Table of Contents
अधिगम उद्देश्य
इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप-
• आंतरिक व्यापार का अर्थ एवं इसके प्रकारों का वर्णन कर सकेंगे;
• थोक विके्रता की विनिर्माताओं एवं फुटकर विके्रताओं के प्रति सेवाओं को बता सकेंगेलल फुटकर व्यापारियों की सेवाओं की व्याख्या कर सकेंगे;
• फुटकर व्यापारियों के प्रकारों का वर्गीकरण कर सकेंगे
• छोटे पैमाने एवं बड़े पैमाने के फुटकर विक्रेताओं के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कर सकेंगे; तथा
• आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने में वाणिज्यिक एवं उद्योग संघों की भूमिका का उल्लेख कर सकेंगे।
क्या आपने कभी सोचा है कि यदि बाजार न होते तो विभिन्न उत्पादकों के उत्पाद हम तक किस प्रकार पहुँच पाते? हम सभी सामान्य प्रोविजन स्टोर (पंसारी की दुकान) से तो परिचित हैं ही जो हमेशा हमारी दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ बेचता है। परंतु क्या यह काफी है? जब हमें विशिष्ट प्रकृति की चीजें खरीदने की आवश्यकता होती है, तब हम किसी बड़े बाजार अथवा दुकान की ओर रुख करते हैं जहाँ वस्तुओं की विविधता उपलब्ध होती है। हमारा प्रेक्षण हमें यह बताता है कि विभिन्न चीजाें अथवा विशिष्ट वस्तुओं को बेचने वाली अलग तरह की दुकानें होती हैं और यह हमारी जरूरत पर निर्भर करता है कि हम एक निश्चित दुकान अथवा बाजार से खरीददारी करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हम ध्यान दे सकते हैं कि लोग अपना सामान गलियों में बेचते हैं, यह सामान सब्जी से लेकर कपड़े तक हो सकता है। यह उस दृश्य के बिल्कुल विपरीत है जो हम शहरी क्षेत्र में देखते हैं। हमारे देश में सभी प्रकार के बाजार सद्भावनापूर्ण रूप से विद्यमान हैं। आयातित वस्तुओं एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों (निगमों) के प्रादुर्भाव से हमारे यहाँ इन उत्पादों को बेचने वाली दुकानें भी हैं। बड़े कस्बों एवं शहरों में, अनेक एेसी फुटकर दुकानें हैं जो सिर्फ एक विशिष्ट ब्रांड के उत्पाद ही बेचती हैं। इन सबका एक दूसरा पहलू यह है कि कैसे ये उत्पाद, उत्पादकों से दुकानों तक पहुँचते हैं? इस कार्य को करने वाले कुछ बिचौलिए तो अवश्य होंगे। क्या वास्तव में वे उपयोगी हैं अथवा उनके कारण कीमतों में वृद्धि होती है?
10.1 परिचय
व्यापार से अभिप्राय लाभार्जन के उद्देश्य से वस्तु एवं सेवाओं के क्रय एवं विक्रय से है। मनुष्य सभ्यता के प्रारंभिक दिनों से किसी न किसी प्रकार के व्यापार में संलग्न रहा है। आधुनिक समय में व्यापार का महत्व और बढ़ गया है क्योंकि प्रतिदिन नये से नये उत्पाद विकसित किये जा रहे हैं तथा उन्हें पूरी दुनिया में लोगों को उनके उपभोग/उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है। कोई भी व्यक्ति अथवा देश अपनी आवश्यकता की वस्तु एवं सेवाओं के पर्याप्त मात्रा में उत्पादन में आत्मनिर्भरता का दावा नहीं कर सकता। अतः प्रत्येक व्यक्ति उस वस्तु का उत्पादन करता है जिसका उत्पादन वह सर्वोत्तम ढंग से कर सकता है तथा अतिरिक्त उत्पादन को वह दूसरों से विनिमय कर लेता है।
क्रेताओं एवं विक्रेताओं की भौगोलिक स्थिति के आधार पर व्यापार को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- (क) आंतरिक व्यापार, तथा (ख) बाह्य व्यापार। एक देश की सीमाओं के अंदर किया हुआ व्यापार आंतरिक व्यापार कहलाता है। दूसरी ओर, दो या अधिक देशों के बीच किया हुआ व्यापार बाह्य व्यापार कहलाता है। इस अध्याय में आंतरिक व्यापार के अर्थ एवं प्रकृति का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है एवं इसके विभिन्न प्रकारों तथा वाणिज्यिक संघ की इसके प्रवर्तन में भूमिका को समझाया गया है।
10.2 आंतरिक व्यापार
जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय एक ही देश की सीमाओं के अंदर किया जाता है तो इसे आंतरिक व्यापार कहते हैं। चाहे वस्तुआें का क्रय एक क्षेत्र में पास ही की दुकान से हो अथवा केंद्रीय बाजार से या फिर विभागीय भंडार, मॉल से या फेरी लगाकर माल का विक्रय करने वाले विक्रेता से अथवा किसी प्रदर्शनी आदि से। ये सभी आंतरिक व्यापार के उदाहरण हैं क्योंकि इनमें माल का क्रय देश के भीतर व्यक्ति अथवा संस्थान से किया जाता है। इस प्रकार के व्यापार में कोई सीमा शुल्क अथवा आयात कर नहीं लगाया जाता क्योंकि वस्तुएँ घरेलू उत्पादन का भाग हैं तथा घरेलू उपयोग के लिए होती हैं। साधारणतया भुगतान देश की सरकारी मुद्रा में अथवा अन्य किसी मान्य मुद्रा में किया जाता है।
आंतरिक व्यापार को दो भागोें में बाँटा जा सकता है- (क) थोक व्यापार, एवं (ख) फुटकर व्यापार। साधारणतया जब उत्पाद एेसे हों कि उनका वितरण दूरदराज क्षेत्रों में फैले बड़ी संख्या में क्रेताओं को करना होता है तो उत्पादकों के लिए उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ताओं तक सीधे पहुँचना बहुत कठिन हो जाता है। उदाहरणार्थ यदि वनस्पति तेल अथवा साबुन अथवा नमक का देश के एक भाग में उत्पादन करने वाला उत्पादनकर्ता यदि इन्हें पूरे देश में फैले लाखों उपभोक्ताओं तक पहुँचाना चाहता है तो उसके लिए थोक व्यापारी एवं फुटकर व्यापारियों की सहायता महत्त्वपूर्ण हो जाती है। पुनः विक्रय अथवा पुनः उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय थोक व्यापार कहलाता है।
दूसरी ओर जब क्रय-विक्रय कम मात्रा में हो, जो साधारणतया उपभोक्ताओं को किया गया हो तो इसे फुटकर व्यापार कहते हैं। जो व्यापारी थोक व्यापार करते हैं, उन्हें थोक व्यापारी तथा जो फुटकर व्यापार करते हैं, उन्हें फुटकर व्यापारी कहते हैं। फुटकर विक्रेता एवं थोक विक्रेता दोनों ही महत्त्वपूर्ण विपणन मध्यस्थ होते हैं जो उत्पादक एवं उपयोगकर्ता अर्थात् अंतिम उपभोगकर्ता के बीच वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। आंतरिक व्यापार का लक्ष्य देश के अंदर वस्तुओं का समान मात्रा में शीघ्र एवं कम लागत पर वितरण है।
10.3 थोक व्यापार
जैसे कि पिछले अनुभाग में चर्चा की जा चुकी है, विक्रय अथवा पुनः थोक व्यापार से अभिप्राय पुनः उत्पादन के उपयोग के लिए वस्तु एवं सेवाओं के बड़ी मात्रा में क्रय-विक्रय से है।
थोक विक्रय उन व्यक्तियों अथवा संस्थानों की क्रियाएँ हैं जो फुटकर विक्रेताओं एवं अन्य व्यापारियों अथवा औद्योगिक संस्थागत एवं वाणिज्यिक उपयोगकर्ताओं को विक्रय करते हैं। लेकिन यह अंतिम उपभोक्ताओं को अधिक विक्रय नहीं करते। थोक विक्रेता विनिर्माता एवं फुटकर विक्रेताओं के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं। ये न केवल उत्पादकों के लिए बड़ी संख्या में बिखरे हुए उपभोक्ताओं तक पहुंच (फुटकर विक्रेताओं के माध्यम से) संभव बनाते हैं बल्कि वस्तुओं एवं सेवाओं की वितरण प्रक्रिया के कई अन्य कार्य भी करते हैं। ये साधारणतया माल के स्वामी होते हैं तथा वस्तुओं को अपने नाम से खरीदते-बेचते हैं एवं व्यवसाय की जोखिम को वहन करते हैं। ये बड़ी मात्रा में क्रय कर फुटकर विक्रेताओं एवं उत्पादन के लिए उपयोगकर्ताओं को छोटी मात्रा में बेचते हैं। यह उत्पादों का श्रेणी करना, उनकी दो छोटे-छोटे भागों में पैकिंग करना, उनका संग्रहण, परिवहन, प्रवर्तन, बाजार के संबंध में सूचना एकत्रित करना, बिखरे हुए फुटकर विक्रेताओं से छोटी मात्रा में आदेश लेना तथा उन्हें वस्तुओं की सुपूर्दगी देना जैसे अन्य कार्य करते हैं। यह फुटकर विक्रेताओं को बड़ी मात्रा में संग्रहण के दायित्व से मुक्ति दिलाते हैं तथा उन्हें उधार की सुविधा भी प्रदान करते हैं। थोक विक्रेताओं के अधिकांश कार्य इस प्रकार के हैं कि थोक विक्रेताओं को समाप्त नहीं किया जा सकता। यदि थोक विक्रेता नहीं होंगे तो इनके कार्यों को या तो विनिर्माता करेंगें या फिर फुटकर विक्रेता।
थोक विक्रेताओं की सेवाएँं
थोक विक्रेता विनिर्माताओं एवं फुटकर विक्रेताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में भारी सहायता करते हैं। यह वस्तुएँ उस स्थान पर और उस समय पर जब उनकी आवश्यकता है उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार से यह समय उपयोगिता एवं स्थान उपयोगिता दोनों सृजन करते हैं। थोक विक्रेताओं की विभिन्न वर्गों के लिए सेवा नीचे दी गयी हैंः
10.3.1 विनिर्माताओं के प्रति सेवाएँं
वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादकों के प्रति थोक विक्रेताओं की प्रमुख सेवाएँं हैं-
(क) बड़े पैमाने पर उत्पादन में सहायक- थोक विक्रेता बड़ी संख्या में फुटकर विक्रेताओं से थोड़ी मात्रा में आदेश लेते हैं। इन्हें इकट्ठा कर विनिर्माताओं को हस्तांतरित कर देते हैं तथा बड़ी मात्रा में क्रय करते हैं। इससे उत्पादक बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं तथा उन्हें बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त होते हैं।
(ख) जोखिम उठाना- थोक विक्रेता वस्तुओं का क्रय-विक्रय अपने नाम से करते हैं, बड़ी मात्रा में माल का क्रय कर उन्हें अपने भंडार गृहों में रखते हैं। इस प्रक्रिया में वह मूल्य कम होने का जोखिम, चोरी, छीजन, खराब हो जाना आदि का जोखिम उठाते हैं। इस सीमा तक विनिर्माताओं को इन जोखिमों से छुटकारा दिलाते हैं।
(ग) वित्तीय सहायता- वे निर्माताओं से माल का नकद क्रय करते हैं इस प्रकार से वे उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। विनिर्माताओं को स्टॉक में अपनी पूँजी फंसाने की आवश्यकता नहीं होती है। कभी-कभी तो वे बड़ी मात्रा के लिए आदेश देते हैं तथा उन्हें कुछ राशि अग्रिम भी दे देते हैं।
(घ) विशेषज्ञ सलाह- थोक विक्रेता फुटकर विक्रेताओं से सीधे संपर्क में रहते हैं इसलिए वह निर्माताओं को विभिन्न पहलुओं के संबंध में सलाह देते हैं। यह पक्ष है ग्राहकों की रूचि
एवं पसंद, बाजार की स्थिति, प्रतियोगियों की गतिविधियों एवं उपभोक्ता की आवश्यकता के अनुसार वस्तुएँ। यह इन सबके संबंधों में एवं अन्य संबंधित मामलों के संबंध में बाजार की जानकारी के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
(ङ) विपणन में सहायक- थोक विक्रेता बड़ी संख्या में फुटकर विक्रेताओं को माल का वितरण करते हैं जो आगे उन्हें बड़ी संख्या में बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैले उपभोक्ताओं को बेचते हैं। इस प्रकार से उत्पादकों को अनेकों विपणन कार्यों से मुक्ति मिल जाती है तथा वह पूरा ध्यान उत्पादन में लगा सकते हैं।
