Table of Contents
इकाई V
जल (महासागर)
इस इकाई के विवरण
- जलीय चक्र;
- महासागर - अंतःसमुद्री उच्चावच, लवणता एवं तापमान का वितरण; महासागरीय-तरंगें, ज्वार भाटा एवं धाराएँ।
अध्याय 13
महासागरीय जल
क्या आप जल के बिना जीवन की कल्पना कर सकते हैं? कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवों के लिए आवश्यक घटक है। पृथ्वी के जीव सौभाग्यशाली हैं कि यह एकजलीय ग्रह है। अन्यथा, हम लोगों का अस्तित्व ही नहीं होता। जल हमारे सौर मंडल का दुर्लभ पदार्थ है। सूर्यअथवा सौरमंडल में अन्यत्र कहीं भी जल नहीं है। सौभाग्य से पृथ्वी के धरातल पर जल की प्रचुर आपूर्ति है।हमारे ग्रह को ‘नीला ग्रह’ (Blue planet) भी कहा जाता है।
चित्र 13.1 : जलीय चक्र
जलीय चक्र
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। जलीय चक्र, पृथ्वी पर, इसके नीचे व पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में जल के संचलन की व्याख्या करता है। जलीय चक्र करोड़ ों वर्षों से कार्यरत है और पृथ्वी पर सभी प्रकार का जीवन इसी पर निर्भर करता है। वायु के बाद, जल पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्त्व के लिए सबसे आवश्यक तत्त्व है। पृथ्वी पर जल का वितरण असमान है। बहुत से क्षेत्रों में, जल की प्रचुरता है, जबकि बहुत से क्षेत्रों में यह सीमित मात्रा में उपलब्ध है। जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों अर्थात् गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचरण है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, अधःस्तल और जीवों के बीच जल के सतत् आदान-प्रदान से भी है।
घटक | प्रक्रियाएँ |
महासागरों में संग्रहित जल | वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन,ऊर्ध्वपातन |
वायुमंडल में जल | संघनन,वर्षण |
हिम एवं बर्फ में पानी का संग्रहण | हिम पिघलने पर नदी-नालों के रूप में बहना |
धरातलीय जल बहाव | जलधारा के रूप में, ताजा जल संग्रहण व जल रिसाव |
भौम जल संग्रहण | भौम जल का विसर्जन, झरनें |
सारणी 13.1 जल चक्र के घटक एवं प्रक्रियाएँ
पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का लगभग 71 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है। शेष जल ताज़े जल के रूप में हिमानियों, हिमटोपी, भूमिगत जल, झीलों, मृदा में आर्द्रता वायुमंडल, सरिताओं और जीवों में संग्रहीत है। धरातल पर गिरने वाले जल का लगभग 59 प्रतिशत भाग महासागरों एवं अन्य स्थानों सेवाष्पीकरण के द्वारा वायुमंडल में चला जाता है। शेष भाग धरातल पर बहता है; कुछ भूमि में रिस जाता हैऔर कुछ भाग हिमनदी का रूप ले लेता है। (चित्र 13.1)।
उल्लेखनीय है कि पृथ्वी पर नवीकरण योग्य जल निश्चित मात्रा में है, जबकि माँग तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसके कारण विश्व के विभिन्न भागों में स्थानिक एवं कालिक दोनों रूपों में जल का संकट पैदा हो जाता है। नदी जल के प्रदूषण ने इस संकट को और अधिक बढ़ा दिया है। आप जल की गुणवत्ता को कैसे सुधार सकते हैं तथा जल की उपलब्ध मात्रा में वृद्धि कर सकते हैं?
