इकाई VI

पृथ्वी पर जीवन

इस इकाई के विवरण :

  • जैवमंडल - पादप एवं अन्य जीवों की विशेषताएँ, पारितंत्र; जैव-भू रासायनिक चक्र, पारिस्थितिक संतुलन तथा जैवविविधता एवं संरक्षण।


अध्याय 15

पृथ्वी पर जीवन

स पुस्तक के विभिन्न अध्यायों से अब तक आप पर्यावरण के तीन मुख्य परिमंडल-स्थलमंडल, जलमंडल व वायुमंडल के विषय में जान चुके हैं। आप जानते हैं कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवधारी, जो मिलकर जैवमंडल (Biosphere) बनाते हैं - ये पर्यावरण के दूसरे मंडलों के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। जैवमंडल में पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवित घटक शामिल हैं। जैवमंडल सभी पौधों, जंतुओं, प्राणियों (जिसमें पृथ्वी पर रहने वाले सूक्ष्म जीव भी हैं) और उनके चारों तरफ के पर्यावरण के पारस्परिक अंतर्संबंध से बना है। अधिकतर जीव स्थलमंडल पर ही मिलते हैं परंतु कुछ जलमंडल और वायुमंडल में भी रहते हैं। बहुत से एेसे जीव भी हैं, जो एक मंडल से दूसरे मंडल में स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं।

पृथ्वी पर जीवन लगभग हर जगह पाया जाता है। जीवधारी विषुवत् वृत्त से ध्रुवों तक, समुद्री तल से हवा में कई किलोमीटर तक, सूखी घाटियों में, बर्फीले जल में, जलमग्न भागों में, व हज़ारों मीटर गहरे धरातल के भौम जल तक में पाए जाते हैं।


जैवमंडल और इसके घटक पर्यावरण के बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। ये तत्त्व अन्य प्राकृतिक घटकों जैसे -भूमि, जल व मिट्टी के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। ये वायुमंडल के तत्त्वों जैसे -तापमान, वर्षा, आर्द्रता व सूर्य के प्रकाश से भी प्रभावित होते हैं। जैविक घटकों का भूमि, वायु व जल के साथ पारस्परिक आदान-प्रदान जीवों के जीवित रहने, बढ़ने विकसित होने में सहायक होता है

पारिस्थितिकी (Ecology)

समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में आप पारिस्थितिकी व पर्यावरण संबंधी समस्याओं के विषय में पढ़ते होंगे। क्या आपने कभी सोचा है कि ‘इकोलॉजी’ या पारिस्थितिकी क्या है? जैसाकि आप जानते हैं, पर्यावरण- जैविक व अजैविक तत्त्वों के मेल से बना है। यह जानना अत्यंत रोचक है कि संतुलन के लिए विभिन्न जीवधारियों का होना और बने रहना क्यों आवश्यक है? इस संतुलन के बने रहने के लिए भी विविध प्राणियों/जीवधारियों का एक विशेष अनुपात में रहना आवश्यक है, जिससे जैविक व अजैव तत्त्वों में स्वस्थ अंतर्किΡया जारी रहे।

पारिस्थितिकी प्रमुख रूप से जीवधारियों के जन्म, विकास, वितरण, प्रवृत्ति व उनके प्रतिकूल अवस्थाओं में भी जीवित रहने से संबंधित है। पारिस्थितिकी केवल जीवधारियों और उनके आपस में संबंध का ही अध्ययन नहीं है। किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समूह के जीवधारियों का भूमि, जल अथवा वायु (अजैविक तत्त्वों) से एेसा अर्तंसंबंध जिसमें ऊर्जा प्रवाह व पोषण शृंखलाएं स्पष्ट रूप से समायोजित हों, उसे पारितंत्र (Ecological system) कहा जाता है। पारिस्थिति के संदर्भ में आवास (habitat) पर्यावरण के भौतिक व रासायनिक कारकों का योग है। विभिन्न प्रकार के पर्यावरण व विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न प्रकार के पारितंत्र पाए जाते हैं, जहाँ अलग-अलग प्रकार के पौधे व जीव-जंतु विकास क्रम द्वारा उस पर्यावरण के अभ्यस्त हो जाते हैं। इस प्रकरण को पारिस्थितिक अनुकूलन (Ecological adaptation) कहते हैं।

पारितंत्र के प्रकार (Types of Ecosystems)