(च) निरंतरता में सहायक- जैसे ही माल का उत्पादन होता है, उसे थोक विक्रेता खरीद लेते हैं। इस प्रकार से उत्पादन क्रिया पूरे वर्ष चलती रहती है।
(छ) संग्रहण- थोक विक्रेता कारखानों में माल का उत्पादन होते ही उसे खरीद लेते हैं तथा उन्हें अपने गोदामोें/भंडारगृहों में संग्रहीत कर लेते हैं। इससे निर्माताओं को तैयार माल को स्टोर करने की सुविधाएँ जुटाने की आवश्यकता नहीं होती।
10.3.2 फुटकर विक्रेताओं के प्रति सेवाएँं
थोक विक्रेताओं द्वारा फुटकर विक्रेताओं को प्रदान की जानेवाली सेवाएँं निम्नलिखित हैंः-
(क) वस्तुओं को उपलब्ध कराना- फुटकर विक्रेताओं को विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में स्टॉक रखना पड़ता है जिससे कि वह अपने ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्रदान कर सकें। थोक विक्रेता फुटकर विक्रेताओं को विभिन्न उत्पादकों की वस्तुओं को तुरंत उपलब्ध कराते हैं। इससे फुटकर विक्रेताओं को अनेकाें उत्पादकों से वस्तुओं को एकत्रित करने एवं बड़ी मात्रा में उनके संग्रहीत करने की आवश्यकता नहीं होती।
(ख) विपणन में सहायक- थोक विक्रेता विपणन के विभिन्न कार्यों को करते हैं तथा फुटकर विक्रेताओं को सहायता प्रदान करते हैं। वह विज्ञापन कराते हैं तथा विक्रय संवर्द्धन के कार्यों को करते हैं जिससे कि ग्राहक माल के क्रय के लिए तैयार हों। इससे नये उत्पादों की माँग में भी वृद्धि होती है तथा फुटकर विक्रेताओं को लाभ होता है।
(ग) साख प्रदान करना- थोक विक्रेता अपने नियमित ग्राहकों को साख की सुविधा देते हैं। इससे फुटकर विक्रेताओं को अपने व्यवसाय के लिए कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।
(घ) विशिष्ट ज्ञान- थोक विक्रेता एक ही प्रकार की वस्तुओं के विशेषज्ञ होते हैं तथा बाजार की नब्ज को पहचानते हैं। अपने विशिष्ट ज्ञान का लाभ वह फुटकर विक्रेताओं को पहुँचाते हैं। वह फुटकर विक्रेताओं को नए उत्पादों, उनकी उपयोगिता, गुणवत्ता, मूल्य आदि के संबंध में सूचनाएँ प्रदान करते हैं। वह दुकान की बाह्य सजावट, अलमारियों की व्यवस्था एवं कुछ उत्पादों के प्रदर्शन के संबंध में सलाह भी देते हैं।
(ङ) जोखिम में भागीदारी- थोक विक्रेता बड़ी मात्रा में क्रय करते हैं एवं फुटकर विक्रेताओं को थोड़ी मात्रा में माल का विक्रय करते हैं। फुटकर क्रेता माल को थोड़ी मात्रा मेें क्रय कर व्यवसाय चला लेते हैं। इससे उनको संग्रह का जोखिम, छीजन, प्रचलन से बाहर होने, मूल्यों में गिरावट, मांग में उतार-चढ़ाव जैसे जोखिम नहीं उठाने पड़ते अन्यथा थोक विक्रेताओं के न होने पर उन्हें बड़ी मात्रा में माल का क्रय करना पड़ता तथा यह सभी जोखिमें उठानी पड़ती।
10.4 फुटकर व्यापार
फुटकर विक्रेता वह व्यावसायिक इकाई होती है जो वस्तुओं एवं सेवाओं को सीधे अंतिम उपभोक्ताओं को बेचते हैं। यह थोक विक्रेताओं से बड़ी मात्रा में माल का क्रय कर उन्हें अंतिम उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं। ये वस्तुओं के वितरण शृंखला की अंतिम कड़ी होते हैं, जहाँ से व्यापारी के हाथ से लेकर वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ताओं अथवा उपयोगकर्ताओं को हस्तांतरित कर देते हैं। फुटकर व्यापार इस प्रकार से व्यवसाय की वह कड़ी है जो अंतिम उपभोक्ताओें को उनके व्यक्तिगत उपयोग एवं गैर व्यावसायिक उपयोगों या विक्रय का कार्य करती है।
माल को बेचने की कई विधि हो सकती हैं, जैसे- व्यक्तिगत रूप से टेलीफोन पर या फिर बिक्री मशीनों के माध्यम से। उत्पादों को अलग-अलग स्थानों पर बेचा जा सकता है, जैसे- स्टोर में, ग्राहक के घर जाकर या फिर अन्य किसी स्थान पर। कुछ सार्वजनिक स्थान भी हैं, जैसे- रोडवेज की बसों में बॉल प्वाइंट पेन या फिर जादुई दवा या फिर चुटकुलाें की पुस्तक की बिक्री, घर-घर जाकर प्रसाधन का सामान, कपड़े धोने का पाउडर आदि बेचना या फिर किसी छोटे किसान द्वारा सड़क किनारे सब्जी की बिक्री, लेकिन यह सब अंतिम उपभोक्ता को बेची जाती हैं इसलिए यह भी फुटकर व्यापार में सम्मिलित हैं। अतः हम कह सकते हैं कि वस्तुओं का विक्रय कैसे किया जाता है या फिर कहाँ किया जाता है यह कोई अर्थ नहीं रखता। यदि बिक्री सीधी उपभोक्ता को की गई है तो यह फुटकर विक्रय कहलाएगा। एक फुटकर विक्रेता वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण के कई कार्य करता है। वह थोक विक्रेताओं एवं अन्य लोगोें से विभिन्न वस्तुएँ खरीदता है, वस्तुओं का उचित रीति से भंडारण करता है, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में माल बेचता है, व्यवसाय की जोखिमों को उठाता है, वस्तुओं का श्रेणीकरण करता है, बाजार से सूचनाएँ एकत्रित करता है, क्रेताओं को उधार की सुविधा देता है, प्रदर्शन तथा विभिन्न योजनाओं में भाग लेकर या अन्य तरीका अपनाकर वस्तुओं की बिक्री को बढ़ाता है।
फुटकर व्यापारियों की सेवाएँँ
फुटकर व्यापार वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में उत्पादक एवं अंतिम उपभोक्ताओं के बीच की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस प्रक्रिया में वह उपभोक्ताओं, थोक विक्रेताओें एवं विनिर्माताओं को उपयोगी सेवाएँं प्रदान करता है। फुटकर व्यापारियों की कुछ महत्त्वपूर्ण सेवाओं का नीचे वर्णन किया गया हैः
10.4.1 उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं की सेवाएँं
फुटकर व्यापारी उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं को जो मूल्यवान सेवाएँं प्रदान करते हैं, वे निम्न हैंः
(क) वस्तुओं के वितरण में सहायक- एक फुटकर व्यापारी की उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं को सबसे महत्त्वपूर्ण सेवा उनके उत्पादों के वितरण में सहायता करना है। वह अंतिम उपभोक्ताओं को जो बड़े भोगौलिक क्षेत्र में फैले हुए होते हैं, इन उत्पादों को उपलब्ध कराते हैं।
(ख) व्यक्तिगत विक्रय- अधिकांश उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री की प्रक्रिया में कुछ न कुछ व्यक्तिगत प्रयत्न भी सम्मिलित होते हैं। व्यक्तिगत रूप से विक्रय का प्रयत्न कर वह उत्पादक को इस कार्य से मुक्ति दिलाते हैं तथा बिक्री को कार्यान्वित करने में सहायक होते हैं।
(ग) बड़े पैमाने पर परिचालन में सहायक- फुटकर व्यापारियों की सेवाओं के परिणामस्वरूप उत्पादक एवं थोक विक्रेता उपभोक्ताओं को छोटी मात्रा में माल को बेचने की सिरदर्दी से मुक्ति दिलाते हैं। इसके कारण वह बड़े पैमाने पर अपना कार्य कर सकते हैं तथा अन्य क्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
(घ) बाजार संबंधित सूचनाएँ एकत्रित करना- फुटकर विक्रेताओं का उपभोक्ताओं से सीधा एवं निरंतर संपर्क बना रहता है। वह ग्राहकों की रूचि, पसंद एवं रुझान के संबंध में बाजार की जानकारी एकत्रित करते रहते हैं। यह सूचना किसी भी संगठन को विपणन संबंधी निर्णय लेने में बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
(ङ) प्रवर्तन में सहायक- अपने उत्पादों की बिक्री को बढ़ाने के लिए उत्पादक एवं वितरक समय-समय पर विभिन्न प्रवर्तन कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ वह विज्ञापन करते हैं, कूपन, मुफ्त उपहार, बिक्री प्रतियोगिता जैसे लघु अवधि प्रलोभन देते हैं। फुटकर विक्रेता विभिन्न प्रकार से इन विधियों में भाग लेते हैं और इस प्रकार से उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में सहायता प्रदान करते हैं।
व्यापारिक मदें
व्यापार में प्रयोग होने वाली मुख्य मदें निम्न हैं-
(क) सुपुर्दगी पर नगदी : इसका अभिप्राय व्यवहार के उस प्रकार से है जिसके अन्तर्गत माल का भुगतान
सुपुर्दगी के समय किया जाता है।
(ख) जहाज पर मूल्य : इसका अभिप्राय क्रेता व विक्रेता के मध्य होने वाले उस अनुबंध से है जिसमें
माल के वाहन तक सुपुर्दगी देने के सारे व्यय विक्रेता द्वारा वहन किये जाते हैं।
(ग) लागत बीमा व भाड़ा : इसका अभिप्राय व्यापारिक व्यवहारों में प्रयोग होने वाली उस मद से है
जिसके अन्तर्गत वस्तुओं के मूल्य में केवल लागत ही नहीं बल्कि बीमा व भाड़ा व्यय भी शामिल
होते हैं।
(घ) ई. व ओ.ई. : इसका अभिप्राय उस मद से है जिसका प्रयोग प्रपत्रों में यह कहने के लिए किया
जाता है कि जो गलती हुई है और जो चीजें छूट गई हैं, उन्हें भी ध्यान में रखा जायेगा।
10.4.2 उपभोक्ताओं को सेवाएँँ
उपभोक्ताओं की दृष्टि से फुटकर व्यापारियों की कुछ सेवाएँं निम्नलिखित हैं :
(क) उत्पादों की नियमित उपलब्धता- फुटकर व्यापारी की उपभोक्ता को सबसे बड़ी सेवा विभिन्न उत्पादकों के उत्पादों को नियमित रूप से उपलब्ध कराना है। इससे एक तो उपभोक्ता को अपनी रूचि की वस्तु के चयन का अवसर मिलता है, दूसरे वह जब चाहे वस्तु का क्रय कर सकते हैं।
(ख) नये उत्पादों के संबंध में सूचना- फुटकर विक्रेता प्रभावी रूप से वस्तुओें का प्रदर्शन करते हैं एवं बेचने में व्यक्तिगत रूप से प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार से वह ग्राहकों को नये उत्पादों के आगमन एवं उनकी विशिष्टताओं के संबंध में सूचना प्रदान करते हैं। यह वस्तुओं के क्रय का निर्णय लेने की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण तत्व होता है।
(ग) क्रय में सुविधा- फुटकर विक्रेता बड़ी मात्रा में माल का क्रय करते हैं तथा उन्हें ग्राहकों को उनकी आवश्यकतानुसार छोटी मात्रा में बेचते हैं। वह अधिकांश आवासीय क्षेत्रों के समीप होते हैं एवं देर तक दुकान खोले रखते हैं। इससे ग्राहकों के लिए अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदना सुविधाजनक होता है।
(घ) चयन के पर्याप्त अवसर- फुटकर विक्रेता विभिन्न उत्पादकों के विभिन्न उत्पादों का संग्रह करके रखते हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं को चयन के पर्याप्त अवसर मिल जाते हैं।
(ङ) बिक्री के बाद की सेवाएँँ- फुटकर विक्रेता घर पर सुपुर्दगी, अतिरिक्त पुर्जों की आपूर्ति एवं ग्राहकों की ओर ध्यान देना आदि विक्रय के पश्चात् की सेवाएँँ प्रदान करते हैं। ग्राहक दोबारा माल खरीदने के लिए आए इसमें इस कारक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
(च) उधार की सुविधा- फुटकर विक्रेता अपने नियमित ग्राहकों को उधार की सुविधा भी देते हैं। इससे उपभोक्ता अधिक खरीदारी करते हैं तथा उनका जीवन स्तर ऊँचा उठता है।
10.5 माल एवं सेवा कर (जी.एस.टी.)
