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भारत में मानव पूँजी का निर्माण

इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप

मानव संसाधन, मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास की अवधारणाओं को समझ सकेंगेे;

मानव पूँजी में निवेश, आर्थिक संवृद्धि और मानव विकास के परस्पर संबंधों को जानेंगे।

• शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय की आवश्यकता को समझ पाएँगे और

• भारत की शैक्षिक उपलब्धियों की जानकारी प्राप्त करेंगे।

शिक्षा पर निजी और सार्वजनिक निधि के व्यय की सार्थकता का मूल्यांकन केवल उसके प्रत्यक्ष परिणामों के माध्यम से नहीं हो। इसमें निवेश-मात्र ही लोगों को उससे अधिक अवसर उपलब्ध कराने में पर्याप्त होगा, जितना कि वे स्वयं ही प्राप्त कर सकते थे। इनके माध्यम से कितने ही एेसे व्यक्तियों की अंतर्निहित योग्यताएँ उजागर हो पाती हैं, जो अन्यथा बिना पहचान के ही मर जाते।

-अल्फ्रेड मार्शल

5.1 परिचय

मानव जाति के विकास को बहुत अधिक प्रभावित करने वाले कारकों पर विचार करें। ये शायद मनुष्य के ज्ञान-संग्रह करने की और उसका प्रसारण करने की क्षमताएँ ही हैं, जो मनुष्य बातचीत, लोकगीत और बड़े-बड़े व्याख्यानों के माध्यम से करता आ रहा है। मनुष्य ने यह शीघ्र जान लिया कि हमें कार्याें को कुशलतापूर्वक करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता है। हम जानते हैं कि किसी शिक्षित व्यत्तिη के श्रम-कौशल अशिक्षित व्यत्तिη से अधिक होते हैं। इसी कारण से पहला, दूसरे की अपेक्षा, अधिक आय का सृजन करता है और आर्थिक समृद्धि में उसका योगदान क्रमशः अधिक होता है। शिक्षा पाने का प्रयास केवल उपार्जन क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं किया जाता बल्कि उसके और भी अधिक मूल्यवान लाभ हैं। शिक्षा लोगों को उच्चतम सामाजिक स्थिति और गौरव प्रदान करती है। यह किसी व्यक्ति को अपने जीवन में बेहतर विकल्पों का चयन कर पाने के योग्य बनाता है, व्यक्ति को समाज में चल रहे परिवर्तनों की बेहतर समझ प्रदान करता है और नव परिवर्तनों को बढ़ावा देता है। शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नयी प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है। देश शिक्षा के अवसरों के विस्तार की आवश्यकता पर बल देते हैं, क्योंकि यह विकास प्रक्रिया को तेज करती है।

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चित्र 5.1 किसानों को समुचित शिक्षा तथा प्रशिक्षण ही खेतों की उत्पादकता में वृद्धि कर सकती है

5.2 मानव पूँजी क्या है?

जिस प्रकार एक देश अपने भूमि जैसे भौतिक संसाधनाें को कारखानाें जैसी भौतिक पूँजी में परिवर्तित कर सकता है, उसी प्रकार वह अपने छात्र रूपी मानव संसाधनाें को नर्स, किसान, अध्यापक, अभियंता और डॉक्टर जैसी मानव पूँजी में भी परिवर्तित कर सकता है। समाज को सबसे पहले पर्याप्त मात्रा में मानव पूँजी की ज़रूरत है, जो एेसे योग्य व्यक्तियोें के रूप में अधिक होती है जो पहले स्वयं प्रशिक्षित हो चुके हों और प्रोफ़ेसराें आदि के रूप में कार्य करने योग्य हों। दूसरे शब्दाें में, हमें अन्य मानव पूँजी जैसे - नर्स, किसान, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर आदि को तैयार करने के लिए शिक्षकाें, प्रशिक्षकाें के रूप में बेहतर मानव पूँजी की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ है कि हमें मानव संसाधनाें को मानव पूँजी के रूप में परिवर्तित करने के लिए मानव पूँजी निवेश करने की भी आवश्यकता है।

आइए, इन प्रश्नाें के माध्यम से मानव पूँजी के अर्थ को कुछ अधिक स्पष्ट रूप से जानने का प्रयास करेंः

(क) मानव पूँजी के स्रोत क्या हैं?

(ख) क्या किसी देश की आर्थिक संवृद्धि और वहाँ की मानव पूँजी में कोई संबंध होता है?

(ग) क्या मानव पूँजी के निर्माण का संबंध मनुष्य के सर्वांगीण विकास से है जिसे आमतौर पर मानव विकास के रूप में जाना जाता है?

(घ) भारत में मानव पूँजी के निर्माण में सरकार की क्या भूमिका हो सकती है?

