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इकाई 1
भूगोल एक विषय के रूप में
इस इकाई के विवरण
- भूगोल एक समाकलित विषय के रूप में, स्थानिक गुण विज्ञान के रूप में;
- भूगोल की शाखाए भौतिक भूगोल की विशेषता।
अध्याय 1
भूगोल एक विषय के रूप में
आपने माध्यमिक स्तर तक भूगोल का अध्ययन सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम के एक घटक के रूप में किया है। आप विश्व एवं इसके विभिन्न भागों के भौगोलिक तथ्यों से परिचित हैं। अब आप भूगोल का अध्ययन एक स्वतंत्र विषय के रूप में करेंगे तथा पृथ्वी के भौतिक वातावरण, मानवीय क्रियाओं एवं उनके अंतर्प्रक्रियात्मक संबंध के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। यहाँ आप एक प्रासंगिक प्रश्न पूछ सकते हैं कि हमें भूगोल क्यों पढ़ना चाहिए? हम धरातल पर रहते हैं। हमारा जीवन हमारे परिस्थान से अनेक रूपों में प्रभावित होता है। हम निर्वाह के लिए अपने आस-पास के संसाधनों पर निर्भर करते हैं। आदिम समाज अपने भरण-पोषण के लिए प्राकृतिक निर्वाह-संसाधनों, जैसे पशुओं एवं खाद्य पौधों पर आश्रित था। समय बीतने के साथ हमने तकनीकों का विकास किया तथा प्राकृतिक संसाधनों, यथा भूमि, मृदा, जल का उपयोग करते हुए अपना आहार उत्पादन प्रारंभ किया। हमने अपने भोजन की आदतों एवं वस्त्र को मौसमी दशाओं के अनुरूप समायोजित किया। ध्यातव्य है कि प्राकृतिक संसाधन आधार, तकनीकी विकास, भौतिक वातावरण के साथ अनुकूल एवं उसका परिष्करण, सामाजिक संगठन तथा सांस्कृतिक विकास में विभिन्नता पायी जाती है। भूगोल के एक छात्र के रूप में आपको धरातल पर विभिन्नता वाले सभी सत्यों के विषय में जानने के लिए उत्सुक होना चाहिए। आप विविध प्रकार की भूमि एवं लोगों से परिचित हैं, फिर भी समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को समझने में रुचि रखते होंगे। भूगोल आपको विविधता समझने तथा समय एवं स्थान के संदर्भ में एेसी विभिन्नताओं को उत्पन्न करने वाले कारणों की खोज करने की क्षमता प्रदान करता है। इससे आपमें मानचित्र में परिवर्तित गोलक (Globe) को समझने तथा धरातल के दृश्य ज्ञान की कुशलता विकसित होती है। आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक, यथा भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.), संगणक मानचित्र कला (Computer cartography) के रूप में प्राप्त ज्ञान एवं कुशलता आपको राष्ट्र स्तरीय विकास में योगदान करने की योग्यता से लैस करती है।
अब आप अगला प्रश्न पूछना चाहेंगे कि भूगोल क्या है? आप जानते हैं कि पृथ्वी हमारा आवास है। यह पृथ्वी पर रहने वाले अन्य छोटे-बड़े प्राणियों का भी आवास है। पृथ्वी की सतह एक रूप नहीं है। इसके भौतिक स्वरूप में भिन्नता होती है। यहाँ पर्वत, पहाड़ियाँ, घाटियाँ, मैदान, पठार, समुद्र, झील, रेगिस्तान, वन एवं उजाड़ क्षेत्र मिलते हैं। यहाँ सामाजिक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों में भी भिन्नता पायी जाती है जो सांस्कृतिक विकास की पूर्ण अवधि में मानव द्वारा सृजित ग्रामों, नगराें, सड़कों, रेलों, पत्तनों, बाजारों एवं मानवजनित अन्य कई तत्त्वों के रूप में विद्यमान है।
उक्त भिन्नता में भौतिक पर्यावरण एवं सांस्कृतिक लक्षणों के मध्य संबंधों को समझने का संकेत निहित होता है। भौतिक पर्यावरण एक मंच प्रस्तुत करता है जिसपर मानव समाजों ने अपने सृजनात्मक क्रियाकलापों का ड्रामा अपनी तकनीकी विकास से प्राप्त उपकरणों द्वारा मंचित किया। अब आप पहले पूछे गए प्रश्नः ‘भूगोल क्या है?’ का उत्तर देने का सक्षम प्रयास कर सकते हैं। अत्यंत सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भूगोल पृथ्वी का वर्णन है। सर्वप्रथम भूगोल शब्द का प्रयोग इरेटॉस्थेनीज़, एक ग्रीक विद्वान (276-194 ई॰पू॰) ने किया। यह शब्द, ग्रीक भाषा के दो मूल ‘ Geo ’ (पृथ्वी) एवं ‘ graphos ’ (वर्णन) से प्राप्त किया गया है। दोनोें को एक साथ रखने पर इसका अर्थ बनता है, पृथ्वी का वर्णन। पृथ्वी को सर्वदा मानव के आवास के रूप में देखा गया है और इस दृष्टि से विद्वान भूगोल को ‘मानव के निवास के रूप में पृथ्वी का वर्णन’ परिभाषित करते हैैं। आप इस तथ्य से तो परिचित ही