! द्रव्य से भरा अंतःकर्ण लेबरिंथ का घुमावदार भाग कोक्लिया कहलाता है! कोक्लिया दो झिल्लियों बेसिलर झिल्ली और राइजनर्स झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित किया जाता है! अॉर्गन कॉफ कॉर्टाई आधारीय झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित किया जाता है! अॉर्गन अॉफ कॉर्टाई आधारीय झिल्ली पर स्थित होता है और इसमें पाई जाने वाली रोम कोशिकाएं श्रवण ग्राही की तरह कार्य करती हैं! कर्ण ड्रम में उत्पन्न कंपन्न कर्ण अस्थिकाआें और अंडाकार खिड़की द्वारा द्रव से भरे अंतः कर्ण तक भेजे जाते हैं, जहाँ वे आधारीय झिल्ली में एक तरंग उत्पन्न करती हैं!

आधारीय झिल्ली में होने वाली गति रोम कोशिकाओं को मोड़ती है और टेक्टोरियस झिल्ली के विरूद्ध दबाव उत्पन्न करते हैं! फलस्वरूप तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं और अभिवाही तंतुओं द्वारा मस्तिष्क के श्रवण वल्कुट तक भेजे जाते हैं! अंतः कर्ण में भी कोक्लिया के ऊपर जटिल तंत्र होता है और शरीर के संतुलन और सही स्थिति को बनाए रखने में हमारी मदद करता है!


अभ्यास

1. निम्नलिखित संरचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए-

(अ) मस्तिष्क (ब) नेत्र (स) कर्ण

2. निम्नलिखित की तुलना कीजिए-

(अ) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र

(ब) स्थिर विभव और सक्रिय विभव

(अ) कॅारोइड और रेटिना

3. निम्नलिखित प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए-

(अ) तंत्रिका तंतु की झिल्ली का ध्रुवीकरण

(ब) तंत्रिका तंतु की झिल्ली का विध्रुवीकरण

(स) तंत्रिका तंतु के समांतर आवेगों का संचरण

(द) रासायनिक सिनेप्स द्वारा तंत्रिका आवेगों का संवहन

4. निम्नलिखित का नामांकित चित्र बनाइए-

(अ) न्यूरॉन (ब) मस्तिष्क (स) नेत्र (द) कर्ण

5. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-

(अ) तंत्रीय समन्वयन (ब) अग्र मस्तिष्क

(स) मध्य मस्तिष्क (द) पश्च मस्तिष्क

(ध) रेटिना (य) कर्ण अस्थिकाएं

(र) कॉक्लिया (ल) अॉर्गन अॉफ कॉर्टाई व सिनेप्स

6. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए-

(अ) सिनेप्टिक संचरण की क्रियाविधि

(ब) देखने की प्रक्रिया

(स) श्रवण की प्रक्रिया

7. (अ) आप किस प्रकार किसी वस्तु के रंग का पता लगाते हैं?

(ब) हमारे शरीर का कौन सा भाग शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है?

(स) नेत्र किस प्रकार रेटिना पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करते हैं?

8. (अ) सक्रिय विभव उत्पन्न करने में Na+ की भूमिका का वर्णन कीजिए!

(ब) सिनेप्स पर न्यूरोट्रांसमीटर मुक्त करने में Ca++ की भूमिका का वर्णन कीजिए!

(स) रेटिना पर प्रकाश द्वारा आवेग उत्पन्न होने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए!

(द) अंतः कर्ण में ध्वनि द्वारा तंत्रिका आवेग उत्पन्न होने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए!

9. निम्न के बीच में अंतर बताइए-

(अ) आच्छादित और अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष

(ब) दुम्राक्ष्य और तंत्रिकाक्ष

(स) शलाका और शंकु

(द) थेलेमस और हाइपोथेलेमस

(ध) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क

10. (अ) कर्ण का कौन सा भाग ध्वनि की पिच का निर्धारण करता है?

(ब) मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग कौन सा है?

(स) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का कौन सा भाग मास्टर क्लॉक की तरह कार्य करता है?

11. कशेरुकी के नेत्र का वह भाग जहाँ से दृकतंत्रिका रेटिना से बाहर निकलती हैं, क्या कहलाता है-

(अ) फोविया

(ब) आइरिस

(स) अंध बिंदु

(द) अॉप्टिक चाएज्मा (चाक्षुष काएज्मा)

12. निम्न में भेद स्पष्ट कीजिए-

(अ) संवेदी तंत्रिका एवं प्रेरक तंत्रिका

(ब) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तंतु में आवेग संचरण

(स) एक्विअस ह्यूमर (नेत्रोद) एवं विट्रियस ह्यूमर (काचाभ द्रव)

(द) अंध बिंदु एवं पीत बिंदु

(य) कपालीय तंत्रिकाएं एवं मेरू तंत्रिकाए