1135.pngइन्हें कीजिए

► समाज के अलग-अलग वर्गों से तीन परिवाराें का चयन करें (क) अति निर्धन (ख) मध्यमवर्गीय तथा (ग)संपन्न। इन परिवाराें के लड़के तथा लड़कियों की शिक्षा पर व्यय की प्रवृत्ति का आकलन करें।


5.3 मानव पूँजी के स्रोत

शिक्षा में निवेश को मानव पूँजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य में निवेश, कार्य के दौरान प्रशिक्षण, प्रबंधन तथा सूचना आदि मानव पूँजी के निर्माण के अन्य स्रोत हैं।

आपके माता-पिता आपकी शिक्षा पर व्यय क्यों कर रहे हैं? व्यक्तियाें द्वारा शिक्षा पर व्यय कुछ उसी प्रकार का खर्च है जैसा कि कंपनियाँ निश्चित अवधि में अपने दीर्घकालिक निश्चित लाभ को सुधारने के लिए पूँजीगत वस्तुओं पर करती हैं। इसी प्रकार व्यक्ति अपनी भविष्य की आय को बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है।

शिक्षा की भाँति ही स्वास्थ्य को भी किसी व्यक्ति के साथ-साथ देश के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण आगत माना जाता है।

किसी भी कार्य को अच्छी तरह से कौन कर सकता है– एक बीमार व्यक्ति या एक स्वस्थ व्यक्ति? चिकित्सा सुविधाआें के सुलभ नहीं होने पर एक बीमार श्रमिक कार्य से विमुख रहेगा। इससे उत्पादकता में कमी आएगी। अतः इस प्रकार से स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूँजी के निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

प्रतिषेधी आयुर्विज्ञान (टीकाकरण), चिकित्सीय आयुर्विज्ञान (बीमारियोें के क्रम मेें उसकी चिकित्सा) तथा सामाजिक आयुर्विज्ञान (स्वास्थ्य संबंधी साक्षरता या ज्ञान का प्रसार) और इनके साथ-साथ स्वच्छ पेय जल का प्रावधान आदि स्वास्थ्य व्यय के विभिन्न रूप हैं। स्वास्थ्य पर किया गया व्यय स्वस्थ श्रमबल की पूर्ति को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ाता है और इसी कारण यह मानव पूँजी निर्माण का एक स्रोत है।

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फर्में अपने कर्मचारियों के कार्य-स्थल पर प्रशिक्षण में व्यय करती हैं। इसके कई तरीके हो सकते हैं। फर्म के अपने कार्य स्थान पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलकर्मी कर्मचारियों को काम सिखा सकते हैं। दूसरे, कर्मचारियों को किसी अन्य स्थान/संस्थान में प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जा सकता है। 

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दोनों ही विधियों में फर्म अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण का कुछ व्यय वहन करती है। इसी कारण से फर्म इस बात पर बल देगी कि प्रशिक्षण के बाद वे कर्मचारी एक निश्चित अवधि तक अवश्य फर्म के पास ही कार्य करें। इस प्रकार फर्म उनके प्रशिक्षण पर किये गये व्यय की उगाही अधिक उत्पादकता से हुए लाभ के रूप में कर पाने में सफल रहती है। कार्य के दौरान प्रशिक्षण पर किया गया व्यय भी इस दृष्टि से मानव पूँजी का स्रोत बन जाता है। एेसे खर्च की तुलना में श्रम उत्पादकता में वृद्धि से हुए लाभ कहीं अधिक होते हैं।

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व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/पलायन करते हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवसन मुख्यतः गाँवों में बेराजगारी के कारण ही होता है। तकनीकी शिक्षा संपन्न अभियंता, डॉक्टर आदि भी अच्छे वेतनमानों की अपेक्षा में दूसरे देशों में चले जाते हैं। प्रवसनों की दोनों ही स्थितियों में परिवहन की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागतें भी प्रवासी श्रमिकों को सहन करनी पड़ती हैं। किंतु नये स्थान पर उनकी कमाई प्रवास से जुड़ी सभी लागतों से कहीं अधिक होती है। अतः प्रवसन पर व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।

व्यक्ति श्रम बाज़ार तथा दूसरे बाज़ार जैसे, शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए व्यय करते हैं। वे यह जानना चाहते हैं, कि विभिन्न प्रकार के कार्यों में वेतनमान क्या हैं या फिर क्या शैक्षिक संस्थाएँ सही प्रकार के कौशल में प्रशिक्षण दे रही हैं और किस लागत पर? यह जानकारी मानव पूँजी में निवेश करने से प्राप्त मानव पूँजी के भंडार का सदुपयोग करने की दृष्टि से बहुत उपयोगी होती है। इसीलिए श्रम बाज़ार तथा अन्य बाज़ारों के विषय में जानकारी प्राप्त करने पर किया गया व्यय भी मानव पूँजी निर्माण का स्रोत है।

बॉक्स 5.1 भौतिक और मानव पूँजी

दोनों ही प्रकार का पूँजी सुविचारित निवेश निर्णयों का परिणाम होता है। भौतिक पूँजी में निवेश का निर्णय अपने ज्ञान के आधार पर लिया जाता है। इस संबंध में उद्यमी के पास अनेक प्रकार के निवेश विकल्पों की आंतरिक प्रतिफल दर का आकलन कर पाने का ज्ञान होता है। इन गणनाओं के बाद ही वह अपना विवेक आधारित निवेश करता है। भौतिक पूँजी का स्वामित्व उस व्यक्ति के सुविचारित निर्णय का परिणाम होता है-भौतिक पूँजी निर्माण मुख्यतः एक आर्थिक और तकनीकी प्रक्रिया है।

मानव पूँजी के निर्माण का महत्वपूर्ण भाग व्यक्ति के जीवन की उस अवधि में होता है, जब वह यह निर्णय लेने मेें असमर्थ होता है कि क्या वह अपनी आमदनी को अधिकतम कर पायेगा या नहीं। बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से संबंधित निर्णय उनके अभिभावक तथा समाज ही करते हैं। उनके समकक्षी शिक्षाविद् और समाज उच्चतर स्तरों (महाविद्यालय/विश्वविद्यालय) पर मानव पूँजी में निवेश संबंधी निर्णय को प्रभावित करते हैं। फिर भी इस स्तर पर मानव पूँजी निर्माण, विद्यालय स्तर पर मानव पूँजी निर्माण, पर निर्भर करता है। मानव पूँजी निर्माण आंशिक रूप से एक सामाजिक प्रक्रिया है और अंशतः मानव पूँजी को धारण करने वालों के सुविचारित निर्णय का प्रतिफल है।

