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इकाई चार
भारत और इसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव
आज वैश्वीकरण के इस युग में जहाँ भौगोलिक परिसीमाएँ धीरे-धीरे अर्थहीन होती जा रही हैं, विकासशील विश्व के देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने पड़ोसी देशों द्वारा अपनाई जा रही विकास की रणनीतियों को समझें। एेसा इसलिए भी आवश्यक है कि वे विश्व बाज़ार में सीमित आर्थिक हिस्सेदारी करते हैं। इस इकाई में हम भारत के विकास अनुभवों की तुलना इसके दो महत्त्वपूर्ण और निर्णायक पड़ोसियों- पाकिस्तान और चीन से करेंगे।
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भारत और इसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव
इस अध्याय का अध्ययन करने के बाद आप
• भारत और इसके पड़ोसी देशों, चीन और पाकिस्तान के आर्थिक एवं मानव विकास के सूचकों की तुलनात्मक प्रवृत्तियों को समझ सकेंगे;
• विकास की वर्तमान अवस्था तक पहुँचने हेतु इन देशों द्वारा अपनाई गई उन नीतियों का मूल्यांकन कर सकेंगे, जिन्हें इन देशों ने विकास की वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए अपनाया है।
भूगोल ने हमें पड़ोसी, इतिहास ने मित्र, अर्थशास्त्र ने भागीदार तथा आवश्यकता ने सहयोगी बना दिया है। जिन्हें भगवान ने ही इस प्रकार जोड़ा है, उन्हें इन्सान कैसे अलग कर पाए!
-जॉन एफ़ कैनेडी
10.1 परिचय
पिछली इकाइयों में हमने भारत के अनेक विकास अनुभवों का विस्तार से अध्ययन किया है। हमने यह भी अध्ययन किया था कि भारत ने किस प्रकार की नीतियाँ अपनाईं और उनके विभिन्न क्षेत्रकों पर किस प्रकार के प्रभाव पड़े। पिछले लगभग दो दशकों से वैश्वीकरण ने विश्व के प्रायः सभी देशों में नवीन आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों के कुछ अल्पकालिक, तो कुछ दीर्घकालिक प्रभाव भी हैं। भारत भी इनसे अछूता नहीं रहा है।
विश्व के सभी राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने के लिए अनेक उपाय अपनाते रहे हैं। इसी उद्देश्य से वे अनेक प्रकार के क्षेत्रीय और वैश्विक समूहों का निर्माण करते रहे हैं जैसे कि सार्क, यूरोपियन संघ, ब्रिक्स, आसियान, जी-8, जी-20 ब्रिक्स आदि। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राष्ट्र इस बात के लिए उत्सुक रहे हैं कि वे अपने पड़ोसी राष्ट्रों द्वारा अपनाई गई विकासात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कोशिश करें। इससे उन्हें अपने पड़ोसी देशों की शक्तियों एवं कमजोरियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के दौरान इसे विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए आवश्यक समझा गया, क्योंकि वे अपेक्षाकृत सीमित स्थान में न केवल विकसित देशों द्वारा प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे थे, बल्कि आपसी प्रतिस्पर्धा का भी।
इसके अतिरिक्त, अपने पड़ोसी देशों की अन्य आर्थिक व्यवस्थाओं की जानकारी भी आवश्यक थी, क्योंकि क्षेत्र की सभी मुख्य सामान्य आर्थिक गतिविधियाँ एक सहभागी वातावरण में मानव विकास से संबंधित थीं।
इस अध्याय में हम भारत और उसके दो बड़े पड़ोसी राष्ट्रों-पाकिस्तान और चीन द्वारा अपनाई गई विकासात्मक नीतियों की तुलना करेंगे। परंतु यह याद रखना होगा कि भौतिक साधन संपन्नता संबंधी समानताओं के बावजूद विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और 50 से भी अधिक वर्षों से धर्मनिरपेक्षता और अति उदार संविधान के प्रति प्रतिबद्ध रहे भारत की राजनीतिक शक्ति व्यवस्था और पाकिस्तान की सत्तावादी एवं सैन्यवादी राजनीतिक शक्ति संरचना या चीन की निर्देशित अर्थव्यवस्था के बीच कोई समानता नहीं है। चीन ने तो हाल ही में उदारवादी व्यवस्था की दिशा में अग्रसर होना प्रारंभ किया है।
10.2 विकास पथः एक चित्रांकन
क्या आप यह जानते हैं कि भारत, पाकिस्तान और चीन की विकासात्मक नीतियों में अनेक समानताएँ हैं। तीनों राष्ट्रों ने विकास पथ पर एक ही समय चलना प्रारंभ किया है।
भारत और पाकिस्तान 1947 में स्वतंत्र हुए जबकि चीन गणराज्य की स्थापना 1949 में हुई। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपने भाषण में कहा था ‘‘यद्यपि भारत और चीन के बीच विचारधारा में बहुत भेद है, लेकिन नए और क्रांतिकारी परिवर्तन एशिया की नवीन भावना और नई शक्ति के प्रतीक हैं जो एशिया के देशों में साकार रूप ग्रहण कर रहे हैं।’’