‘‘एक देश एक कर’’ के मूलमंत्र का अनुसरण करते हुए भारत सरकार ने जुलाई 01, 2017 को माल एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू किया ताकि निर्माताओं, उत्पादकों, निवेशकों और उपभोक्ताओं के हितों के लिए वस्तुओं और सेवाओं का मुक्त परिचलन हो सके। जी.एस.टी. को कराधान तंत्र में क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। कराधान केवल एक राजस्व के स्रोत अथवा विकास के स्रोत के अतिरिक्त शासकीय गतिविधियों को करदाताओं के लिए उत्तरदायी होने में प्रमुख भूमिका भी निभाता है। कुशल रूप से प्रयुक्त कराधान यह स्थापित करता है कि सार्वजनिक कोषों का प्रयोग कुशलतापूर्वक सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति और सतत् विकास के लिए किया जा रहा है।
वस्तु एवं सेवा कर एक गंतव्य आधारित एकल कर है जो निर्माणकर्ताओं से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति पर लागू होता है। जी.एस.टी. के लागू होने से केन्द्र एवं राज्यों द्वारा पारित बहु-अप्रत्यक्ष कर निरस्त कर दिए गए हैं जिसके परिणामस्वरूप संपूर्ण देश एक संयुक्त बाजार में परिवर्तित हो सका है। जी.एस.टी. के लागू होने से व्यापार करने की सुगमता को बढ़ावा मिलेगा जिससे अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र बृहत हो सकेंगे और राजस्व में वद्धि होगी। जी.एस.टी. से 17 अप्रत्यक्ष करों (8 केंद्रीय+7 राज्य स्तर पर), 23 उपकरों का प्रतिस्थापन किया गया है। जी.एस.टी. में केंद्रीय जी.एस.टी. और राज्य जी.एस.टी. (CGST+SGST) का समावेश है। जी.एस.टी. को मूल्य संकलन प्रत्येक स्तर पर प्रभार के रूप में लिया जाएगा और कर जमा प्रक्रिया के माध्यम से मूल्य पंक्ति की प्रत्येक पूर्ति स्तर पर निवेश उगाही को विक्रेता द्वारा पृथक रूप से रखा जाएगा।
पूर्ति पंक्ति में अंतिम विक्रेता द्वारा अंकित जी.एस.टी. का भार उपभोक्ता पर लागू होगा। इस कर-प्रक्रिया के कारण ही जी.एस.टी. को गंतव्य आधारित उपभोग कर कहा गया है। मूल्य पंक्ति के प्रत्येक स्तर पर निवेश जमा के प्रावधान के कर दर से कर स्थिति के प्रपाती प्रभाव पर रोक लगी है जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में गिरावट आएगी और यह उपभोक्ताओं के लिए हितकर साबित होगा।
जी.एस.टी. की विशेषताएँ1. जी.एस.टी. जम्मू-कश्मीर सहित भारत के सभी राज्यों में लागू है। 2. जी.एस.टी. वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति पर लागू है, न कि वस्तुओं के निर्माण, बिक्री अथवा सेवाओं पर प्रयुक्त प्रावधानों पर। 3. उद्गम आधारित कराधान सिद्धांत की अपेक्षा जी.एस.टी. गंतव्य आधारित खपत का सिद्धांत है। 4. वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात अंतर्राज्य आपूर्ति माना जाएगा तथा प्रति लोक प्रभार के आधार पर IGST के अंतर्गत होगा। 5. जी.एस.टी. परिषद् के अधीन CGST, SGST और IGST दरों की उगाही की गणना केंद्र और राज्यों के मध्य आपसी सहमति पर की गई है। 6. सभी प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं पर जी.एस.टी. चार कर दरों पर लगाया गया है। ये दरें 5%, 12%, 18% और 28% हैं। 7. विशेष आर्थिक क्षेत्रों में निर्यात एवं आपूर्ति को 0% कर-दर पर रखा गया है। 8. करदाता के लिए कर भुगतान हेतु विभिन्न विधियों का प्रावधान किया गया है। ये विधियाँ हैं- डेबिट व क्रेडिट कार्ड का प्रयोग, इंटरनेट बैंकिंग, NEFT और RTGS. |
जी.एस.टी. से संबंधित तथ्य1. जी.एस.टी. में बहु-करों का समावेश है जिसके कारण पूरे देश में केवल एक कर लागू है और सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में समरूपता लाई गई है। यह भी सही है कि कुछ किस्म की वस्तुएँ एवं सेवाएँ सस्ती हुई हैं और अन्य किस्म की वस्तुएँ एवं सेवाएँ महँगी हुई हैं। 2. जी.एस.टी. लागू होने से सुख-साधन की वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें बढ़ी हैं, वहीं जन खपत की वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में गिरावट आई है। 3. जी.एस.टी स्रोत पर कराधान नहीं है। यह गंतव्य कर अर्थात् उपभोग कर है। मान लीजिए, एक वस्तु तमिलनाडु में निर्मित होती है और दिल्ली के व्यक्ति को बेची जाती है तो कर का प्रभार दिल्ली के उपभोक्ता पर आएगा और केंद्र व राज्य के मध्य कर का भुगतान होगा। 4. भारतीय जी.एस.टी. में चालान के मिलान की प्रक्रिया है। क्रय किए गए माल एवं उपभोग की गई सेवाओं पर निवेश कर जमा उसी स्थिति में ही उपलब्ध होगा, जब विक्रेता कर युक्त वस्तुएँ एवं सेवाएँ ग्राहकों को बेचेगा। वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क एक प्रकार की स्व-नियंत्रित प्रक्रिया है जिससे न केवल कर की चोरी अथवा छल-कपट को खत्म किया जा सकता है, अपितु इसके माध्यम से औपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक व्यावसायिक क्रियाओं की संभावनाएँ भी हैं। 5. विरोधी लाभकारी मापदंड, जी.एस.टी. की प्रमुख विशेषता है। यह मापदंड व्यापारियों पर अधिक लाभ पर वस्तुओं एवं सेवाओं को बेचने पर रोक लगाता है। चूँंकि निवेश कर जमा जी.एस.टी. सहित कीमतों को कम करने की ओर अग्रसर है, विरोधी लाभकारी प्राधिकार को इस उद्देश्य के लिए स्थापित किया गया है कि जी.एस.टी. से उत्पन्न लाभों का प्रभाव सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँच सके। इस संस्था से उन व्यापारियों की गतिविधियों पर भी रोक लग सकेगी जो जी.एस.टी. के नाम पर वस्तु एवं सेवाएँ बढ़ी दरों पर बेच रहे हैं। |
जी.एस.टी. परिषद् का संघटन• अध्यक्ष - केन्द्रीय वित्त मंत्री • उपाध्यक्ष-राज्य सरकार के मंत्रियों से चयनित • सदस्य - राज्य मंत्री (वित्त) और प्रत्येक राज्य के वित्त/कराधान मंत्री • कोरम - कुल सदस्यों का 50% : उपस्थिति पर गणपूर्ति होगी। • राज्यों को 2/3 और केन्द्र को 1/3 महत्व दिया जाएगा। • 75% बहुमत से निर्णय लिए जाएँगे। • परिषद् जी.एस.टी. से संबंधित सभी नियमों, दरों आदि की सिफारिशें कर सकता है। |
जी.एस.टी. के लाभ : नागरिकों का सशक्तिकरण
• संपूर्ण कर-भार में कमी।
• कोई गुप्त कर नहीं।
• वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए देशीय एकरूप बाजार।
• उच्च प्रयोज्य आय।
• ग्राहकों के लिए बृहत् चुनाव।
• आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि।
• रोजगार अवसरों में वृद्धि।
10.6 फुटकर व्यापार के प्रकार
भारत में कई प्रकार के फुटकर विक्रेता होते हैं। इनको भली-भाँति समझने के लिए कुछ वर्गों में विभक्त करना उपयुक्त रहेगा। विशेषज्ञाें ने फुटकर व्यापारियों को विभिन्न प्रकारों में बाँटने के लिए विभिन्न वर्गीकरणों का सहारा लिया है। उदाहरणार्थ व्यावसायिक आकार के आधार पर यह बड़े, मध्यम एवं छोटे फुटकर व्यापारी हो सकते हैं। स्वामित्व के अनुसार, इनको एकांकी व्यापारी, साझेदारी फर्म, सहकारी स्टोर एवं कंपनी में बाँटा जा सकता है। इसी प्रकार से बिक्री की पद्धतियों के आधार पर ये विशिष्ट दुकानें सुपर बाजार एवं विभागीय भंडारों में वर्गीकृत की जा सकती हैं। वर्गीकरण का एक और आधार है कि क्या उनके लिए व्यापार का कोई निश्चित स्थान है? इस आधार पर फुटकर विक्रेता दो प्रकार के हो सकते हैं-
(क) भ्रमणशील फुटकर विक्रेता, एवं
(ख) स्थायी दुकानदार
इन दोनों प्रकारों के फुटकर विक्रेताओं का आगे के अनुभागों में वर्णन किया गया है–
10.6.1 भ्रमणशील फुटकर विक्रेता
ये वे फुटकर व्यापारी होते हैं जो किसी स्थायी जगह से अपना व्यापार नहीं करते। यह अपने सामान के साथ ग्राहकों की तलाश में गली-गली एवं एक स्थान से दूसरे स्थानों पर घूमते रहते हैं।
विशेषताएँ
(क) ये छोटे व्यापारी होते हैं जो सीमित साधनों से कार्य करते हैं।
(ख) ये सामान्यतः प्रतिदिन के उपयोग में आने वाली उपभोक्ता वस्तुओं, जैसे- प्रसाधन सामग्री, फल, सब्ज़ियाँ आदि का व्यापार करते हैं।
(ग) एेसे व्यापारी ग्राहकों को उनके घर पर वस्तुएँ उपलब्ध कराने की सुविधा पर अधिक ध्यान देते हैं।
(घ) इनका कोई व्यापारिक नियत स्थान नहीं होता है इसलिए ये माल का स्टॉक घर में या फिर किसी अन्य स्थान पर रखते हैं।
भारत में साधारणतः भ्रमणशील फुटकर विक्रेता निम्न होते हैं–
(क) फेरी वाले- फेरी वाले किसी भी बाज़ार में सबसे पुराने फुटकर विक्रेता होते हैं जिनकी आज के समय में उतनी ही उपयोगिता है, जितनी आज से हजारों वर्ष पूर्व थी। ये छोटे उत्पादक अथवा मामूली व्यापारी होते हैं जो वस्तुओं को साईकल, हाथ-ठेली, साईकल रिक्शा या अपने सिर पर रखकर तथा जगह-जगह घूमकर ग्राहक के दरवाज़े पर जाकर वस्तु का विक्रय करते हैं। यह साधरणतया गैर मानकीय एवं कम मूल्य की वस्तुएँ, जैसे–खिलौने, फल-सब्ज़ियाँ, सिले-सिलाए कपड़े, गलीचे, खाने की वस्तुएँ एवं आइसक्रीम आदि बेचते हैं। यह आवासीय क्षेत्रों में, गलियों में, प्रदर्शनियों एवं मॉल्स के बाहर तथा अर्धअवकाश में विद्यालयों के बाहर भी देखे जा सकते हैं।
इस प्रकार के फुटकर व्यापार का मुख्य लाभ उपभोक्ताओं के लिए सुविधाजनक होना है। लेकिन इनसे लेन-देन करते समय चौकन्ना रहने की आवश्यकता है क्योंकि इनकी वस्तुओं की गुणवत्ता एवं मूल्य विश्वास के योग्य नहीं होता है।
(ख) सावधिक बाजार व्यापारी- ये वे छोटे फुटकर व्यापारी होते हैं जो विभिन्न स्थानों पर निश्चित दिन अथवा तिथि को दुकान लगाते हैं, जैसे- प्रति शनिवार या फिर एक शनिवार छोड़कर दूसरे शनिवार को। यह एक ही प्रकार का माल बेचते हैं, जैसे- सिले-सिलाए कपड़े या फिर तैयार वस्त्र, खिलौने, क्रॅाकरी का सामान या फिर जनरल मर्चेंट का व्यापार करते हैं। यह मुख्यतः कम आय वाले ग्राहकों के लिए माल रखते हैं तथा कम मूल्य की प्रतिदिन उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेचते हैं।
(ग) पटरी विक्रेता- ये एेसे छोटे विक्रेता होते हैं जो एेसे स्थानों पर पाए जाते हैं जहाँ लोगों का भारी आवागमन रहता है, जैसे- रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड। यह साधारण रूप में उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेचते हैं जैसे कि स्टेशनरी का सामान, खाने-पीने की चीजें, तैयार वस्त्र, समाचार पत्र एवं मैगजीन। यह सावधिक बाजार विक्रेताओं से इस रूप में भिन्न होते हैं कि वे अपने बिक्री के स्थान को आसानी से नहीं बदलते हैं।
(घ) सस्ते दर की दुकान- ये वो छोटे फुटकर विक्रेता होते हैं जिनकी किसी व्यावसायिक क्षेत्र में स्वतंत्र अस्थायी दुकान होती है। ये अपने व्यापार को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वहाँ की संभावनाओं को देखते हुए बदलते रहते हैं लेकिन ये फेरी वाले या बाजार विक्रेताओं के समान शीघ्रता से नहीं बदलते। ये उपभोक्ता वस्तुओं में व्यापार करते हैं एवं वस्तुओं को उस स्थान पर उपलब्ध कराते हैं जहाँ उसकी उपभोक्ता को आवश्यकता है।
10.6.2 स्थायी दुकानदार
बाजार का यह सबसे सामान्य फुटकर व्यापार है, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ये वो फुटकर विक्रेता हैं। जिनके विक्रय के लिए स्थायी रूप से संस्थान हैं। ये अपने ग्राहकों के लिए जगह-जगह नहीं घूमते। इन व्यापारियों की कुछ और विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