आप जानते ही हैं कि बस जैसी भौतिक पूँजी के स्वामी को सदैव वहाँ उपस्थित नहीं रहना होता, जहाँ वह बस यात्रियों/सामान के परिवहन में प्रयुक्त हो। किंतु उस वाहन को चलाने के ज्ञान से संपन्न चालक को वाहन के साथ ही रहना पड़ता है। भौतिक पूँजी किसी भी अन्य वस्तु की भाँति दृश्य होती है। उसे किसी भी वस्तु की तरह बाज़ार में बेचा जा सकता है। मानव पूँजी अदृश्य होती है-यह धारक के शरीर और मस्तिष्क में रची-बसी होती है। बाज़ार में मानव पूँजी को बेचा नहीं जा सकता, केवल उसकी सेवाओं की बिक्री की जा सकती है इसलिए मानव पूँजी के स्वामी को उसके उत्पादन के स्थान पर उपस्थित होना आवश्यक होता है। भौतिक पूँजी को उसके स्वामी से पृथक किया जा सकता है, किंतु मानव पूँजी का स्वामी से पृथक्करण संभव नहीं होता।

दोनों प्रकार की पूँंजियों में उनके स्थानों की गतिशिलता के आधार पर अंतर होता है। प्रायः कुछ कृत्रिम अपवादों को छोड़ भौतिक पूँजी का विश्व भर में निर्बाध आवागमन चलता रहता है। किंतु मानव पूँजी का प्रवाह इतना निर्बाध नहीं होता, इसके मार्ग में राष्ट्रीयता और संस्कृति की ऊँची बाधाएँ आ जाती हैं। अतः भौतिक पूँजी का निर्माण तो आयात के सहारे भी हो जाता है, किंतु मानवीय पूँजी की रचना तो समाज तथा अर्थव्यवस्था की अंतर्भूत विशेषताओं के अनुरूप सुविचारित नीति निर्धारण संबंधी निर्णयों तथा सरकार और व्यक्तिगत व्यय के आधार पर होती है। समय के साथ-साथ दोनों ही प्रकार की पूँजियों में मूल्य ह्रास होता है। किसी मशीन के निरंतर प्रयोग से वह घिस जाती है और प्रौद्योगिकीय परिवर्तन उसे पुराना घोषित कर देते हैं। मानव पूँजी में आयु के अनुसार कुछ ‘ह्रास’ आता है। किंतु शिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं में निरंतर निवेश से उस ‘ह्रास’ का काफी सीमा तक निराकरण हो सकता है। यह निवेश मानव पूँजी को प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों का सामना करने योग्य भी बना देता है- किंतु भौतिक पूँजी में किसी भी प्रकार से प्रौद्योगिकीय परिवर्तन का सामना करने की क्षमता नहीं आ पाती।

मानव पूँजी द्वारा सृजित हितलाभ के प्रवाह का स्वरूप भी भौतिक पूँजी से अलग होता है। मानव पूँजी से केवल उसका स्वामी ही नहीं वरन् सारा समाज लाभांवित होता है। इसे एक बाह्य हित लाभ कहा जा सकता है। एक सुशिक्षित व्यक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रभावपूर्ण भागीदारी के माध्यम से राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक प्रगति में योगदान करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपने वैयक्तिक स्तर पर तथा आस-पास में सफाई आदि के माध्यम से रोगों का संक्रमण रोक उन्हें महामारियों का रूप धारण नहीं करने देता। मानवीय पूँजी से व्यक्तिगत के साथ-साथ सामाजिक हितलाभों का भी सृजन होता है। किंतु भौतिक पूँजी तो प्रायः निजी लाभ को ही जन्म दे पाती है। पूँजीगत पदार्थों के लाभ उन्हीं को मिल पाते हैं जो उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कीमत चुका सकें।


भौतिक पूँजी की अवधारणा के आधार पर ही मानव पूँजी के वैचारिक आधार की रचना की गयी है। दोनों प्रकार की पूँजी के बीच कुछ समरूपताएँ तथा कुछ प्रभावशाली असमानताएँ हैं (देखें बॉक्स 5.1)।

1316.pngइन्हें कीजिए

चित्र 5.2 को, देखिए और चर्चा कीजिए

(क) समुचित ‘कक्षा’ आयोजित करने के क्या लाभ हैं?

(ख) क्या आप कह सकते हैं कि इस स्कूल में जाने वाले बच्चे गुणवत्ता शिक्षा ग्रहण कर पाएँगे?

(ग) इन स्कूलों के भवन क्यों नहीं हैं?


