11109_CH5.tifअध्याय 5

व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ


अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय के अध्ययन के उपरांत आप-

• ई-व्यवसाय का अर्थ बता सकेंगे;

• ई-व्यवसाय के रूप में अॉनलाइन क्रय एवं विक्रय प्रक्रिया की व्याख्या कर सकेंगे;

• ई-व्यवसाय का पारंपरिक व्यवसाय से विभेद कर सकेंगे;

• इलेक्ट्रॉनिक पद्धति की ओर अंतरण के लाभ बता सकेेंगे;

• ई-व्यवसाय में फर्म के पहल की आवश्यकताओं की व्याख्या कर सकेेंगे;

• व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॅानिक पद्धति के प्रमुख सुरक्षा सरोकारों की पहचान कर सकेंगे;

• व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण की आवश्यकता का विवेचन कर सकेंगे; एवं

• व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण की संभावनाओं को समझ सकेंगे।


‘आओ कुछ खरीददारी करते हैं’, रीता ने अपने गाँव की सहेली रेखा को जगाया, जोकि छुट्टियों में दिल्ली आई हुई है। अपनी आँखें मलते हुए रेखा बोली, ‘‘इस आधी रात में! इस समय कौन अपनी दुकान तुम्हारे लिए खोले बैठा होगा?’’

‘ओह! शायद मैं तुम्हे यह ठीक से नहीं बता सकी’, रीता बोली। "हम कहीं जा नहीं रहे हैं! मैं तो इंटरनेट पर अॉनलाइन खरीददारी की बात कर रही हूँ।"

"हाँ! मैंने भी अॉनलाइन खरीददारी के बारे में सुना है लेकिन कभी की नहीं है,"... और रेखा सोचने लगी। "इंटरनेट पर क्या बेचते होंगे? वह सामान को खरीददारों के पास कैसे पहुँचाते हाेंगे? उनके भुगतान का क्या होता होगा? और इंटरनेट अब तक गाँवों में लोकप्रिय क्यों नहीं हो पाया है?’’ जब तक रेखा इन प्रश्नों में उलझी रही, तब तक रीता में लॉगअॉन (प्रवेश) कर चुकी थी भारत के एक अग्रणी अॉनलाइन खरीददारी मॉल में।


5.1 परिचय

पिछले दशक और उसके बाद व्यवसाय करने के तरीके में अनेक मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। व्यवसाय करने के तरीके को व्यवसाय पद्धति कहा जाता है और उपसर्ग ‘उभरते’ इस तथ्य को रेखांकित करता है कि ये परिवर्तन अब यहाँ हो रहे हैं और एेसी प्रवृत्तियाँ आगे भी बनी रहेंगी। यदि किसी को व्यवसाय को आकार देने वाली तीन सशक्त रुझानों की सूची बनाने को कहा जाए तो उसमें निम्न बातें शामिल होंगी-

(क) अंकीयकरण (डिजिटाइज़ेशन)- उद्धरण, ध्वनि, प्रतिकृतियों, वीडियो एवं अन्य विषय-वस्तु का 1 और 0 की शृंखला में रूपांतरण, जिनका इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण हो सकता है;

(ख) बाह्यस्रोतीकरण (आउटसोर्सिंग); और

(ग) अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्वीकरण (भूमंडलीकरण)।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में आप अध्याय-11 में पढेगे।

इस अध्याय में हम आपको पहली दो घटनाओं, अर्थात् व्यवसाय का अंकीयकरण (इलेक्ट्रॉनिक्स का एक शब्द) जिसे इलेक्ट्रॉनिक व्यवसाय (ई-बिजनेस) भी कहा जाता है, और व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण (बी.पी.ओ) से परिचित कराएँगे। यह सब करने से पहले, इन दोनों व्यवसाय पद्धतियों के लिए उत्तरदायी तत्वों का संक्षिप्त विवेचन आवश्यक है।

व्यवसाय की ये नई पद्धतियाँ नया व्यवसाय नहीं हैं वरन् ये तो व्यवसाय करने के नये तरीके हैं, जिनके कई कारण हैं। आप जानते ही हैं कि एक गतिविधि के रूप में व्यवसाय का उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं के रूप में उपयोगिता एवं मूल्य का सृजन होता है, जिन्हें गृहस्थ एवं व्यावसायिक क्रेता अपनी आवश्यकता एवं इच्छापूर्ति के लिए खरीदते हैं। व्यवसाय प्रक्रियाओं को उन्नत करने के प्रयत्न में- चाहे वह क्रय और उत्पादन, विपणन, वित्त अथवा मानव संसाधन हो, व्यवसाय प्रबंधक और व्यवसाय चिंतक हमेशा कार्य करने के नए एवं बेहतर तरीकों को विकसित करने में लगे रहते हैं। व्यावसायिक फर्मों को अच्छी गुणवत्ता, कम मूल्य, तीव्र सुपुर्दगी और अच्छी ग्राहक सेवा के लिए ग्राहकों की बढ़ती माँग और बढ़ते प्रतिस्पर्धा दबाव को सफलतापूर्वक झेलने के लिए अपनी उपयोगिता, सृजन एवं मूल्य सुपुर्दगी क्षमताओं को मज़बूत बनाना पड़ता है। इसके अलावा उभरती तकनीकों से लाभ प्राप्त करने की चाह से भी आशय यही है कि एक गतिविधि के रूप में व्यवसाय लगातार विकसित हो।


5.2 ई-व्यवसाय

यदि व्यवसाय शब्द को कई तरह की गतिविधियों, जिनमें उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य शामिल हों, के अर्थ में लिया जाए तो ई-व्यवसाय को एेसे उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के संचालन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम कंप्यूटर नेटवर्क (तंत्र) का प्रयोग करते हैं। एक विद्यार्थी या उपभोक्ता के रूप में आप जिस नेटवर्क से भली-भाँति परिचित होंगे, वह है इंटरनेट। जहाँ इंटरनेट एक सार्वजनिक व सुगम मार्ग है, वहीं फर्में नितांत निजी और अधिक सुरक्षित नेटवर्क का प्रयोग अपने आंतरिक कार्यों के अधिक प्रभावी एवं कुशल प्रबंधन के लिए करती हैं।

ई-व्यवसाय बनाम ई-कॉमर्स- हालाँकि, अनेक मौकों पर ई-व्यवसाय और ई-कॉमर्स शब्द का प्रयोग समानार्थी शब्दों की तरह किया जाता है पर इनकी अधिक सुस्पष्ट परिभाषाओं से दोनाें में अंतर साफ हो जाएगा।

जिस प्रकार व्यापार, वाणिज्य के मुकाबले एक अधिक व्यापक शब्द है, उसी तरह ई-व्यवसाय भी एक अधिक विस्तृत शब्द है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किए जाने वाले विभिन्न व्यावसायिक लेन-देन और कार्य एवं लेन-देनों का एक अधिक लोकप्रिय क्षेत्र जिसे ई-कॉमर्स कहा जाता है, भी शामिल है। ई-कॉमर्स एक फर्म के अपने ग्राहकों और पूर्तिकर्ताओं के साथ इंटरनेट पर पारस्परिक संपर्क को सम्मिलित करता है। ई-व्यवसाय न केवल ई-कॉमर्स वरन् व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा संचालित किए गए अन्य कार्यों, जैसेे- उत्पादन, स्टॉक प्रबंध, उत्पाद विकास, लेखांकन एवं वित्त और मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है। इस प्रकार ई-व्यवसाय स्पष्ट रूप से इंटरनेट पर क्रय एवं विक्रय अर्थात् ई-कॉमर्स से कहीं अधिक है।

5.2.1 ई-व्यवसाय का कार्यक्षेत्र

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, ई-व्यवसाय का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है, अधिकतर सभी व्यावसायिक कार्य जैसे कि उत्पादन, वित्त, विपणन और कार्मिक प्रबंधन और प्रबंधकीय गतिविधियाँ, जैसे- नियोजन, संगठन और नियंत्रण को कंप्यूटर नेटवर्क पर कार्यांवित किया जा सकता है। ई-व्यवसाय के कार्यक्षेत्र के अवलोकन की एक अन्य विधि इलेक्ट्रॉनिक लेन-देनों में सम्मिलित व्यक्तियों एवं पक्षों के परिप्रेक्ष्य में इसे जाँचना है। इस परिप्रेक्ष्य में अवलोकन करने पर एक फर्म के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के लेन-देनों और नेटवर्कों के विस्तार को निम्न तीन दिशाओं में परिकल्पित किया जा सकता है-

5.1

चित्र 5.1 व्यवसाय से व्यवसाय ई-वाणिज्य

(क) फर्म से फर्म, अर्थात् एक फर्म का अन्य व्यवसायों से पारस्परिक संवाद/ संपर्क

(ख) फर्म से ग्राहक, अर्थात् एक फर्म का अपने ग्राहकों से पारस्परिक संवाद/संपर्क और

(ग) अंतः-बी अथवा फर्म की आंतरिक प्रक्रियाएँ।

प्रदर्श 5.1 में ई-व्यवसाय में संमाहित पक्षों के नेटवर्क एवं पारस्परिक संपर्क/संवाद का सारांश दर्शाया गया है।

ई-व्यवसाय के विभिन्न घटकों के बीच अंतर एवं अंतः लेन-देनों का संक्षिप्त विवेचन नीचे किया गया है-

(क) फर्म से फर्म कॉमर्स- यहाँ ई-कॉमर्स लेन-देनों में शामिल दोनों पक्ष व्यावसायिक फर्में हैं, इसलिए इसे फर्म से फर्म अर्थात् व्यवसाय से व्यवसाय नाम दिया गया है। उपयोगिता सृजन अथवा मूल्य सुपुर्दगी के लिए किसी व्यवसाय को अन्य अनेक व्यावसायिक फर्मों से पारस्परिक संवाद करना होता है, जोकि पूर्तिकर्ता अथवा विविध आगतों के विक्रेता हो सकते हैं अथवा उस माध्यम का हिस्सा हो सकते हैं जिसके द्वारा फर्म अनेक उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाती है। उदाहरणस्वरूप, एक अॉटोमोबाइल उत्पादनकर्ता को एेसी स्थिति में अधिक संख्या में कलपुर्जों के संग्रहण की आवश्यकता होगी, जब वह कहीं और अॉटोमोबाइल फैक्ट्री के आस-पास या फिर विदेश में निर्मित होते हों। एक पूर्तिकर्ता पर निर्भरता समाप्त करने के लिए अॉटोमोबाइल फैक्ट्री को अपने प्रत्येक कलपुर्जे के लिए एक से अधिक विक्रेता खोजने होंगे। कंप्यूटर नेटवर्क का प्रयोग क्रय आदेश (अॉर्डर) देने, उत्पादन के निरीक्षण और कलपुर्जों की सुपुर्दगी और भुगतान करने के लिए किया जाता है। इसी तरह एक फर्म अपनी वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने और उसमें सुधार लाने के लिए अपने स्टॉक की आवाजाही पर उस समय भी वास्तविक नियंत्रण रख सकता है, जब एेसा हो रहा हो। साथ ही वह विभिन्न स्थानों पर स्थित मध्यस्थों को भी नियंत्रित कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक मालगोदाम से वस्तुओं के प्रत्येक प्रेषण और अपने पास स्थित स्टॉक का निरीक्षण किया जा सकता है, तथा जब और जहाँ आवश्यक हो वस्तुओं की पुनःपूर्ति निश्चित की जा सकती है या फिर, विक्रेता के माध्यम से ग्राहक की वांछित आवश्कताओं को फैक्ट्री में पहुँचाकर ग्राहकों के हिसाब से उत्पादन के लिए उत्पादन प्रणाली में भेजा जा सकता है।