(i) भ्रमणशील व्यापारियों की तुलना में इनके पास अधिक संसाधन होते हैं तथा ये अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर कार्य करते हैं। स्थायी दुकानदार आकार के आधार पर अनेकों प्रकार के होते हैं। ये बहुत छोटे आकार से लेकर बहुत बड़े आकार के भी होते हैं।
(ii) ये विभिन्न वस्तुओं का व्यापार करते हैं जो उपभोग योग्य टिकाऊ भी हो सकती हैं एवं गैर टिकाऊ भी।
(iii) ग्राहकों में इनकी अधिक साख होती है। ये ग्राहकों की वस्तुओं को घर पहुँचाना, गारंटी प्रदान करना, मरम्मत, उधार बिक्री, अतिरिक्त पुर्जे उपलब्ध कराना जैसी अनेकों सेवाएँ प्रदान करते हैं।
परिचालन आकार के आधार पर स्थायी दुकानदार मुख्यतः दो प्रकार के हो सकते हैंः
(i) छोटे दुकानदार, एवं
(ii) बड़े फुटकर विक्रेता।
इन दो वर्गों के फुटकर विक्रेताओं के विभिन्न प्रकार का विस्तृत वर्णन नीचे किया गया है-
छोटे स्थायी फुटकर विक्रेता
(क) जनरल स्टोर- ये सामान्यत स्थानीय बाजार एवं आवासीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है, ये आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले उपभोक्ताओं की प्रतिदिन आवश्यकता वाली वस्तुओं की बिक्री करते हैं। ये स्टोर देर तक सुविधाजनक समय पर खुले रहते हैं तथा अपने नियमित ग्राहकों को उधार की सुविधा भी देते हैं। इन स्टोर्स का सबसे बड़ा लाभ इनसे ग्राहकों को सुविधा का होना है। उनके लिए अपने प्रतिदिन के प्रयोग में आने वाली वस्तुओं, जैसे- परचून की वस्तुएँ, पेय पदार्थ, प्रसाधन का सामान, स्टेशनरी एवं मिठाइयाँ खरीदना सुविधाजनक रहता है और चूँकि अधिकांश ग्राहक उसी क्षेत्र के रहने वाले होते हैं इसलिए उनकी सफलता में सबसे बड़ा योगदान दुकानदार की छवि तथा ग्राहकों के साथ उनके तालमेल का होता है।
(ख) विशिष्टीकृत भंडार- इस प्रकार के फुटकर स्टोर पिछले कुछ समय से विशेष रूप से लोकप्रिय हो रहे हैं। विशेषतः शहरी क्षेत्रों में ये विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का विक्रय न कर एक ही प्रकार वस्तुओं की बिक्री करते हैं तथा यह विशेषज्ञ होते हैं। उदाहरणार्थ केवल बच्चों के सिले-सिलाए वस्त्र बेचने वाली दुकानें या फिर पुरुषों के वस्त्र, महिलाओं के जूते, खिलौने एवं उपहार की वस्तुएँ, स्कूल यूनीफॉर्म, कालेज की पुस्तकें या फिर उपभोक्ता की इलेक्ट्रोनिक वस्तुएँ आदि की दुकानें। ये बाजार में पाई जाने वाली इस प्रकार की कुछ दुकानें हैं।
विशेष वस्तुओं की दुकानें साधारणतया केंद्रीय स्थल पर स्थित होती हैं, जहाँ पर बड़ी संख्या में ग्राहक आते हैं तथा ये ग्राहकों को वस्तुओं के चयन का भारी अवसर प्रदान करती हैं।
(ग) गली में स्टॉल- ये छोटे विक्रेता गली के मुहाने पर या भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में होते हैं। ये घुमक्कड़ जनता को आकर्षित करते हैं तथा हौजरी की वस्तुएँ, खिलौने, सिगरेट, पेय पदार्थ आदि सस्ती वस्तुएँ बेचते हैं। ये स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता अथवा थोक विक्रेता से माल खरीदते हैं क्योंकि इनकी पहुँच बहुत ही सीमित क्षेत्र तक होती है इसलिए ये बहुत ही छोटे पैमाने पर व्यापार करते हैं। ग्राहक को उसकी आवश्यकता की वस्तु सुगमतापूर्वक सुलभ कराना ही इनका मुख्य कार्य है।
(घ) पुरानी वस्तुओं की दुकानें- ये दुकानें पुरानी वस्तुओं अर्थात् पहले ही उपयोग की गई वस्तुओं की बिक्री करती हैं, जैसे कि पुस्तकें, कपड़े, मोटर कारें, फर्नीचर एवं अन्य घरेलू सामान। सामान्य आय वाले लोग ही इन्हें खरीदते हैं। यहाँ वस्तुएँ कम मूल्य पर प्राप्त होती हैं। ये दुकानदार एेतिहासिक महत्त्व की दुर्लभ वस्तुएँ एवं पुरानी वस्तुएँ भी रखते हैं तथा उन लोगों को भारी मूल्य पर बेचते हैं जिनको इन पुरानी वस्तुओं में रूचि होती है।
पुरानी वस्तुओं का विक्रय करने वाली दुकानें गली के मुहाने पर या फिर अधिक चहल-पहल वाली गली में होती हैं। ये छोटे स्टाल होते हैं जिसमें एक मेज अथवा फट्टे पर बिक्री की जाने वाली वस्तुएँ सजाई होती हैं। कुछ का अच्छा संस्थागत ढाँचा भी होता है, जैसे- फर्नीचर विक्रेता अथवा पुरानी कार, स्कूटर अथवा मोटरसाइकिल के विक्रेता।
(ङ) एक वस्तु के भंडार- यह वह भंडार होते हैं जो एक ही श्रेणी की वस्तुओं का विक्रय करते हैं जैसे कि पहनने के तैयार वस्त्र, घड़ियाँ, जूते, कारें, टायर, कंप्यूटर, पुस्तकें, स्टेशनरी आदि। यह भंडार एक ही श्रेणी की अनेकों प्रकार की वस्तुएँ रखते हैं तथा केंद्रीय स्थल पर स्थित होते हैं। इनमें से अधिकांश स्वतंत्र फुटकर बिक्री संगठन होते हैं जो एकल स्वामित्व अथवा साझेदारी फर्म के रूप में चलाए जाते हैं।
स्थायी दुकानें– बड़े पैमाने के भंडार गृह
1. विभागीय भंडार
विभागीय भंडार एक बड़ी इकाई होती है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों की बिक्री करती हैं, जिन्हें भली-भांति निश्चित विभागों में बाँटा गया होता है तथा जिनका उद्देश्य ग्राहक की लगभग प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति एक ही छत के नीचे करना है। अमेरिका में किसी विभागीय भंडार के लिए सुई से लेकर हवाई जहाज तक बेचना कोई असामान्य बात नहीं है। यह एक ही छत के नीचे सभी प्रकार की वस्तुओं का क्रय है। सही अर्थों में विभागीय भंडार की भावना पिन से लेकर विशालकाय वस्तु का एक ही स्थान पर उपलब्ध कराना है। भारत में सही अर्थ वाले विभागीय भंडार अभी फुटकर व्यापार में बड़े पैमाने पर नहीं आये हैं। हाँ, भारत में इस श्रेणी में कुछ भंडार हैं, जैसे- ‘अकबरली’ तथा ‘शीयाकरी’ भंडार मुम्बई में तथा ‘स्पैंसर्स’ चेन्नई में।
विभागीय भंडार की विशेषताएँ :
(क) आधुनिक विभागीय भंडार जलपान गृह, यात्रा एवं सूचना ब्यूरो, टेलीफोन बूथ, विश्राम गृह आदि सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करते हैं। ये उच्च श्रेणी के ग्राहकों को अधिकतम सेवाएँँं प्रदान करने का प्रयत्न करते हैं जिनके लिए मूल्य द्वितीय महत्त्व की बात होती है।
(ख) ये भंडार साधारणतया शहर के केंद्र में स्थित होते हैं जहाँ बड़ी संख्या में ग्राहक आते हैं।
(ग) ये भंडार बहुत बड़े होते हैं इसलिए ये संयुक्त पूँजी कंपनी के रूप में होते हैं तथा इनका प्रबंधन निदेशक मंडल करता है जिनकी सहायता जनरल मैनेजर एवं अन्य विभागीय प्रबंधक करते हैं।
(घ) विभागीय भंडार फुटकर विक्रेता भी होते हैं एवं भंडार गृृह भी ये माल सीधे उत्पादक से खरीदते हैं तथा इनके अपने अलग भंडार गृह होते हैं। इस प्रकार से ये उत्पादक एवं ग्राहकों के बीच के अनावश्यक मध्यस्थों को समाप्त करते हैं।
(ङ) इनमें माल के क्रय की केंद्रीय व्यवस्था होती है। एक विभागीय भंडार में इसका क्रय विभाग ही पूरे माल का क्रय करता है जबकि विक्रय विभिन्न विभागों के माध्यम से किया जाता है।
लाभ
विभागीय भंडारों के माध्यम से फुटकर व्यापार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं :
(क) बड़ी संख्या में ग्राहकों को आकर्षित करना- ये भंडार सामान्यतः केंद्रीय स्थलों पर स्थित होते हैं इसलिए दिन में अधिकांश समय में बड़ी संख्या में ग्राहक आते रहते हैं।
(ख) क्रय करना सुगम- विभागीय भंडार एक ही छत के नीचे बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की बिक्री की व्यवस्था करते हैं। इससे ग्राहकों को एक ही स्थान पर अपनी आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुएँ खरीदने की सुविधा मिल जाती है। परिणामस्वरूप अपनी खरीददारी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागना नहीं पड़ता।
(ग) आकर्षक सेवाएँँ- विभागीय भंडार का उद्देश्य ग्राहक को अधिकतम सेवाएँँ प्रदान करना है। इसकी कुछ सेवाएँँ इस प्रकार हैः वस्तुओं की घर पर सुपुर्दगी, टेलीफोन पर प्राप्त आदेश का क्रियान्वयन, विश्राम गृहों की व्यवस्था, टेलीफोन बूथ, जलपानगृह, नाई की दुकान आदि।
(घ) बड़े पैमाने पर परिचालन के लाभ- विभागीय भंडार बड़े स्तर पर संगठित किये जाते हैं इसलिए इन्हें बड़े पैमाने पर परिचालन के लाभ मिलते हैं, विशेष रूप से वस्तुओं के क्रय के संबंध में।
(ङ) विक्रय में वृद्धि- विभागीय भंडार काफी धन विज्ञापन एवं अन्य संवर्द्धन क्रियाओं पर व्यय करने की स्थिति में होते हैं। उनकी बिक्री में वृद्धि होती है।
इस प्रकार के फुटकर व्यापार की कुछ अपनी सीमाएं भी हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है :
सीमाएँ
(क) व्यक्तिगत ध्यान का अभाव- बड़े पैमाने पर क्रियाओं के कारण विभागीय भंडार में ग्राहकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना कठिन हो जाता है।
(ख) उच्च परिचालन लागत- विभागीय भंडार अतिरिक्त सेवाएँँं प्रदान करने पर अधिक जोर देते हैं इसलिए इनकी परिचालन लागत भी अधिक होती है। इन खर्चाें के कारण वस्तुओं का मूल्य भी अधिक होता है। यह मूल्य कम आय-वर्ग के लोगों को आकर्षित नहीं करता है।
(ग) हानि की संभावना अधिक- परिचालन की ऊँची लागत एवं बड़े पैमाने पर कार्य करने के कारण एक विभागीय भंडार में हानि होने की संभावना अधिक होती है। उदाहरण के लिए, माना कि ग्राहकों की रुचि/फैशन में बड़ा परिवर्तन आ गया है तो यह आवश्यक हो जाता है कि स्टॉक में एकत्रित भारी मात्रा में फैशन से बाहर हो गई वस्तुओं की बिक्री घटी दरों पर की जाए।
(घ) असुविधाजनक स्थिति- विभागीय भंडार साधारणतः शहर के केंद्र में स्थित होते हैं इसलिए यदि किसी वस्तु की तुरंत आवश्यकता हो तो यहां से खरीदना आसान नहीं होता।
उपरोक्त सीमाओं के रहते हुए भी विभागीय भंडार विश्व के पश्चिमी देशों में एक वर्ग विशेष को लाभ पहुँचाने के कारण बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
2. शृंखला भंडार अथवा बहुसंख्यक दुकानें- शृंखला भंडार अथवा बहुसंख्यक दुकानें फुटकर दुकानों का फैला हुआ जाल है जिनका स्वामित्व एवं परिचालन उत्पादनकर्ता या मध्यस्थ करते हैं। इस व्यवस्था में एक जैसी दिखाई देने वाली कई दुकानें देश के विभिन्न भागों में विभिन्न स्थानों पर खोली जाती हैं। इन दुकानों पर मानकीय एवं ब्रांड की वस्तुएँ जिनका विक्रय आवर्त तीव्र होता है, बेची जाती हैं। इन दुकानों को एक ही संगठन चलाता है तथा इनकी व्यापार की व्यूह रचना एक-सी होती है तथा एक तरह की वस्तुओं का प्रदर्शन होता है। इस प्रकार की दुकानों की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ नीचे दी गई हैं-
(क) ये दुकानें बड़ी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में स्थित होती हैं जहाँ काफी संख्या में ग्राहक मिल जाते हैं। इनकी भावना ग्राहकों को उनके आवास अथवा कार्यस्थल के समीप सेवाएँँ प्रदान करना है न कि उनको एक केंद्रित स्थान पर आमंत्रित करना।
(ख) सभी फुटकर इकाइयों के लिए उत्पादन अथवा क्रय करना मुख्यालय में केंद्रित होता है, जहाँ से इन्हें विभिन्न दुकानों को उनकी आवश्यकता के अनुसार भेज दिया जाता है। इससे इन भंडारों के परिचालन व्यय में बचत हो जाती है।