हैं कि यथार्थता बहु-आयामी होती है तथा पृथ्वी भी बहु-आयामी है। इसीलिए अनेक प्राकृतिक विज्ञान जैसे- भौमिकी, मृदा विज्ञान, समुद्र विज्ञान, वनस्पति शास्त्र, जीवन विज्ञान, मौसम विज्ञान तथा अन्य सहविज्ञान, सामाजिक विज्ञान के अनेक सहयोगी विषय जैसे- अर्थशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, नृ-विज्ञान इत्यादि धरातल की वास्तविकता के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करते हैं। भूगोल अन्य विज्ञानों से विषयवस्तु तथा विधितंत्र में भिन्न है परंतु साथ ही अन्य विषयों से इसका निकट का संबंध है। भूगोल सभी प्राकृतिक एवं सामाजिक विषयों से सूचनाधार प्राप्त कर उसका संश्लेषण करता है।
हमें पृथ्वी पर भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण में भिन्नता दिखाई पड़ती है। अनेक तत्त्वों में समानता तथा कई में असमानता पाई जाती है। अतएव भूगोल को क्षेत्रीय-भिन्नता का अध्ययन मानना तार्किक लगता है। इस प्रकार भूगोल को उन सभी तथ्यों का अध्ययन करना होता है जो क्षेत्रीय संदर्भ में भिन्न होते हैं। भूगोलवेत्ता मात्र धरातल पर तथ्यों में विभिन्नता का अध्ययन नहीं करते अपितु उन कारकों का भी अध्ययन करते हैं जो इन विभिन्नताओं के कारण होते हैं। उदाहरणार्थ, फसल का स्वरूप एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्न होता है, किंतुु यह भिन्नता एक तथ्य के रूप में मिट्टी, जलवायु, बाजार में माँग, किसानों की व्यय-क्षमता, तकनीकी निवेश की उपलब्धता आदि में भिन्नता से संबंधित होती है।इस प्रकार भूगोल की दिलचस्पी किन्हीं दो तत्त्वों या एक से अधिक तत्त्वों के मध्य कार्य-कारण संबंध को ज्ञात करने में है।
एक भूगोलवेत्ता तथ्यों की व्याख्या कार्य-कारण संबंधों के ढाँचे में ही करता है, क्योंकि यह केवल व्याख्या में ही सहायक नहीं होता, अपितु तथ्य के पूर्वानुमान एवं भविष्य के परिप्रेक्ष्य में देखने की क्षमता भी रखता है। भौतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार के भौगोलिक तथ्य स्थैतिक नहीं, अपितु गत्यात्मक होते हैं। वे सतत् परिवर्तनशील पृथ्वी तथा अथक एवं निरंतर सक्रिय मानव के बीच आबद्ध प्रक्रियाओं के फलस्वरूप कालांतर में परिवर्तित होते रहते हैं। आदिम मानव समाज अपने निकटतम पर्यावरण पर सीधे तौर पर निर्भर करता था; अब एेसा नहीं है। भूगोल, इस प्रकार, ‘प्रकृति’ तथा ‘मानव’ के समग्र इकाई के रूप में अंतर्प्रक्रिया के अध्ययन से संबंधित है। मानव प्रकृति का एक अंगभूत भाग है तथा वह प्रकृति पर अपनीछाप छोड़ता है। प्रकृति मानव जीवन के विभिन्न पक्षों को प्रभावित करती है। इसकी छाप उसके वस्त्र, आवास, व्यवसाय आदि पर देखी जा सकती है। मानव ने प्रकृति के साथ समझौता, अनुकूलन (Adaptation) अथवा आपरिवर्तन(Modification) के माध्यम से किया है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि वर्तमान समाज आदिम समाज की अवस्था पार कर चुका है। उसने तकनीकी के खोज एवं प्रयोग द्वारा अपने अस्तित्व के लिए सन्निकट परिवेश (प्राकृतिक वातावरण) को आपरिवर्तित कर प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए अपने कार्य क्षेत्र के क्षितिज में परिवर्द्धन कर लिया है। तकनीकी के क्रमशः विकास के साथ मानव अपने ऊपर भौतिक पर्यावरण के द्वारा कसे हुए बंधन को ढीला करने में सक्षम हो गया है। तकनीकी ने श्रम की कठोरता को कम कर, श्रम-क्षमता को बढ़ाया तथा अवकाश का प्रावधान करते हुए मानव को उच्चतर आवश्यकताओं को पूर्ण करने का अवसर दिया। उससे उत्पादन के पैमाने एवं श्रम की गतिशीलता में भी वृद्धि हुई।
भौतिक वातावरण एवं मानव के अन्योन्यक्रिया को एक कवि द्वारा संक्षेप में मानव एवं ईश्वर के बीच निम्न वार्तालाप के माध्यम से व्यक्त किया गया है। ‘‘आपने मिट्टी का सृजन किया, मैंने कप का निर्माण किया, आपने रात्रि का सृजन किया, मैंने दीपक बनाया। आपने बंजर भूमि, पहाड़ी भू-भाग एवं मरुस्थलों का सृजन किया, मैंने फूलों की क्यारी तथा बाग-बगीचे बनाये। प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते हुए मानव अपने सृजनात्मक योगदान का दावा करता है। तकनीकी की सहायता से मानव आवश्यकता की अवस्था से स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हुआ। उसने सर्वत्र अपनी छाप छोड़ी तथा प्रकृति के सहयोग से नयी संभावनाओं का सृजन किया। इस प्रकार हमें मानवीकृत प्रकृति तथा प्रकृति-प्रभावित मानव के दर्शन होते हैं। भूगोल इसी अंतर्प्रक्रियात्मक संबंध का अध्ययन करता है। परिवहन एवं संचार के साधनों के जाल तथापदानुक्रमिक केंद्रों के माध्यम से क्षेत्र समाकलित और संगठित हो गये। एक सामाजिक विज्ञान के रूप में भूगोल इसी क्षेत्रीयसमाकलन एवं संगठन का अध्ययन करता है।