महासागरीय अधस्तल का उच्चावच
महासागर पृथ्वी की बाहरी परत में वृहत गर्तों में स्थित है। इस खंड में, हम पृथ्वी के महासागरीय बेसिनों कीप्रकृति एवं उनकी भू-आकृति का अध्ययन करेंगे। महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे में इतने स्वाभाविक ढंग से विलय हो जाते हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है। भूगोलविदों ने पृथ्वी के महासागरीय भाग को पांच महासागरों में विभाजित किया है। उनके नाम हैं- प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, दक्षिणी महासागर एवं आर्कटिक। अनेक समुद्र, खाड़ ियाँ, गल्फ़ तथा अन्य निवेशिकाएँ इन पांच बड़ ेमहासागरों के भाग हैं।
महासागरीय अधस्तल का प्रमुख भाग समुद्र तल के नीचे 3 से 6 कि॰मी॰ के बीच पाया जाता है।महासागरों के जल के नीचे की भूमि, अर्थात् महासागरीय अधस्तल, भूमि पर पाए जाने वाले लक्षणों कीअपेक्षा जटिल तथा विभिन्न प्रकार के लक्षणों को प्रदर्शित करती है। (चित्र 13.2)। महासागरों की तली में, विश्व की सबसे बड़ ी पर्वत शृंखलाएँ, सबसे गहरे गर्त एवं सबसे बड़ े मैदान होने के कारण ये ऊबड़ -खाबड़ होते हैं। महाद्वीपों पर पाए जाने वाले लक्षणों की तरह ये लक्षण भी विर्वतनिक, ज्वालामुखीय एवं निक्षेपण की क्रियाओं से बनते हैं।
महासागरीय अधस्तल का विभाजन
महासागरीय अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है- (i) महाद्वीपीय शेल्फ़ (ii) महाद्वीपीय ढाल (iii) गहरे समुद्री मैदान तथा (iv) महासागरीय गभीर। इस विभाजन के अतिरिक्त महासागरीय तली पर कुछ बड़ े तथा छोटे उच्चावच संबंधी लक्षण पाए जाते हैं, जैसे- कटकें, पहाड़ ियाँ, समुद्री टीला, निमग्न द्वीप, खाइयाँ व खड्ड आदि।
महाद्वीपीय शेल्फ़
चित्र 13.2 महासागरीय अधस्तल के उच्चावच
महाद्वीपीय शेल्फ़, प्रत्येक महाद्वीप का विस्तृत सीमांत होता है, जो अपेक्षाकृत उथले समुद्रों तथा खाड़ ियों से घिरा होता है। यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। यह शेल्फ़ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है जिसे शेल्फ़ अवकाश कहाजाता है।
महाद्वीपीय शेल्फ़ों की चौड़ ाई एक महासागर से दूसरे महासागर में भिन्न होती है। महाद्वीपीय शेल्फ़ों की औसत चौड़ ाई 80 किलोमीटर होती है। कुछ सीमांतों के साथ शेल्फ़ नहीं होते अथवा अत्यंत संकीर्ण होते हैं जैसे कि चिली के तट तथा सुमात्रा के पश्चिमी तट इत्यादि पर। इसके विपरीत आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ़ विश्व में सबसे बड़ ा है जिसकी चौड़ ाई 1,500 किलोमीटर है। शेल्फ़ की गहराई भी भिन्न भिन्न होती है। कुछ क्षेत्रों में यह 30 मीटर और कुछ क्षेत्रों में 600 मीटर गहरी होती है।
महाद्वीपीय शेल्फ़ों पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है। ये अवसाद भूमि से नदियों, हिमनदियों तथा पवन द्वारा लाए जाते हैं और तरंगों तथा धाराओं द्वारा वितरित किए जाते हैं। महाद्वीपीय शेल्फ़ों पर लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछटी अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।
महाद्वीपीय ढाल
महाद्वीपीय ढाल महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ़ को जोड़ ती है। इसकी शुरुआत वहाँ होती है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ़ की तली तीव्र ढाल में परिवर्तित हो जाती है। ढाल वाले प्रदेश की प्रवणता 2 से 5 डिग्री के बीच होती है। ढाल वाले प्रदेश की गहराई 200 मीटर एवं 3,000 मीटर के बीच होती है। ढाल का किनारा महाद्वीपों के समाप्ति को इंगित करता है। इसी प्रदेश में कैनियन (गभीर खड्ड) एवं खाइयाँ दिखाई देते हैं।
गभीर सागरीय मैदान
गभीर सागरीय मैदान महासागरीय बेसिनों के मंद ढाल वाले क्षेत्र होते हैं। ये विश्व के सबसे चिकने तथा सबसे सपाट भाग हैं। इनकी गहराई 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होती है। ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।
महासागरीय गर्त
ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये गर्त अपेक्षाकृत खड़ े किनारों वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं। अपने चारों ओर की महासागरीय तली की अपेक्षा ये 3 से 5 किमी॰ तक गहरे होते हैं। ये महाद्वीपीय ढाल के आधार तथा द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं एवं सक्रिय ज्वालामुखी तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। यही कारण है कि ये प्लेटों के संचलन के अध्ययन के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में, 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में हैं।