पारितंत्र मुख्यतः दो प्रकार के हैंः स्थलीय (Terrestrial) पारितंत्र व जलीय (Aquatic) पारितंत्र। स्थलीय पारितंत्र को पुनः ‘बायोम’ (Biomes) में विभक्त किया जा सकता है। बायोम, पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़ े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय संबंधी तत्त्व करते हैं। अतः विशेष परिस्थितियों में पादप जंतुओं के अंतर्संबंधो के कुल योग को ‘बायोम’ कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्दΡता व मिट्टी संबंधी अवयव भी शामिल हैं। संसार के कुछ प्रमुख पारितंत्र ः वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुण्ड्रा (Tundra) पारितंत्र हैं। जलीय पारितंत्र को समुद्री पारितंत्र व ताजे जल के पारितंत्र में बाँटा जाता है। समुद्री पारितंत्र में महासागरीय, ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति (Coral reef), पारितंत्र सम्मिलित हैं। ताजे जल के पारितंत्र में झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल (Marshes and bogs) शामिल हैं।

इकोलोजी (ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Oikos) ‘ओइकोस’ और (logy) ‘लोजी’ से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ ‘घर तथा ‘लोजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है। शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी-पृथ्वी पर पौधों, मनुष्यों, जतुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के ‘घर- के रूप में अध्ययन है, एक-दूसरे पर आश्रित होने के कारण ही ये एक साथ रहते हैं जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst Haeckel), जिन्होंने सर्वप्रथम सन् 1869 में ओइकोलोजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग किया, पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं। जीवधारियों (जैविक) व अजैविक (भौतिक पर्यावरण) घटकों के पारस्परिक संपर्क के अघ्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। अतः जीवधारियों का आपस में उनका भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।

चित्र 15.1: परितंत्र की कार्य प्रणाली व संरचना


पारितंत्र की कार्य प्रणाली व संरचना (Structure and functions of Ecosystems)

पारितंत्र की संरचना में वहाँ उपलब्ध पौधों व जंतुओं की प्रजातियों का वर्णन सम्मिलित है। यह उनके (प्राणियों व पौधों की प्रजातियों के) इतिहास, वितरण व उनकी संख्या को भी वर्णित करता है। संरचना की दृष्टि से, सभी पारितंत्र में जैविक व अजैविक कारक होते हैं। अजैविक या भौतिक (Abiotic factors) कारकों में तापमान, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, आर्द्रता, मृदा की स्थिति व अजैविक या अकार्बनिक तत्त्व (कार्बन डाई आक्साइड, जल, नाइट्रोजन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाशियम आदि) सम्मिलित हैं। जैविक कारकों (Biotic factors) में उत्पादक, उपभोक्ता (प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक) तथा अपघटक शामिल हैं। उत्पादकों में सभी हरे पौधे सम्मिलित हैं, जो प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं में शाकाहारी जंतु जैसे- हिरण, बकरी, चूहे और सभी पौधों पर निर्भर जीव शामिल हैं। द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ताओं में सभी माँसाहारी जैसे- साँप, बाघ, शेर आदि शामिल हैं। कुछ माँसाहारी, जो दूसरे माँसाहारी जीवों पर निर्भर हैं, उन्हें चरम स्तर के माँसाहारी (Top carnivores) के रूप में जाना जाता है। जैसे- बाज़ और नेवला आदि। अपघटक, वे हैं, जो मृत जीवों पर निर्भर हैं (जैसे- कौवा और गिद्ध), तथा कुछ अन्य अपघटक, जैसे -बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवाणु मृतकों को अपघटित कर उन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित करते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ता, उत्पादक पर निर्भर हैं, जबकि प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन बनते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता फिर तृतीयक उपभोक्ताओं के द्वारा खाए जाते हैं। अपघटक प्रत्येक स्तर पर मृतकों पर निर्भर होते हैं। ये अपघटक इन्हें (मृतकों को) विभिन्न पदार्थों, जैसे- कार्बनिक व अकार्बनिक अवयवों और मिट्टी की उर्वरता के लिए पोषक तत्त्वों में परिवर्तित कर देते हैं। पारितंत्र के जीवाणु एक खाद्य - शृंखला से परस्पर जुड़ े हुए होते हैं। उदाहरण के लिए - पौधे पर जीवित रहने वाला एक कीड़ ा (Beetle) एक मेंढक का भोजन है, जो मेढक साँप का भोजन है और साँप एक बाज़ द्वारा खा लिया जाता है। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ह खाद्य शृंखला (Food chain) कहलाती है। खाद्य शृंखला की प्रक्रिया में एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के रूपांतरण को ऊर्जा प्रवाह (Flow of energy) कहते हैं। खाद्य शृंखलाएँ पृथक अनुक्रम न होकर एक दूसरे से जुड़ ी होती हैं। उदाहरणार्थ - एक चूहा, जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक माँसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर है। परिणामस्वरूप खाद्य शृंखलाएँ आसपास में एक-दूसरे से जुड़ ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़ े होने (अर्थात् जीवों की खाद्य शृंखलाओं के विकल्प उपलब्ध होने पर) को खाद्य जाल (Food web) कहा जाता है।