एक वैज्ञानिक विषय के रूप में भूगोल तीन वर्गीकृत प्रश्नों से संबंधित हैः
- (i) कुछ प्रश्न धरातल पर पाए जाने वाले प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं के प्रतिरूप की पहचान से जुड़े होते हैं जो ‘क्या’ प्रश्न के उत्तर देते हैं।
- (ii) कुछ प्रश्न पृथ्वी पर भौतिक सांस्कृतिक तत्त्वों के वितरण से संबंधित होते हैं, जो ‘कहाँ’ प्रश्न से संबद्ध होते हैं।
सब मिलाकर उक्त दोनों प्रश्नों में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों के वितरण एवं स्थिति को ध्यान में रखा गया है। इन प्रश्नों से कौन से तत्त्व कहाँ स्थित हैं, से संबंधित सूचीबद्ध सूचनायें प्राप्त होती हैैं। औपनिवेशिक काल से ही यह उपागम बहुत प्रचलित रहा है। इन दो प्रश्नों में तीसरे प्रश्न के जुड़ने तक भूगोल एक वैज्ञानिक विषय नहीं बन सका।
- (iii) यह तृतीय प्रश्न व्याख्या अथवा तत्त्वों एवं तथ्यों के मध्य कार्य-कारण संबंध से जुड़ा हुआ है। भूगोल का यह पक्ष ‘क्यों’ प्रश्न से जुड़ा हुआ है।
एक विषय के रूप में भूगोल का क्रोड क्षेत्र से संबंधित होता है तथा स्थानिक विशेषताओं एवं गुणों का विवेचन करता है। यह क्षेत्र में तथ्यों के वितरण, स्थिति एवं केंद्रीकरण के प्रतिरूप का अध्ययन करता है तथा इन प्रतिरूपों की व्याख्या करते हुए उनका स्पष्टीकरण देता है। यह मानव तथा उसके भौतिक वातावरण के मध्य गत्यात्मक अंतर्प्रक्रिया से उपजे तथ्यों के बीच साहचर्य एवं अंतर्संबंध का विश्लेषण करता है।
भूगोल एक समाकलन (Integrating) विषय के रूप में
चित्र 1.1 : भूगोल तथा इसका अन्य विषयों से संबंध
भूगोल एक संश्लेषणात्मक (Synthesis) विषय है जो क्षेत्रीय संश्लेषण का प्रयास करता है तथा इतिहास, कालिक संश्लेषण का प्रयास करता है। इसके उपागम की प्रकृति समग्रात्मक (Holistic) होती है। यह इस तथ्य को मानता है कि विश्व एक परस्पर निर्भर तंत्र है। आज वर्तमान विश्व से एक वैश्विक ग्राम का प्रतिबोधन होता है। परिवहन के बेहतर साधनों तथा बढ़ती हुई गम्यता के कारण दूरियाँ कम हो गयी हैं। श्रव्य-दृश्य माध्यमों (Audio-visual media) एवं सूचना तकनीकी ने आँकड़ों को बहुत समृद्ध बना दिया है। तकनीकी ने प्राकृतिक तथ्यों तथा आर्थिक एवं सामाजिक प्राचल (पैरामीटर) केनिरीक्षण एवं परीक्षण के बेहतर अवसर प्रदान किए हैं। भूगोल का एक संश्लेषणात्मक विषय के रूप में अनेक प्राकृतिक तथासामाजिक विज्ञानों से अंतरापृष्ठ (Interface) संबंध है। प्राकृतिक या सामाजिक सभी विज्ञानों का एक मूल उदेश्य हैः यथार्थता को ज्ञात करना। भूगोल यथार्थता से जुड़े तथ्यों के साहचर्य को बोधगम्य बनाता है। रेखाचित्र 1.1 भूगोल का अन्य विज्ञानों के साथ संबंध दर्शाता है। वस्तुतः विज्ञान से संबंधित सभी विषय भूगोल से जुड़े हैं, क्योंकि उनके कई तत्त्व क्षेत्रीय संदर्भ में भिन्न-भिन्न होते हैं। भूगोल स्थानिक संदर्भ में यथार्थता को समग्रता से समझने में सहायक होता है। अतः भूगोल न केवल एक स्थान से दूसरे स्थान में तथ्यों की भिन्नता पर ध्यान देता है, अपितु उन्हें समग्रता में समाकलित करता है। भूगोलवेत्ता को सभी संबंधित क्षेत्रों की व्यापक समझ रखने की आवश्कता होती है जिससे कि वह उन्हें तार्किक रूप से संश्लेषित कर सके। यह संश्लेषण कुछ उदाहरणों की सहायता से सरलतापूर्वक समझाया जा सकता है। यथा, भूगोल एेतिहासिक घटनाओं को प्रभावित करता है; स्थानिक दूरी स्वयं विश्व के इतिहास की दिशा को परिवर्तित करने के लिए एक प्रभावशाली कारक है। क्षेत्रीय विस्तार लड़ाई के दौरान विशेषकर पिछली शताब्दी में, कई देशों के लिए सुरक्षा का साधन बना। ‘परंपरागत युद्ध में बड़े आकार वाले देशों ने अधिक स्थान छोड़कर समय का लाभ प्राप्त किया।’ नये विश्व के देशों के चारो तरफ विस्तृत समुद्र द्वारा प्रदत्त रक्षा कवच उन्हें उनकी मिट्टी पर युद्ध होने से बचाता रहा है। यदि हम विश्व की प्रमुख एेतिहासिक घटनाओं का विवेचन करें तो उनमें से प्रत्येक की भौगोलिक व्याख्या की जा सकती है।