ई-कॉमर्स का प्रयोग सूचना, प्रलेखों के साथ ही मुद्रा हस्तांतरण की गति में वृद्धि के लिए भी किया जाता है।

एेतिहासिक रूप से ई-कॉमर्स शब्द का मूल आशय इलेक्ट्रॅानिक डाटा अंतर्विनिमय 
(ई.डी.आई.) तकनीक का प्रयोग कर व्यावसायिक प्रलेखों, जैसे क्रय आदेशों अथवा बीजकोें को भेजकर एवं प्राप्तकर फर्म से फर्म लेन-देनोें को सुगम बनाना है।


(ख) फर्म से ग्राहक कॉमर्स- जैसे कि नाम में निहित है, फर्म से ग्राहक (व्यवसाय से ग्राहक) लेन-देनों में एक छोर पर व्यावसायिक फर्म और दूसरे छोर पर इसके ग्राहक होते हैं। हालाँकि दिमाग में जो बात तुरंत आती है। वह है- अॉनलाइन खरीददारी, पर यह समझना चाहिए कि विक्रय, विपणन प्रक्रिया का परिणाम है और विपणन की शुरूआत उत्पाद को विक्रय के लिए प्रस्तुत करने से बहुत पहले हो जाती है और इस उत्पाद की बिक्री के बाद तक चलती है। इस तरह फर्म से ग्राहक कॉमर्स में विपणन गतिविधियों, जैसे- गतिविधियों को पहचानना, सवर्द्धन और कभी-कभार उत्पादों की अॉनलाइन सुपुर्दगी (उदाहरणार्थ संगीत एवं फिल्में) का विस्तृत क्षेत्र शामिल होता है। ई-कॉमर्स इन गतिविधियों को बहुत कम लागत परंतु उच्च गति से सुगम बनाता है। उदाहरण के लिए, ए.टी.एम. ने धन की निकासी को तेज़ बना दिया है। आजकल ग्राहक बहुत समझदार हो रहे हैं और उन पर वांछित व्यक्तिगत ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्हें न केवल एेसी उत्पाद विशेषताएँ चाहिए, जोकि उनकी ज़रूरतों के अनुसार हों वरन् उन्हें सुपुर्दगी की सहूलियत और अपनी इच्छानुसार भुगतान की सुविधा भी चाहिए। ई-कॉमर्स के प्रादुर्भाव से यह सब किया जा सकता है।

5.2

चित्र 5.2 व्यापार से उपभोक्ता ई-कॉमर्स

साथ ही, ई-कॉमर्स का फर्म से ग्राहक रूप एक व्यवसाय के लिए हर समय अपने ग्राहकों के संपर्क में रहना संभव बनाता है। कंपनियाँ यह जानने के लिए कि कौन क्या खरीद रहा है और ग्राहक संतुष्टि का स्तर क्या है, अॉनलाइन सर्वेक्षण करा सकती हैं।

अब तक आपने यह धारणा बना ली होगी कि ‘फर्म से ग्राहक’, व्यवसाय से ग्राहक तक का एकतरफा आवागमन है। परंतु यह भी ध्यान रखें कि इसका परिणाम, ‘ग्राहक से फर्म कॉमर्स’ भी एक वास्तविकता है, जो ग्राहकों को इच्छानुसार खरीददारी की स्वतंत्रता उपलब्ध कराती है। ग्राहक कंपनियों द्वारा स्थापित कॉल सेंटरों का प्रयोग कर किसी भी समय बिना किसी अतिरिक्त लागत के निःशुल्क फोन कर अपनी शंकाओं का समाधान एवं शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इन कॉल सेंटरों अथवा हेल्पलाइनों की स्थापना स्वयं करने की आवश्यकता नहीं होती है, वरन् इनका बाह्यस्रोतीकरण किया जा सकता है। इस पहलू की चर्चा हम बाद में उस भाग में करेंगे जो व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण के विषय में है।

(ग) अंतः-बी कॉमर्स- यहां इलेक्ट्रॅानिक लेन-देनों में सम्मिलित पक्ष एक ही व्यावसायिक फर्म के भीतर ही होते हैं इसलिए इसे अंतः बी कॉमर्स नाम दिया गया है। जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि ई-कॉमर्स और ई-व्यवसाय में एक सूक्ष्म अंतर यह है कि ई-कॉमर्स में व्यावसायिक फर्मों के इंटरनेट पर उसके पूर्तिकर्ताओं और वितरकों/अन्य व्यावसायिक फर्मों के साथ (फर्म से फर्म) और ग्राहकों के साथ (फर्म से ग्राहक) पारस्परिक संप्रेष्ण सम्मिलित होते हैं, जबकि ई-व्यवसाय में एक फर्म के भीतर विभिन्न विभागों और व्यक्तियों के मध्य इंटरनेट के प्रयोग द्वारा पारस्परिक संपर्क एवं लेन-देनों का प्रबंधन भी शामिल होता है। वृहद् रूप से अंतः-बी कॉमर्स के प्रयोग के कारण ही यह संभव हुआ है कि फर्में लचीले उत्पादन की ओर उन्मुख हो सकी हैं। कंप्यूटर नेटवर्क के प्रयोग ने विपणन विभाग के लिए यह संभव बनाया है कि वह उत्पादन विभाग के सतत् संपर्क में रहे और प्रत्येक ग्राहक की आवश्यकतानुसार उत्पाद प्राप्त करे। इसी तरह कंप्यूटर आधारित अन्य विभागों के मध्य नजदीकी पारस्परिक संपर्क फर्म के लिए यह संभव बनाता है कि वह कुशल माल सूची और नकद प्रबंध, मशीनरी एवं संयंत्र के वृहद् इस्तेमाल, ग्राहक क्रयादेशों के कुशल संचालन और मानव संसाधन के कुशल प्रबंधन के लाभ उठाए।


ई-वाणिज्य के लाभ

1. व्यवसाय संगठन को लाभ-

    • बाज़ार स्थान का राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक विस्तार।

    • प्रचालन लागत में धीमी गिरावट।

    • आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में खींच (चनसस) की सुविधा।

    • प्रतिस्पर्द्धियों पर प्रतिस्पर्द्धा लाभ।

    • उचित समय प्रबंधन तथा व्यवसाय प्रक्रिया को बल मिलना।

    • बड़ी फर्मों के साथ-साथ छोटी फर्मों का सह-अस्तित्व।

2. ग्राहकों तथा समाज को लाभ-

    • लोचशीलता

    • प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्य/छूट/मूल्य त्यागना

    • अन्य विकल्प तथा पसंद

    • त्वरित एवं समयानुसार सुपुर्दगी (डिजिटाइज़्ड उत्पाद)

    • ग्राहकोनुसार उत्पाद

    • ई-नीलामी की सुविधा

    • रोज़गार की संभावनाएँ

    • दूर तक पहुँच


एटीएम मुद्रा निकासी को गति देता है

ई-कॉमर्स ने पूरी फर्म से ग्राहक प्रक्रिया को बहुत हद तक सुगम एवं गतिमान बनाया है। उदाहरण के लिए, पूर्व में बैंक से अपना धन निकालना एक थका देने वाली प्रक्रिया हुआ करती थी। भुगतान प्राप्त करने से पहले व्यक्ति को प्रक्रियागत औपचारिकताओं की एक पूरी शृंखला से गुजरना होता था। एटीएम के आने के बाद, अब यह सब तेज़ी से इतिहास बन चुका है। अब सबसे पहली चीज़ जो होती है, वह ये है कि ग्राहक अपना धन निकाल सकता है और बाकी बची पार्श्व प्रक्रियाएँ बाद में पूरी होती हैं।

जिस प्रकार इंटरकॉम अॉफिस के अंदर मौखिक संप्रेषण को सुगम बनाता है, उसी प्रकार इंटरनेट, संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य, पूरी जानकारी के आधार पर निर्णय के लिए, मल्टीमीडिया और यहाँ तक कि त्रि-आयामी आलेखीय प्रेषण को सुगम बनाता है। इससे बेहतर समन्वय, तीव्र निर्णय और द्रुत कार्यप्रवाह संभव होता है। एक फर्म के अपने कर्मचारियों से पारस्परिक संपर्क के उदाहरण को लीजिए, कभी-कभी इसे ‘बी2ई कॉमर्स’ भी कहा जाता है। कंपनियाँ ई-कॉमर्स द्वारा कर्मचारियों की भर्ती, साक्षात्कार और चयन, प्रशिक्षण, विकास और शिक्षा इत्यादि की ओर उन्मुख हो रही हैं। ग्राहकों से बेहतर पारस्परिक संप्रेषण के लिए कर्मचारी इलेक्ट्रॉनिक सूची-पत्रोें और आदेश पत्रों का प्रयोग कर सकते हैं एवं माल सूची की सूचना प्राप्त कर सकते हैं। वे ई-डाक के द्वारा कार्यक्षेत्र रिपोर्ट भेज सकते हैं और प्रबंधन उन्हें वास्तविक समयाधार पर ग्रहण कर सकता है। वास्तव में, आभासी निजी नेटवर्क तकनीक का आशय होगा कि कर्मचारियों को कार्यालय नहीं आना होगा। इसके बजाय कार्यालय एक प्रकार से उनके पास जाएगा और वह जहाँ हैं, वहाँ से अपनी गति एवं समय सुविधा के अनुसार कार्य कर सकेंगे। बैठकें टेली/वीडियो कान्फ्रेंसिंग के द्वारा हो सकती हैं।

(घ) ग्राहक से ग्राहक कॉमर्स- यहाँ व्यवसाय की उत्पत्ति ग्राहकों से होती है और उसका अंतिम गंतव्य भी ग्राहक ही है, इसीलिए इसे ग्राहक से ग्राहक नाम दिया गया है। इस तरह का वाणिज्य उस प्रकार की वस्तुओं के लेन-देनों के लिए अधिक उचित है जिनके लिए कोई स्थायी बाजार तंत्र नहीं होता है। उदाहरणस्वरूप- किताबों अथवा कपड़ों की बिक्री नकद अथवा वस्तु विनिमय आधार पर की जा सकती है। इंटरनेट की वृहद् स्थान उपलब्धता एक व्यक्ति को वैश्विक स्तर पर भावी खरीददार ढूँढ़ने की अनुमति प्रदान करता है। इसके अलावा, ई-कॉमर्स तकनीक एेसे लेने-देन को बाजार प्रणाली सुरक्षा उपलब्ध कराती है जोकि अन्यथा लुप्त हो गई होती यदि क्रेताओं और विक्रेताओं को आमने-सामने के लेन-देनों में अनामतापूर्वक संपर्क स्थापित करना होता। इसका एक श्रेष्ठ अत्युत्तम उदाहरण ई-वे में मिलता है, जहाँ उपभोक्ता अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ दूसरे उपभोक्ता को बेचते हैं। इस गतिविधि को अधिक सुरक्षित एवं मजबूत बनाने के लिए अनेक तकनीकों का उद्भव हुआ है ई-वे सभी विक्रेताओं एवं क्रेताओं को एक-दूसरे को आँकने की अनुमति देता है। इस प्रकार भावी खरीददार यह देख सकते हैं कि एक विशेष विक्रेता ने 2,000 से अधिक ग्राहकों को बिक्री की है और उन सभी ने विक्रेता को अत्युत्तम आँका है। एक अन्य उदाहरण में भावी खरीददार देख सकता है कि विक्रेता ने इससे पहले सिर्फ चार बार बिक्री की है और सभी चारों ने विक्रेता को ‘दयनीय’ आँका है। इस तरह की सूचनाएँ सहायक होती हैं। अन्य तकनीक ‘भुगतान मध्यस्थ’ है जिसका उद्भव ग्राहक से ग्राहक गतिविधियों के सहयोग के लिए हुआ है। पे-पल इस तरह का एक अच्छा उदाहरण है।


