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अध्याय 12

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन


विश्व की जलवायु का अध्ययन जलवायु संबंधी आंकड़ ों एवं जानकारियों को संगठित करके किया जा सकता है। इन आँकड़ ों को आसानी से समझने व उनका वर्णन और विश्लेषण करने के लिए उन्हें अपेक्षाकृत छोटी इकाइयों में बाँटकर संश्लेषित किया जा सकता है। जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहत् उपगमनों द्वारा किया गया है। वे हैं - आनुभविक, जननिक और अनुप्रयुक्त। आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्णन से संबंधित आँकड़ ों पर आधारित होता है। जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर  संगठित करने का प्रयास है। जलवायु का अनुप्रयुक्त वर्गीकरण किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है।


कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति

वी. कोपेन द्वारा विकसित की गई जलवायु के वर्गीकरण की आनुभविक पद्धति का सबसे व्यापक उपयोगकिया जाता है। कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की।उन्होंने तापमान तथा वर्षण के कुछ निश्चित मानों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया। वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आँकड़ ों पर आधारित यह एक आनुभविक पद्धति है। उन्होंने जलवायु के समूहों एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए बड़ े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग का आरंभ किया। सन् 1918 मे विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है।

कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए जिनमें से चार तापमान पर और एक वर्षण पर आधारित है। कोपेन के जलवायु समूह एवं उनकी विशेषताओं को सारणी 12.1 में दिया गया है।

सारणी 12.1 कोपेन के अनुसार जलवायु समूह

समूह        

लक्षण

A.   उष्णकटिबंधीय        

सभी महीनों का औसत तापमान 18º   सेल्सियस से अधिक।

B.   शुष्क जलवायु        

वर्षण की तुलना में विभव वाष्पीकरण की अधिकता।

C.   कोष्ण शीतोष्ण        

सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान   सेल्सियस से अधिक किन्तु 18°   सेल्सियस से कम मध्य अक्षांशीय जलवायु।

D.   शीतल हिम-वन जलवायु        

वर्ष के सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान शून्य अंश तापमान से   नीचे।

E.  शीत        

सभी महीनों का औसत तापमान 10°   सेल्सियस से कम।

H.  उच्चभूमि        

ऊँचाई के कारण शीत।

बड़ े अक्षर A, C, D तथा E आर्द्र जलवायु को तथा B अक्षर शुष्क जलवायु को निरूपित करता है। जलवायु समूहों को तापक्रम एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर कई उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है जिसको छोटे अक्षरों द्वारा अभिहित किया गया है। शुष्कता वाले मौसमों को छोटे अक्षरों f,m,w और s द्वारा इंगित किया गया है। इसमें f शुष्क मौसम के न होने को m मानसून जलवायु को w शुष्क शीत ऋतु को और s शुष्क ग्रीष्म ऋतु को इंगित करता है छोटे अक्षर a,b,c तथा d तापमान की उग्रता वाले भाग को दर्शाते हैं। B समूह की जलवायु को उपविभाजित करते हुए स्टेपी अथवा अर्ध-शुष्क के लिए S तथा मरुस्थल के लिए W जैसे बड़ े अक्षरों का प्रयोग किया गया है। जलवायु प्रकारों को सारणी 12.2 में दिखाया गया है। जलवायु समूहों एवं प्रकारों का वितरण सारणी 12.1 में दर्शाया गया है।

सारणी 12.2 : कोपेन के अनुसार जलवायु प्रकार

समूह

प्रकार

कूट अक्षर

लक्षण

A   उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु

उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी

उष्णकटिबंधीय आर्द्र

उष्णकटिबंधीय मानसून

Af

Am

Aw

कोई शुष्क ऋतु नहीं।

मानसून, लघु शुष्क ऋतु

जाड़ े की शुष्क ऋतु

B   शुष्क जलवायु

उष्णकटिबंधीय आर्द्र एंव शुष्क

उपोष्ण कटिबंधीय मरूस्थल

मध्य अक्षांशीय स्टैपी

मध्य अक्षांशीय मरूस्थल

BSh

BWh

BSk

BWk

निम्न अक्षांशीय अर्ध शुष्क एवं शुष्क

निम्न अक्षांशीय शुष्क

मध्य अक्षांशीय अर्ध शुष्क अथवा शुष्क

मध्य अक्षांशीय शुष्क

C   कोष्ण शीतोष्ण (मघ्य अक्षांशीय जलवायु)

आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय

भूमध्य सागरीय

समुद्री पश्चिम तटीय

Cfa

Csa

Cfb

मध्य अक्षांशीय अर्धशुष्क अथवा शुष्क

शुष्क गर्म ग्रीष्म

कोई शुष्क ऋतु नहीं, कोष्ण तथा शीतल ग्रीष्म

D  शीतल हिम-वन जलवायु

आर्द्र महाद्वीपीय

उप-उत्तर ध्रुवीय

Df

Dw

कोई शुष्क ऋतु नहीं, भीषण जाड़ ा

जाड़ ा शुष्क तथा अत्यंत भीषण

E   शीत जलवायु

टुंड्रा

ध्रुवीय हिमटोपी

ET

EF

सही अर्थो में कोई ग्रीष्म नहीं

सदैव हिमाच्छादित हिम

F   उच्च भूमि

उच्च भूमि

H

हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ


समूह A   उष्णकटिबंधीय जलवायु

उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पाई जाती है। संपूर्ण वर्ष सूर्य के ऊर्ध्वस्थ तथा अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की उपस्थिति के कारण यहाँ की जलवायु ऊष्ण एवं आर्द्र रहती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम तथा वर्षा अधिक होती है। जलवायु के इस उष्णकटिबंधीय समूह को तीन प्रकारों में बाँटा जाता है, जिनके नाम हैं (i) Af उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु; (ii) Am उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु और (iii) Aw उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु जिसमें शीत ऋतु शुष्क होती है।


उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Af)  

उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु विषुवत् वृत्त के निकट पाई जाती है। इस जलवायु के प्रमुख क्षेत्र दक्षिणअमेरिका का अमेजन बेसिन, पश्चिमी विषुवतीय अफ्रीका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के द्वीप हैं। वर्ष के प्रत्येकमाह में दोपहर के बाद गरज और बौछारों के साथ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है। तापमान समान रूप से ऊँचाऔर वार्षिक तापांतर नगण्य होता है। किसी भी दिन अधिकतम तापमान लगभग 30° सेल्सियस और न्यूनतम तापमान लगभग 20° सेल्सियस होता है। इस जलवायु में सघन वितान तथा व्यापक जैव-विविधता वाले उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन पाए जाते हैं।


उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु (Am)

उष्णकटिबंधीय मानूसन जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी भाग तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है। भारी वर्षा अधिकतर गर्मियों में होती है। शीत ऋतु शुष्क होती है। जलवायु के इस प्रकार का विस्तृत जलवायवी विवरण ‘भारत ः भौतिक पर्यावरण’, एन.सी.आर.टी., 2006 में दिया गया है।

उष्णकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु (Aw)

उष्णकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु Af प्रकार के जलवायु प्रदेशों के उत्तर एवं दक्षिण में पाई जाती है। इसकी सीमा महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में शुष्क जलवायु के साथ और पूर्वी भाग में Cf तथा Cw प्रकार की जलवायु के साथ पाई जाती है। विस्तृत Aw जलवायु दक्षिण अमेरिका में स्थित ब्राजील के वनों के उत्तर और दक्षिण में बोलिविया और पैरागुए के निकटवर्ती भागों तथा सूडान और मध्य अफ्रीका के दक्षिण में पाई जाती है। इस जलवायु में वार्षिक वर्षा Af तथा Am जलवायु प्रकारों की अपेक्षा काफी कम तथा विचरणशील है। आर्द्र ऋतु छोटी और शुष्क ऋतु भीषण व लंबी होती है। तापमान वर्ष भर ऊँचा रहता है और शुष्क ऋतु मेंदैनिक तापांतर सर्वाधिक होते हैं। इस जलवायु में पर्णपाती वन और पेड़ ों से ढकी घासभूमियाँ पाई जाती है।