भारत में हिमालय एक महान अवरोध के रूप में देश की रक्षा करता रहा है, परंतु उसमें विद्यमान दर्रे मध्य एशिया के आक्रमणकर्ताओं एवं प्रव्रजकों को मार्ग की सुविधा देते रहे हैं। सामुद्रिक किनारे दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका से संपर्क को प्रोत्साहित करते रहे हैं। नौ-संचालन (Navigation) तकनीकी ने यूरोपीय देशों को भारत सहित कई एशियाई एवं अफ्रीकी राष्ट्रों पर उपनिवेशीकरण करने में सहायता की, क्योंकि उन्हें समुद्र के माध्यम से गम्यता मिली। भौगोलिक तत्त्वों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में इतिहास की धारा के आपरिवर्तन के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
प्रत्येक भौगोलिक तथ्य समय के साथ परिवर्तित होता रहता है तथा समय के परिप्रेक्ष्य में उसकी व्याख्या की जा सकती है। भू-आकृति, जलवायु, वनस्पति, आर्थिक क्रियायें, व्यवसाय एवं सांस्कृतिक विकास ने एक निश्चित एेतिहासिक पथ का अनुसरण किया है। अनेक भौगोलिक तत्त्व विभिन्न संस्थानों द्वारा एक विशेष समय पर निर्णय लेने की प्रकिया के प्रतिफल होते हैं। उदाहरणार्थ, अ स्थान ब स्थान से 1,500 कि॰मी॰ दूर है जिसे विकल्प के रूप में यह भी कहा जा सकता है कि अस्थान ब से 2 घंटा दूर है (यदि हवाई जहाज से यात्रा की जाय) या 17 घंटा दूर है (यदि तीव्रगामी रेल से यात्रा की जाय)।इसी कारण समय भौगौलिक अध्ययन के चतुर्थ आयाम के रूप में एक समाकल भाग माना जाता है। कृपया तीन अन्य आयामों का उल्लेख कीजिए। रेखाचित्र (संख्या 1.1) विभिन्न प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों से भूगोल का संबंध प्रचुर रूप से चित्रित करता है। यह संबंध दो खंडों में रखा जा सकता हैः
भौतिक भूगोल एवं प्राकृतिक विज्ञान
भौतिक भूगोल की सभी शाखाएँ, जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है, प्राकृतिक विज्ञान की अंतरापृष्ठ हैं। परम्परागत भौतिक भूगोल, भौमिकी, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, मृदा विज्ञान से संबंधित है। इस प्रकार भू-आकृति विज्ञान, जलवायु विज्ञान, सामुद्रिक विज्ञान, मृदा भूगोल का प्राकृतिक विज्ञान से निकट का संबंध है, क्योंकि ये अपनी सूचनाएँ इन्हीं (विज्ञानों) से प्राप्त करते हैं। जैव-भूगोल, वनस्पति शास्त्र, जीव विज्ञान तथा पारिस्थितिकी विज्ञान से अत्यधिक निकटता से जुड़ा है, क्योंकि मानव विभिन्न स्थैतिक निकेत (Niche) में निवास करता है।
एक भूगोलवेत्ता को गणित एवं कला, विशेषतः मानचित्र रेखांकन में, निपुण होना चाहिए। भूगोल खगोलीय स्थितियों के अध्ययन से भी जुड़ा हुआ है, जो अक्षांश एवं देशांतर का विवरण-प्रस्तुत करता है। पृथ्वी का आकार भू-आभ (Geoid) है परंतु भूगोलवेत्ता का मूल उपकरण मानचित्र है, जो द्वि-आयामी प्रदर्शन होता है। भू-आभ को द्वि-आयामी में परिवर्तित करने का समाधान लेखाचित्रीय या गणितीय रीति से निर्मित प्रक्षेपण द्वारा प्राप्त हो सकता है। रेखात्मक तथा परिमाणात्मक तकनीक में गणित, सांख्यिकी एवं अर्थमिति (Econometrics) में प्रवीणता की आवश्यकता होती है। मानचित्र कलात्मक कल्पना द्वारा तैयार किये जाते हैं। खाका (Sketch), मानस (Mental) मानचित्र एवं मानचित्र कला (Cartographicwork) हेतु कला में निपुणता आवश्यक है।
भूगोल एवं सामाजिक विज्ञान