सामान्यतः दो प्रकार की खाद्य शृंखलाएँ पाई जाती हैं- चराई खाद्य शृंखला (Grazing food-chain) और अपरद खाद्य शृंखला (Detritus food chain) चराई खाद्य शृंखला पौधों (उत्पादक) से आरंभ होकर माँसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मघ्यम स्तर पर हैं। हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसमें श्वसन, उत्सर्जन विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। खाद्य शृंखला में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है। अपरद खाद्य शृंखला चराई खाद्य शृंखला से प्राप्त मृत पदार्थों पर निर्भर है और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलित हैं।

बायोम के प्रकार (Types of Biomes)

पिछले अध्ययन से आप जान गए हैं कि ‘बायोम’ का अर्थ क्या है? आओ, हम अब संसार के कुछ प्रमुख बायोम पहचानें और उन्हें रेखांकित करें। संसार के पाँच प्रमुख बायोम इस प्रकार हैं ः वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम, घासभूमि बायोम, जलीय बायोम और उच्च प्रदेशीय बायोम। इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन सारणी 15.1 में वर्णित है।

जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle)

सूर्य ऊर्जा का मूल स्रोत है। जिसपर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमंडल में प्रकाश संश्लेषण-क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरंभ करती है, जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाईअॉक्साईड, अॉक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुँचने वाले सूर्याताप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थाई रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।


15.22

15.23

पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार के जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितकीय अंतर्संबंधों पर जीवित हैं। जीवधारी बहुलता व विविधता में ही जिंदा रह सकते हैं। इसमें (अर्थात्, जीवित रहने की प्रक्रिया में) विधिवत प्रवाह जैसे- ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। इनकी उपलब्धता संसार के विभिन्न भागों में भिन्न है। यह भिन्नता क्षेत्रीय होने के साथ-साथ सामयिक (अर्थात् वर्ष के 12 महीनों में भी भिन्न है) भी है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमंडल व जलमंडल की संरचना में रासायनिक घटकों का संतुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है। रासायनिक तत्त्वों का यह संतुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्त्वों के अवशोषण से आरंभ होता है और उनके वायु, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरंभ होता है। ये चक्र मुख्यतः सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमंडल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycles) कहे जाते हैं। ‘बायो’ (Bio) का अर्थ है जीव तथा ‘ज्यो’ (Geo) का तात्पर्य पृथ्वी पर उपस्थित चट्टानें, मिट्टी, वायु व जल से है। जैव भू-रासायनिक चक्र दो प्रकार के हैं - एक गैसीय (Gaseous cycle) और दूसरा तलछटी चक्र (Sedimentary cycle), गैसीय चक्र में पदार्थ का मुख्य भंडार/स्रोत वायुमंडल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भंडार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी, तलछट व अन्य चट्टानें हैं।

जलचक्र (The water cycle)

सभी जीवधारी, वायुमंडल व स्थलमंडल में जल का एक चक्र बनाए रखते हैं, जो तरल, गैस ठोस अवस्था में है- इसे ही जलीय चक्र कहा जाता है (जलचक्र के लिए अध्याय 13 देखें)।

कार्बन चक्र (The carbon cycle)

