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आधारिक संरचना

स अध्याय को पढ़ने के बाद आप

सामाजिक और आर्थिक आधारिक संरचना के क्षेत्रों में भारत को कौन-सी प्रमुख चुनौतियाें का सामना करना पड़ रहा है, इसे समझ सकेंगे;

आर्थिक विकास में आधारिक संरचना की भूमिका को जानेंगे;

• आधारिक संरचना के प्रमुख अंग के रूप में ऊर्जा की भूमिका को समझेंगे;

• ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रकाें की समस्याएँ और संभावनाओं के बारे में जानकारी
प्राप्त करेंगे;

• भारत में स्वास्थ्य की आधारिक संरचना के विषय में जानेंगे।

अनेक वस्तुएँ जिनकी हमें आवश्यकता है, प्रतीक्षा कर सकती हैं; लेकिन एक बच्चा नहीं। उसे हम ‘कल’ नहीं कह सकते। उसका नाम ‘आज’ है।

-चीली कवि गबरेयल्ला मिस्ट्रल

एेसा ही आधारिक संरचना के साथ है।

8.1 परिचय

क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि भारत के कुछ राज्य, अन्य क्षेत्रों के कुछ राज्यों के मुकाबले अधिक अच्छी तरह से क्यों कार्य कर रहे हैं? कृषि और बागवानी के उत्पादन में क्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समृद्ध हो गए हैं? औद्योगिक तौर पर महाराष्ट्र और गुजरात अन्य राज्यों की अपेक्षा आगे क्यों हैं? स्वयं ईश्वर देश के रूप में प्रसिद्ध केरल राज्य साक्षरता, स्वास्थ्य की देखभाल और सफाई में कैसे प्रवीणता प्राप्त कर गया और बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है? कर्नाटक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग सारे विश्व का ध्यान क्यों आकर्षित करता है?

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चित्र 8.1 संवृद्धि के मार्गों को जोडने वाली सड़कें

यह सब इसीलिए है क्योंकि इन राज्यों में अन्य राज्यों की अपेक्षा उन क्षेत्रों में बेहतर आधारिक संरचना है, जिनमें वे आगे बढ़े हुए हैं। कुछ राज्यों के पास बेहतर सिंचाई सुविधाएँ हैं। कुछ राज्यों में परिवहन की अच्छी सुविधा है या वे बंदरगाह के निकट स्थित हैं, जिसमें उन्हें अपने विभिन्न विनिर्माण उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल आसानी से मिल जाता हैं। कर्नाटक में बंगलौर जैसे शहर अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करते हैं, क्योंकि वे विश्वस्तरीय संचार सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। ये समस्त सहयोगी संरचना जो किसी एक देश के विकास को संभव बनाती हैं, उस देश की आधारिक संरचना का निर्माण करती हैं। फिर, आधारिक संरचना किस प्रकार से विकास को संभव करती हैं?

8.2 आधारिक संरचना क्या हैं?

आधारिक संरचना औद्योगिक व कृषि उत्पादन, घरेलू व विदेशी व्यापार और वाणिज्य के प्रमुख क्षेत्रों में सहयोगी सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। इन सेवाओं में सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बाँध, बिजली घर, तेल व गैस, पाईपलाइन, दूरसंचार सुविधाएँ, स्कूल-कॉलेज सहित देश की शैक्षिक व्यवस्था, अस्पताल व स्वास्थ्य व्यवस्था, सफाई, पेयजल और बैंक, बीमा व अन्य वित्तीय संस्थाएँ तथा मुद्रा प्रणाली शामिल हैं। इनमें से कुछ सुविधाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर पड़ता है, जबकि कुछ अन्य अर्थव्यवस्था के सामजिक क्षेत्रकों के निर्माण में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं।

1486.pngइन्हें कीजिए

► अपने क्षेत्र में या पड़ोस में आप अनेक प्रकार की आधारिक संरचनाओं का उपयोग करते हैं। उन सबकी सूची बनायें। आपके क्षेत्र को कुछ और आवश्यकताएँ हो सकती हैं। अलग से उनकी सूची बनायें।


कुछ लोग आधारिक संरचना को दो श्रेणियों में बाँटते हैं-सामाजिक और आर्थिक। ऊर्जा, परिवहन और संचार आर्थिक श्रेणी में आते हैं जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास सामाजिक आधारिक संरचना की श्रेणी में आते हैं।

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चित्र 8.2 विद्यालय किसी देश की महत्वपूर्ण आधारिक संरचना

8.3 आधारिक संरचना की प्रासंगिकता

आधारिक संरचना एेसी सहयोगी प्रणाली है, जिस पर एक आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की कार्यकुशल कार्यप्रणाली निर्भर करती है। आधुनिक कृषि भी बीजों, कीटनाशक दवाइयों और खाद के तीव्र व बड़े पैमाने पर परिवहन के लिए इस पर निर्भर करती है। इसके लिए यह आधुनिक सड़कों, रेल और जहाजी सुविधाओं का उपयोग करती हैं। वर्तमान समय में कृषि को बहुत बड़े पैमाने पर कार्य करने की आवश्यकता के कारण बीमा और बैंकिग सुविधाओं पर भी निर्भर होना पड़ता है।

संरचनात्मक सुविधाएँ एक देश के आर्थिक विकास में उत्पादन के तत्वों की उत्पादकता में वृद्धि करके और उसकी जनता के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके अपना योगदान करती हैं। अपर्याप्त आधारिक संरचना से स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार से बुरा असर पड़ सकता है। जलापूर्ति और सफाई में सुधार से प्रमुख जल संक्रमित बीमारियों से अस्वस्थता में कमी आती है और बीमारी के होने पर भी उसकी गंभीरता कम होती है। जल, सफाई और स्वास्थ्य के बीच इस स्पष्ट संबंध के अलावा यह भी हम जानते हैं कि परिवहन और संचार की संरचनात्मक सुविधा की गुणवत्ता का प्रभाव स्वास्थ्य देखभाल पर पड़ सकता है। विशेषकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में परिवहन से जुड़े वायु प्रदूषण और बचाव जोखिमों का असर रुग्णता पर पड़ सकता है।

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चित्र 8.3 बाँध : विकास के मंदिर

8.4 आधारिक संरचना की स्थिति

पारंपरिक रूप से भारत में आधारिक संरचना को विकसित करने का पूरा उत्तरदायित्व सरकार का था। लेकिन यह पाया गया कि आधारिक संरचना में सरकार का निवेश अपर्याप्त था। आजकल निजी क्षेत्रक ने स्वयं और सरकार के साथ संयुक्त भागीदारी कर आधारिक संरचना के विकास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है।

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चित्र 8.4 पक्के घर के साथ स्वच्छ पेय जलः अभी भी एक स्वप्न

हमारी बहुसंख्य आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। विश्व में अत्यधिक तकनीकी उन्नति के बावजूद ग्रामीण महिलाएँ अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु फसल का बचा-खुचा, गोबर और जलाऊ लकड़ी जैसे जैव ईंधन का आज भी उपयोग करती हैं। ईंधन, जल और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के लिए उन्हें दूर-दूर तक जाना पड़ता है। 2011 की जनगणना के आँकड़े यह बताते हैं कि ग्रामीण भारत में केवल 56 प्रतिशत परिवारों में बिजली की सुविधा है, जबकि 43 प्रतिशत परिवारों में आज भी मिट्टी के तेल का उपयोग होता है। ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 85 प्रतिशत परिवार खाना बनाने में जैव-ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। केवल 31 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में लोगों को नल का पानी उपलब्ध है। लगभग 69 प्रतिशत लोग कुआँ, टैंक, तालाब, झरना, नदी, नहर आदि जैसे पानी के खुले स्रोतों से पानी पीते हैं। ग्रामीण इलाकोें में केवल 30 प्रतिशत लोगों को सफाई की सुविधाएँ प्राप्त थीं।

1557.pngइन्हें कीजिए

समाचार पत्र पढ़ते हुए आप भारत निर्माण, विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle), विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, निर्माण परिचालन हस्तातंरण (Built Operate Transfer) निजी सार्वजनिक भागीदारी इत्यादि शब्दों को पढ़ते हैं। स्क्रैपबुक में एेसे शब्दों का प्रयोग करने वाले समाचारों को चिपकाइए। इन शब्दों का आधारिक संरचना से क्या संबंध है।