रेखाचित्र में प्रदर्शित प्रत्येक सामाजिक विज्ञान का भूगोल की एक शाखा से अंतरापृष्ठ (Interface) संबंध है। भूगोल और इतिहास में अंतर्संबंध का विवरण पहले ही दिया जा चुका है। प्रत्येक विषय का एक दर्शन होता है जो उस विषय के लिए मूल-आधार (Raison d'etre) होता है। दर्शन किसी विषय को जड़ प्रदान कर उसके क्रमशः विकास प्रक्रिया में स्पष्ट एेतिहासिक भूमिका प्रस्तुत करता है। इस प्रकार ‘भौगोलिक चिंतन का इतिहास’ भूगोल की मातृशाखा के रूप में सर्वत्र पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। सामाजिक विज्ञान के सभी विषय, यथा समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, जनांकिकी, सामाजिक यथार्थता का अध्ययन करते हैं। भूगोल की सभी शाखाएँ–सामाजिक भूगोल,राजनीतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, अधिवास भूगोल आदि– विषयों से घनिष्ठता से जुड़े हैं, क्योंकि इनमें से प्रत्येक में स्थानिक (Spatial) विशेषताएँ मिलती हैं। राजनीतिशास्त्र का मूल उद्देश्य राज्य क्षेत्र, जनसंख्या, प्रभुसत्ता का विश्लेषण है, जबकि राजनीतिक भूगोल एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में राज्य तथा उसकी जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था की मूल विशेषताओं, जैसे उत्पादन, विवरण, विनिमय एवं उपभोग का विवेचन करता है। इन विशेषताओं में से प्रत्येक का स्थानिक (Spatial) पक्ष होता है। अतएव वहाँ आर्थिक भूगोल की भूमिका आती है, जो उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग के स्थानिक पक्ष का अध्ययन करता है। इसी प्रकार जनसंख्या भूगोल जनांकिकी से निकटता से जुड़ा हुआ है।
उपर्युत्तη विवेचन से स्पष्ट है कि भूगोल प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है। यह अध्ययन के विधितंत्र एवं उपादानों का अनुसरण करता है, जो इसे अन्य विषयों से पृथक करता है। इसका अन्य विषयों से परासरणी(Osmotic) संबंध होता है। जबकि अन्य सभी विषयों का अपना निजी विषय क्षेत्र होता है। भूगोल व्यष्टिपरक सूचनाओं के बहाव का अवरोध नहीं करता जैसा कि शरीर के सभी कोशिकाओं की एक झिल्ली (Membrane) द्वारा पृथक पहचान होती है, परंतु रक्त का बहाव अवरूद्ध नहीं होता। भूगोलवेत्ता सहयोगी विषयों से प्राप्त सूचनाओं एवं आँकड़ों का प्रयोगकरते हुए क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में उसका संश्लेषण करता है। मानचित्र भूगोलवेत्ताओं का बहुत प्रभावशाली उपकरण होता है जिसके माध्यम से क्षेत्रीय प्रतिरूप को प्रकाश में लाने के लिए सारणीबद्ध आँकड़ा दृश्य रूप में परिवर्तित किया जाता है।
भूगोल की शाखाएँ
चित्र : 1.3 : भूगोल की शाखाएँ (प्रादेशिक उपगमन के आधार पर)
पुनः स्मरण हेतु कृपया चित्र 1.1 का अध्ययन करें। इससे यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि भूगोल अध्ययन का एक अंतर्शिक्षण(Interdisciplinary) विषय है। प्रत्येक विषय का अध्ययन कुछ उपागमों के अनुसार किया जाता है। इस दृष्टि से भूगोल के अध्ययन के दो प्रमुख उपागम हैंः (1) विषय वस्तुगत (क्रमबद्ध) एवं (2) प्रादेशिक। विषय वस्तुगत भूगोल का उपागम वही है जो सामान्य भूगोल का होता है। यह उपागम एक जर्मन भूगोलवेत्ता, अलेक्ज़ेंडर वॉन हम्बोल्ट (1769-1859) द्वारा प्रवर्तित किया गया, जबकि प्रादेशिक भूगोल का विकास हम्बोल्ट के समकालीन एक दूसरे जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर (1779-1859) द्वारा किया गया।
विषयवस्तुगत उपागम में एक तथ्य का पूरे विश्वस्तर पर अध्ययन किया जाता है। तत्पश्चात् क्षेत्रीय स्वरूप के वर्गीकृत प्रकारों की पहचान की जाती है। उदाहरणार्थ, यदि कोई प्राकृतिक वनस्पति के अध्ययन में रूचि रखता है, तो सर्वप्रथमविश्व स्तर पर उसका अध्ययन किया जायेगा, फिर प्रकारात्मक वर्गीकरण, जैसे विषुवतरेखीय सदाबहार वन, नरम लकड़ीवाले कोणधारी वन अथवा मानसूनी वन इत्यादि की पहचान, उनका विवेचन तथा सीमांकन करना होगा। प्रादेशिक उपागम में विश्व को विभिन्न पदानुक्रमिक स्तर के प्रदेशों में विभक्त किया जाता है और फिर एक विशेष प्रदेश में सभी भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। ये प्रदेश प्राकृतिक, राजनीतिक या निर्दिष्ट (नामित) प्रदेश हो सकते हैं। एक प्रदेश में तथ्यों का अध्ययन समग्रता से विविधता में एकता की खोज करते हुए किया जाता है। द्वैतवाद भूगोल की एक मुख्य विशेषता है। इसका प्रारंभ से ही विषय में प्रवर्तन हो चुका था। द्वैतवाद (द्विधा) अध्ययन में महत्व दिये जाने वाले पक्ष पर निर्भर करता है। पहले विद्वान भौतिक भूगोल पर बल देते थे। परंतु बाद में स्वीकार किया गया कि मानव धरातल का समाकलित भाग है, वह प्रकृति का अनिवार्य अंग है। उसने सांस्कृतिक विकास के माध्यम से भी योगदान दिया है। इस प्रकार मानवीय क्रियाओं पर बल देने के साथ मानव भूगोल का विकास हुआ।