तीनों देशों ने एक ही प्रकार से अपनी विकास नीतियाँ तैया करना शुरू किया था। भारत ने 1951-56 में प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की और पाकिस्तान ने 1956 में अपनी प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की थी, जिसे मध्यकालिक विकास योजना भी कहा जाता था। चीन ने 1953 में अपनी प्रथम पंचवर्षीय योजना की घोषणा की। वर्ष 2013 में पाकिस्तान ने 11वीं पंचवर्षीय विकास योजना (2013-18) पर कार्य शुरू किया है जबकि चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 2016-20 है। भारत की वर्तमान योजना बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012-2017 पर आधारित है। मार्च 2017 तक भारत में पंचवर्षीय योजनाओं प आधारित विकास नीति अपनाई जाती थी। भारत और पाकिस्तान ने समान नीतियाँ अपनाईं जैसे, वृहत् सार्वजनिक क्षेत्रक का सृजन औ सामाजिक विकास पर सार्वजनिक व्यय। 1980 के दशक तक तीनों देशों की संवृद्धि दर और प्रतिव्यक्ति आय समान थी। एक दूसरे की तुलना में आज उनकी स्थिति क्या है? इस प्रश्न का उत्त देने से पहले आइए, हम चीन औ पाकिस्तान की विकास नीतियों के एेतिहासिक पथ की जानकारी लें। पिछली तीन इकाइयों का अध्ययन करने के बाद हम अब यह जानते हैं कि भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से कौन-सी नीतियाँ अपनाता रहा है।
चीनः एक दलीय शासन के अंतर्गत चीन गणराज्य की स्थापना के बाद अर्थव्यवस्था सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रकों, उद्यमों तथा भूमि, जिनका स्वामित्व और संचालन व्यक्तियों द्वारा किया जाता था, को सरकारी नियंत्रण में लाया गया। 1998 में ‘ग्रेट लीप फॉरव्ड’ अभियान शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर देश का औद्योगीकण करना था। लोगाें को अपने घर के पिछवाड़े में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में कम्यून प्रारंभ किये गये। कम्यून पद्धति के अंतर्गत लोग सामूहिक रूप से खेती करते थे। 1958 मे 26,000 ‘कम्यून’ थे जिनमें प्रायः समस्त कृषक शामिल थे।
जी.एल.एफ. अभियान में अनेक समस्याएँ आयीं। भयंकर सूखे ने चीन में तबाही मचा दी जिसमें लगभग 30 मिलियन लोग मारे गये। जब रूस और चीन के बीच संघर्ष हुआ, तब रूस ने अपने विशेषज्ञों को वापस बुला लिया, जिन्हें औद्योगीकीकरण प्रकिया के दौरान सहायता करने के लिए चीन भेजा गया था। 1965 में माओ ने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का आरंभ किया (1966-76)। छात्रों और विशेषज्ञों को ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने और अध्ययन करने के लिए भेजा गया।
संप्रति चीन में जो तेज औद्योगिक संवृद्धि हो रही है, उसकी जड़ें1978 में लागू किये गये सुधारों में खोजी जा सकती हैं। चीन में सुधार चरणों में शुरू किया गया। प्रारंभिक चरण में कृषि, विदेशी व्यापार तथा निवेश क्षेत्रकों में सुधार किये गये। उदाहरण के लिए, कृषि, क्षेत्रक में कम्यून भूमि को छोटे-छोटे भूखंडों में बाँट दिया गया जिन्हें अलग-अलग परिवारों को आवंटित किया गया (प्रयोग के लिये न कि स्वामित्व के लिए)। वे प्रकल्पित कर देने के बाद भूमि से होने वाली समस्त आय को अपने पास रख सकते थे। बाद के चरण में औद्योगिक क्षेत्र में सुधार आरंभ किये गये। सामान्य, नगरीय तथा ग्रामीण उद्यमों की निजी क्षेत्रक की उन फर्मों को वस्तुएँ उत्पादित करने की अनुमति थी, जो स्थानीय लोगों के स्वामित्व और संचालन के अधीन थे। इस अवस्था में उद्यमों को जिन पर सरकार का स्वामित्व था, (जिन्हें राज्य के उद्यम एस.ओ.ई. के नाम से जाना जाता है) और जिन्हें हम भारत में सार्वजनिक क्षेत्क के उद्यम कहते हैं, उनको प्रतिस्पर्धा का सामना करना प\ड़ा। सुधार प्रक्रिया में दोहरी कीमत निर्धारण पद्धति लागू थी। इसका अर्थ यह है कि कीमत का निर्धारण दो प्रकार से किया जाता था। किसानों औ औद्योगिक इकाइयों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे सरकार द्वारा निर्धारित की गई कीमतों के आधार पर आगतों एवं निर्गताें की निर्धारित मात्राएँ खरीदेंगे और बेचेंगे और शेष वस्तुएँ बाजार कीमतों पर खरीदी और बेची जाती थीं। गत वर्षों के दौरान उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ बाजार में बेची और खरीदी गई वस्तुओं या आगताें के अनुपात में भी वृद्धि हुई। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत् स्थापित किये गये।