इस पाठ के अंत में दिये गये संदर्भों का उपयोग करते हुए अन्य आधारिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

सारणी 8.1 देखें। इसमें भारत में उपलब्ध कुछ आधारिक संरचना सुविधाओं की तुलना कुछ अन्य देशों में उपलब्ध सुविधाओं से की गई है। यह सर्वविदित है कि आधारिक संरचना विकास की नींव है, लेकिन भारत में अभी भी इनकी बहुत कमी है। भारत आधारिक संरचना पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 30 प्रतिशत निवेश करता है जो कि चीन और इंडोनेशिया से काफी कम है।

सारणी 8.1

भारत तथा अन्य देशों में कुछ आधारिक संरचना
देश सकल घरेलू
उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निवेश*
सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं का उपयोग करने वाले (%) 
सुरक्षित रूप से प्रबंधित सेवाओं का उपयोग करने वाले (%)
मोबाइल
प्रयोक्ता/1000 लोग
ऊर्जा की खपत(मिलियन टन तेल के बराबर)
चीन 44 96 72 115 3274
हांगकांग 22 100 91.8 259 31
भारत 30 94 40 87 809
दक्षिण कोरिया 31 98 99.9 130 301
पाकिस्तान 16 35 64 73 85
सिंगापुर 28 100 100 146 88
इण्डोनेशिया 34 87 61 120 186

स्रोतः विश्व विकास सूचक 2019 (www.worldbank.org.)सकल पूँजी सृजन को दर्शाता है। 
नोटः  विश्व ऊर्जा 2019 बी पी सांख्यिकी समीक्षा 69 संस्करण।
            

कुछ अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया है कि अबसे कुछ दशकों के बाद भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। इसके लिए भारत को आधारिक संरचना सुविधाओं में निवेश को बढ़ाना होगा। किसी भी देश में आय में वृद्धि के साथ-साथ आधारिक संरचना के गठन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। अल्प आय वाले देशों के लिये सिंचाई, परिवहन और बिजली जैसी बुनियादी आधारिक संरचना सेवाएँ अधिक महत्वपूर्ण हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएँ परिपक्व होती हैं और उनकी बुनियादी उपयोग के योग्य माँगों की पूर्ति होती है, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी कम होती जाती है और सेवा से संबंधित आधारिक संरचना की आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि उच्च आय वाले देशों में बिजली और दूरसंचार की आधारिक संरचना का हिस्सा अधिक होता है। अतः आधारिक संरचना का विकास और आर्थिक विकास साथ-साथ होते हैं। काफी हद तक कृषि सिंचाई सुविधाओं के पर्याप्त विकास व विस्तार पर निर्भर करती है। औद्योगिक प्रगति बिजली उत्पादन, परिवहन और संचार के विकास पर निर्भर करती है। यह स्पष्ट है कि यदि आधारिक संरचना की ओर उचित ध्यान नहीं दिया गया, तो इससे आर्थिक विकास में गंभीर रुकावटें आएँगी। इस अध्याय में हमारा ध्यान दो प्रकार की आधारिक संरचनाओं की ओर होगा, जिनका संबंध ऊर्जा और स्वास्थ्य से है।

8.5 ऊर्जा

हमें ऊर्जा की आवश्यकता क्यों पड़ती हैं? किन स्वरूपों में यह उपलब्ध है? किसी राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्थान है, साथ ही यह उद्योगों के लिए भी अनिवार्य है। अब इसका कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों जैसे खाद, कीटनाशक और कृषि-उपकरणों के उत्पादन और यातायात में उपयोग भारी स्तर पर हो रहा है। घरों में इसकी आवश्यकता भोजन बनाने, घरों को प्रकाशित करने और गर्म करने के लिए होती है। क्या आप ऊर्जा के बिना किसी उपयोगी वस्तु के उत्पादन या सेवा की कल्पना कर सकते हैं?

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चित्र 8.5 ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत ईंधन की लक\ड़ी

ऊर्जा के स्रोतः 

ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक स्रोत होते हैं। व्यावसायिक स्रोतों में ईंधन की लकड़ी, पेट्रोल और बिजली आते हैं क्योंकि उन्हें खरीदा और बेचा जाता है। ऊर्जा के गैर-व्यावसायिक स्रोतों में जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा (Waste) और सूखा गोबर आते हैं। ये गैर-व्यावसायिक हैं, क्योंकि ये हमें प्रकृति/जंगलों में मिलते हैं।

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चित्र 8.6 बैलगाड़ी अभी भी ग्रामीण परिवहन बाजार का महत्वपूर्ण माध्यम

आमतौर पर ऊर्जा के व्यावसायिक स्रोत (पनबिजली को छोड़कर) समाप्त हो जाते हैं जबकि गैर-व्यवसायिक स्रोतों का पुनर्नवीनीकरण हो सकता है। भारतीय परिवारों में 60 प्रतिशत से अधिक परिवार अपनी नियमित भोजन और गर्म करने की आवश्यकताओं के लिए ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों पर निर्भर हैं।

ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतः

ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक स्रोतों को हम ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कहते हैं। ऊर्जा के तीन और स्रोत हैं जिन्हें हम आमतौर पर गैर-पारंपरिक स्रोत कहते हैं, वे हैं-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वार ऊर्जा। उष्ण प्रदेश होने के कारण भारत में इन तीनों प्रकार की ऊर्जाओं का उत्पादन करने की असीमित संभावनाएँ हैं। एेसा तभी संभव होगा जबकि कोई सस्ती प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाये या और भी सस्ती प्रौद्योगिकी विकसित की जाये।

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चित्र 8.7 ऊर्जा का अन्य स्रोत पवन चक्की

व्यावसायिक ऊर्जा की उपभोग पद्धतिः 

भारत में ऊर्जा के कुल उपभोग का 74 प्रतिशत व्यावसायिक ऊर्जा से पूरा होता है। इसमें लिग्नाइट कोयला शामिल है, जिसका 74 प्रतिशत का अंश सबसे अधिक है। इसमे तेल (10 प्रतिशत), प्राकृतिक गैस (9 प्रतिशत) और जल और अन्य नए और नवीकरणीय ऊर्जा (7 प्रतिशत) शामिल हैं। जलाऊ लकड़ी, गाय का गोबर और कृषि का कूड़ा-कचरा आदि गैर-व्यावसायिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग भारत में कुल ऊर्जा उपयोग का 26 प्रतिशत से ज्यादा है। भारत के ऊर्जा क्षेत्रक की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसका अर्थव्यवस्था से भी संबंध है, कि हमें पेट्रोल और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर होना पड़ता है और निकट भविष्य में इस निर्भरता में क्रमिक वृद्धि होगी।

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चित्र 8.8 सौर ऊर्जा के लिए बड़ी संभावनाएँ


सारणी 8.2 में व्यावसायिक ऊर्जा के उपयोग की क्षेत्रकवार पद्धति दी गई है। 1953-54 में परिवहन क्षेत्रक व्यावसायिक ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता था। लेकिन परिवहन क्षेत्रक के अंश में निरंतर गिरावट आई है जबकि घर, कृषि तथा अन्य क्षेत्रक उपयोग में वृद्धि हो रही है। समस्त व्यावसायिक ऊर्जा उपयोग में तेल और गैस का अंश सबसे अधिक है। आर्थिक विकास की तीव्र दर के साथ-साथ ऊर्जा के उपयोग में भी वृद्धि हुई है।

सारणी 8.2

व्यावसायिक ऊर्जा उपयोग के क्ष़े़त्रकवार हिस्सेदारी की प्रवृत्तियाँ (% 

क्षेत्रक 1953-54 1970-71 1990-91 2017-18
परिवार 10 12 12 24
कृषि 01 03 08 18
उद्योग 40 50 45 42
परिवहन 44 28 22 01
अन्य 5 07 13 15
कुल 100 100 100 100

स्रोतः सी. एस. ओ, साँख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन, मंत्रालय, भारत सरकार (2019)

ऊर्जा/विद्युत ऊर्जाः 

ऊर्जा का सबसे दृष्टिगोचर रूप, जिसे प्रायः आधुनिक सभ्यता की प्रगति का द्योतक माना जाता है, में बिजली आती है। किसी देश के आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाली आधारिक संरचना में बिजली अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रायः बिजली की माँग की अभिवृद्धि दर सकल घरेलू उत्पाद दर से ऊँची होती है। अध्ययनों से पता चलता है कि 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने के लिए बिजली की पूर्ति में अभिवृद्धि का प्रतिवर्ष दर लगभग 12 प्रतिशत होना चाहिए।

1557.pngइन्हें कीजिए

आपने यह ध्यान दिया होगा कि ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों में परमाणु ऊर्जा का अंश बहुत ही कम है। क्यों?