ई-कॉमर्स ने लोचदार उत्पादन और व्यापक स्तर पर उपभोक्तानुरूप उत्पादन संभव बनाया है

उपभोक्तानुरूप उत्पाद पारंपरिक रूप से दस्तकार को आदेश देकर बनवाए जाते थे। परिणामत: यह महँगे होते थे और सुपुर्दगी में भी अधिक समय लेते थे। औद्योगिक क्राँति से आशय यह है कि संस्थाएँ व्यापक स्तर पर उत्पादन कर सकती थीं और वृहद्‌ पैमाने पर उत्पादन के लाभ के कारण वे एक ही तरह के उत्पाद को कम कीमत पर उत्पादित कर सकती थीं। वर्तमान में भी संस्थाएँ उपभोक्तानुरूप उत्पाद एवं सेवाएँ कम लागत पर प्रस्तुत कर सकती हैं इसके लिए हमें ई-कॉमर्स को धन्यवाद देना चाहिए। नीचे इसके कुछ उदाहरण दिए गए हैं-

5.5

स्रोत: Adapted from http://www.managingchange.com



किसी अनजान, अविश्वसनीय विक्रेता से सामान सीधे खरीदने के बजाय, क्रेता धनराशि सीधे पे-पल के पास भेज सकता है वहाँ से पेल विक्रेता को सूचित कर देता है कि वह धनराशि तब तक अपने पास रखेगा जब तक कि वस्तुओं कलदान न हो जाए और क्रेता द्वारा स्वीकृत न कर ली जाएँ। पारस्परिक संपर्क वाले कॉमर्स का एक महत्त्वपूर्ण ग्राहक से ग्राहक क्षेत्र उपभोक्ता मंच और दबाव समूहों का गठन भी हो सकता है। आपने याहू समूहों के बारे में तो सुना ही होगा। जिस प्रकार एक वाहन स्वामी यातायात जाम मेें फँसने पर अन्य लोगों को रेडियो पर उस स्थान की यातायात स्थिति संबंधित संदेश देकर सावधान कर सकता है (आपने एफ.एम.रेडियो पर यातायात सूचनाएँ जरूर सुनी होंगी), उसी प्रकार एक भुक्तभोगी ग्राहक एक उत्पाद/ सेवा विक्रेता से संबधित अनुभवों को अन्य लोगों के साथ बाँट सकता है और सिर्फ एक संदेश लिखकर और इसे पूरे समूह की जानकारी में लाकर अन्य लोगों को भी सावधान कर सकता है और यह नितांत संभव है कि समूह दबाव के चलते समस्या का समाधान भी निकल आए।

ई-व्यवसाय से संबंधित उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि ई-व्यवसाय प्रयोज्यताएँ विभिन्न एवं अनेक हैं।

ई-व्यवसाय बनाम पारंपरिक व्यवसाय

अब तक आप यह विचार बना चुके होंगे कि किस प्रकार ई-सामर्थ्य ने व्यवसाय करने के तरीकों में मूलभूत परिवर्तन कर दिया है। सारणी 5.1 पारंपरिक व्यवसाय और ई-व्यवसाय के लक्षणों की तुलना को दर्शाती है। सारणी 5.1 में सूचीबद्ध ई-व्यवसाय के लक्षणों का तुलनात्मक आकलन ई-व्यवसाय के विशिष्ट लाभों एवं सीमाओं को इंगित करता है जिनका विवेचन हम नीचे करेंगे।


5.3 ई-व्यवसाय के लाभ

(क) निर्माण में आसानी एवं निम्न निवेश आवश्यकताएँ- एक उद्योग की स्थापना के लिए प्रक्रियागत् आवश्यकताओं के विपरीत ई-व्यवसाय को प्रारंभ करना आसान है। इंटरनेट तकनीक का लाभ छोटे अथवा बड़े व्यवसायाें को समान रूप से पहुँचता है। यहाँ तक कि इंटरनेट इस लोकप्रिय उक्ति के लिए भी उत्तरदायी है कि नेटवर्क से बंधे व्यक्ति एवं फर्में, नेटवर्थ (पूँजी) व्यक्तियों से ज्यादा कुशल होते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि आपके पास निवेश (पूँजी) के लिए कुछ अधिक नहीं है परंतु संपर्क सूत्र (नेटवर्क) है तो आप बहुत अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं।

5.3

चित्र 5.3 उपभोक्ता से उपभोक्ता ई-कॉमर्स


कुछ ई-व्यवसाय अनुप्रयोग

ई-अधिप्राप्ति- इसमें व्यावसायिक फर्मों के मध्य इंटरनेट आधारित विक्रय लेन-देन संबद्ध होते हैं, जिसमें विपरीत नीलामी जोकि अकेले क्रेता व्यवसायी और अनेक विक्रेताओं के मध्य अॉनलाइन व्यापार को सुगम बनाती है और अंकीय बाजार स्थलों (डिजिटल मार्केट प्लेस), जोकि क्रेताओं एवं विक्रेताओं के मध्य अॉनलाइन व्यापार को सुगम बनाते हैं, भी सम्मिलित होते हैं।

ई-बोली/ई-नीलामी- बहुत-सी खरीददारी वेबसाइटों पर अपने आप मूल्य प्रस्तुत करने की सुविधा होती है ताकि आप वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बोली लगा सकें (जैसे कि एयरलाइन टिकटें)। इसमें ई-निविदाएँ भी शामिल होती हैं, जिसमें कोई भी अपना निविदा मूल्य अॉनलाइन प्रस्तुत कर सकता है।

ई-संचार/ई-संवर्द्धन- इसमें उन अॉनलाइन सूची पत्रकों का प्रकाशन जोकि वस्तुओं की छवि प्रदर्शित करते हैं, बैनरों के द्वारा प्रचार, मत सर्वेक्षण और ग्राहक सर्वेक्षण इत्यादि शामिल होते हैं। सभाएँ एवं सम्मेलन भी वीडियो कान्प्रुेसिंग द्वारा किए जा सकते हैं।

ई-सुपुर्दगी- इसमें कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, फोटो, वीडियो, पुस्तकें (ई-पुस्तकें) और पत्रिकाएँ (ई-पत्रिकाएँ) औरअन्य मल्टीमीडिया सामग्री की कंप्यूटर प्रयोगकर्त्ता को इलेक्ट्रॉनिक सुपुर्दगी भी सम्मिलित होती है।

इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कानूनी, लेखांकन, वित्त एवं अन्य सलाहकारी सेवाएँ भी सम्मिलित होती हैं। इंटरनेट फर्मों को, सूचना प्रौद्योगिकीजन्य सूचना सेवाओं को, जिनका विवेचन हम व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण में करेंगे, इनके मेजबान से इन्हें बाह्यस्रोतीकरण करवाने के अवसर भी उपलब्ध कराता है। अब आप हवाई जहाज और रेल टिकट भी अपने घर पर मुद्रित कर सकते हैं।

ई-व्यापार- इसमें प्रतिभूति व्यापार, अंशों एवं अन्य वित्तीय प्रपत्रों का अॉनलाइन क्रय एवं विक्रय सम्मिलित होता है। उदाहरण के लिए, शेअरखानडॉटकॉम भारत की एक विशालतम अॉनलाइन व्यापार फर्म है।

सारणी 5.1 पारंपरिक व्यवसाय एवं ई-व्यवसाय में अंतर

अंतर का आधार

पारंपरिक व्यवसाय

ई-व्यवसाय

निर्माण में आसानी

मुश्किल

सरल

भौतिक उपस्थिति

आवश्यक है

आवश्यक नहीं

अवस्थिति संबंधी आवश्यकताएँ

कच्चे माल के स्रोत अथवा उत्पाद के लिए बाजार की संभाव्यता

कुछ नहीं

प्रचालन लागत

 

अधिप्राप्ति और संग्रहण, उत्पाद, विपणन और वितरण सुविधाओं में निवेश से संबंधित स्थायी दायित्वों के कारण उच्च लागत

निम्न लागत क्योंकि भौतिक सुविधाओं की आवश्यकता ही नहीं होती

पूतिकर्ताओं एवं ग्राहकों से संपर्क की प्रकृति

परोक्ष मध्यस्थों के द्वारा

प्रत्यक्ष

आंतरिक संचार की प्रकृति

लंबी अवधि

तुरंत/ तत्काल

ग्राहकों/आंतरिक
आवश्यकताओं को पूरा करने में लगने वाला प्रत्युतर समय

सोपान-उच्च स्तरीय प्रबंध से मध्य स्तरीय प्रबंध, निम्न स्तरीय प्रबंध और प्रचालक

बिना सोपान के सीधा उर्ध्वाधर समांतर और विकर्ण संचार को अनुमति देना

संगठनात्मक ढाँचे का आकार

आदेश की शृंखला अथवा सोपान के कारण- ऊर्ध्वाधर/लंबा

सीधे आदेश एवं संचार के कारण समस्तर/समतल

व्यावसायिक प्रक्रियाएँ एवं चक्र की लंबाई

अनुक्रमिक पूर्वता-क्रमानुसार संबंध, अर्थात् क्रय-उत्पादन/प्रचालन-विपणन-विक्रय इसीलिए व्यवसाय प्रक्रिया चक्र

लंबा होता है

विभिन्न प्रक्रियाओं की सहकालिकता। व्यवसाय प्रक्रिया चक्र इसीलिए छोटा होता है।

अंतर वैयक्तिक स्पर्श के अवसर

बहुत अधिक

 

कम

 

उत्पादों के भौतिक पूर्व-प्रतिचयन के अवसर

 

बहुत अधिक

 

कम। हालाँकि अंकीय उत्पादों के लिए अत्यधिक अवसर/आप संगीत, पुस्तकों, पत्रिकाओं सॉफ्टवेयर, वीडियो इत्यादि पूर्व-प्रतिचयन कर सकते हैं।

वैश्वीकरण में आसानी

 

कम

 

बहुत अधिक क्योंकि साइबर क्षेत्र सही में सीमा विहीन है।

सरकारी संरक्षण

 

कम हो रहा है

 

बहुत अधिक, क्योंकि सूचना तकनीक क्षेत्र सरकार की उच्च प्राथमिकताओं में से है

मानव पूँजी की प्रकृति

अर्ध-कुशल। यहाँ तक कि अकुशल मानवश्रम की आवश्यकता होती है

तकनीकी एवं पेशवर रूप से योग्य कर्मियों की आवश्यकता होती है

लेन-देन जोखिम

आमने-सामने संपर्क एवं लेन-देन होने के कारण कम जोखिम

अधिक दूरी एवं पक्षों की अनामता के कारण उच्च जोखिम

एक एेसे रेस्तरां की कल्पना कीजिए जिसमें किसी भौतिक स्थान की आवश्यकता नहीं है। हाँ, आपकी एक अॉनलाइन व्यंजन सूची हो सकती है जोकि संसार भर के उन रेस्तराओं के सर्वोत्तम पकवान प्रस्तुत करती है जिनसे आप नेटवर्क द्वारा जुड़े हों। ग्राहक आपकी वेबसाइट में जाकर व्यंजन सूची निश्चित करके क्रयादेश देते हैं जोकि आपसे होते हुए उस रेस्तरां तक पहुँच जाता है जो उस ग्राहक के न.जदीक स्थित होता है; भोजन की सुपुर्दगी हो जाती है और भुगतान की प्राप्ति रेस्तरां कर्मचारी द्वारा कर ली जाती है और आपको ग्राहक प्रदानकर्त्ता के रूप में देय राशि किसी इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन प्रणाली के द्वारा आपके खाते में जमा कर दी जाती है।