पाकिस्तानः द्वारा अपनायी गई विभिन्न आर्थिक नीतियों पर विचार करते हुए आप यह देखेंगे कि भारत और पाकिस्तान के बीच अनेक समानताएँ हैं। पाकिस्तान में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रकों के सह-अस्तित्व वाली मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल का अनुसरण किया जाता है। 1950 और 1960 के दशकों के अंत में पाकिस्तान के अनेक प्कार की नियंत्रित नीतियों का प्रारूप लागू किया गया (उद्योगों पर आधारित आयात प्रतिस्थापन)। उक्त नीति में उपभोक्ता वस्तुओं के विनिर्माण के लिए प्रशुल्क संरक्षण करना तथा प्रतिस्पर्धी आयातों पर प्त्यक्ष आयात नियंत्रण करना शामिल था। हरित क्रांति के आने से यंत्रीकरण का युग शुरू हुआ और चुनिंदा क्षेत्रों की आधारिक संरचना में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में भी अंततोगत्वा वृद्धि हुई। इसके कारण कृषि भूमि संबंधी संरचना में भी नाटकीय ढंग से परिवर्तन हुआ। 1970 के दशक में पूँजीगत वस्तुओं के उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हुआ। उसके बाद, पाकिस्तान ने 1970 औ 1980 के दशकों के अंत में अपनी नीति उस समय बदल दी, जब अ-राष्ट्रीयकरण पर जो दिया जा रहा था और निजी क्षेत्रक को प्रोत्साहित किया जा रहा था। इस अवधि के दौरान पाकिस्तान को पश्चिमी राष्ट्राें से भी वित्तीय सहायता प्राप्त हुई और मध्य-पूर्व देशों को जाने वाले प्रवासियों से निंतर पैसा मिला। इससे देश की आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन मिला। तत्कालीन सरकार ने निजी क्षेत्रक को और भी प्रोत्साहन प्रदान किये। इन सब के कारण नये निवेशों के लिए अनुकूल वातावरण बना। 1988 में देश में सुधार शुरू किए गए।
चीन और पाकिस्तान की विकास नीतियों की संक्षिप्त रूपरेखा का अध्ययन करने के बाद, आइए अब हम भारत, चीन और पाकिस्तान के कुछ विकास संकेतकों की तुलना करें।
सारणी 10.1
कुछ चुने हुए जनांकिकीय संकेतक
देश | अनुमानित जनसंख्या (मिलियन में) (2018) | जनसंख्या की वार्षिक संवृद्धि (2018) | जनसंख्या का घनत्व (प्रति वर्ग कि.मी.) (2018) | लिंग अनुपात (2018) | प्रजनन दर (2017) | नगरीकरण (2018) |
भारत | 1352 | 1.03 | 455 | 924 | 2.2 | 34 |
चीन | 1393 | 0.46 | 148 | 949 | 1.7 | 59 |
पाकिस्तान | 212 | 2.05 | 275 | 943 | 3.6 | 37 |
स्रोतः विश्व विकास सूचक 2019, www.worldbank.org
10.3 जनांकिकीय संकेतक
यदि हम विश्व की जनसंख्या पर विचार करें तो पायेंगे कि इस विश्व में रहने वाले प्रत्येक छः व्यक्तियों में से एक व्यक्ति भारतीय है और दूसरा चीनी। हम भारत में कुछ जनांकिकीय संकेतकाें की तुलना करेंगे। पाकिस्तान की जनसंख्या बहुत कम है और वह चीन या भारत की जनसंख्या का लगभग दसवाँ भाग है।
यद्यपि इन तीनों में चीन सबसे बड़ा राष्ट्र है तथापि इसका जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है और भौगोलिक रूप से इसका क्षेत्र सबसे बड़ा है। सारणी 10.1 में यह दिखाया गया है कि पाकिस्तान में जनसंख्या की वृद्धि सबसे अधिक है, उसके बाद भारत और चीन का स्थान है। विद्वानों का मत है कि चीन में जनसंख्या की कम वृद्धि का मुख्य कारण यह था कि 1970 के दशक के अंत में चीन में केवल एक संतान नीति लागू की गई थी। उनका यह भी कहना है कि इसके कारण लिंगानुपात (प्रत्येक एक हजार पुरुषों में महिलाओं का अनुपात) में गिरावट आई। पंतु सारणी से आपको पता चलेगा कि तीनों देशों में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में कम था और पूर्वाग्रह से युक्त था। आजकल तीनों देश स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं। एक-संतान नीति और उसे लागू किये जाने के परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि थमने के अन्य प्रभाव भी थे। उदाहरण के लिए, कुछ दशकों के बाद चीन में वयोवृद्ध लोगाें की जनसंख्या का अनुपात युवा लोगाें की अपेक्षा अधिक होगा। इसके कारण, चीन को प्रत्येक दंपति को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति देनी पड़ी।
भूमि प्रयोग और कृषि
10.4 सकल घरेलू उत्पाद एवं क्षेत्रक
इन्हें कीजिए
► क्या भारत जनसंख्या स्थिरीकरण संबंधी उपाय कर रहा है? यदि हाँ, तो ब्यौरा एकत्र कीजिए और कक्षा में चर्चा कीजिए । आप नीवनतम आर्थिक सर्वेक्षण स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्टाें या वेबसाइटों (http://mohfw.nic.in) का संदर्भ दे सकते हैं।