उच्चावच की लघु आकृतियाँ
ऊपर बताए गए महासागरीय अधस्तल के प्रमुख उच्चावचों के अतिरिक्त कुछ लघु किंतु महत्वूपर्ण आकृतियाँं महासागरों के विभिन्न भागों में प्रमुखता से पाई जाती हैं।
मध्य-महासागरीय कटक
एक मध्य-महासागरीय कटक पर्वतों की दो शृंखलाओं से बना होता है, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किए गए होते हैं। इन पर्वत शृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है तथा इनमें से कुछसमुद्र की सतह तक भी पहुँच सकती हैं इसका उदाहरण आईसलैंड है जो मध्य अटलांटिक कटक का एकभाग है।
समुद्री टीला
यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुँच पाता। समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4,500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। एम्पेरर समुद्री टीला, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीपसमूहों का विस्तार है इसका एक अच्छा उदाहरण है।
सबसे सपाट जलमग्न कैनियन
ये गहरी घाटियाँ होती हैं। जिनमें से कुछ की तुलना कोलोरेडो नदी की ग्रैण्ड कैनियन से की जा सकती है। कई बार ये बड़ ी नदियों के मुहाने से आगे की ओर विस्तृत होकर महाद्वीपीय शेल्फ़ व ढालों को आर-पारकाटती नज़र आती है। हडसन कैनियन विश्व का सबसे अधिक जाना माना कैनियन है।
निमग्न द्वीप
यह चपटे शिखर वाले समुद्री टीले है। इन चपटे शिखर वाले जलमग्न पर्वतों के बनने की अवस्थाएँ क्रमिक अवतलन के साक्ष्यों द्वारा प्रदर्शित होती हैं। अकेले प्रशांत महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्रीटीले एवं निमग्न द्वीप उपस्थित हैं।
प्रवाल द्वीप
ये उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों से युक्त निम्न आकार के द्वीप हैं जो कि गहरेअवनमन को चारों ओर से घेरे हुए होते हैं। यह समुद्र (अनूप) का एक भाग हो सकता है या कभी-कभी येसाफ, खारे या बहुत अधिक जल को चारों तरफ़ से घिरे रहते हैं।
महासागरीय जल का तापमान
इस खंड में विभिन्न महासागरों में तापमान की स्थानिक एवं ऊर्ध्वाधर भिन्नताओं के बारे में बताया गया है। महासागरीय जल भूमि की तरह सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होते हैं। स्थल की तुलना में जल के तापन व शीतलन की प्रक्रिया धीमी होती है।
चित्र 13.3 : ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन)
तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
(i) अक्षांश - ध्रुवों की ओर प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।
(ii) स्थल एवं जल का असमान वितरण - उत्तरी गोलार्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़ े भाग से जुड़ े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
(iii) सनातन पवनें - स्थल से महासागरों की तरफ बहने वाली पवनें महासागरों के सतही गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नीचे का ठंडा जल ऊपर की ओर आ जाता है। परिणामस्वरूप, तापमान में देशांतरीय अंतर आता है। इसके विपरीत, अभितटीय पवनें गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तापमान बढ़ जाता है,
(iv) महासागरीय धाराएँ - गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तर अमरीका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है, जबकि लेब्रेडोर धारा (ठंडी धारा) उत्तरअमरीका के उत्तर-पूर्वी तट के नज़दीक के तापमान को कम कर देती हैं।
ये सभी कारक महासागरीय धाराओं के तापमान को स्थानिक रूप से प्रभावित करते हैं। निम्न अक्षांशों में स्थित परिवेष्ठित समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की अपेक्षा अधिक होता है, जबकि उच्च अक्षांशों में स्थित परिवेष्ठित समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की अपेक्षा कम होता है।
तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण
महासागरीय जल की तापीय-गहराई का पार्श्वचित्र यह दिखाता है कि बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान कैसे घटता है। पार्श्वचित्र महासागर के सतही जल एवं गहरी परतों के बीच सीमा क्षेत्र को दर्शाता है। यह सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक जाती है (चित्र 13.3)। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुँच जाता है।
चित्र 13.4 : महासागरों की सतह के तापमान (से॰) का स्थानिक प्रतिरूप
मध्य एवं निम्न अक्षांशों में महासागरों के तापमान की संरचना को सतह से तली की ओर तीन परतों वाली प्रणाली के रूप में समझाया जा सकता है।