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चित्र 5.2 मानव पूँजी निर्माणः दिल्ली में अस्थाई रूप से चल रहा एक विद्यालय

मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि

राष्ट्रीय आय में किसका योगदान अधिक होता है? किसी कारखाने के कर्मचारी का या ‘सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ’ का? हम जानते ही हैं कि एक शिक्षित व्यक्ति का श्रम-कौशल अशिक्षित की अपेक्षा अधिक होता है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है। आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि से होता है तो फिर स्वाभाविक ही है कि किसी शिक्षित व्यक्ति का योगदान अशिक्षित की तुलना में कहीं अधिक होगा। एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधानरहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। इसीलिए स्वास्थ्य भी आर्थिक संवृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है। अतः कार्य के दौरान प्रशिक्षण, श्रम बाज़ार की जानकारी, प्रवसन आदि के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य व्यक्ति की उपार्जन क्षमता का संवर्धन करती है।

मानव की संवर्धित उत्पादकता या मानव पूँजी न केवल श्रम की उत्पादकता को बढ़ाती है बल्कि यह साथ ही साथ परिवर्तन को प्रोत्साहित कर नवीन प्रौद्योगिकी को आत्मसात् करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तनों और वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है- जिससे आविष्कारों और नव परिवर्तनों में सहायता मिलती है। इसीलिए शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाने में सहायक होती है।

मानव पूँजी की वृद्धि के कारण आर्थिक संवृद्धि होती है। इसे सिद्ध करने के लिए व्यावहारिक साक्ष्य अभी स्पष्ट नहीं हैं। इसका कारण मापन की समस्यायें हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, स्कूली वर्षों की गणना, शिक्षक-शिक्षार्थी अनुपात और नामांकन दर आदि के आधार पर शिक्षा का मापन उसकी गुणवत्ता को आर्थिक रूप से व्यक्त नहीं कर पाता। इसी प्रकार स्वास्थ्य सेवाओं पर मौद्रिक व्यय, जीवन प्रत्याशा तथा मृत्यु दरों आदि से देश की जनसंख्या के वास्तविक स्वास्थ्य स्तर का सही ज्ञान नहीं होता। यदि इन सूचकों का प्रयोग कर विकसित तथा विकासशील देशों में शिक्षा व स्वास्थ्य स्तरों और प्रतिव्यक्ति आय में सुधारों की तुलना करें तो हमें मानव पूँजी के परिवर्तनों में साहचर्य दिखायी पड़ता है, किंतु प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में एेसी कोई प्रवृत्ति स्पष्ट नहीं होती। दूसरे शब्दों में, विकासशील देशों में मानव पूँजी की संवृद्धि तो बहुत तेजी से हो रही है, किंतु उनकी प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय की वृद्धि उतनी तीव्र नहीं है। यह मानना तर्कसंगत है कि मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूँजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की सृंवद्धि में सहायता मिल सकती है।

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वित्र 5.3 वैज्ञानिक और तकनीकी जन-शक्तिः मानव पूँजी का एक मुख्य घटक है

भारत ने तो बहुत पहले आर्थिक संवृद्धि में मानव पूँजी के महत्व को समझ लिया था। सातवीं पंचवर्षीय योजना में कहा गया है– "एक विशाल जनसंख्या वाले देश में तो विशेष रूप से मानव संसाधनों (मानव पूँजी) के विकास को आर्थिक विकास की युत्तिη में बहुत महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा। उचित शिक्षण प्रशिक्षण पा कर एक विशाल जनसंख्या अपने आप में आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने वाली परिसंपत्ति बन जायेगी। साथ ही यह वांछित दिशा में सामाजिक परिवर्तन भी सुनिश्चित कर देगी।"

सारणी 5.1

शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रकों में विकास के चुने हुए सूचक

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स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण विभिन्न वर्षों के लिए वित्त मंत्रालय, भारत सरकार।

मानव पूँजी (शिक्षा और स्वास्थ्य) तथा आर्थिक संवृद्धि के बीच कारण-प्रभाव संबंध का स्पष्ट निरूपण कठिन होता है किंतु सारणी 5.1 में देख सकते हैं कि ये दोनों क्षेत्र में साथ-साथ संवृद्ध हुए हैं। संभवतः प्रत्येक क्षेत्र की संवृद्धि ने दूसरे क्षेत्र का संवृद्धि को सहारा दिया है।

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चित्र 5.4 आगे का कामभारत को ज्ञान अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना

ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2019 में कहा गया है कि ‘‘भारत 2030-2032 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी जगह बना सकने का इरादा रखता है। भारत अब छठीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है हम पाँच-सात वर्षों में पाँच ट्रिलियन तक पहुँच जाएँगे।

जोकि भारत को विश्वस्तर पर चौथे या पाँचवे स्थान ले जायेगा। अभी तक हमने भारत को विश्व के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उसके निहितार्थी पर गौर नहीं किया है। यह एक बदलते परिवेश का पूर्णतः नया अनुभव होगा। इस प्रकार से एेसे पारिस्थतिक तंत्र, हम सभी को विभिन्न दिशाओं में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि इन उद्देश्यों की पूर्ति की सम्भावनाओं का फैलाव समस्त देश में हो सके।

क्या हम अपने भारत देश को इस आत्मविश्वास के साथ अमेरिका और चीन के समक्ष विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पहुँचा सकते हैं और आगामी वर्षों में इस स्थान को बनाये रखने में सक्षम हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि मज़बूत शिक्षा प्रणाली पर आधारित ज्ञानवर्धक समाज का गठन हो, जिसमें ज्ञान की मागों, प्रौद्योगिकीय और समाज के काम करने के तरीकों में बदलाव के तत्वों का समावेश हो। इस नीति का दृष्टिकोण यह सुझाव देता है कि केवल मानव पूँजी का निर्माण ही भारत की अर्थव्यवस्था को उच्च विकास की राह पर ले जा सकता है।