चित्र 1.2 : भूगोल की शाखाएँ (क्रमबद्ध उपगमन के आधार पर)
भूगोल की शाखाएँ (विषयवस्तुगत या क्रमबद्ध उपागम के आधार पर)
(अ) भौतिक भूगोल
(i) भू-आकृति विज्ञानः यह भू-आकृतियों, उनके क्रम विकास एवं संबंधित प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
(ii) जलवायु विज्ञानः इसके अंतर्गत वायुमंडल की संरचना, मौसम तथा जलवायु के तत्त्व, जलवायु के प्रकार तथा जलवायु प्रदेश का अध्ययन किया जाता है।
(iii) जल-विज्ञानः यह धरातल के जल परिमंडल जिसमें समुद्र, नदी, झील तथा अन्य जलाशय सम्मिलित हैं तथा उसका मानव सहित विभिन्न प्रकार के जीवों एवं उनके कार्यों पर प्रभाव का अध्ययन है।
(iv) मृदा भूगोलः यह मिट्टी निर्माण की प्रक्रियाओं, मिट्टी के प्रकार, उनका उत्पादकता स्तर, वितरण एवं उपयोग आदि के अध्ययन से संबंधित है।
(ब) मानव भूगोल
(i) सामाजिक/सांस्कृतिक भूगोलः इसके अंतर्गत समाज तथा इसकी स्थानिक/प्रादेशिक गत्यात्मकता (Dynamism) एवं समाज के योगदान से निर्मित सांस्कृतिक तत्वों का अध्ययन आता है।
(ii) जनसंख्या एवं अधिवास भूगोलः यह ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि, उसका वितरण, घनत्व, लिंग-अनुपात, प्रवास एवं व्यावसायिक संरचना आदि का अध्ययन करता है जबकि अधिवास भूगोल में ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों के वितरण प्रारूप तथा अन्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।
(iii) आर्थिक भूगोलः यह मानव की आर्थिक क्रियाओं, जैसे- कृषि, उद्योग, पर्यटन, व्यापार एवं परिवहन, अवस्थापना तत्त्व एवं सेवाओं का अध्ययन है।
(iv) एेतिहासिक भूगोलः यह उन एेतिहासिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जो क्षेत्र को संगठित करती हैं। प्रत्येक प्रदेशवर्तमान स्थिति में आने के पूर्व एेतिहासिक अनुभवों से गुजरता है। भौगोलिक तत्त्वों में भी सामयिक परिवर्तन होते रहतेहैं और इसी की व्याख्या एेतिहासिक भूगोल का ध्येय है।
(v) राजनीतिक भूगोलः यह क्षेत्र को राजनीतिक घटनाओं की दृष्टि से देखता है एवं सीमाओं, निकटस्थ पड़ोसी इकाइयों के मध्य भू-वैन्यासिक संबंध, निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन एवं चुनाव परिदृश्य का विश्लेषण करता है। साथ ही जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए सैद्धांतिक रूपरेखा विकसित करता है।
(स) जीव-भूगोल
भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल के अंतरापृष्ठ (Interface)के फलस्वरूप जीव-भूगोल का अभ्युदय हुआ। इसके अंतर्गत निम्नलिखित शाखाएँ आती हैं।
(i) जीव-भूगोलः इसमें पशुओं एवं उनके निवास क्षेत्र के स्थानिक स्वरूप एवं भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन होता है।
(ii) वनस्पति भूगोलः यह प्राकृतिक वनस्पति का उसके निवास क्षेत्र (Habitat) में स्थानिक प्रारूप का अध्ययन करता है।
(iii) पारिस्थैतिक विज्ञानः इसमें प्रजातियों (Species) के निवास/स्थिति क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
(iv) पर्यावरण भूगोलः संपूर्ण विश्व में पर्यावरणीय प्रतिबोधन के फलस्वरूप पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे-भूमि-ह्रास, प्रदूषण, संरक्षण की चिंता आदि का अनुभव किया गया, जिसके अध्ययन हेतु इस शाखा का विकास हुआ।
(द) प्रादेशिक उपागम पर आधारित भूगोल की शाखाएँ
(i) वृहद्, मध्यम, लघुस्तरीय प्रादेशिक/क्षेत्रीय अध्ययन
(ii) ग्रामीण/इलाका नियोजन तथा शहर एवं नगर नियोजन सहित प्रादेशिक नियोजन
(iii) प्रादेशिक विकास
(iv) प्रादेशिक विवेचना/विश्लेषण
दो एेसे पक्ष हैं जो सभी विषयों के लिए उभयनिष्ठ/सर्वनिष्ठ हैं। ये हैंः
(क) दर्शन
(i) भौगोलिक चिंतन
(ii) भूमि एवं मानव अंतर्प्रक्रिया/मानव पारिस्थितिकी
(ख) विधितंत्र एवं तकनीक
(i) सामान्य एवं संगणक आधारित मानचित्रण
(ii) परिमाणात्मक तकनीक/ सांख्यिकी तकनीक
(iii) क्षेत्र सर्वेक्षण विधियाँ
(iv) भू-सूचना विज्ञान तकनीक (Geoinformatics), जैसे- दूर संवेदन तकनीक, भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.), वैश्विक स्थितीय तंत्र (G.P.S.)