(ख) सुविधापूर्ण- इंटरनेट 24 घंटे × सप्ताह के 7 दिन × वर्ष के 365 दिन व्यवसाय की सुविधा प्रस्तुत करता है जिसके कारण ही पिछले एक उदाहरण में आधी रात को भी रीता और रेखा खरीददारी कर सकीं थीं। इस तरह की लोच संगठन के कर्मचारियों को भी उपलब्ध होती है जिसके द्वारा वह जब चाहे और जहाँ चाहे अपने कार्य कर सकते हैं। हाँ, ई-व्यवसाय सही मायनों में इलेक्ट्रॉनिकी द्वारा समर्थित एवं संबंधित व्यवसाय है जो किसी भी वस्तु की किसी भी समय और कहीं भी सुलभता के लाभ प्रस्तावित करता है।

(ग) गति- जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, क्रय एवं विक्रय में बहुत-सी सूचनाओं का विनिमय शामिल होता है जोकि इंटरनेट द्वारा सिर्फ ‘माउस’ के क्लिक भर करने से हो जाती है। यह सुविधा सूचना उत्पादों, जैसे- सॅाफ्टवेयर, फिल्मों, ई-पुस्तकों एवं पत्रिकाओं जिनकी अॉनलाइन सुपुर्दगी की जा सकती है, के संदर्भ में अधिक आकर्षक हो जाती है। चक्र समय, अर्थात् माँग की उत्पत्ति से इसकी पूर्ति तक के चक्र को पूरा होने में लगे समय में, व्यवसाय प्रक्रियाओं के अनुक्रमिक से समानांतर अथवा सहकालिक रूपांतरण होने पर अभूतपूर्व कमी हो जाती है। आप जानते हैं कि अंकीयकरण काल में मुद्रा को प्रकाश की गति युक्त धड़कन के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके लिए, ई-कॉमर्स की कोष हस्तांतरण तकनीक का आभारी होना चाहिए।

(घ) वैश्विक पहुँच/प्रवेश- इंटरनेट सही अर्थों में सीमाविहीन है। एक तरफ यह विक्रेता को बाजार की वैश्विक पहुँच प्रदान करता है तो दूसरी तरफ यह क्रेता को संसार के किसी भी हिस्से से उत्पाद चयन करने की स्वतंत्रता वहन करता है। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इंटरनेट की अनुपस्थिति में वैश्वीकरण का कार्यक्षेत्र एवं गति काफी हद तक प्रतिबंधित हो जाएगी।

(ङ) कागजरहित समाज की ओर संचलन- इंटरनेट के प्रयोग ने काफी हद तक कागजी कार्यवाही और परिचर ‘लालफीताशाही’ पर निर्भरता को कम कर दिया है। आप जानते हैं कि मारुति उद्योग बहुत बड़ी मात्रा में अपने कच्चे माल और कलपुर्जों की पूर्ति का स्रोतीकरण बिना किसी कागजी कार्यवाही के करता है। यहाँ तक कि सरकारी विभाग एवं नियामक प्राधिकरण भी इस दिशा में तेजी से संचलन कर रहे हैं जिसके अंतर्गत वह विवरणियों एवं प्रतिवेदनों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करने की अनुमति प्रदान करते हैं। ई-कॉमर्स औजार उन प्रशासनिक सुधारों को भी प्रभावित कर रहे हैं जिनका उद्देश्य अनुमति, अनुमोदन और लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है। इस संदर्भ में सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 के प्रावधान उल्लेखनीय है।


5.4 ई-व्यवसाय की सीमाएँ

ई-व्यवसाय इतना भी लुभावना नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से व्यवसाय करने की कई सीमाएँ हैं। यह उचित होगा कि इन सीमाओं के प्रति भी सचेत रहा जाए।

(क) अल्प मानवीय स्पर्श- हालाँकि ई-व्यवसाय अत्याधुनिक हो सकता है परंतु इसमें अंतरव्यक्ति पारस्परिक संपर्क की गर्माहट का अभाव होता है, इस सीमा तक यह उन उत्पाद श्रेणियों जिनमें उच्च वैयक्तिक स्पर्श की आवश्यकता होती हैं, जैसे- वस्त्र, प्रसाधन इत्यादि के व्यवसाय के लिए अपेक्षाकृत कम उपयुक्त विधि है।

(ख) आदेश प्राप्ति/प्रदान और आदेश पूरा करने की गति के मध्य असमरूपता- सूचना माउस को क्लिक करने मात्र से ही प्रवाहित हो सकती है, परंतु वस्तुओं की भौतिक सुपुर्दगी में समय लगता ही है।

यह असमरूपता ग्राहक के सब्र पर भारी पड़ सकती है। कई बार तकनीकी कारणों से वेबसाइट खुलने मेें असामान्य रूप से अधिक समय ले सकती है। यह बात भी प्रयोगकर्त्ता को हतोत्साहित कर सकती है।

(ग) ई-व्यवसाय के पक्षों में तकनीकी क्षमता और सामर्थ्य की आवश्यकता- तीन पारंपरिक विधाओं (पठन, लेखन और अंकगणित) के अलावा ई-व्यवसाय में सभी पक्षों की कंप्यूटर के संसार से उच्च कोटि के परिचय की आवश्यकता होती है और यही आवश्यकता समाज में विभाजन, जिसे कि अंकीय-विभाजन कहा जाता है, के लिए उत्तरदायी होती है, जिसमें समाज का अंकीय तकनीक से परिचितता और अपरिचितता के आधार पर विभाजन हो जाता है।

(घ) पक्षों की अनामता और उन्हें ढूँढ़ पाने की अक्षमता के कारण जोखिम में वृद्धि- इंटरनेट लेन-देन साइबर व्यक्तियों के मध्य होते हैं, एेसे में पक्षों की पहचान सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है। यहाँ तक कि कोई यह भी नहीं जान सकता कि पक्ष किस स्थान से प्रचालन कर रहे हैं। यह जोखिम भरा होता है, इसलिए इंटरनेट पर लेन-देन भी जोखिम भरा होता हैं। इसमें अप्रतिरूपण (किसी अन्य का आपके नाम पर लेन-देन करना) और गुप्त सूचनाओं के बाहर निकलने, जैसे- क्रेडिट कार्ड विवरण जैसे अतिरिक्त खतरे भी हो सकते हैं। इसके बाद वायरस और हैकिंग की समस्या भी हो सकती है जिनके बारे में आपने अवश्य सुना होगा? यदि नहीं तो इनका विवेचन हम अॉनलाइन व्यवसाय के सुरक्षा और बचाव सरोकारों का विवेचन करते समय करेंगे।


सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 कागज रहित समाज के लिए राह तैयार कर रहा है

नीचे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 के कुछ प्रावधान दिए गए हैं, जोकि व्यवसाय जगत और सरकारी क्षेत्र में कागजरहित लेन-देनों को संभव बनाते हैं-

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को कानूनी मान्यता (खंड-4): जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता है कि सूचना अथवा कोई भी अन्य सामग्री लिखित अथवा टाइप की हुई अथवा मुद्रित रूप में होनी चाहिए, तब एेसा होते हुए भी उस कानून में समाविष्ट एेसी कोई भी आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी। यदि एेसी सूचना अथवा विषय सामग्री इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत की जाती है अथवा उपलब्ध कराई जाती है और बाद में संदर्भ हेतु उपयोग के लिए उपलब्ध रहती है।

अंकीय (डिजिटल) हस्ताक्षरों को कानूनी मान्यता (खंड-5): जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता है कि सूचना अथवा किसी भी अन्य सामग्री की प्रमाणिकता हस्ताक्षर करने से सिद्ध होगी अथवा कोई प्रपत्र हस्ताक्षरित होना चाहिए अथवा उस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर होने चाहिए, इसलिए एेसा होते हुए भी उस कानून में समाविष्ट एेसी कोई भी आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी यदि एेसी सूचना अथवा विषय सामग्री अंकीय हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित हो तथा यह हस्ताक्षर उस तरीके से किए गए हो जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने निर्धारित किया हो।

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों और अंकीय हस्ताक्षरों का सरकार एवं दूसरी एजेंसियों द्वारा उपयोग (खंड 6.1): जहाँ कोई कानून, किसी फार्म, प्रार्थनापत्र अथवा किसी अन्य प्रपत्र को किसी कार्यालय, प्राधिकरण, किसी सरकारी स्वामित्व अथवा नियंत्रण वाली एजेंसी में विशेष प्रकार से जमा कराने में, एक विशेष प्रकार से लाइसेंस, परमिट, अनुशस्ति अथवा किसी भी नाम से अनुमोदन जारी करने अथवा स्वीकृति देने में, एक विशेष प्रकार से धन की प्राप्ति एवं भुगतान करने में, व्यवस्था देता है तो एेसा होते हुए भी उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून में समाविष्ट एेसी आवश्यकताएँ संतुष्ट मानी जाएँगी, यदि वह जमा कराने, स्वीकृति जारी करने, प्राप्ति अथवा भुगतान, जैसा भी मामला हो, में उस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रभावी होगा जैसा कि सरकार द्वारा निर्धारित है।

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों का प्रतिधारण (खंड 7.1): जहाँ कानून यह व्यवस्था देता है कि प्रपत्रों, अभिलेखों अथवा सूचनाओं को एक विशिष्ट अवधि तक संभालकर रखा जाए, तब वह आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी यदि वह प्रपत्र, अभिलेख अथवा सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप में संभाल कर रखे गए हों।

स्रोतः सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ।

(ङ) जन प्रतिरोध- नई तकनीक के साथ समायोजन की प्रक्रिया एवं कार्य करने के नए तरीके तनाव एवं असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। इसके परिणामस्वरूप लोग संस्था के ई-व्यवसाय के प्रवेश की योजना का विरोध कर सकते हैं।

(च) नैतिक पतन- ‘‘तो, तुम नौकरी छोड़ने की योजना बना रही हो, अच्छा यह होगा कि तुम आज ही नौकरी छोड़ दो’’, मानव संसाधन प्रबंधक ने उसे उस ई-मेल की प्रति दिखाते हुए कहा जो उसने अपने मित्र को लिखी थी। सबीना अचंभित और सन्न रह गई कि किस प्रकार उसके बॉस को उसके ई-मेल खाते का पता चला? आजकल कंपनियाँ आपके द्वारा प्रयोग की गई कंप्यूटर फाइलों, आपके ई-मेल खातों, वेबसाइट जिन पर आप जाते हैं और एेसी अन्य जानकारियों के लिए एक विशेष सॉफ्टवेयर (जैसे इलेक्ट्रॉनिक आई) का प्रयोग करते हैं। क्या यह नैतिक है?