शुष्क जलवायु- B

शुष्क जलवायु की विशेषता अत्यंत न्यून वर्षा है जो पादपों की वृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं होती। यह जलवायु पृथ्वी के बहुत बड़ े भाग पर पाई जाती है जो विषुवत् वृत्त से 15° से 60° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के बीच विस्तृत है। 15° से 30° के निम्न अंक्षाशों में यह उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में पाई जाती है। जहाँ तापमान का अवतलन और उत्क्रमण, वर्षा नहीं होने देते। महाद्वीपों के पश्चिमी सीमांतों पर, ठंडी धाराओं के आसन्न क्षेत्र, विशेषतः दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर, यह जलवायु विषुवत् वृत्त की ओर अधिक विस्तृत है और तटीय भाग में पाई जाती है। मध्य अक्षांशों में विषुवत् वृत्त से 35° से 60° उत्तर व दक्षिण के बीच यह जलवायु महाद्वीपों के उन आंतरिक भागों तक परिरूद्ध होती है जहाँ पर्वतों से घिरे होने के कारण प्रायः समुद्री आर्द्र पवनें नहीं पहुँच पातीं।

शुष्क जलवायु को स्टेपी अथवा अर्ध-शुष्क जलवायु (BS) और मरूस्थल जलवायु (BW) में विभाजित किया जाता है। इसे आगे 15° से 35° अक्षांशों के बीच उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी (BSh) और उपोष्ण कटिबंधीय मरूस्थल (BWh) में बाँटा जाता है। 35° और 60° अंक्षाशों के बीच इसे मध्य अक्षांशीय स्टेपी (BSk) तथा मध्य अक्षांशीय मरूस्थल (BWk) मे विभाजित किया जाता है।

उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी (BSh) एवं

उपोष्ण कटिबंधीय मरूस्थल (BWh) जलवायु

उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी (BSh) एवं उपोष्ण कटिबंधीय मरूस्थल (BWh) जलवायु में वर्षण और तापमान के लक्षण एक समान होते हैं। आर्द्र एंव शुष्क जलवायु के संक्रमण क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण उपोष्णकटिबंधीय स्टेपी जलवायु में मरूस्थल जलवायु की अपेक्षा वर्षा थोड़ ी ज्यादा होती है जो विरल घासभूमियों के लिए पर्याप्त होती है। वर्षा दोनों ही जलवायु में परिवर्तनशीलता होती है। वर्षा की परिवर्तनशीलतामरूस्थल की अपेक्षा स्टेपी में जीवन को अधिक प्रभावित करती है। इससे कई बार अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। मरूस्थलों में वर्षा थोड़ ी किंतु गरज के साथ तीव्र बौछारों के रूप में होती है, जो मृदा में नमी पैदाकरने में अप्रभावी सिद्ध होती है। ठंडी धाराओं तापमान लगते तटीय मरूस्थलों में कोहरा एक आम बात है।ग्रीष्मऋतु में अधिकतम तापमान बहुत ऊँचा होता है। लीबिया के अल-अजीज़िया में 13 सितंबर 1922 को उच्चतम तापमान 58° सेल्सियस दर्ज किया गया था। इस जलवायु में वार्षिक और दैनिक तापांतर भी अधिकपाए जाते हैं।

कोष्ण शीतोष्ण (मध्य अक्षांशीय) जलवायु - C

कोष्ण शीतोष्ण (मध्य अक्षांशीय) जलवायु 30° से 50° अक्षांशों के मध्य मुख्यतः महाद्वीपों के पूर्वी और पश्चिमी सीमांतों पर विस्तृत है। इस जलवायु में सामान्यतः ग्रीष्म ऋतु कोष्ण और शीत ऋतु मृदुल होती है। इसजलवायु को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैः (i) आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय, अर्थात सर्दियों में शुष्क और गर्मियों में उष्ण (Cwa) (ii) भूमध्यसागरीय (Cs) (iii) आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय अर्थात् शुष्क ऋतु की अनुपस्थिति तथा मृदु शीत ऋतु (Cfa) (iv) समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु (Cfb)।

आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु (Cwa)

आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु कर्क एवं मकर रेखा से ध्रुवों की ओर मुख्यतः भारत के उत्तरी मैदान और दक्षिणी चीन के आंतरिक मैदानों में पाई जाती है। यह जलवायु Aw जलवायु जैसी ही है, केवल इतना अपवाद है कि इसमे सर्दियों का तापमान कोष्ण होता है।

भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs)

जैसा कि नाम से स्पष्ट है भूमध्य सागरीय जलवायु भूमध्य सागर के चारों ओर तथा उपोष्ण कटिबंध से 30° से 40° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तट के साथ-साथ पाई जाती है। मध्य केलिफोर्निया, मध्य चिली तथा आस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी तट इसके उदाहरण हैं। ये क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब तथा शीत ऋतु में पछुआ पवनों के प्रभाव में आ जाते हैं। इस प्रकार उष्ण व शुष्क गर्मियाँ तथा मृदु एवं वर्षायुक्त सर्दियाँ इस जलवायु की विशेषताएँ हैं। ग्रीष्म ऋतु में औसत मासिक तापमान 25° सेल्सियस के आस-पास तथा शीत ऋतु में 10° सेल्सियस से कम रहता है। वार्षिक वर्षा 35 से 90 से.मी. केबीच होता है।

आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु (Cfa)

आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय अक्षांशों में महाद्वीपों के पूर्वी भागों में पाई जाती है। इस प्रदेश में वायुराशियाँ प्रायः अस्थिर रहती हैं और पूरे वर्ष वर्षा करती हैं। यह जलवायु पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी तथा पूर्वी चीन, दक्षिणी जापान, उत्तर-पूर्वी अर्जेंटीना, तटीय दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर पाई जाती है। औसत वार्षिक वर्षा 75 से 150 से.मी. के बीच रहती है। ग्रीष्म ऋतु में तड़ ितझंझा और शीतऋतु में वाताग्री वर्षण सामान्य विशेषताएँ हैं। ग्रीष्म ऋतु में औसत मासिक तापमानलगभग 27° सेल्सियस होता है जबकि जाड़ ों में यह 5° से 12° सेल्सियस के बीच रहता है। दैनिक तांपातर बहुत कम होता है।

समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु (Cfb)

समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर भूमध्य सागरीय जलवायु से ध्रुवों की ओर पाईजाती है। इस जलवायु के प्रमुख क्षेत्र हैं - उत्तर-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पश्चिमी तट, उत्तरी केलिफोर्निया, दक्षिण चिली, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। यहाँ समुद्री प्रभाव के कारण तापमान मध्यम होते हैं और शीत ऋतु में अपने अक्षांशों की तुलना में कोष्ण होते हैं। गर्मी के महीनों में औसत तापमान 15° से 20° सेल्सियस और सर्दियों में 4° से 10° सेल्सियस के बीच रहता है। वार्षिक और दैनिक तापांतर कम पाया जाता हैं। वर्षण साल भर होती है लेकिन यह सर्दियों में अधिक होती है। वर्षण 50 से.मी. से 250 से.मी. के बीच घटती बढ़ती रहती है।

शीत हिम-वन जलवायु (D)

शीत हिम-वन जलवायु उत्तरी गोलार्द्ध में 40° से 70° अक्षांशों के बीच यूरोप, एशिया और उत्तर अमेरिका के विस्तृत महाद्वीपीय क्षेत्रों में पाई जाती है। शीत हिम वन जलवायु को दो प्रकारों में विभक्त किया जाता हैः (i) Df आर्द्र जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु और (ii) Dw शुष्क जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु उच्च अक्षांशों में सर्दी की उग्रता अधिक मुखर होती है।

आर्द्र जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु (Df)

आर्द्र जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु और मध्य अक्षांशीय स्टैपी जलवायु से ध्रुवों की ओर पाई जाती है। जाड़ े ठंडे और बर्फीले होते हैं। तुषार-मुक्त ऋतु छोटी होती है। वार्षिक तापांतर अधिक होता है। मौसमी परिवर्तन आकस्मिक और अल्पकालिक होते हैं। ध्रुवों की ओर सर्दियाँ अधिक उग्र होती हैं।

शुष्क जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु (DW)

शुष्क जाड़ ों से युक्त ठंडी जलवायु मुख्यतः उत्तर-पूर्वी एशिया में पाई जाती है। जाड़ ों में प्रतिचक्रवात का स्पष्ट विकास तथा ग्रीष्म ऋतु में उसका कमजोर पड़ ना इस क्षेत्र में पवनों के प्रत्यार्वन की मानसून जैसी दशाएँ उत्पन्न करते हैं। ध्रुवों की ओर गर्मियों में तापमान कम होते हैं और जाड़ ों में तापमान अत्यंत न्यून होती है। कुछ स्थान तो एेसे भी हैं, जहाँ वर्षा के सात महीने तक तापमान हिमांक बिंदु से कम रहता हैं। वार्षिक वर्षा कम होती है जो 12 से 15 से.मी. के बीच होती है।

ध्रुवीय जलवायु (E)

ध्रुवीय जलवायु 70° अक्षांश से परे ध्रुवों की ओर पाई जाती है। ध्रुवीय जलवायु दो प्रकार की होती हैः (i) टुण्ड्रा (ET) (ii) हिम टोपी (EF)।