उपर्युत्त वर्गीकरण भूगोल की शाखाओं की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करता है। भूगोल पाठ्यक्रम सामान्यतः इसी के ढाँचे में बनाया एवं पढ़ाया जाता है। परंतु यह रूपरेखा एक दृष्टि से स्थैतिक है; क्योंकि किसी भी विषय की यह बाध्यता है कि वह नई सोच, नयी समस्या, नये विधितंत्र एवं नई तकनीक के साथ अग्रसर होता रहे। उदाहरणार्थ, जो पहलेहस्तनिर्मित मानचित्रण तकनीक थी, अब संगणक निर्मित मानचित्रण में परिवर्तित हो गयी है। तकनीकी ने विद्वानों को वृहद् मात्रा में आँकड़ों के प्रबंधन की क्षमता प्रदान कर दी है। इंटरनेट व्यापक सूचनाएँ देता है। इस प्रकार विश्लेषण क्षमता में अपार वृद्धि हुई है। भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.) ने ज्ञान के नये परिदृश्य को खोला है। वैश्विक स्थितीय तंत्र (G.P.S.)बिल्कुल सही स्थिति ज्ञात करने के लिए सुविधाजनक उपकरण हो गया है। तकनीकी ने गंभीर सैद्धांतिक ज्ञान के साथ संश्लेषण करने की क्षमता को बढ़ा दिया है। आप इन तकनीकों के कुछ प्राथमिक पक्षों के विषय में अपनी पुस्तक ‘भूगोल मेंप्रयोगात्मक कार्य भाग-1’ में जान सकेंगे। आप अपनी कुशलता में सुधार करते रहेंगे और उनके उपयोग के विषय का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
भौतिक भूगोल एवं इसका महत्व
पुस्तक का शीर्षक और विषय-सूची इसके विषय क्षेत्र को प्रतिबिंबित करती है। यहाँ भूगोल की इस शाखा के महत्व को बताना युक्ति संगत होगा। भौतिक भूगोल में भूमंडल (भू-आकृतियाँ, प्रवाह, उच्चावच), वायुमंडल (इसकी बनावट, संरचना, तत्त्व एवं मौसम तथा जलवायु, तापक्रम, वायुदाब, वायु, वर्षा, जलवायु के प्रकार इत्यादि) जलमंडल (समुद्र, सागर, झीलें तथा जल परिमंडल से संबद्ध तत्त्व) जैव मंडल (जीव के स्वरूप–मानव तथा वृहद् जीव एवं उनके पोषक प्रक्रम, जैसे- खाद्य शृंखला, पारिस्थैतिक प्राचल (Ecological parametres) एवं पारिस्थैतिक संतुलन) का अध्ययन सम्मिलित होता है। मिट्टियाँ मृदा-निर्माण प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होती हैं तथा वे मूल चट्टान, जलवायु, जैविक प्रक्रिया एवं कालावधि पर निर्भर करती हैं। कालावधि मिट्टियों को परिपक्वता प्रदान करती है तथा मृदा पार्श्विका (Profile)के विकास में सहायक होती है। मानव के लिए प्रत्येक तत्त्व महत्वपूर्ण है। भू-आकृतियाँ आधार प्रस्तुत करती हैं जिसपर मानव क्रियाएँ संपन्न होती हैं। मैदानों का प्रयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है, जबकि पठारों पर वन तथा खनिजसंपदा विकसित की जाती है। पर्वत, चरागाहों, वनों, पर्यटक स्थलों के आधार तथा निम्न क्षेत्रों को जल प्रदान करने वालीनदियों के स्रोत होते हैं। जलवायु हमारे घरों के प्रकार, वस्त्र, भोजन को प्रभावित करती है। जलवायु का वनस्पति, सस्यप्रतिरूप, पशुपालन एवं (कुछ) उद्योगों आदि पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। मानव ने एेसी तकनीकी विकसित की है जो सीमितक्षेत्र में जलवायु को आपरिवर्तित (Modify) कर देती है, जैसे- वातानुकूलक (Air conditioner), वायु शीतक इत्यादि। तापमान तथा वर्षा, वनों के घनत्व एवं घास प्रदेशों की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। भारत में मानसूनी वर्षा कृषि आवर्तन प्रणाली को गति प्रदान करती है। वर्षा, भूमिगत जल-धारक प्रस्तर (Aquifer) को पुनरावेशित (Recharge) कर कृषि एवं घरेलू कार्यों के लिए जल की उपलब्धता संभव बनाती है। हम संसाधनों के भंडार समुद्र का अध्ययन करते हैं। वह मछली एवं अन्य समुद्री भोजन के अतिरिक्त खनिजों की दृष्टि से भी सम्पन्न है। भारत ने समुद्री-तल से मैंगनीज पिंड (नॉड्यूल्स) एकत्रित करने की तकनीक विकसित कर ली है। मृदा एक नवीकरणीय/पुनः स्थापनीय संसाधन है जो अनेक आर्थिक क्रियाओं, जैसे कृषि को प्रभावित करती है। मिट्टी की उर्वरता प्रकृति से निर्धारित तथा संस्कृति से प्रेरित होती है। मृदा पौधों, पशुओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं के धारक जीवमंडल के लिए आधार प्रदान करती है।
भूगोल क्या है?