सीमाओं के बावजूद भी ई-कॉमर्स एक साधन है

यह कहा जा सकता है कि ई-व्यवसाय की उपरोक्त विवेचित अधिकतर सीमाएँ अब उबरने की प्रक्रिया में हैं। निम्न स्पर्श की समस्या से उबरने के लिए वेबसाइट अब ज्यादा से ज्यादा जीवंत हो रही हैं। संचार तकनीक, इंटरनेट के द्वारा संचार की गति एवं गुणवत्ता में लगातार वृद्धि कर रही है। अंकीय विभाजन से उबरने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरणस्वरूप एेसी व्यूह रचनाओं की ओर उन्मुख होना, जैसे कि भारत के गाँवों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी संस्थाओं, गैर सरकारी संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सम्मिलित प्रयासों से सामुदायिक टेली केंद्रों की स्थापना। देश के कोने-कोने में ई-कॉमर्स के प्रसार के लिए भारत ने एेसी 150 परियोजनाएँ हाथ में ली हैं।

उपरोक्त विवेचन की दृष्टि से यह स्पष्ट है कि ई-व्यवसाय यहाँ बना रहेगा और व्यवसायों, शासन और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार प्रदान करेगा। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम अपने आपको इस बात से परिचित बनाएँ कि ई-व्यवसाय किस प्रकार किया जाता है।


5.5 अॉनलाइन लेन-देन

प्रचालन के आधार पर, कोई भी अॉनलाइन लेन-देनों में तीन अवस्थाओं की कल्पना कर सकता है। पहली, क्रय-पूर्व/विक्रय अवस्था जिसमें प्रचार एवं सूचना जानकारी शामिल हैं; दूसरी, क्रय/विक्रय अवस्था जिसमें मूल्य मोलभाव, क्रय/विक्रय लेन-देन को अंतिम रूप देना और भुगतान इत्यादि शामिल होते हैं; और तीसरी, सुपुर्दगी अवस्था है। सूचनाओं का आदान-प्रदान पारंपरिक व्यवसाय पद्धति में भी होता है परंतु यह समय एवं लागत की गंभीर बाधाओं के साथ होता है। आमने-सामने संवाद के लिए, उदाहरणस्वरूप पारंपरिक व्यवसाय पद्धति में एक व्यक्ति को दूसरे पक्ष से बात करने के लिए यात्रा करनी पड़ेगी जिसके लिए यात्रा प्रयत्न, अधिक समय और लागत की जरूरत होती है। टेलीफोन द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान भी कष्टकारी होता है। सूचना के मौखिक आदान-प्रदान के लिए दोनों पक्षों की सहकालिक उपस्थिति आवश्यक होती है। सूचना का प्रसारण डाक द्वारा भी हो सकता है। परंतु यह भी काफी समय लेने वाली एवं मंहगी प्रक्रिया है। इंटरनेट एेसे चौथे माध्यम के रूप में आता है जोकि उपरोक्त उल्लेखित लगभग सभी समस्याओं से मुक्त है। सूचना गहन उत्पादों एवं सेवाओं के संदर्भ में सुपुर्दगी अॉनलाइन भी हो सकती है जैसे कि सॉफ्टवेयर और संगीत इत्यादि। यहाँ, जिसे उल्लेखित किया गया है वह एक ग्राहक विचारबिंदु से अॉनलाइन व्यापार प्रक्रिया है। हम नीचे दिए गए अनुच्छेद में विक्रेता के दृष्टिकोण से ई-व्यवसाय के लिए संसाधन आवश्यकताओं का विवेचन करेंगे। तो क्या आप अपनी खरीददारी सूची के साथ तैयार हैं अथवा आप शॉपिंग मॉल में घूमते समय अपनी सहज प्रवृत्ति पर निर्भर रहेंगे? आइए, रीता और रेखा का अनुसरण करें जो इंडियाटाइम्सडॉट कॉम का अवलोकन कर रही हैं।

(क) पंजीकरण- अॉनलाइन खरीददारी से पूर्व व्यक्ति को एक पंजीकरण फार्म भरकर अॉनलाइन विक्रेता के पास पंजीकरण करवाना पड़ता है। पंजीकरण का अर्थ है कि आपका अॉनलाइन विक्रेता के पास एक खाता है। संकेत शब्द (पासवर्ड) आपके खाते के उपखंडों से संबंधित अन्य विभिन्न विवरणों में से एक है जिन्हें आपको भरना पड़ता है, और ‘शॉपिंग कार्ट’ आपके संकेत शब्द के सुरक्षक होते हैं। अन्यथा कोई भी आपके नाम का प्रयोग कर आपके नाम पर खरीददारी कर सकता है। यह स्थिति आपको संकट में डाल सकती है।

(ख) आदेश प्रेषित करना- ‘शॅापिंग कार्ट’ (खरीददारी गाड़ी/ट्रॉली) में आप किसी भी वस्तु को चुन सकते हैं और छोड़ भी सकते हैं। ‘शॅापिंग कार्ट’ उन सबका अॉनलाइन अभिलेख होता है जिनको आपने अॉनलाइन भंडार (स्टोर) पर ढूढ़ते समय चुना होगा। जिस प्रकार वास्तविक भंडार (स्टोर) में आप अपनी गाड़ी/ट्रॉली में वस्तुएँ रख सकते हैं और फिर उससे निकालकर ले जा सकते हैं। ठीक एेसा ही आप अॉनलाइन खरीददारी करते समय कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के बाद कि आप क्या खरीदना चाहते हैं, आप बाहर निकलकर अपने भुगतान विकल्पों को चुन सकते हैं।

(ग) भुगतान तंत्र- अॉनलाइन खरीददारी के माध्यम से किए गए क्रयों का भुगतान अनेक विधियों से किया जा सकता है-

• सुपुर्दगी के समय नकद- जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, अॉनलाइन आदेशित वस्तुओं के लिए नकद में भुगतान वस्तुओं की भौतिक सुपुर्दगी के समय किया जाता है।

• चेक- अन्य विकल्प के रूप में अॉनलाइन विक्रेता ग्राहक के पास से चेक उठाने का बंदोबस्त कर सकता है। वस्तु की सुपुर्दगी चेक की वसूली के बाद की जा सकती है।

• नेट बैंकिंग हस्तांतरण- आधुनिक बैंक अपने ग्राहकों को इंटरनेट पर कोषों के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हैं जिसमें आई.एम.पी.एस. (IMPS), एन.ई.एफ.टी. (NEFT) और आर.टी.जी.एस. (RTGS) सम्मिलित हैं। इस स्थिति में क्रेता लेन-देन की एक निश्चित मूल्य राशि अॉनलाइन विक्रेता के खाते में हस्तांतरित कर सकता है, जोकि इसके बाद वस्तुओं की सुपुर्दगी का प्रबंध करता है।

• क्रेडिट और डेबिट कार्ड- ‘प्लास्टिक मुद्रा’ के रूप में विख्यात ये कार्ड अॉनलाइन लेन-देनों में सर्वाधिक प्रयुक्त माध्यम हैं। लगभग 95 प्रतिशत अॉनलाइन लेन-देन इनके द्वारा ही कार्यान्वित होते हैं। क्रेडिट कार्ड अपने धारक को उधार खरीद की सुविधा प्रदान करते हैं, कार्ड धारक पर बकाया राशि कार्ड जारीकर्त्ता बैंक अपने ऊपर ले लेता है और बाद में लेन-देन में प्रयुक्त इस राशि को विक्रेता के ‘जमा’ में हस्तांतरित कर देता है। क्रेता का खाता भी इस राशि से ‘नाम’ कर दिया जाता है जोकि अक्सर इसे किश्तों में एवं अपनी सुविधानुसार जमा कराने की स्वतंत्रता का आनंद उठाता है। डेबिट कार्ड धारक को उस सीमा तक खरीददारी करने की अनुमति प्रदान करता है, जिस राशि तक उसके खाते में धनराशि उपलब्ध होती है। जिस क्षण कोई लेन-देन किया जाता है, भुगतान के लिए बकाया राशि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से उसके कार्ड से घट जाती है।

क्रेडिट कार्ड को भुगतान के तरीके के रूप में स्वीकारने के लिए, विक्रेता को पहले उसके ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड संबंधित सूचना प्राप्त करने के सुरक्षित साधनों की आवश्यकता होती है। क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान का प्रसंस्करण या तो हस्तचल या फिर अॉनलाइन प्राधिकृत प्रणाली द्वारा किया जा सकता है, जैसे कि एस.एस.एल. प्रमाणपत्र।

• अंकीय (डिजिटल) नकद- यह इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा का एक रूप है जिसका अस्तित्व केवल साइबर स्थान (स्पेस) में ही होता है। इस तरह की मुद्रा के कोई वास्तविक भौतिक गुण नहीं होते हैं, परंतु यह वास्तविक मुद्रा को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में प्रस्तुत करने में सक्षम होती है। सबसे पहले आपको बैंक में इस राशि का भुगतान (चेक, ड्रॉफ्ट, इत्यादि द्वारा) करना होगा, जोकि उस अंकीय नकद के समतुल्य होगी, जिसे आप अपने पक्ष में जारी करवाना चाहते हों। इसके बाद कि ई-नकद में लेन-देन करने वाला बैंक आपको एक विशेष सॉफ्टवेयर भेजेगा (जिसे आप अपनी कंप्यूटर हार्ड डिस्क पर उतार सकते हैं) जोकि आपको, बैंक में स्थित अपने खाते से अंकीय नकद निकासी की अनुमति प्रदान करेगा। तब आप अंकीय कोषों का प्रयोग वेबसाइट पर क्रय करने में कर सकते हैं। इस तरह की भुगतान प्रणाली द्वारा इंटरनेट पर क्रेडिट कार्ड संख्याओं के प्रयोग संबंधी सुरक्षा समस्याओं के दूर करने की आशा की जा सकती है।


5.6 ई-लेन-देनों की सुरक्षा एवं बचाव

ई-व्यवसाय जोखिम

अॉनलाइन लेन-देन, मौखिक विनिमय लेन-देनों से भिन्न, अनेक जोखिमों की ओर उन्मुख होते हैं। जोखिम से आशय किसी एेसी अनहोनी की संभाव्यता से है जोकि एक लेन-देन में शामिल पक्षों के लिए वित्तीय प्रतिष्ठात्मक अथवा मानसिक हानि का परिणाम बने। अॉनलाइन लेन-देनों में इन जोखिमों की उच्च संभाव्यता के कारण ही ई-व्यवसाय में सुरक्षा एवं बचाव के मुद्दे बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण बन गए हैं। इन मुद्दों का विवेचन निम्न तीन शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता हैः- लेन-देन जोखिम, डाटा संग्रहण और प्रसारण जोखिम और बौद्धिक संपदा को खतरे व निजता जोखिम।

(क) लेन-देन जोखिम- अॉनलाइन लेन-देन निम्न प्रकार के जोखिमों के लिए सुमेद्य होते हैंः

• विक्रेता इस बात के लिए मना कर सकता है कि ग्राहक ने उसे कभी आदेश प्रेषित किया था और ग्राहक यह मना कर सकता है कि उसने कभी विक्रेता को आदेश प्रेषित किया था। इसे ‘आदेश लेन/देन संबंधी चूक’ के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है।

• वांछित सुपुर्दगी न हो पाना, वस्तुओं की सुपुर्दगी गलत पते पर हो गई, अथवा आदेश से अलग/भिन्न वस्तुओं की सुपुर्दगी होना। इसे ‘सुपुर्दगी की चूक’ कहा जा सकता है।

• विक्रेता पूर्ति की गई वस्तुओं के लिए भुगतान प्राप्त नहीं कर पाया हो जबकि ग्राहक दावा करे कि उसने भुगतान कर दिया है। इसे ‘भुगतान संबंधी चूक’ कहा जा सकता है।

इस प्रकार क्रेता एवं विक्रेता के लिए आदेश लेन-देन में, सुपुर्दगी में, साथ ही भुगतान में चूक के कारण जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। इस तरह की स्थिति से, पंजीकरण के समय पहचान और स्थिति/पते की जाँच द्वारा और आदेश स्वीकृति एवं भुगतान वसूली के लिए एक प्राधिकार प्राप्त कर बचा जा सकता है। उदाहरणार्थ- यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्राहक ने पंजीकरण फार्म में अपना सही विवरण प्रविष्ट कर दिया है, विक्रेता इसे कुकी.ज से सत्यापित करवा सकता है। कुकी.ज टेलीफोन कॉल पहचानकर्त्ता के समान ही होते हैं जोकि टेलीविक्रेता को ग्राहक का नाम, पता और उसके पिछले क्रम भुगतान के विवरण जैसी जरूरी जानकारी उपलब्ध करवाता है। अनजान विक्रेताओं से ग्राहकों की सुरक्षा के लिए यह सलाह उचित है कि सुप्रतिष्ठित खरीददारी स्थानों (शॉपिंग साइट्स) से ही खरीददारी की जाए। ‘ई-वे’ जैसी वेबसाइट, विक्रेता की श्रेणी (रेटिंग) तक उपलब्ध करवाती हैं। एेसी वेबसाइट ग्राहकों को सुपुर्दगी में चूक के प्रति सुरक्षा प्रदान कराती हैं और कुछ हद तक किए गए भुगतान की वापसी भी करवाती हैं।