भविष्य में ऊर्जा के स्रोतों में सौर शक्ति, पवन शक्ति और ज्वार से प्राप्त शक्ति होंगी। उनके तुलनात्मक लाभ और हानियाँ क्या हैं? कक्षा में चर्चा करें।

भारत में 2018 में कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 82 प्रतिशत उत्पादन तापीय स्रोतों से हुआ। जल और परमाणु स्रोतों का प्रतिशत क्रमशः 8.5 और 2.5 रहा। भारत की ऊर्जा नीति जल, सौर और वायु के ऊर्जा स्रोतों को प्रोत्साहन देती है क्योंकि ये स्रोत जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं हैं, इसीलिए इनमें कार्बन उत्सर्जन नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप, इन तीनाें स्रोतों से उत्पादित बिजली मेें तीव्र अभिवृद्धि हुई है।

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बिजली की शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत परमाणु ऊर्जा है; इसके पर्यावरण संबंधी फायदे हैं और दीर्घकाल में यह सस्ती साबित हो सकती है। वर्तमान में परमाणु ऊर्जा का कुल प्राथमिक ऊर्जा खपत में केवल 2.5 प्रतिशत का अंश है, जबकि विश्व औसत 13 प्रतिशत है। यह बहुत ही कम है। इसलिए, कुछ विद्वानों की राय है कि अधिक से अधिक विद्युत का उत्पादन परमाणु स्रोत और कुछ अन्य वस्तुओं द्वारा किया जाए जिससे पर्यावरण और धारणीय विकास प्रभावित न हो। इस संबंध में आपकी क्या राय है?

विद्युत क्षेत्रक की कुछ चुनौतियाँः

विभिन्न पॉवर स्टेशनों द्वारा जनित बिजली का पूरा उपभोग उपभोक्ता नहीं करते। उसके एक अंश का उपभोग पॉवर स्टेशन के सहायक इकाइयों द्वारा किया जाता हैै। बिजली के संप्रेषण में भी उसका एक हिस्सा खत्म हो जाता है। शेष बिजली हम अपने घरों, अॉफिसों और कारखानों में प्राप्त करते हैं।

बॉक्स 8.1: लीक से हटकर

थाणे शहर की एक पूर्णतया नई छवि उभर रही है-जो पर्यावरण मित्र के रूप में है। सौर्य ऊर्जा, जिसे कभी असंभव माना जाता था, के बड़े पैमाने पर प्रयोग द्वारा वास्तविक लाभ मिले हैं तथा लागत और ऊर्जा की बचत हुई है। इसका प्रयोग पानी गरम करने, विद्युत्चालित यातायात प्रकाश व्यवस्था और विज्ञापन होर्डिंगों को प्रकाशमान करने के लिए किया जाता है। थाणे नगरपालिका का इस अद्वितीय प्रयोग में अग्रणी स्थान है। शहर की सभी नई इमारतों के लिए सौर्य जल तापन पद्धति को स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया है (आउटलुक 01, अगस्त, 2005 में कॉलम ‘मेकिंग ए डिफरेंस’ में प्रकाशित)।

► क्या आप गैर परंपरागत ऊर्जा के प्रयोग का एेसा ही कोई अन्य उदाहरण दे सकते हैं?

भारत के बिजली क्षेत्र के समक्ष आज कई प्रकार की चुनौतियाँ हैंः (क) भारत की वर्तमान बिजली उत्पादन क्षमता उच्चारण आर्थिक क्षमता अभिवृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत की व्यवसायिक ऊर्जा पूर्ति 7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आवश्यकता है। वर्तमान में भारत प्रतिवर्ष मात्र 20 हजार मेगावाट नई क्षमता जोड़ पाता है। यहाँ तक कि स्थापित क्षमता का भी अल्प उपयोग होता है, क्योंकि बिजलीघर उचित तरीके से नहीं चल रहे। (ख) राज्य विद्युत बोर्ड जो विद्युत वितरण करते हैं, की हानि 20,000 करोड़ से ज्यादा है। इसका कारण संप्रेषण और वितरण का नुकसान, बिजली की अनुचित कीमतें और अकार्यकुशलता है। कुछ विद्वानों का यह मत है कि किसानों को विद्युत का वितरण ही नुकसान का प्रमुख कारण है। अनेक क्षेत्रों में बिजली की चोरी होती है जिससे राज्य विद्युत निगमों को और भी नुकसान होता है। (ग) बिजली के क्षेत्र में निजी क्षेत्रक की भूमिका बहुत कम है। विदेशी निवेश का भी यही हाल है। (घ) भारत के विभिन्न भागों में बिजली की ऊँची दरें और लंबे समय तक बिजली गुल होने से आमतौर पर जनता में असंतोष है। भारत के थर्मल पावर स्टेशन, जो कि भारत के बिजली क्षेत्र के आधार हैं, कच्चे माल और कोयले की पूर्ति में कमी का सामना कर रहे हैं।

बॉक्स 8.2: विद्युत वितरण दिल्ली के संदर्भ में

स्वतंत्रता के पश्चात् राजधानी में विद्युत प्रबंधन में चार बार परिवर्तन हुआ। 1951 में दिल्ली राज्य- विद्युत बोर्ड की स्थापना हुई। 1958 में दिल्ली विद्युत आपूर्ति निगम (D.E.S.U.) बना। 1997 में प्रंबंध व्यवस्था में तीसरा परिवर्तन हुआ और दिल्ली विद्युत बोर्ड (D.V.B.) बना। अब विद्युत वितरण का कार्य निजी क्षेत्र की दो अग्रणी कंपनियाँ रिलायंस एनर्जी लिमिटेड (B.S.E.S.) राजधानी पावर लिमिटेड और B.S.E.S. युमना पावर लिमिटेड तथा टाटा पावर लिमिटेड N.D.P.L. कर रही हैं। ये दिल्ली में लगभग 46 लाख उपभोक्ता को विद्युत पूर्ति करते हैं। बिजली की दर और अन्य विनियामक मुद्दों की देख रेख दिल्ली विद्युत विनियमन आयोग करता है। यह आशा थी कि विद्युत् वितरण में अधिक सुधार होगा और उपभोक्ताओं को कई रूपों में लाभ मिलेगा। लेकिन अनुभव बताता है कि परिणाम असंतोषजनक है।

इस प्रकार, निरंतर आर्थिक विकास और जनसंख्या वृद्धि से भारत में ऊर्जा की माँग में तीव्र वृद्धि हो रही है। यह माँग वर्तमान में उत्पन्न की जा रही ऊर्जा से बहुत अधिक है। अधिक सार्वजनिक निवेश, बेहतर अनुसंधान व विकास के उपाय तकनीकी खोज और ऊर्जा के पुनर्नवीनीकृत स्रोतों से बिजली की अतिरिक्त पूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। अतिरिक्त क्षमता वाले पावर क्षेत्रक में निवेश के बावजूद सरकार पावर क्षेत्रक के निजीकरण के लिए सहमत हुई है (और खासकर वितरण के मामले में देखे बॉक्स 8.2) तथा उच्च कीमतों पर विद्युत आपूर्ति की स्वीकृति दी जिसका कुछ खास वर्गों पर बहुत बुरा असर पड़ा। (देखें बॉक्स 3.3)। क्या आप सहमत हैं कि यह एक सही नीति हैं? क्यों? कक्षा में इस पर चर्चा करें।