► विद्वानों का मानना है कि भारत, चीन एवं पाकिस्तान सहित अनेक विकाशसील देशों में पुत्र को वरीयता देना एक सामान्य बात है। क्या आप इस बात को अपने परिवार या पड़ोस में देखते हैं? लोग लड़के और लड़कियों में भेदभाव क्यों करते हैं? आप इस बारे में क्या सोचते हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए।
सारणी 10.2
सकल घरेलू उत्पाद में वार्षिक औसत
संवृद्धि (%) - 1980-2017
देश | 1980-90 | 2015-2017 |
भारत | 5.7 | 7.3 |
चीन | 10.3 | 6.8 |
पाकिस्तान | 6.3 | 5.3 |
जब अनेक विकसित देश 5 प्रतिशत तक की संवृद्धि दर बनाये रखने में कठिनाई महसूस क रहे थे तब चीन एक एेसा देश था जो 1980 के दौरान से भी अधिक लगभग इसकी दोगुनी संवृद्धि बनाये रखने में समर्थ था। जैसा कि सारणी 10.2 में देखा जा सकता है।
यह भी देखिए कि 1980 के दशक में पाकिस्तान भारत से आगे था। चीन की संवृद्धि दोहरे अंकाें में थी और भारत सबसे नीचे था। 2015-2017 के दशक में पाकिस्तान और चीन की संवृद्धि दरों में मामूली गिरावट आई, जबकि भारत में विकास दर में मामूली वृद्धि कुछ विद्वानों का मत है कि पाकिस्तान में 1988 में प्रारंभ की गई सुधार प्रक्रिया तथा राजनीतिक अस्थिरता इस लंबी अवधि में प्रवृृत्ति का मुख्य कारण था। हम अगले अनुच्छेद में इसके बारे में और अधिक अध्ययन करेंगे, कि किस क्षेत्रक ने इन प्रवृत्तियों में योगदान दिया है।
सबसे पहले यह देखें कि विभिन्न क्षेत्कों में नियुक्त लोग सकल घरेलू उत्पाद (जिसे अब सकल वर्धित मूल्य कहा जाता है) में योगदान कैसे करते हैं। पिछले खंड में बताया गया था कि चीन और पाकिस्तान में भारत की अपेक्षा नगर में रहने वाले लोगों का अनुपात अधिक है। चीन में स्थलाकृति तथा जलवायु दशाओं के कारण कृषि के लिए उपयुक्त क्षेत् अपेक्षाकृत कम अर्थात् कुल भूमि क्षेत्र का लगभग दस प्रतिशत है। चीन में कुल कृषि योग्य भूमि भारत में कृषि क्षेत्र की 40 प्रतिशत है। 1980 के दशक तक चीन मे 80 प्रतिशत से भी अधिक लोग जीविका के एकमात् साधन के रूप में कृषि पर निर्भर थे। उस समय से सरकार ने लोगाें को कृषि कार्य त्यागने और हस्तशिल्प, वाणिज्य तथा परिवहन जैसी गतिविधियाँ अपनाने के लिए प्रेरित किया। 2018-19 में 27 प्रतिशत श्मिकों के साथ कृषि ने चीन में सकल वर्धित मूल्य में 7 प्रतिशत में योगदान दिया (देखिए सारणी 10.3)।
सारणी 10.3
2018-2019 में रोजगार एवं सकल वर्धित मूल्य (%) के क्षेत्र शेयर
क्षेत्र | सकल वर्धित मूल्य में येागदान 2018 | कार्यबल का वितरण 2019 | ||||
भारत | चीन | पाकिस्तान | भारत | चीन | पाकिस्तान | |
कृषि | 16 | 7 | 24 | 43 | 26 | 41 |
उद्योग | 30 | 41 | 19 | 25 | 28 | 24 |
सेवा | 54 | 52 | 57 | 32 | 46 | 35 |
योग | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 |
स्रोतः मानव विकास रिपोर्ट, 2018, एशिया और प्रशांत का प्रमुख संकेतक, 2019
भारत और पाकिस्तान में जी.डी.पी के लिए कृषि का योगदान 16 तथा 24 प्रतिशत था। परंतु इस क्षेत्रक में श्रमिकों का अनुपात भारत में अधिक है। पाकिस्तान में लगभग 41 प्रतिशत लोग कृषि कार्य करते है; जबकि भारत में 43 प्रतिशत उत्पादन तथा रोजगार में क्षेत्रकवार हिस्सेदारी भी यह दर्शाती है कि पाकिस्तान की चौबीस प्रतिशत श्रमशक्ति उद्योग क्षेत्र में कार्यरत है जो कि सकल वर्धित मूल्य का केवल 19 प्रतिशत उत्पादन के बराबर है। भारत में उद्योग श्रमशक्ति 25 प्रतिशत है तथा सकल वर्धित मूल्य (GVA) 30 प्रतिशत के बराबर माल का उत्पादन करते हैं। चीन में उद्योगों का सकल वर्धित मूल्य 41 प्रतिशत योगदान है। जबकि 28 प्रतिशत श्रमशक्ति ही उद्योग क्षेत्र में कार्यरत है। इन तीनों ही देशों में सेवा क्षेत्र का सकल वर्धित मूल्य में योगदान सबसे अधिक है।
इन्हें कीजिए
► क्या समझते हैं कि चीन की भाँति भारत और पाकिस्तान को भी विनिर्माण क्षेत्रक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्यों?
► अनेक विद्वानों का तर्क है कि सेवा क्षेत्रक को संवृद्धि का इंजन नहीं माना जाना चाहिए, जबकि भारत और पाकिस्तान में उत्पादन में वृद्धि मुख्यतः इसी क्षेत्रक में हुई है। आपका क्या विचार है?