बॉक्स 5.2 ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत

भारत में पिछले दो दशकों से सॉफ्टवेयर उद्योग ने बहुत प्रगति का उत्साहजनक प्रदर्शन किया है। अब तो उद्यमी, नौकरशाह और राजनेता सभी इस बारे में अपने विचार अभिव्यक्त कर रहे हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर भारत किस प्रकार अपने आपको ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर सकता है। अर्थतंत्र में परिवर्तित कर सकता है। कुछ ग्रामीणों द्वारा ई-मेल (E-Mail) के प्रयोग के उदाहरणों को एेसे व्यापक परिवर्तन का संकेत माना जा रहा है। इसी प्रकार से ई-प्रशासन को भविष्य के एक मार्ग के रूप में जाना जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी का सही मूल्यमान तो वर्तमान आर्थिक विकास के स्तर पर निर्भर रहता है। क्या आप सोच सकते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना, प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ मानव विकास करने में सक्षम होंगी? चर्चा करें।

भारत में आगे चलकर मानव पूँजी निर्माण ही इसकी अर्थव्यवस्था को आर्थिक संवृद्धि के उच्च पथ पर ले जायेगा।

5.4 मानव पूँजी और मानव विकास

ये दोनों पारिभाषिक शब्द मिलते-जुलते भले ही प्रतीत होते हैं, पर इनके बीच स्पष्ट अंतर है। मानव पूँजी की अवधारणा शिक्षा और स्वास्थ्य को श्रम की उत्पादकता बढ़ाने का माध्यम मानती है। मानव विकास इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य मानव कल्याण के अभिन्न अंग हैं, क्योंकि जब लोगों में पढ़ने-लिखने तथा सुदीर्घ स्वस्थ जीवन यापन की क्षमता आती है, तभी वह एेसे अन्य चयन करने में सक्षम हो पाते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण मानते हैं। मानव पूँजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादकता में वृद्धि का है। इस मतानुसार शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर उससे वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में सुधार नहीं हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्धन तो होना ही चाहिए। अतः श्रम की उत्पादकता में सुधार के पक्ष को अनदेखा करते हुए भी बुनियादी शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का अपना अलग महत्व हो जाता है। इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति का बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर अधिकार सिद्ध हो जाता है। दूसरे शब्दों में, समाज के प्रत्येक सदस्य को साक्षर तथा स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार होता है।

5.5 भारत में मानव पूँजी निर्माण की स्थिति

इस खंड में हम भारत में मानव पूँजी निर्माण का विश्लेषण करने जा रहे हैं। हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि मानव पूँजी निर्माण शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्य स्थल प्रशिक्षण, प्रवसन और सूचना निवेश का परिणाम है। इनमें से शिक्षा और स्वास्थ्य मानव पूँजी निर्माण के दो सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हम जानते हैं कि भारत देश की प्रशासन व्यवस्था संघीय है जिसमें केंद्र, राज्य तथा स्थानीय निकाय (नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत आदि) हैं। भारत के संविधान ने सभी स्तर के प्रशासकीय निकायों के कार्यों, दायित्वों को भी बहुत स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है। इसी प्रकार शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों पर व्यय तीनों ही प्रशासकीय स्तरों पर साथ-साथ वहन किया जाता है। स्वास्थ्य क्षेत्र का विस्तृत विश्लेषण अध्याय 8 में किया जा चुका है। अतः यहाँ हम केवल शिक्षा क्षेत्रक का विश्लेषण करेंगे।

1451.pngइन्हें कीजिए

► यदि एक निर्माण श्रमिक, नौकरानी, धोबी या फिर स्कूल का चपरासी बीमारी के कारण लंबे समय तक काम पर नहीं आ पाया हो तो जानने का प्रयास करें कि इन पर क्या प्रभाव पड़ा हैः

(क) उसके रोज़गार की सुरक्षा

(ख) उसकी मजदूरी/वेतन

इन प्रभावों के संभावित कारण क्या होंगे?

क्या आप जानते हैं कि भारत मेें शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की देख-रेख कौन करता है? भारत में शिक्षा क्षेत्रक के विश्लेषण से पूर्व यहाँ हम शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रकों में सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता पर विचार करेंगे। हम जानते ही हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल निजी तथा सामाजिक लाभों को उत्पन्न करती है। इसी कारण इन सेवाओं के बाज़ार में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं का अस्तित्व है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है। मान लीजिए, जब भी किसी बच्चे को किसी स्कूल या फिर स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में भर्ती करा दिया जाता है, जहाँ आवश्यक सुविधाएँ नहीं प्रदान की जा रही हों तो इससे पहले कि बच्चे को किसी अन्य संस्थान में स्थानांतरित किए जाने का निर्णय लिया जाए, पर्याप्त मात्रा में हानि हो चुकी होगी। यही नहीं, इन सेवाओं के व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ताओं और लागतों के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती। इन परिस्थितियों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही संस्थाएँ एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती हैं। यहाँ सरकार की भूमिका का एक स्वरूप यह हो सकता है कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार सेवाएँ देने तथा उनकी उचित कीमत उगाहने को बाध्य करे।

भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् आती हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग मंत्रालय और विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् आदि कार्य कर रही हैं।

भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ जनसंख्या का एक विशाल वर्ग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहा है, लोग बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर पर्याप्त व्यय नहीं कर सकते। यही नहीं भारत की अधिकांश जनता अति विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल और उच्च शिक्षा का भार वहन नहीं कर पाती। जब बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को नागरिकों का अधिकार मान लिया जाता है, तो यह अनिवार्य है कि सभी सुपात्र नागरिकों को, विशेषकर सामाजिक दृष्टि से दलित रहे वर्गों को, सरकार ये सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान करे। शत-प्रतिशत साक्षरता और भारतीयों की औसत उपलब्धियों में प्राप्त वृद्धि के लिए केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारें पिछले कई वर्षों से अपने शिक्षा क्षेत्रक पर व्यय में वृद्धि करती आ रही हैं।

5.6 शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि

क्या आप जानते हैं कि सरकार शिक्षा पर कितना व्यय करती है? सरकार द्वारा किए गये शिक्षा पर कुल व्यय को अधिक सार्थक रूप से समझने के लिए हम इस व्यय को दो प्रकार से व्यत्तη करेंगे–(क)कुल सरकारी व्यय में इसका प्रतिशत तथा (ख)सकल घरेलू उत्पाद में इसका प्रतिशत।

1429.pngइन्हें कीजिए

► राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् के उद्देश्यों तथा कार्यों के विषय में जानकारी का संकलन करें।

कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर व्यय का प्रतिशत सरकारी योजनाओं में शिक्षा के महत्व का सूचक है। सकल घरेलू उत्पाद में शैक्षिक व्यय का प्रतिशत यह व्यक्त करता है कि व्यक्तियों की आय का कितना भाग देश के शैक्षिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है। 1952 से 2014 के बीच कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर व्यय 7.92 प्रतिशत से बढ़कर 15.7 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद में इसका प्रतिशत 0.64 से बढ़कर 4.13 प्रतिशत हो गया है। इस संपूर्ण समयावधि में शैक्षिक व्यय की वृद्धि समान नहीं रही है इसमें अनियमित रूप से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। यदि इस सरकारी व्यय के साथ हम व्यक्तियों के द्वारा किया गया निजी व्यय तथा परोपकारी (धर्मार्थ) संस्थाओं के शैक्षिक व्यय को शामिल कर लें तो शिक्षा पर कुल व्यय और अधिक होना चाहिए। कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर खर्च होता है। उच्चतर/तृतीयक शैक्षिक संस्थाओं (उच्च शिक्षा के संस्थानों जैसे- महाविद्यालयों, बहुतकनीकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों आदि) पर होने वाला व्यय सबसे कम है। यद्यपि औसत रूप से सरकार उच्चतर शिक्षा पर बहुत कम व्यय करती है, किंतु प्रति विद्यार्थी उच्चतर शिक्षा पर व्यय प्राथमिक शिक्षा की तुलना में अधिक है। इसका, अर्थ यह नहीं है कि वित्तीय संसाधनों को उच्चतर शिक्षा से प्राथमिक शिक्षा की ओर कर दिया जाना चाहिए। जैसे-जैसे हम विद्यालय शिक्षा का प्रसार करेंगें तो हमें उच्चतर शैक्षिक संस्थानों से प्रशिक्षित और अधिक शिक्षकोें की आवश्यकता होगी। अतः शिक्षा के सभी स्तरों पर व्यय में वृद्धि करना चाहिए।

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चित्र 5.5 शैक्षिक आधारिक सरंचनाओं में निवेश अपरिहार्य


1543.pngइन्हें कीजिए

► विभिन्न स्तरों पर विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों का अध्ययन कीजिए।

(क) प्राथमिक स्तर के विद्यालय छोड़ने वाले छात्र।

(ख) आठवीं कक्षा के बाद छोड़ने वाले छात्र।

(ग) दसवीं कक्षा के बाद छोड़ने वाले छात्र। कारण ज्ञात कीजिए तथा कक्षा में चर्चा कीजिए।

► विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों से बाल श्रम को बढ़ावा मिल रहा है। बताएँ कि इससे कैसे मानव-पूँजी की हानि हो रही है?

वर्ष 2014-15 प्रारंभिक शिक्षा पर प्रति विद्यार्थी होने वाले सार्वजनिक व्यय में राज्यों के बीच काफी अंतर है। जहाँ हिमाचल प्रदेश में इसका उच्च-स्तर 34,651रु०, वहीं बिहार में यह मात्र 4,088 रु० है। इस प्रकार की विषमताओं के कारण ही विभिन्न राज्यों में शिक्षा के अवसरों और शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर में बहुत भारी अंतर हो जाता है।

विभिन्न आयोगों के द्वारा शिक्षा व्यय के वांछित स्तर के साथ यदि शिक्षा व्यय की तुलना की जाय तो इसकी अपर्याप्तता समझ में आ सकती है। 55 वर्ष पूर्व (1964-66) नियुक्त शिक्षा आयोग ने सिफारिश की थी कि शैक्षिक उपलब्धियों की संवृद्धि दर मेें उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए। वर्ष 2009 में भारत सरकार ने बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम का कानून बनाया है जिसके अन्तर्गत 6-14 वर्ष के आयु-वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। 1999 में भारत सरकार द्वारा नियुक्त तापस मजूमदार समिति ने अनुमान लगाया था कि देश के 6-14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने के लिए (1998-99 से 2000-07) के दस वर्षों की अवधि में लगभग 1.3 लाख करोड़ रु. व्यय करना होगा। सकल घरेलू उत्पाद के 6 प्रतिशत के स्तर की तुलना में वांछित वर्तमान 4 प्रतिशत व्यय का स्तर बहुत कम है। आने वाले वर्षाें में 6 प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुँचने की आवश्यकता है, जैसा कि सिद्धांत रूप में स्वीकार किया गया है।