टुण्ड्रा जलवायु (ET)

टुण्ड्रा जलवायु का नाम काई, लाइकान तथा पुष्पी पादप जैसे छोटे वनस्पति प्रकारों के आधार पर रखा गया है। यह स्थायी तुषार का प्रदेश है जिसमें अधोभूमि स्थायी रूप से जमी रहती है। लघुवर्धन काल और जलाक्रांति छोटी वनस्पति का ही पोषण कर पाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में टुण्ड्रा प्रदेशों में दिन के प्रकाश की अवधि लंबी होती है।

हिमटोप जलवायु (EF)

हिमटोप जलवायु ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के आंतरिक भागों में पाई जाती है। गर्मियों में भी तापमान हिमांक से नीचे रहता है। इस क्षेत्र में वर्षा थोड़ ी मात्रा में होती है। तुषार एवं हिम एकत्रित होती जाती है जिनका बढ़ता हुआ दबाव हिम परतों को विकृत कर देता है। हिम परतों के ये टुकड़ े आर्कटिक एवं अंटार्कटिक जल में खिसक कर प्लावी हिम शैलों के रूप में तैरने लगते हैं। अंटार्कटिक में 79° दक्षिण अक्षांश पर ‘‘प्लेट्यू स्टेशन’’ पर भी यही जलवायु पाई जाती है।

उच्च भूमि जलवायु (F)

उच्च भूमि जलवायु भौम्याकृति द्वारा नियंत्रित होती है। ऊँचे पर्वतों में थोड़ ी-थोड़ ी दूरियों पर मध्यमान तापमान में भारी परिवर्तन पाए जाते हैं। उच्च भूमियों में वर्षण के प्रकारों व उनकी गहनता में भी स्थानिक अंतर पाए जाते हैं। पर्वतीय वातावरण में ऊँचाई के साथ जलवायु प्रदेशों के स्तरित ऊर्ध्वाधर कटिबंध पाए जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन

जिस प्रकार की जलवायु का अनुभव हम अब कर रहे हैं वह थोड़ े बहुत उतार चढ़ाव के साथ विगत 10 हज़ार वर्षों से अनुभव की जा रही है। अपने प्रादुर्भाव से ही पृथ्वी ने जलवायु में अनेक परिवर्तन देखे हैं।भूगर्भिक अभिलेखों से हिमयुगों और अंतर-हिमयुगों में क्रमशः परिवर्तन की प्रक्रिया परिलक्षित होती है। भू-आकृतिक लक्षण, विशेषतः ऊँचाईयों तथा उच्च अक्षांशों में हिमानियों के आगे बढ़ने व पीछे हटने के शेषचिह्न प्रदर्शित करते हैं। हिमानी निर्मित झीलों में अवसादों का निक्षेपण उष्ण एवं शीत युगों के होने कोउजागर करता है। वृक्षों के तनों में पाए जाने वाले वलय भी आर्द्र एवं शुष्क युगों की उपस्थिति का संकेत देतेहैं। एेतिहासिक अभिलेख भी जलवायु की अनिश्चितता का वर्णन करते हैं। ये सभी साक्ष्य इंगित करते हैं किजलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक एवं सतत प्रक्रिया है।

भारत में भी आर्द्र एवं शुष्क युग आते जाते रहे हैं। पुरातत्व खोजें दर्शाती हैं कि ईसा से लगभग 8,000 वर्ष पूर्व राजस्थान मरुस्थल की जलवायु आर्द्र एवं शीतल थी। ईसा से 3,000 से 1,700 वर्ष पूर्व यहाँ वर्षा अधिक होती थी। लगभग 2,000 से 1,700 वर्ष ईसा पूर्व यह क्षेत्र हड़ प्पा संस्कृति का केंद्र था। शुष्क दशाएँ तभी से गहन हुई हैं।

लगभग 50 करोड़ से 30 करोड़ वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल के कैंब्रियन, आर्डोविसियन तथा सिल्युरियन युगों में पृथ्वी गर्म थी। प्लीस्टोसीन युगांतर के दौरान हिमयुग और अंतर हिमयुग अवधियाँ रही हैं। अंतिम प्रमुखहिमयुग आज से 18,000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर हिमयुग 10,000 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।