(ग) प्रत्येक दुकान का प्रबंधन एक शाखा प्रबंधक करता है जो दिन-प्रतिदिन के कार्यों की देख-रेख करता है। वह बिक्री, नकद जमा एवं माल की आवश्यकता के संबंध में प्रतिदिन की सूचना मुख्यालय में भेजता है।
(घ) मुख्यालय ही सभी शाखाओं का नियंत्रण करता है तथा नीति निर्धारण कर उनका क्रियान्वयन कराता है।
(ङ) इन दुकानों पर वस्तुओं का मूल्य एक ही होता है तथा सभी विक्रय नकद होता है। माल के विक्रय से प्राप्त राशि को प्रतिदिन स्थानीय बैंक में मुख्यालय को प्रेषित कर दिया जाता है।
(च) प्रधान कार्यालय निरीक्षकों की नियुक्ति करता है जो दुकानों पर ग्राहकों को प्रदान की जा रही सेवाओं की गुणवत्ता, प्रधान कार्यालय की नीतियों का सम्मान आदि का निरीक्षण करते हैं।
(छ) शृृंखला भंडार एेसी वस्तुओं के व्यापार का प्रभावी ढंग से संचालन करते हैं जिनकी बिक्री बड़ी मात्रा में एवं पूरे वर्ष एक समान रहती है। भारत में बाटा के जूताें की दुकान इसका एक लाक्षणिक उदाहरण है। इसी प्रकार की फुटकर बिक्री की दुकानें अन्य उत्पादों के लिए भी खोली जा रही हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं- डी.सी.एम. एवं रेमंड्स के शोरूम तथा नरूला, मैकडोनल्ड एवं पीजाकिंग की फास्ट फूड शृंखलाएँ।
लाभ
बहुसंख्यक दुकानों से समाज के उपभोक्ताओं को अनेकों लाभ हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है।
(क) बड़े पैमाने की मितव्ययता- केंद्रीयकृत क्रय/उत्पादन के कारण बहुसंख्यक दुकानों के संगठन को बड़े पैमाने की मितव्ययता का लाभ मिलता है।
(ख) मध्यस्थ की समाप्ति- बहुसंख्यक दुकानें शोधगृह को कोई माल बेचती हैं इसलिए वस्तु एवं सेवाओं के विक्रय में अनावश्यक मध्यस्थों को समाप्त कर देती हैं।
(ग) कोई अशोध्य ऋण नहीं- इन दुकानों पर क्योंकि माल का विक्रय नकद होता है इसलिए अशोध्य ऋणों के रूप में कोई हानि नहीं होती।
(घ) वस्तुओं का हस्तांतरण- यदि वस्तुओं की किसी एक स्थान पर मांग नहीं है तो उन्हें उस क्षेत्र में भेज दिया जाता है जहाँ उनकी मांग है। इसके कारण इन दुकानों पर निष्क्रिय स्टॉक की संभावना कम हो जाती है।
(ङ) जोखिम का बिखराव- एक दुकान की हानि की पूर्ति दूसरी दुकानों के लाभ से हो जाती है जिससे संगठन की कुल जोखिम कम हो जाती है।
(च) निम्न लागत- क्रय का केंद्रीयकरण, मध्यस्थों की समाप्ति, केंद्रीय बिक्री संवर्धन एवं अधिक बिक्री के कारण बहुसंख्यक दुकानों का व्यापार कम लागत पर होता है।
(छ) लोचपूर्णता- इस पद्धति में यदि कोई दुकान लाभ नहीं कमा रही है तो प्रबंधक इसे बंद कर सकते हैं अथवा इसे किसी दूसरे स्थान पर हस्तांतरित कर सकते हैं। इसका पूरे संगठन की लाभप्रदता पर कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
हानियाँ
(क) वस्तुओं का चयन सीमित- बहुसंख्यक दुकानें सीमित उत्पाद की किस्मों में व्यापार करती है जिनके विपणनकर्ता स्वयं ही उत्पादन करते हैं। वे अन्य उत्पादकों का माल नहीं बेचते। इस प्रकार से उपभोक्ताओं के सम्मुख चयन के अवसर सीमित होते हैं।
(ख) प्रेरणा का अभाव- बहुसंख्यक दुकानों का प्रबंध करने वाले कर्मचारियों को प्रधान कार्यालय से प्राप्त आदेशों का पालन करना होता है। इससे वे सभी मामलों में प्रधान कार्यालय के दिशा निर्देशों के आदी हो जाते हैं। इससे उनकी पहल क्षमता समाप्त हो जाती है तथा वह अपनी सृजनात्मक प्रवीणता का ग्राहकों की संतुष्टि के लिए उपयोग नहीं कर सकते।
(ग) व्यक्तिगत सेवा का अभाव- कर्मचारियों के कारण व प्रेरणा के अभाव में उनमें उदासीनता आ जाती है तथा व्यक्तिगत सेवा का अभाव हो जाता है।
(घ) माँग में परिवर्तन कठिन- जिन वस्तुओं की बहुसंख्यक दुकानें व्यापार करती हैं यदि उनकी मांगों में तेजी से परिवर्तन आ जाता है तो संगठन को भारी हानि उठानी पड़ सकती है क्योंकि केंद्रीय भंडार में बड़ी मात्रा में बिना बिका माल बेचा जाता है।
विभागीय भंडार एवं बहुसंख्यक दुकानों में अंतर :
ये दोनों यद्यपि बड़े पैमाने के संगठन हैं, तथापि इनमें कई अंतर हैं जो नीचे दिये गए हैं-
(क) स्थिति- विभागीय भंडार किसी केंद्रीय स्थान पर स्थित होते हैं जहाँ काफी बड़ी संख्या में ग्राहक आ सकते हैं, जबकि बहुसंख्यक दुकानें अलग-अलग स्थानों पर स्थित होती हैं जहाँ बड़ी संख्या में ग्राहक पहुँचते हैं। इस प्रकार से इनके लिए किसी केंद्रीय स्थल की आवश्यकता नहीं है।
(ख) उत्पादों की श्रेणी- विभागीय भंडारों का उद्देश्य एक ही छत के नीचे ग्राहकों की सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करना है। यह विभिन्न प्रकार के अलग-अलग उत्पादों का विक्रय करते हैं जबकि बहुसंख्यक दुकानों का उद्देश्य किसी वस्तु की विभिन्न किस्मों की (ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु) पूर्ति करना है।
(ग) प्रदत्त सेवाएँँ- विभागीय भंडार अपने ग्राहकों को अधिकतम सेवाएँँ प्रदान करने पर जोर देते हैं। इनमेें कुछ हैं- डाक घर, जलपान गृह आदि। इसके विपरीत बहुसंख्यक दुकानें सीमित सेवाएँँ ही प्रदान करती हैं, जैसे- वस्तुओं में यदि किसी प्रकार की कमी है तो उसकी गारंटी एवं मरम्मत।
(घ) कीमतें/मूल्य- बहुसंख्यक दुकानें निर्धारित मूल्यों पर माल बेचती हैं तथा उनकी सभी दुकानों पर एक ही मूल्य रहता है। विभागीय भंडारों में सभी विभागों में मूल्य नीति समान नहीं होती। कई बार माल की निकासी के लिए कुछ वस्तुओं एवं किस्मों पर छूट दी जाती है।
(ङ) ग्राहकों का वर्ग- विभागीय भंडार अधिकांश रूप से उच्च आय वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं जो सेवाएँँ चाहते हैं तथा मूल्य की परवाह नहीं करते। दूसरी ओर बहुसंख्यक दुकानें ग्राहकों के विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं जिनमें कम आय वर्ग भी है जो कम कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तुओं में रुचि रखते हैं।
(च) उधार की सुविधा- बहुसंख्यक दुकानों में सभी बिक्री पूर्णतः नकद होती है। इसके विपरीत विभागीय भंडार अपने कुछ नियमित ग्राहकों को उधार की सुविधा भी देते हैं।
(छ) लोचपूर्ण- विभागीय भंडार बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का व्यापार करते हैं तथा विक्रय उत्पादों की विभिन्न श्रेणियों के कारण वस्तुओं में लचीलापन पाया जाता है। शृंखला भंडारों में लोचपूर्णता की संभावना नहीं है क्योंकि यह सीमित श्रेणी की वस्तुओं का व्यापार करते हैं।
डाक आदेश गृह
ये वो फुटकर विक्रेता होते हैं जो डाक द्वारा वस्तुओं का विक्रय करते हैं। इस प्रकार के व्यापार में विक्रेता एवं क्रेता में कोई प्रत्यक्ष व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता। आदेश प्राप्त करने के लिए यह संभावित ग्राहकों से समाचार पत्र अथवा पत्रिकाओं में विज्ञापन, परिपत्र अनुसूची, नमूने एवं बिल एवं मूल्य सूची जो उन्हें डाक से भेजे जाते हैं के द्वारा संपर्क बनाते हैं। विज्ञापन में वस्तुओं के संबंध में सभी आवश्यक सूचनाएँ, जैसे- मूल्य, प्रकृति सुपुर्दगी की शर्तें, भुगतान की शर्तें आदि का वर्णन किया जाता है। आदेश प्राप्ति के पश्चात् वस्तुओं की ग्राहक द्वारा जिन बातों की जानकारी मांगी जाती है उसके अनुसार जाँच की जाती है तथा उनका डाक के माध्यम से पालन किया जाता है।
जहाँ तक भुगतान का संबंध है, कई विकल्प हैं। प्रथम, ग्राहकों से पूरा भुगतान अग्रिम मांगा जा सकता है। द्वितीय, वस्तुओं को मूल्य देय डाक द्वारा भेजा जा सकता है। इस व्यवस्था में वस्तुओं को डाक से भेजा जाता है तथा ग्राहकों को उनकी सुपुर्दगी तभी की जाती है जबकि वह उनका पूरा भुगतान कर देता है। तीसरे, वस्तुएँ बैंक के माध्यम से भेजी जा सकती हैं तथा उन्हें वस्तुओं को ग्राहकों को सुपुर्दगी का निर्देश दिया जाता है। इस व्यवस्था में अशोध्य ऋणों की जोखिम नहीं होती क्योंकि क्रेता को माल की सुपुर्दगी उसका पूरा भुगतान करने पर ही की जाती है लेकिन यहाँ ग्राहकों को यह विश्वास दिलाना होता है कि माल उनके द्वारा-निर्दिष्ट वर्णन के अनुसार ही भेजा गया है।
इस प्रकार का व्यापार सभी प्रकार के उत्पादों के लिए उपयुक्त नहीं होता। उदाहरण के लिए जो वस्तुएँ शीघ्र नष्ट होने वाली हो अथवा वजन में भारी हैं तथा जिन्हें सरलता से उठाना और रखना संभव नही है, उनका डाक द्वारा व्यापार केवल वही वस्तुएँ- (क) जिनका श्रेणीकरण एवं मानकीकरण हो सकता है, (ख) जिन्हें कम लागत पर ले जाया जा सकता है, (ग) जिनकी बाजार में मांग है, (घ) जो पूरे वर्ष बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं, (ङ) जिनमें बाजार में न्यूनतम प्रतियोगिता है, (छ) जिनका चित्र आदि के द्वारा वर्णन किया जा सकता है इत्यादि। इस प्रकार के व्यापार के लिए उपयुक्त है। इस संबंध में एक और बात ध्यान देने योग्य है कि डाक द्वारा व्यापार तभी सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है कि जबकि शिक्षा का पर्याप्त प्रसार हो क्योंकि पढ़े-लिखे लोगों तक ही विज्ञापन एवं अन्य प्रकार के लिखित संप्रेषण के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
लाभ
(क) सीमित पूँजी की आवश्यकता- डाक व्यापार में भवन तथा अन्य आधारगत ढाँचे पर भारी व्यय की आवश्यकता नहीं होती। इसीलिए इसे तुलना में कम पूंजी से प्रारंभ किया जा सकता है।
(ख) मध्यस्थों की समाप्ति- उपभोक्ता की दृष्टि से डाक-द्वारा व्यापार का सबसे बड़ा लाभ है कि विक्रेता एवं क्रेता के बीच से अनावश्यक मध्यस्थ समाप्त हो जाते हैं। इससे क्रेता एवं विक्रेता दोनों की बचत होती है।
(ग) विस्तृत क्षेत्र- इस पद्धति में हर उन स्थानों पर माल भेजा जा सकता है जहाँ डाक सेवाएँँं उपलब्ध हैं। इस प्रकार से डाक द्वारा पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों को माल बेचा जा सकता है जिससे व्यवसाय का क्षेत्र व्यापक हो जाता है।
(घ) अशोध्य ऋण संभव नहीं- डाक द्वारा ग्राहकों को माल उधार नहीं बेचा जाता इसलिए ग्राहकों के द्वारा माल का भुगतान न करने से अशोध्य ऋणों की संभावना नहीं है।
(ङ) सुविधा- इस पद्धति में वस्तुओं की ग्राहकों के घर पर सुपुर्दगी कर दी जाती है। इसलिए इससे ग्राहकों द्वारा वस्तुओं का क्रय करना सुविधाजनक हो जाता है।
सीमाएँ
(क) व्यक्तिगत संपर्क की कमी- डाक द्वारा व्यापार में विक्रेता एवं क्रेता के बीच व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता है। इसलिए दोनों के बीच भ्रांति एवं अविश्वास पैदा होने की संभावना रहती है। क्रेता क्रय से पहले वस्तुओं की जाँच नहीं कर सकते तथा विक्रेताओं पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे सकते एवं सूची पत्रों एवं विज्ञापन के द्वारा उनकी शंकाओं का समाधान नहीं कर सकते।
(ख) उच्च प्रवर्तन लागत- डाक द्वारा व्यापार में संभावित ग्राहकों को सूचित करने एवं वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित करने के लिए विज्ञापन पर एवं प्रवर्तन के अन्य साधनों पर बहुत अधिक निर्भर किया जाता है। परिणाम स्वरूप विक्रय प्रवर्तन पर भारी व्यय करना होता है।