बॉक्स 8.3: ऊर्जा बचतः कॉमपेक्ट फ्लोरोसेंट लैंप तथा एल.ई.डी. बल्बों के विषय का संवर्द्धन

ऊर्जा कार्यकुशलता ब्यूरो के अनुसार कॉम्पेक्ट फ्लोरोसेंट लैंप सामान्य बल्बों की अपेक्षा 80 प्रतिशत कम बिजली की खपत करते हैं। इंडो-एशियन नामक कॉमपेक्ट फ्लोरोसेंट लैम्प के निर्माता का कहना है कि दस लाख 100 वॉट बल्व की 20 वॉट की कॉमपेक्ट फ्लोरोसेंट लैंप का प्रयोग करने से बिजली उत्पादन में 80 मेगावॉट की बचत हो सकती है। बचत की यह राशि 400 करोड़ रुपया है।

स्रोतः इन दिनों देश में एल.ई.डी. लैम्पों के प्रयोग को ऊर्जा बचत के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। एल.ई.डी. बल्ब ताप्तदीप्त बल्बों की केवल 10 प्रतिशत तथा सी.एफ.एल. बल्बों से आधी ऊर्जा का प्रयोग करती हैं। एनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड के अनुसार ‘उजाला’ योजना के अन्तर्गत ताप्तदीप्त बल्बों के स्थान पर एल.ई.डी. बल्ब कुल ऊर्जा उत्पादन में 5905 मेगावाट ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। क्षमता के बढ़ने तथा प्रतिस्थापन लागत के कम होने के परिणामस्वरूप एक औसत परिवार को इसके कारण लगभग `4000/- की वार्षिक बचत होगी।

8.6 स्वास्थ्य

स्वास्थ्य से हमारा मतलब केवल बीमारियों का न होना ही नहीं है, बल्कि यह अपनी कार्य-क्षमता प्राप्त करने की योग्यता भी है। किसी की सुख-समृद्धि का मापदंड है। स्वास्थ्य राष्ट्र की समग्र संवृद्धि और विकास से जुड़ी एक पूर्ण प्रक्रिया है। यद्यपि बीसवीं शताब्दी के इतिहास ने उत्कृष्ट मानव स्वास्थ्य के वैश्विक रूपांतरण को देखा है, फिर भी किसी राष्ट्र की स्वास्थ्य- दशा की माप को किसी एक इकाई के रूप में परिभाषित करना कठिन है। आमतौर पर विद्वान, लोगों के स्वास्थ्य का निर्धारण शिशु मृत्यु-दर और मातृत्व मृत्यु दर, जीवन-प्रत्याशा और पोषण स्तर के साथ-साथ संक्रामक और असंक्रामक रोगों की घटनाओं जैसे सूचकों द्वारा करते हैं।

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►आप किस प्रकार की ऊर्जा का प्रयोग अपने घर में करते हैं? अपने अभिभावक से पता करें कि वे विभिन्न प्रकारों की ऊर्जा में एक महीने में कितना धन खर्च करते हैं?

आपके क्षेत्र में बिजली की पूर्ति कौन करता है और उसका उत्पादन कहाँ होता है? क्या आप किसी सस्ती वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के बारे में सोच सकते हैं, जो कि आपके घर को प्रकाशित करने या भोजन पकाने या दूरदराज की जगहों का भ्रमण करने में सहायक हो सकती है।

नीचे की सारणी देखें। क्या आप समझते हैं कि ऊर्जा खपत विकास का एक प्रभावशाली सूचक है?

 

देश पी.पी.पी. के रुप में प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, 2018 (डॉलर में) 2014 में ऊर्जा की प्रतिव्यक्ति खपत (कि. ग्राम में)
भारत 6,899 637
इंडोनेशिया 11,605 884
मिस्र 11,073 828
इग्लैंड 40,158 2777
जापान 39,294 3471
अमेरिका 58,681 6961

स्रोत-वर्ल्ड डेवलपमेंट सूचक 2019 (www.worldbank.org)

► पता करें कि आपके क्षेत्र में बिजली का वितरण कैसे होता है? साथ में अपने शहर और गाँव की कुल बिजली मांग का पता करें और यह भी पता लगायें कि उसे कैसे पूरा किया जाता है।

आपने देखा होगा कि लोग बिजली और अन्य ऊर्जा को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, गैस स्टोव का प्रयोग करने पर गैस एजेंसी गैस को कार्यकुशलता और बचत के साथ प्रयोग करने के कुछ तरीके बतलाती है। अपने अभिभावकों और बुजुर्गों से उन पर चर्चा कीजिए, मुख्य बातों को लिखिए और कक्षा में उन पर चर्चा कीजिए।

स्वास्थ्य आधारिक संरचना के विकास से किसी देश में वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन के लिए स्वस्थ जनशक्ति सुनिश्चित होती है। हाल के वर्षों में विद्वानों का कहना है कि लोगों को स्वास्थ्य-सुविधाएँ प्राप्त करने का अधिकार है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों के स्वस्थ स्वास्थ्य जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करे। स्वास्थ्य आधारिक संरचना में अस्पताल, डॉक्टर, नर्स और अन्य अर्द्ध-चिकित्साकर्मी, बेड, अस्पतालों में जरूरी उपकरण और एक सुविकसित दवा उद्योग शामिल हैं। यह भी सत्य है कि स्वास्थ्य आधारिक संरचना की मात्र उपस्थिति से ही लोग स्वस्थ हों यह आवश्यक नहीं, लोगों की इन सुविधाओं पर पहुँच होनी चाहिए। योजनाबद्ध विकास के आरंभ से ही नीति निर्माताओं ने जोर दिया कि कोई व्यक्ति चिकित्सा सुविधा-आरोग्यकारी और निवारक, प्राप्त करने से वंचित इसलिए न रह जाए, क्योंकि वह उसकी कीमत अदा नहीं कर पाता। लेकिन, क्या हम इस आदर्श को प्राप्त कर पाये हैं? इससे पहले कि हम विभिन्न आधारिक संरचनाओं पर विचार करें, आइए, भारत में स्वास्थ्य की स्थिति पर चर्चा करें।

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चित्र 8.9 देश के हिस्से में अभी भी स्वास्थ्य आधारिक संरचना का अभाव

स्वास्थ्य आधारिक संरचना की स्थिति : 

सरकार पर यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह स्वास्थ्य-शिक्षा, भोजन में मिलावट, दवाएँ तथा जहरीले पदार्थ, चिकित्सा व्यवसाय, जन्म-मृत्यु संबंधी आँकड़े, मानसिक अक्षमता और पागलपन जैसे स्वास्थ्य संबंधित गंभीर मुद्दों को निदेशित व विनियमित करे। केंद्र सरकार, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परिषद् की सहायता से विस्तृत नीतियाँ एवं योजनाएँ विकसित करती है। वे सूचनाएँ इकट्ठा करते हैं और देश में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य निकायों को वित्तीय व तकनीकी सहायता प्रदान करती है।

पिछले वर्षों के दौरान भारत ने विभिन्न स्तरों पर एक व्यापक स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति को विकसित किया है। गाँव के स्तर पर सरकार ने अनेक प्रकार के अस्पतालों की व्यवस्था की है। भारत में एेसे अस्पतालों –तकनीकी रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (PHCS) (देखें बॉक्स 8.4) की संख्या भी अधिक है जो कि स्वैच्छिक संस्थाओं और निजी क्षेत्रक द्वारा चलाये जा रहे हैं। इन अस्पतालों को मेडिकल, दवा और नर्सिंग कॉलेजों में प्रशिक्षित चिकित्सा और अर्द्ध-चिकित्साकर्मी संचालित करते हैं।

स्वतंत्रता के बाद से स्वास्थ्य सेवाओं की संख्या में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है। 1951-2013 के बीच सरकारी अस्पतालों और दवाखानों दोनों की संख्या 9300 से बढ़कर 53,800 हो गई और अस्पतालों तकनीकी रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) (देखें बॉक्स 8.5) के बेड 1.2 से 7.1 लाख हो गये (सारणी 8.3 देखें)। 1951-2018 के दौरान नर्सिंगकर्मियों की संख्या 18,000 से 30 लाख हो गई जबकि एलोपैथी डॉक्टरों की संख्या 62,000 से 11.5 लाख हो गई। स्वास्थ्य आधारिक संरचना के विस्तार से चेचक और स्नायुक रोगों का उन्मूलन और पोलियो तथा कुष्ठ रोग का पूर्ण उन्मूलन हो गया है।