अभिनव पूर्व काल में जलवायु

सभी कालों में जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं। पिछली शताब्दी के 90 के दशक में चरम मौसमी घटनाएँ घटित हुई हैं। 1990 के दशक में शताब्दी का सबसे गर्म तापमान और विश्व में सबसे भयंकर बाढ़ों को दर्ज किया है। सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित साहेल प्रदेश में 1967 से 1977 के दौरान आया विनाशकारी सूखा एेसा ही एक परिवर्तन था। 1930 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के बृहत मैदान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, जिसे ‘धूल का कटोरा’ कहा जाता है, भीषण सूखा पड़ ा। फसलों की उपज अथवा फसलों के विनाश, बाढ़ों तथा लोगों के प्रवास संबंधी एेतिहासिक अभिलेख परिवर्तनशील जलवायु के प्रभावों के बारे में बताते हैं। यूरोप अनेकों बार उष्ण, आर्द्र, शीत एवं शुष्क युगों से गुजरा है। इनमें से महत्त्वपूर्ण प्रसंग 10 वीं और 11 वीं शताब्दी की उष्ण एवं शुष्क दशाओं का है, जिनमें वाइकिंग कबीले ग्रीनलैंड में जा बसे थे। यूरोप ने सन् 1550 से सन् 1850 के दौरान लघु हिम युग का अनुभव किया है। 1885 से 1940 तक विश्व के तापमान में वृद्धि कीप्रवृत्ति पाई गई है। 1940 के बाद तापमान में वृद्धि की दर घटी है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

भूमंडलीय ऊष्मन पर एक व्याख्यात्मक टिप्पणी लिखें।

जलवायु परिवर्तन के अनेक कारण हैं। इन्हें खगोलीय और पार्थिव कारणों में वर्गीकृत किया जा सकता है। खगोलीय कारणों का सबंध सौर कलंकों की गतिविधियों से उत्पन्न सौर्यिक निर्गत ऊर्जा में परिवर्तन से है।सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं, जो एक चक्रीय, ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। कुछ मौसम वैज्ञानिकोंके अनुसार सौर कंलकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्याबढ़ जाती है। सौर कलंकों की संख्या घटने से उष्ण एवं शुष्क दशाएँ उत्पन्न होती हैं यद्यपि ये खोजें अाँकड़ ों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।

एक अन्य खगोलीय सिद्धांत ‘मिलैंकोविच दोलन’ है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के कक्षीय लक्षणों मेंबदलाव के चक्रों, पृथ्वी की डगमगाहट तथा पृथ्वी के अक्षीय झुकाव में परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाता है।ये सभी कारक सूर्य से प्राप्त होने वाले सूर्यातप में परिवर्तन ला देते हैं। जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ ता है।

ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य कारण है। ज्वालामुखी उद्भेदन वायुमंडल में बड़ ी मात्रा में एैरोसोल फेंक देता है। ये एैरोसोल लंबे समय तक वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाले सौर्यिक विकिरण को कम कर देते हैं। हाल ही में हुए पिनाटोबा तथा एल सियोल ज्वालामुखीउद्भेदनों के बाद पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक गिर गया था।

जलवायु पर पड़ ने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानवोद्भवी कारण वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता सांद्रण है। इससे भूमंडलीय ऊष्मन हो सकता है।

भूमंडलीय ऊष्मन

ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति के कारण वायुमंडल एक ग्रीनहाउस की भांति व्यवहार करता है। वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण का पारेषण भी करता है किंतु पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर उत्सर्जित होने वाली अधिकतम् दीर्घ तंरगों को अवशोषित कर लेता है। वे गैसें जो विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करती हैं, ग्रीनहाउस गैसें कहलाती हैं। वायुमंडल का तापन करने वाली प्रक्रियाओं को सामूहिक रूप से ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ (Green house effect) कहा जाता है।

ग्रीनहाउस गैसें (GHGs)