5.4

चित्र 5.4 ई-व्यापार के माध्यम से वस्तुओं एवं सेवाओं से घटता वितरण चक्र


जहाँ तक भुगतान का संबंध है, हम पहले ही देख चुके हैं कि अॉनलाइन खरीददारी करने के लिए लगभग 95 प्रतिशत लोग क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करते हैं। आदेश स्वीकृति प्राप्त करते समय क्रेता को क्रेडिट कार्ड संख्या, कार्ड जारीकर्त्ता एवं कार्ड की वैधता अवधि जैसे विवरण अॉनलाइन उपलब्ध करवाने होते हैं। एेसे विवरणों का प्रसंस्करण अलग से होता है और उधार सीमा की उपलब्धता इत्यादि से अपनी संतुष्टि करने के उपरांत ही विक्रेता वस्तुओं की सुपुर्दगी के लिए आगे बढ़ सकता है। विकल्प के रूप में ई-कॉमर्स तकनीक आज क्रेडिट कार्ड सूचना के अॉनलाइन प्रसंस्करण की अनुमति तक भी प्रदान करती है। क्रेडिट कार्ड विवरणों को दुरुपयोग से बचाने के लिए आजकल खरीददारी मॉल सांकेतिक शब्द तकनीक, जैसे- नेट स्केप के कर रहे हैं। एस.एस.एल. के बारे में अधिक जानकारी आप ‘ई-कॉमर्स के इतिहास’ से प्राप्त कर सकते हैं।’

आगे के खंडों में हम आपको अॉनलाइन लेन-देनों में डाटा प्रसारण जोखिमों से बचाव के लिए प्रयोग किए जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण औजार-सांकेतिक शब्द अथवा कूट लेखन विधि (क्रिप्टोग्राफी) से परिचित कराएँगे।

(ख) डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिम- सूचना वास्तव में शक्ति है परंतु उस क्षण का विचार कीजिए, जब यह शक्ति गलत हाथों में चली जाती है। डाटा चाहे कंप्यूटर प्रणाली में संग्रहीत हो या फिर मार्ग में हो, अनेक जोखिमों से आरक्षित होते हैं। महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ कुछ स्वार्थी उद्देश्यों अथवा सिर्फ म.जाक के लिए चोरी अथवा संशोधित कर ली जाती हैं। आपने ‘वायरस’ और ‘हैकिंग’ के बारे में तो सुना ही होगा। क्या आप परिवर्ती शब्द ‘वायरस’ का पूर्ण रूप/अर्थ जानते हैं- इसका अर्थ है महत्त्वपूर्ण सूचना की घेराबंदी/अवरोधित करना। वास्तव में, वायरस एक प्रोग्राम (आदेश की एक शृंखला) है, जोकि अपनी पुनरावृत्ति कंप्यूटर प्रणलियों पर करता रहता है। कंप्यूटर वायरस का प्रभाव क्षेत्र स्क्रीन प्रदर्शन में मामूली छेड़छाड़ (स्तर-1 वायरस) से लेकर, कार्य प्रणाली में बाधा (स्तर-2 वायरस) तक, लक्षित डाटा फाइलों को क्षति (स्तर-3 वायरस) तक, समूची प्रणाली को क्षति (स्तर-4 वायरस) तक हो सकता है। एंटी वायरस प्रोग्रामों की स्थापना एवं समय-समय पर उनके नवीनीकरण और फाइलों एवं डिस्को की एंटी वायरस द्वारा जाँच आपकी डाटा फाइलों, फोल्डरों और कंप्यूटर प्रणाली को वायरस के हमले से बचाती है। प्रसारण के दौरान डाटा अवरुद्ध हो सकते हैं। इसके लिए क्रिप्टोग्राफी (कूटलेखन विधि) का प्रयोग किया जा सकता है। क्रिप्टोग्राफी से आशय सूचना बचाव की उस कला से है, जिसमें उसे एक अपठनीय प्रारूप जिसे साइबर उद्धरण (साइबर टेक्स्ट) कहते हैं, में बदल दिया जाता है। केवल वही व्यक्ति जिसके पास गुप्त कुंजी (पासवर्ड) होती है, संदेश को स्पष्ट कर सामान्य उद्धरण (प्लेन टेक्स्ट) में बदल सकता है। यह किसी व्यक्ति के साथ कूट शब्दों (कोड वर्ड) के प्रयोग के समान ही है जिससे कि कोई आपके वार्तालाप को समझ न पाए।

(ग) बौद्धिक संपदा एवं निजता पर खतरे के जोखिम- इंटरनेट एक खुला स्थान है। सूचना जब एक बार इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाती है तो वह निजी क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल आती है और तब इसकी नकल होने से रोकना मुश्किल हो जाता है। अॉनलाइन लेन-देनों के दौरान प्रस्तुत डाटा अन्य लोगों को भी पहुँचाए जा सकते हैं जोकि आपके ई-डाक (ई-मेल) बॉक्स में बेकार प्रचार एवं संवर्द्धन साहित्य भरना शुरू कर सकते हैं। इस तरह प्राप्ति छोर पर, आपके पास बेकार/रद्दी डाक प्राप्त करने के बाद प्राप्त करने के लिए बहुत कम बचता है।


5.7 सफल ई-व्यवसाय कार्यान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन

किसी व्यवसाय की स्थापना के लिए धन, व्यक्ति और मशीनों (हार्डवेयर) की आवश्यकता होती है। ई-व्यवसाय के लिए, वेबसाइट के विकास, संचालन, रखरखाव और वर्द्धन के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होती है। यहाँ ‘साइट’ से आशय स्थिति/स्थान से है तथा ‘वेब’ से आशय विश्वव्यापी वेब (वर्ल्ड वाइड वेब) से है। सरल शब्दों में कहें तो वर्ल्ड वाइड वेब पर फर्म की स्थिति ही ‘वेबसाइट’ कहलाती है। स्पष्ट रूप से वेबसाइट भौतिक स्थिति नहीं है, अपितु यह तो उस विषय-वस्तु का अॉनलाइन दृश्य स्वरूप है, जिसे फर्म दूसरों को उपलब्ध कराना चाहती है।


5.8 बाह्यस्रोतीकरण - संकल्पना

मौलिक रूप से बाह्यस्रोतीकरण एक अन्य प्रवृत्ति है जोकि महत्त्वपूर्ण रूप से व्यवसाय के पुनर्संरचित कर रही है। बाह्यस्रोतीकरण उस दीर्घावधि अनुबंध/संविदा प्रदान करने की प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें सामान्यतः व्यवसाय की द्वितीयक (गैर-मुख्य) और बाद में कुछ मुख्य गतिविधियों को आबद्ध अथवा तृतीय पक्ष विशेषज्ञों को उनके अनुभव, निपुणता, कार्यकुशलता और यहाँ तक कि निवेश से लाभान्वित होने के विचार से किया जाता है।

यह सरल परिभाषा, अवधारणा उन विशिष्ट लक्षणों की ओर इंगित करती है कि यह एक उद्योग/व्यवसाय अथवा देश के लिए निजी नहीं है, बल्कि एक वैश्विक घटना है।

(क) बाह्यस्रोतीकरण में संविदा बाहर प्रदान करना सम्मिलित होता है-

शाब्दिक रूप से, बाह्यस्रोतीकरण का अर्थ है वह सब बाहर से लाना जोकि अब तक आप अपने आप कर रहे थे। उदाहरण के लिए अधिकतर कंपनियों ने अभी तक अपने स्वयं के सफाई कर्मचारी अपने परिसर में स्वच्छता और साफ-सफाई और संपूर्ण देखभाल के लिए रखे हुए थे। इस प्रकार साफ-सफाई और देखभाल का कार्य स्वयं किया जाता था। परंतु बाद में, अनेक कंपनियों ने इन गतिविधियों का बाह्यस्रोतीकरण प्रारंभ कर दिया अर्थात् उन्होने अपने संस्थान की इन गतिविधियों के लिए बाहरी एजेंसियों को अनुबंधित कर लिया।

(ख) सामान्यतः द्वितीयक (गैर मुख्य) व्यावसायिक गतिविधियों का ही बाह्यस्रोतीकरण हो रहा है-

साफ-सफाई और देखभाल कार्य अधिकतर संस्थाओं के लिए गैर-मुख्य (द्वितीयक) कार्य होते हैं। परंतु नगर-निगमों एवं साफ-सफाई सेवा प्रदाताओं के लिए यह गतिविधियाँ उनकी मुख्य व्यावसायिक गतिविधियाँ होती हैं। देखभाल (हाउसकीपिंग) एक होटल की मुख्य गतिविधि है। दूसरे शब्दों में कुछ गतिविधियाँ एेसी होंगी जोकि कंपनी के मूल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण होंगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कंपनी किस व्यवसाय में है। अन्य गतिविधियाँ मुख्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए द्वितीयक अथवा आनुषांगिक मानी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए एक विद्यालय का उद्देश्य पाठ्यचारी और सहपाठ्यचारी गतिविधियों के माध्यम से बच्चे का विकास है। स्पष्ट रूप से यह गतिविधियाँ मुख्य गतिविधि मानी जाएगी। जलपान गृह/केंटीन अथवा पुस्तकों की दुकान चलाना विद्यालय के लिए गैर-मुख्य गतिविधियाँ हैं।

जब संस्थाएँ बाह्यस्रोतीकरण के साथ प्रयोग का साहस करती हैं तो वह प्रारंभ में सिर्फ गैर-मुख्य गतिविधियों का बाह्यस्रोतीकरण करती हैं। परंतु बाद में, जब वह परस्पर निर्भरता का प्रबंध करने में सहज हो जाती है तब वे अपनी मुख्य गतिविधियों को भी बाहरी लोगों से निष्पादित करवाती हैं। उदाहरण के लिए विद्यालय अपने विद्यार्थियों को कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी कंप्यूटर प्रशिक्षण संस्थान से अनुबंध कर सकता है।