सारणी 8.3

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचनात्मक सेवाएँ 1951-2018

मद 1951­ 1981 2000 2018
सरकारी 
अस्पताल
2694­ 6805 15888 25778*
सरकारी 
अस्पताल/दवाखाना में बेड
117000 504538 719861­ 713986*
दवाखाना
6600 16745 23065 27951
सार्वजनिक 
स्वास्थ्य केंद्र
725­ 9115 22842 25743
उपकेंद्र - 84736 137311 158417
सामुदायिक 
स्वास्थ्य केंद्र
- 761­ 3043 5624 ­ ­ ­ ­ ­   ­ ­ ­   ­ ­ ­ ­

नोटः (*) आँकड़े केवल सरकारी अस्पतालों से संबंधित हैं।

स्रोतः नेशनल कमीशन अॉन मैक्रोइकोनॉमिक्स एंड हेल्थ, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, नयी दिल्ली, कई वर्षों के आँकडे, www.cbhidghs.nic.in

निजी क्षेत्रक में स्वास्थ्य आधारिक संरचनाः

हाल के समय में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्रक अपने कर्त्तव्य के निर्वाह में बहुत अधिक सफल नहीं हुआ है। इस बारे में और अधिक अध्ययन हम अगले अध्याय में करेंगे। लेकिन इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र ने बहुत प्रगति की है। एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत से अधिक अस्पतालों का संचालन निजी क्षेत्रक कर रहा है। उनके पास अस्पतालों में उपलब्ध बेडों का 2/5 वाँ हिस्सा है। लगभग 60 प्रतिशत दवाखाने निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जा रहे हैं। वे 80 प्रतिशत बर्हिरोगियों और 46 प्रतिशत अंतःरोगियों के स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं।

बॉक्स 8.4ः भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था

भारत की स्वास्थ्य आधारिक संरचना और स्वास्थ्य सुविधाओं की तीन स्तरीय व्यवस्था है- प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक। प्राथमिक क्षेत्रक सुविधाओं में प्रचलित स्वास्थ्य समस्याओं का ज्ञान तथा उन्हें पहचानने, रोकने और नियंत्रित करने की विधि, खाद्य पूर्ति तथा उचित पोषण और जल की पर्याप्त पूर्ति तथा मूलभूत स्वच्छता, शिशु एवं मातृत्व देखभाल, प्रमुख संक्रामक बीमारियों और चोटों से प्रतिरोध तथा मानसिक स्वास्थ्य का संवर्द्धन और आवश्यक दवाओं का प्रावधान शामिल है। अॉक्सीलियरी नर्सिंग मिडवाइफ (ए.एन.एम.) पहला व्यक्ति है, जो ग्रामीण इलाके में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करता है। प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के लिए गाँवों तथा छोटे कस्बों में अस्पताल बनाये गये हैं। आमतौर पर यहां एक डॉक्टर, एक नर्स और सीमित मात्रा में दवाएँ उपलब्ध होती हैं। इन्हें प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, सामुदायिक चिकित्सा केंद्र और उपकेंद्रों के नाम से जाना जाता है। 

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स्वास्थ्य जागरूकता गोष्ठी की प्रगति पर

जब एक रोगी की हालत में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में सुधार नहीं हो पाता, तो उन्हें द्वितीयक या मध्य या उच्च श्रेणी के अस्पतालों में भेजा जाता है। जिन अस्पतालों में शल्य-चिकित्सा, एक्सरे, इ.सी.जी. जैसी बेहतर सुविधाएं होती हैं, उन्हें माध्यमिक चिकित्सा संस्थाएँ कहते हैं। वे प्राथमिक चिकित्सा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, दोनों ही प्रदान करते हैैं। वे प्रायः जिला मुख्यालय और बड़े कस्बों में होते हैं। एेसे सभी अस्पताल जहाँ उच्च-स्तर के उपकरण और दवाइयाँ उपलब्ध हों और और जो कि एेसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का निपटान करें जिसकी सुविधाएँ प्राथमिक या माध्यमिक अस्पतालों में हो, तृतीयक क्षेत्र में आते हैं।

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शिशु को पोलियो ड्राप दिया जाना

तृतीयक क्षेत्र में एेसे प्रमुख संस्थान भी शामिल हैं जो कि न केवल उत्तम मेडिकल शिक्षा प्रदान करते और अनुसंधान करते हैं बल्कि वे विशिष्ट स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। इनमें से कुछ है- मेडिकल इंस्टीट्यूट, नयी दिल्ली, पोस्ट ग्रेजुयेट इंस्टीट्यूट, चंडीगढ़; नेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ मेंटल हेल्थ और न्यूरो साइंस, बंगलौर और अॉल इंडिया इंस्टीट्यूट अॉफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता।

स्रोतः नेशनल कमीशन अॉन मेकरोइकोनॉमिक्स एंड हेल्थ, 2005

पिछले वर्षों में निजी क्षेत्रक मेडिकल शिक्षा व प्रशिक्षण, मेडिकल प्रौद्योगिकी तथा रोग-निदान अन्वेषण, दवाइयों की बिक्री, अस्पताल निर्माण व मेडिकल सेवाओं की व्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 2001-2002 में 13 लाख से अधिक मेडिकल उद्यम थे जिनमें 22 लाख लोग काम कर रहे थे; इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक एक व्यत्तिη के स्वामित्व वाले थे जो समय-समय पर भाड़े के श्रमिकों से काम लेते थे। विद्वानों ने यह कहा है कि भारत में निजी क्षेत्रक स्वतंत्र रूप से और बिना किसी बड़े विनियमन के विकसित हुआ है। कुछ निजी चिकित्सकों का तो पंजीकरण भी नहीं हुआ है और उन्हें हम फर्जी चिकित्सक कहते हैं।

सारणी 8.4

अन्य देशों की तुलना में भारत में स्वास्थ्य सूचक, 2015-17

सूचक भारत चीन अमेरिका श्रीलंका
1. शिशु मृत्यु दर/प्रति 1000 \ज़िन्दा शिशु (2018) 30 7.4 5.6 6.4
2. पांच वर्ष के नीचे मृत्यु दर/प्रति 1000 शिशु 36.6 8.6 5 7.4
3. प्रशिक्षित परिचारिका द्वारा जन्म (2016) 81.4 100 99 99
4. प्रतिरक्षित शिशु (डी.पी.टी.)(%) (2018) 89 99 94 99
5. जी.डी.पी (%) के रूप में कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी हिस्सेदारी (2016) 3.7 5.7 17.0 3.9
6. जेब से बाहर का व्यय, स्वास्थ्य पर वर्तमान व्यय के प्रतिशत के रूप में (2018) 65 36 11.1 50

स्रोतः विश्व विकास संकेतक 2019, विश्व बैंक वाशिंगटन

1990 के दशक से उदारीकरण उपायों के कारण अनेक अप्रवासी भारतियों और औद्योगिक तथा दवा कंपनियों ने भारत के अमीरों और चिकित्सा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आधुनिकतम सुपर-स्पैशलिटी अस्पतालों का निर्माण किया। (देखें बॉक्स 8.5)। क्या आप सहमत हैं कि भारत के अधिकतर लोग इस प्रकार के सुपर स्पैशलिटी अस्पतालों की सेवा प्राप्त कर सकते हैं? क्यों नहीं? एेसा करने के लिए क्या किया जा सकता है जिससे कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर सकें?