भूगोल का उद्देश्य धरातल की प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का वर्णन एवं व्याख्या करना है।
रिचर्ड हार्टशोर्न
भूगोल धरातल के विभिन्न भागों में कारणात्मक रूप से संबंधित तथ्यों में भिन्नता का अध्ययन करता है।
भौतिक भूगोल प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन एवं प्रबंधन से संबंधित विषय के रूप में विकसित हो रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भौतिक पर्यावरण एवं मानव के मध्य संबंधों को समझना आवश्यक है। भौतिक पर्यावरण संसाधन प्रदान करता है एवं मानव इन संसाधनों का उपयोग करते हुए अपना आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित करता है। तकनीकीकी सहायता से संसाधनों के बढ़ते उपयोग ने विश्व में पारिस्थैतिक असंतुलन उत्पन्न कर दिया है। अतएव सतत् विकास (Sustainable development) के लिए भौतिक वातावरण का ज्ञान नितांत आवश्यक है जो भौतिक भूगोल के महत्व को रेखांकित करता है।
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) निम्नलिखित में से किस विद्वान ने भूगोल (Geography) शब्द (Term) का प्रयोग किया?
(क) हेरोडटस (ख) गौलिलियो (ग) इरेटास्थेनीज़ (घ) अरस्तू
(ii) निम्नलिखित में से किस लक्षण को भौतिक लक्षण कहा जा सकता है?
(क) पत्तन (ख) मैदान (ग) सड़क (घ) जल उद्यान
(iii) स्तंभ I एवं II के अंतर्गत लिखे गए विषयों को पढ़िए।
स्तंभ क स्तंभ ख
प्राकृतिक/सामाजिक विज्ञान भूगोल की शाखाएँ
1. मौसम विज्ञान अ. जनसंख्या भूगोल
2. जनांकिकी ब. मृदा भूगोल
3. समाजशास्त्र स. जलवायु विज्ञान
4. मृदा विज्ञान द. सामाजिक भूगोल
सही मेल को चिह्नांकित कीजिए
(क)1ब, 2स, 3अ, 4द (ख) 1द, 2ब, 3स, 4अ
(ग) 1अ, 2द, 3ब, 4स (घ) 1स, 2अ, 3द, 4ब
(iv) निम्नलिखित में से कौन सा प्रश्न कार्य-कारण संबंध से जुड़ा हुआ है?
(क) क्यों (ख) क्या (ग) कहाँ (घ) कब
(v) निम्नलिखित में से कौन सा विषय कालिक संश्लेषण करता है?
(क) समाजशास्त्र (ख) मानवशास्त्र (ग) इतिहास (घ) भूगोल
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) आप विद्यालय जाते समय किन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं? क्या वे सभी समान हैं अथवा असमान? उन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए अथवा नहीं? यदि हाँ तो क्यों?
(ii) आपने एक टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, संतरा एवं लौकी देखा होगा। इनमें से कौन सी वस्तु की आकृत्ति पृथ्वी की आकृत्ति से मिलती जुलती है? आपने इस विशेष वस्तु को पृथ्वी की आकृत्ति को वर्णित करने के लिए क्यों चुना है।
(iii) क्या आप आपने विद्यालय में वन महोत्सव समारोह का आयोजन करते हैं? हम इतने पौधारोपण क्यों करते हैं? वृक्ष किस प्रकार पारिस्थैतिक संतुलन बनाए रखते हैं?
(iv) आपने हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास देखा है। वे कहाँ रहते एवं बढ़ते हैं? उस मंडल को क्या नाम दिया गया है? क्या आप इस मंडल के कुछ लक्षणों का वर्णन कर सकते हैं?
(v) आपको अपने निवास से विद्यालय जाने में कितना समय लगता है? यदि विद्यालय आपके घर की सड़क के उस पार होता तो आप विद्यालय पहुँचने में कितना समय लेते? आने जाने के समय पर आपके घर एवं विद्यालय के बीच की दूरी काक्या प्रभाव पड़ता है? क्या आप समय को स्थान या, इसके विपरीत, स्थान को समय में परिवर्तित कर सकते हैं?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) आप आपने परिस्थान (Surrounding) का अवलोकन करने पर पाते हैं कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। सभी वृक्ष एक ही प्रकार के नहीं होते। सभी पशु एवं पक्षी जिसे आप देखते हैं भिन्न भिन्न होते हैं। ये सभी भिन्न तत्त्व धरातल पर पाये जाते हैं। क्या अब आप यह तर्क दे सकते हैं कि भूगोल प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन है?
(ii) आप पहले ही भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का सामाजिक विज्ञान के घटक के रूप में अध्ययन कर चुके हैं। इन विषयों के समाकलन का प्रयास उनके अंतरापृष्ठ (Interface) पर प्रकाश डालते हुए कीजिए।
परियोजना कार्य
(अ) वन को एक संसाधन के रूप में चुनिए, एवं
(i) भारत के मानचित्र पर विभिन्न प्रकार के वनों के वितरण को दर्शाइए।
(ii) ‘देश के लिए वनों के आर्थिक महत्त्व’ के विषय पर एक लेख लिखिए।
(iii) भारत में वन संरक्षण का एेतिहासिक विवरण राजस्थान एवं उत्तरांचल में ‘चिपको आंदोलन’ पर प्रकाश डालते हुए प्रस्तुत कीजिए।