(ग) बिक्री के बाद की सेवा का अभाव- डाक द्वारा बिक्री में विक्रेता एक दूसरे से बहुत दूर हो सकते हैं तथा उनके बीच कोई व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता। परिणामस्वरूप बिक्री के बाद की सेवाएँँं प्रदान नहीं की जा सकती जो कि ग्राहकों की संतुष्टि के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
(घ) उधार की सुविधा की कमी- डाक आदेश गृह क्रेताओं को उधार की सुविधा प्रदान नहीं करते। इसलिए सीमित साधन वाले व्यक्ति इस प्रकार के व्यापार में रुचि नहीं लेते।
(ङ) सुपुर्दगी मेें विलंब- डाक द्वारा आदेश प्राप्त करने एवं उनके क्रियान्वयन में समय लगता है। अतः ग्राहकों को माल की सुपुर्दगी समय पर नहीं मिल पाती।
(च) दुरुपयोग की संभावना- इस प्रकार के व्यापार में बेईमान व्यापारियों द्वारा धोखा दिए जाने की अधिक संभावना रहती है। यह उत्पाद के विषय में झूठे दावे करते हैं या फिर विज्ञापन एवं इश्तहार में किए गए वादों को पूरा नहीं करते हैं।
(छ) डाक सेवाओं पर अधिक निर्भरता- डाक आदेश व्यापार की सफलता किसी स्थान पर प्रभावी डाक सेवाओं की उपलब्धता पर बहुत अधिक निर्भर करती है लेकिन भारत जैसे विशाल देश में जहाँ बहुत से स्थान एेसे हैं जहाँ डाक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस प्रकार के व्यवसाय के सफल होने की संभावनाएं सीमित हैं।
उपभोक्ता सहकारी भंडार
उपभोक्ता सहकारी भंडार एक एेसा संगठन है जिसके उपभोक्ता, स्वामी स्वयं ही होते हैं तथा वही उसका प्रबंध एवं नियंत्रण करते हैं। इन भंडारों का उद्देश्य मध्यस्थों की संख्या को कम करना है जो उत्पाद की लागत को बढ़ाते हैं, इस प्रकार से यह सदस्यों की सेवा करते हैं। साधारणतया यह वस्तुओं को सीधे उत्पादक थोक विक्रेता से बड़ी मात्रा में क्रय करते हैं तथा उन्हें उपभोक्ताओं को उचित दर पर बेचते हैं क्योंकि मध्यस्थ या तो समाप्त हो गए होते हैं या फिर कम हो गए होते हैं, सदस्यों को अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हो जाती हैं। उपभोक्ता सहकारी भंडारों द्वारा वर्ष के दौरान अर्जित लाभ को सदस्यों में उनके क्रय के अनुपात में लाभांश के रूप में घोषित किया जाता है तथा सदस्यों के सामाजिक एवं शैक्षणिक लाभों के अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए साधारण संचय एवं कल्याण कोष में जमा किया जाता है।
उपभोक्ता सहकारी भंडार को स्थापित करने के लिए न्यूनतम 10 सदस्यों की आवश्यकता होती है तथा एक स्वैच्छिक संगठन की स्थापना कर सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत करना पड़ता है। सहकारी भंडाराें के लिए पूँजी इनके सदस्यों को अंश निर्गमित करके जुटाई जाती है। इन भंडारों का प्रबंध जनतांत्रिक पद्धति से चुनी गई एक प्रबंध समिति द्वारा किया जाता है तथा इसमें एक व्यक्ति वोट के नियम का पालन होता है। कोषों के उचित प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए इन भंडारों के खातों का सहकारी समिति रजिस्ट्रार अथवा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति के द्वारा अंकेक्षण किया जाता है।
लाभ
उपभोक्ता सहकारी भंडारों के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैंः
(क) स्थापना सरल- एक उपभोक्ता सहकारी समिति का गठन सरल होता है। कोई भी 10 व्यक्ति एकजुट होकर एक स्वैच्छिक संगठन बना सकते हैं तथा कुछ औपचारिकताओं को पूरा कर सहकारी समिति के रजिस्ट्रार के पास इसका पंजीयन करा लेते हैं।
(ख) सीमित दायित्व- सहकारी भंडार के प्रत्येक सदस्य का दायित्व उसकी पूँजी तक सीमित होता है। यदि समिति की देयताएँ उसकी परिसंपत्तियों से अधिक हैं तो समिति के ऋणों के भुगतान के लिए अपनी पूँजी से अधिक राशि के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता है।
(ग) प्रजातांत्रिक प्रबंध- सहकारी समिति का प्रबंध इसके सदस्यों के द्वारा चुनी गई प्रबंध समिति द्वारा प्रजातांत्रिक ढंग से किया जाता है। प्रत्येक सदस्य को एक वोट देने का अधिकार होता है भले ही उसके पास कितने भी शेयर हों।
(घ) कम कीमत- सहकारी भंडार उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं से सीधे माल का क्रय करते हैं तथा उसे सदस्यों एवं अन्य लोगों को बेचते हैं। परिणामस्वरूप मध्यस्थ कम हो जाते हैं अतः उपभोक्ता एवं सदस्यों को वस्तुएँ कम मूल्य पर प्राप्त होती हैं।
(ङ) नकद बिक्री- प्रायः उपभोक्ता सहकारी भंडार वस्तुआें का नकद विक्रय करते हैं, परिणामस्वरूप कार्यशील पूँजी की आवश्यकता कम होती है।
(च) सुविधाजनक स्थिति- उपभोक्ता सहकारी भंडार सुविधा के अनुसार सार्वजनिक स्थलों पर खोले जाते हैं, जहाँ से सदस्य एवं अन्य लोग सुगमतापूर्वक अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का क्रय कर सकते हैं।
सीमाएँ
उपभोक्ता सहकारी भंडारों की सीमाएँ निम्न हैं :
(क) प्रेरणा का अभाव- सहकारी भंडारों का प्रबंध जिन लोगों द्वारा किया जाता है, वे अवैतनिक होते हैं। इसीलिए इन लोगों में अधिक प्रभावी ढंग से काम करने के लिए पहल एवं अभिप्रेरणा की कमी होती है।
(ख) कोषों की कमी- सहकारी भंडारों के लिए धन इकट्ठा करने का मूल स्रोत सदस्यों से अंशों का निर्गमन है। इनके सदस्य सीमित संख्या में होते हैं इसलिए साधारणतया इनके पास धन की कमी रहती है। यह भंडारों की बढ़ोत्तरी एवं विस्तार में आड़े आता है।
(ग) संरक्षण का अभाव- प्रायः सहकारी भंडारों के सदस्य नियमित रूप से इनको संरक्षण प्रदान नहीं करते। इसलिए इनका सफलतापूर्वक परिचालन नहीं हो पाता।
(घ) व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव- जिन लोगों को सहकारी भंडारों का प्रबंध कार्य सौंपा जाता है, उनमें विशेषज्ञता का अभाव होता है क्योंकि उन्हें भंडार को सुचारू रूप से चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता है।
सुपर बाजार
सुपर बाजार एक बड़ी फुटकर व्यापारिक संस्था होती है, जो कम लाभ पर अनेकों प्रकार की वस्तुओं का विक्रय करती है। इनमें स्वयं-सेवा, आवश्यकतानुसार चयन एवं भारी विक्रय का आकर्षण होता है। इनमें अधिकांश खाद्य सामग्री एवं अन्य कम मूल्य की वस्तुएँ ब्रांड वाली एवं बहुतायत में उपयोग में आने वाली उपभोक्ता वस्तुएँ, जैसे- परचून, बर्तन, कपड़े, बिजली के उपकरण, घरेलू सामान एवं दवाइयों का विक्रय किया जाता है। प्रायः सुपर बाजार अधिकांश रूप से प्रमुख विक्रय केंद्रों में स्थित होते हैं। उनमें वस्तुओं को खानों में रखा जाता है जिन पर मूल्य एवं गुणवत्ता स्पष्ट रूप से लिखे होते हैं। उपभोक्ता भंडार में घूमकर अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को चुनते हैं तथा उन्हें फिर नकद पटल पर लाते हैं तथा भुगतान कर उन्हें घर ले जाते हैं।
सुपर बाजार विभागीय भंडारों की भाँति विभिन्न विभागों में बँटा संगठन होता है जिसमें ग्राहक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को एक ही छत के नीचे खरीद सकते हैं लेकिन ये भंडार, विभागीय भंडारों की भाँति घर पर माल की मुफ्त सुपुर्दगी, उधार की सुविधा, एजेंसी सुविधाएँ प्रदान नहीं करते। ये ग्राहकों को वस्तुओं की गुणवत्ता आदि के संबंध में विश्वास दिलाने के लिए विक्रेताओं की नियुक्ति नहीं करते। सुपर बाजार की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैंः
(क) सुपर बाजार सामान्यतः हर प्रकार की खाद्य सामग्री एवं परचून सामग्री जो गैर-खाद्य आवश्यकता की वस्तुओं के अतिरिक्त होती है, उनकी बिक्री करते हैं।
(ख) एेसे बाजारों में क्रेता आवश्यक वस्तुओं का क्रय एक ही छत के नीचे कर सकते हैं।
(ग) सुपर बाजार स्वयं सेवा के सिद्धांत पर चलाए जाते हैं। इसलिए इनकी वितरण लागत कम होती है।
(घ) निम्न परिचालन लागत, बड़ी मात्रा में क्रय एवं कम लाभ के कारण अन्य फुटकर भंडारों की तुलना में यहाँ वस्तुओं की कीमत कम होती है।
(ङ) वस्तुओं को केवल नकद बेचा जाता है।
(च) सुपर बाजार साधारणतया केंद्रीय स्थानों पर स्थित होते हैं, जहाँ इनकी बिक्री बहुत अधिक होती है।
लाभ
सुपर बाजार के निम्नलिखित लाभ हैं-
(क) एक छत कम लागत- सुपर बाजार में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को कम कीमत पर एक ही छत के नीचे बेचा जाता है।
इन बिक्री केंद्राें से क्रेता न केवल सुविधापूर्वक क्रय कर सकते हैं बल्कि यह मितव्ययी भी होता है।
(ख) केंद्र में स्थित- सुपर बाजार साधारणतया शहर के मध्य में स्थित होते हैं। परिणामस्वरूप यह आस-पास के क्षेत्र के लोगों की पहुँच में होते हैं।
(ग) चयन के भारी अवसर- सुपर बाजार में विभिन्न डिजाइन, रंग आदि की अनेक वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं जिससे क्रेता सुगमतापूर्वक भली-भाँति चयन कर सकते हैं।
(घ) कोई अशोध्य ऋण नहीं- माल का विक्रय नकद किया जाता है इसलिए सुपर बाजार में अशोध्य ऋण नहीं होते।
(ङ) बड़े स्तर के लाभ- सुपर बाजार बड़े पैमाने के फुटकर विक्रय भंडार होते हैं। इसे बड़े पैमाने के क्रय एवं विक्रय के सभी लाभ मिलते हैं जिसके कारण इसकी प्रचालन लागत कम होती है।
सीमाएँ
(क) उधार विक्रय नहीं- सुपर बाजार अपनी वस्तुओं का केवल नकद विक्रय करते हैं। इसमें उधार क्रय की सुविधा नहीं होती। अतः सभी क्रेता यहाँ से माल का क्रय यहाँ नहीं कर सकते।
(ख) व्यक्तिगत ध्यान की कमी- सुपर बाजार स्वयं-सेवा के सिद्धांत पर चलते हैं। इसलिए ग्राहकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दिया जाता। परिणामस्वरूप जिन वस्तुओं पर विक्रेताओं पर व्यक्तिगत ध्यान देने की आवश्यकता है, इनका प्रभावी विक्रय सुपर बाजार में संभव नहीं है।
(ग) वस्तुओं की अव्यवस्थित देख-रेख- कुछ ग्राहक शैल्फ में रखी वस्तुओं के साथ लापरवाही दिखाते हैं। इससे सुपर बाजार को भारी हानि उठानी पड़ती है।
(घ) भारी ऊपरी व्यय- सुपर बाजार में भारी ऊपरी व्यय होता है। इनके कारण यह ग्राहकों को कम कीमत पर माल नहीं बेच सकते।
(ङ) भारी पूँजी की आवश्यकता- एक सुपर बाजार की स्थापना एवं परिचालन के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। इसीलिए इनमें अधिक बिक्री की आवश्यकता है जिससे कि ऊपरी व्यय को उचित स्तर पर रखा जा सके। ये केवल बड़े शहरों में ही संभव है छोटे कस्बों में नहीं।
विक्रय मशीनें
विपणन पद्धतियों में विक्रय मशीनें एक नई क्राँति की सूत्रधार हैं। मशीन में सिक्का डालिए और मशीन अपनी बिक्री का काम शुरू कर देगी। इसके माध्यम से अनेक वस्तुओं का विक्रय किया जा सकता है, जैसे– गर्म पेय पदार्थ, प्लेटफार्म टिकटें, दूध, सिगरेट, पेय पदार्थ, चॉकलेट, समाचारपत्र आदि। इनका प्रयोग कई देशों में हो रहा है। इन उत्पादों के अतिरिक्त एक और क्षेत्र जिसमें यह अवधारणा देश के कई भागों में (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) अधिक लोकप्रिय हो रही है, वो है आटोमेटेड टैलर मशीन (ए.टी.एम.) जो बैंकिंग सेवाएँँ प्रदान कर रही है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इन मशीनों ने बैंकिंग की अवधारणा को ही बदल दिया है तथा अब बिना किसी शाखा में जाए रुपया इन मशीनों की मदद से आसानी से निकाला जा सकता है।