वर्तमान में चिंता का कारण बनी मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाईअॉक्साइड (CO 2 ) क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स (CFCs), मीथेन (CH 4 ) नाइट्रस अॉक्साईड (N 2 O) और ओज़ोन (O 3 ) हैं। कुछ अन्य गैसें जैसे नाइट्रिक अॉक्साइड (NO) और कार्बन मोनोक्साइड (CO) आसानी से ग्रीनहाउस गैसों से प्रतिक्रिया करती हैं और वायुमंडल में उनके सांद्रण को प्रभावित करती हैं। किसी भी ग्रीनहाउस गैस का प्रभाव इसके सांद्रण में वृद्धि के परिमाण, वायुमंडल में इसके जीवन काल तथा इसके द्वारा अवशोषित विकिरण की तरंग लंबाई पर निर्भर करता है। क्लोरो-फ्लोरोकार्बन अत्यधिक प्रभावी होते हैं। समताप मंडल में पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करने वाली ओज़ोन जब निम्न समताप मंडल में उपस्थित होती है, तो वह पार्थिव विकिरण को अत्यंत प्रभावी ढंग से अवशोषित करती है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ग्रीनहाउस गैसों के अणु जितने लंबे समय तक बने रहते हैं इनके द्वारा लाए गए परिवर्तनों से पृथ्वी के वायुमंडलीय तंत्र को उबरने में उतना अधिक समय लगता है। वायुमंडल में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसों में सबसे अधिक सांद्रण कार्बन डाईअॉक्साइड का है। CO 2 का उत्सर्जन मुख्यतः जीवाश्मी ईंधनों (तेल, गैस एंव कोयला) के दहन से होता है। वन और महासागर कार्बन डाईअॉक्साइड के कुंड होते हैं। वन अपनी वृद्धि के लिए CO 2  का उपयोग करते हैं। अतः भूमि उपयोग में परिवर्तनों के कारण की गई जंगलों की कटाई भी CO 2  की मात्रा बढ़ाती है। अपने स्रोतों में हुए परिवर्तनों से समंजित करने के लिए CO 2  को 20 से 50 वर्ष लग जाते हैं। यह लगभग 0.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है। जलवायवी मॉडलों में जलवायु में होने वाले परिवर्तनों का आंकलन CO 2  की मात्रा को पूर्व औद्योगिक स्तर से दुगुना करके किया जाता है।

क्लोरो-फ्लोरोकार्बन मानवीय गतिविधियों से पैदा होते है। ओज़ोन समताप मंडल में उपस्थित होती है,जहाँ पराबैंगनी किरणों अॉक्सीजन को ओज़ोन में बदल देती है। इससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह परनहीं पहुँच पातीं। समताप मंडल में वाहित होने वाली ग्रीनहाउस गैसें भी ओज़ोन को नष्ट करती हैं। ओज़ोनका सबसे अधिक ह्रास अंटार्कटिका के ऊपर हुआ है। समताप मंडल में ओज़ोन के सांद्रण का ह्रासओज़ोन छिद्र कहलाता है। यह छिद्र पराबैंगनी किरणों को क्षोभमंडल से गुज़रने देता है।

वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए गए हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ है जिसकी उद्घोषणा सन् 1997 में की गई थी। सन् 2005 में प्रभावी हुई इस उद्घोषणा का 141 देशों ने अनुमोदन किया है क्योटो प्रोटोकॉल ने 35 औद्योगिक राष्ट्रों को परिबद्ध किया कि वे सन् 1990 के उत्सर्जन स्तर में वर्ष 2012 तक 5 प्रतिशत की कमी लायें।

वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के सांद्रण में वृद्धि की प्रवृत्ति आगे चलकर पृथ्वी को गर्म कर सकती है। एक बार भूमंडलीय ऊष्मन के आरंभ हो जाने पर इसे उलटना बहुत मुश्किल होगा। भूमंडलीय ऊष्मन का प्रभाव हर जगह एक समान नहीं हो सकता। तथापि भूमंडलीय ऊष्मन के दुष्प्रभाव जीवन पोषक तंत्र को कुप्रभावित कर सकते हैं। हिमटोपियों व हिमनदियों के पिघलने से ऊँचा उठा समुद्री जल का स्तर और समुद्र का ऊष्मीय विस्तार तटीय क्षेत्र के विस्तृत भागों और द्वीपों को आप्लावित कर सकता है। इससे सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होंगी। विश्व समुदाय के लिए यह गहरी चिंता का एक और विषय है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने और भूमंडलीय ऊष्मन की प्रवृत्ति को रोकने के लिए प्रयास आरंभ हो चुके हैं। हमें आशा है कि विश्व समुदाय इस चुनौती का प्रत्युत्तर देगा और एक एेसी जीवन शैली को अपनाएगा जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संसार रहने के लायक रह सकेगा।

आज भूमंडलीय ऊष्मन विश्व की प्रमुख चिंताओं में से एक है, आइए देखें कि दर्ज तापमानों के आधार पर यह कितना गर्म हो चुका है।