विकास की सामान्य प्रकिया के दौरान इन देशों ने सबसे पहले रोजगार औ कृषि उत्पादन से संबंधित अपनी नीतियों को बदलकर उन्हें विनिर्माण और उसके बाद सेवाओं की ओर परिवर्तित कर दिया। एेसा ही चीन में हो रहा है जैसा की सारणी 10.3 में देखा जा सकता है। भारत और पाकिस्तान में विनिर्माण में लगे श्रमबल का अनुपात बहुत कम अर्थात क्रमशः 25 प्रतिशत और 24 प्रतिशत था। जी.वी.ए. में उद्योगों का योगदान भारत में 30 प्रतिशत और पाकिस्तान में 19 प्रतिशत है, जिससे यहाँ सीधे सेवा क्षेत्रक प जो दिया जा रहा है। इस प्रका तीनों देशों में सेवा क्षेत्रक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभर कर आ रहा है। यह जी.वी.ए. में अधिक योगदान कर रहा है और साथ ही यह संभावित नियोक्ता बन रहा है। 1980 के दशक में श्रमिकों के अनुपात पर विचार कते हैं तो यह पाते हैं कि पाकिस्तान, भारत और चीन के अपेक्षा सेवा क्षेत्रक में अपने श्रमिकों को
सारणी 10.4
विभिन्न क्षेत्रकाें में उत्पादन संवृद्धि वार्षिक औसत की प्रवृत्तियाँ 1980-2018
देश | 1980-90 | 2011-2015 | ||||
कृषि | उद्योग | सेवा | कृषि | उद्योग | सेवा | |
भारत | 3.1 | 7.4 | 6.9 | 3.1 | 6.9 | 7.6 |
चीन | 5.9 | 10.8 | 13.5 | 3.1 | 5.3 | 7.1 |
पाकिस्तान | 4 | 7.7 | 6.8 | 1 | 4.8 | 5.0 |
तेजी से भेज रहा है। 1980 के दशक में भारत, चीन तथा पाकिस्तान में सेवा क्षेत्रक में क्रमशः 17, 12, और 27 प्रतिशत श्रमबल कार्यरत था। वर्ष 2019 में यह बढ़कर 32, 46 और 35 प्रतिशत हो गया है।
सारणी 10.5
मानव विकास, 2015-18 के कुछ चुनिंदा संकेतक
मद | भारत | चीन | पाकिस्तान |
मानव विकास सूचकांक (मूल्य) | 0.647 | 0.758 | 0.560 |
रैंक (एच.डी.आई. के आधार पर) | 129 | 85 | 152 |
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (वर्ष) | 69.4 | 76.7 | 67.1 |
विद्यालय में औसत वर्ष (% आयु-वर्ग के 15 और ऊपर) | 6.5 | 7.9 | 5.2 |
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय (पी.पी.पी. अमेरिकी डॉलर) | 6829 | 16217 | 5190 |
गरीबी रेखा से नीचे लोगों का (%) ($ 3.20 एक दिन पी.पी.पी. पर) | 60.4* | 7.0** | 46.4* |
शिशु मृत्यु दर (1000 जीवित जन्मों के अनुसार) (2011) | 29.9 | 7.4 | 57.2 |
मातृत्व मृत्यु दर (एक लाख जन्मों के अनुसार) | 174 | 27 | 178 |
आधारभूत स्वच्छता सेवाओं का उपयोग करने वाली जनसंख्या | 60 | 85 | 60 |
आधारभूत पेयजल स्रोतों का उपयोग करने वाली जनसंख्या (%) | 93 | 93 | 91 |
कुपोषण के शिकार बच्चों (स्टेटिंग) का प्रतिशत | 37.9 | 8.1 | 37.6 |
पिछले पाँच दशकों में तीनों ही देशों में कृषि क्षेत्रक, जिसमें उक्त तीनों देशों के श्रमबल का सबसे बड़ा अनुपात कार्यरत था, की संवृद्धि में कमी आई है। चीन में तो (1980 के दशक में) द्विअंकीय संवृद्धि द बनी रही, लेकिन हाल के व्षों में गिरावट के संकेत हैं। किंतु भारत और पाकिस्तान में इसमें गिरावट आई है। चीन 14 प्रतिशत पर बनाए रखने में सक्षम था लेकिन 2014-18 में 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा। 1980-1990 के दौरान इसकी वृद्धि दर भारत के सेवा क्षेत्र के उत्पादन की सकारात्मक और बढ़ती हुई वृद्धि थी। इस प्रकार, चीन की आर्थिक संवृद्धि का मुख्य आधार विनिर्माण और सेवा क्षेत्रकों और भारत की संवृद्धि सेवा क्षेत्रक से हुई है। पाकिस्तान में इस अवधि में तीनों ही क्षेत्रकों में गिरावट आई है।
10.5 मानव विकास के संकेतक
आपने निचली कक्षाओं में मानव विकास के संकेतकाें के महत्व और अनेक विकसित और विकासशील देशों की स्थिति के विषय में पढ़ा होगा। आइए, हम देखें कि भारत, चीन और पाकिस्तान ने मानव विकास के चुनिंदा संकेतकाें में कैसा निष्पादन हुआ है (सारणी 10.5 देखें)।
सारणी 10.5 दर्शाती है कि चीन भारत तथा पाकिस्तान से आगे है। यह बात अनेक संकेतकों के विषय में सही है जैसे, आय संकेतक अर्थात प्रतिव्यक्ति जी.डी.पी अथवा निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या का अनुपात अथवा स्वास्थ्य संकेतकों जैसे कि मृत्यु दर, स्वच्छता, साक्षरता तक पहुँच, जीवन प्रत्याशा अथवा कुपोषण। पाकिस्तान निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों का अनुपात कम करने में भारत से आगे है। स्वच्छता के मामलों में इसका निष्पादन भारत से बेहतर है। किंतु ये दोनों देश महिलाओं को मातृमृत्यु से बचा पाने में असफल रहे हैं। चीन में प्रति एक लाख जन्म पर केवल 27 महिलाओं की मृत्यु होती है, जबकि भारत और पाकिस्तान में यह संख्या 178 एवं 174 ऊपर है। आश्चर्य की बात यह है कि तीनों देश उत्तम पेय जल स्रोत उपलब्ध करा रहे हैं। आप यह भी देखेंगे कि 3.20 डॉलर प्रतिदिन की अंतर्राष्ट्रीय निर्धनता दर के नीचे के लोगों का अनुपात भारत में तीनों देशों से अधिक गरीब व्यक्ति हैं। स्वयं ज्ञात कीजिये कि यह अंतर क्यों है?