बॉक्स 8.5: चिकित्सा पर्यटन-एक महान अवसर

आपने टेलीविजन समाचारों या समाचार-पत्रों में देखा होगा कि बड़ी संख्या में विदेशी शल्य चिकित्सा, गुर्दारोपण, दंत और यहाँ तक कि सौंदर्यवर्द्धक देखभाल के लिए भारत आ रहे हैं। क्यों? क्योंकि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में आधुनिकतम चिकित्सा प्रौद्योगिकी है, हमारे पास योग्य डॉक्टर हैं और विदेशियों को उनके देश में एेसी चिकित्सा के लिए लगने वाली कीमत की अपेक्षा हमारे यहाँ चिकित्सा सेवाएँ काफी सस्ती हैं। वर्ष 2016 में 2,01,000 से भी अधिक पर्यटक चिकित्सा के लिए भारत आये और इस संख्या में प्रतिवर्ष 15 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है। विशेषज्ञों की यह भविष्यवाणी है कि 2020 में भारत मेडिकल पर्यटन से 500 अरब रुपयों से अधिक की आय अर्जित कर सकता है।

स्रोतः पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार; www.granttharanton.in

चिकित्सा की भारतीय प्रणालीः चिकित्सा की भारतीय प्रणाली में 6 व्यवस्थाएँ हैं - आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी। इनके अंग्रेजी नामों के अनुसार भारतीय प्रणाली को आयुश भी कहते हैं (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक और होम्योपैथिक)। भारत वर्तमान में चिकित्सा की भारतीय प्रणाली के 4,095 आयुष अस्पताल और 27,951 दवाखाने और 8 लाख पंजीकृत चिकित्सक हैं। लेकिन चिकित्सा की भारतीय प्रणाली में शैक्षिक मानकीकरण या अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए किसी प्रकार की रूपरेखा बनाने हेतु कुछ नहीं किया गया है। चिकित्सा की भारतीय प्रणाली में भारी संभावनाएँ हैं और वे हमारे स्वास्थ्य की देखभाल की अनेक समस्याओं का निराकरण कर सकती हैं क्योंकि वे प्रभावशाली, सुरक्षित और सस्ती हैं।


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स्वास्थ्य और स्वास्थ्य आधारिक संरचना के सूचकः एक मूल्यांकनः जैसा कि पहले बताया गया है कि एक देश में स्वास्थ्य की स्थिति का मूल्यांकन शिशु मृत्यु तथा मातृ-मृत्यु दरों, जीवन-प्रत्याशा व पोषण स्तरों के साथ-साथ संक्रामक व गैर-संक्रामक रोगों की घटनाओं जैसे सूचकों के द्वारा होता है। इनमें से कुछ स्वास्थ्य सूचकों और उनकी भारत में स्थिति के बारे में जानकारी सारणी 8.4 में दी गई है। विशेषज्ञों की यह राय है कि स्वास्थ्य क्षेत्रक में सरकार की भूमिका के लिए अधिकाधिक स्थान है। उदाहरण के लिए, सारणी यह बतलाती है कि स्वास्थ्य क्षेत्रक में व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 3.9 प्रतिशत है। यह अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है। इन देशों में विकसित और विकासशील देश-दोनों आते हैं।

बॉक्स 8.6: समुदाय और स्वास्थ्य देखभाल की अलाभकारी संस्थाएँ

समुदाय एक अच्छी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। यह इस विचार पर कार्य करती है कि लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए प्रशिक्षित करके स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में लगाया जा सकता है। देश के कुछ हिस्सों में इस विधि का उपयोग पहले ही से किया जा रहा है। सेवा स्वनियोजित महिला समिति (SEWA) अहमदाबाद और Accord नीलगिरि भारत में कार्य कर रही कुछ एेसी ही गैर-सरकारी संस्थाओं (NGOs) के उदाहरण हैं। व्यापार संघ ने अपने सदस्यों के लिए कुछ वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ उपलब्ध कराए हैं और आस-पास के गाँव के लोगों को निम्न लागत पर स्वास्थ्य की देखभाल की सुविधा प्रदान की है। इस संबंध में सर्वाधिक अग्रणी और सुविख्यात पहल शाहिद अस्पताल ने की है। इस अस्पताल का निर्माण मध्य प्रदेश के दुर्ग में छत्तीसगढ़ श्रमिक संघ के श्रमिकों द्वारा 1983 में किया गया। वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल पहलों का निर्माण करने के लिए ग्रामीण संस्थाओं ने कुछ प्रयास किए हैैैं। थाणे, महाराष्ट्र में कबिलाई लोगों का संगठन, काश्तकारी संगठन इसका उदाहरण है। यहाँ न्यूनतम लागत पर साधारण बीमारी का गाँव के स्तर पर उपचार करने के लिए महिला स्वास्थ्य श्रमिकों को प्रशिक्षित किया गया है।

एक अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत में विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग पाँचवा हिस्सा निवास करता है, लेकिन इस देश पर विश्व के कुल रोगियों का 20 प्रतिशत बोझ (GDB) है। विश्व रोग भार (GDB) एक सूचक है जिसका प्रयोग विशेषज्ञ किसी विशेष रोग के कारण असमय मरने वाले लेागों की संख्या के साथ-साथ रोगों के कारण असमर्थता में बिताये सालों की संख्या जानने के लिए करते हैं।

2094.pngइन्हें कीजिए

अपने इलाके या पड़ोस में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जाइए। अपने इलाके में निजी अस्पतालों, चिकित्सा प्रयोगशालाओं, सूक्ष्म परीक्षा केंद्रों और दवा की दुकानों और इसी प्रकार की अन्य सुविधाओं की संख्या की जानकारी प्राप्त कीजिए।

‘प्रतिवर्ष मेडिकल कॉलेजों से पास करने वाले हजारों मेडिकल स्नातकों की सेवाओं को प्राप्त करने में साधनहीन गरीबों की देखभाल के लिए क्या हमें दाइयों की एक सेना तैयार करनी चाहिए?’ इस विषय पर कक्षा में वाद-विवाद करें।

एक अध्ययन के द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि केवल चिकित्सा व्यय ही प्रतिवर्ष 2.2 प्रतिशत जनसंख्या को गरीबी रेखा से नीचे ले जाता है। कैसे?

अपने स्थानीय क्षेत्र में कुछ अस्पतालों में जाइए। उनसे प्रतिरक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या का पता करें। अस्पताल कर्मियों से 5 वर्ष पहले प्रतिरक्षित बच्चों की संख्या के बारे में पूछें। प्राप्त जानकारी पर कक्षा में चर्चा करें।

असम के दो छात्रों लीना तालुकदार (16) और सुशांता महंत (16) ने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध झाड़ियों, धान का भूसा, छिलकों और सूखे कूड़े की सहायता से मच्छरों को भगाने वाली हर्बल दवा ‘जग’ बनाई। उनका यह प्रयोग सफल रहा (शोधयात्रा, योजना, सितंबर 2005)। यदि आप किसी व्यक्ति को जानते हैं जिसके नूतन तरीकों से लोगों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार हुआ हो या यदि आप जिन्हें जड़ी बूटियों की जानकारी हो और वे लोगों के रोगों को ठीक करते हों, तो उनसे बात करें, उन्हें कक्षा में लायें या तो उनसे यह सूचना प्राप्त करें कि वे क्यों और कैसे रोग का निदान करते हैं। कक्षा में यह जानकारी दें। आप स्थानीय समाचार-पत्रों या पत्रिकाओं में भी इस के बारे में लिख सकते हैं।

क्या आप मानते हैं कि भारतीय शहरों में विश्व स्तर की चिकित्सा आधारिक संरचना उपलब्ध हो सकती हैं, जिससे कि वे मेडिकल पर्यटन के लिए आकर्षित हो सकें? या क्या सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में जनता के लिए आधारिक संरचना प्रदान करने पर केंद्रित होना चाहिए? सरकार की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? चर्चा कीजिए।

स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में आपके क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर सरकारी संगठनों की कार्यप्रणाली का पता करें। उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करें और उन पर कक्षा में चर्चा करें।

सन् 2017 के एक अध्ययन में लगभग दो-तिहाई जी.बी.डी. को दिखाया गया है, जिसे अब रोग का कुल बोझ के नाम से जाना जाता है, जो हृदय, श्वसन प्रणाली-फेफड़े, किडनी, मोटापा और जीवनशैली से जुड़ी गैर-संचारी बिमारियों के कारण होता है। डायरिया, कम श्वसन-प्रणाली और सामान्य संक्रामक रोग भारत में होने वाली कुल मृत्यु का छठा हिस्सा है। वायु प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर 4.1 मिलियन शुरूआती मृत्यु होती है, जिसमें से अकेले भारत में 1.1 मिलियन मौते हुई हैं। इसके अतिरिक्त गत दो दशकों में कैंसर (8 प्रतिशत) और दुर्घटना (11 प्रतिशत) से मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।

2094.pngइन्हें कीजिए

► भारत की समग्र स्वास्थ्य स्थिति में निश्चय ही सुधार हुआ है। जीवन-प्रत्याशा बढ़ी है, शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। चेचक का उन्मूलन हो गया है। कुष्ठ तथा पोलियो के उन्मूलन का लक्ष्य भी प्राप्त होने वाला है। लेकिन ये आँकड़े तभी अच्छे लगते हैं जबकि उन्हें आप अलग करके देखें। इन आँकड़ों की तुलना शेष विश्व से करें (आप ये आँकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य रिपोर्ट से प्राप्त कर सकते हैं।) आपको क्या जानकारी मिली?