विक्रय मशीनें कम कीमत की पूर्व परिबंधित ब्राँड वस्तुएँ, जिनकी बहुत अधिक बिक्री होती है और जिनकी प्रत्येक इकाई का एक ही आकार एवं वजन होता है, की बिक्री के लिए अधिक उपयोगी हैं लेकिन एेसी मशीनों को लगाने पर प्रारंभिक व्यय तथा इनके नियमित रख-रखाव तथा मरम्मत पर भारी व्यय करना होता है तथा ग्राहक वस्तु को क्रय करने से पहले उसका निरीक्षण नहीं कर सकते और यदि वस्तुओं की आवश्यकता नहीं हो तो उन्हेें लौटा भी नहीं सकते। इसके अतिरिक्त, मशीन के अनुसार वस्तु का विशेष परिबंधन विकसित करना होता है। मशीनों का परिचालन भी विश्वसनीय होना चाहिए। इन सीमाओं के रहते हुए भी अर्थव्यवस्था में विकास के साथ विक्रय मशीनों के द्वारा अधिक बिकने वाली एवं कम कीमत की उपभोक्ता वस्तुओं की फुटकर बिक्री का भविष्य उज्ज्वल है।
10.7 वाणिज्य एवं उद्योग संगठनों की आंतरिक व्यापार संवर्द्धन में भूमिका
व्यवसाय एवं औद्योगिक संस्थानों का गठन समस्त व्यवसायों के हितों एवं लक्ष्यों के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए किया गया था; उदाहरणार्थ ASSOCHAM, CII और FICCI. ये संस्थाएँ व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग के क्षेत्र में अपने आपको राष्ट्रीय संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करती रही हैं।
ये संगठन आंतरिक व्यापार को संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग एवं सशक्त बनाने में उत्प्रेरक की भूमिका अदा कर रहा है। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल सरकार से विभिन्न स्तरों पर संवाद करते हैं जिससे कि सरकार एेसी नीतियों को पुननिर्देशित अथवा व्यवस्थित करे जिससे कि बाधाएँ घटें, वस्तुओं की अंतर्राज्यीय आवाजाही बढ़े, पारदर्शिता आए एवं बहुस्तरीय निरीक्षण एवं नौकरशाही को समाप्त किया जा सके। इसके अतिरिक्त चैंबर का लक्ष्य एक दृढ़ बुनियादी ढाँचा खड़ा करना एवं कर ढाँचे को सरल बनाना एवं एकरूपता प्रदान करना है। इसका हस्तक्षेप मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में है :
(क) परिवहन अथवा वस्तुओं का अंतर्राज्यीय स्थानांतरण/आवागमन- वाणिज्य एवं उद्योग मंडल वस्तुओं के अंतर्राज्यीय संचलन से संबंधित अनेकों क्रियाओें में सहायता प्रदान करते हैं, जैसे- वाहनों का पंजीयन, सड़क एवं रेल परिवहन नीतियाँ, राजमार्ग एवं सड़कों का निर्माण आदि। उदाहरणार्थ- भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडलों के महासंघ (FICCI) की एक वार्षिक साधारण सभा के निर्माण की घोषणा आंतरिक व्यापार को सुगम बनाएगी।
(ख) चुंगी एवं स्थानीय कर- चुंगी एवं स्थानीय कर स्थानीय सरकार का महत्त्वपूर्ण राजस्व का स्रोत है। यह राज्य अथवा नगर की सीमाओं में प्रवेश कर रही वस्तुओं एवं लोगों से वसूल किए जाते हैं। सरकार एवं वाणिज्य मंडलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन करों के कारण निबार्ध परिवहन एवं स्थानीय व्यापार पर कोई प्रभाव न पड़े।
(ग) बिक्री कर ढाँचा एवं मूल्य संबंधित कर में एकरूपता- वाणिज्यिक संघ विभिन्न राज्यों में बिक्री कर ढाँचे में एकरूपता लाने के लिये सरकार से बातचीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बिक्री कर राज्य राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है। संकलित व्यापार के प्रवर्तन के लिए राज्यों के बीच बिक्री कर का तर्कसंगत ढाँचा एवं समान दर महत्त्वपूर्ण हैं। सरकार की नई नीति के अनुसार बिक्री कर के असंतुलन पैदा करने के प्रभाव को दूर करने के लिए इसके स्थान पर मूल्य संबंधित कर लगाया जा रहा है।
(घ) कृषि उत्पादों के विपणन एवं इससे जुड़ी समस्याएँ- कृषक संगठनों एवं अन्य महासंघों की कृषि उत्पादों के विपणन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कृषि उत्पादों की बिक्री उत्पादों की बिक्री करने वाले संगठनों की विपणन नीतियों एवं स्थानीय सहायता को चुस्त बनाने के कुछ क्षेत्र हैं जिनमें वाणिज्यिक एवं औद्योगिक संघ हस्तक्षेप कर सकते हैं एवं कृषि सहकारी समितियों जैसी संबंधित एजेंसियों के साथ बातचीत कर सकते हैं।
(ङ) माप-तौल तथा ब्राँड वस्तुओं की नकल को रोकना- माप-तौल एवं ब्राँडों की सुरक्षा से संबंधित कानून उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों के हितों के रक्षार्थ आवश्यक हैं। इन्हें सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। वाणिज्यिक एवं उद्योग संघ सरकार से एेसे कानून बनाने के लिए बातचीत करते हैं तथा कानून एवं नियमों की अवहेलना करने वालों के विरूद्ध कार्यवाही करते हैं।
(च) उत्पादन कर- केंद्रीय उत्पादन कर जो केंद्रीय सरकार सभी राज्यों में लगाती है, जो सरकार के राजस्व का प्रमुख स्रोत है। मूल्य निर्धारण तंत्र में उत्पादन कर नीति की अहम् भूमिका होती है इसीलिए व्यापार संगठनों के लिए उत्पादन कर को एक सूत्र में लाने के लिए सरकार से बातचीत करना आवश्यक होता है।
(छ) सुदृढ़ मूल-भूत ढाँचे का प्रवर्तन- दृढ़ आधारभूत ढाँचा, जैसे- सड़क, बंदरगाह, बिजली रेल आदि व्यापार संवर्द्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वाणिज्य संघों को सरकार के साथ मिलकर भारी निवेश प्रायोजनों को लेना चाहिए।
(ज) श्रम कानून- सरल व लोचपूर्ण श्रम कानून उद्योग को चलाने, अधिकतम उत्पादन एवं रोजगार पैदा करने में सहायक होता है। वाणिज्यिक संघों एवं सरकार के बीच श्रम कानून एवं श्रम संख्या में कटौती जैसी समस्याओं पर बातचीत होती रहती है।
मुख्य शब्दावली
आंतरिक व्यापार थोक विक्रेता सावधिक बाजार व्यापारी
थोक व्यापार खुदरा विक्रेता सस्ते दर की दुकान
फुटकर व्यापार सुपर बाजार विक्रय मशीन
एक वस्तु के भंडार भ्रमणशील फुटकर विक्रेता विशिष्टकृत भंडार
विभागीय भंडार शृंखला भंडार चैंबर्स अॉफ कॉमर्स
सारांश
व्यापार से अभिप्राय लाभार्जन के उद्देश्य से वस्तुओं एवं सेवाओें के क्रय-विक्रय से है। क्रेताओं एवं विक्रेताओं की भौगोलिक स्थिति के आधार पर व्यापार को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) आंतरिक व्यापार, एवं (ख) बाह्य व्यापार।
आंतरिक व्यापार : जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय एक ही देश की सीमाओं के अंदर किया जाता है तो इसे आंतरिक व्यापार कहते हैं। इस प्रकार के व्यापार में कोई सीमा शुल्क अथवा आयात कर नहीं लगाया जाता क्योंकि वस्तुएँ घरेलू उत्पादन का भाग हैं तथा घरेलू उपयोग के लिए होती है। आंतरिक व्यापार को दो भागोें में बांटा जा सकता है- (क) थोक व्यापार, एवं (ख) फुटकर व्यापार।
थोक व्यापार : विक्रय अथवा पुनः थोक व्यापार से अभिप्राय पुनः उत्पादन के उपयोग के लिए वस्तु एवं सेवाओं के बड़ी मात्रा में क्रय-विक्रय से है। ये न केवल उत्पादकों के लिए बड़ी संख्या में बिखरे हुए उपभोक्ताओं तक पहुंच (फुटकर विक्रेताओं के माध्यम से) को संभव बनाते हैं बल्कि वस्तुओं एवं सेवाओं की वितरण प्रक्रिया के कई अन्य कार्य भी करते हैं।
थोक विक्रेताओं की सेवाएँं : थोक विक्रेता विनिर्माता एवं फुटकर विक्रेताओं के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं। ये समय उपयोगिता एवं स्थान उपयोगिता दोनों का सृजन करते हैं।
विनिर्माताओं के प्रति सेवाएँं : विनिर्माताओं के प्रति थोक विक्रेताओं की प्रमुख सेवाएँं नीचे दी गई हैं-
(क) बड़े पैमाने पर उत्पादन में सहायक; (ख) जोखिम उठाना; (ग) वित्तीय सहायता; (घ) विशेषज्ञ सलाह; (ङ) विपणन में सहायक; (च) निरंतरता में सहायक; एवं (छ) संग्रहण।
फुटकर विक्रेताओं के प्रति सेवाएँं : थोक विक्रेताओं द्वारा फुटकर विक्रेताओं को दी जाने वाली सेवाएँ हैं- (क) वस्तुओं को उपलब्ध कराना; (ख) विपणन में सहायक; (ग) साख प्रदान करना; (घ) विशिष्ट ज्ञान; एवं (ङ) जोखिम में भागीदारी।
फुटकर व्यापार : फुटकर विक्रेता वह व्यावसायिक इकाई होती है जो वस्तुओं एवं सेवाओं को सीधे अंतिम उपभोक्ताओं को बेचते हैं।
फुटकर व्यापारियों की सेवाएँं : फुटकर व्यापार वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में उत्पादक एवं अंतिम उपभोक्ताओं के बीच की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस प्रक्रिया में वह उपभोक्ताओं, थोक विक्रेताओें एवं विनिर्माताओं को उपयोगी सेवाएँं प्रदान करता है।
उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं के प्रति सेवाएँं : फुटकर व्यापारी उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं को जो मूल्यवान सेवाएँं प्रदान करते हैं; वे हैं : (क) वस्तुओं के वितरण में सहायक; (ख) व्यक्तिगत विक्रय; (ग) बड़े पैमाने पर परिचालन में सहायक; (घ) बाजार संबंधित सूचनाएँ एकत्रित करना; एवं (ङ) प्रवर्तन में सहायक।
उपभोक्ताओं को सेवाएँं : उपभोक्ताओं की दृष्टि से फुटकर व्यापारियों की कुछ सेवाएँं निम्नलिखित हैंः (क) उत्पादों की नियमित उपलब्धता; (ख) नये उत्पादों के संबंध में सूचना; (ग) क्रय में सुविधा;
(घ) चयन के पर्याप्त अवसर; (ङ) बिक्री के बाद की सेवाएँ; एवं (च) उधार की सुविधा।
फुटकर व्यापार के प्रकार : फुटकर व्यापारियों को विभिन्न प्रकारों में बाँटने के लिए विभिन्न वर्गीकरणों का सहारा लिया जाता है। व्यावसायिक आकार के आधार निश्चित स्थान हैं। इस आधार पर फुटकर विक्रेता दो प्रकार के हो सकते हैं-
(क) भ्रमणशील फुटकर विक्रेता एवं
(ख) स्थायी दुकानदार
भ्रमणशील फुटकर विक्रेता : ये वे फुटकर व्यापारी होते हैं जो किसी स्थायी जगह से अपना व्यापार नहीं करते हैं। ये अपने सामान के साथ ग्राहकों की तलाश में गली-गली एवं एक स्थान से दूसरे स्थानों पर घूमते रहते हैं।
(क) फेरी वाले : ये छोटे उत्पादक अथवा मामूली व्यापारी होते हैं जो वस्तुओं को साइकिल, हाथ-ठेली, साइकिल रिक्शा या अपने सिर पर रखकर तथा जगह-जगह घूमकर ग्राहक के दरवाजे पर जाकर माल का विक्रय करते हैं।
(ख) सावधिक बाजार व्यापारी : फुटकर व्यापारी होते हैं जो विभिन्न स्थानों पर निश्चित दिन अथवा तिथि को दुकान लगाते हैं, जैसे- प्रति शनिवार या फिर एक शनिवार छोड़कर दूसरे शनिवार को।
(ग) सस्ते दर की दुकान : यह उपभोक्ता वस्तुओं में व्यापार करते हैं एवं वस्तुओं को उस स्थान पर उपलब्ध कराते हैं जहाँ उसकी उपभोक्ता को आवश्यकता है।
स्थायी दुकानदार : परिचालन आकार के आधार पर स्थायी दुकानदार मुख्यतः दो प्रकार के हो सकते हैं :
(क) छोटे दुकानदार, एवं
(ख) बड़े फुटकर विक्रेता।
छोटे स्थायी फुटकर विक्रेता
(क) जनरल स्टोर : उपभोक्ताओं की प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति की वस्तुओं की बिक्री करते हैं। उनके लिए अपने प्रतिदिन के प्रयोग में आने वाली वस्तुओं, जैसे- परचून की वस्तुएँ, पेय पदार्थ, प्रसाधन का सामान, स्टेशनरी एवं मिठाइयाँ खरीदना सुविधाजनक रहता है।
(ख) विशिष्टीकृत भंडार : शहरी क्षेत्रों में ये विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का विक्रय न कर एक ही प्रकार की वस्तुओं की बिक्री करते हैं। ये केवल बच्चों के सिले-सिलाए वस्त्र बेचते हैं या फिर पुरूषों के वस्त्र, महिलाओं के जूते, खिलौने एवं उपहार की वस्तुएँ, स्कूल यूनीफॉर्म, कॉलेज की पुस्तकें या फिर उपभोक्ता की इलेक्ट्रोनिक वस्तुएँ आदि।