परंतु, एेसे प्रश्नों पर विचार करने अथवा निर्णय लेते समय हमें मानवीय विकास संकेतकाें के विवेकपूर्ण प्रयोग से संबंधित एक समस्या पर ध्यान देना होगा। एेसा इसलिए होता है क्योंकि ये सभी संकेतक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, परंतु पर्याप्त नहीं हैं।
इनके साथ ही स्वतंत्रता संकेतकों की भी आवश्यकता है। ‘सामाजिक व राजनीतिक निर्णय-प्रक्रिया में लोकतांत्रिक भागीदारी’ की सीमा के संकेतक को इसके माप के रूप में जोड़ दिया गया है, परंतु इसे किसी अतिरिक्त मानवीय विकास सूचक की रचना में महत्व नहीं दिया गया है। एेसे कुछ स्पष्ट स्वतंत्रता संकेतक इनमें अभी तक नहीं जोड़े गये हैं जैसे, नागरिक अधिकारों की संवैधानिक संरक्षण की सीमा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक संरक्षण की सीमा या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सरंक्षण देने की संवैधानिक सीमा तथा विधि-सम्मत शासन अभी तक लागू नहीं किया गया है। इन्हें और कुछ उपायों को सूची में शामिल किये बिना तथा इन्हें महत्व दिये बिना, मानव विकास सूचक का निर्माण अधूरा रहेगा तथा इसकी उपादेयता भी सीमित होगी।
10.6 विकास नीतियाँः एक मूल्यांकन
सामान्यतया यह देखा जाता है कि किसी देश की विकास नीतियों को अपने देश के विकास के लिए मार्गदर्शन एवं सीख के रूप में ग्रहण किया जाता है। विश्व के विभिन्न भागों में सुधार कार्यक्रमों के लागू होने के पश्चात, एेसा विशेष रूप से देखा जा सकता है। अपने पड़ोसी देशों की आर्थिक सफलताओं से कुछ सीख ग्रहण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम उनकी सफलताओं तथा विफलताओं के मूल कारणों को समझें। यह भी आवश्यक है कि हम उनकी रणनीतियों के विभिन्न चरणोें के बीच अंतर और विभेद करें। विभिन्न देश अपनी विकास प्रक्रिया अलग-अलग तरीकों से पूरा करते हैं। आइए, सुधार कार्यक्रमों के आरंभ को हम संदर्भ बिंदु के रूप में लें। हम जानते हैं कि सुधार कार्यक्रम का आरंभ चीन में 1978 में, पाकिस्तान में 1988 में और भारत में 1991 में हुआ। आइए, सुधार पूर्व और सुधार पश्चात् अवधि में उनकी उपलब्धियों और विफलताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन करें।
चीन ने संरचनात्मक सुधारों को 1978 में क्यों प्रारंभ किया? चीन को इन्हें प्रारंभ करने के लिए विश्व बैंक और अतंर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की कोई बाध्यता नहीं थी जैसी कि भारत और पाकिस्तान को थी। चीन के तत्कालीन नये नेता माओवादी शासन के दौरान चीन की धीमी आर्थिक संवृद्धि और देश में आधुनिकीकरण के अभाव को लेकर संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने महसूस किया कि विकेंद्रीकरण, आत्मनिर्भरता, विदेश प्रौद्योगिकी और उत्पादों तथा पूंजी के बहिष्कार पर आधारित आर्थिक विकास माओवादी दृष्टिकोण से विफल रहा है। व्यापक भूमि सुधारों, सामुदायिकीकरण और ग्रेट लीप फॉरवर्ड तथा अन्य पहलों के बाद भी 1978 में प्रतिव्यक्ति अन्न उत्पादन उतना ही था, जितना 1950 के दशक के मध्य में था। यह भी देखा गया कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में आधारिक संरचना की स्थापना किये जाने के फलस्वरूप भूमि सुधारों, दीर्घकालिक विकेंद्रीकृत योजनाओं और लघु उद्योगों से सुधारोत्तर अवधि में सामाजिक और आय संकेतकों में निश्चित रूप से सुधार हुआ था। सुधारों के प्रारंभ होने से पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का बड़े व्यापक स्तर पर प्रसार हो चुका था। कम्यून व्यवस्था के कारण खाद्यान्नों का अधिक समतापूर्ण वितरण था। विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि प्रत्येक सुधार के पहले छोटे स्तर पर लागू किया गया और बाद में उसे व्यापक पैमाने पर लागू किया गया। विकेंद्रीकृत शासन के प्रयोग के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक लागतों की सफलता या विफलता का आकलन किया जा सका। उदाहरण के लिए, जब छोटे-छोटे भूखंड कृषि के लिए व्यक्तियों को दिए गए तो बहुत बड़ी संख्या में लोग समृद्ध बन गये। इसके फलस्वरूप, ग्रामीण उद्योगों के अपूर्व विकास की स्थिति बनी और आगे और सुधारों के लिये मजबूत आधार बनाया गया। विद्वान एेसे अनेक उदाहरण देते हैं कि चीन में सुधारों के कारण किस प्रकार तीव्र संवृद्धि हुई।
विद्वान तर्क देते हैं कि सुधार प्रक्रिया से पाकिस्तान में तो सभी आर्थिक संकेतकों मेें गिरावट आयी है। हमने पिछले खंड में देखा है कि वहाँ 1980 को दशक की तुलना में जी.डी.पी. और क्षेत्रक घटकों की संवृद्धि दर 1990 के दशक में कम हो गई है। यद्यपि पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से संबंधित आँकड़े बहुत सकारात्मक रहे हैं, परंतु पाकिस्तान के सरकारी आँकड़ों का प्रयोग करने वाले यह संकेत देते हैं कि वहाँ निर्धनता बढ़ रही है। 1960 के दशक में निर्धनों का अनुपात 40 प्रतिशत था, जो 1980 के दशक में गिर कर 25 प्रतिशत हो गया और हाल के दशकों में पुनः बढ़ने लगा। विद्वानों ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में संवृद्धि दर की कमी और निर्धनता के पुनः आविर्भाव के ये कारण बतायेः (क) कृषि संवृद्धि और खाद्य पूर्ति, तकनीकी परिवर्तन संस्थागत प्रक्रिया पर आधारित न होकर अच्छी फसल पर आधारित था। जब फसल अच्छी होती थी तो अर्थव्यवस्था भी ठीक रहती थी और फसल अच्छी नहीं होती थी तो आर्थिक संकेतक नकारात्मक प्रवृतियाँ दर्शाते थे। (ख) आपको ध्यान होगा कि भारत को अपने भुगतान संतुलन संकट को ठीक करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से उधार लेना पड़ा था। विदेशी मुद्रा प्रत्येक देश के लिए एक अनिवार्य घटक है और यह जानना आवश्यक है कि इसे कैसे अर्जित किया जाता है। यदि कोई देश अपने विनिर्मित उत्पादों के धारणीय निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा कमाने मेें समर्थ है, तो उसे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान में अधिकांश विदेशी मुद्रा मध्यपूर्व में काम करने वाले पाकिस्तानी श्रमिकों की आय प्रेषण तथा अति अस्थिर कृषि उत्पादों के निर्याताें से प्राप्त होती है। एक ओर विदेशी ऋणों पर निर्भर रहने की प्रवृति बढ़ रही थी, तो दूसरी ओर पुराने ऋणों को चुकाने में कठिनाई बढ़ती जा रही थी।
इन्हें कीजिए
► कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि भारत में सस्ते चीनी सामान का अचानक अंबार लग गया है, जिसके विनिर्माण क्षेत्रक पर कई प्रभाव हैं हम स्वयं भी अपने पड़ोसी राष्ट्राें से व्यापार नहीं करते हैं। निम्न सारणी को देखें। इसमें भारत से पाकिस्तान और चीन को किये गये निर्यातों और आयातों को दिखाया गया है। अपने परिणामों का निर्वचन कीजिए और कक्षा में उस पर चर्चा कीजिए। समाचार पत्रों, वेबसाइटों तथा समाचार सुनकर, अपने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ व्यापार में शामिल वस्तुओं और सेवाओं का विवरण एकत्र कीजिए। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप इस वेबसाइट पर लॉग कर सकते हैंः http://dgft.gov.in.