► एक महीने के लिए अपनी कक्षा का पर्यवेक्षण करें और पता करें कि कुछ छात्र अनुपस्थित क्यों रहते हैं? यदि अनुपस्थिति का कारण स्वास्थ्य समस्याएँ हैं, तो पता करें कि उन्हें क्या बीमारी है। उनके रोग, उपचार की प्रकृति और उनके अभिभावकों द्वारा उनके उपचार पर किये जा रहे खर्च का विवरण तैयार करें। इस सूचना पर कक्षा में चर्चा करें।

वर्तमान में 20 प्रतिशत से भी कम जनसंख्या जन स्वास्थ्य सुविधाओं का उपभोग करती है। एक अध्ययन से पता चला कि केवल 38 प्रतिशत प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में डॉक्टरों की वांछित संख्या उपलब्ध है और केवल 30 प्रतिशत प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में दवाइयों का पर्याप्त भंडार होता है।

शहरी-ग्रामीण तथा धनी-निर्धन विभाजनः

भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भारत के केवल 1/5 अस्पताल (प्राइवेट क्षेत्रक सहित) स्थित हैं। ग्रामीण भारत के पास कुल दवाखानाें के लगभग आधे दवाखाने ही हैं। सरकारी अस्पतालों में लगभग 7.13 लाख बेड में से ग्रामीण इलाकों में केवल 30 प्रतिशत बेड उपलब्ध हैं। अतः ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य आधारिक संरचना उपलब्ध नहीं हैं। इससे भारत के लोगों में स्वास्थ्य की स्थिति में विभेद उत्पन हो गया है। जहाँ तक अस्पतालों का सवाल है, ग्रामीण इलाकोें में प्रत्येक एक लाख लोगों पर 0.36 अस्पताल हैं जबकि शहरी इलाकों में यह संख्या 3.6 अस्पतालों की है। ग्रामीण इलाकों में स्थापित प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में एक्स-रे या खून की जाँच जैसी सुविधाएँ नहीं है, जबकि किसी शहरी के लिए ये बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल का निर्माण करती है। बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य स्वास्थ्य सुविधाओं में अपेक्षाकृत पीछे हैं। ग्रामीण इलाकों में उचित चिकित्सा से वंचित लोगों के प्रतिशत में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है।

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चित्र 8.10 कई प्रकार की चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद महिलाओं की चिंताजनक स्थिति

ग्रामीणों को शिशु-चिकित्सा, स्त्री-रोग चिकित्सा, संवेदनाहरण तथा प्रसूति-विद्या जैसी विशिष्ट चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके बावजूद कि 530 मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों से प्रतिवर्ष 50,000 मेडिकल स्नातक निकलते हैं, ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। इनमें से 1/5 डॉक्टर बेहतर कमाई के लिए विदेश चले जाते हैं, अन्य निजी अस्पतालों में नौकरी करना पसंद करते हैं जोकि अधिकांशतः शहरी इलाकों में स्थित होते हैं। इस प्रवृत्ति के क्या कारण हो सकते हैं? अपने क्षेत्र में काम करने वाले एक या दो डॉक्टरों के साथ बातचीत करें और कक्षा में चर्चा करें।

एक अध्ययन के अनुसार भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले निर्धनतम लोग अपनी आय का 12 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं में खर्च करते हैं, जबकि धनी केवल 2 प्रतिशत खर्च करते हैं। क्या होता है जब गरीब बीमार पड़ता है? कुछ अपनी जमीन बेचते हैं या उपचार के लिए अपने बच्चों को भूखेे रखते हैं। चूँकि सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएँ नहीं हैं, उन्हें निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है जिससे वे हमेशा के लिए ऋणग्रस्त हो जाते हैं या मौत के विकल्प को चुनते हैं। हाल ही में भारत सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई पहल कर रही हैं। जानकारी एकत्र करें और कक्षा में समीक्षा करें।

महिला स्वास्थ्यः भारत की जनसंख्या का लगभग आधा भाग महिलाओं का है। पुरुषों की तुलना में उन्हें शिक्षा, आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्रों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। देश में शिशु-लिंग अनुपात 2001 में 927 से 919 की गिरावट, भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाओं की ओर इशारा करती है। 15-19 वर्ष से कम लगभग पाँच प्रतिशत की लड़कियाँ न केवल शादीशुदा हैं बल्कि कम से कम एक बच्चे की माँ भी हैं। 15 से 49 आयु समूह में शादीशुदा महिलाओं में 50 प्रतिशत से ज्यादा रक्ताभाव और रक्तक्षीणता से ग्रसित हैं। यह बीमारी लौह-न्यूनता के कारण होती है और 2005 के बाद से इसमें गिरावट नहीं आई है। जी.बी.डी. अध्ययन 2017 की रिपोर्ट है कि वर्ष 2007 और 2017 दोनों वर्षों में नवजात विकारों के कारण असमयिक मृत्यु बहुत अधिक थी।

स्वास्थ्य एक आवश्यक सार्वजनिक सुविधा और एक बुनियादी मानवाधिकार है। सभी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं, यदि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ विकेंद्रित हों। रोगों से दीर्घकालीन संघर्ष में सफलता शिक्षा और कार्यकुशल स्वास्थ्य आधारिक संरचना पर निर्भर करती है। इसीलिए स्वास्थ्य और सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करना और कार्यकुशल व्यवस्थाएँ प्रदान करना आवश्यक है। इस प्रक्रिया से दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की भूमिका की अवहेलना नहीं की जा सकती। स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों की प्रभावशीलता प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर करती है। अंततः हमारा उद्देश्य लोगों को एक बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन की ओर ले जाना है। भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं में शहर और गाँव के बीच स्पष्ट विभाजन है। यदि हम इस ब\ढ़ते विभाजन की अवहेलना करते रहेंगे, तो हमारे देश के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे में अस्थिरता की आशंका रहेगी। सभी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए हमारी बुनियादी आधारिक संरचना में सक्षमता और सुलभता की आवश्यकताओं का एकीकरण करना जरूरी है।

8.7 निष्कर्ष

एक देश के विकास में सामाजिक और आर्थिक, दोनों प्रकार की आधारिक संरचना का होना अनिवार्य है। उत्पादन के कारकों की उत्पादकता में वृद्धि करते हुए तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार लातेे हुए ये सभी एक सहयोगी प्रणाली के रूप में आर्थिक क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। अपनी स्वतंत्रता के पिछले छह दशकों में भारत ने आधारिक संरचना के निर्माण में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन उनका वितरण असमान है। ग्रामीण भारत के अनेक हिस्सों में अभी भी अच्छी सड़कें, दूरसंचार सुविधाएँ, बिजली, स्कूलों और अस्पतालों का अभाव है। जैसे-जैसे भारत आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है, गुणवत्तापूर्ण आधारिक संरचना की माँग भी बढ़ेगी। पर्यावरण पर उनके असर को भी यहाँ ध्यान में रखना होगा। विभिन्न प्रकार के रियायत और प्रोत्साहनों को प्रदान करने वाली सुधार नीतियों का लक्ष्य आमतौर पर निजी क्षेत्रक और, विशेष तौर पर विदेशी निवेशकोें को आकर्षित करना है। ऊर्जा और स्वास्थ्य की दो आधारिक संरचनाओं का मूल्यांकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आधारिक संरचना पर सभी की समान रूप से पहुँच की संभावना हो सकती है।