पहली परत गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है जो लगभग 500 मीटर मोटी होती है औरइसका तापमान 20 डिग्री से॰ से 25 डिग्री से॰ के बीच होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में, यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, जबकि मध्य अक्षांशों में यह केवल ग्रीष्म ऋतु में विकसित होती है। दूसरी परत जिसे ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) परत कहा जाता है, पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसमें गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है। यहाँ थर्मोक्लाईन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
तीसरी परत बहुत अधिक ठंडी होती है तथा गभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में, सतही जल का तापमान 0 डिग्री से॰ के निकट होता है, और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहाँ ठंडे पानी की केवल एक ही परत पाई जाती है जो सतह से गभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है।
महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27 डिग्री से॰ होता है, और यह विषवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर क्रमिक ढंग से कम होता जाता है। बढ़ते हुए अक्षांशों के साथ तापमान के घटने की दर सामान्यतः प्रति अक्षांश 0.5 डिग्री से॰ होती है। औसत तापमान 20 डिग्री अक्षांश पर लगभग 22 डिग्री से॰, 40 डिग्री अक्षांश पर 14 डिग्री से॰ तथा ध्रुवों के नज़दीक 0 डिग्री से॰ होता है। उत्तरी गोलार्ध के महासागरों का तापमान दक्षिणी गोलार्ध की अपेक्षा अधिक होता है। उच्चतम तापमान विषवत् वृत्त पर नहीं बल्कि, इससे कुछ उत्तर की तरफ़ दर्ज किया जाता है। उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध का औसत वार्षिक तापमान क्रमशः 19 डिग्री से॰ तथा 16 डिग्री से॰ के आस-पास होता है। यह भिन्नता उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्धों में स्थल एवं जल के असमान वितरण के कारण होती है। चित्र 13.4 में महासागरीय सतह के तापमान के स्थानिक प्रारूप को दिखाया गया है।
यह तथ्य भली भांति जाना जाता है कि महासागरों का उच्चतम तापमान सदैव उनकी ऊपरी सतहों पर होता है, क्योंकि वे सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं और यह ऊष्मा महासागरों के निचले भागों में संवहन की प्रक्रिया से पारेषित होती है। परिणामस्वरूप गहराई के साथ-साथ तापमान में कमी आने लगती है, लेकिन तापमान के घटने की यह दर सभी जगह समान नहीं होती। 200 मीटर की गहराई तक तापमान बहुत तीव्र गति से गिरता है तथा उसके बाद तापमान के घटने की दर कम होती जाती है।
चित्र 13.5 : महासागरों में सतही लवणता का वितरण
महासागरीय जल की लवणता
चाहे वर्षा का जल हो या महासागरों का, प्रकृति में उपस्थित सभी जलाें में खनिज लवण घुले हुए होते हैं।लवणता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को निर्धारित करने में कियाजाता है। इसका परिकलन 1,000 ग्राम॰ (एक किलोग्राम) समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा केद्वारा किया जाता है। इसे प्रायः प्रति 1,000 भाग (%0) या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है। लवणता समुद्री जल का महत्वपूर्ण गुण है। 24.7%0 की लवणता को खारे जल को सीमांकित करने का उच्च सीमा माना गया है।
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
(i) महासागरों की सतह के जल की लवणता मुख्यतः वाष्पीकरण एवं वर्षण पर निर्भर करती है। (ii) तटीय क्षेत्रों में सतह के जल की लवणता नदियों के द्वारा लाए गए ताज़े जल के द्वारा तथा ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ केजमने एवं पिघलने की क्रिया से सबसे अधिक प्रभावित होती है। (iii) पवन भी जल को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित करके लवणता को प्रभावित करती है। (iv) महासागरीय धाराएँ भी लवणता में भिन्नता उत्पन्न करने में सहयोग करती हैं। जल की लवणता, तापमान एवं घनत्व परस्पर संबंधित होते हैं। इसलिए, तापमान अथवा घनत्व में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किसी क्षेत्र की लवणता को प्रभावित करता है।
उच्चतम लवणता वाले क्षेत्र
(i) मृत सागर में (238%0)
(ii) टर्की की वॉन झील (330%0)
(iii) ग्रेट साल्ट झील (220%0)
लवणता का क्षैतिज वितरण