जबकि भारत ने अन्य विकासशील देशों की तरह आर्थिक वृद्धि की है लेकिन भारत मानव विकास सूचकों में विश्व के बुरे देशों में से एक है। भारत से कहाँ गलती हुई? क्यों हम अपने मानव संसाधनों की रक्षा नहीं कर पाये? कक्षा में चर्चा कीजिए।
देश | भारत के निर्यात (करोड़ रुपये में) | भारत के आयात (करोड़ रुपये में) | ||||
2004-05 | 2018-19 | वार्षिक संवृद्धि दर(%) | 2004-05 | 2018-19 | वार्षिक संवृद्धि दर(%) | |
पाकिस्तान | 2341 | 14226 | 3.7 | 427 | 3476 | 5.1 |
चीन | 25232 | 117289 | 2.6 | 31892 | 492079 | 10.3 |
10.7 निष्कर्ष
अपने पड़ोसी देशों के विकास अनुभवों से हमें क्या सीख मिलती है? भारत, पाकिस्तान और चीन की लगभग सात दशकों से लंबी विकास यात्रा रही है और उनको अलग-अलग परिणाम प्राप्त हुए हैं। 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में तीनों का ही विकास स्तर निम्न था। पिछले तीन दशकों में इन तीनों देशों का विकास स्तर अलग-अलग रहा है। लोकतांत्रिक संस्थाओं सहित भारत का निष्पादन साधारण रहा है। अधिकतर लोग आज भी कृषि पर निर्भर हैं। भारत के अनेक भागों में आधारिक संरचना का अभाव है। भारत में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले एक चौथाई से भी अधिक जनसंख्या का रहन-सहन के स्तर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है। विद्वानों का मत है कि राजनैतिक अस्थिरता, प्रेषणों और विदेशी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता और कृषि क्षेत्रक का अस्थिर निष्पादन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की गिरावट के कारण हैं। पिछले तीन वर्षों में, कई समष्टि अर्थशास्त्र सूचक सकारात्मक ऊंची विकास दर दर्शा रहे हैं, जो आर्थिक पुनरुत्थान को सूचित कर रहे हैं। चीन में राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव तथा मानव अधिकारों पर उसके निहतार्थ चिंता के मूल विषय हैं। फिर भी, अंतिम चार दशकों में से इसने अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को खोये बिना, बाजार व्यवस्था का प्रयोग किया तथा निर्धनता निवारण के साथ-साथ संवृद्धि के स्तर को बढ़ाने में सफल रहा है। आप यह भी देखेंगे कि भारत और पाकिस्तान में जहाँ सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों के निजीकरण का प्रयास हो रहा है, वहाँ चीन ने बाजार व्यवस्था का उपयोग अतिरिक्त सामाजिक-आर्थिक सुअवसरों के सर्जन के लिए किया है। सामुदायिक भू-स्वामित्व को कायम रखते हुए और लोगों को भूमि पर कृषि की अनुमति देकर चीन ने ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर दी है। चीन में सुधारों से पूर्व ही सामाजिक आधारिक संरचना उपलब्ध कराने में सरकारी हस्तक्षेप द्वारा मानव विकास संकेतकों में सकारात्मक परिणाम हुए हैं।
पुनरावर्तन
अभ्यास
1. क्षेत्रीय और आर्थिक समूहों के बनने के कारण दीजिए।
2. वे विभिन्न साधन कौन से हैं जिनकी सहायता से देश अपनी घरेलू व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं?
3. वे समान विकासात्मक नीतियाँ कौन-सी हैं जिनका कि भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने विकासात्मक पथ के लिए पालन किया है?
4. 1958 में प्रारंभ की गई चीन के ग्रेट लीप फॉरवर्ड अभियान की व्याख्या कीजिए।
5. चीन की तीव्र औद्योगिक संवृद्धि 1978 में उसके सुधारों के आधार पर हुई थी। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
6. पाकिस्तान द्वारा अपने आर्थिक विकास के लिए किए गए विकासात्मक पहलों का उल्लेख कीजिए।
7. चीन में ‘एक संतान’ नीति का महत्वपूर्ण निहितार्थ क्या है?
8. चीन, पाकिस्तान और भारत के मुख्य जनांकिकीय संकेतकों का उल्लेख कीजिए।
9. भारत और चीन के सकल घरेलू उत्पाद या सकल वर्धित मूल्य के लिए क्षेत्रीय योगदान के विपरीत तुलना करें। यह क्या दर्शाता है?