तापमान के उपलब्ध आँकड़ ें 19वीं शताब्दी के पश्चिमी यूरोप के हैं, इस अध्ययन की संदर्भित अवधि 1961-80 है। इससे पहले व बाद की अवधियों की तापमान की अंसगतियों का अनुमान 1961-90 की अवधि के औसत तापमान से लगाया गया है। पृथ्वी के धरातल के निकट वायु का औसत वार्षिक तापमान लगभग 14° सैल्सियस है। काल श्रेणी 1961-90 के ग्लोब के सामान्य तापमान की तुलना मे 1856-2000 के दौरान पृथ्वी केधरातल के निकट वार्षिक तापमान में असंगति को दर्शाती हैै।

तापमान के बढ़ने की प्रवृत्ति 20वीं शताब्दी में दिखाई दी। 20वीं शताब्दी में सबसे अधिक तापन दो अवधियों में हुआ है-1901-44 और 1977-99। इन दोनों में से प्रत्येक अवधि में भूमंडलीय ऊष्मन 0.4° सेल्सियस बढ़ा है। इन दोनों अवधियों के बीच थोड़ ा शीतलन भी हुआ जो उत्तरी गोलार्ध में अधिक चिह्नित था।

20वीं शताब्दी के अंत में औसत वार्षिक तापमान का वैश्विक अध्ययन 19वीं शताब्दी में दर्ज किए गए तापमान में 0.6° सेल्सियस अधिक था। 1856-2000 के दौरान सबसे गर्म साल अंतिम दशक में दर्ज किया गया था। सन् 1998 संभवतः न केवल 20वीं शताब्दी का बल्कि पूरी सहस्राब्दि का सबसे गर्म वर्ष था।

 12.3

 

ग्रीनहाउस शब्द का साम्यानुमान उस ग्रीनहाउस से लिया गया है। जिसका उपयोग ठंडे इलाकों में ऊष्मा का परिरक्षण करने के लिए किया जाता है। ग्रीनहाउस काँच का बना होता है। काँच प्रवेशी सौर विकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी होता है मगर बहिर्गामी विकिरण की दीर्घ तरंगों के लिए अपारदर्शी। इस प्रकार काँच अधिकाधिक विकिरण को आने देता है और दीर्घ तंरगों वाले विकिरण को काँच घर से बाहर जाने से रोकता है। इससे ग्रीनहाउस इमारत के भीतर बाहर की अपेक्षा तापमान अधिक हो जाता है। जब आप गर्मियों में किसी बंद खिड़ कियों वाली कार अथवा बस में प्रवेश करते हैं तो आप बाहर की अपेक्षा अधिक गर्मी अनुभव करते हैं। इसी प्रकार जाड़ ों में बंद दरवाज़ों व खिड़ कियों वाला वाहन बाहर की अपेक्षा गर्म रहता है। यह ग्रीनहाउस प्रभाव का एक अन्य उदाहरण है।


अभ्यास


1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i)        कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन सी दशा अर्हक हैं?

(क) सभी महीनों में उच्च वर्षा        

(ख) सबसे ठंडे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिंदु से अधिक

(ग) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक

(घ) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे

(ii) जलवायु के वर्गीकरण से संबंधित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है-

(क) अनुप्रयुक्त        (ख) व्यवस्थित        (ग) जननिक        (घ) आनुभविक

(iii) भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जायेगा-

(क) "Af" (ख) "BSh"        (ग) "Cfb"        (घ) "Am"

(iv) निम्नलिखित में से कौन सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना गया है-

(क) 1990        (ख) 1998 (ग) 1885 (घ) 1950

(v) नीचे लिखे गए चार जलवायु के समूहों में से कौन आर्द्र दशाओं को प्रदर्शित करता हैं?

(क) A-B-C-E (ख) A-C-D-E (ग) B-C-D-E        (घ) A-C-D-F

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

(i) जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है ?

(ii) वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?

(iii) किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?

(iv) सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएँ प्रचलित होंगी?

3.        निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

(i)         A एवं B प्रकार की जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।

(ii)         C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएँगे?

(iii) ग्रीनहाउस गैसों से आप क्या समझते हैं? ग्रीनहाउस गैसों की एक सूची तैयार करें?


परियोजना कार्य

भूमंडलीय जलवायु परिवर्तनों से संबंधित ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ से संबंधित जानकारियाँ एकत्रित कीजिए।