भारत सरकार ने सभी केंन्द्रीय करों पर 2 प्रतिशत "शिक्षा उपकार" लगाना भी प्रारंभ किया है। शिक्षा उपकार से प्राप्त राजस्व को प्राथमिक शिक्षा पर व्यय करने हेतु सुरक्षित रखा है। साथ ही सरकार ने उच्च शिक्षा संवर्धन के लिए भी एक विशाल धन राशि स्वीकृत कराने की बात की है। उच्च शिक्षार्थियों के लिए एक नयी ऋण योजना की भी घोषणा की गयी है।

भारत में शैक्षिक उपलब्धियाँ

सामान्यतया किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियाें का आकलन वयस्क साक्षरता स्तर, प्राथमिक शिक्षा संपूर्ति दर और युवा साक्षरता दर द्वारा किया जाता है। सारणी 5.2 मेें भारत की इन दराें के दो दशकों के आँकड़े दिये गये हैं।

सारणी 5.2

भारत में शैक्षिक उपलब्धियाँ

विवरण 1990 2000 2011 2015
1. वयस्क साक्षरता दर (15 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में साक्षराें का प्रतिशत)
1.1 पुरुष 62 68 79 82
1.2 महिलाएँ 38 45 59 66
2. प्राथमिक शिक्षा संपूूर्तिदर (संबद्ध वर्ग प्रतिशत)
2.1 पुरुष 78 85 92 93
2.2 महिलाएँ 61 69 94 96
3. युवा साक्षरता दर (15 से 24 आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत)
3.1 पुरुष 77 80 90 93
3.2 महिलाएँ 54 65 82       90    

5.7 भविष्य की संभावनाएँ

सब के लिए शिक्षा–अभी भी एक सपना है। यद्यपि वयस्क और युवा साक्षरता दराें में सुधार हो रहा है, किंतु आज भी देश में निरक्षराें की संख्या उतनी ही है जितनी स्वाधीनता के समय भारत की जनसंख्या थी। भारत की संविधान सभा ने 1950 में संविधान को पारित करते समय संविधान के नीति निदेशक तत्वों में स्पष्ट किया था कि सरकार संविधान पारित होने के दस साल के अंदर 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करेगी। इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेते तो अब तक शत-प्रतिशत साक्षरता हो गई होती।

लिंग समता–पहले से बेहतरः अब साक्षरता में पुरुषों और महिलाआें के बीच का अंतर कम हो रहा है जो लिंग-समता की दिशा में एक सकारात्मक विकास है। नारी शिक्षा को भारत में और प्रोत्साहन दिए जाने के कई कारण हैं। जैसे, शिक्षा नारी की आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्तर में सुधार और साथ ही स्री शिक्षा, प्रजनन दर और स्रियाें व बच्चाें के स्वास्थ्य देखभाल पर अनुकूल प्रभाव डालती है। अतः हमें साक्षरता स्तर सुधारने के अपने प्रयासाें में शिथिलता नहीं आने देनी चाहिए। अभी हमें शत-प्रतिशत वयस्क साक्षरता दर प्राप्त करने के लिए अनेक मंजिलें को पार करनी है।

उच्च शिक्षा–लेने वालों की कमीः भारत में शिक्षा का पिरामिड बहुत ही नुकीला है, जो दर्शाता है कि उच्चतर शिक्षा स्तर तक बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं। यही नहीं, शिक्षित युवाआें की बेरोजगारी दर भी उच्चतम है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्नातक व ऊपर अध्ययन किया हो युवा पुरुषों के बीच बेरोजगारी दर 19 प्रतिशत थी। उनके शहरी समकक्षों में 16 प्रतिशत अपेक्षाकृत कम स्तर पर बेरोजगारी दर थी। सबसे गंभीर रूप से प्रभावित लोगों में लगभग 30 प्रतिशत बेरोजगार हैं जो युवा ग्रामीण महिला थीं। इसके विपरीत, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर के शिक्षित युवाओं में से केवल 3-6 प्रतिशत बेरोजगार थे। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार इस स्थिति में अभी तक सुधार अपेक्षित है। अतः सरकार को उच्च शिक्षा के लिए अधिक धन का आबंटन करना चाहिए तथा उच्च शिक्षा संस्थानों के स्तर में सुधार लाना चाहिए ताकि वहाँ प\ढ़ रहे छात्र रोजगार योग्य कौशल प्राप्त कर सकें जब कम प\ढ़े-लिखे लोगों से तुलना की जाती है, तो शिक्षित लोगों का एक ब\ड़ा अनुपात बेरोजगार है। क्यों?