(ग) प्रक्रियाओं का बाह्यस्रोतीकरण आबद्ध इकाई अथवा तृतीय पक्ष का हो सकता है-

एक बड़े बहुराष्ट्रीय निगम के बारे में विचार कीजिए जोकि विविध उत्पादों में व्यवहार करता है और उनका विपणन अनेकों देशों में करता है। इसकी सहायक कंपनियों, जो कि विभिन्न देशों में संचालित हो रही हैं, में अनेक प्रक्रियाएँ जैसे कि भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, अभिलेखन और वेतन पत्रक (मानव संसाधन), लेनदारी लेखों और देनदारी लेखों का प्रबंधन (लेखांकन एवं वित्त), ग्राहक सहायता/शिकायत निर्वाह/निवारण (विपणन), इत्यादि आम हैं। यदि इन प्रक्रियाओं का केंद्रीयकरण किया जा सकता है और उस व्यवसाय इकाई, जो कि इसी कार्य के लिए सृजित हुई हो, को भेजा जा सकता तो इसके परिणामस्वरूप संसाधनों के दोहराव से बचा सकता, कार्यकुशलता के दोहन और बड़े पैमाने पर एक ही गतिविधि के एक अथवा कुछ चयनित स्थानों पर निष्पादन से मितव्ययता हो पाती, जिससे परिणामतः लागत में महत्त्वपूर्ण कमी हो पाती है। स्पष्ट रूप से, इसीलिए कुछ गतिविधियों का आंतरिक निष्पादन यदि पर्याप्त रूप से विशाल हो तो फर्म के लिए यह लाभप्रद होगा कि उसका एक आबद्ध सेवा प्रदाता हो अर्थात् एेसा सेवा प्रदाता जो इस प्रकार की सेवा सिर्फ एक फर्म को उपलब्ध करवाने के लिए ही स्थापित हुआ हो। उदाहरण के लिए जनरल इलेक्ट्रॉनिक्स (जी.ई.), भारत में स्थापित एक विशालतम आबद्ध व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण इकाई है, जो विशेष प्रकार की सेवाएँ अमेरिका स्थित इसकी अभिभावक कंपनी के साथ ही संसार के अन्य भागों में स्थित इसकी सहायक कंपनियों को प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त प्रक्रियाएँ उन सेवा प्रदाताओं को भी भेड़ी जा सकती है, जो स्वतंत्र रूप में बाजार में प्रचालन कर रहे हों और अन्य फर्माें को सेवाएँ प्रदान करते हैं। चित्र 5.5 वह विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार फर्म अपनी गतिविधियों का आबद्ध और तृतीय पक्ष सेवा प्रदाताओं को बाह्यस्रोतीकरण कर सकती हैं। तृतीय पक्ष सेवा प्रदाता वह व्यक्ति/फर्में होती है, जिनकी कुछ प्रक्रियाओं जैसे कि मानव संसाधन इत्यादि में विशेषज्ञता होती है और वह अपनी सेवाएँ ग्राहकों के एक बड़े वर्ग को, जो कि पूरे उद्योग में फैले होते हैं, उपलब्ध करवाती है। इस तरह के सेवा प्रदाता बाह्यस्रोतीकरण की शब्दावली में ‘समस्तर’ कहलाते हैं इसके अलावा वह केवल एक या दो उद्योगों में विशेषज्ञ हो सकते हैं और उनके लिए गैर-मुख्य से लेकर मुख्य तक अनेकों प्रक्रियाओं का निष्पादन करते हैं। यह ‘उर्ध्वाधर’ कहलाते हैं। जैसे-जैसे सेवा प्रदाता परिपक्व होते जाते हैं, वह एक ही साथ समस्तर एवं उर्ध्वाधर गति करते हैं। बाह्यस्रोतीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है, दूसरों की विशेषज्ञता एवं अनुभव का लाभ उठाना।

विद्यालय, कंपनी एवं अस्पताल जैसी संस्थान अपनी जलपान गतिविधि का बाह्यस्रोतीकरण एेसी खानपान और पोषण फर्मों को कर सकते हैं जिनके लिए यह गतिविधियाँ मुख्य अथवा उनके प्रचालन का हृदय होती हैं। बाह्यस्रोतीकरण का विचार इसलिए भी मूल्यवान है क्योंकि यह न केवल आपको उनकी विशेषज्ञता और अनुभव एवं कार्यकुशलता लाभ उठाने बल्कि यह आपको अपने निवेश को सीमित करने और अपनी मुख्य प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति भी प्रदान करता है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बाह्यस्रोतीकरण तेजी से व्यवसाय की एक उभरती पद्धति बनाता जा रहा है। व्यावसायिक फर्मों ने अपनी उन एक अथवा दो प्रक्रियाओं का जो कि अन्य द्वारा कुशलतापूर्वक एवं प्रभावपूर्ण तरीके से निष्पादित की जा सकती है, तेजी से बाह्यस्रोतीकरण प्रारंभ कर दिया है। बाह्यस्रोतीकरण की जो स्थिति उसे व्यवसाय की उभरती पद्धति के रूप में माने जाने योग्य बनाती है वह है, मूलभूत व्यवसाय नीति और दर्शन के रूप में इसकी बढ़ती स्वीकार्यता जो कि इससे पहले की ‘सभी कुछ स्वयं करने के’ दर्शन के ठीक विपरीत है।

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चित्र 5.5 बाह्यस्रोतीकरण सेवा प्रदाताओं के प्रकार

5.8.1 बाह्यस्रोतीकरण का कार्यक्षेत्र

बाह्यस्रोतीकरण में चार प्रमुख खंड सम्मिलित होते हैंः- संविदा उत्पादन, संविदा शोध, संविदा विक्रय और सूचना विज्ञान (देखें चित्र 5.5)। शब्द ‘बाह्यस्रोतीकरण’ सूचना प्रौद्योगिकी जन्य सेवाओं अथवा व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण के साथ अधिक लोकप्रिय रूप से संलग्न होता है। इससे भी अधिक लोकप्रिय शब्द ‘कॉल सैंटर’ है जो कि ग्राहक उन्मुख स्वर आधारित सेवा उपलब्ध करवाते हैं। व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण उद्योग का लगभग 70 प्रतिशत राजस्व कॉल सैंटरों से आता है, 20 प्रतिशत उच्च-आयतन, निम्न-मूल्य डाटा कार्य से और बाकी 10 प्रतिशत उच्च-मूल्य सूचना कार्य से आता है। ‘ग्राहक सेवा’ अधिक परिमाण में ‘कॉल सैंटर’ गतिविधियों का, 24 घंटे × 7 दिन अंध बंध (ग्राहक के प्रश्न एवं शिकायतें) और बाह्य बंध (ग्राहक सर्वेक्षण, भुगतान अनुवर्ती और टेलीविपणन गतिविधियाँ) यातायात के साथ निर्वहन करती हैं। चित्र 5.5 विभिन्न प्रकार की बाह्यस्रोतीकरण गतिविधियों को रेखांकित करता है।

5.8.2 बाह्यस्रोतीकरण की आवश्यकता

जैसा कि कहा जाता है, आवश्यकता सभी अविष्कारों की जननी है। इसे बाह्यस्रोतीकरण के विचार से भी सत्य कहा जा सकता है। जैसे कि अध्याय के प्रारंभ में विवेचन किया जा चुका है कि कम लागत पर उच्च गुणवत्ता का वैश्विक प्रतिस्पर्धी दबाव, सदा माँग करने वाले ग्राहक और उदयीमान तकनीकें, व्यवसाय प्रक्रियाओं की ओर पुर्नदृष्टि अथवा पुर्नविचार के लिए अग्रसर करने वाले तीन प्रमुख कारक है। इन्हें बाह्यस्रोतीकरण की ओर उन्मुखता किसी दबाव के कारण नहीं अपितु पंसद चुनाव के कारण है। बाह्यस्रोतीकरण के कुछ प्रमुख कारणों (और लाभ भी) का विवेचन भी नीचे किया गया है।

(क) ध्यान केंद्रित करना- आप शैक्षिक और पाठ्येत्तर गतिविधियों में बहुत सी चीजें करने में अच्छे हो सकते हैं। फिर भी यदि आप अपने सीमित समय और धन को, उत्कृष्ट कुशलता और प्रभावपूर्णता के लिए, केवल कुछ ही चीजों में लगा सकते हैं तो आप अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकेंगे। इसी प्रकार व्यावसायिक फर्में भी कुछ क्षेत्रों, जिनमें उनके पास विशिष्ट क्षमताएँ एवं सामर्थ्य उपलब्ध है, में ध्यान केंद्रित कर अन्य बची हुई गतिविधियों को अपने बाह्यस्रोतीकरण साझेदार को सौपने की महत्ता को महसूस कर रही हैं। आप जानते हैं कि उत्पादकता अथवा मूल्य सृजन के लिए एक व्यवसाय अनेकों प्रक्रियाओं में संलग्न रहता है, जैसे कि, क्रय एवं उत्पादन, विपणन और विक्रय, शोध एवं विकास, लेखांकन और वित्त, मानव संसाधन और प्रशासन इत्यादि। फर्मों को अपने आपको परिभाषित अथवा पुर्नपरिभाषित करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, उन्हे यह जानने की आवश्यकता होती है कि क्या उन्हें उत्पादक अथवा विपणन संस्था कहा जाए। इस प्रकार व्यवसाय के कार्य क्षेत्र को सीमित करना, उन्हें अपना ध्यान, और संसाधनों की बेहतर कार्यकुशलता और प्रभावपूर्णता के लिए, केंद्रित करने में सहायक होता है।

(ख) उत्कृष्टता की खोज- आप श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण के लाभों से परिचित हैं। बाह्यस्रोतीकरण दो प्रकार से फर्मों को उत्कृष्टता हासिल करने में सहायक होता है। एक, फर्म उन गतिविधियों में उत्कृष्टता हासिल कर सकती हैं जिनमें वह सीमित मात्रा में ध्यान केंद्रित करने के कारण अच्छा कर सकती हैं और दूसरा, वह अपनी बाकी बची हुई गतिविधियों की संविदा उन लोगों को प्रदान कर, जोकि उनके निष्पादन में सर्वश्रेष्ठ हैं, अपनी क्षमताओं में विस्तार द्वारा भी उत्कृष्टता हासिल कर सकती हैं।

उत्कृष्टता की खोज में न केवल यह जानना आवश्यक है कि आपको किस पर ध्यान केंद्रित करना है बल्कि यह भी कि आप दूसरों से अपने लिए क्या करवाना चाहते हैं।

(ग) लागत की कमी- वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता न केवल वैश्विक गुणवत्ता बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धी कीमतों को भी आवश्यक बना देती है। प्रतिस्पर्द्धी दबाव के कारण जब कीमतें कम हो रही हों तो अस्तित्व और लाभ प्रदता बनाए रखने का एकमात्र तरीका लागत में कमी करना होता है। श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण, गुणवत्ता में सुधार के अलावा लागत भी कम करते हैं। एेसा बाह्यस्रोतीकरण साझेदारों को वृहद् पैमाने पर

उत्पादन के लाभ के कारण होता है क्योंकि यह एक जैसी सेवा अन्य अनेक संगठनों को प्रदान करते हैं। विभिन्न देशों में फैले उत्पादन के साधनों की कीमतों में अंतर भी लागत में कमी लाने वाला एक कारक है। उदाहरण के लिए भारत, कम लागत पर उपलब्ध आवश्यक मानव श्रम की उपलब्धता के कारण बड़े पैमाने पर शोध एवं विकास, उत्पादन, सॉफ्टवेयर और सूचना प्रौद्योगिकी जन्य सेवाओं के बाह्यस्रोतीकरण का पसंदीदा गतंव्य स्थल हैं।

(घ) गठजोड़ द्वारा विकास- जिस सीमा तक आप दूसरों की सेवाएँ ग्रहण करेंगे उस सीमा तक आपकी विनिवेश/निवेश की आवश्यकताएँ कम हो जाएँगी, क्योंकि अन्य लोगों ने आपके लिए उन गतिविधियों में निवेश किया होता है। यहाँ तक कि यदि आप अपने बाह्यस्रोतीकरण साझेदार के व्यवसाय में हिस्सेदारी चाहेंगे तब भी आप न केवल उसके द्वारा आपको उपलब्ध करवाई गई कम लागत एवं उत्कृष्ट गुणवत्ता सेवाओं का लाभ प्राप्त करेंगे अपितु उसके द्वारा किए गए संपूर्ण व्यवसाय से हुए लाभ में भी हिस्सेदारी से लाभान्वित होंगे। इस तरह आप तीव्र गति से विस्तार कर पाएेंगे क्योंकि निवेश योग्य कोषों की एक धनराशि के परिणामस्वरूप वृहद संख्या में व्यवसाय सृजित होंगे। वित्तीय प्रतिफलों के अलावा बाह्यस्रोतीकरण अंतर संगठन जानकारी में हिस्सेदारी और सम्मिलित अधिगम को भी सुगम बनाता है। यह उन कारणों की भी व्याख्या करता है कि क्यों आज फर्में न केवल अपनी सामान्य गैर-मुख्य प्रक्रियाओं, बल्कि अपनी अन्य सामरिक एवं मुख्य प्रक्रियाओं जैसे कि शोध एवं विकास के बाह्यस्रोतीकरण से लाभ उठा रही हैं।