सभी जीवधारियों में कार्बन पाया जाता है। यह सभी कार्बनिक यौगिक का मूल तत्त्व हैं। जैवमंडल में असंख्य कार्बन यौगिक के रूप में जीवों में विद्यमान हैं।
का
र्बन चक्र कार्बन डाइअॉक्साइड का परिवर्तित रूप है। यह परिवर्तन पौधों में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइ अॉक्साइड के यौगिकीकरण द्वारा आरंभ होता है। इस प्रक्रिया से कार्बोहाइड्रेट्स व ग्लूकोस बनता है, जो कार्बनिक यौगिक जैसे-स्टार्च, सेल्यूलोस, सक्रोज़ (Sucrose) के रूप में पौधों में संचित हो जाता है। कार्बोहाइड्रेट्स का कुछ भाग सीधे पौधों की जैविक क्रियाओं में प्रयोग हो जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान विघटन से पौधों के पत्तों व जड़ ों द्वारा कार्बन डाईअॉक्साइड गैस मुक्त होती है, शेष कार्बोहाइड्रेट्स, जो पौधों की जैविक क्रियाओं में प्रयुक्त नहीं होते, वे पौधों के ऊतकों में संचित हो जाते हैं। ये पौधे या तो शाकाहारियों के भोजन बनते हैं, अन्यथा सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटित हो जाते हैं। शाकाहारी उपभोग किये गए कार्बोहाइड्रेटस को कार्बन डाइअॉक्साइड में परिवर्तित करते हैं, और श्वसन क्रिया द्वारा वायुमंडल में छोड़ ते हैं। इनमें शेष कार्बोहाइड्रेटस का जंतुओं के मरने पर, सूक्ष्म जीव अपघटन करते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स अॉक्सीजन प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइअॉक्साइड में परिवर्तित होकर पुनः वायुमंडल में आ जाती है (चित्र 15.2)।


चित्र 15.2 : कार्बन चक्र

अॉक्सीजन चक्र (The oxygen cycle)

प्रकाश-संश्लेषण क्रिया का प्रमुख सह-परिणाम (By product) अॉक्सीजन है। यह कार्बोहाइड्रेट्स के अॉक्सीकरण में सम्मिलित है जिससे ऊर्जा, कार्बन डाइअॉक्साइड व जल विमुक्त होते हैं। अॉक्सीजन चक्र बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। बहुत से रासायनिक तत्त्वों और सम्मिश्रणों में अॉक्सीजन पाई जाती है। यह नाइट्रोजन के साथ मिलकर नाइट्रेट बनाती है तथा बहुत से अन्य खनिजों व तत्त्वों से मिलकर कई तरह के अॉक्साइड बनाती है जैसे- आयरन अॉक्साइड, एल्यूमिनियम अॉक्साइड आदि। सूर्यप्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, जल अणुओें (H2O) के विघटन से अॉक्सीजन उत्पन्न होती है और पौधों की वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के दौरान भी यह वायुमंडल में पहुंचती हैं।


नाइट्रोजन चक्र (The nitrogen cycle)

वायुमंडल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन, वायुमंडलीय गैसों का 78 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे- एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। 

चित्र 15.3 : नाइट्रोजन चक्र

(वायु में स्वतंत्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं) केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे- कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एल्गी (Blue green algae) ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है। नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक (Biological) है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं। स्वतंत्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व संबंधित पौधों की जड़ ें व रंध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमंडल में पहुँचती है। वायुमंडल में भी बिजली चमकने (Lightening) व अंतरिक्ष विकिरण (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है। महासागरों में कुछ समुद्री जीव भी इसका यौगिकीकरण करते हैं। वायुमंडलीय नाइट्रोजन के इस तरह यौगिक रूप में उपलब्ध होने पर हरे पौधों में इसका स्वांगीकरण (Nitrogen assimilation) होता है। शाकाहारी जंतुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका (नाइट्रोजन) कुछ भाग उनमें चला जाता है। फिर मृत पौधों व जानवरों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Excretion of nitrogenous wastes) मिट्टी, में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन -यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुनः स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहा जाता है (चित्र 15.3)।

अन्य खनिज चक्र (Other mineral cycles)

जैव मंडल में मुख्य भू-रासायनिक तत्त्वों-कार्बन, अॉक्सीजन, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन के अतिरिक्त पौधों व प्राणी जीवन के लिए अत्यधिक महत्त्व के बहुत से अन्य खनिज मिलते हैं। जीवधारियों के लिए आवश्यक ये खनिज पदार्थ प्राथमिक तौर पर अकार्बनिक रूप में मिलते हैं, जैसे- फॉस्फोरस, सल्फर, कैल्शियम और पोटैशियम। प्रायः ये घुलनशील लवणों के रूप में मिट्टी, में या झील में अथवा नदियों व समुद्री जल में पाए जाते हैं। जब घुलनशील लवण जल चक्र में सम्मिलित हो जाते हैं, तब ये अपक्षय प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी की पर्पटी पर और फिर बाद में समुद्र तक पहुँच जाते हैं। अन्य लवण तलछट के रूप में धरातल पर पहुँचते हैं और फिर अपक्षय से चक्र में शमिल हो जाते हैं। सभी जीवधारी अपने पर्यावरण में घुलनशील अवस्था में उपस्थित खनिज लवणों से ही अपनी खनिजों की आवश्यकता को पूरा करते हैं। कुछ अन्य जंतु पौधों व प्राणियों के भक्षण से इन खनिजों को प्राप्त करते हैं। जीवधारियों की मृत्यु के बाद ये खनिज अपघटित व प्रवाहित होकर मिट्टी व जल में मिल जाते हैं।

पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance)

किसी पारितंत्र आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक संतुलन है। यह तभी संभव है, जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमशः परिवर्तन भी हो, लेकिन एेसा प्राकृतिक अनुक्रमण (Natural succession) के द्वारा ही होता है। इसे पारितंत्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थाई संतुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यह संतुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा व आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के जिंदा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण संतुलन प्राप्त किया जाता है। संतुलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं (जिससे प्रजातियों की संख्या निश्चित रहती है और संतुलन बना रहता है) इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं, जहाँ शाकाहारी जंतु (हिरण, जेबरा व भैंस आदि) अत्यधिक संख्या में होते हैं। दूसरी तरफ माँसाहारी (बाघ, शेर आदि) अधिक नहीं होते और शाकाहारियों के शिकार पर निर्भर होते हैं, अतः इनकी संख्या नियंεंत्रत रहती है। पौधों के पारिस्थितिक संतुलन में बदलाव के कारण हैं। जैसे- वनों की प्रारंभिक प्रजातियों में कोई व्यवधान जैसे- स्थानांतरी कृषि में वनों को साफ करने से प्रजातियों के वितरण में बदलाव आता है। यह परिवर्तन प्रतिस्पर्धा के कारण है, जहाँ द्वितीय वन-प्रजातियों जैसे- घास, बाँस और चीड़ आदि के वृक्ष प्रारंभिक प्रजातियों के स्थान पर उगते ैं और प्रारंभिक (Original) वनों की संरचना को बदल देते हैं। यही अनुक्रमण (Succession) कहलाता है।

पारिस्थितिक असंतुलन के कारण- प्रजातियों का आगमन, प्राकृतिक विपदाएं और मानव जनित कारक भी हैं। मनुष्य के हस्तक्षेप से पादप समुदाय का संतुलन प्रभावित होता है, जो अन्ततोगत्वा पूरे पारितंत्र के संतुलन को प्रभावित करता है। इस असंतुलन से कई अन्य द्वितीय अनुक्रमण आते हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है। इसने पर्यावरण के वास्तविक रूप को लगभग नष्ट कर दिया है और सामान्य पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पर्यावरण असंतुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे -बाढ़ भूकंप, बीमारियाँ और कई जलवायु सबंधी परिवर्तन होते हैं।

विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ट अंतर्संबंध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितंत्र के संरक्षण व बचाव के प्रमुख आधार हैं।



अभ्यास

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न:

(i) निम्नलिखित में से कौन जैवमंडल में सम्मिलित हैं:

(क) केवल पौधे (ख) केवल प्राणी

(ग) सभी जैव व अजैव जीव (घ) सभी जीवित जीव।

(ii) उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?

(क) प्रेयरी (ख) स्टैपी

(ग) सवाना (घ) इनमें से कोई नहीं

(iii) चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ अॉक्सीजन मिलकर निम्नलिखित मे से क्या बनाती है?

(क) आयरन कार्बोनेट (ख) आयरन अॉक्साइड

(ग) आयरन नाइट्राइट (घ) आयरन सल्फेट

(iv) प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाईअॉक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?

(क) प्रोटीन (ख) कार्बोहाइड्रेट्स

(ग) एमिनोएसिड (घ) विटामिन

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:

(i) पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं ?

(ii) पारितंत्र (Ecological system) क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएं।

(iii) खाद्य शृंखला क्या है? चराई खाद्य शृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।

(iv) खाद्य जाल (Food web) से आप क्या समझते है? उदाहरण सहित बताएं।

(v) बायोम (Biome) क्या है?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(i) संसार के विभिन्न वन बायोम (Forest biomes) की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।

(ii) जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycle) क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (Fixation) कैसे होता है? वर्णन करें।

(iii) पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance) क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।


परियोजना कार्य

(i) प्रत्येक बायोम की प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए विश्व के मानचित्र पर विभिन्न बायोम के वितरण को दर्शाइए।

(ii) अपने स्कूल प्रांगण में पाए जाने वाले पेड़ , झाड़ ी व सदाबहार पौधों पर एक संक्षिप्त लेख लिखें और लगभग आधे दिन यह पर्यवेक्षण करें कि किस प्रकार के पक्षी इस वाटिका में आते हैं। क्या आप इन पक्षियों की विविधता का भी उल्लेख कर सकते हैं?