सामान्य खुले महासागर की लवणता 33%0 से 37%0 के बीच होती है। चारों तरफ़ स्थल से घिरे लाल सागर में यह 41%0 तक होती हैं, जबकि आर्कटिक एवं ज्वार नद मुख में मौसम के अनुसार लवणता 0 से 35%0 के बीच पाई जाती है। गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में, जहाँ वाष्पीकरण उच्च होता है कभी-कभी वहाँ की लवणता 70%0तक पहुँच जाती है।
प्रशांत महासागर के लवणता में भिन्नता मुख्यतः इसके आकार एवं बहुत अधिक क्षेत्रीय विस्तार के कारणहै। उत्तरी गोलार्ध के पश्चिमी भागों में लवणता 35%0 में से कम होकर 31%0 हो जाती है, क्योंकि आर्कटिकक्षेत्र का पिघला हुआ जल वहाँ पहुँचता है। इसी प्रकार 15° से 20° दक्षिण के बाद यह तक 33%0 तक घटजाती है।
अटलांटिक महासागर की औसत लवणता 36%0 के लगभग है। उच्चतम लवणता 15° से 20° अक्षांश के बीच दर्ज की गई है। अधिकतम लवणता 20°N एवं 30°N तथा 20°W से 60°W के बीच पाई जाती है। यह उत्तर की ओर क्रमिक रूप से घटती जाती है।
उच्च अक्षांश में स्थित होने के बावजूद उत्तरी सागर में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के द्वारा लाए गए अधिकलवणीय जल के कारण अधिक लवणता पाई जाती है। बाल्टिक समुद्र की लवणता कम होती है, क्योंकि इसमेंबहुत अधिक मात्रा में नदियों का पानी प्रवेश करता है। भूमध्यसागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण के कारणअधिक होती है। काले सागर की लवणता नदियों के द्वारा अधिक मात्रा में लाए जाने वाले ताज़े जल के कारण कम होती है।
हिंद महासागर की औसत लवणता 35%0 है। बंगाल की खाड़ ी में गंगा नदी के जल के मिलने से लवणता की प्रवृत्ति कम पाई जाती है। इसके विपरीत, अरब सागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण एवं ताज़े जल की कम प्राप्ति के कारण अधिक है। चित्र 13.5 विश्व के महासागरों की लवणता को दर्शाता है।
लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण
गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन आता है, लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है।सतह की लवणता जल के बर्फ या वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाने के कारण बढ़ जाती है या ताज़े जल के मिल जाने से घटती है, जैसा कि नदियों के द्वारा होता है। गहराई में लवणता लगभग नियत होती है, क्योंकि वहाँ किसी प्रकार से पानी का ‘ह्रास’ या नमक की मात्रा में ‘वृद्धि’ नहीं होती। महासागरों के सतहीक्षेत्रों एवं गहरे क्षेत्रों के बीच लवणता में अंतर स्पष्ट होता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व घनत्व वाले जल के ऊपर स्थित होता है। लवणता साधारणतः गहराई के साथ बढ़ती है तथा एक स्पष्ट क्षेत्र, जिसे हैलोक्लाईन कहा जाता है, में यह तीव्रता से बढ़ती है। लवणता समुद्री जल के घनत्व को प्रभावित करती है तथा महासागरीय जल के स्तरीकरण को प्रभावित करता है। यदि अन्य कारक स्थिर रहें तो समुद्री जलकी बढ़ती लवणता उसके घनत्व को बढ़ाती है। उच्च लवणता वाला समुद्री जल, प्रायः कम लवणता वाले जल के नीचे बैठ जाता है। इससे लवणता का स्तरीकरण हो जाता है।
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(क) वाष्पीकरण (ख) वर्षण
(ग) जलयोजन (घ) संघनन
(ii) महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है।
(क) 2-20 मीटर (ख) 20-200 मीटर
(ग) 200-2,000 मीटर (घ) 2,000-20,000 मीटर
(iii) निम्नलिखित में से कौन सी लघु उच्चावच आकृति महासागरों में नहीं पाई जाती है?
(क) समुद्री टीला (ख) महासागरीय गभीर
(ग) प्रवाल द्वीप (घ) निमग्न द्वीप
(v) लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है-
(क) 10 ग्राम (ख) 100 ग्राम
(ग) 1,000 ग्राम (घ) 10,000 ग्राम
(iv) निम्न में से कौन सा सबसे छोटा महासागर है?
(क) हिंद महासागर (ख) अटलांटिक महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर (घ) प्रशांत महासागर
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
(ii) महाद्वीपीय सीमांत क्या होता है?
(iii) विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइये।
(iv) तापप्रवणता क्या है?
(v) समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
(vi) समुद्री जल की लवणता क्या है?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर-संबंधित हैं?
(ii) महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
परियोजना कार्य
(i) विश्व की एटलस की सहायता से महासागरीय नितल के उच्चावचों को विश्व के मानचित्र पर दर्शाइए।
(ii) एटलस की सहायता से हिंद महासागर में मध्य महासागरीय कटकों के क्षेत्रों को पहचानिए।