(ग) गली में स्टॉल : ये छोटे विक्रेता गली के मुहाने पर या भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में होते हैं तथा हौजरी की वस्तुएँ, खिलौने, सिगरेट, पेय पदार्थ आदि सस्ती बेचते हैं।
(घ) पुरानी वस्तुओं की दुकान : ये दुकानें पुरानी वस्तुओं की बिक्री करती हैं, जैसे कि पुस्तकें, कपड़े, मोटर कारें, फर्नीचर एवं अन्य घरेलू सामान। ये वस्तुएँ कम मूल्य पर प्राप्त होती हैं।
(ङ) एक वस्तु के भंडार : ये वे भंडार होते हैं जो एक ही श्रेणी की वस्तुओं का विक्रय करते हैं, जैसे कि पहनने के तैयार वस्त्र, घड़ियाँ, जूते, कारें, टायर, कंप्यूटर, पुस्तकें, स्टेशनरी आदि। ये केंद्रीय स्थल पर स्थित होते हैं।
विभागीय भंडार : एक विभागीय भंडार एक बड़ी इकाई होती है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों की बिक्री करती हैं, जिन्हें भली-भांति निश्चित विभागों में बाँटा गया होता है तथा जिनका उद्देश्य ग्राहक की लगभग प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति एक ही छत के नीचे करना है।
विभागीय भंडारों के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं :
(क) बड़ी संख्या में ग्राहकों को आकर्षित करना; (ख) क्रय सुगम बनाना;
(ग) आकर्षक सेवाएँं; (घ) बड़े पैमाने पर परिचालन के लाभ; एवं (ङ) विक्रय में वृद्धि।
सीमाएँ :
(क) व्यक्तिगत ध्यान का अभाव; (ख) उच्च परिचालन लागत; (ग) हानि की संभावना अधिक; एवं
(घ) असुविधाजनक स्थिति।
(ख) शृंखला भंडार अथवा बहुसंख्यक दुकानें :
शृंखला भंडार अथवा बहु संख्यक दुकानें फुटकर दुकानों का फैला हुआ जाल हैं जिनका स्वामित्व एवं परिचालन उत्पादनकर्ता या मध्यस्थ करते हैं। इन दुकानों पर मानकीय एवं ब्रांड की वस्तुएँ जिनका विक्रय आवर्त तीव्र होता है, बेची जाती हैं।
लाभ :
(क) बड़े पैमाने की मितव्ययता; (ख) मध्यस्थ की समाप्ति; (ग) कोई अशोध्य ऋण नहीं;
(घ) वस्तुओं का हस्तांतरण; (ङ) जोखिम का बिखराव; (च) निम्न लागत; एवं (छ) लोचपूर्णता।
हानियाँ :
(क) वस्तुओं का चयन सीमित; (ख) प्रेरणा का अभाव; (ग) व्यक्तिगत सेवा का अभाव; एवं
(घ) माँग में परिवर्तन कठिन।
विभागीय भंडार एवं बहुसंख्यक दुकानों में अंतर :
(क) स्थिति; (ख) उत्पादों की श्रेणी; (ग) प्रदत्त सेवाएँँ; (घ) कीमतें/मूल्य; (ङ) ग्राहकों का वर्ग;
(च) उधार की सुविधा; (छ) लोचपूर्णता; एवं (ज) डाक आदेश गृह।
डाक आदेश गृह : ये वे फुटकर विक्रेता होते हैं जो डाक द्वारा वस्तुओं का विक्रय करते हैं। इस प्रकार के व्यापार में विक्रेता एवं क्रेता में कोई प्रत्यक्ष व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता।
लाभ :
(क) सीमित पूँजी की आवश्यकता; (ख) मध्यस्थों की समाप्ति; (ग) विस्तृत क्षेत्र; (घ) अशोध्य ऋण संभव नहीं; एवं (ङ) सुविधा।
सीमाएँ :
(क) व्यक्तिगत संपर्क की कमी; (ख) उच्च प्रवर्तन लागत; (ग) बिक्री के बाद की सेवा का अभाव;
(घ) उधार की सुविधा की कमी; (ङ) सुपुर्दगी में विलंब; (च) दुरुपयोग की संभावना; एवं (छ) डाक सेवाओं पर अधिक निर्भरता।
उपभोक्ता सहकारी भंडार : उपभोक्ता सहकारी भंडार एक एेसा संगठन है जिसके उपभोक्ता, स्वामी स्वयं ही होते हैं तथा वही उसका प्रबंध एवं नियंत्रण करते हैं। इन भंडारों का उद्देश्य मध्यस्थों की संख्या को कम करना है जो उत्पाद की लागत को बढ़ाते हैं। इस प्रकार से यह सदस्यों की सेवा करते हैं।
लाभ :
(क) स्थापना सरल; (ख) सीमित दायित्व; (ग) प्रजातांत्रिक प्रबंध; (घ) कम कीमत; (ङ) नकद बिक्री; (च) सुविधाजनक स्थिति।
सीमाएँ :
(क) प्रेरणा का अभाव; (ख) कोषों की कमी; (ग) संरक्षण का अभाव; एवं (घ) व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव।
सुपर बाजार : सुपर बाजार एक बड़ी फुटकर व्यापारिक संस्था होती है जो कम लाभ पर अनेकों प्रकार की वस्तुओं का विक्रय करती है। इनमें स्वयं सेवा, आवश्यकतानुसार चयन एवं भारी विक्रय का आकर्षण होता है।
लाभ :
(क) एक छत कम लागत; (ख) केंद्र में स्थित; (ग) चयन के भारी अवसर; (घ) कोई अशोध्य ऋण नहीं; एवं (ङ) बड़े स्तर के लाभ।
सीमाएँ :
(क) उधार विक्रय नहीं; (ख) व्यत्तिηगत ध्यान की कमी; (ग) वस्तुओं की अव्यवस्थित देख-रेख;
(घ) भारी ऊपरी व्यय; (ङ) भारी पूँजी की आवश्यकता; एवं (च) विक्रय मशीनें।
विक्रय मशीनें : विक्रय मशीनें कम कीमत की पूर्व परिबंधित ब्राँड वस्तुएँ उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराती हैं इन वस्तुओं की बिक्री बहुत अधिक होती है और इनकी प्रत्येक इकाई का एक ही आकार एवं वजन होता है।
अभ्यास
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. आंतरिक व्यापार से क्या तात्पर्य है?
2. स्थायी दुकान फुटकर व्यापारियों की विशेषताएँ बताइए।
3. थोक व्यापारी द्वारा भंडारण की सुविधा किस उद्देश्य के लिए दी जाती है?
4. थोक व्यापारी से मिलने वाली बाजार जानकारी से निर्माता को किस प्रकार के लाभ मिलते हैं?
5. थोक व्यापारी निर्माता को बड़े पैमाने की मितव्ययता में किस प्रकार मदद करता है?
6. एक वस्तु भंडार और विशिष्टीकृत भंडार के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। क्या आप एेसे भंडारों को ज्ञात कर सकते हैं?
7. पटरी व्यापारी और सस्ते दर की दुकान में किस प्रकार अंतर्भेद करेंगे?
8. थोक व्यापारी द्वारा निर्माता को दी जाने वाली सेवाओं की व्याख्या कीजिए।
9. फुटकर व्यापारी द्वारा थोक व्यापारी और उपभोक्ता को दी जाने वाली सेवाएँ बताइए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में भ्रमणशील फुटकर विक्रेता आंतरिक व्यापार का महत्वपूर्ण अंग हैं। थोक फुटकर व्यापारी से उसकी प्रतिस्पर्द्धा के बजाय बचाव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
2. विभागीय भंडार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। ये शृंखला भंडार या बहुसंख्यक दुकानों से किस प्रकार भिन्न है?
3. उपभोक्ता सहकारी भंडार को कम खर्चीला क्यों माना जाता है? थोक फुटकर व्यापारी से संबंधित लाभ
क्या हैं?
4. स्थानीय बाजार के बिना अपने जीवन की कल्पना कीजिए। फुटकर दुकान के नहीं होने पर उपभोक्ता को किन कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है?
5. डाक आदेश गृहों की उपयोगिता का वर्णन कीजिए। इनके द्वारा किस प्रकार की वस्तुएँ दी जाती हैं? स्पष्ट कीजिए।
परियोजना कार्य/क्रियाकलाप
1. अपने क्षेत्र के विभिन्न स्थायी फुटकर विक्रेताओं की पहचान कीजिए तथा उनका वर्गीकरण कीजिए।
2. क्या आप अपने क्षेत्र में एेसे किसी विक्रेता को जानते हैं जो पुरानी वस्तुओं का विक्रय करता हो? उन उत्पादों का वर्गीकरण करें जिसमें वह व्यवहार करता है। उनमें से कौन-से उत्पाद पुनः विक्रय योग्य हैं? इस प्रकार की सूची बनाकर अपना निष्कर्ष निकालें।
3. फुटकर व्यापार के अतीत एवं भविष्य के तुलनात्मक विश्लेषण पर संक्षिप्त निबंध लिखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
4. अपने अनुभवों के आधार पर दो फुटकर भंडारों की तुलना करें जो एक समान वस्तुएँ/उत्पाद बेचते हैं। उदाहरणार्थ एक ही तरह का सामान जनरल स्टोर एवं डिपार्टमेंटल स्टोर में बिकता है। आप इन स्टोरों में बिकने वाले उत्पादों के मूल्य, सेवा, गुणवत्ता एवं सुविधाओं में किस प्रकार की समानता एवं विविधता पाते हैं?
भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2017 को माल एवं सेवा कर जी.एस.टी. पारित किया गया है। जी.एस.टी. (GST) के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं को निर्धारित दरों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। ये दरें हैं- 0%, 5%, 12%, 18% और 28%। आपसे अपेक्षित है कि आप अखबार, मीडिया, इंटरनेट और व्यावसायिक पत्रिकाओं से जी.एस.टी. सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित करें और नीचे दिए गए माल एवं सेवाओं को 5 जी.एस.टी. दरों पर व्यवस्थित करें।
परियोजना कार्य : विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के लिए जी.एस.टी. दरों का वर्गीकरण
मदें | कर रहित | 5 प्रतिशत | 12 प्रतिशत | 18 प्रतिशत | 28 प्रतिशत |
जूट |
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अख़बार |
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चाय/कॉफी |
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केश शैम्पु |
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कपड़े धोने की मशीन |
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मोटर साइकिल |
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सब्जियाँ |
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दूध |
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दही |
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नमक |
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मसाले |
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कैरोसिन |
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पतंग |
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1000 रु. से ऊपर के वस्त्र |
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पनीर |
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घी |
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फलों का जूस |
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भुजिया |
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आयुर्वेदिक दवाएँ |
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सिलाई मशीन |
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मोबाइल फोन |
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कैचप और सॉस |
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कॉपियाँ |
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अभ्यास पुस्तिका |
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चश्में |
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खाद |
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बिस्किट |
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पास्ता |
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पेस्ट्रीज एवं केक |
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जैम |
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पानी |
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स्टील |
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कैमरा |
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स्पीकर और मॉनीटर |
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एल्युमीनियम फॉइल |
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सी.सी.टी.वी. |
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टेलीकॉम सेवाएँ |
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ब्रांडेड पोशाक |
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