10. मानव विकास के विभिन्न संकेतकों का उल्लेख कीजिए।
11. स्वतंत्रता संकेतक की परिभाषा दीजिए। स्वतंत्रता संकेतकों के कुछ उदाहरण दीजिए।
12. उन विभिन्न कारकों का मूल्यांकन कीजिए जिनके आधार पर चीन में आर्थिक विकास में तीव्र वृद्धि (तीव्र आर्थिक विकास हुआ) हुई।
13. भारत, चीन और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित विशेषताओं को तीन शीर्षकों के अंतर्गत समूहित कीजिए।
एक संतान का नियम
निम्न प्रजनन दर
नगरीकरण का उच्च स्तर
मिश्रित अर्थव्यवस्था
अति उच्च प्रजनन दर
भारी जनसंख्या
जनसंख्या का अत्यधिक घनत्व
विनिर्माण क्षेत्रक के कारण संवृद्धि
सेवा क्षेत्रक के कारण संवृद्धि
14. पाकिस्तान में धीमी संवृद्धि तथा पुनः निर्धनता के कारण बताइए।
15. कुछ विशेष मानव विकास संकेतकों के संदर्भ में भारत, चीन और पाकिस्तान के विकास की तुलना कीजिए और उसका वैषम्य बताइए।
16. पिछले दो दशकों में चीन और भारत में देखी गई संवृद्धि दर की प्रवृत्तियों पर टिप्पणी दीजिए।
17. निम्नलिखित रिक्त स्थानों को भरिएः
(क) 1956 में .....................की प्रथम पंचवर्षीय योजना शुरू हुई थी। (पाकिस्तान/चीन)
(ख) मातृमृत्यु दर.................. में अधिक है। (चीन/पाकिस्तान)
(ग) निर्धरता रेखा से नीचे रहने वाले लोगाें का अनुपात ............... में अधिक है। (भारत/पाकिस्तान)
(घ) ..................में आर्थिक सुधार 1978 में शुरू किए गए थे (चीन/पाकिस्तान)
अतिरिक्त गतिविधियाँ
1. भारत और चीन तथा भारत और पाकिस्तान के बीच स्वतंत्र व्यापार के मुद्दे पर कक्षा में एक वाद-विवाद आयोजित कीजिए।
2. आपको पता है कि बाजार में चीन में बनी सस्ती वस्तुएँ उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, खिलौने, बिजली का सामान, कपड़े, बैटरी आदि। क्या आपके विचार में गुणवत्ता और कीमत की दृष्टि से इन उत्पादों की तुलना भारत में निर्मित वस्तुओं से की जा सकती है? क्या इन वस्तुओं से हमारे घरेलू उत्पादकों को खतरा पैदा हो सकता है? चर्चा कीजिए।
3. क्या आपके विचार से जनसंख्या संवृद्धि को कम करने के लिए चीन की तरह भारत भी एक संतान की नीति को लागू कर सकता है? उन नीतियों पर एक वाद-विवाद आयोजित कीजिए, जिन्हें जनसंख्या वृद्धि के कम करने के लिए भारत अपना सकता है।
4. चीन की संवृद्धि का कारण मुख्यतः विनिर्माण क्षेत्रक है और भारत की संवृद्धि का कारण सेवा क्षेत्रक है। एक चार्ट तैयार कीजिए। उसमें संबंधित देशों में पिछले दशक में हुए संरचनात्मक परिवर्तनों के संदर्भ में इस कथन की संगतता दिखाएँ।
5. सभी मानव विकास संकेतकों में चीन कैसे आगे है? कक्षा में चर्चा कीजिए। नवीनतम वर्ष की मानव विकास रिपोर्ट का अवलोकन करें।
संदर्भ
पुस्तकें
जीन ड्रेज एंड अमर्त्य सेन (1996), इंडिया इकोनॉमिक डवलपमेंट सोशल अपरचुनिटी, अॉक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, दिल्ली।
लेख
आलोक राय, द चाइनीज इकॉनॉमिक मिरेकिलः लेसन्स टू बी लर्न्ट, इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, सितम्बर 14, 2002।
एस. अकबर जायदी(1999), ‘‘इज पावर्टी नाउ ए परमानेंट फिनोमेनन इन पाकिस्तान?’’ इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, अक्तूबर 9, पी.पी. 2943-2951।
सरकारी रिपोर्टें
एेनूवल प्लान 2016-17, मिनिस्टरी अॉफ प्लानिंग, डवलपमेंट एण्ड रीफॉर्म लिंकः
http://pc.gov.pk, दिनाँक 02 जनवरी, 2016 ।
ह्यूमन डवलपमेंट रिपोर्ट 2005, यूनाइटेड नेशंस डवलपमेंट प्रोग्राम, अॉक्सर्फार्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, अॉक्सफोर्ड।
पाकिस्तानः नेशनल ह्यूमन डवलपमेंट रिपोर्ट, 2003, यूनाइटेड नेशंस डवलपमेंट प्रोग्राम, सेकेंड इंप्रेशन 2004।
वर्ल्ड डवलपमेंट रिपोर्ट, 2005, द वर्ल्ड बैंक, पब्लिश्ड बाय अॉक्सफार्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यूयॉर्क।
लेबर मार्केट इंडीकेटर्स, थर्ड एेडिशन, इंटरनेशनल लेबर अॉर्गेनाइजेशन, जिनेवा।
आर्थिक सर्वेक्षणः भारत सरकार विभिन्न वर्षों के लिए।
आर्थिक सर्वेक्षण, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार।
वर्ल्ड डवलपमेंट इंडीकेटर्स (विभिन्न वर्षों में), वर्ल्ड बैंक, वाशिंगटन।
ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, (विभिन्न वर्षों में), यूनाइटेड नेशन्स डेवलेपमेंट प्रोग्राम, जनेवा।
की इंडीकेटर्स अॉफ एशिया एण्ड पैसीफिक, 2016, एशियन डवलपमेंट बैंक, फिलीपिंस।
वेबसाइट्स
www.stats.gov.in
www.statpak.gov.pk
www.un.org
www.iloo.org
www.planningcommission.nic.in
www.dgft.delhi.nic.in