(ङ) आर्थिक विकास को प्रोत्साहन- बाह्यस्रोतीकरण, उसमें अधिक देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर (अॉफशोर) बाह्यस्रोतीकरण अथितेय/मेजबान देशों (अर्थात् वह देश जहाँ से बाह्यस्रोतीकरण किया गया) में उद्यमशीलता, रोजगार एवं निर्यात को प्रोत्साहन देता है। उदाहरण के लिए, भारत में अकेले सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उद्यमशीलता रोजगार और निर्यात में एेसी आश्चार्यजनक हुई है कि, जहाँ तक सॉफ्टवेयर विकास एवं सूचना प्रौद्योगिकी जन्य सेवाओं में वैश्विक बाह्यस्रोतीकरण का संबंध है, हम निर्विवाद रूप से अग्रणी है। वर्तमान में 50 बिलियन डॉलर के (1 बिलियन = 100 करोड़) सूचना तकनीक क्षेत्र के वैश्विक बाह्यस्रोतीकरण में हमारा हिस्सा 60 प्रतिशत है।

5.8.3 बाह्यस्रोतीकरण के सरोकार

उन सरोकारों की जानकारी लेना नितांत आवश्यक होगा जिनसे बाह्यस्रोतीकरण घिरा हुआ है।

(क) गोपनीयता- बाह्यस्रोतीकरण बहुत सारी महत्त्वपूर्ण सूचना एवं जानकारी की हिस्सेदारी पर निर्भर करता है। यह बाह्यस्रोतीकरण साझेदार गोपनीयता नहीं बरतता है और उदाहरणस्वरूप- वह इसे प्रतिस्पर्धियों को पहुँचा देता है तो यह उस पक्ष के हितों को हानि पहुँचा सकता है जिसने अपनी प्रक्रियाओं का बाह्यस्रोतीकरण करवाया है यदि बाह्यस्रोतीकरण में संपूर्ण प्रक्रिया एवं उत्पाद शामिल हो तब यह जोखिम होता है कि कहीं बाह्यस्रोतीकरण साझेदार इस जानकारी से एक प्रतिस्पर्धी व्यवसाय न प्रारंभ कर लें।

(ख) परिश्रम (स्वेट) खरीददारी- व्यावसायिक फर्में जो बाह्यस्रोतीकरण करवाती हैं, अपनी लागतें कम करने का प्रयत्न करती हैं, वह मेजबान देशों की निम्न मानव संसाधन लागत का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश करती हैं। अधिकतर यह देखा गया है कि चाहे वह उत्पादन क्षेत्र हो अथवा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जिस कार्य का भी बाह्यस्रोतीकरण किया जाता है, वह इस प्रकार का घटक अथवा कार्य होता है जो कि, एक बेलोच निर्धारित प्रक्रिया/पद्धति के अनुपालन के लिए आवश्यक कौशल से परे बाह्यस्रोतीकरण साझेदार के सामर्थ्य एवं क्षमताओं में बहुत अधिक वृद्धि नहीं करता है। इस तरह बाह्यस्रोतीकरण करवाने वाली फर्म, जिसे देखने का प्रयत्न करती है वह ‘चिंतन कौशल’ के विकास के बजाय कार्य कौशल होता है।

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चित्र 5.6 बाह्यस्रोतीकरण की संरचना


(ग) नैतिक सरोकार- एेसी जूता कंपनी का विचार कीजिए जो अपनी लागत कम करने के लिए अपने उत्पादन का बाह्यस्रोतीकरण एेसे विकासशील देश को करती हैजहाँ बाल श्रमिकों/ औरतों से फैक्टरियों में कार्य करवाया जाता हो जबकि अपने देश में वह एेसा, बाल श्रम पर रोक लगाने वाले सख्त कानून की वजह से नहीं कर सकती है। तो क्या एेसे देशों में जहाँ बालश्रम गैर-कानूनी नहीं है या फिर वहाँ कानून कमजोर है, लागत कम करने का यह तरीका नैतिक है? इस प्रकार कार्य का बाह्यस्रोतीकरण उन देशों को करना है। जहाँ लिंग के आधार पर मजदूरी के आधार पर भेद-भाव किया जाता है। क्या नैतिक है?

(घ) ग्रहदेशों में विरोध- उत्पादन, विपणन, शोध एवं विकास और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की संविदाएँ बाहर देने पर आखिरकार जो भी बाहर जाता है वह होता है रोजगार एवं नौकरियाँ। इसके फलस्वरूप गृह देश (अर्थात् वह देश जहाँ से नौकरियाँ बाहर भेजी गई हैं) में विरोध पनप सकता है विशेषकर उस परिस्थिति में जब देश बेरोजगारी की समस्या से त्रस्त हो।

उपरोक्त उल्लेखित सरोकार हाँलाकि अधिक मायने नहीं रखते हैं, क्योंकि बाह्यस्रोतीकरण लगातार फल-फूल रहा है। जैसे कि भारत एक वैश्विक बाह्यस्रोतीकरण केंद्र के रूप में उभर आया है, यह उद्योग अनुमानतः एक तीव्र वृद्धि दर से बढ़ेगा, 1998 में 23,000 व्यक्ति और 10 मिलियन डॉलर प्रतिवर्ष से 2008 तक लगभग 1 मिलियन व्यक्ति और 20 बिलियन डॉलर से अधिक राजस्व


मुख्य शब्दावली

ई-व्यवसाय                                                     ई-कॉमर्स                                        समस्तर

सिक्योर सॉकेट्स लेअर                                   वायरस                                          कॉल सैंटर

ई-व्यापार                                                        अॉन लाइन व्यापार                         ब्राउज़र

ई-बोली                                                           ई-अधिप्राप्ति                                  परिश्रम (स्वेट) खरीददारी

ऊर्ध्वाधर                                                          ई -नकद

आबद्ध व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण इकाइयाँ


सारांश

व्यवसाय का संसार बदल रहा है। ई-व्यवसाय और बाह्यस्रोतीकरण इन परिवर्तनों के दो महत्त्वपूर्ण स्पष्ट सूचक हैं। यह परिवर्तन आंतरिक एवं बाह्य दोनों शक्तियों के प्रभाव से जन्मे हैं। आंतरिक रूप से यह व्यावसायिक फर्म की सुधार और कार्यकुशलता की अपनी खोज है, जिसने ई-व्यवसाय और बाह्यस्रोतीकरण को गति प्रदान की है। बाह्य रूप से लगातार बढ़ता प्रतिस्पर्धी दबाव और हमेशा माँग करते ग्राहक इन परिवर्तनों के पीछे की शक्तियाँ हैं।

व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति अथवा ई-व्यवसाय जैसे कि इसे कहा जाता है ने फर्म को, अपने ग्राहक के लिए कोई भी चीज, कहीं भी और किसी भी समय उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक अवसर प्रदान किए हैं, इस प्रकार यह फर्म के निष्पादन पर समय और स्थान/अवस्थिति की बाधाओं का निराकरण करती है। अंकीय होने के साथ-साथ फर्में सभी कुछ अपने आप करने की मनोवृत्ति से पलायन कर रही हैं। वह तेजी से उत्पादन, शोध एवं विकास के साथ-साथ व्यावसायिक प्रक्रियाओं का संविदा बाहर प्रदान कर रही है चाहे वह सूचना प्रौद्योगिकी जन्य हों या नहीं। भारत वैश्विक बाह्यस्रोतीकरण व्यवसाय में ऊँची उड़ान भर रहा है और उसने रोजगार सृजन, क्षमता निर्माण और निर्यात और सकल घरेलू उत्पाद में योगदान के रूप में महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त किया है।

ई-व्यवसाय और बाह्यस्रोतीकरण जैसी दो प्रवृत्तियाँ मिलकर व्यवसाय को चलाने के वर्तमान और भविष्यिक विधियों को पुर्नसरंचित कर रही है। ई-व्यवसाय और बाह्यस्रोतीकरण दोनों लगातार विकास कर रहे हैं और इसीलिए इन्हे व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ कहा गया है।


अभ्यास

बहु-विकल्पीय प्रश्न

निम्न प्रश्नों के सर्वाधिक उचित उत्तर पर ( ✔) चिह्न लगाइएः

1. ई-कॉमर्स में शामिल नहीं होता हैः

(क) एक व्यवसाय का उसके पूर्तिकर्त्ताओं से पारस्परिक संपर्क,

(ख) एक व्यवसाय का उसके ग्राहकों से पारस्परिक संपर्क,

(ग) व्यवसाय के विभिन्न विभागों के मध्य पारस्परिक संपर्क,

(घ) (ग) और एक व्यवसाय का अपनी भौगोलिक रूप से फैली हुई इकाइयों के मध्य पारस्परिक संपर्क,

2. बाह्यस्रोतीकरण

(क) सिर्फ सूचना प्रौद्योगिकी जन्य सेवाओं के संविदा बाहर प्रदान करने को प्रतिबंधित करता है।

(ख) केवल गैर-मुख्य व्यावसायिक प्रक्रियाओं के संविदा बाहर प्रदान करने को प्रतिबंधित करता है।

(ग) में उत्पादन और शोध एवं विकास के साथ ही सेवा प्रक्रियाओं-मुख्य और गैर-मुख्य दोनों के संविदा बाहर प्रदान करना शामिल है परंतु यह केवल घरेलू क्षेत्र तक सीमित है।

(घ) (ग) और इसमें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर बाह्यस्रोतीकरण भी सम्मिलित है।

3. ई-व्यवसाय का प्रारूपिक भुगतान तंत्र

(क) सुपुर्दगी पर नकद,                                      (ख) चैक,

(ग) क्रेडिट और डेबिट कार्ड,                              (घ) ई-नकद

4. एक कॉल सैंटर निर्वहन करता हैः

(क) केवल अंतबंध स्वर आधारित व्यवसाय,

(ख) (क) और बाह्य-बंध स्वर आधारित व्यवसाय,

(ग) दोनों अंत-बंध एवं बाह्य-बंध स्वर आधारित व्यवसाय,

(घ) ग्राहकोन्मुख और पार्श्व, दोनों व्यवसाय

5. यह ई-व्यवसाय का अनुप्रयोग नहीं हैः

(क) अॉनलाइन बोली,                                        (ख) अॉनलाइन अधिप्राप्ति,

(ग) अॉनलाइन व्यापार,                                      (घ) संविदा शोध एवं विकास

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. ई-व्यवसाय और पारंपरिक व्यवसाय में कोई तीन अंतर बताइए।

2. बाह्यस्रोतीकरण किस प्रकार व्यवसाय की नई पद्धति का प्रतिनिधित्व करता है?

3. ई-व्यवसाय के किन्ही दो अनुप्रयोगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

4. बाह्यस्रोतीकरण में शामिल नैतिक सरोकार कौन से हैं?

5. ई-व्यवसाय में डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिमों का वर्णन कीजिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. ई-व्यवसाय और बाह्यस्रोतीकरण को व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ क्यों कहा जाता है? इन प्रवृत्तियों की बढ़ती महत्ता के लिए उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिए।

2. अॉनलाइन व्यापार में सम्मिलित कदमों का विस्तृत वर्णन कीजिए।

3. बाह्यस्रोतीकरण की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए एवं इसकी सीमाओं का विवेचन कीजिए।

4. फर्म से ग्राहक कॉमर्स के प्रमुख पहलुओं का विवेचन कीजिए।

5. व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति की सीमाओं का विवेचन कीजिए। क्या यह सीमाएँ इसके कार्यक्षेत्रों को प्रतिबंधित करने के लिए काफी हैं? अपने उत्तर के लिए तर्क दीजिए।