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चित्र 5.6 विद्यालय छोड़ने वाले छात्र बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं जिससे मानव पूँजी का क्षय होता है

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चित्र 5.7 उच्च शिक्षाः कम प्राप्तकर्त्ता

5.8 निष्कर्ष

मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के आर्थिक सामाजिक लाभाें से तो सभी परिचित हैं। भारत में केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्रकाें के विकास के लिए पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था का प्रावधान करती आ रही हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ समाज के सभी वर्गों को सुनिश्चित रूप से सुलभ करायी जानी चाहिए, ताकि आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ समता की प्राप्ति भी हो सके। भारत के पास वैज्ञानिक और तकनीकी जन–शक्ति है। समय की माँग है कि गुणात्मकता में सुधार करें तथा इस प्रकार की परिस्थितियाें का भी निर्माण करें कि इन्हें भारत में पर्याप्त रूप से प्रयुक्त किया जा सके।

पुनरावर्तन

► शिक्षा में निवेश मानव को मानव पूँजी में परिवर्तित करता है। इस प्रकार मानव पूँजी बढ़ी हुई उत्पादकता का प्रतिनिधित्व करती है। यह एक अर्जित योग्यता है और समझ बूझ से किए गए निवेशगत निर्णयों का परिणाम है, जो भविष्य में आय के स्रोतों में वृद्धि की अपेक्षा से किए जाते हैं।

► शिक्षा में निवेश, कार्य स्थल प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, प्रवसन और सूचना मानव पूँजी निर्माण के स्रोत हैं।

► भौतिक पूँजी की संकल्पना मानव पूँजी की संकल्पना निर्धारण का आधार है। पूँजी निर्माण के दोनों प्रकारों में कुछ समानताएँ और कुछ विषमताएँ हैं।

► मानव पूँजी निर्माण में निवेश को प्रभावपूर्ण तथा संवृद्धि बढ़ाने वाला माना जाता है।

► मानव विकास इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों मनुष्यों के कल्याण के लिए अभिन्न हैं, क्योंकि जब लोगों के पास पढ़ने और लिखने तथा दीर्घायु तथा स्वस्थ जीवन की योग्यता होगी, तभी वे उन मूल्यों का मापन करने में सक्षम होंगे जिनको वे महत्व देते हैं।

► कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर किये जाने वाले व्यय का प्रतिशत सरकार द्वारा शिक्षा को दिए गए महत्व को दर्शाता है।



अभ्यास

1. किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या होते हैं?

2. किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियाें के दो सूचक क्या होंगे?

3. भारत में शैक्षिक उपलब्धियाें में क्षेत्रीय विषमताएँ क्यों दिखाई दे रही हैं?

4. मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के भेद को स्पष्ट करें।

5. मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस प्रकार से अधिक व्यापक है?

6. मानव पूँजी के निर्माण में किन कारकों का योगदान रहता है?

7. सरकारी संस्थाएँ भारत में किस प्रकार स्कूल एवं अस्पताल की सुविधाएँ उपलब्ध करवाती है?

8. शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्वपूर्ण आगत माना जाता है। क्यों?

9. पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों पर चर्चा कीजिए।

(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना (ख) प्रवसन पर व्यय

10. मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय संबंधी जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण करें।

11. मानव पूँजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में किस प्रकार सहायक होता है?

12. विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताआें में कमी की प्रवृत्ति पायी गयी है। टिप्पणी करें।

13. किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।

14. समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?

15. किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्याें आवश्यक होता है?

16. मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें।

17. भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।

18. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्राें में सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपाें के पक्ष में तर्क दीजिए।

19. भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?

20. क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानाें में लिए जाने वाले शुल्काें की संरचना निर्धारित करनी चाहिए। यदि हाँ, तो क्याें?

अतिरिक्त गतिविधियाँ

1. पता करें कि मानव विकास सूचक की रचना कैसे की जाती है। मानव विकास सूचक के अनुसार भारत की विश्व में क्या स्थिति है?

2. क्या निकट भविष्य में भारत एक ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है? कक्षा में इस पर चर्चा करें।

3. सारणी 5.2 के आँकड़ाें की व्याख्या करें।

4. एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में आप शिक्षा प्रसार में क्या योगदान देंगे। (उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति एक शिक्षा)

5. शिक्षा, स्वास्थ्य और श्रम संबंधी सूचना देने वाले स्रोतों की सूची बनाइए।

6. मानव संसाधन विकास मंत्रालय की वार्षिक रिपार्टों को पढ़कर उनका सार संक्षेप करें। केंद्रीय आर्थिक सर्वेक्षण के सामाजिक क्षेत्रक अध्याय को पढ़ें। इन्हें संबंधित मंत्रालयों की वेबसाइटों से डाउनलोड किया जा सकता है।

संदर्भ

पुस्तकें

प्रुीमेन रिचर्ड, 1976. द ओवरएजुकेटिड अमेंरिकन, एकेडमिक प्रेस, न्यूयॉर्क ।

बेकर, ग्रे एस. 1964. ह्यूमन कैपिटल 2वॉ एंडिशन, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यूयॉर्क ।

सिद्धार्थन्, एन.एस. एण्ड नारायनन के. (एडिटर). 2013, ह्यूमन कैपिटल एण्ड डवलपमेंट, स्द्रिंगर, नयी दिल्ली।

सरकारी रिपोर्टें

भारत, मानव विकास रिपोर्ट 2011-12, योजना आयोग, भारत सरकार।

शैक्षिक सँख्यिकी, एक दृष्टि में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार (पिछले कुछ वर्षों की रिपोर्ट देखें)।

वार्षिक रिपोर्टें, विभिन्न वर्षों के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ढाँचा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

भारत में शिक्षा विषयक जानकारी देने वाली कुछ वेबसाइट्स

http://epathshala.nic.in

www.education.nic.in

www.cbse.nic.in

www.ugc.ac.in

www.aicte.ernet.in

www.ncert.nic.in

स्वास्थ्य क्षेत्र विषयक जानकारी के लिए

www.mohfw.nic.in

www.icmv.nic.in

भारतीय अर्थव्यवस्था संबंधित जानकारी के लिए

www.finmin.nic.in

www.mospi.nic.in

http://nroer.gov.in