पुनरावर्तन

► संरचनात्मक सुविधाएँ, भौतिक सुविधाएँ व सार्वजनिक सेवाओं का एक नेटवर्क है। इनके साथ सहयोग करने के लिए सामाजिक आधारिक संरचना का होना समान रूप से महत्वपूर्ण है। देश के आर्थिक विकास में यह एक महत्वपूर्ण आधार है।

► उच्च आर्थिक संवृद्धि दर बनाये रखने के लिए समय-समय पर आधारिक संरचना का स्तर ऊँचा करना आवश्यक है। हाल ही में बेहतर आधारिक संरचना ने विदेशी निवेश और पर्यटकों को भारत की ओर आकर्षित किया है।

► ग्रामीण आधारिक संरचना को विकसित करने की आवश्यकता है।

► आधारिक संरचना के विकास के लिए विशाल धन इकट्ठा करने के लिए सार्वजनिक और निजी सहभागिता की आवश्यकता है।

► तीव्र आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। भारत में बिजली की उपभोक्ता माँग और उसकी पूर्ति में बहुत अंतर है।

► बिजली की कमी की पूर्ति में ऊर्जा के गैर-पांरपरिक स्रोत काफी सहायक हो सिद्ध हो सकते हैं।

► भारत विद्युत क्षेत्रक उत्पादन, संचारण और वितरण स्तरों में अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है।

► स्वास्थ्य मनुष्य के शारीरिक और मानसिक सुख का एक मापदंड है।

► स्वतंत्रता के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की भौतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण विस्तार और स्वस्थ सूचकों में सुधार हुआ है।

► अधिकांश जनसंख्या के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और सुविधाएँ पर्याप्त नहीं हैं।

► ग्रामीण शहरी इलाकों और अमीर व गरीब के बीच स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के उपभोग में बड़ा अंतर है।

► देश में भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाओं के कारण देश में स्त्रियों का स्वास्थ्य गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

► निजी क्षेत्र की विनियमित स्वास्थ्य सेवाओं से स्थिति में सुधार हो सकता है। इसके साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ प्रदान करने और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने में गैर-सरकारी संगठन और सामुदायिक सहभागिता बहुत महत्वपूर्ण है।

► जन स्वास्थ्य की सहायता के लिए चिकित्सा की प्राकृतिक प्रणालियाें पर अनुसंधान करना और उनके परिणामों का उपयोग करना होगा। भारत में चिकित्सा पर्यटन के बढ़ने की असीम संभावनाएँ हैं।


अभ्यास

1. आधारिक संरचना की व्याख्या कीजिए।

2. आधारिक संरचना को विभाजित करने वाले दो वर्गों की व्याख्या कीजिए? दोनों एक-दूसरे पर कैसे निर्भर हैं?

3. आधारिक संरचना उत्पादन का संवर्द्धन कैसे करती है?

4. किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना योगदान करती है? क्या आप सहमत हैं? कारण बताइये।

5. भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना की क्या स्थिति है?

6. ‘ऊर्जा’ का महत्व क्या है? ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक स्रोतों में अंतर कीजिए।

7. विद्युत के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत कौन-से हैं।

8. संचारण और वितरण हानि से आप क्या समझते हैं? उन्हें कैसे कम किया जा सकता है।

9. ऊर्जा के विभिन्न गैर-व्यावसायिक स्रोत कौन-से हैं?

10. इस कथन को सही सिद्ध कीजिए कि ऊर्जा के पुनर्नवीनीकृत स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा संकट दूर किया जा सकता है?

11. पिछले वर्षों के दौरान ऊर्जा के उपभोग प्रतिमानों में कैसे परिवर्तन आया है?

12. ऊर्जा के उपभोग और आर्थिक संवृद्धि की दरें कैसे परस्पर संबंधित हैं?

13. भारत में विद्युत क्षेत्रक किन समस्याओं का सामना कर रहा है?

14. भारत में ऊर्जा संकट से निपटने के लिए किये गये सुधारों पर चर्चा कीजिए।

15. हमारे देश की जनता के स्वास्थ्य की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

16. रोग वैश्विक मार (GBD) क्या है?

17. हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ क्या हैं?

18. महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिंता का विषय कैसे बन गया है?

19. सार्वजनिक स्वास्थ्य का अर्थ बतलाइए। राज्य द्वारा रोगों पर नियंत्रण के लिए उठाये गये प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बताइए।

20. भारतीय चिकित्सा की छह प्रणालियों में भेद कीजिए।

21. हम स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता कैसे ब\ढ़ा सकते हैं?

अतिरिक्त गतिविधियाँ

1. क्या आप जानते हैं कि आपके घरों में एक मेगावाट बिजली लाने के लिए 300-400 करोड़ रुपये खर्च होते हैं? एक नये बिजली-घर के निर्माण में करोड़ों रुपयों की लागत आती है। क्या यही कारण काफी नहीं है कि आप अपने घर में बिजली की बचत करें। बिजली की बचत का अर्थ पैसों की बचत है। जब आपके पास बिजली का बिल आता है, तो आपको यह भान होता है कि घर में अनेक बल्बों और पंखों की जरूरत नहीं है। आपको थोड़ी-सी सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। सबसे बढ़िया बात तो यह है कि आपको तुंरत इस दिशा में प्रयास आरंभ कर देना चाहिए। इस कार्य में परिवार के अन्य सदस्यों को शामिल कीजिए और अंतर देखिए। अपने घर में बिजली का मासिक उपभोग नोट कीजिए। ऊर्जा बचाव के तरीकों को लागू करने के पश्चात बिजली के बिल में अंतर देखिए।

2. यह पता करें कि आपके क्षेत्र में कौन-सी आधारिक संरचना परियोजना चल रही है। उसके बाद पता करेंः

(क) परियोजना के लिए आबंटित बजट

(ख) उसमें पूँजी निवेश के स्रोत क्या हैं?

(ग) वह परियोजना कितना रोजगार उत्पन्न करेगी?

(घ) परियोजना की समाप्ति के बाद कुल मिला कर कितना लाभ होगा?

(ङ) परियोजना को पूर्ण होने में कितना समय लगेगा?

(च) परियोजना में कार्यरत कंपनी/कंपनियाँ

3. किसी गौबर गैस परियोजना/ताप बिजली स्टेशन/ज्वार बिजली स्टेशन/परमाणु बिजली स्टेशन में जाइए। अवलोकन कीजिए कि यह कैसे काम करते हैं।

4. पड़ोस में ऊर्जा के प्रयोग पर एक सर्वेक्षण करने के लिए कक्षा को समूहों में बांटा जा सकता है। सर्वेक्षण का लक्ष्य यह पता करना है कि पड़ोस में कौन-सा विशिष्ट ईंधन सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है और कितनी मात्रा में विभिन्न समूहों के द्वारा ग्राफ बनाए जा सकते हैं और एक विशिष्ट ईंधन की प्राथमिकता के संभावित कारण जानने के लिए कोशिश की जा सकती है। भारत की ऊर्जा व्यवस्था के निर्माता डॉ होमी भामा के जीवन कार्य का अध्ययन कीजिए। ‘युद्धरत राष्ट्र एक अस्वस्थ्य विश्व की रचना करते हैं। इसी प्रकार पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण और संकीर्ण दिमाग वाले मानसिक रोगों की रचना करते हैं।’ इस विषय में कक्षा में वाद विवाद व चर्चा कीजिए।

संदर्भ

पुस्तकें

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इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एण्ड इवाल्युवेशन, नई दिल्ली।

वेबसाइट

ऊर्जा संबंधी मुद्दों परः

www.pcra.org

www.bee-india.com

www.edugreen.teri.res.in

http://powermin.nic.in

www.cbhidghs.nic.in

स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों परः

http://www.aiims.edu

http://www.whoindia.org

http://mohfw.nic.in

www.apollohospitalsgrour.com